Ashokafun30
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shaandaar kahani
aise uttejana se bhare kisse kahani me chaar chaand laga dete hai
keep it up
aise uttejana se bhare kisse kahani me chaar chaand laga dete hai
keep it up
Topic purana hi hai. Takriban sari incast story bhai aur shadi shuda bahen me esa hi kuchh hota hai. Magar amezing aap ke likhne ka andaz hai. Jo common concept ko bhi naya hone ka ehsas de raha hai. Amezing.अब घर मे घुसते ही राजु ने रुपा को देखा तो...
"अरे..! जीजी... आप कब आये..?" कहते हुवे वो तुरन्त दौङकर रुपा के पास आ गया, मगर उसने जब रुपा को रोया हुवा चेहरा देखा तो...
"क्या हुवा जीजी..? आप रो क्यो रहे हो..? उसने रुपा के चेहर की ओर देखते हुवे पुछा...
"कुछ नही, जा तु जीज्जी को पानी लाकर दे..!" लीला ने ऐसे ही बहाना बनाते हुवे कहा।
राजु जब तक पानी लेकर आया तब तक रुपा भी बिल्कुल चुप हो गयी थी। उसने राजु से पानी का गिलास लेकर पहले तो अपना मुँह को धोया, फिर बचे हुवे पानी को पी लिया...
रुपा अब थोङा सामान्य हो गयी थी इसलिये..
"क्या हुवा जीज्जी... आप रो क्यो रहे थे..?" एक बार फिर से राजु ने उसके चेहरे की ओर देखते हुवे पुछा जिससे...
"क्.कुछ भी तो नही, बस ऐसे ही, तु बता कहा गया था..?" रुपा ने चेहरे पर हल्की छुठी मुस्कान सी लाते हुवे कहा और खाली गिलास राजु को देकर अपने दुपट्टे से ही चेहरे को पौछने लगी।
"कही नही जीज्जी.. बस खेत गया था...!" राजु ने खाली गिलास को एक ओर रखते हुवे कहा। वो कुछ और कहता तब तक...
"बाकी बाते बाद मे करना, पहले जा तु बनिये से दस रु० के टमाटर ले आ, खाने का समय हो गया है..!" लीला ने अपने ब्लाउज से दस रुपये का नोट निकालकर राजु को देते हुवे कहा।
राजु पैसे लेकर टमाटर लेने दुकान चला गया था जिससे..
"तु चिन्ता मत कर, मै कल फिर से बैद जी के पास जाकर आँऊगी, सब ठीक हो जायेगा..! जा हाथ मुँह धो ले तब तक मै खाना बना देती हुँ..!" ये कहते हुवे लीला रसोई मे घुस गयी तो, रुपा भी अब थोङा सामान्य हो गयी थी इसलिये वो भी चुपचाप हाथ मुँह धोने के लिये बाथरुम..? बाथरुम तो नही उस समय गाँवो मे इतनी सुविधा नही होती थी, बस अपना अपना जुगाङ होता था।
घर के आँगन मे नाली के पास बङी सी सील (चपटी पत्थर) डालकर रखते थे जिस पर मर्द तो ऐसे खुले मे ही नहा लिया करते थे, और औरते घर के जब सब मर्द काम के लिये निकल जाते थे तब घर को बन्द करके नहा लेती थी, या फिर साङी चद्दर या बोरी आदि की आड करके नहा लेती थी, उसी सील पर वो कपङे आदी धोना और दिन भर पिशाब आदि जाना होता तो वही कर लेती थी।
लीला ने भी घर के आँगन मे ही नाली के पास एक बङी सी सील जमा रखी थी जिसके पास वो पानी के मटके व बाल्टी आदि रखती थी इसलिये नहाना धोना व पिशाब आदी वो वही करती थी। वैसे भी लीला के घर मे मर्द के नाम पर अब बस राजु ही था जो की अधिकतर खेतो मे रहता था इसलिये कोई आड या जगाङ करने की उसे कभी जरुरत ही महसूस नही हुई।
अब रुपा भी हाथ मुँह धोने के लिये एक बाल्टी मे पानी लेकर कोने मे जमी उस सील पर आ गयी, मगर हाथ मुँह धोने से पहले उसने पिशाब करने की सोची और बाल्टी को एक ओर रख वो सीधे शलवार का नाङा खोल मुतने बैठ गयी। उधर राजु भी तब तक दुकान से टमाटर ले आया था इसलिये लीला को टमाटर देने वो सीधा रसोई मे घुस गया...
वो अपनी ही धुन मे था इसलिये घर मे घुसते समय तो उसका ध्यान कोने मे बैठकर मुत रही अपनी जीज्जी की ओर नही गया, मगर रशोई मे एक छोटी सी खिङकी थी जो की ठीक आँगन मे जो सील जमा रखी थी उसके सामने थी इसलिये राजु अब लीला को टमाटर देने रशोई मे पहुँचा तो उसकी नजर खिङकी की ओर चली गयी जहाँ उसे सील पर बैठकर पिशाब करते उसकी जीज्जी अब साफ नजर आई...
