अभी तक आपने पढा की अपनी माँ के समझाने पर रुपा भी राजु को साथ मे लेकर लिँगा बाबा पर दिया जलाकर टोटके करने निकल आई थी जिससे रास्ते मे एक दुसरे का हाथ पकङे पिशाब किया तो राजु के साथ साथ रुपा भी उत्तेजना महसूस करने लगी थी। अब पहाङी के पास पहुँकर उपर चढने से पहले दोनो ने एक बार फिर से पिशाब करने के लिये रुके तो राजु ने तो पिशाब कर लिया मगर रुपा पिशाब करने के लिये अपनी शलवार का नाङा खोलने लगी तो नाङे की गाँठ उलझ गयी..
अब उसके आगे:-
रुपा ने अब पहले तो खुद ही नाङे को खोलने की कोशिश की मगर रुपा ने खुद से उसे जितना खोलना चाहा नाङे की गाँठ उतना ही कसती चली गयी इसलिये कुछ देर तो वो ऐसे ही खुद से अपने नाङे को खोलने की कोशिश करती रही मगर जब उससे नाङे की गाँठ नही ही.., नही खुली तो वो..
"ऊहूऊऊऊ..!" कहकर जोरो से झुँझला सी उठी जिससे..
"क्.क्या हुवा जीज्जी..!" राजु ने अब पलटकर रुपा की ओर देखते हुवे पुछा। रुपा भी अब क्या करती इसलिये..
"य्.य्.ये् गाँठ उलझ गयी..!" ये कहते हुवे वो भी घुमकर अब राजु की ओर मुँह करके खङी हो गयी। उसने अपने सुट को पेट से उपर उठाकर अपनी ठोडी से दबा रखा था तो दोनो हाथो से अपनी शलवार के नाङे को पकङे हुवे थी जिससे रुपा की साँसो के साथ साथ उसके फुलते पिचकते गोरे चिकने पेट व उसकी गहरी नाभी को देख राजु का लण्ड तुरन्त अब हरकत मे आ गया...
रुपा ने नाङे को खोलने के चक्कर मे नाङे के पास शलवार मे जो कट होता है उसे भी शायद फाङ लिया था या फिर वो था ही इतना चौङा की उपर से देखने पर राजु को शलवार के कट से उसकी गुलाबी पेन्टी तक साफ नजर आ रही थी जिसे देख राजु का लण्ड अब फुलने सा लगा तो साथ ही..
"व्.वो् म्.म्.मै खोल दुँ..!" राजु ने भी अब थोङा हकलाते हुवे से कहा जिससे..
"हु.हुँम्अ्..!" मजबुरी मे अब रुपा भी क्या करती इसलिये शरम हया के मारे वो बस छोटा सा "हुँ..." ही कह सकी, मगर राजु ने उसकी शलवार के नाङे को खोलने के लिये अब जैसे ही नाङे को पकङा उसके हाथ रुपा के नर्म मुलायम चिकने पेट से छु गये जिससे राजु को अपने बदन मे सनसनी सी महसुस हुई, तो वही रुपा को भी अपने पेट पर राजु के खुरदरे हाथ के स्पर्श से गुदगुदी सी हुई जिससे...
"ईईश्श्.. ओ्य्ह्ह्..!" कहते हुवे उसने तुरन्त अपने पेट को अन्दर खीँच सा लिया और...
"य्.ये क्या कर रहा है..? हाथ से खुलता तो मै ना खोल लेती..!" रुपा ने अब फिर से झुँझलाते हुवे कहा।
"तो..फिर..?" राजु ने अब उत्सुकता वश रुपा की ओर देखते हुवा कहा, मगर जैसा वो सोच रहा था उसकी जीज्जी उसे वैसा ही जवाब दे इस इन्तजार मे उसके दिल की धङकन रुक सा गयी...
रुपा को अब शरम तो आ रही थी मगर वो कर भी क्या सकती थी इसलिये..
