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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

raniaayush

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आप के चरण कहाँ हैं...जितना आपको पड़ता हूँ उतना ही आपके अध्ययन की गहराई, गम्भीरता, शब्दों की समझ, उद्धरण देने की कला, हिंदी ,गवई, शब्दो के साथ उनके भाव पर भी जबरदस्त पकड़ है। आपके अध्ययन का जो आयाम है उसकी कल्पना कर के केवल आश्चर्य ही नहीं होता बल्कि आपके चरणस्पर्श की इच्छा हो जाती है।
🙏🙏🙏
 

Sutradhar

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another sequel too has background of Tantra, which was based in Banaras and let me share it again here.

आलमोस्ट खुला मैदान, कुछ पुराने पेड़ , और दो मकानों के बीच एक संकरी सी जगह थी , गली भी नहीं, बस हम दोनों का हाथ पकड़ के भाभी करीब करीब खींचते हुए उस दरार सी जगह से ले गयीं, करीब दो तीन सौ मीटर हम लोग ऐसे ही चले, फिर एक एकदम खुले मैदान में हम तीनों, कुछ भी नहीं था, बस कुछ टूटी दीवालें , ढेर सारे पेड़ थोड़े दूर दूर, और एक दो पेड़ों के नीचे कुछ साधू गांजे का दम लगाते, लेकिन एकदम अलग ढंग के, बहुत पुराने बाल जटा जूट से , भभूत लपेटे,... और जब वो चिलम खींचते तो आग की लपट ऊपर तक उठती,

भाभी ने हम दोनों को इशारे से बताया की हम उधर न देखें, और हम दोनों का हाथ पकडे पकडे, एक टूटी बहुत पुरानी दीवाल के सहारे, दीवाल में जगह जगह पेड़ उगे हुए थे, ईंटे गिर रहे थे, भाभी ने एक बार पीछे मुड़ कर देखा, तो सूरज बस अस्तांचल की ओर , एक पीले आग के गोले की तरह, आसमान एकदम साफ़,

हम दोनों भाभी का हाथ पकडे पकडे,... और जहाँ वो दीवाल ख़तम हो रही थी, कुछ बहुत पुराने खडंहर, बरगद के पाकुड़ के पेड़ , पेड़ों के खोटर , और जैसे ही हम खंडहर में घुसे,...

ढेर सारे चमगादड़, ... उड़ गए, गुड्डो डर के मुझसे चिपक गयी.

लेकिन भाभी मेरा हाथ पकड़ के करीब खींचते हुए, गुड्डो मुझसे चिपकी दुबकी, आलमोस्ट अँधेरा और चमगादड़ों के फड़फाड़ने की जोर जोर आवाज, और उसी खंडहर की एक टूटी दीवार, और वो भी एक पेड़ की ओट में, दीवार में जैसे कोई ईंटों के ढहने से दो ढाई फीट का एक छेद सा बन गया था, नीचे दो ढाई फीट ईंटे थे उसके बाद वो टूटा हिस्सा, और उसके पीछे भी कोई बड़ा पेड़,

भाभी ने मुझे इशारा किया और गुड्डो को हाथ में उठा के आलमोस्ट कूद के उस टूटी जगह से मैं और पीछे पीछे भाभी,... गुड्डो मेरी गोद में चढ़ी दुबकी, कस के चिपकी,...

एक बार फिर भाभी ने मेरा हाथ पकड़ा और उस पेड़ के पीछे,.... अब जैसे हम किसी पुराने खंडहर के आंगन में पहुँच गए थे, एकदम सन्नाटा, शाम अब गहरा रही थी , और भाभी ने चारो ओर देखा, एक ओर उन्हे पीली सी रौशनी आती दिखी,... रौशनी कहीं दूर से आ रही थी झिलमिल झिलमिल,..

और एक सरसराती हुयी ठंडी हवा पता नहीं किधर से आ रही थी, चारो ओर एक चुप्पी सी छायी थी, बस वही हवा की सरसराहट सुनाई दे रही थी,गुड्डो का डर अब ख़तम हो चुका था, वो मेरे सामने खड़ी मुझे देख रही थी, मुस्कराते और अचानक उसने मुझे अपनी बांहों में दुबका लिया और उसके होंठ मेरे होंठों पर चिपक गए, मुझे भी एक अलग ढंग का अहसास हो रहा था अच्छा अच्छा , कोमल सा मीठा।

तभी मैंने देखा, भाभी आंगन के दूसरे किनारे से जहाँ से वो झिलमिल झिलमिल रोशनी आ रही थी, वहीं खड़ी इशारे से हम दोनों को बुला रही थीं,...


वह पीली रोशनी एक ताखे में रखे बड़े से कडुवे तेल के दीये से आ रही थी और लग रहा था जैसे जमाने से इसी ताखे में वो दीया जल रहा हो. उसकी कालिख से पूरा ताखा काला हो गया था। और उस ताखे के बगल में एक खूब बड़ा सा पुराना दरवाजा बंद था, उसमें लेकिन कोई सांकल नहीं थी, एक चौड़ी सी चौखट और खूब ऊँची, फीट . डेढ़ फीट ऊँची, दरवाजे के चारो ओर लगता है लकड़ी के चौखटों पर किसी जमाने में चांदी का काम रहा होगा लेकिन अब सब धुंधला गया था। दरवाजे के ऊपर कुछ मिथुन आकृतियां बनी थीं, और दरवाजे के दोनों ओर लगता है चांदी के रहे होंगे या चांदी मढ़े नाग नागिन का जोड़ा, ...

भाभी ने फुसफुसाते हुए कहा,

इस दरवाजे को पार करने के बाद हम वापस नहीं आ सकते,... इसलिए सोच लो,...

मैं और गुड्डो कस के हाथ पकडे एक दूसरे का बस चुप रहे, तो भाभी ने आगे की बातें बोली,

बस तीन बात याद रखो, अपना मन दिमाग, सही गलत सब खाली कर दो इस दरवाजे को पार करने के पहले, उसके बाद जो पुजारी कहेंगे, मैं बिना बोले हाथ के इशारे से या खुद करुँगी, बस मुझे करने देना,...

मैंने गुड्डो का हाथ कस के दबाया और उसने मेरा, और हम दोनों का मौन ही स्वीकृति था।

दूसरी बात, हम तीनों को ये जो कपड़ा मैं दे रही हूँ , वही पहनना है , उसके अलावा कुछ भी नहीं, कोई एक धागा तक इसके अलावा नहीं होगा। और वो जो पूजा की सामग्री ली हुए थीं उसी में एक झोला उन्होंने खोला, मुश्किल से दो तीन हाथ का मलमल का सफ़ेद कपडा, बिना सिला और ऐसे तीन कपडे ,...