रुपा को ना तो ये ध्यान रहा था की घर मे राजु है, जो कभी भी आ सकता है, और ना ही ये मालुम चला की वो घर मे कब आ गया। वो बस अपने ही ख्यालो मे खोई गर्दन को नीचे झुकाकर अपनी चुत से पिशाब की धार छोङे जा रही थी। उसने अपने सुट को घुटनो से थोङा नीचे कर रखा था जिससे उसकी चुत तो नजर नही आ रही, मगर उसकी चुत से निकलकर दुर तक जाती मुत की धार साफ नजर आ रही थी, जो की राजु के लिये एक अदभुत नजारा था।
उस समय गाँवो मे शौचालय किसी किसी घर मे ही होते थे इसलिये आधिकतर औरते शौच आदि के लिये खेतो मे ही जाया करती थी। राजु ने लङकियो व औरतो को दुर से तो शौच आदि करते समय काफी बार देखा था मगर इतने करीब से किसी को पिशाब करते देखना उसके लिये एक बेहद ही कामुक नजारा था। रुपा की चुत से निकलती मुत की धार को देख उसकी नजर अब रुपा पर ही जमकर गयी...
लीला भी रसोई मे ही खङी थी उसने अब राजु को इस तरह चुपचाप व गुमसुम सा खङे देखा तो उसकी नजर भी राजु की नजरो का पीछा करते हुवे खिङकी की ओर चली गयी, जहाँ से रुपा पिशाब करती साफ नजर आ रही थी। राजु को भी ये मालुम था की पास मे ही उसकी बुवा खङी है जोकी उसे देख भी सकती है मगर फिर भी कुछ देर तो उससे अपनी जीज्जी की चुत से निकलते उस सुनहैरी झरने को देखने का लालच छोङा नही गया..
वो कुछ देर तो ऐसे ही टकटकी लगाये खिङकी से रुपा को मुतते देखता रहा मगर जल्दी उसे भी ये अहसास हो गया की लीला उसे देख रही है इसलिये तुरन्त उसने खिङकी से नजरे हटाकर अपना चेहरा घुमाना चाहा मगर लीला उसे ही देख रही थी जिससे अपनी चोरी पकङी जाने के डर से वो झेँप सा गया और...
"म्.म्. मै गप्पु के घर जाकर आता हुँ...!" राजु ने नजरे चुराते हुवे कहा और तुरन्त टमाटर की थैली को रशोई मे रखकर बाहर भाग गया.....
Bads erotic totka bataya leela ne to. Maza aaya entertainingदस ग्यारह बजे तक घर के सब निपटाकर वो अब नहा धोकर तैयार हो गयी और रुपा को फकीर बाबा के पास जाने का बोलकर बस अड्ढे पर आ गयी। बस अड्डे से बस पकङकर वो अब किसी फकीर बाबा के पास नही गयी, बल्कि शहर आकर उसने ऐसे ही घर की जरुरत के लिये छोटा मोटा सामान खरीदा और वापस घर आ गयी। घर पर रुपा उसका बेसब्री से इन्तजार कर रही थी इसलिये...
"आ गयी माँ तुम.. क्या बताया फकीर बाबा ने...?" रुपा ने लीला को देखते ही पुछा जिससे...
"अरे..मुझे भीतर तो आने दे...चल भीतर चल.., फिर बैठकर बात करते है..!" ये कहते हुवे लीला कमरे मे घुस गयी और पलँग पर जाकर बैठ गयी।
रुपा भी अपनी माँ के पीछे पीछे ही थी इसलिये वो भी कमरे मे आ गयी और...
"अब तो बता..! क्या बताया बाबा ने...?" ये कहते हुवे रुपा भी उसके पास ही पलँग पर उसकी बगल मे बैठ गयी..
लीला: तुम पर दोष बताया है, तुने शादी से पहले कभी गलती से किसी कब्र पर पिशाब कर दिया था उसका दोष तेरी कोख डस रहा है। वो अब जीन्न बनकर तेरे पीछे पङा हुवा है जो तेरी गोद भी नही भरने दे रहा, और तो और, वो तेरा अब घर भी तोङना चाह रहा है इसलिये उसने दामाद जी को भी अपने वश मे कर लिया है।
लीला ये सब झूठ बोल रही थी, वो किसी भी फकीर बाबा के पास नही गयी थी मगर फिर भी उसने ये इतने विश्वास और इस अन्दाज के साथ कहा की रुपा को बिल्कुल भी इसमे कुछ गलत नही लगा और..
रुपा: हाँ सही कहा..! ये बात तो सही है माँ, पहले वो कभी कुछ नही कहते थे, पर अब तो वो भी अपनी माँ की ओर बोलने लगे है, अब क्या होगा माँ..?
लीला: कुछ नही होगा, सब ठीक हो जायेगा। बस कुछ टोने टोटके है जो तुझे करने होँगे, पहले तुझ पर जो कब्र पर पिशाब करने का जो दोष है चौराहे पर जाकर कुछ टोटके करके उसे उतारना होगा, उससे वो जिन्न तेरा पीछा छोङ देता है तो ठीक..! नही तो तुझे पहाङी वाले लिँगा बाबा पर भी दीया जलाकर कर आना पङेगा..!
रुपा: पर माँ उनके साथ पहले गयी तो थी मै दीया जलाने पहाङी वाले बाबा पर..?
लीला: हाँ..! पर बाबा बोल रहे थे की चौराहे वाले टोटके से उस जिन्न ने तेरा पीछा नही छोङा तो तुझे फिर से वहाँ दीया जलकार आना होगा..!, मगर इस बार दामाद जी के साथ नही जाना किसी और के साथ जाना होगा..!