"व्.व.वो्..... मुँह से खोल अब, और क्या..?" ये कहते हुवे उसने अब एक बार तो राजु की ओर देखा, फिर शरम के मारे दुसरी ओर मुँह कर लिया।
राजु के दिल की धङकन जो अभी तक रुकी हुई सी थी वो अब अपनी जीज्जी से मनचाहा जवाब सुनकर अचानक तेजी से चलना शुरु हो गयी। वो तुरन्त ही अब नीचे जमीन पर अपने घुटने टिकाकर खङा हो गया, मगर जैसे ही उसकी नजर अब अपनी जीज्जी के गोरे चिकने पेट व उसकी गहरी नाभी पर गयी तो वो कुछ देर के लिये साँस रुक सा गयी...
इससे पहले उसने कभी भी किसी लङकी को इतने करीब से नही देखा था इसलिये अपनी जीज्जी के गोरे चिकने पेट व पेट पर उभरे हल्के भुरे रँग रोँवो को देखकर उसका लण्ड झटके से खाने लगा। रुपा भी उसकी ओर ही देख रही थी, वो जान रही थी की राजु की नजर कहा पर है इसलिये अपने सुट को नीचे करके उसने अब अपने नँगे पेट को छुपाना चाहा जिससे...
"क्या है जीज्जी इसे तो पकङो..!" राजु ने अब एक हाथ से उसके सुट को फिर से पेट पर से उठाते हुवे कहा।
रुपा भी अब क्या करती उसने फिर से अपने सुट को एक हाथ से उपर उठाकर पकङ लिया मगर राजु ने अब जैसे ही अपने हाथो की उँगलियों को शलवार मे घुसाकर उसके नाङे को पकङा, अपनी जीज्जी के पेट की नर्म मुलायव व चिकनी त्वचा के अहसास से राजु जहाँ सहम सा गया, तो वही अपने पेट पर राजु के हाथो की उँगलियों के स्पर्श से रुपा को जोरो की गुदगुदी व सिँहरन सी महसूस हुई जिससे...
ईईश्श्.. ओ्य्.ह्ह्...!" कहकर वो तुरन्त थोङा घुम सा गयी।
रुपा के घुम जाने से राजु के हाथ से उसकी शलवार का नाङा छुट गया था इसलिये "क्या हुवा.." ये सोचकर वो अब उत्सुकता वश तुरन्त रुपा के चेहरे की ओर देखने लगा जिससे..
"व्.व्. वो्...गुदगुदी हो रही है..!" रुपा ने अब एक बार तो नीचे बैठे राजू की ओर देखकर हँशते से हुवे कहा, मगर फिर वापस उसकी ओर मुँह करके खङी हो गयी
राजु भी अब दोनो हाथो से उसकी शलवार के नाङे को पकङकर उसकी गाँठ को दाँतो दे खोलने लगा, मगर इस बीच अनायास ही उसकी जीभ एक दो बार रुपा के पेट से भी छु गयी होगी की राजु को उसके पेट की नर्म मुलायम व चिकनी त्वचा का चिकना चिकना सा अहसास हुवा, तो वही अपने नँगे पेट पर राजु की गर्म गर्म जीभ के स्पर्श से रुपा के बदन मे भी झुरझुरी की लहर सी दौङ गयी।
राजु की गर्म गर्म जीभ के अपने पेट पर छुने से रुपा को जोरो की गुदगुदी सी महसूस हुई इसलिये अपने पेट को अन्दर खीँचकर..
"ईईश्श्..ओ्.ओ्.ओ्य्..क्या कर रहा है..?" ये कहते हुवे रुपा ने तुरन्त अपने सुट को छोङकर दोनो हाथो से राजु के सिर को पकङ लिया जिससे..
"क्या है जीज्जी अब खोलने तो दो..!" राजु ने अपने सिर पर से रुपा के हाथ को हटाकर उपर उसके चेहरे की ओर देखते हुवे कहा।
"व्.व्.गुदगुदी होती है..!" रुपा ने भी अब राजु की ओर देखते हुवे कहा।
"तो. अब इसमे मै क्या करु..? खोलना है तो बोलो,..?" राजु ने भी अब थोङा झुँझलाते हुवे से कहा जिससे..