मैंने अपने कपडे उतारने की कोशिश की तो उन्होंने रोक दिया और बोलीं अब तुम कुछ नहीं करोगे , जो करुँगी मैं करुँगी या जब तक मैं या पुजारी कुछ करने को न कहे,

उन्होंने पहले मेरे फिर गुड्डो के कपडे उतारे और वही कपडा आधी धोती की तरह मुझे और साडी की तरह गुड्डो को पहना दिया, हाँ गाँठ न उन्होंने मेरी धोती में बाँधी न गुड्डो की साड़ी में बस लपेट दी। और फिर खुद भी उसी तरह वो सफ़ेद कपड़ा लपेट लिया,

और अब तीसरी बात,... लेकिन ये बात कहने के पहले , उन्होंने उस दीये से निकली कालिख को काजल की तरह मेरी आँखों में अच्छी तरह लगाया, और मुझे बोला की मैं आँखे बंद कर लूँ और जब तक वो न कहें , आँखें न खोलूं। काजल आँखों के बाद, मेरी दोनों भुजाओं पर, वक्षस्थल पर निप्स के नीचे, नाभि पर और दोनों जाँघों पर लगाया।

मेरी आँखे अच्छी तरह छरछरा रही थीं, लेकिन कुछ देर बाद मुझे सब कुछ दिख रहा था, बिना आँखे खोले ,

गुड्डो के आँख में भाभी काजल लगा रही थीं , फिर उसके दोनों सीनो पर, फिर नाभि पर,...

और जहां पहले आँगन में बस इसी दिए की रौशनी दिख रही थी अब न जाने कहाँ कहाँ से रौशनी छन छन कर आ रही थी। जैसे हम सब रौशनी से नहाये हुए थे, एक अजीब से आनंद की अनुभूति हो रही थी।

और तीसरी बात अब दरवाजे के पार की बातें हफ्ते भर तक किसी से कहना तो छोड़ सोचना भी मत क्या हुआ क्यों हुआ,...

और तुम और गुड्डो अब जोड़े से साथ साथ वो भांग की बर्फी नाग नागिन को खिलाओं,



जैसे ही हमने खिलाई, जैसे हम दोनों के हाथ से वो बर्फी गायब हो गयी, तेजी से एक सरसराने की आवाज आयी और तेज हवा,...

दरवाजा खुल गया था, और जो झिरझिर हवा अब तक हलकी हलकी हम महसूस कर रहे थे वही अब पूरे तेजी के साथ,



गुड्डो को ,... और भाभी की बात को जैसे मैं बिना कहे समझ गया था, उन नाग नागिन को मैंने हाथ जोड़ा, आदर से झुका , और गुड्डो को उठाकर उस ऊँची चौखट के पार हो गया, भाभी मेरे बाएं मेरे साथ,... और फिर दरवाजे के पार एक बहुत पुराने पेड़ों का झुण्ड,



मंदिर के कपाट खुले थे, बल्कि लग रहा था कपाट शायद थे ही नहीं, और पुष्पों की सुरभि वाला एक धूम्र सेतु बस वही दिख रहा था, और उसे बेधती, सूर्य की किरणे, जो सीधे मंदिर के गर्भ गृह तक जैसे स्वर्णजटित कोई रूपसी पूजा में लीन हो और बिन मुड़े, बिन देव की ओर पीठ दिखाए , छोटे छोटे डग भरते वापस लौट रही हो,

और जब मैं एकदम पास पहुंचा, तो जैसे स्वर्णकिरणऔर धूम्र मिश्रित रूप के ही बने पुजारी, मैं जैसे ही प्रणाम की मुद्रा में झुका और उनकी अभय मुद्रा, आशीष के हाथ को मैंने अपने सर, और माथे पर महसूस किया,... और बिना उनके बोले,... और मैंने मन में सोचा ही था क्या मांगूंगा,... रजत जड़ित वह द्वार शायद गजराजों के जोर से भी नहीं हिलता, लेकिन अपने आप, एक अलग ढंग की रौशनी

और दरवाजे के ठीक ऊपर एक तोते की आकृति,... जैसे पन्ने का हो, पल भर के लिए चमका, नीचे कुछ मंत्र सा लिखा,... और उसी समय भाभी ने गुड्डो की ओर दिखा के कुछ इशारा किया,

ऊँची सी चौखट, गुड्डो को गोद में उठाकर मैं द्वार के पार, बांये भाभी,

बिन बोले जैसे मन मना कर रहा हो पीछे मुड़ के देखने को,

जीवन और समय आगे ही चलते हैं,

और अब आगे ढेर सारे पेड़, अशोक के छोटे छोटे लाल फूलों से लदे, आम्र मंजरी से भरे पड़े ढेर सारे आम के पेड़, उन सब पर सैकड़ों तोते,... चमेली की बेल और लताओं पेड़ों का एक गझिन गुम्फन लेकिन उनको पार करती सूरज की विदा लेती सुनहली किरणे, और उन पेड़ों के बीच एक बहुत ही पुराना मंदिर,
एक बहुत ही अलग ढंग की हवा, सुरभित मंद मलय समीर,आम की बौर की महक के साथ चम्पा और चमेली की महक,

भाभी ने इशारा किया और पूजा की सामग्री जो भाभी के हाथ में थी उसके अलावा हमारे पहने कपडे, झोले सा गुड्डो का पर्स , बाकी सब सामान एक पेड़ के नीचे रख दिया, और भाभी के साथ हम दोनों, पेड़ों का झुरमुट और उसके ठीक बीचोबीच एक पुराना सा मंदिर और उसके शिखर पर डूबते सूर्य की किरणें पड़ रही थी और सूरज की उन किरणों से वो सोने सा चमक रहा था।

भाभी ने मुझे इशारा किया, ( वह पहले ही बोल चुकी थीं मुझे और गुड्डो को, हम दोनों को बोलना

लेकिन मेरे होंठ हिले ही नहीं की उनका आशीर्वचन में उस इच्छा की पूर्ती,... अगले चार वर्ष महादेव के शरण में और दो वर्ष माँ काली की पूजा का अवसर,.... उन्होंने भी बोला भी नहीं, ... उनके होंठ भी नहीं हिले पर मुझे जैसे सीधे मन और मष्तिष्क में एक साथ,...

यही तो मैं चाहता था,

और फिर एक आवाज सी आयी, पता नहीं कहाँ से पुजारी जी के होंठ अभी भी नहीं हिले थे, बस जैसे मेरे कानों में घुल रही हो हो,...

" यह तुम्हारी इच्छा नहीं है यह तो तुम्हारा भवितव्य है, ... " एक मुस्कराती सी आवाज,...

और फिर वही आवाज, भाभी से,... एकदम ठीक समय पर आयी हो और यही , इन्ही के लिए, ... "

भाभी की बस पलकें झुक गयी, और वो हाथ मैंने फिर से सर पर महसूस किया जैसे कह रहे हों , वो पढ़ाई लिखाई नौकरी , ये तो होता ही है ,चाहते क्या हो,...

मैंने बस गुड्डो की ओर, और खुद बढ़ कर उसने मेरे हाथ को हाथ लिया,

एक मृदुल स्मिति,... और फिर वही आवाज,

' ये तो तेरा कर्म है और कर्मों का फल भी,... "

जैसे बच्चा माँ की गोद में सर घुसेड़े, तोड़े मरोड़े, बस उसे अच्छा लग रहा और कुछ भी समझ में न आ रहा हो,...

काम,... शक्ति,.. आनंद,... पुरुष,... बस कुछ कुछ,... और ये भी

स्मरण और विस्मरण दोनों ही जरूरी हैं और दोनों एक दूसरे के पूरक,... यहाँ से जाते ही सब कुछ विस्मृत के गर्त में और कुछ यादों का धंधलका जिसमें याद भी न रहे की क्या याद है या क्या कल्पना,...