"दामाद जी तो अब उसी जिन्न के वश मे है उनके साथ तो तु ये टोने टोटके कर नही सकती इसलिये किसी दुसरे मर्द के साथ तुझे ये टोटके करने होँगे..!
रुपा: पर माँ.., उनके साथ नही, तो फिर किसके साथ करुँगी ..? और पहाङी वाले बाबा पर किसके साथ जाऊँगी
लीला: और किसके साथ जयेगी...? राजु को साथ मे ले जाना..!
राजु के साथ पहाङी वाले बाबा पर दीया जलाकर आने की बात रुपा को अब अजीब लगी, क्योंकि लिँगा बाबा पर औरते अपने पति के साथ ही दीया जलाने जाती है इसलिये...
रुपा: पर माँ राजु तो मेरा भाई है, उसके साथ मै कैसे..?
रुपा ने दुखी सी होते हुवे पुछा।
लीला: अरे.. मैने पुछा था बाबा से..., बोल रहे थे ये टोटके है जो किसी मर्द के साथ ही करने है, और राजु है तो मर्द ही ना..!
"वो तु बाद मे देखना, पहले तो तुझ पर जो कब्र पर पिशाब करने का दोष है उसे तो उतारना है। बाबा जी बोल रहे थे की अगर ये दोष उतरने से वो जीन्न तेरा पीछा छोङ देता है तो बाकी के टोटके करने की जरुरत नही पङेगी..!
रुपा: अ.हा्. हाँ.. फिर तो ठीक है..पर इसके लिये क्या करना है..?
रुपा ने अब थोङा खुश होते हुवे उत्सुकता से पुछा जिससे...
लीली: शनिवार की रात बारह बजे तुझे चौराहे पर जाकर अपने सारे कपङे उतारकर वही छोङकर आने है और तुझे अपने यहाँ किसी मर्द से इस पर (चुत पर) पिशाब करवाकर उसके हाथ से इसे धुलवाना होगा...
लीला ने सीधे सीधे चुत का नाम तो नही लिया मगर उसने नीचे रुपा की चुत की ओर इशारा करते हुवे कहा जिससे रुपा भी समझ गयी और..
रुपा: क्या्आ्आ्.....?
लीला: हाँआ्आ्..! तभी तेरा ये कब्र पर पिशाब करने का दोष मिटेगा..!
रुपा: पर माँ, ये सब तो मै बस उनके साथ ही कर सकती हुँ..!
रुपा अब आगे कुछ बोलती तब तक...
लीला: नही..!, दामाद जी तो अब उस जीन्न के ही वश मे है, उनके साथ तो चाहे तु सो, या कुछ भी कर, उससे कुछ फर्क नही पङने वाला, ये सब टोटके तुझे किसी दुसरे मर्द के साथ करने होँगे तब जा के तेरा ये दोष दुर होगा..!
रुपा: पर माँ..! किसी दुसरे मर्द के साथ मै ये सब कैसे कर सकती हुँ..?
लीला: अब फकीर बाबा ने तो यही बताय है की तुझे ये किसी दुसरे मर्द के साथ ही करना होगा..?
रुपा: पर माँ, ये सब तो औरत बस अपने पति के साथ ही कर सकती है, जब उनके साथ नही कर सकती तो फिर किसके साथ करुँगी..?
लीला: तुझे बताया तो, राजु के साथ, और किसके साथ करेगी..?
रुपा: पर माँ राजु के साथ ये सब करते शरम नही आयेगी, और उसके साथ ये सब करते मै अच्छी लगुँगी क्या, वो क्या सोचेगा मेरे बारे मे..?
लीला: इसमे क्या सोचेगा, उसे इतनी समझ भी है जो कुछ सोचेगा..? और ये सब टोने टोटके है जो ऐसे ही करने पङते है..! पहले तुम दोनो नँगे होकर साथ मे नहाते भी तो थे, अब कुछ देर उसके साथ नँगी होकर ये सब कर लेगी तो क्या हो जायेगा..?
रुपा: पर माँ तब की बात और थी, वो छोटा था, पर अब ये सब उसके साथ कैसे कर सकती हुँ..?
लीला: अभी वो कौन सा इतना बङा हो गया..? ठीक से अभी दाढी मुँछ भी निकले नही उसके..!
रुपा: पर माँ...!
लीला: देख ले बेटी..! अब बाबा जी ने तो यही बताया है की तुझे ये टोटके किसी दुसरे मर्द के साथ ही करने है, अगर तु किसी और के साथ मे करना चाहती है तो वो देख ले..? पर तुझे जल्दी करना होगा, नही तो बाबा ने बताया है की तुझ पर दोष का असर बढता जा रहा है जिससे दामाद जी भी अब उसके वश मे आ गये है..!
रुपा: मै अब क्या कहुँ.. ये सब किसी और के साथ कैसे..?
लीला: वैसे राजु नही तो, तु कहे तो पङोस वाले गप्पु से कहुँ..., पर किसी दुसरे का क्या भरोसा..? वैसे ही वो लफँगा है, पता नही बाद मे गाँव मे क्या क्या कहता फिरेगा..! और दुसरे को कोई भरोसा भी तो नही... राजु तो फिर भी घर का है...! देख ले, तु कहे तो मै गप्पु से बात कर लेती हुँ..?