"अच्छा,अच्छा ठीक है..! खोल तो, अब नही हिलुँगी..!" रुपा ने अब हँशते हुवे कहा।
"लो, इसे पकङो पहले..! राजु ने अब एक हाथ से उसके सुट को फिर से पेट पर से उठाकर रुपा को पकङाते हुवे कहा, मगर इस बीच रुपा की नजर अब राजु के पजामे की ओर गयी होगी की उसे देख वो सहम सा गयी,क्योंकि राजु के पजामे मे उसके एकदम तने लण्ड की वजह से तम्बु सा तना अलग ही नजर आ रहा था। राजु के पजामे की ओर देख रुपा भी समझ गयी थी की उसके पजामे मे ये तम्बु सा क्यो तना हुवा है इसलिये उसे अब खुद पर ही जोरो की शरम सी आई...
राजु उसे देखजर उत्तेजित हो रहा है ये जानकर रुपा को उससे अपनी शलवार का नाङा खुलवाने मे अब और भी शरम आने लगी, मगर वो कर भी क्या सकती थी..? इसलिये मजबुरन वो एक हाथ से उसके कन्धे को पकङे तो दुसरे हाथ से अपने सुट को पेट से उपर उठाकर खङी हो गयी, जिससे राजु भी एक बार फिर से दोनो हाथो से उसकी शलवार के नाङे को पकङकर दाँतो से खोलने मे लग गया..
इस बार राजु ने भी अपने हाथो की उँगलियो को उसकी शलवार मे थोङा ज्यादा ही अन्दर तक घुसाकर उसके नाङे को अच्छे से पकङा था जिससे उसकी उँगलियाँ रुपा के पेट के नीचे उसके पेडु के साथ साथ उसकी पेन्टी के किनारो तक को छु गयी थी जिससे रुपा की साँसे अब एक बार के लिये तो थम सी ही गयी, मगर वो राजु से वो अब कुछ कह नही सकी, बस चुपचाप एक हाथ से अपने सुट को तो दुसरे हाथ से राजु के कन्धे को पकङे खङी रही...
राजु भी अब दोनो हाथो से उसके नाङे को पकङे दाँतो से खोलने मे लगा रहा जिससे बार बार उसके गर्म गर्म होठ रुपा के नँगे पेट को छुने लगे तो उसके हाथो की उँगलियाँ भी कभी उसके नँगे पेट तो कभी पेट के नीचे पेडु तक को छुने लगी। राजु के पजामे मे बने तम्बु को देखने के बाद रुपा के दिल मे पहले ही हलचल सी हो रही थी जिससे वो अजीब सा महसूस कर रही थी, उपर से अब अपने नँगे पेट व चुत के इतने करीब राजु के होठो व उँगलियो की छुवन से उसके बदन मे भी अजीब ही तरँगे सी उठना शुरु हो गयी...
अपने नँगे पेट पर राजु के होठो व उँगलियों के स्पर्श से रुपा जो गुदगुदी सी महसूस कर रही थी वो अब एक रोमाँच से मे बदल गयी थी। तब तक राजु के थुक व मुँह की लार से रुपा की शलवार का नाङा भी गीला हो गया था। अब अपने नँगे पेट पर राजु के थुक व मुँह की लार से सने गीले नाङे के स्पर्श रुपा को और भी जोरो की सिँहरन सी होने लगी जिससे अपने आप ही उसकी साँसे तेजी से चलना शुरु हो गयी। तेजी से चलती साँसो की वजह रुपा का पेट भी अब जल्दी जल्दी फुलने, व पिचकने लगा तो राजु के होठ और भी ज्यादा उसके पेट को छुने लगे जिससे अनायास ही रुपा का जो हाथ राजु के कन्धे को पकङे था वो अपने आप ही राजु के सिर पर आ गया..