जैसे एकदम संवेदन शून्य होकर या संवेदना की आखिरी चढ़ाई पार कर के
प्रिय कोमल जी

आपसे करबद्ध निवेदन है कि इस तंत्र वाले भाग को पूर्ण करे, यदि संभव हो तो। यही नहीं कहानी यहीं - कहीं रुकी हुई भी है।

आप मानेंगीं या नहीं, नही जानता लेकिन मुझ जैसे पाठकों की जिद है, तो है।

वस्तुतः आपके विशद ज्ञान के तंत्र ज्ञान वाले आयाम से परिचय सभी पाठक चाहते हैं ऐसा मेरा मानना है बाकी निर्णय आप ही लेंगी। फिर कहानी भी आगे बढ़ानी है वो CCTV कैमरे भी आदि आदि।

आपकी कहानियों में अपार संभावनाएं हैं बस आपको राजी करना ही मुश्किल है।

आप कैसे राजी होंगी इसका भी कोई तंत्र - टोटका अवश्य बताइएगा।

सादर
 

Luckyloda

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जोरू का गुलाम भाग १९५

टिप टिप बरसा पानी
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16,77, 228

हम लोग पुरानी सहेलियों की तरह बात करते रहे , ज्यादातर मैं सुनती रही।

लेकिन जैसे ही वेटर डेसर्ट का कार्ड ले आया , बाहर बारिश शुरू होगयी , भादों तो चल ही रहा था।

गुड्डी ही बोली , नहीं बिल ले आइये।


थोड़ी देर तक हम लोग रेस्टोरेंट के बाहर ही खड़े रहे , बारिश बहुत तेज नहीं थी लेकिन बूंदों की फुहार ,सीधे हमारे चेहरे पर पड़ रही थी ,...

" भाभी चलें , ... " एक बच्चे की तरह गुड्डी ने मेरा हाथ खींचते हुए जिद किया।
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" पगली , ... भीग जाएंगे , ... कार इतनी दूर पार्क है ,... " मैंने मुस्कराते हुए मना कर दिया।

सड़क खाली थी , लोग दुकानों के शेड में खड़े थे , कुछ एक बार फिर से रेस्टोरेंट में घुस गए थे , बस दो चार लोग छाता का सहारा लेकर ,...



टिप टिप बूंदे सड़क पर दुकानों की छतों पर पड़ रही थी,

" भाभी चल न , भीग जाएंगे तो भीग जायेंगे ,... " उसने फिर जोर से मेरा हाथ पकड़ के खींचा ,...



मुझे भी लगा की भादों की बारिश काले दूर दूर तक घिरे मेघ ,... हो सकता है की सारी रात तक चले , फिर अभी तो हलकी है कहीं तेज ,... और इनके भी घर आने का थोड़ी देर में टाइम हो जाएगा,

मैंने अपना डर अब खुल कर अपनी ननद को कह दिया , फुसफुसाते हुए ,


" यार अपन ने जो ड्रेस से पहन रखी है , एकदम चिपकउवा ,... वो बारिश में झलकौवा हो जाएगी , सब कुछ दिखता है टाइप ,.. "
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वो टीनेजर बड़ी जोर से खिलखिलाई , उसके दूध के दांत चमक गए ,

" अच्छा तो है भाभी , चलिए न। आप ही तो कहती हैं जो दिखता है वो बिकता है। और सब ये लड़के आपके देवर ही तो लगेंगे, देख लेंगे तो देख लेंगे ,... "

और अबकी गुड्डी ने जो पूरी ताकत से जो खींचा मैं उसके साथ सड़क पर , ...


और एक बार भीग गयी तो भीग गयी।

मैं भी जैसे गुड्डी के साथ टीन हो गयी थी , तन से भी मन से भी।

बारिश का पहला झोंका , पहली फुहार जो मेरे चेहरे पर पड़ी , मन पहले भीगा , तन बाद में। पहले मैं सर पर हाथ रख कर बालों को बचाने की कोशिस की पर जब मेरी निगाह उस टीनेजर पर पड़ी ,
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एकदम बिंदास , बारिश की बूंदो का मजा लेती , ऊँगली के इशारे से मुझे अपने पास बुलाती ,...
सड़क के दोनों ओर रेस्टोरेंट्स और बार के बाहर लोग खड़े , बारिश बंद होने का इन्तजार करते ,... उस बिंदास किशोरी को भीगते देख रहे थे।

और मैं कभी लोगों को उसे देखते , तो कभी उस भीगी भागी लड़की को , क्या चलती का नाम गाड़ी में भीगी हुयी मधुबाला लगी रही होंगी ,
बहुत शानदार तरीके से बारिश में आग लगाई जा रही है
 

Luckyloda

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आज रपट जाएँ तो हमे ना उठइयो


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और अबकी गुड्डी ने जो पूरी ताकत से जो खींचा मैं उसके साथ सड़क पर , ...

और एक बार भीग गयी तो भीग गयी।

मैं भी जैसे गुड्डी के साथ टीन हो गयी थी , तन से भी मन से भी।

बारिश का पहला झोंका , पहली फुहार जो मेरे चेहरे पर पड़ी , मन पहले भीगा , तन बाद में। पहले मैं सर पर हाथ रख कर बालों को बचाने की कोशिस की पर जब मेरी निगाह उस टीनेजर पर पड़ी ,

एकदम बिंदास , बारिश की बूंदो का मजा लेती , ऊँगली के इशारे से मुझे अपने पास बुलाती ,...

सड़क के दोनों ओर रेस्टोरेंट्स और बार के बाहर लोग खड़े , बारिश बंद होने का इन्तजार करते ,... उस बिंदास किशोरी को भीगते देख रहे थे।
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और मैं कभी लोगों को उसे देखते , तो कभी उस भीगी भागी लड़की को , क्या चलती का नाम गाड़ी में भीगी हुयी मधुबाला लगी रही होंगी ,

और उस चक्कर में , ... साढ़े तीन इंच की स्टिलेटो ,... जोर से फिसली मैं , ... हाथ पैर नहीं टूटते तो मोच तो जबरदस्त आ ही जाती ,

पर थी न मेरी ननद , मेरी सहेली मेरी छोटी बहन ,... गुड्डी ने हाथ पकड़ कर न मुझे बचा लिया बल्कि एकदम आपने पास ,
और वो दुष्ट जोर जोर से खिलखला रही थी , मुझे जोर जोर से चिढ़ा रही थी ,


अरे अरररे अरे , ना ना ना ,
आज रपट जाएँ तो हमे ना उठइयो , हमें ना बचइयो ,
हमें जो उठइयो तो,हमें जो उठइयो तो

खुद भी रपट जाइयो ,

खुद भी फिसल जाइयो ,


मेरे समझ में नहीं आ रहा था की साढ़े तीन इंच की स्टिलेटो हील तो उस नालायक ने भी पहन रखी थी तो वो कैसे इतनी मस्ती से , ...