रुपा: नही.. उससे अच्छा तो मै राजु के साथ ही ना कर लुँगी..!
लीला: यही तो मै भी बोल रही हुँ, तु राजु के साथ ही कर ले..! और मै तो बोल रही हुँ तु ये आज रात ही कर ले, आज शनिवार भी है, जब राजु के साथ ही करने है तो फिर किस लिये देर करना..!
रुपा: मै अब क्या कहुँ, मुझे कुछ समझ नही आ रहा..?
लीला ने दोष का असर बढने की बात कही तो रुपा का भी अब मन बदलने लगा था।
लीला: इसमे क्या समझ नही आ रहा..! वैसे भी बस कुछ देर की तो बात है..!
लीला ने रुपा पर दबाव बनाते हुवे कहा जिससे अब...
रुपा: ठीक है क्या करना होगा..?
रुपा ने अब बेमन से कहा, जिससे...
लीला: कुछ नही करना..?, बस रात मे बारह बजे तुम दोनो को चौराहे पर जाकर तुम्हे अपने सारे कपङे उतारकर वही रख देने है, फिर राजु के नीचे उस पर (लण्ड पर) पिशाब करके पहले तो तुझे हाथ से उसके उसे (लण्ड को) अच्छे से धो देना है। ऐसे ही फिर राजु भी तेरे नीचे यहाँ इस पर (चुत पर) पिशाब करके इसे (चुत को) हाथ से अच्छे से धो देगा ताकी तुझ पर जो कब्र पर पिशाब करने का दोष है वो उतर सके..!
"पर माँ राजु के साथ मै इतना सब कैसे करूँगी..? शरम नही आयेगी उसके साथ ये सब करते, नही..नही..! राजु के साथ मै ये सब नही कर सकती..? वो क्या सोचेगा..?" लीला आगे कुछ बताती रुपा दुखी सा होते हुवे बीच मे ही बोल पङी जिससे....
लीला: इसमे क्या सोचेगा.. ? और सोचता है तो सोचने दे, रात के अन्धेरे मे सब हो जायेगा..! उसके बाद दोनो ऐसे ही नँगे आकर रात मे जोङे के साथ सो जाना..!
रुपा : क्या..? यहाँ आकर रातभर उसके साथ बिना कपङो के रहना भी है..?
रुपा ने अब घबराते हुवे कहा जिससे...
लीला: अरे.. तो मै तुझे कौन सा उसके साथ कुछ करने को बता रही हुँ, बस सुबह तक उसके साथ बिना कपङो के ऐसे ही रहना है..!
रुपा: पर इससे क्या होगा माँ..?
लीला: अरे..! तभी तो तेरा कब्र पर पिशाब करने का दोष दुर होगा और वो जीन्न तेरा पीछा छोङेगा...!
"कोई भी मर्द अपनी औरत को किसी दुसरे के साथ सोने देता है क्या..? कोई भी मर्द चाहेगा की उसकी औरत किसी दुसरे मर्द के समाने नँगी हो और ये सब करे...?"
रुपा एकदम चुपचाप टकटकी लगाये लीला की ओर देखे जा रही थी इसलिये...
"अरे बोल ना... " लीला ने रुपा की ओर देखते हुवे कहा जिससे..
रुपा: नही...
लीला: यही बताया है फकीर बाबा ने, अब तेरा पति तो उस जीन्न के वश मे है उसके साथ तु चाहे जो कर, उससे उस जीन्न पर कोई असर नही होगा, मगर जब तुम किसी दुसरे मर्द के सामने ऐसे नँगी रहेगी तभी तो वो जिन्न चीढकर तेरा पीछा छोङकर जायेगा..!
रुपा अब गर्दन झुकाकर बैठ गयी और..
रुपा: पर माँ ये सब मै राजु को करने के लिये मै कैसे कहुँगी...?
रुपा ने दुखी सी होते हुवे कहा जिससे
लीला: उसकी चिँता तु छोङ दे, रात मे जाने से पहले मै उसे अपने आप समझा दुँगी, जैसा तु कहेगी वो चुपचाप बिना कुछ पुछे कर लेगा...
"देखना इसी से तेरे सारे दोष मिट जायेँगे..! अगर ये टोटका ही अच्छे से हो गया तो तुझे पहाङी वाले बाबा पर भी जाने की जरूरत नही पङेगी..!
"जा तु अब चाय बना ले तब तक मै थोङा आराम कर लेती हुँ, फिर दुध भी निकालना है..!" ये कहते हुवे लीला अब पलँग पर लेट गयी और रुपा चाय बनाने के लिये रशोई मे चली गयी।
जिस अन्दाज मे लीला ने रुपा को कब्र पर पिशाब करने का दोष व उस दोष को दुर करने के टोने टोटके के बारे मे बताया, उस पर रुपा को पुरा विश्वास आ गया था मगर राजु के साथ ये सब करने मे उसे बहुत ही अजीब लग रहा था इसलिये वो अब रशोई मे आकर चुपचाप चाय बनाने लग गयी।
दोनो माँ बेटी ने अब साथ मे ही बैठकर चाय पी, फिर लीला तो पशुओं को चारा डालने व उनका दुध निकालने मे लग गयी और रुपा घर के छोटे मोटे काम जैसे झाङु आदि निकालकर रात के खाने की तैयारी मे लग गयी। इस दौरान लीला उसे ये टोटके राजु के साथ करने के लिये समझाती भी रही जिससे रुपा भी अब राजु के साथ टोटके करने के लिये मान गयी...
