Bahut hi maje walla update diya bhai...aag lagwa kar diya bhuja doya abhibsek kaise lagegi
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गयाअभी तक आपने पढा की की अपनी माँ के कहने पर रुपा राहुल के साथ लिँगा बाबा पर दीया जलाकर टोटके करने पहाङी पर पहुँच गयी थी, जहाँ दोनो को एक दुसरे के सामने नँगे होकर नहाने शरम तो आ रही थी मगर फिर दोनो नहा लिये थे जिससे दोनो की काफी हद तक शरम खुल सा गयी थी इसलिये रुपा अब राजु के साथ दीया जलाने के लिये उसे पास के ही एक कमरे मे ले आई, अब उसके आगे:-
कमरे मे बिल्कुल अन्धेरा था इसलिये...
रुपा: देख तो माँ ने थैले टाॅर्च रखी होगी..!
राजु ने भी अब थैले से ढुँढकर तुरन्त टाॅर्च जला ली। टाॅर्च के जलते ही पुरे कमरे मे उजाल हो गया था। वैसे तो उस कमरे की चारद्वारी पक्की थी मगर उसकी फर्स कच्ची ही थी। तब तक रुपा को कोने मे पङी एक पुरानी झाङु सी दिखाई दे गयी जिसे उठाकर उसने पहले तो पुरे कमरे मे झाङु लगाकर फर्स की सफाई की, फिर राजु से थैला लेकर उसमे से चद्दर निकालकर कमरे के बीचो बीच नीचे फर्श पर बिछाकर बैठ गयी। राजु की नजर अभी भी रुपा के नँगे बदन पर ही जमी हुई थी, इसलिये वो भी अब उसके पास जाकर उसकी बगल मे ही बैठ गया।
चद्दर पर बैठकर रुपा ने अब एक एक कर थैले से टोटके के सारे सामान को निकालकर पहले तो थोङी सी रुई लेकर उसकी एक बत्ती बनाई, फिर उसे दीये मे रख लिया। लीला ने अलग से एक छोटी बोतल मे तेल भी डालकर दिया था जिससे रुपा ने दीये मे थोङा सा तेल डालकर उसके चारो ओर टोटके वाले सारे सामान को सजाकर रख दिया और...
"चल ले अब दीये को जला दे...! रुपा ने माचिस राजु को देते हुवे कहा और खुद एक हाथ मे उसके हाथ को कलाई से पकङ लिया। राजु ने भी अब माचिस से एक तिल्ली को निकालकर दीये लो जला दिया जिससे रुपा उसके आगे हाथ जोङकर बैठ गयी..
राजु की नजर अभी भी रुपा के नँगे बदन पर ही थी इसलिये वैसे ही बैठे उसे देखता रहा, जिससे रुपा की नजर अब राजु की ओर गयी तो उसने हाथ जोङे जोङे ही उसकी बगल मे कोहनी सी मारकर दीये की ओर हाथ जोङने का इशारा सा किया। दीये के जलने से कमरे मे पीले रँग का उजाला हो गया था इसलिये राजु ने भी अब टाॅर्च को बन्द करके रख दिया और दीये की ओर हाथ जोङकर बैठ गया, मगर उसकी नजरे रुपा के नँगे बदन पर बनी रही।
टोटके के लिये रुपा को अपनी चुत पर अब दीये के ताप के साथ राजु की आँखो की सेक लगानी थी, या फिर ये कहे की उसकी माँ लीला के कहे अनुसार उसे राजु को अपनी नँगी चुत दिखानी थी, ताकी उसके पीछे जो जीन्न पङा हुवा था वो चिढकर उसे छोङकर चला जाये, इसलिये वो अब कुछ देर तो दीये के आगे हाथ जोङे बैठी रही, फिर राजु के बगल से उठकर उसके ठीक सामने दीये के दुसरी ओर जाकर अपने पँजो के बल उकडु (जैसे पिसाब करने के लिये बैठती है) होकर बैठ गयी और टोटके वाले सामान को हिलाकर थोङा इधर उधर रखने लगी...
टोटके वाले सामान को इधर उधर हिलाकर रुपा कुछ कर नही रही थी। बस ऐसे ही जानबुझकर कर उसे हिला ही रही थी, क्योंकि इस तरह राजु के सामने बैठकर सीधे सीधे तो उसे राजु को अपनी चुत दिखाने मे शरम आ रही थी इसलिये टोटके वाले सामान को इधर उधर करके वो बस दिखावा कर रही थी मानो जैसे वो उस सामान को सही से रख रही हो।
रुपा के ऐसे अब अपने सामने आकर बैठ जाने से राजु की नजरे भी उसकी गोरी चिकनी नँगी जाँघो पर ही जम गयी थी। उत्सुकता वश ये उम्मीद लगाये की उसकी जीज्जी की जाँघे अगर थोङा खुल जाये तो उसे इससे कुछ और ज्यादा देखने को मिल जायेगा इसलिये टकटकी लगाये वो बस रुपा की जाँघो की ओर ही देख रहा था। रुपा भी चोर निगाहो से राजु की ओर ही देख रही थी। उसके चेहरे का रँग उङा उङा सा अलग ही नजर आ रहा था तो उसकी आँखो मे अपनी चुत को देखने की लालसा रुपा को भी साफ नजर आ रही थी।
उसके उसे ऐसे देखने से रुपा को भी शरम तो आ रही थी मगर ये टोटका तो उसे पुरा करना ही इसलिये टोटके वाले सामान को इधर उधर करते करते उसने अब घुटनो को खोलकर धीरे से अपनी जाँघो को भी फैला दिया, राजु की नजरे पहले ही उसकी जाँघो पर जमी हुई थी इसलिये रुपा के अपनी जाँघो को फैलाते ही राजु की साँसे मानो जैसे थम सी गयी...