और खिलखलाती हुयी उस छोरी ने अपने हाथ उठा के जवाब दे दिया , उस की सैंडल उस के हाथ में थी , और मेरे पैरों की ओर वो इशारा कर रही थी।

और मेरी हाई हिल्स मेरे हाथ में , वो भागी और पीछे पीछे मैं ,... सड़क पर कोई ट्रैफिक तो वैसे भी नहीं होती और इस समय पैदल वाले भी सड़क के दोनों ओर सिमटे

हम और,... लैम्प की रौशनी से छेड़खानी करती , पानी पर फिसलती मछलियों की तरह , बारिश की बूंदे
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और उन के नाच पर ताल देतीं पेड़ों पर , दुकानों पर छतों पर पड़ रही बूंदों की आवाजें ,
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हम दोनों भी उन बूंदों की ही तरह हो गए।

लेकिन वो शोख लड़की बहुत ही शरीर थी , बदमाश नम्बरी ,
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सड़क हो बारिश हो और पाट होल न हों ,



बस छोटे से गड्ढे में जगह जगह पानी भरा था , जैसे ही मैं पास पहुंची , उसने अपने पैरो से , शरारत से मुझे देखते हुए पानी उछाल दिया ,
यही तो होती है जवानी के अंगड़ाई बस जब लड़की एक बार अच्छे से चूदाई करवा ले तो फिर उसकी सारी तमन्ना है एक-एक करके बाहर आने लगती है और वह बिंदास हो जाती है
 

Luckyloda

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छई छप छई , छपाक के छई ,
पानियों पे छींटे उड़ाती हुयी लड़की , देखी है हमने आती हुई लहरों पे जाती हुयी लड़की


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लेकिन वो शोख लड़की बहुत ही शरीर थी , बदमाश नम्बरी ,

सड़क हो बारिश हो और पाट होल न हों ,

बस छोटे से गड्ढे में जगह जगह पानी भरा था , जैसे ही मैं पास पहुंची , उसने अपने पैरो से , शरारत से मुझे देखते हुए पानी उछाल दिया ,


और जब तक मैं बोलती एक बार फिर से , अबकी वो आगे भागी भी नहीं , बल्कि उसकी आँखे मुझे चिढ़ा रही थी बुला रही थी पैर पानी में छपाक छपाक कर रहे थे और होंठ गुनगुना रहे थे


छई छप छई , छपाक के छई ,
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और मैंने भी जवाब दिया , ...

पानियों पे छींटे उड़ाती हुयी लड़की , देखी है हमने आती हुई लहरों पे जाती हुयी लड़की


और अबकी ननद रानी भीग गयीं अच्छी तरह , मैंने जोर से पैरों से पानी उसकी ओर उछाल दिया,... वो क्यों पीछे रहती उसने मुझसे भी जोर से , और गाने की अगली लाइन भी

छई छप छई , छपाक के छई ,

कभी कभी बातें तेरी अच्छी लगती हैं , फिर से कहना , आती हुयी लहरों पे जाती हुयी लड़की।




मैंने उसकी ओर हाई फाइव के लिए हाथ बढ़ाया , उसने सिर्फ पांचो उँगलियाँ एक के बाद एक टच कराई , फिर सीधे पकड़ कर हैंडशेक ,
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और तब तक मैंने नोटिस किया , बगल सड़क पे खड़े ढेर सारे लड़के लड़कियां न सिर्फ हमें देख रहे थे बल्कि गाने पर ताल भी दे रहे थे

और तब तक एक लड़की ने अपने साथ के लड़के को पकड़ कर जबरन खींचा और अब दोनों भी , पहले लड़की ने लड़के को भिगोया , और लड़का थोड़ा झिझक रहा था तो लड़की ने दुबारा अपने पैरों से पानी उसकी ओर उछाल दिया , बस लड़के का ,
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और एक दो और ,... मैने मुड़ कर देखा तो गुड्डी नहीं थी

वो काफी आगे निकल गयी , और मेरी ओर मुड़ कर मुस्कराते हुए ऊँगली मोड़ कर उसने मुझे पास आने का इशारा किए और मैं तेजी से उसकी ओर ,

जबतक मैं उसके पास पहुंची , बारिश काफी तेज हो गयी थी , हम लोग एक नीम के पेड़ के नीचे

वो कोई क्लब सा था या रेस्टोरेंट जहाँ लाइव वेस्टर्न म्यूजिक चल रहा था , और ढेर सारे लड़के लड़कियां डांस कर रहे थे। शीशे के पार वो भी हमें देख सकते थे और हम भी उनको ,



एक ने दरवाजा खोल के हमें भी अंदर आने का इशारा किया , पर गुड्डी ने जोर से सर हिलाकर ना ना किया
बहुत शानदार तरीके से बारिश का वर्णन किया गया है ।
Love you भाभी
 

Luckyloda

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ओ सजना बरखा बहार आयी ,
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गुड्डी ने उसे छेड़ा और जब तक कुछ समझता वो , जो कैंडी वो चूस रहा था , थोड़ा मुंह में ले के , ... खूब कस के चूस लिया और हलका सा बाइट कर लिया। चलने के पहले गुड्डी ने उससे हाथ भी मिलाया , और अब कतई उदास नहीं लग रहा था।


हम दोनों कार में बैठ गए , और मैंने म्यूजिक स्टार्ट कर दिया ,.... बहुत धीमे धीमे , ऍफ़ एम् चैनल

' ओ सजना बरखा बहार आयी ,


रस की फुहार लायी , अँखियों में प्यार लायी ,...
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मेरा फेवरिट गाना , और मैं भी साथ साथ गुनगुना रही थी , तभी मैंने देखा गुड्डी मेरे कंधे पर सर रखे , मुंह में आइस कैंडी और साथ में वो भी

तुम को पुकारे मेरे मन का पपीहरा ,
मीठी मीठी अगनी में जले मोरा जियरा ,


गुड्डी भी गुनगुना रही थी ,

सही है , अभी तो मेरे उसके सजना कॉमन थे , और उन कॉमन सजना का फोन आया ,
"बस जानू अभी निकल रहा हूँ ,... "

मेरी निगाह घडी पर पड़ी , पौने ग्यारह , ... इसका मतलब की सवा ग्यारह ,... पर निकलेंगे वो , और साढ़े ग्यारह तक घर पहुंचेगे , हम लोगों के घर पहुँचने के आधे घण्टे बाद,

मेरी निगाह गुड्डी के मुंह में घुसी आइस कैंडी पर पड़ी , मस्ती से चूस रही थी वो।
" हे वो आइस कैंडी वाला , उस का ,... "
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" अरे भौजी छोटा था अभी , ... किसी को तो बख्श दीजिये , "खिलखिलाते हुए वो बोली

" छोटा था तो उस का ,... क्या बोलोगी ,... " मैंने गुड्डी को छेड़ा।

बूंदो का खेल फिर शुरू हो गया था , मैंने वाइपर फिर से स्टार्ट कर दिया। टाउनशिप शुरू हो गयी थी , दोनों ओर खूब घने पेड़ ,...

