दोनो ही एक बार फिर से अब पहले वाली स्थिति मे आ गये थे इसलिये चुपचाप अब पत्थर के पास जहाँ उनका सामान रखा हुवा था वहाँ उस पत्थर पर आकर बैठ गये।
रुपा अभी भी एक हाथ से अपनी शलवार को तो दुसरे हाथ से राजु के हाथ को पकङे हुवे थी इसलिये दोनो के बीच अब कुछ देर तो खामोशी सी छाई रही मगर फिर..
रुपा: अब ऐसे शलवार को पकङे पकङे मै कैसे चल पाऊँगी..?
राजु: पर जीज्जी मै बस खोल ही तो रहा था..!
रसजु ने अब मासुमियत से कहा जिससे..
रुपा: अरे..! तो मैने खोलने को कहाँ था, तोङने को थोङे ना..!
राजु:- पर जीज्जी मै भी तो बस खोल ही रहा था, अब टुट गया तो मै क्या करु..?
रुपा: खोल क्या रहा था गधे..! देख तुने इसे दाँतो से काट ही दिया..!, अब ऐसे शलवार को पकङे पकङे मै उपर पहाङी पर कैसे चढ पाऊँगी..!" रुपा ने अब अपनी शलवार के टुटे हुवे नाङे को उसे दिखाते हुवे कहा जिससे...
राजु: लाओ मुझे दो मै गाँठ लगाकर इसे फिर से जोङ देता हुँ..!
ये कहते हुवे राजु ने अब उसकी शलवार के नाङे को पकङना चाहा तो पूरा नाङा ही सब शलवार से निकलकर हाथ मे आ गया जिससे..
ओ्य्.. गधे अब ये क्या किय. .? रुपा ने उसे अब डाटते हुवे कहा।
क्.कुछ नही... मेरा अब ये हाथ तो छोङो..!" ये कहते राजु ने अब रुपा के हाथ से अपने हाथ को छुङाने की कोशिश की तो वो भी अब उसके हाथ को छोङकर अपना हाथ अब उसके कन्धे पर रखकर बैठ गयी जिससे राजु ने नाङे मे जो गाँठ लगी हुई थी उसे मुँह से खोलकर पहले तो उसे अलग किया, फिर टुटे हुवे नाङे के दोनो सिरो को गाँठ मारकर फिर से जोङ दिया और....
"ये लो, लो हो गया..!" राजु ने अब नाङे को रुपा को दिखाते हुवे कहा जिससे..
"तेरा सिर हो गया..! गधे अब इसे शलवार मे कैसे डालेगा..?" रुपा ने उसे डाटते हुवे कहा तो राजु भी अब
"व्.व्.वो्। ज्.जी्ज्जी्ईई..." करके हकलाने लगा जिससे रुपा को भी अब उसकी बेवकुफी पर हँशी आ गयी और..
"तु अब छोङ और ला मुझे दे इसे..!" रुपा ने अब राजु के हाथ से नाङा लेते हुवे कहा और अपने सिर से बालो की पिन को निकाल लिया...
तब तक राजु बिल्कुल सामान्य हो गया था। उसके लण्ड मे जो उभार आया हुवा था तब तक भी खत्म हो गया था
इसलिये वो भी अब रुपा के थोङा पास खिसक आया और उसे चुपचाप अपनी जीज्जी शलवार मे नाङा डालते हुवे देखने लगा..
रुपा ने भी अब पहले तो नाङे के किनारे को पकङकर उस पिन मे फँसाया, फिर शलवार मे नाङे के लिये जो कट सा होता है उसके एक सिरे मे उस पिन को घुसाकर धीरे धीरे उसे अन्दर खिसकाने लगी जिससे पिन के साथ साथ नाङा भी अब अन्दर घुसने लगा, मगर रुपा ने नाङ को डालने के लिये अपनी शलवार के कट के पास से उपर उठाया हुवा था जिससे अन्दर पहनी उसकी गुलाबी रँग की पेन्टी के किनारा साफ नजर आ रहा था जिस पर राजु की नजर अब फिर से जम सा गयी..
अपनी जीज्जी की पेन्टी से निकलती उस गन्ध को राजु अभी भी भुला नही था। उसकी पेन्टी से आ रही गन्ध अभी भी उसके जहन मे बसी हुई थी इसलिये उसकी पेन्टी को देख वो अब एकदम जङ सा हो गया था। वैसे तो रुपा अपनी शलवसर मे नाङे को डालने मे ही व्यसत थी मगर ऐसे ही उसकी नजर राजु की ओर भी गयी होगी की उसने राजु को अब पेन्टी की ओर देखते हुवे पाया तो उसे जोरो की शरम सी आई और..
"ओय् बेशर्म....! तु सुधरेगा नही ना..? ये कहते हुवे उसने अब तुरन्त अपनी शलवार को नीचे करके अपनी पेन्टी को छुपा लिया जिससे राजु भी अब...
"व्.व्.वो् ज्.जी्ज्जी्.ई्.ई्... " कहकर हकला सा गया और दुसरी ओर देखने लगा।
रुपा ने भी अब एक बार रुकी मगर वो भी फिर से अपनी शलवार नाङा डालने लग गयी, जिससे उसने आगे की ओर से तो ऐसे ही आधे तक शलवार मे नाङे को पहुँचा दिया मगर नाङे को पीछे की ओर से घुमाकर लाने के लिये उसे अपनी शलवार को थोङा नीचे खिसकाना था इसलिये रुपा की नजर अब फिर से राजु की ओर चली गयी, वो अभी भी उसकी ओर ही देख रहा था।
अब ऐसे तो रुपा भी उसमे नाङा डाल नही सकती थी इसलिये...
"बेशरम..!" रुपा ने भी अब एक बार तो शरम हया के मारे राजु की ओर देखकर कहा, मगर फिर वो भी अपनी शलवार को नीचे खिसकाकर उसमे नाङा डालने लग गयी...
रुपा के अपनी शलवार को नीचे खिसका लेने से राजु की नजर भी अब उसकी पेन्टी पर ही जमकर रह गयी। रुपा भी ये जान रही थी की राजु उसकी पेन्टी को देख रहा है जिससे उसे शरम तो आ रही थी मगर साथ ही राजु के उसे ऐसे देखने से एक रोमाँच व उत्तेजना सी भी महसूस हो रही थी। वैसे भी वो जान रही थी की यहाँ नही तो वहाँ उपर पहाङी पर जाकर टोटके के समय उसे राजु को अपना सब कुछ ही दिखा ही देना है इसलिये उसने भी राजु को अब कुछ कहा नही और चुपचाप अपनी शलवार मे नाङा डालती रही, मगर जब तक उसने अपनी शलवार मे नाङा डाला तब तक राजु के लण्ड तनकर फिर से उसके पजामे मे पुरा उभार सा बना लिया...
खैर रुपा के अपनी शलवार मे नाङा डालने तक तो दोनो अब वही बैठे रहे फिर पहाङी पर चढना शुरु कर दिया। राजु को डर था की कही उसकी जीज्जी उसके पजामे मे मे बने उभार को ना देख ले इसलिये वो पहले के जैसे ही उससे थोङा आगे होकर चलने लगा तो साथ ही एकदम गुमसुम सा भी हो गया था। रुपा भी समझ रही थी की वो ऐसा क्यो कर रहा है। राजु क्या खुद रुपा की भी ऐसी ही हालत थी इसलिये उसने भी अब उससे कुछ नही कहा।