रुपा उससे मुश्किल से दो कदम के फासले पर बैठी थी जिससे पहले ही उसकी नजर रुपा की जाँघो पर जमी हुई थी उपर से अब जैसे ही उसने घुटनो को खोलकर अपनी जाँघो को फैलाया, राजु को उसकी चुत एकदम करीब से और बिल्कुल साफ नजर आई जिसे देख उसकी आँखो की पुतलियाँ फैलकर चौङी हो गयी तो वही उसकी नजरे बस उसकी चुत पर ही जमकर रह गयी..
पिछली रात पिशाब करते समय अन्धेरे के कारण वो उसकी चुत को अच्छे से नही देख पाया था, मगर अब रुपा के ठीक अपने सामने इस तरह बैठ जाने से राजु को उसकी चुत व चुत की फाँको के बीच का गुलाबी भाग तक बिल्कुल साफ नजर आ रहा था। रात के अन्धेरे मे रुपा के उसके लण्ड पर पिशाब करते समय उसे रुपा की चुत की जगह बस जाँघो के जोङ पर एक उभार और उस पर लगा एक छोटा सा चीरा ही नजर आया था मगर अब उसकी चुत थोङी बङी, तो उसकी खुली हुई फाँके अलग ही नजर आ रही थी।
वैसे तो रुपा की चुत जाँघो के बीच लगा मानो बस एक छोटा सा चिरा भर ही थी, उपर से पिशाब करते समय राजु बस चुत का बाहरी भाग ही देख पाया था, मगर अब रुपा के पँजो के बल बैठकर अपनी जाँघो को फैला लेने से उसकी चुत की फाँके खुल गयी थी जिससे राजु को उसकी चुत की फाँको के बीच के गुलाबी भाग से लेकर, गहरे लाल रँग का उसकी चुत का प्रवेशद्वार व प्रवेशद्वार मे भरा सफेद सफेद सा पानी हल्के हल्के रीशता साफ नजर आ रहा था।
उसने तस्वीरो मे जिन लङकियो की चुत को देखा था उसके मुकाबले अब अपनी जिज्जी की चुत ज्यादा अच्छी लग रही थी, क्योंकि रुपा की गोरी चिकनी माँसल जाँघो के बीच उसकी फुली हुई छोटी सी चुत व बिल्कुल फुलो की कलियो के तरह बस हल्का सा फैली हुई चुत की फाँके बेहद ही कमसिन लग रही थी जिसकी फाँको के बाहरी ओर तो हल्के हल्के काके बाल दिखाई पङ रहे थे मगर उनके अन्दर का गुलाबी भाग बेहद ही नर्म नाजुक मालुम पङ रहा था।
राजु पहले ही उत्तेजना से भरा पङा था जिससे उसका लण्ड एकदम तना खङा था, उपर से बुढे वैद की दवा का भी अब उस पर असर हो गया था इसलिये अपनी जीज्जी की नँगी चुत को ठीक अपने सामने देख उसके लण्ड का सुपाङा फुलकर अब और भी मोटा हो गया तो वो अब हल्के हल्के झटके से भी खाने लगा..
लाज शरम के कारण रुपा सीधे सीधे तो राजु के लण्ड की ओर नही देख रही थी, मगर चोर निगाहो से बार बार उसकी नजरे राजु के लण्ड की ओर चली जा रही थी, क्योंकि राजु भी अपने पँजो के बल बैठा हुवा था जिससे उसकी दोनो जाँघो के बीच उसका लण्ड एकदम उसके पेट के समान्तर सीधा खङा अलग ही नजर आ था। पिशाब करते समय अन्धेरे मे रुपा भी राजु के लण्ड को अच्छे नही देख पाई थी, मगर अब अपने ठीक सामने राजु के एकदम तने खङे लण्ड को देख रुपा की नजरे बार बार अपने आप की उस पर चली जा रही थी, क्योंकि उत्तेजना के मारे वो हल्के हल्के झटके सा खा रहा था तो उसका सुपाङा फुलकर एकदम टमाटर के जैसे लाल हो रखा था जिसे देख देख रुपा को भी अपनी चुत मे अब चीँटियाँ सी काटती महसुस हो रही थी...