राजु को नही मालुम था की उसकी जीज्जी पर क्या बीत रही है। अपनी जीज्जी के गोरे चिकने पेट को देखकर व उसे छुकर वो अपने बदन मे उत्तेजना तो जरुर महसूस कर रहा था मगर वो बस उसके नाङे को ही खोलने कोशिश कर रहा था। अब रुपा की शलवार का नाङा शायद कुछ तो पहले से ही कमजोर रहा होगा और कुछ जो राजु इतनी देर से उसे खोलने की कोशिश मे जुटा था उसकी वजह से वो उसके दाँतो से कट फट गया होगा की गाँठ के पास से उसका नाङा ही टुट गया..
रुपा अभी भी एकदम जङ हुवे खङी थी इसलिये जब तक उसे अपनी शलवार का नाङा टुटने का अहसास हुवा तब तक उसकी शलवार ढीली होकर सीधे उसके कदमो मे जा गीरी.. उसने अपने सुट को पहले ही पेट तक उठा रखा था इसलिये शलवार के नीचे गीरते ही रुपा की एकदम गोरी चिकनी माँसल लम्बी लम्बी जाँघे और जाँघो के बीच एकदम कसी हुई हल्के गुलाबी से रँग की पेन्टी मे रुपा की चुत का त्रिकोणी उभार अब राजु के सामने था जिसे देख राजु वो पलके झपकना तक भुल गया...
"ओ्.ओ्.ओय.. बेशर्म .. !" रुपा अब जोर से कहते हुवे तुरन्त अपनी शलवार को उठाने लगी मगर जल्दबाजी मे शलवार को उठाने के लिये वो जैसे ही नीचे झुकी उसका सिर राजु के सिर से टकरा गया जिससे रुपा का सन्तुलन बिगङा गया और पीछे की ओर गीरने को हो गयी।
अब अपने आप को गीरने से बचाने के लिये रुपा ने राजु के सिर को पकङ लिया तो वही राजु ने भी अपनी जीज्जी को पकङने के लिये उसकी जाँघो को बाँहो मे भर लिया जिससे कुछ तो रुपा ने अपना सन्तुलन बनाने के लिये राजु के सिर को पकङकर उसे अपनी ओर खीँचा और कुछ राजु ने उसकी जाँघो को बाँहो मे भरकर उसे अपनी ओर खीँचा जिससे राजु का सिर अब रुपा की जाँघो बीच घुस सा गया और उसकी चुत की बेहद तीखी तेज व मादक गन्ध राजु के नथुनो मे भरती चली गयी..
एक तो राजु के मुँह से अपना नाङा खुलवाने के खुलवाते रुपा की चुत मे नमी सी आई हुई थी, उपर वो रासते मे पहले भी दो तीन बार राजु के लण्ड को देखकर उत्तेजित हो चुकी थी जिससे उसकी चुत मे पानी तो भर आया था मगर वो उसकी चुत के होठो पर ही आकर सुख गया था, जिसने उसकी चुत की गन्ध को और भी तीखा बना दिया था। वैसे भी रुपा की अभी अभी हाल ही मे महावारी खत्म हुई थी, और महावारी के बाद चुत से निकलने वाली गन्ध वैसे ही और ज्यादा मादक हो जाती है.. इसलिये रुपा की चुत की गन्ध उसकी पेन्टी के उपर से ही राजु के नथुनो मे भरती चली गयी थी...
अब जैसा हाल राजु का था वैसा रुपा भी महसूस कर रही क्योंकि वो पहले ही अपने नँगे पेट पर राजु के हाथो व होठो की छुवन से उत्तेजना सी महसूस कर रही थी, उपर से अब अपनी चुत पर राजु की गर्म गर्म साँसो को महसूस करके एक बार तो वो भी सहम सा ही गयी जिससे कुछ देर तो उसे समझ ही नही आया की वो अब क्या करे..? राजु भी अपनी जीज्जी की पेन्टी से निकल रही उस गन्ध से मानो जैसे मदहोश सा ही हो गया था इसलिये रुपा के उसे हटाने पर भी कुछ देर तो वो ऐसे ही अपना मुँह उसकी जाँघो बीच घुसाये उसे पकङे रहा... और जब तक रुपा ने उसे अपनी जाँघो पर से हटाकर अपनी शलवार पहना तब तक उसकी चुत की गन्ध राजु के नाक से होकर उसके दिमाग तक चढती चली गयी...