" बोल ,...बोल ,... "

मैंने अपनी ननद की भीगी गीली देह से चिपकी ड्रेस के ऊपर से ,... गुदगुदी उसे बहुत लगती थी , ... फिर सीधे ड्रेस से बाहर झांकते , चिपके खड़े टिट्स को पकड़ कर घुमाते मैंने जोर से दबाया।
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वो किशोरी हंस रही थी , खिलखिला रही थी , हंसी मुश्किल से रुकी तो खिलखिलाती बोली ,

" नूनी,... अब तो छोड़ दे मेरी भौजी ,... "

बिना छोड़े मैंने जोर से उसके निप्स पिंच किया और हँसते हुए चिढ़ाया ,

" अच्छा सुन , जब तूने अपने भइया का पहले पहल देखा था ,... तो कित्ता ,... नूनी था या,... "
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" लंड ,... मेरे भइया का तो जब वो पैदा हुए तभी से लंड था ,.... " हँसते हुए वो शोख बोली।
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एकदम मेरे रस में पग गयी थी।

अब वो कार के रेडियों पर कोई चैनल ढूंढ रही थी , की एक चैनल पर कजरी आ रही थी




घरवा में से निकरी ननद भौजइया, जुलुम दोनों जोड़ी रे सांवरिया

भौजी के सोहे लाल लाल चुनरी

ननद जी के पियरी रे साूँवररया।

घरवा में से निकरी ननद भौजइया, जुलुम दोनों जोड़ी रे सांवरिया।

भौजी के सोहे सोने क कंगना ,

ननद जी के चूड़ी रे सांवरिया

घरवा में से निकरी ननद भौजइया, जुलुम दोनों जोड़ी रे सांवरिया

भौजी के सोहे लाल लाल सिंदुरा ,

ननद जी के रोरी रे सांवरिया।


बाहर बदरिया झूम रही थी, अंदर हम ननद भौजाई झूम रहे थे।

घर आ गया था , रेडियो बंद हो चुका था , मैंने गाने को भौजी के अंदाज में जोड़ के गाया।



घरवा में से निकरी ननद भौजइया, जुलुम दोनों जोड़ी रे सांवरिया

भौजी के तो हैं एक सजना ,


ननदी के दस दस यार , रे सांवरिया।
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बारिश एक बार फिर बहुत तेज हो गयी थी , हमारे घर के अहाते में भी बहुत ढेर सारे बड़े बड़े , पुराने पेड़ थे , सब झूम रहे थे।

…………..

कार में ब्लोअर ने जो थोड़ा बहुत सुखाया था , सब बराबर हो गया . बारिश की बूंदे टप टप पेड़ों से चू रही थीं , पट पट घर की छत पर पड़ी रही थी , कमरे की खिड़कियों को खटखटा रही थीं ,

जोर से बिजली चमकी , बादल गरजे ,

कहीं लगता है बिजली गिरी , और मैं अपनी ननद को खींच के घर के अंदर ले गयी , और अंदर से दरवाजा बंद कर दिया , जैसे डर रही होऊं कहीं हमारे पीछे पीछे बारिश भी ,...

तेज बारिश की आवाज अभी भी आ रही थी ,

" हे रानी कपडे उतार , वरना कहीं बीमार पड़ गयी न तो तेरे दर्जन भर नए नए बने यारों को मैं क्या जवाब दूंगी। "

और मैंने उस टीनेजर की ट्यूबटॉप ड्रेस वहीँ खींच कर फर्श पर ,
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अब उतरी जायेगी बारिश की लगी हुई ठंड जब खेल खेल में दिया जाएगा भाई का लंड



लाज़वाब अपडेट
 

Luckyloda

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बरसात की रात

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कहीं लगता है बिजली गिरी , और मैं अपनी ननद को खींच के घर के अंदर ले गयी , और अंदर से दरवाजा बंद कर दिया , जैसे डर रही होऊं कहीं हमारे पीछे पीछे बारिश भी ,...

तेज बारिश की आवाज अभी भी आ रही थी ,

" हे रानी कपडे उतार , वरना कहीं बीमार पड़ गयी न तो तेरे दर्जन भर नए नए बने यारों को मैं क्या जवाब दूंगी। "

और मैंने उस टीनेजर की ट्यूबटॉप ड्रेस वहीँ खींच कर फर्श पर ,

" अरे भाभी , आप के भी तो कपडे उतार दूँ , वरना कहीं मेरी मीठी मीठी भौजी बीमार हो गयीं तो , ... " अब मेरी ननद पीछे रहने वाली नहीं थी , ... मेरी ड्रेस भी गुड्डी की ड्रेस के ऊपर ,

मैं गुड्डी के पीछे , उसकी ब्रा का स्ट्रैप खोल रही थी

तभी जोर से आवाज हुयी ,

धड़ाम ,... लगता है कोई बड़ा पेड़ गिरा।

बिजली कड़कने की तेज आवाज हुयी ,... और बिजली चली गयी।
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हवा हूँ हूँ हूँ हूँ कर चल रही थी , खूब डरावनी आवाज


गुड्डी की आँखों पर पीछे से उस काले अँधेरे में , किसी ने काला कपड़ा बाँध दिया , खूब कस कस , और उस की कोमल कलाइयों को पीछे से पकड़ कर , मरोड़ कर , ...

कस के ,...
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हिलना मत। सिर्फ उसके होंठो पर,... वो भी ऊँगली नहीं बल्कि मोबाइल रख के जबरदस्ती

हलके से पुश करके , घर से बाहर ,

कभी कभी लगता , ट्रैफिक की आवाज , कार के हार्न ,

कभी बारिश की आवाज ,

कभी पैरों के नीचे कच्ची मिटटी , घास ,

तो कभी पक्का फर्श ,....
दस मिनट चलने के बाद ,...


कोई आवाज नहीं , ...सिर्फ पीठ पर पुश कर के , वो भी मोबाइल से , ... ऊँगली से भी नहीं ,...


दस मिनट बाद एक हल्का सा धक्का , ... उसके होंठों पर ऊँगली रख कर इशारा ,... चुप रहना वरना ,...

दोनों हाथ खुल गए थे , पर एक बार फिर वो पलंग के ऊपर लगे , ... जैसे किसी हथकड़ी में फंस गए , जरा भी हिलाना मुश्किल था ,

ज़रा भी हिलना , मुश्किल था।

आँख पर पट्टी , हाथ बंधा हुआ , कमरे में पूरा अँधेरा ,... फिर बहुत हलकी सी रोशनी,.... हलकी सी
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Yah last mein kaun a Gaya Guddi ke sath is tarike se romanchkari khel khelne lekin Jo bhi aaya hai har kar hi jaega kyunki ab Guddi Shatir Khiladi ho chuke hain
 

Luckyloda

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इसीलिए तो मिसेज मोइत्रा ने इतने कस के डिब्बे में बंद कर के, टाइट पैक रखे थे

लेकिन कहते हैं दाने दाने पर लिखा है खानेवाले का नाम, तो फिर रसगुल्ले होंगे तो खाये भी जाएंगे और उनपर नाम भी लिखा होगा जो उन्हें पहले निचोड़ेगा।
Vaise to kahane ki koi baat nahin yah to aapse humko ummid hai hi कि जब भी इन रसगुल्ला का रस निचोड़ आ जाए तो इस तरीके से निचोड़ा जाए की सब उंगलियां चाटते रह जाएं
 

anvesharonny

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another sequel too has background of Tantra, which was based in Banaras and let me share it again here.