इस तरह अपनी चुत को फैलाये राजु के सामने बैठकर रुपा को शरम तो आ रही थी मगर उसे अपनी नँगी चुत दिखाकर कही ना कही वो भी एक रोमांच सा महसूस कर रही थी जो की उसे उत्तेजित सा कर रहा था। दिन भर से ही वो राजु की हरकतो व उसके लण्ड के बारे मे सोच सोचकर शरम हया के साथ साथ पहले ही रोमाँच व उत्तेजना सी महसूस कर रही थी जिससे दिन भर से ही उसकी चुत का पानी सुखा नही था, उपर से अब उस पर भी बुढे वैद की दवा का असर हो गया था इसलिये राजु के लण्ड को झटके खाता देख देख उसे भी अपनी चुत मे जोरो की सुरसुरी सी महसूस होने लगी थी जिससे उसकी चुत से भी अब चिपचिपा पानी सा बहना शुरु हो गया था।
रुपा भी ये अच्छे से जान रही थी की राजु का लण्ड इतनी जोरो से क्यो झटके खा रहा है, क्योंकि जिस तरह भुखी व एकदम खा जाने वाली नजरो से वो उसकी चुत को देख रहा था उससे साफ पता चल रहा था की उसका लण्ड उसकी चुत को देखने की उत्तेजना के कारण झटके मार रहा है। दिन भर से ही रुपा उसकी नजरो मे अपने लिये एक उत्सुकता को देख रही थी, जिससे जाहीर था की उसने अभी तक किसी भी लङकी को नँगी नही देखा था, उपर से वो अब जिस तरह बिना पलके झपकाये आँखे फाङे उसकी चुत को देखे जा रहा था उससे साफ पता चल रहा था की अपने जीवन मे वो पहली बार चुत देख रहा है जिससे रुपा को एक अजीब ही रोमाँच व मझा सा आ रहा था।
उसके इस तरह रुपा की चुत को देखने से रुपा को शरम तो आ रही थी, मगर अपनी चुत के लिये उसके लण्ड को झटके खाते देख, उसे एक तो अजीब ही रोमाँच व उत्तेजना का अहसास करा रहा था, उपर से अब धीरे धीरे उस पर बुडे वैद की दवा का असर बढ रहा थे जो की उसकी चुत मे अजीब ही कोलाहल सा मचा रहा था, इसलिये राजु के लण्ड को अपनी चुत के लिये झटके खाते देख रुपा को अपनी चुत मे इतनी जोरो की बेचैनी सी महसूस होने लगी की अपने आप ही उसकी चुत से रिश रिशकर चाशनी के जैसे लम्बी लम्बी लार सी नीचे टपकना शुरु हो गयी...
उत्तेजना के मारे राजु का पहले ही बुरा हाल था अब अपनी जीज्जी की चुत से इस तरह चाशनी के जैसे चिपचिपे पानी लम्बी लम्बी लार सी टपकते देख उसका लण्ड और भी जोरो से झटके खाने लगा। उसे नही मालुम था की उसकी जीज्जी की चुत से जो लम्बी लम्बी चाशनी के जैसे चिपचिपी लार सी टपक रही है वो क्या है, और क्यो टपक रही है। अपने जीवन मे वो नँगी चुत ही पहली बार देख रहा था तो उसे ये मालुम भी कहा से होता, मगर अपनी जिज्जी की चुत को इस तरह लार सी छोङते देख उसका लण्ड अब और भी जोरो से झटके खाने लगा जिससे उसके लण्ड से भी चिपचिपा पानी सा रीश रीश कर उसके लण्ड के सहारे उसके टट्टो तक तक बहने लग गया...
रुपा को मालुम था की जब तक दीया जलेगा तब तक उसे राजु के समाने नँगा बैठे रहना है इसलिये उसने दीये मे ज्यादा तेल नही डाला था। बस बत्ती को भिगोने भर के लिये ही उसमे तेल डाला था इसलिये कुछ देर बाद ही दीये का तेल खत्म हो जाने से खाली बत्ती के जलते ही दीया अपने आप बुझ गया जिससे अब राजु को अपनी जीज्जी की चुत को देखने का जो नजारा मिल रहा था वो अब बन्द हो गया, तो ये अपडेट भी यही खत्म हो गया। अगर आपके चुत लण्ड ने भी पानी छोङ दिया हो तो कृप्या अब कोमेन्टस मे बताये किस किस के चुत लण्ड ने कितना कितना पानी छोङा...
धन्यवाद।
Shaandar Mast Hot Kamuk Updateअभी तक आपने पढा की की अपनी माँ के कहने पर रुपा राहुल के साथ लिँगा बाबा पर दीया जलाकर टोटके करने पहाङी पर पहुँच गयी थी, जहाँ दोनो को एक दुसरे के सामने नँगे होकर नहाने शरम तो आ रही थी मगर फिर दोनो नहा लिये थे जिससे दोनो की काफी हद तक शरम खुल सा गयी थी इसलिये रुपा अब राजु के साथ दीया जलाने के लिये उसे पास के ही एक कमरे मे ले आई, अब उसके आगे:-
कमरे मे बिल्कुल अन्धेरा था इसलिये...
रुपा: देख तो माँ ने थैले टाॅर्च रखी होगी..!
राजु ने भी अब थैले से ढुँढकर तुरन्त टाॅर्च जला ली। टाॅर्च के जलते ही पुरे कमरे मे उजाल हो गया था। वैसे तो उस कमरे की चारद्वारी पक्की थी मगर उसकी फर्स कच्ची ही थी। तब तक रुपा को कोने मे पङी एक पुरानी झाङु सी दिखाई दे गयी जिसे उठाकर उसने पहले तो पुरे कमरे मे झाङु लगाकर फर्स की सफाई की, फिर राजु से थैला लेकर उसमे से चद्दर निकालकर कमरे के बीचो बीच नीचे फर्श पर बिछाकर बैठ गयी। राजु की नजर अभी भी रुपा के नँगे बदन पर ही जमी हुई थी, इसलिये वो भी अब उसके पास जाकर उसकी बगल मे ही बैठ गया।
चद्दर पर बैठकर रुपा ने अब एक एक कर थैले से टोटके के सारे सामान को निकालकर पहले तो थोङी सी रुई लेकर उसकी एक बत्ती बनाई, फिर उसे दीये मे रख लिया। लीला ने अलग से एक छोटी बोतल मे तेल भी डालकर दिया था जिससे रुपा ने दीये मे थोङा सा तेल डालकर उसके चारो ओर टोटके वाले सारे सामान को सजाकर रख दिया और...
