बिना किसी भेदभाव के...aapne ekdam sahi kaha,
Unki saas ne unhe meri saas se pyaar karana ekdam mast najar se dekhna sikhya diya aur ab vo apni saas aur meri saas men koyi anatr nahi karte ye sb unki saas ki hi kripa hai
बिना किसी भेदभाव के...aapne ekdam sahi kaha,
Unki saas ne unhe meri saas se pyaar karana ekdam mast najar se dekhna sikhya diya aur ab vo apni saas aur meri saas men koyi anatr nahi karte ye sb unki saas ki hi kripa hai
इसलिए जीजाजी में आगे भी 'जी' है और पीछे भी 'जी' है...ekdam aur tange bhi pahlaiyengi jiju ke saamne
rishta hi kuch aisa hai Jija saali ka , Jija bolate hai koyi bhi mard Ji jata hai aur Ji uska karta hai ki bas bolne vaali ko dhar daboche
किशोरियां... वो भी ऐसी...Ye Guddi kI coaching ki ladkiyon ki pics kahan se mil gayin aapko sab ki sab ekdm aisi hai
Thankooooooooooooooooooooooo so much
Aap Mistress ke sath jab sajan ji ke sath romance ka tadka dalti ho. Ekdam alag. Is kahani me. Ab paheli bar bol rahi hu.बदलाव
काम इन्होने मुझे खुद बताया ( बदलाव के बाद ) का स्थान , धर्म और मोक्ष के बराबर ही शास्त्रों ने दिया है। काम यानि कामना , ...और अगर कामना ही नहीं होगी तो कोई काम कोई करेगा ही क्यों।
यही बात तो मैं सोचती थी की हमारी संस्कृति में काम गिल्ट से नहीं जुड़ा है बल्कि सबसे आनदमयी अनुभूति है ,इसलिए तो शादी के मंडप में , मंडपकेबांस पर जो तोते लगाए जाते है वो कामदेव के वाहन के रूप में ,
और श्रृंगार सोलहो श्रृंगार उसी काम का ही तो एक हिस्सा है ,इच्छा को उत्तेजित करने का , एक ट्रू इंटिमेसी अचीव करने का
और एक बार सोच में बदलाव होने के साथ , रोज न दिन देखते थे वो रात , और मैं भी ,आखिर रमणी का मतलब ही रमण करने वाली , रमण में साथ देने वाली है
और फिर मैं तो इनकी जबरदस्त आशिक थी ,, हूँ , रहूंगी
और थ्योरी और प्रैक्टिस का ये असर ,..
और कुछ तो उनमे है ,
इनकी उँगलियाँ , छूते ही देह में ऐसी झंकार मचती है , पहली रात मैं कभी नहीं भूल सकती ,
इतने हलके हलके ये मुझे छू रहे थे और मैं ,
लगता था मैं जैसे कोई जलतरंग हूँ और कोई कलाकार बहुत मनोयोग से ,...
उस पहली रात को ,मेरी सारी सखियों ने भौजाइयों ने सिर्फ 'उस खास अंग ' के बारे में बताया था
और अगली सुबह मेरी ननदों और भौजाइयों ने ( फोन से ) बस 'उसी' के बारे, बड़ा ,मोटा ,दर्द हुआ
पर मैं कैसे समझाती उनको
सबसे ज्यादा खतरनाक थी उनकी उँगलियों और होंठ और उससे भी ज्यादा , उनकी रस भरी प्रेम भरी आँखे
एक खेल होता है न जिसमें अगले की गोटियां अगर आपके खाने में पहुँच जाए तो वो न सिर्फ खाना हार जाते हैं बल्कि वो गोटी भी उसकी हो जाती
इस बेईमान ने जो अभी अपनी सास के हंस हंस कर बाते कर रहा हैं ,
इतना सीधा नहीं है ,
पहली रात में बल्कि पहले घंटे में ही इस दुष्ट बेईमान ने , मेरे सारे अंग मुझसे जीत लिया , मन तो खैर उसने पहले ही चुरा लिया था।
और जब मेरा कुछ बचा ही नहीं तो मैं क्या बचाती क्या छुपाती।
और जो थोड़ी बहुत बचत थी ,
उस बदलाव के साथ साथ , अब तो उनकी उँगलियाँ मेरे साथ साथ प्रक्टिस करके
बस उसकी टिप , कभी मेरी पलकों पे रख भर देते हैं ये बस ऐसे वैसे सपने आने लगते हैं ,पलकें मस्ती से मुंद जाती है।
और ,और नीचे तो बस ,..