आलमोस्ट खुला मैदान, कुछ पुराने पेड़ , और दो मकानों के बीच एक संकरी सी जगह थी , गली भी नहीं, बस हम दोनों का हाथ पकड़ के भाभी करीब करीब खींचते हुए उस दरार सी जगह से ले गयीं, करीब दो तीन सौ मीटर हम लोग ऐसे ही चले, फिर एक एकदम खुले मैदान में हम तीनों, कुछ भी नहीं था, बस कुछ टूटी दीवालें , ढेर सारे पेड़ थोड़े दूर दूर, और एक दो पेड़ों के नीचे कुछ साधू गांजे का दम लगाते, लेकिन एकदम अलग ढंग के, बहुत पुराने बाल जटा जूट से , भभूत लपेटे,... और जब वो चिलम खींचते तो आग की लपट ऊपर तक उठती,

भाभी ने हम दोनों को इशारे से बताया की हम उधर न देखें, और हम दोनों का हाथ पकडे पकडे, एक टूटी बहुत पुरानी दीवाल के सहारे, दीवाल में जगह जगह पेड़ उगे हुए थे, ईंटे गिर रहे थे, भाभी ने एक बार पीछे मुड़ कर देखा, तो सूरज बस अस्तांचल की ओर , एक पीले आग के गोले की तरह, आसमान एकदम साफ़,

हम दोनों भाभी का हाथ पकडे पकडे,... और जहाँ वो दीवाल ख़तम हो रही थी, कुछ बहुत पुराने खडंहर, बरगद के पाकुड़ के पेड़ , पेड़ों के खोटर , और जैसे ही हम खंडहर में घुसे,...

ढेर सारे चमगादड़, ... उड़ गए, गुड्डो डर के मुझसे चिपक गयी.

लेकिन भाभी मेरा हाथ पकड़ के करीब खींचते हुए, गुड्डो मुझसे चिपकी दुबकी, आलमोस्ट अँधेरा और चमगादड़ों के फड़फाड़ने की जोर जोर आवाज, और उसी खंडहर की एक टूटी दीवार, और वो भी एक पेड़ की ओट में, दीवार में जैसे कोई ईंटों के ढहने से दो ढाई फीट का एक छेद सा बन गया था, नीचे दो ढाई फीट ईंटे थे उसके बाद वो टूटा हिस्सा, और उसके पीछे भी कोई बड़ा पेड़,

भाभी ने मुझे इशारा किया और गुड्डो को हाथ में उठा के आलमोस्ट कूद के उस टूटी जगह से मैं और पीछे पीछे भाभी,... गुड्डो मेरी गोद में चढ़ी दुबकी, कस के चिपकी,...

एक बार फिर भाभी ने मेरा हाथ पकड़ा और उस पेड़ के पीछे,.... अब जैसे हम किसी पुराने खंडहर के आंगन में पहुँच गए थे, एकदम सन्नाटा, शाम अब गहरा रही थी , और भाभी ने चारो ओर देखा, एक ओर उन्हे पीली सी रौशनी आती दिखी,... रौशनी कहीं दूर से आ रही थी झिलमिल झिलमिल,..

और एक सरसराती हुयी ठंडी हवा पता नहीं किधर से आ रही थी, चारो ओर एक चुप्पी सी छायी थी, बस वही हवा की सरसराहट सुनाई दे रही थी,गुड्डो का डर अब ख़तम हो चुका था, वो मेरे सामने खड़ी मुझे देख रही थी, मुस्कराते और अचानक उसने मुझे अपनी बांहों में दुबका लिया और उसके होंठ मेरे होंठों पर चिपक गए, मुझे भी एक अलग ढंग का अहसास हो रहा था अच्छा अच्छा , कोमल सा मीठा।

तभी मैंने देखा, भाभी आंगन के दूसरे किनारे से जहाँ से वो झिलमिल झिलमिल रोशनी आ रही थी, वहीं खड़ी इशारे से हम दोनों को बुला रही थीं,...


वह पीली रोशनी एक ताखे में रखे बड़े से कडुवे तेल के दीये से आ रही थी और लग रहा था जैसे जमाने से इसी ताखे में वो दीया जल रहा हो. उसकी कालिख से पूरा ताखा काला हो गया था। और उस ताखे के बगल में एक खूब बड़ा सा पुराना दरवाजा बंद था, उसमें लेकिन कोई सांकल नहीं थी, एक चौड़ी सी चौखट और खूब ऊँची, फीट . डेढ़ फीट ऊँची, दरवाजे के चारो ओर लगता है लकड़ी के चौखटों पर किसी जमाने में चांदी का काम रहा होगा लेकिन अब सब धुंधला गया था। दरवाजे के ऊपर कुछ मिथुन आकृतियां बनी थीं, और दरवाजे के दोनों ओर लगता है चांदी के रहे होंगे या चांदी मढ़े नाग नागिन का जोड़ा, ...

भाभी ने फुसफुसाते हुए कहा,

इस दरवाजे को पार करने के बाद हम वापस नहीं आ सकते,... इसलिए सोच लो,...

मैं और गुड्डो कस के हाथ पकडे एक दूसरे का बस चुप रहे, तो भाभी ने आगे की बातें बोली,

बस तीन बात याद रखो, अपना मन दिमाग, सही गलत सब खाली कर दो इस दरवाजे को पार करने के पहले, उसके बाद जो पुजारी कहेंगे, मैं बिना बोले हाथ के इशारे से या खुद करुँगी, बस मुझे करने देना,...

मैंने गुड्डो का हाथ कस के दबाया और उसने मेरा, और हम दोनों का मौन ही स्वीकृति था।

दूसरी बात, हम तीनों को ये जो कपड़ा मैं दे रही हूँ , वही पहनना है , उसके अलावा कुछ भी नहीं, कोई एक धागा तक इसके अलावा नहीं होगा। और वो जो पूजा की सामग्री ली हुए थीं उसी में एक झोला उन्होंने खोला, मुश्किल से दो तीन हाथ का मलमल का सफ़ेद कपडा, बिना सिला और ऐसे तीन कपडे ,...

मैंने अपने कपडे उतारने की कोशिश की तो उन्होंने रोक दिया और बोलीं अब तुम कुछ नहीं करोगे , जो करुँगी मैं करुँगी या जब तक मैं या पुजारी कुछ करने को न कहे,

उन्होंने पहले मेरे फिर गुड्डो के कपडे उतारे और वही कपडा आधी धोती की तरह मुझे और साडी की तरह गुड्डो को पहना दिया, हाँ गाँठ न उन्होंने मेरी धोती में बाँधी न गुड्डो की साड़ी में बस लपेट दी। और फिर खुद भी उसी तरह वो सफ़ेद कपड़ा लपेट लिया,

और अब तीसरी बात,... लेकिन ये बात कहने के पहले , उन्होंने उस दीये से निकली कालिख को काजल की तरह मेरी आँखों में अच्छी तरह लगाया, और मुझे बोला की मैं आँखे बंद कर लूँ और जब तक वो न कहें , आँखें न खोलूं। काजल आँखों के बाद, मेरी दोनों भुजाओं पर, वक्षस्थल पर निप्स के नीचे, नाभि पर और दोनों जाँघों पर लगाया।

मेरी आँखे अच्छी तरह छरछरा रही थीं, लेकिन कुछ देर बाद मुझे सब कुछ दिख रहा था, बिना आँखे खोले ,

गुड्डो के आँख में भाभी काजल लगा रही थीं , फिर उसके दोनों सीनो पर, फिर नाभि पर,...