"चल ले अब दीये को जला दे...! रुपा ने माचिस राजु को देते हुवे कहा और खुद एक हाथ मे उसके हाथ को कलाई से पकङ लिया। राजु ने भी अब माचिस से एक तिल्ली को निकालकर दीये लो जला दिया जिससे रुपा उसके आगे हाथ जोङकर बैठ गयी..
राजु की नजर अभी भी रुपा के नँगे बदन पर ही थी इसलिये वैसे ही बैठे उसे देखता रहा, जिससे रुपा की नजर अब राजु की ओर गयी तो उसने हाथ जोङे जोङे ही उसकी बगल मे कोहनी सी मारकर दीये की ओर हाथ जोङने का इशारा सा किया। दीये के जलने से कमरे मे पीले रँग का उजाला हो गया था इसलिये राजु ने भी अब टाॅर्च को बन्द करके रख दिया और दीये की ओर हाथ जोङकर बैठ गया, मगर उसकी नजरे रुपा के नँगे बदन पर बनी रही।
टोटके के लिये रुपा को अपनी चुत पर अब दीये के ताप के साथ राजु की आँखो की सेक लगानी थी, या फिर ये कहे की उसकी माँ लीला के कहे अनुसार उसे राजु को अपनी नँगी चुत दिखानी थी, ताकी उसके पीछे जो जीन्न पङा हुवा था वो चिढकर उसे छोङकर चला जाये, इसलिये वो अब कुछ देर तो दीये के आगे हाथ जोङे बैठी रही, फिर राजु के बगल से उठकर उसके ठीक सामने दीये के दुसरी ओर जाकर अपने पँजो के बल उकडु (जैसे पिसाब करने के लिये बैठती है) होकर बैठ गयी और टोटके वाले सामान को हिलाकर थोङा इधर उधर रखने लगी...
टोटके वाले सामान को इधर उधर हिलाकर रुपा कुछ कर नही रही थी। बस ऐसे ही जानबुझकर कर उसे हिला ही रही थी, क्योंकि इस तरह राजु के सामने बैठकर सीधे सीधे तो उसे राजु को अपनी चुत दिखाने मे शरम आ रही थी इसलिये टोटके वाले सामान को इधर उधर करके वो बस दिखावा कर रही थी मानो जैसे वो उस सामान को सही से रख रही हो।
रुपा के ऐसे अब अपने सामने आकर बैठ जाने से राजु की नजरे भी उसकी गोरी चिकनी नँगी जाँघो पर ही जम गयी थी। उत्सुकता वश ये उम्मीद लगाये की उसकी जीज्जी की जाँघे अगर थोङा खुल जाये तो उसे इससे कुछ और ज्यादा देखने को मिल जायेगा इसलिये टकटकी लगाये वो बस रुपा की जाँघो की ओर ही देख रहा था। रुपा भी चोर निगाहो से राजु की ओर ही देख रही थी। उसके चेहरे का रँग उङा उङा सा अलग ही नजर आ रहा था तो उसकी आँखो मे अपनी चुत को देखने की लालसा रुपा को भी साफ नजर आ रही थी।
उसके उसे ऐसे देखने से रुपा को भी शरम तो आ रही थी मगर ये टोटका तो उसे पुरा करना ही इसलिये टोटके वाले सामान को इधर उधर करते करते उसने अब घुटनो को खोलकर धीरे से अपनी जाँघो को भी फैला दिया, राजु की नजरे पहले ही उसकी जाँघो पर जमी हुई थी इसलिये रुपा के अपनी जाँघो को फैलाते ही राजु की साँसे मानो जैसे थम सी गयी...
रुपा उससे मुश्किल से दो कदम के फासले पर बैठी थी जिससे पहले ही उसकी नजर रुपा की जाँघो पर जमी हुई थी उपर से अब जैसे ही उसने घुटनो को खोलकर अपनी जाँघो को फैलाया, राजु को उसकी चुत एकदम करीब से और बिल्कुल साफ नजर आई जिसे देख उसकी आँखो की पुतलियाँ फैलकर चौङी हो गयी तो वही उसकी नजरे बस उसकी चुत पर ही जमकर रह गयी..