Yah kuchh naya Kiya. maza ayaपूरी भूमिका बांध दी लीला ने टोटके के बहाने से
Real me totka koi special knowledge nahinYah kuchh naya Kiya. maza aya
Me bahas nahi karungi. Koi manta hai nahi manta. Mene to bahot kiye hai. Aur me khud visvas karti hu. Bahot sare har roj. Par ese nahi jo story me haiReal me totka koi special knowledge nahin
Aisa hi kuchh abnormal, jo ham aamtaur par nahin karte... Vo karna hi totka hota hai
Horror magic mat samjho
To ab beti ko pregnant karne ke liye tona totka kiya jayega.अभी तक आपने जान ही लिया होगा की कहानी किस केन्द्र पर आधारित है तो चलिये अब कहानी की ओर बढते है...
दिन ढलने को था घर के बाहर लीला अपने पशुओ को चारा डाल ही रही थी की तभी उसके दरवाजे के पास एक स्कुटर आकर रुका, स्कुटर पर उसकी बेटी रुपा व दामाद थे। स्कुटर के रुकते ही रुपा तो उतरकर सीधे घर के अन्दर चली गयी, मगर दामाद स्कुटर पर ही बैठे रहा...
जैसा की घर के दामाद की सभी इज्जत करते है लीला ने भी अपने दामाद की पुरी इज्जत करनी चाही। गाँवो मे दामाद के सामने सास अपना सिर ढक कर रखती है, इसलिये लीला ने भी घर के दामाद को देख एक हाथ से पल्लु कर लिया और पशुओ को चारा डालना छोङ..
"अरे.. दामाद जी.., आओ.. आओ....!" कहते हुवे तुरन्त उसकी आव भगत करने लगी, मगर...
"अभी नही..!, दुकान ऐसे ही छोङकर आया हुँ, फिर कभी आऊँगा..!" उसने स्कुटर पर बैठे ही कहा।
"कम से कम चाय पानी तो प्.पि..." लीला अपनी बात पुरी करती, तब तक वो स्कुटर को चालु कर वहाँ से निकल गया...
अपनी बेटी के रोये हुवे चेहरे को देख लीला सब समझ गयी थी, इसलिये बचा हुवा चारा जल्दी से पशुओ को डालकर वो भी घर के अन्दर आ गयी। अन्दर रुपा चारपाई पर बैठकर रो रही थी जो अब अपनी माँ को देखकर खङी हो गयी और उसके गले लगकर और भी जोर से रोने लगी...
लीली ने भी उसे अपने सीने से चिपका लिया और...
"क्या हुवा..?" वैसे तो लीला को सब मालुम था की क्या बात है, मगर फिर भी उसने रुपा के सिर पर हाथ फिराते हुवे पुछा।
"होना क्या है, उस दवा से भी कुछ नही हुवा..!, अब तो तँग आ गयी हुँ मै ताने सुन सुन कर...!
अब मेरा क्या दोष जब बच्चा नही हो रहा तो.!, बुढिया मुझे ही सुनाती रहती अपने बेटे से कुछ नही कहती, उसमे भी तो खराबी हो सकती है..? " रुपा ने रोते रोते ही कहा।
"कोई नही सब ठीक हो जायेगा..!, और रोने से क्या होगा..? तु रो मत सब ठीक हो जायेगा..!" लीला ने उसे सांत्वना देते हुवे कहा।
"रोऊ नही तो क्या करु..?, पहले वो तो कुछ नही कहते थे, अब तो वो भी अपनी माँ की ओर बोलने लगे है, जी तो करता है कुवे मे कुदकर जान दे दुँ...!" रुपा ने सुबकते हुवे कहा।
"नही नही ऐसा नही कहते, मै बात करती हुँ दामाद जी से...!" लीला ने अपनी बेटी के सिर पर हाथ फिराते हुवे कहा।
"उससे क्या बात करना, वो तो खुश ही होगा, उसे दुसरी जो मिल जायेगी..?" बुढिया अपने बेटे को नही देखती, पता नही बापु ने क्या सोचकर उस बुड्ढे को पसन्द किया था..!" रुपा ने थोङा तैस मे आते हुवे कहा।
"ऐसा नही कहते, सब ठीक हो जायेगा, तु चिँता मत कर..!" लीला बोल ही रही थी की तभी राजु आ गया, जिसे देख लीला अब चुप हो गयी तो, वही रुपा भी जल्दी से अपने आँशु पौछकर शाँत हो गयी।
Raju pregnant karega Rupa ko.अब घर मे घुसते ही राजु ने रुपा को देखा तो...
"अरे..! जीजी... आप कब आये..?" कहते हुवे वो तुरन्त दौङकर रुपा के पास आ गया, मगर उसने जब रुपा को रोया हुवा चेहरा देखा तो...
"क्या हुवा जीजी..? आप रो क्यो रहे हो..? उसने रुपा के चेहर की ओर देखते हुवे पुछा...
