सही कहा... सपना तो बचपन से दोनों का था... लेकिन भैया बुद्धू और बहना के इतने इशारों को समझते हुए भी नासमझ बने रहे...बचपन का सपना था , पूरा हुआ जैसे उसके भैया का सपना पूरा हुआ वैसे सारी ननदों के भैया का सपना पूरा हो,...
इसीलिए एक छेद से निकाल के दूसरे छेद में...जीजू तो मेरे लगेंगे,
वो तो मेरी ननद है उसके तो भैया लगेंगे,... फिर भैया भैया में क्या भेद करना,
और आने वाले ऐसे हैं जो छेद छेद में भेद नहीं करते बल्कि जेंडर डिशकृमिनेशन भी नहीं करते![]()
कभी पहला दूसरे के ऊपर तो दूसरा पहले के ऊपर...इसलिए तो मुकाबला दुबारा तिबारा होता है बार बार होता है
हाँ... "मोरे नादान बालमा न जाने दिल की बात...."अरे तभी यो हर गाने में बलमा बड़ा नादान कहा जाता है
बैंया पकड़ूँ बैंया पकड़ूँ हाथ दबाऊँ
बैंया पकड़ूँ हाथ दबाऊँ
समझत नाहि कैसे सम्झाऊँ
समझत नाहि कैसे सम्झाऊँ
लाख जतन कर हार गयी मैं
रोगी हो गयी जान रे
बलमा बड़ा नादान रे
बहुत पहले अलबेला फिलिम में ये गाना गया गया था जो सरासर सही है,
गीता धीरे-धीरे इनसे सारे गीत गवाएगी...बस अगली पोस्ट में पता चल जाएगा की
ननद ने क्या माँगा,... अभी तो गीता ने मुंह भी नहीं खोला पहले तीन तिरबाचा भरवा रही है, ...
रूप निखरने के लिए .. वो गाढ़ा वाला क्रीम बहुत जरुरी है....एकदम पहले ही बोल चुकी है वो ननद भले एक है लेकिन ननदोई की गिनती नहीं है, तो जब अपने यारों को चढ़ायेगी,... तो गोरे चम्पई रंग की उस टीनेजर को जब दूधिया रबड़ी मलाई से वो नहलवायेगी, तभी तो क्या कहते हैं
रूप निखर आया है दुलहन का ,... से