पिछली रात पिशाब करते समय अन्धेरे के कारण वो उसकी चुत को अच्छे से नही देख पाया था, मगर अब रुपा के ठीक अपने सामने इस तरह बैठ जाने से राजु को उसकी चुत व चुत की फाँको के बीच का गुलाबी भाग तक बिल्कुल साफ नजर आ रहा था। रात के अन्धेरे मे रुपा के उसके लण्ड पर पिशाब करते समय उसे रुपा की चुत की जगह बस जाँघो के जोङ पर एक उभार और उस पर लगा एक छोटा सा चीरा ही नजर आया था मगर अब उसकी चुत थोङी बङी, तो उसकी खुली हुई फाँके अलग ही नजर आ रही थी।
वैसे तो रुपा की चुत जाँघो के बीच लगा मानो बस एक छोटा सा चिरा भर ही थी, उपर से पिशाब करते समय राजु बस चुत का बाहरी भाग ही देख पाया था, मगर अब रुपा के पँजो के बल बैठकर अपनी जाँघो को फैला लेने से उसकी चुत की फाँके खुल गयी थी जिससे राजु को उसकी चुत की फाँको के बीच के गुलाबी भाग से लेकर, गहरे लाल रँग का उसकी चुत का प्रवेशद्वार व प्रवेशद्वार मे भरा सफेद सफेद सा पानी हल्के हल्के रीशता साफ नजर आ रहा था।
उसने तस्वीरो मे जिन लङकियो की चुत को देखा था उसके मुकाबले अब अपनी जिज्जी की चुत ज्यादा अच्छी लग रही थी, क्योंकि रुपा की गोरी चिकनी माँसल जाँघो के बीच उसकी फुली हुई छोटी सी चुत व बिल्कुल फुलो की कलियो के तरह बस हल्का सा फैली हुई चुत की फाँके बेहद ही कमसिन लग रही थी जिसकी फाँको के बाहरी ओर तो हल्के हल्के काके बाल दिखाई पङ रहे थे मगर उनके अन्दर का गुलाबी भाग बेहद ही नर्म नाजुक मालुम पङ रहा था।
राजु पहले ही उत्तेजना से भरा पङा था जिससे उसका लण्ड एकदम तना खङा था, उपर से बुढे वैद की दवा का भी अब उस पर असर हो गया था इसलिये अपनी जीज्जी की नँगी चुत को ठीक अपने सामने देख उसके लण्ड का सुपाङा फुलकर अब और भी मोटा हो गया तो वो अब हल्के हल्के झटके से भी खाने लगा..
लाज शरम के कारण रुपा सीधे सीधे तो राजु के लण्ड की ओर नही देख रही थी, मगर चोर निगाहो से बार बार उसकी नजरे राजु के लण्ड की ओर चली जा रही थी, क्योंकि राजु भी अपने पँजो के बल बैठा हुवा था जिससे उसकी दोनो जाँघो के बीच उसका लण्ड एकदम उसके पेट के समान्तर सीधा खङा अलग ही नजर आ था। पिशाब करते समय अन्धेरे मे रुपा भी राजु के लण्ड को अच्छे नही देख पाई थी, मगर अब अपने ठीक सामने राजु के एकदम तने खङे लण्ड को देख रुपा की नजरे बार बार अपने आप की उस पर चली जा रही थी, क्योंकि उत्तेजना के मारे वो हल्के हल्के झटके सा खा रहा था तो उसका सुपाङा फुलकर एकदम टमाटर के जैसे लाल हो रखा था जिसे देख देख रुपा को भी अपनी चुत मे अब चीँटियाँ सी काटती महसुस हो रही थी...
इस तरह अपनी चुत को फैलाये राजु के सामने बैठकर रुपा को शरम तो आ रही थी मगर उसे अपनी नँगी चुत दिखाकर कही ना कही वो भी एक रोमांच सा महसूस कर रही थी जो की उसे उत्तेजित सा कर रहा था। दिन भर से ही वो राजु की हरकतो व उसके लण्ड के बारे मे सोच सोचकर शरम हया के साथ साथ पहले ही रोमाँच व उत्तेजना सी महसूस कर रही थी जिससे दिन भर से ही उसकी चुत का पानी सुखा नही था, उपर से अब उस पर भी बुढे वैद की दवा का असर हो गया था इसलिये राजु के लण्ड को झटके खाता देख देख उसे भी अपनी चुत मे जोरो की सुरसुरी सी महसूस होने लगी थी जिससे उसकी चुत से भी अब चिपचिपा पानी सा बहना शुरु हो गया था।
रुपा भी ये अच्छे से जान रही थी की राजु का लण्ड इतनी जोरो से क्यो झटके खा रहा है, क्योंकि जिस तरह भुखी व एकदम खा जाने वाली नजरो से वो उसकी चुत को देख रहा था उससे साफ पता चल रहा था की उसका लण्ड उसकी चुत को देखने की उत्तेजना के कारण झटके मार रहा है। दिन भर से ही रुपा उसकी नजरो मे अपने लिये एक उत्सुकता को देख रही थी, जिससे जाहीर था की उसने अभी तक किसी भी लङकी को नँगी नही देखा था, उपर से वो अब जिस तरह बिना पलके झपकाये आँखे फाङे उसकी चुत को देखे जा रहा था उससे साफ पता चल रहा था की अपने जीवन मे वो पहली बार चुत देख रहा है जिससे रुपा को एक अजीब ही रोमाँच व मझा सा आ रहा था।
उसके इस तरह रुपा की चुत को देखने से रुपा को शरम तो आ रही थी, मगर अपनी चुत के लिये उसके लण्ड को झटके खाते देख, उसे एक तो अजीब ही रोमाँच व उत्तेजना का अहसास करा रहा था, उपर से अब धीरे धीरे उस पर बुडे वैद की दवा का असर बढ रहा थे जो की उसकी चुत मे अजीब ही कोलाहल सा मचा रहा था, इसलिये राजु के लण्ड को अपनी चुत के लिये झटके खाते देख रुपा को अपनी चुत मे इतनी जोरो की बेचैनी सी महसूस होने लगी की अपने आप ही उसकी चुत से रिश रिशकर चाशनी के जैसे लम्बी लम्बी लार सी नीचे टपकना शुरु हो गयी...