और एट्टीट्यूड में बदलाव होने के साथ तो और ,
छोड़िये मैं तो हर चीज में इनकी बराबर की साथी हूँ,
मेरी सहेलियां ,... पहले जब वो हाथ बढ़ाने के लिए हाथ बढ़ाती थीं , तो वो छिटक कर ,..और दूर से हाथ जोड़ कर नमस्ते करते थे।
और अब तो , उनका हाथ छूते ही ,..
सुजाता तो मुझे बहुत चिढ़ाती है ,
यार मैंने आज बहुत देर से हाथ नहीं धोया , क्या बात है ऊँगली में ,यार हाथ छूने से ये हाल है तो ,...
मैं भी उलटे उसे , .... आखिर मेरी छोटी बहन की तरह नहीं बल्कि छोटी बहन ही है ,इनकी मुंहबोली साली ,
" तो छुआ क्यों नहीं लेती ,तेरे जीजू हैं , मुझसे पूछने की भी जरूरत नही ,न तुझे न उन्हें। "
पहले जहां सब उन्हें किल ज्वाय कहते थे ,लेडीज उनसे दूर ही रहती थीं , अब वो एकदम हॉट प्रापर्टी हो गए थे ,
ऐसा कुछ नहीं की वो कैसानोवा या और कुछ ,
लेकिन बस जो सोशली एक्सेप्टेड फ्लर्टेशन , उससे बस थोड़ा ज्यादा और वो भी बहुत सॉफिस्टिकेड ढंग से ,.. और अब कोई भी पार्टी उनके ,और उनके साथ मेरे बिना पूरी नहीं होती थी।
असल में , मैं अगर सेक्सुअल मामलो में ,और मैं क्या ये बात सारी लड़कियों के लिए सही है ,
तो मैं किसी भी मेल की सेक्सुअलिटी तीन फैक्टर्स पर जज करुँगी ,
एटीट्यूड ,
इक्विपमेंट और
स्किल
पहले और आखिरी में तो उन्हें १० में १० मिलते और बीच वाले में भी कम से कम ८. ५ या ९।और मेरे लिए सबसे ज्यादा वेटेज था पहले फैक्टर का, एट्टीट्यूड का
मैंने बताया था न कहानी के शुरू में ,वो कोई पॉर्न किंग या ब्ल्यू फिल्मों के हीरो की तरह नहीं थे पर टॉप २ % में और हम न्यूली मैरिड टाउनशिप में आपस में भी ,.. तो यहाँ भी वो टॉप १ % में होंगे , मेरे हिसाब से उन्हें ८. ५ मिलना चाहिए पर उनकी स्साली ,सुजाता और रीनू दोनों १० में ९ नंबर देती। कमल जीजू को आफ कोर्स कोई भी ९. स कम नहीं देगा पर स्किल वाले मामले में वो किसी से भी
और सबसे बड़ी बात अब वो हर चीज इन्जवाय करने लगे थे।
पहले वो सेक्स ऐडिक्ट थे , पॉर्न , चैट रूम और वो भी कहीं भी अपने नाम से नहीं , छुप छुप के ,कहीं लड़की की आईडी तो कहीं ,..
और अब वो पैशोनेट थे , सेक्स इंज्वाय करते थे।
और इसका एक असर जो मैं कहूँगी सबसे बड़ा फायदा मिला उस सेक्सुअल रिप्रेशन से बाहर निकलने का.
वो रिप्रेशन जो एक शारीरिक ,आत्मिक और मानसिक इम्बैलेंस क्रिएट करता था , अब जो वो उससे वो बाहर निकल गए तो वही ऊर्जा अब उनके देह मन और बुद्धि में , और एक बैलेंस ,...
मैंने मम्मी के साथ विज्ञान भैरव तंत्र जो कश्मीर शैवाइट्स का ,.. सूना तो था , थोड़ा बहुत लेकिन इनके साथ ,
मैंने कहा था न ये पढ़ने के कीड़े हैं और अब जब मैंने इनके सोच की धारा उधर मोड़ दी थी तो खुद उन्होंने और इनके साथ ,
और वो रिप्रेस्ड इनर्जी अब इनके तन मन में ,..
मम्मी स्काइप से गायब हो गयी थीं और मैं भी ,... गुड्डी की पदचाप ने मुझे सोच से वापस ला दिया
…………………….
Ye kahani to meri jaan he. Love love love love love love love love................... it...........कोमल तुम्हारा नाम क्या है। "
मैं मारने के लिए कोई चीज ढूंढती उसके पहले उन्होंने दूसरा सवाल दाग दिया , जो थोड़ा मुश्किल था ,
" अच्छा चल तेरे नाम का पहला अक्षर क है न , तो ये बताओ अक्षर क्या है , और क्यों हैं ? "
मैंने थोड़ा सर खुजलाया , इनकी माँ बहन को गाली दी मन ही मन, लेकिन मैं भी बनारस की , मैंने सोच कर बोल दिया ," अक्षर, मतलब भाषा का बिल्डिंग ब्लाक, सबसे बेसिक यूनिट,... "
पर इन्हे संतुष्ट करना आसान नहीं था , उन्होंने ना ना में सर हिलाया और फिर पूछा ,
" नहीं नहीं , जैसे क , तो ये लिखा जाता है की बोला जाता है , ... "
पर जो बात बतायीं उन्होनी , सच बताऊँ , किसी से बताइयेगा नहीं , कोमल के दिमाग में भी कभी नहीं आयी थी , ...