"कुछ नही, जा तु जीज्जी को पानी लाकर दे..!" लीला ने ऐसे ही बहाना बनाते हुवे कहा।
राजु जब तक पानी लेकर आया तब तक रुपा भी बिल्कुल चुप हो गयी थी। उसने राजु से पानी का गिलास लेकर पहले तो अपना मुँह को धोया, फिर बचे हुवे पानी को पी लिया...
रुपा अब थोङा सामान्य हो गयी थी इसलिये..
"क्या हुवा जीज्जी... आप रो क्यो रहे थे..?" एक बार फिर से राजु ने उसके चेहरे की ओर देखते हुवे पुछा जिससे...
"क्.कुछ भी तो नही, बस ऐसे ही, तु बता कहा गया था..?" रुपा ने चेहरे पर हल्की छुठी मुस्कान सी लाते हुवे कहा और खाली गिलास राजु को देकर अपने दुपट्टे से ही चेहरे को पौछने लगी।
"कही नही जीज्जी.. बस खेत गया था...!" राजु ने खाली गिलास को एक ओर रखते हुवे कहा। वो कुछ और कहता तब तक...
"बाकी बाते बाद मे करना, पहले जा तु बनिये से दस रु० के टमाटर ले आ, खाने का समय हो गया है..!" लीला ने अपने ब्लाउज से दस रुपये का नोट निकालकर राजु को देते हुवे कहा।
राजु पैसे लेकर टमाटर लेने दुकान चला गया था जिससे..
"तु चिन्ता मत कर, मै कल फिर से बैद जी के पास जाकर आँऊगी, सब ठीक हो जायेगा..! जा हाथ मुँह धो ले तब तक मै खाना बना देती हुँ..!" ये कहते हुवे लीला रसोई मे घुस गयी तो, रुपा भी अब थोङा सामान्य हो गयी थी इसलिये वो भी चुपचाप हाथ मुँह धोने के लिये बाथरुम..? बाथरुम तो नही उस समय गाँवो मे इतनी सुविधा नही होती थी, बस अपना अपना जुगाङ होता था।
घर के आँगन मे नाली के पास बङी सी सील (चपटी पत्थर) डालकर रखते थे जिस पर मर्द तो ऐसे खुले मे ही नहा लिया करते थे, और औरते घर के जब सब मर्द काम के लिये निकल जाते थे तब घर को बन्द करके नहा लेती थी, या फिर साङी चद्दर या बोरी आदि की आड करके नहा लेती थी, उसी सील पर वो कपङे आदी धोना और दिन भर पिशाब आदि जाना होता तो वही कर लेती थी।
लीला ने भी घर के आँगन मे ही नाली के पास एक बङी सी सील जमा रखी थी जिसके पास वो पानी के मटके व बाल्टी आदि रखती थी इसलिये नहाना धोना व पिशाब आदी वो वही करती थी। वैसे भी लीला के घर मे मर्द के नाम पर अब बस राजु ही था जो की अधिकतर खेतो मे रहता था इसलिये कोई आड या जगाङ करने की उसे कभी जरुरत ही महसूस नही हुई।
अब रुपा भी हाथ मुँह धोने के लिये एक बाल्टी मे पानी लेकर कोने मे जमी उस सील पर आ गयी, मगर हाथ मुँह धोने से पहले उसने पिशाब करने की सोची और बाल्टी को एक ओर रख वो सीधे शलवार का नाङा खोल मुतने बैठ गयी। उधर राजु भी तब तक दुकान से टमाटर ले आया था इसलिये लीला को टमाटर देने वो सीधा रसोई मे घुस गया...
वो अपनी ही धुन मे था इसलिये घर मे घुसते समय तो उसका ध्यान कोने मे बैठकर मुत रही अपनी जीज्जी की ओर नही गया, मगर रशोई मे एक छोटी सी खिङकी थी जो की ठीक आँगन मे जो सील जमा रखी थी उसके सामने थी इसलिये राजु अब लीला को टमाटर देने रशोई मे पहुँचा तो उसकी नजर खिङकी की ओर चली गयी जहाँ उसे सील पर बैठकर पिशाब करते उसकी जीज्जी अब साफ नजर आई...
रुपा को ना तो ये ध्यान रहा था की घर मे राजु है, जो कभी भी आ सकता है, और ना ही ये मालुम चला की वो घर मे कब आ गया। वो बस अपने ही ख्यालो मे खोई गर्दन को नीचे झुकाकर अपनी चुत से पिशाब की धार छोङे जा रही थी। उसने अपने सुट को घुटनो से थोङा नीचे कर रखा था जिससे उसकी चुत तो नजर नही आ रही, मगर उसकी चुत से निकलकर दुर तक जाती मुत की धार साफ नजर आ रही थी, जो की राजु के लिये एक अदभुत नजारा था।
उस समय गाँवो मे शौचालय किसी किसी घर मे ही होते थे इसलिये आधिकतर औरते शौच आदि के लिये खेतो मे ही जाया करती थी। राजु ने लङकियो व औरतो को दुर से तो शौच आदि करते समय काफी बार देखा था मगर इतने करीब से किसी को पिशाब करते देखना उसके लिये एक बेहद ही कामुक नजारा था। रुपा की चुत से निकलती मुत की धार को देख उसकी नजर अब रुपा पर ही जमकर गयी...
