ये रिश्ता कुछ कहलाता है....रिश्ता ही ऐसा है
ये रिश्ता कुछ कहलाता है....रिश्ता ही ऐसा है
और संदर्भ के अनुसार....आरुषि जी चित्र भी चुन चुन के लगाती हैं एकदम आग में घी डालने वाले
जीवन अपने वक्र रेखा का कभी-कभी अनुभव करा देती है...कई बार कमेंट के इन्तजार में अपडेट लेट हो जाता है तो कई बार कुछ व्यस्तता
लेकिन अच्छा लगता है अगर कोई अपडेट के बारे में बात करता है, और मैंने फिर अपडेट दे भी दिया
अगला अपडेट भी जल्द ही।
ट्रैफिक सिग्नल भी थोड़ी देर बाद.. रेड से ग्रीन हो जाता है...वो तो आगे पता चलेगा की सपना टूटा की ग्रीन सिंग्नल भी मिल गया
और होली-दीवाली...पर्व त्योहार में अपने तीखेपन (साथ में नमकीन भी) का अच्छा खासा अनुभव कराती है...छोटी साली भी तो तीखी मिर्च ही होती है, शादी में जूते चुराने, कोहबर में दरवाजा छेंकने से लेकर बाद में भी
एकदम दोनों ही कहानियों में अपडेट भी और जो कुछ कहानियां अच्छी लगती हैं उन पर कमेंट भी
और अपनी कहानी के हर कमेंट का जवाब भी
bidirectional...अरे पहले तो मोम ऐसे अंग को पत्थर ऐसा बनाती है, फिर तड़पाने नाक रगड़वाने के बाद
पत्थर से फिर मोम
कहाँ आरुषि जी और कहाँ हम सब तुक से तुक मिलाने वाले...वाह क्या बात है मैं सही कह रही थी आरुषि जी का असर
बहनापा तो ऐसा हीं होना चाहिए...एकदम पति नहीं है जीजा ही काम आएगा, आखिर सगी बहने हैं बचपन से हर चीज मिल बाँट के खाती हैं
सलहज का तो साली से पहले हक होता है
और जिस की बहन को नहीं छोड़ा उसकी बीबी को कौन छोड़ेगा,... और ननद भाभी मिल के मौज उड़ाएंगी