जीभ, तालू , होंठ के संयोग से जो हवा मुंह से निकलती है , वो एक आवाज होती है , लेकिन हर आवाज अक्षर , या शब्द नहीं होती। उसी तरह हम लाइने , कुछ ज्यामितीय आकृतियां उकेरते हैं , लेकिन हर बार उस का भी अर्थ नहीं होता , लेकिन जब दोनों को मिलाकर, जैसे हमने एक लाइन , गोला , पूँछ ( ाजिसे स्कूल में मास्टर जी सिखाते हैं क लिखने के लिए ) और उसको एक ख़ास अंदाज में बोलते हैं , तो ये दोनों का कन्वर्जेंस अक्षर होता है , और उसी के साथ जुड़ा होता है एक सोशल सैंक्शन , सभी लोग एक इलाके के , जो साथ साथ रहते हैं यह मान लेते हैं की इस ज्यामितीय आकृति के लिए यह जो आवाज निकल रही है वह क होता है ,
मैं चुपचाप सुनती रही , ये बात कभी मैंने सोची भी नहीं थी , कितनी बार क ख ग लिखा पर , पर मेरी आदत चुप रहने की नहीं थी तो मैं बोल पड़ी ,
" और उसी को जोड़ कर शब्द बनते हैं ,... "
ज्यादातर इनकी हिम्मत नहीं होती थी मेरी बात काटने की , माँ बहन सब की ऐसी की तैसी कर देती मैं , और उपवास का डर अलग, लेकिन आज बात काटी तो नहीं लेकिन थोड़ी कैंची जरूर चलायी।
" हाँ और नहीं , कई ट्राइबल सोसायटी में रिटेन लैंग्वेज अभी भी नहीं है , पर शब्द हैं गीत हैं कहानियां है , तो एकदम नैरो सेन्स में हम उन्हें लिटरेट नहीं मानते , लेकिन उनका अपना लिटरेचर अलग तरीके का है , लेकिन लिखने का फायदा है की सम्प्रेषण आसान हो जाता है , समय और स्थान के बंधन से हट कर , जो अशोक ने शिलालेख पर लिखा, वो हजारों साल बाद भी पढ़ कर उस समय के बारे में , पता चल जाता है , ... फिर जो यहाँ लिखा है उसे हजारो किलोमीटर दूर भी भेजा जा सकता है , तो कोई भी जीव, समाज , सभ्यता, संस्कृति अपने को प्रिजर्व करना चाहती है , तो लिखित भाषा उसमें सहायक होती है , ... "
मेरा भी दिमाग अब काम करने लगा था , मैंने जोड़ा और साहित्य ,
" एकदम लेकिन उसके पहले व्याकरण , और फिर वही बात सामाजिक स्वीकृत की , मान्यता की और बदलाव की भी , संस्कृत ऐसी भाषा भी , व्याकरण के नियम , शब्दों के अर्थ सब बदलते हैं , लेकिन हर अक्षर जिसमें अर्थ छिपा रहता है एक डाटा है , अच्छा चलो ये बताओ ढेर सारा डाटा एक साथ कब पहली बार संग्रहित किया गया होगा ,
मैंने झट से जवाब दिया और जल्दी के चक्कर में गलत जवाब दिया , कंप्यूटर पर उन्होंने तुरतं बड़ी हिम्मत कर के मेरी बात काटी ,
नहीं किताब ,और समझाया भी , जब शिलालेख पर , गुफाओं में कुछ उकेरते थे तो समय और स्थान की सीमा रहती थी पर किताब के एक पन्ने पर कितनी लाइनें , कितने शब्द , फिर जो एक के बाद एक पन्ने को जोड़ कर रखने की तरकीब निकली तो कितनी बातें एक साथ एक जगह और भाषा के साहित्य में बदलने में किताबों का बड़ा रोल था , ,
मोहे रंग दे पेज १६६ पोस्ट १६५८
Is kahani ka intjar bahot wakt se he. Is bar kya naya padhne milega aap ki kalam se.लेकिन फिर एक बात मन में उठी, अपनी कोई बात मैंने नहीं कही थी, लेकिन मेरे बिना कहे उन्होंने सुन भी लिया, समझ भी लिया और और मुझे आशीष भी, और उनके भी होंठ नहीं हिल रहे थे, लेकिन मैं साफ़ साफ़ सुन रहा था, जैसे आवाजों को देख रहा होऊं,...