और जहां पहले आँगन में बस इसी दिए की रौशनी दिख रही थी अब न जाने कहाँ कहाँ से रौशनी छन छन कर आ रही थी। जैसे हम सब रौशनी से नहाये हुए थे, एक अजीब से आनंद की अनुभूति हो रही थी।

और तीसरी बात अब दरवाजे के पार की बातें हफ्ते भर तक किसी से कहना तो छोड़ सोचना भी मत क्या हुआ क्यों हुआ,...

और तुम और गुड्डो अब जोड़े से साथ साथ वो भांग की बर्फी नाग नागिन को खिलाओं,



जैसे ही हमने खिलाई, जैसे हम दोनों के हाथ से वो बर्फी गायब हो गयी, तेजी से एक सरसराने की आवाज आयी और तेज हवा,...

दरवाजा खुल गया था, और जो झिरझिर हवा अब तक हलकी हलकी हम महसूस कर रहे थे वही अब पूरे तेजी के साथ,



गुड्डो को ,... और भाभी की बात को जैसे मैं बिना कहे समझ गया था, उन नाग नागिन को मैंने हाथ जोड़ा, आदर से झुका , और गुड्डो को उठाकर उस ऊँची चौखट के पार हो गया, भाभी मेरे बाएं मेरे साथ,... और फिर दरवाजे के पार एक बहुत पुराने पेड़ों का झुण्ड,



मंदिर के कपाट खुले थे, बल्कि लग रहा था कपाट शायद थे ही नहीं, और पुष्पों की सुरभि वाला एक धूम्र सेतु बस वही दिख रहा था, और उसे बेधती, सूर्य की किरणे, जो सीधे मंदिर के गर्भ गृह तक जैसे स्वर्णजटित कोई रूपसी पूजा में लीन हो और बिन मुड़े, बिन देव की ओर पीठ दिखाए , छोटे छोटे डग भरते वापस लौट रही हो,

और जब मैं एकदम पास पहुंचा, तो जैसे स्वर्णकिरणऔर धूम्र मिश्रित रूप के ही बने पुजारी, मैं जैसे ही प्रणाम की मुद्रा में झुका और उनकी अभय मुद्रा, आशीष के हाथ को मैंने अपने सर, और माथे पर महसूस किया,... और बिना उनके बोले,... और मैंने मन में सोचा ही था क्या मांगूंगा,... रजत जड़ित वह द्वार शायद गजराजों के जोर से भी नहीं हिलता, लेकिन अपने आप, एक अलग ढंग की रौशनी

और दरवाजे के ठीक ऊपर एक तोते की आकृति,... जैसे पन्ने का हो, पल भर के लिए चमका, नीचे कुछ मंत्र सा लिखा,... और उसी समय भाभी ने गुड्डो की ओर दिखा के कुछ इशारा किया,

ऊँची सी चौखट, गुड्डो को गोद में उठाकर मैं द्वार के पार, बांये भाभी,

बिन बोले जैसे मन मना कर रहा हो पीछे मुड़ के देखने को,

जीवन और समय आगे ही चलते हैं,

और अब आगे ढेर सारे पेड़, अशोक के छोटे छोटे लाल फूलों से लदे, आम्र मंजरी से भरे पड़े ढेर सारे आम के पेड़, उन सब पर सैकड़ों तोते,... चमेली की बेल और लताओं पेड़ों का एक गझिन गुम्फन लेकिन उनको पार करती सूरज की विदा लेती सुनहली किरणे, और उन पेड़ों के बीच एक बहुत ही पुराना मंदिर,
एक बहुत ही अलग ढंग की हवा, सुरभित मंद मलय समीर,आम की बौर की महक के साथ चम्पा और चमेली की महक,

भाभी ने इशारा किया और पूजा की सामग्री जो भाभी के हाथ में थी उसके अलावा हमारे पहने कपडे, झोले सा गुड्डो का पर्स , बाकी सब सामान एक पेड़ के नीचे रख दिया, और भाभी के साथ हम दोनों, पेड़ों का झुरमुट और उसके ठीक बीचोबीच एक पुराना सा मंदिर और उसके शिखर पर डूबते सूर्य की किरणें पड़ रही थी और सूरज की उन किरणों से वो सोने सा चमक रहा था।

भाभी ने मुझे इशारा किया, ( वह पहले ही बोल चुकी थीं मुझे और गुड्डो को, हम दोनों को बोलना

लेकिन मेरे होंठ हिले ही नहीं की उनका आशीर्वचन में उस इच्छा की पूर्ती,... अगले चार वर्ष महादेव के शरण में और दो वर्ष माँ काली की पूजा का अवसर,.... उन्होंने भी बोला भी नहीं, ... उनके होंठ भी नहीं हिले पर मुझे जैसे सीधे मन और मष्तिष्क में एक साथ,...

यही तो मैं चाहता था,

और फिर एक आवाज सी आयी, पता नहीं कहाँ से पुजारी जी के होंठ अभी भी नहीं हिले थे, बस जैसे मेरे कानों में घुल रही हो हो,...

" यह तुम्हारी इच्छा नहीं है यह तो तुम्हारा भवितव्य है, ... " एक मुस्कराती सी आवाज,...

और फिर वही आवाज, भाभी से,... एकदम ठीक समय पर आयी हो और यही , इन्ही के लिए, ... "

भाभी की बस पलकें झुक गयी, और वो हाथ मैंने फिर से सर पर महसूस किया जैसे कह रहे हों , वो पढ़ाई लिखाई नौकरी , ये तो होता ही है ,चाहते क्या हो,...

मैंने बस गुड्डो की ओर, और खुद बढ़ कर उसने मेरे हाथ को हाथ लिया,

एक मृदुल स्मिति,... और फिर वही आवाज,

' ये तो तेरा कर्म है और कर्मों का फल भी,... "

जैसे बच्चा माँ की गोद में सर घुसेड़े, तोड़े मरोड़े, बस उसे अच्छा लग रहा और कुछ भी समझ में न आ रहा हो,...

काम,... शक्ति,.. आनंद,... पुरुष,... बस कुछ कुछ,... और ये भी

स्मरण और विस्मरण दोनों ही जरूरी हैं और दोनों एक दूसरे के पूरक,... यहाँ से जाते ही सब कुछ विस्मृत के गर्त में और कुछ यादों का धंधलका जिसमें याद भी न रहे की क्या याद है या क्या कल्पना,...

जैसे एकदम संवेदन शून्य होकर या संवेदना की आखिरी चढ़ाई पार कर के
Adbhut,kya likha hain aapne yahi to hum chahte hain.Mystery+erotic ka adbhut sangam hain.
 

anvesharonny

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काम -काम्या, रम्या, प्रमदा


काम का चरम रूप स्त्री -पुरुष, देह मन मस्तिष्क तीनो का संगम और रस की पराकाष्ठा,... मैं कुछ सायास सोच नहीं रहा था, गंगा की लहरें देखते हुए अपने आप मन में विचारों की भावों की लहरे बह रही थीं,...