उत्तेजना के मारे राजु का पहले ही बुरा हाल था अब अपनी जीज्जी की चुत से इस तरह चाशनी के जैसे चिपचिपे पानी लम्बी लम्बी लार सी टपकते देख उसका लण्ड और भी जोरो से झटके खाने लगा। उसे नही मालुम था की उसकी जीज्जी की चुत से जो लम्बी लम्बी चाशनी के जैसे चिपचिपी लार सी टपक रही है वो क्या है, और क्यो टपक रही है। अपने जीवन मे वो नँगी चुत ही पहली बार देख रहा था तो उसे ये मालुम भी कहा से होता, मगर अपनी जिज्जी की चुत को इस तरह लार सी छोङते देख उसका लण्ड अब और भी जोरो से झटके खाने लगा जिससे उसके लण्ड से भी चिपचिपा पानी सा रीश रीश कर उसके लण्ड के सहारे उसके टट्टो तक तक बहने लग गया...
रुपा को मालुम था की जब तक दीया जलेगा तब तक उसे राजु के समाने नँगा बैठे रहना है इसलिये उसने दीये मे ज्यादा तेल नही डाला था। बस बत्ती को भिगोने भर के लिये ही उसमे तेल डाला था इसलिये कुछ देर बाद ही दीये का तेल खत्म हो जाने से खाली बत्ती के जलते ही दीया अपने आप बुझ गया जिससे अब राजु को अपनी जीज्जी की चुत को देखने का जो नजारा मिल रहा था वो अब बन्द हो गया, तो ये अपडेट भी यही खत्म हो गया। अगर आपके चुत लण्ड ने भी पानी छोङ दिया हो तो कृप्या अब कोमेन्टस मे बताये किस किस के चुत लण्ड ने कितना कितना पानी छोङा...
धन्यवाद।
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कमरे मे बिल्कुल अन्धेरा था इसलिये...
रुपा: देख तो माँ ने थैले टाॅर्च रखी होगी..!
राजु ने भी अब थैले से ढुँढकर तुरन्त टाॅर्च जला ली। टाॅर्च के जलते ही पुरे कमरे मे उजाल हो गया था। वैसे तो उस कमरे की चारद्वारी पक्की थी मगर उसकी फर्स कच्ची ही थी। तब तक रुपा को कोने मे पङी एक पुरानी झाङु सी दिखाई दे गयी जिसे उठाकर उसने पहले तो पुरे कमरे मे झाङु लगाकर फर्स की सफाई की, फिर राजु से थैला लेकर उसमे से चद्दर निकालकर कमरे के बीचो बीच नीचे फर्श पर बिछाकर बैठ गयी। राजु की नजर अभी भी रुपा के नँगे बदन पर ही जमी हुई थी, इसलिये वो भी अब उसके पास जाकर उसकी बगल मे ही बैठ गया।
चद्दर पर बैठकर रुपा ने अब एक एक कर थैले से टोटके के सारे सामान को निकालकर पहले तो थोङी सी रुई लेकर उसकी एक बत्ती बनाई, फिर उसे दीये मे रख लिया। लीला ने अलग से एक छोटी बोतल मे तेल भी डालकर दिया था जिससे रुपा ने दीये मे थोङा सा तेल डालकर उसके चारो ओर टोटके वाले सारे सामान को सजाकर रख दिया और...
"चल ले अब दीये को जला दे...! रुपा ने माचिस राजु को देते हुवे कहा और खुद एक हाथ मे उसके हाथ को कलाई से पकङ लिया। राजु ने भी अब माचिस से एक तिल्ली को निकालकर दीये लो जला दिया जिससे रुपा उसके आगे हाथ जोङकर बैठ गयी..
राजु की नजर अभी भी रुपा के नँगे बदन पर ही थी इसलिये वैसे ही बैठे उसे देखता रहा, जिससे रुपा की नजर अब राजु की ओर गयी तो उसने हाथ जोङे जोङे ही उसकी बगल मे कोहनी सी मारकर दीये की ओर हाथ जोङने का इशारा सा किया। दीये के जलने से कमरे मे पीले रँग का उजाला हो गया था इसलिये राजु ने भी अब टाॅर्च को बन्द करके रख दिया और दीये की ओर हाथ जोङकर बैठ गया, मगर उसकी नजरे रुपा के नँगे बदन पर बनी रही।
टोटके के लिये रुपा को अपनी चुत पर अब दीये के ताप के साथ राजु की आँखो की सेक लगानी थी, या फिर ये कहे की उसकी माँ लीला के कहे अनुसार उसे राजु को अपनी नँगी चुत दिखानी थी, ताकी उसके पीछे जो जीन्न पङा हुवा था वो चिढकर उसे छोङकर चला जाये, इसलिये वो अब कुछ देर तो दीये के आगे हाथ जोङे बैठी रही, फिर राजु के बगल से उठकर उसके ठीक सामने दीये के दुसरी ओर जाकर अपने पँजो के बल उकडु (जैसे पिसाब करने के लिये बैठती है) होकर बैठ गयी और टोटके वाले सामान को हिलाकर थोङा इधर उधर रखने लगी...
