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जोरू का गुलाम भाग १९६
भीगी रात भीगा तन भीगा मन
17,02, 019
बारिश एक बार फिर बहुत तेज हो गयी थी , हमारे घर के अहाते में भी बहुत ढेर सारे बड़े बड़े , पुराने पेड़ थे , सब झूम रहे थे।
…………..
कार में ब्लोअर ने जो थोड़ा बहुत सुखाया था , सब बराबर हो गया . बारिश की बूंदे टप टप पेड़ों से चू रही थीं , पट पट घर की छत पर पड़ी रही थी , कमरे की खिड़कियों को खटखटा रही थीं ,
जोर से बिजली चमकी , बादल गरजे ,
कहीं लगता है बिजली गिरी , और मैं अपनी ननद को खींच के घर के अंदर ले गयी , और अंदर से दरवाजा बंद कर दिया , जैसे डर रही होऊं कहीं हमारे पीछे पीछे बारिश भी ,...
तेज बारिश की आवाज अभी भी आ रही थी ,
" हे रानी कपडे उतार , वरना कहीं बीमार पड़ गयी न तो तेरे दर्जन भर नए नए बने यारों को मैं क्या जवाब दूंगी। "
और मैंने उस टीनेजर की ट्यूबटॉप ड्रेस वहीँ खींच कर फर्श पर ,
" अरे भाभी , आप के भी तो कपडे उतार दूँ , वरना कहीं मेरी मीठी मीठी भौजी बीमार हो गयीं तो , ... "
अब मेरी ननद पीछे रहने वाली नहीं थी , ... मेरी ड्रेस भी गुड्डी की ड्रेस के ऊपर ,
मैं गुड्डी के पीछे , उसकी ब्रा का स्ट्रैप खोल रही थी, तभी जोर से आवाज हुयी ,
धड़ाम ,...
लगता है कोई बड़ा पेड़ गिरा।
बिजली कड़कने की तेज आवाज हुयी ,...
और बिजली चली गयी।
हवा हूँ हूँ हूँ हूँ कर चल रही थी , खूब डरावनी आवाज
गुड्डी की आँखों पर पीछे से उस काले अँधेरे में , किसी ने काला कपड़ा बाँध दिया , खूब कस कस ,
और उस की कोमल कलाइयों को पीछे से पकड़ कर , मरोड़ कर , ...
कस के ,...
हिलना मत।
हलके से पुश करके , घर से बाहर ,
कभी कभी लगता , ट्रैफिक की आवाज , कार के हार्न , कभी बारिश की आवाज ,
कभी पैरों के नीचे कच्ची मिटटी , घास , तो कभी पक्का फर्श ,....
दस मिनट चलने के बाद ,...
कोई आवाज नहीं , ...सिर्फ पीठ पर पुश कर के , वो भी मोबाइल से , ... ऊँगली से भी नहीं ,...
दस मिनट बाद एक हल्का सा धक्का , ... और गुड्डी पलंग पर गिर पड़ी ,
उसके होंठों पर ऊँगली रख कर इशारा ,... चुप रहना वरना ,...
दोनों हाथ खुल गए थे , पर एक बार फिर वो पलंग के ऊपर लगे , ... जैसे किसी हथकड़ी में फंस गए , जरा भी हिलाना मुश्किल था ,
ज़रा भी हिलना , मुश्किल था।
आँख पर पट्टी , हाथ बंधा हुआ , कमरे में पूरा अँधेरा ,... फिर बहुत हलकी सी रोशनी,.... हलकी सी
भीगी रात भीगा तन भीगा मन
17,02, 019
बारिश एक बार फिर बहुत तेज हो गयी थी , हमारे घर के अहाते में भी बहुत ढेर सारे बड़े बड़े , पुराने पेड़ थे , सब झूम रहे थे।
…………..
कार में ब्लोअर ने जो थोड़ा बहुत सुखाया था , सब बराबर हो गया . बारिश की बूंदे टप टप पेड़ों से चू रही थीं , पट पट घर की छत पर पड़ी रही थी , कमरे की खिड़कियों को खटखटा रही थीं ,
जोर से बिजली चमकी , बादल गरजे ,
कहीं लगता है बिजली गिरी , और मैं अपनी ननद को खींच के घर के अंदर ले गयी , और अंदर से दरवाजा बंद कर दिया , जैसे डर रही होऊं कहीं हमारे पीछे पीछे बारिश भी ,...
तेज बारिश की आवाज अभी भी आ रही थी ,
" हे रानी कपडे उतार , वरना कहीं बीमार पड़ गयी न तो तेरे दर्जन भर नए नए बने यारों को मैं क्या जवाब दूंगी। "
और मैंने उस टीनेजर की ट्यूबटॉप ड्रेस वहीँ खींच कर फर्श पर ,
" अरे भाभी , आप के भी तो कपडे उतार दूँ , वरना कहीं मेरी मीठी मीठी भौजी बीमार हो गयीं तो , ... "
अब मेरी ननद पीछे रहने वाली नहीं थी , ... मेरी ड्रेस भी गुड्डी की ड्रेस के ऊपर ,
मैं गुड्डी के पीछे , उसकी ब्रा का स्ट्रैप खोल रही थी, तभी जोर से आवाज हुयी ,
धड़ाम ,...
लगता है कोई बड़ा पेड़ गिरा।
बिजली कड़कने की तेज आवाज हुयी ,...
और बिजली चली गयी।
हवा हूँ हूँ हूँ हूँ कर चल रही थी , खूब डरावनी आवाज
गुड्डी की आँखों पर पीछे से उस काले अँधेरे में , किसी ने काला कपड़ा बाँध दिया , खूब कस कस ,
और उस की कोमल कलाइयों को पीछे से पकड़ कर , मरोड़ कर , ...
कस के ,...
हिलना मत।
हलके से पुश करके , घर से बाहर ,
कभी कभी लगता , ट्रैफिक की आवाज , कार के हार्न , कभी बारिश की आवाज ,
कभी पैरों के नीचे कच्ची मिटटी , घास , तो कभी पक्का फर्श ,....
दस मिनट चलने के बाद ,...
कोई आवाज नहीं , ...सिर्फ पीठ पर पुश कर के , वो भी मोबाइल से , ... ऊँगली से भी नहीं ,...
दस मिनट बाद एक हल्का सा धक्का , ... और गुड्डी पलंग पर गिर पड़ी ,
उसके होंठों पर ऊँगली रख कर इशारा ,... चुप रहना वरना ,...
दोनों हाथ खुल गए थे , पर एक बार फिर वो पलंग के ऊपर लगे , ... जैसे किसी हथकड़ी में फंस गए , जरा भी हिलाना मुश्किल था ,
ज़रा भी हिलना , मुश्किल था।
आँख पर पट्टी , हाथ बंधा हुआ , कमरे में पूरा अँधेरा ,... फिर बहुत हलकी सी रोशनी,.... हलकी सी
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