पश्यन्ती,
एक बार फिर मन में वही उथल पुथल,...
वाक् भले ही होंठो, जिह्वा तालू और कंठ के संयोजन से निकलता हो, समझी जाने वाली ध्वनियों, शब्दों का रूप लेता हो , अर्थ के साथ हम तक पहुंचता हो, लेकिन उपजता तो वह विचार के रूप में है , हमारे चैतन्य होने का प्रमाण भी है और सम्प्रेषण का साधन भी, ...
और वह जन्म लेता है मूलाधार चक्र से,
ध्वनि के चार रूप हैं , जो हम सुनते हैं , जिसके जरिये बातचीत करते हैं, वह है वैखरी, ध्वनि का भौतिक और सबसे स्थूल रूप,
लेकिन जो विचार या चेतना के रूप में, सबसे बीज रूप में जब यह जन्म लेती है तो उसका रूप परा है, पर वह अति सूक्ष्म होती है ,
उसके बाद है पश्यन्ती। यदि यह जागृत है, शब्द रूप लेने से पहले ही हम उसे देख सकते हैं , और यह नाभि के स्तर पर जब विचार पहुंचता है उस समय, यानी क्या कहना है उसका मन में तो जन्म होगया पर अभी वह शब्दों का रूप अभी नहीं ले पाया है.
और शब्दों की एक सीमा है, वह विचारों को अभिव्यक्त तो करते हैं पर उसे सीमित भी करते हैं और कई बार अर्थ और विचार में अंतर् भी हो जाता है।
पश्यन्ति और वाक् के बीच मध्यमा का स्थान है, हृदय स्थल पर।
पश्यन्ती की स्थिति में शब्द और उसके अर्थ में कोई अंतर् नहीं होता और विचार का आशय, तत्वर और सहज होता है। इसमें क्या कहने योग्य है, क्या नैतिकता के आवरण में छिपा लें , ऐसा कुछ भी नहीं होता वह शुद्ध रूप में मन की बात होती है, यह वाक् स्फोट का एक सीधा साक्षात्कार होता है, जो कोई कहना चाहता है वह सब सुनाई पड़ता है। और उस स्तर तक विचारों में बुद्धि का हस्तक्षेप, सही गलत का अवरोध नहीं होता है , कामना सीधे सीधे अभिव्यक्त होती है,
और मैं भी उनकी बात सुन पा रहा था , इसका सीधा अर्थ है , ... पश्यन्ति का गुण उनके अंदर तो था ही,वाक् की इस स्थिति को सुनने, समझने की शक्ति उनके आशीष से मेरे अंदर भी बिन कहे सुनने की, सीधे मन से मेरे मन तक पल बना के पहुंचने का रास्ता बन गया था।
दूर किसी घाट से गंगा आरती की हलकी हलकी आवाज गूँज रही थी, नाव नदी के बीचोबीच बस मध्धम गति से चल रही थी, रात हो चली थी इसलिए और कोई नाव भी आसपास नहीं दिख रही थी, हाँ किसी घाट पर जरूर कुछ कुछ लोग नज़र आ रहे थे, मंदिरों के शिखर, घंटो की आवाजें, चढ़ती हुयी रात के धुँधलके में दिख रहे थे. आज आसमान एकदम साफ़ था और चाँद भी पूरे जोबन पर,... कभी मैं आसमान में छिटके तारों को देखता कभी नदी में नहाती चांदनी को , मस्त फगुनहाटी बयार चल रही थी, हवा में फगुनाहट घुली थी, और मेरे मन तन पर भी,
बनारस के किस्से - एक आने वाली कहानी और मोहे रंग दें में उद्धृत
ये तो लगता है सिर्फ साड़ी हीं पहनकर अपने जलवे बिखेर रही है..
सुंदर.. अति सुंदर...Ek bar alpha bet par najar jarur dalna. Kheto or jungle ke jabardast seen dale he. Sath ye mammy ki tshavire
ये तो परस्पर की बात है...Sanatan staya.
क्योंकि अगर कोई महिला चरित्रहीन होती है तो साथ में कोई चरित्रवान पुरुष भी संसर्ग युक्त होता है , और दोनों के लिए न्याय की तराजू अलग अलग तरह से तो नहीं तौलेगी, अब इस कहानी में भी जो मुख्य पुरुष पात्र है उसका संबंध कई महिला पात्रों से अपनी पत्नी के सिवाय हो चूका है , तो फिर तो वो भी चरित्रहीन हुआ। और अब चरित्रहीनों का चरित्रचित्रण होना नहीं है , तो,...