रस अन्त:करण की वह शक्ति है, जिसके कारण इन्द्रियाँ अपना कार्य करती हैं, मन कल्पना करता है, स्वप्न की स्मृति रहती है। रस आनंद रूप है । यही आनंद अन्य सभी अनुभवों का अतिक्रमण भी है।


कमनीया का एक कटाक्ष, सभी दृष्टि के सुखों से ऊपर होता है, बिना कहे सुख की कितनी पिचकारियां, उस कटाक्ष के साथ लजाने से छूट पड़ती हैं,... छेड़छाड़ की बातें कभी आधी कही, बातें सब वाग सुखों का निचोड़ हो जाता है, और मिलन में तो सब रस एक साथ,... दृश्य का वाग का स्पर्श का गंध का,...


पुजारी जी जैसे जैसे प्रसाद का पान करा रहे थे, ... सब कुछ भूल कर,... जैसे शैवाल से भरा ताल भले ऊपर से जैसा लगे पर उसके नीचे प्यास बुझाने वाला निर्मल जल ,... नीति -अनीति, नाते रिश्ते भौतिक सम्बन्ध जैसे कटते जा रहे थे , जैसे काई हटती जा रही हो और अंदर का सुंदर स्वादिष्ट जल प्यास बुझाने के लिए ,... कामना, उसको पूरा करने के लिए शक्ति और सबसे बढ़कर रस, छक कर रस पान,...

रमणी,... जिसके साथ रमण किया जाये, रम्या,... कामिनी, काम्या,... जिसकी कामना की जाये,... और स्त्री में ही पुरुष की पूर्ण आहुति होती है, वहीँ पुरुष स्थान पाता है ,धात्री धरती बीज को धारण करती है और शष्य श्यामला धान्य से भर जाती है, स्त्री यज्ञ की समिधा की तरह है , जिसमे पुरुष घृत की तरह,... दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, और सृष्टि का निर्माण भले ही हो गया है , लेकिन यह काम की भावना ही चाहे पेड़ पौधे हों, अलग योनियों के जीव जंतु हो,उनकी वृद्धि के लिए जिम्मेदार है , और काम की पूर्ती के साथ जो स्त्री पुरुष दोनों को आनंद मिलता है, वह शब्दातीत है, लेकिन उस आनंद को देना और लेना दोनों ही, कर्म है,...

तभी तो उन्होंने कहा था,... ये तो कर्म है,... और एक पल के लिए वो छवि उभरी,... वो कमनीया किशोरी मेरे ऊपर, और छलकता बिखरता मधु उसके ऊपर से ,... मेरे प्यासे होंठों को तृप्त करती,... काम्या के देह से निकला,बहा, छलका सब कुछ कमनीय है,... सब कुछ,... उन क्षणों की अनभूति ,जब सिर्फ रस बरस रहा हो, रस के सागर में डुबकी, देह तो बस सीढ़ी है उस आनंद के कूप में उतरने के लिए, सुख के पहाड़ों पर चढ़ने के लिए,

और शक्ति, ऊर्जा सुख का स्रोत वही है , जो सृष्टि का स्त्रोत है, काम्या, रम्या, प्रमदा

जैसे गंगा की लहरों की तरह मेरे मन में विचार हिलोरे ले रहे थे थिर हुयी लहरों की तरह धीरे धीरे रुक गए. अबतक चाँद आसमान में अच्छी तरह से निकल आया था,, होली के अगले दिन का चाँद, कभी मैं छिटकी चांदनी को देखता कभी गंगा में चाँद की परछाईं को,

लेकिन फिर एक बात मन में उठी, अपनी कोई बात मैंने नहीं कही थी, लेकिन मेरे बिना कहे उन्होंने सुन भी लिया, समझ भी लिया और और मुझे आशीष भी, और उनके भी होंठ नहीं हिल रहे थे, लेकिन मैं साफ़ साफ़ सुन रहा था, जैसे आवाजों को देख रहा होऊं,...



पश्यन्ती,



एक बार फिर मन में वही उथल पुथल,... वाक् भले ही होंठो, जिह्वा तालू और कंठ के संयोजन से निकलता हो, समझी जाने वाली ध्वनियों, शब्दों का रूप लेता हो , अर्थ के साथ हम तक पहुंचता हो, लेकिन उपजता तो वह विचार के रूप में है , हमारे चैतन्य होने का प्रमाण भी है और सम्प्रेषण का साधन भी, ... और वह जन्म लेता है मूलाधार चक्र से, ध्वनि के चार रूप हैं , जो हम सुनते हैं , जिसके जरिये बातचीत करते हैं, वह है वैखरी, ध्वनि का भौतिक और सबसे स्थूल रूप, लेकिन जो विचार या चेतना के रूप में, सबसे बीज रूप में जब यह जन्म लेती है तो उसका रूप परा है, पर वह अति सूक्ष्म होती है , उसके बाद है पश्यन्ती। यदि यह जागृत है, शब्द रूप लेने से पहले ही हम उसे देख सकते हैं , और यह नाभि के स्तर पर जब विचार पहुंचता है उस समय, यानी क्या कहना है उसका मन में तो जन्म होगया पर अभी वह शब्दों का रूप अभी नहीं ले पाया है.

और शब्दों की एक सीमा है, वह विचारों को अभिव्यक्त तो करते हैं पर उसे सीमित भी करते हैं और कई बार अर्थ और विचार में अंतर् भी हो जाता है।

पश्यन्ति और वाक् के बीच मध्यमा का स्थान है, हृदय स्थल पर।

पश्यन्ती की स्थिति में शब्द और उसके अर्थ में कोई अंतर् नहीं होता और विचार का आशय, तत्वर और सहज होता है। इसमें क्या कहने योग्य है, क्या नैतिकता के आवरण में छिपा लें , ऐसा कुछ भी नहीं होता वह शुद्ध रूप में मन की बात होती है, यह वाक् स्फोट का एक सीधा साक्षात्कार होता है, जो कोई कहना चाहता है वह सब सुनाई पड़ता है। और उस स्तर तक विचारों में बुद्धि का हस्तक्षेप, सही गलत का अवरोध नहीं होता है , कामना सीधे सीधे अभिव्यक्त होती है,

और मैं भी उनकी बात सुन पा रहा था , इसका सीधा अर्थ है , ... पश्यन्ति का गुण उनके अंदर तो था ही,वाक् की इस स्थिति को सुनने, समझने की शक्ति उनके आशीष से मेरे अंदर भी बिन कहे सुनने की, सीधे मन से मेरे मन तक पल बना के पहुंचने का रास्ता बन गया था।

दूर किसी घाट से गंगा आरती की हलकी हलकी आवाज गूँज रही थी, नाव नदी के बीचोबीच बस मध्धम गति से चल रही थी, रात हो चली थी इसलिए और कोई नाव भी आसपास नहीं दिख रही थी, हाँ किसी घाट पर जरूर कुछ कुछ लोग नज़र आ रहे थे, मंदिरों के शिखर, घंटो की आवाजें, चढ़ती हुयी रात के धुँधलके में दिख रहे थे. आज आसमान एकदम साफ़ था और चाँद भी पूरे जोबन पर,... कभी मैं आसमान में छिटके तारों को देखता कभी नदी में नहाती चांदनी को , मस्त फगुनहाटी बयार चल रही थी, हवा में फगुनाहट घुली थी, और मेरे मन तन पर भी,
...
Kya kahe aapke likhane ki pratibha ko sadar pranam shabd nahi hain varnan karne ke liye.
 
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