लीला भी रसोई मे ही खङी थी उसने अब राजु को इस तरह चुपचाप व गुमसुम सा खङे देखा तो उसकी नजर भी राजु की नजरो का पीछा करते हुवे खिङकी की ओर चली गयी, जहाँ से रुपा पिशाब करती साफ नजर आ रही थी। राजु को भी ये मालुम था की पास मे ही उसकी बुवा खङी है जोकी उसे देख भी सकती है मगर फिर भी कुछ देर तो उससे अपनी जीज्जी की चुत से निकलते उस सुनहैरी झरने को देखने का लालच छोङा नही गया..
वो कुछ देर तो ऐसे ही टकटकी लगाये खिङकी से रुपा को मुतते देखता रहा मगर जल्दी उसे भी ये अहसास हो गया की लीला उसे देख रही है इसलिये तुरन्त उसने खिङकी से नजरे हटाकर अपना चेहरा घुमाना चाहा मगर लीला उसे ही देख रही थी जिससे अपनी चोरी पकङी जाने के डर से वो झेँप सा गया और...
"म्.म्. मै गप्पु के घर जाकर आता हुँ...!" राजु ने नजरे चुराते हुवे कहा और तुरन्त टमाटर की थैली को रशोई मे रखकर बाहर भाग गया.....
Bahut pays hai Rupa. Raju se chudne ko turant tayyar ho jayegi.जैसा की आपने अभी तक पढा की रुपा बच्चा नही हो पाने के अपनी सास के तानो से तँग आकर अपने मायके मे आई हुई थी जिसे आँगन मे पिशाब करते राजु रशोई की
खिङकी से देख रहा था तो लीला ने उसे पकङ लिया था जिससे घबराकर..
"म्.म्. मै गप्पु के घर जाकर आता हुँ...!" राजु ने नजरे चुराते हुवे कहा और तुरन्त टमाटर की थैली को रशोई मे रखकर बाहर भाग गया..!
अब उसके आगे.....
राजु का रुपा को पिशाब करते देखना, व उसका इस तरह घबराकर बाहर जाना लीला को थोङा अजीब लगा, मगर ये सब काम एक साथ व इतनी जल्दी हुवे की लीला को कुछ समझ ही नही आ सका, इसलिये वो भी ये सोचकर रह गयी की, "हो सकता है ये सब गलती से हुवा होगा..!" और वो चुपचाप खाना बनाने मे लग गयी।
पिशाब करने के बाद रुपा भी हाथ मुँह धोकर रशोई मे ही आ गयी जिससे...
"हाथ मुँह धो लिये तो आ जा तु रोटी खाले..." लीला ने रोटी बेलते कहा।
"नही भुख नही मै बाद मे खा लुँगी..! " ये कहते हुवे रुपा भी लीला के पास वही फर्स पर बैठ गयी और...
"ला..रोटी मै सेक दुँ..?" उसने लीला का हाथ बँटाने के इरादे से पुछा।
"नही रहने दे मै सेक लुँगी, तु रोटी खाले..! और तु चिँता मत कर, मै जा रही ना कल वैध जी के पास, वो कुछ ना कुछ दवा दारू या समाधान जरुर बतायेँगे..?" लीला ने रुपा को तसल्ली देते हुवे कहा, मगर...
"दवा से क्या होगा...? उस बुड्ढे के कुछ बस की बात तो है नही.... वो जो वैद जी से तुमने पहले एक बार दवा लाकर दी थी वो दवा जिस रात उसके दुध मे मिला देती हुँ तो मेरे पास आ जाता है, नही तो उसके बस मे तो ये भी नही की बिना दवा के मेरे पास आ सके...!,
"जब बीज ही सही नही होगा, तो जमीन मे चाहे कितनी भी खाद्द डालते रहो..! अच्छी फसल लेने के लिये खेतो मे अच्छा बीज डाला जाता है, किसान की बेटी हुँ इतना तो मै भी समझती हुँ। उस बुड्ढे के बस की बात तो है नही, अब मै चाहे कितनी भी दवा खाती रहो...?" अपनी माँ से रुपा ने इस तरह की बात पहली बार की थी इसलिये वो ये सब एक ही साँस मे कह गयी।
लीला एक तेज तरार औरत थी। रुपा की बात को वो अच्छे से समझ गयी थी की वो क्या कहना चाह रही है मगर वो अब कुछ कहती तब तक राजु वापस आ गया इसलिये दोनो माँ बेटी चुप हो गये। वो नही चाहती थी की राजु को कुछ पता चले इसलिये लीला चुपचाप रोटी बनाने मे लग गयी तो रुपा एक प्लेट मे सब्जी डालकर रोटी खाने लगी।
रशोई मे जो हुवा था उससे राजु अभी भी लीला से कतरा रहा था इसलिये उसने लीला से तो नजरे नही मिलाई मगर...
"अरे...! जीज्जी.. आप खाना भी खाने लग गयी... चलो मै भी आपके साथ ही खा लेता हुँ..!" ये कहते हुवे वो भी रुपा के साथ ही खाने लग गया...