टोटके वाले सामान को इधर उधर हिलाकर रुपा कुछ कर नही रही थी। बस ऐसे ही जानबुझकर कर उसे हिला ही रही थी, क्योंकि इस तरह राजु के सामने बैठकर सीधे सीधे तो उसे राजु को अपनी चुत दिखाने मे शरम आ रही थी इसलिये टोटके वाले सामान को इधर उधर करके वो बस दिखावा कर रही थी मानो जैसे वो उस सामान को सही से रख रही हो।
रुपा के ऐसे अब अपने सामने आकर बैठ जाने से राजु की नजरे भी उसकी गोरी चिकनी नँगी जाँघो पर ही जम गयी थी। उत्सुकता वश ये उम्मीद लगाये की उसकी जीज्जी की जाँघे अगर थोङा खुल जाये तो उसे इससे कुछ और ज्यादा देखने को मिल जायेगा इसलिये टकटकी लगाये वो बस रुपा की जाँघो की ओर ही देख रहा था। रुपा भी चोर निगाहो से राजु की ओर ही देख रही थी। उसके चेहरे का रँग उङा उङा सा अलग ही नजर आ रहा था तो उसकी आँखो मे अपनी चुत को देखने की लालसा रुपा को भी साफ नजर आ रही थी।
उसके उसे ऐसे देखने से रुपा को भी शरम तो आ रही थी मगर ये टोटका तो उसे पुरा करना ही इसलिये टोटके वाले सामान को इधर उधर करते करते उसने अब घुटनो को खोलकर धीरे से अपनी जाँघो को भी फैला दिया, राजु की नजरे पहले ही उसकी जाँघो पर जमी हुई थी इसलिये रुपा के अपनी जाँघो को फैलाते ही राजु की साँसे मानो जैसे थम सी गयी...
रुपा उससे मुश्किल से दो कदम के फासले पर बैठी थी जिससे पहले ही उसकी नजर रुपा की जाँघो पर जमी हुई थी उपर से अब जैसे ही उसने घुटनो को खोलकर अपनी जाँघो को फैलाया, राजु को उसकी चुत एकदम करीब से और बिल्कुल साफ नजर आई जिसे देख उसकी आँखो की पुतलियाँ फैलकर चौङी हो गयी तो वही उसकी नजरे बस उसकी चुत पर ही जमकर रह गयी..
पिछली रात पिशाब करते समय अन्धेरे के कारण वो उसकी चुत को अच्छे से नही देख पाया था, मगर अब रुपा के ठीक अपने सामने इस तरह बैठ जाने से राजु को उसकी चुत व चुत की फाँको के बीच का गुलाबी भाग तक बिल्कुल साफ नजर आ रहा था। रात के अन्धेरे मे रुपा के उसके लण्ड पर पिशाब करते समय उसे रुपा की चुत की जगह बस जाँघो के जोङ पर एक उभार और उस पर लगा एक छोटा सा चीरा ही नजर आया था मगर अब उसकी चुत थोङी बङी, तो उसकी खुली हुई फाँके अलग ही नजर आ रही थी।
वैसे तो रुपा की चुत जाँघो के बीच लगा मानो बस एक छोटा सा चिरा भर ही थी, उपर से पिशाब करते समय राजु बस चुत का बाहरी भाग ही देख पाया था, मगर अब रुपा के पँजो के बल बैठकर अपनी जाँघो को फैला लेने से उसकी चुत की फाँके खुल गयी थी जिससे राजु को उसकी चुत की फाँको के बीच के गुलाबी भाग से लेकर, गहरे लाल रँग का उसकी चुत का प्रवेशद्वार व प्रवेशद्वार मे भरा सफेद सफेद सा पानी हल्के हल्के रीशता साफ नजर आ रहा था।
उसने तस्वीरो मे जिन लङकियो की चुत को देखा था उसके मुकाबले अब अपनी जिज्जी की चुत ज्यादा अच्छी लग रही थी, क्योंकि रुपा की गोरी चिकनी माँसल जाँघो के बीच उसकी फुली हुई छोटी सी चुत व बिल्कुल फुलो की कलियो के तरह बस हल्का सा फैली हुई चुत की फाँके बेहद ही कमसिन लग रही थी जिसकी फाँको के बाहरी ओर तो हल्के हल्के काके बाल दिखाई पङ रहे थे मगर उनके अन्दर का गुलाबी भाग बेहद ही नर्म नाजुक मालुम पङ रहा था।
राजु पहले ही उत्तेजना से भरा पङा था जिससे उसका लण्ड एकदम तना खङा था, उपर से बुढे वैद की दवा का भी अब उस पर असर हो गया था इसलिये अपनी जीज्जी की नँगी चुत को ठीक अपने सामने देख उसके लण्ड का सुपाङा फुलकर अब और भी मोटा हो गया तो वो अब हल्के हल्के झटके से भी खाने लगा..
