कौन है दुश्मन
अब यह सवाल होता है की इतनी डैमेजिंग रिपोर्ट हमने खुद क्यों अपनी कंपनी के लिए क्यों तैयार करवाई।
लेकिन उससे ज्यादा जरूरी है की फायनेंस डाटा तो कामन आदमी के समझ में आता नहीं तो बुलेटेड प्वाइंट से १६ सवाल बन रहे थे, जिनमे कम से कम दस ऐसे थे जो कारपोरेट फाइलिंग से जुड़े थे और जिसमे सीरयस मामला हो सकता था। इन दस में से छह तो इंडियन कम्पनी या मेरी कम्पनी से जुड़ा था।
अब इत्ती मेहनत करके ये रिपोर्ट बनी क्यों और हम कोईं उत्सुक थे की ये रिपोर्ट किसी तरह मिस X की रिपोर्ट्स में जिसे पॉपुलरली X रिपोर्ट कहा जाता है। रिस्क के हिसाब से वो कम्पनी उसे X, X X या X,X X कैटगरी में रखती थी और बाहर के स्टॉक एक्सचेंज और क्रेडिट रेटिंग कम्पनिया अगर किसी की X रेटिंग भी आ गयी तो निगेटिव क्रेडिट रेटिंग कर देती थीं।
लेकिन दो मेरे साथ बड़ी समस्याएं थीं, एक तो जिस तरह का मेरा सर्वेलेंस था मुझे उस रिपोर्ट से दूर ही रहना था। किसी भी तरह से अगले पंद्रह दिन कंपनी के किसी सेंसिटिव काम से खुद को जोड़ना, एक मुसीबत में डालना था। अभी तो सर्वायालनेस वाले मुझे ठरकी मान रहे थे और आने वाले दिनों में उनके इस शक को पक्का करना था। साथ ही साथ उस सरवायलेंस के तार को पकड़ कर, कौन हम लोगों के पीछे पड़ा है वहां तक पहुंचना था।
इस रिपोर्ट के छपने के बाद भी कुछ ऐसा ही होना था, कम्पनी पर जबरदस्त अटैक होता, हम लोगों यानी इंडियन सब्सिडियरी भी एक बार फिर से दांव पर लग जाती, लेकिन उससे कुछ क्ल्यु तो लगता और हम लोगों को असली दुश्मन को ट्रेस करने में आसानी होती। और भी फायदे थे जिसके बारे में मुझे बाद में पता चला, लेकिन दो बातें थी। पहली तो रिपोर्ट जिस दिन आनी थी, उसी दिन मुझे दो दर्जा नौ वाली बालिकाओं को, मिसेज मोइत्रा की कबुतरियों को रगड़ रगड़ के, मतलब पूरा दिन मिसेज मोइत्रा के घर पे और मिसेज मोइत्रा तीज की मस्ती में, और रिपोर्ट हिन्दुस्तान के समय से रात में साढ़े ११ बजे आनी थी क्योंकि न्यूआर्क में उस समय दिन होता। और फिर उस रिपोर्ट के बाद, कुछ डैमेज कंट्रोल और कुछ आगे की बातें, लेकिन सर्वेलेंस से बच कर और मेरा फोन, लैपी सब कुछ कीड़ा ग्रस्त था और फीज़िकल सर्वेलेंस भी कम्प्लीट था।
मैंने झटक कर उस बात को अलग कर दिया, अभी जब होगा तब देखा जाएगा। अभी तो एकदम सब नार्मल लगना चाहिए जिससे कोई शक न हो।
तो इन सवालों का जवाब जानने के पहले यह जानना जरूरी था की किन सवालों का जवाब नहीं मिल रहा था, एक एक्विजशन के अटैक को हम ने न्यूट्रलाइज कर दिया था, और अटेम्प्ट करने वालों की कमर टूट गयी थी।
लेकिन उसके बाद भी यह साफ़ था की कोई अटैक प्लान कर रहा था और वह हफते दस दिन में ही होने वाला था
पहली बात मेरा सर्वेलेंस,... जब शक का लेवल बहुत हल्का था तब भी इस लेवल का फिजिकल और डिजिटल सर्वायालेंस दिखाता था, की अटैकर्स के रिसोर्सेज अनलिमिटेड हैं,
दूसरी बात, जिस तरह लाउंज में मुझे वो रिपोर्ट मिली और बाकी इशारे थे वो यही दिखा रहे थे की अटैक मतलब कम्पनी पर साइबर या फायनान्सियल अटैक कभी भी हो सकता है,...
और उससे तीन सवाल और उभर रहे थे
१. अटैक क्यों किया जा रहा है ?
२. अटैक करने वाला कौन है ?
३ अटैक का टाइम और टारगेट क्या होगा ?
पिछली बार हम डिफेन्स पर थे लेकिन इस बार मुझे लग रहा था हमें अटैक करना होगा लेकिन वो तब तक पॉसिबल नहीं था जबतक अटैकर्स पहचाने न जाए,
इसलिए उन्हें बाहर निकालना जरूरी था और एक बार पता चल गया तो कारपोरेट आफिस के लोग उसे हैंडल कर लेते,... लेकिन अभी कुछ पता नहीं चल रहा था
कारपोरेट हेडक्वार्टस ने भी तय कर लिया की अब हमें अटैक करना है, लेकिन उस काम में मुझे इन्वाल्व नहीं होना था। एक तो मेरा जिस तरह से सर्वेलेंस हो रहा था, मेरे लिए ज्यादा एक्टिव रोल लेना मुश्किल था, फिर अब यह क्लियर था की मूल अटैकर कोई ग्लोबल एम् एन सी थी और असली टारगेट पैरेंट कम्पनी थी। तो कारपोरेट वार का अबकी बड़ा रोल सिएटल के आफिस में ही होता,
लेकिन मेरा रोल अभी भी अहम था, एक तो वो बकरे वाला, जिसे बांधकर शिकारी शिकार की अट्रैक्ट करता है, मेरे सर्वेलेंस से पता चल सकता था की कौन ये करवा रहा है और दूसरे इण्डिया आपरेशन के बारे में इनपुट।
और यह रिपोर्ट भी हमारे लिए एक इम्पॉरटेंट टूल होती,... कैसे क्या फायदा होता कम्पनी को
ये एक बार रिपोर्ट छप जाए तो पता चलेगा
अभी हालत ये थी की मछली ने चारा खा तो लिया था लेकिन उसके बाद मछली पकड़ने वाले को बड़े धैर्य का परिचय देना होता है। जितनी बड़ी भारी- मछली उतना ज्यादा इन्तजार, धैर्य और ताकत
तो ये समय अभी इन्तजार का था। और जरा भी आहट न करने का।
अगले दिन जरा और जोर का झटका लगा जब मैं इत्ते दिनों बाद आफिस पहुंच।
मिसेज डी मेलो ने सबसे पहले बताया, बाद में और लोगो ने भी, लेकिन मिसेज डी मेलो ने ये भी बताया की एक मीटिंग भी शेड्यूल है जिसके लिए मुझे साढ़े ग्यारह बजे साइट पर ही जाना होगा।