Sahi khyal aa raha hai. Rupa ko Raju se chudwa kar hi samasya ka hal niklega.रात को खाना खाने के बाद अब लीला और रुपा एक ही कमरे मे सो रही थी मगर दोनो मे से ना तो किसी को नीँद नही आ रही थी और ना ही कोई बात कर रही थी। रुपा जहाँ ये सोच सोचकर परेशान थी की, उसका पति अगर दुसरी शादी कर लेगा तो उसका क्या होगा..?, वही लीला भी ये सोच रही थी की अपनी बेटी के घर को उजङने से कैसे बचाये..?
लीला अच्छे से जान रही थी की अगर जल्दी ही रुपा पेट से नही हुई तो उसका घर उजङने से कोई नही बचा सकता, क्योकि चार साल होने को आये थे रुपा की शादी को, मगर बच्चा तो दुर, अभी तक उसे कभी उम्मीद तक नही बँधी थी। शादी के एक डेढ साल तो किसी ने भी इतना ध्यान नही दिया, मगर अब तो हर कोई पुछता रहता है की रुपा को बच्चा क्यो नही हो रहा.? पहले तो ये बात कभी कभी ही आती थी जिससे रुपा रुठकर अपने मायके मे आ जाती थी मगर अब तो रुपा की सास जैसे रट ही लगाकर बैठ गयी थी।
पिछले तीन महिने मे ये दुसरी बार था जब रुपा इस तरह रुठकर मायके मे आई थी। ऐसा नही था की लीला ने अपनी बेटी को बच्चा होने की कोई दवा नही दिलवाई..! आस पङोस के लगभग सभी गाँवो के नीम हकीमो व झाङफुक वालो से उसने रुपा को दवा से लेकर पुजा पाठ के सभी काम करवा लिये थे मगर अभी तक रुपा को उम्मीद नही बँधी थी।
गुस्से गुस्से मे रुपा ने जो कुछ भी अपने पति के बारे मे बताया था उससे ये तो मालुम पङ रहा था की रुपा मे कोई कमी नही, कमी उसके पति मे ही है इसलिये रुपा को दवा दिलवाने से कुछ नही होने वाला। उसके पति का ही कुछ करना होगा... पर उसका भी वो करे.. तो क्या करे..? क्योंकि वो तो कभी ये मानने को तैयार नही होगा की उसमे कोई कमी है। बात उसकी मर्दानगी पर नही आ जायेगी..?
रुपा ने जो कही थी उसमे ये बात तो सही थी की जब जमीन मे बीज ही अच्छा नही डालोगे तो फिर जमीन चाहे कितनी भी उपजाऊ हो..उसमे फसल कहाँ से होगी..? लीला ये सोच ही रही थी की तभी.. "अगर बीज ही कोई दुसरा डाल दे तो..?" एक बार तो लीला के दिल मे आया मगर फिर... "नही नही ये कैसे हो सकता है, वो कैसे अपनी बेटी को किसी दुसरे के साथ सोने के लिये कह सकती है..! और अगर कहे भी तो क्या वो मानेगी...? उल्टा उसे ही शर्मीँदा नही होना पङ जायेगा..!"
लीला के दिमाग मे एक साथ अब काफी सारी बाते चल रही थी, क्योंकि कैसे भी करके लीला को अपनी बेटी का घर बाचाना था, पर उसे कुछ समझ नही आ रहा था की वो अब करे तो क्या करे..? रुपा ने जो कहा था उससे अब ये तो तय था की अगर रुपा को अपना घर बचाना है तो उसे किसी दुसरे के साथ सोना होगा, पर ये बात वो अब रुपा कैसे बताये, और ये सब करे भी तो किसके साथ करे जिससे उसका घर भी बस जाये और किसी को कुछ पता भी ना चले...! उसे कुछ समझ नही आ रहा था, तभी...
"बुवा..! मै खेत पर जा रहा हुँ...!" बाहर से राजु की आवाज सुनाई दी।
"हाँ..हाँ..! ठीक है सुबह जल्दी आ जाना...!" लीला ने राजु को जवाब देते हुवे कहा, मगर तभी उसके दिमाग मे तुरन्त अब राजु का ख्याल उभर आया।
वैसे तो वो राजु को अभी बच्चा ही समझती थी मगर वो जिस तरह रशोई से रुपा को पिशाब करते हुवे देख रहा था तब से ही लीला के दिमाग मे कही ना कही ये बात खटक सी रही थी इसलिये...
"अरे..अरे...! मै भी ये क्या सोच रही हुँ, कभी भाई बहन मे भी ऐसा होता है...?" लीला ने एक बार तो खुद का माथा ही पिट लिया मगर फिर...
"पर ये कौन सा दोनो सगे भाई बहन है...? बस मामा का ही तो लङका है..." लीला ने मन मे ही सोचा।
"हाँ... हाँ... ये सही रहेगा..!, रुपा का घर भी बच जायेगा और किसी को कोई शक भी नही होगा..!"
"पर ये सब होगा कैसे...? इसके लिये वो रुपा को कैसे बतायेगी..? और ये बात वो रुपा को कहेगी भी तो कैसे..?
"कोई और हो तो भी ठीक है, पर राजु से वो सगे भाई से भी ज्यादा प्यार करती है....! फिर रुपा को ये बात वो कैसे समझायेगी...?" लीला ये बात काफी देर तक सोचती रही.. फिर मन ही मन मे कुछ सोचकर उसने कस कर अपने हाथो की मुट्ठी भीँच ली और करवट बदलककर दुसरी ओर मुँह करके लेट गयी...