लाज शरम के कारण रुपा सीधे सीधे तो राजु के लण्ड की ओर नही देख रही थी, मगर चोर निगाहो से बार बार उसकी नजरे राजु के लण्ड की ओर चली जा रही थी, क्योंकि राजु भी अपने पँजो के बल बैठा हुवा था जिससे उसकी दोनो जाँघो के बीच उसका लण्ड एकदम उसके पेट के समान्तर सीधा खङा अलग ही नजर आ था। पिशाब करते समय अन्धेरे मे रुपा भी राजु के लण्ड को अच्छे नही देख पाई थी, मगर अब अपने ठीक सामने राजु के एकदम तने खङे लण्ड को देख रुपा की नजरे बार बार अपने आप की उस पर चली जा रही थी, क्योंकि उत्तेजना के मारे वो हल्के हल्के झटके सा खा रहा था तो उसका सुपाङा फुलकर एकदम टमाटर के जैसे लाल हो रखा था जिसे देख देख रुपा को भी अपनी चुत मे अब चीँटियाँ सी काटती महसुस हो रही थी...
इस तरह अपनी चुत को फैलाये राजु के सामने बैठकर रुपा को शरम तो आ रही थी मगर उसे अपनी नँगी चुत दिखाकर कही ना कही वो भी एक रोमांच सा महसूस कर रही थी जो की उसे उत्तेजित सा कर रहा था। दिन भर से ही वो राजु की हरकतो व उसके लण्ड के बारे मे सोच सोचकर शरम हया के साथ साथ पहले ही रोमाँच व उत्तेजना सी महसूस कर रही थी जिससे दिन भर से ही उसकी चुत का पानी सुखा नही था, उपर से अब उस पर भी बुढे वैद की दवा का असर हो गया था इसलिये राजु के लण्ड को झटके खाता देख देख उसे भी अपनी चुत मे जोरो की सुरसुरी सी महसूस होने लगी थी जिससे उसकी चुत से भी अब चिपचिपा पानी सा बहना शुरु हो गया था।
रुपा भी ये अच्छे से जान रही थी की राजु का लण्ड इतनी जोरो से क्यो झटके खा रहा है, क्योंकि जिस तरह भुखी व एकदम खा जाने वाली नजरो से वो उसकी चुत को देख रहा था उससे साफ पता चल रहा था की उसका लण्ड उसकी चुत को देखने की उत्तेजना के कारण झटके मार रहा है। दिन भर से ही रुपा उसकी नजरो मे अपने लिये एक उत्सुकता को देख रही थी, जिससे जाहीर था की उसने अभी तक किसी भी लङकी को नँगी नही देखा था, उपर से वो अब जिस तरह बिना पलके झपकाये आँखे फाङे उसकी चुत को देखे जा रहा था उससे साफ पता चल रहा था की अपने जीवन मे वो पहली बार चुत देख रहा है जिससे रुपा को एक अजीब ही रोमाँच व मझा सा आ रहा था।
उसके इस तरह रुपा की चुत को देखने से रुपा को शरम तो आ रही थी, मगर अपनी चुत के लिये उसके लण्ड को झटके खाते देख, उसे एक तो अजीब ही रोमाँच व उत्तेजना का अहसास करा रहा था, उपर से अब धीरे धीरे उस पर बुडे वैद की दवा का असर बढ रहा थे जो की उसकी चुत मे अजीब ही कोलाहल सा मचा रहा था, इसलिये राजु के लण्ड को अपनी चुत के लिये झटके खाते देख रुपा को अपनी चुत मे इतनी जोरो की बेचैनी सी महसूस होने लगी की अपने आप ही उसकी चुत से रिश रिशकर चाशनी के जैसे लम्बी लम्बी लार सी नीचे टपकना शुरु हो गयी...
उत्तेजना के मारे राजु का पहले ही बुरा हाल था अब अपनी जीज्जी की चुत से इस तरह चाशनी के जैसे चिपचिपे पानी लम्बी लम्बी लार सी टपकते देख उसका लण्ड और भी जोरो से झटके खाने लगा। उसे नही मालुम था की उसकी जीज्जी की चुत से जो लम्बी लम्बी चाशनी के जैसे चिपचिपी लार सी टपक रही है वो क्या है, और क्यो टपक रही है। अपने जीवन मे वो नँगी चुत ही पहली बार देख रहा था तो उसे ये मालुम भी कहा से होता, मगर अपनी जिज्जी की चुत को इस तरह लार सी छोङते देख उसका लण्ड अब और भी जोरो से झटके खाने लगा जिससे उसके लण्ड से भी चिपचिपा पानी सा रीश रीश कर उसके लण्ड के सहारे उसके टट्टो तक तक बहने लग गया...
रुपा को मालुम था की जब तक दीया जलेगा तब तक उसे राजु के समाने नँगा बैठे रहना है इसलिये उसने दीये मे ज्यादा तेल नही डाला था। बस बत्ती को भिगोने भर के लिये ही उसमे तेल डाला था इसलिये कुछ देर बाद ही दीये का तेल खत्म हो जाने से खाली बत्ती के जलते ही दीया अपने आप बुझ गया जिससे अब राजु को अपनी जीज्जी की चुत को देखने का जो नजारा मिल रहा था वो अब बन्द हो गया, तो ये अपडेट भी यही खत्म हो गया। अगर आपके चुत लण्ड ने भी पानी छोङ दिया हो तो कृप्या अब कोमेन्टस मे बताये किस किस के चुत लण्ड ने कितना कितना पानी छोङा...
धन्यवाद।