babakhosho
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Shandaar updateअभी तक आपने पढा की की अपनी माँ के कहने पर रुपा राहुल के साथ लिँगा बाबा पर दीया जलाकर अपनी चुत पर राजु के आँखो की सेल लगा ली थी, मगर बुढे वैद की दवा के असर से व राजु के खङे लण्ड को देख रुपा का उत्तेजना के मारे बुरा हाल हो गया था। जैसा हाल रुपा का था उससे कही बुरा हाल राजु का था। उस पर भी बुढे वैद की दवा का पुरा असर हो रहा था तो अपने जीवन मे पहली बार चुत को देखकर उसका लण्ड उबाल खाने लगा था मगर रुपा ने दीये मे बहुत ही कम तेल डाला था जिससे कुछ देर बाद ही दीया बुझ गया था।
अब उसके आगे:-
दीये के बुझते ही कमरे मे अब फिर से अन्धेरा हो गया था। बस दरवाजे व खिङकी से जो थोङी बहुत चाँद की रोशनी आ रही थी उसका ही उजाला था, नही तो पुरे कमरे मे अन्धेरा हो गया था। टोटके को पुरा करने के लिये रुपा को अब राजु के से हमबिस्तर होने का दीखाव करना था, मगर दीये के बुझते ही
राजु ने अब फिर से टाॅर्च जला ली जिससे...
"ओ्य्.. क्या कर रहा है..? बन्द करके रख इसे..!" रुपा ने उसे डाटते हुवे से कहा तो राजु ने भी टाॅर्च को बन्द करके रख दिया जिससे कमरे मे एक बार फिर से अन्धेरा हो गया था इसलिये रुपा अब उठकर राजु के पास आकर खङी हो गयी और एक हाथ से उसके सिर को पकङकर उसका मुँह अपनी जाँघो के जोङ से लगा लिया। रुपा की जाँघो के बीच से पिशाब व चुत की तीखी व तेज मादक गँध आ रही थी जो की राजु के उसकी जाँघो के करीब जाते ही अब उसके नथुनो मे भरती चली गयी...
रुपा सुबह से ही राजु के साथ थी इसलिये उसने एक बार भी अपनी चुत को धोया नही था, नही तो पिशाब करने के बाद वो अपनी चुत को पानी से अच्छे से धोकर ही उठती थी, मगर रास्ते मे उसने खुले मे पिशाब किया था जहाँ एक तो पानी नही था, उपर से राजु भी उसके साथ था इसलिये उसकी चुत दिन भर के पसिने व पिशाब की गँध से भरी हुई थी। उपर से दिनभर मे दो तीन बार उसकी चुत मे कामरश तो भर आया था मगर चुत के होठो तक आते आते वो वही चुत की फाँको पर ही सुखकर जम गया था...
राजु के रहते नहाते समय भी उसने शरम के मारे अपनी चुत को धोया नही था, बस उपर उपर से ही चुत की फाँको को पानी से गीला किया था, नही तो दिनभर के पसिने व पिशाब के साथ उसकी चुत कामरश की गँध से भरी पङी थी। महावारी(पीरियड) के बाद वैसे ही चुत से निकलने वाली गन्ध मादक हो जाती है उपर से चुत की फाँको पर जमे दिनभर के पसिने व पिशाब की महक ने उसकी चुत की गँध को और भी तीखा व मादक बना दिया था इसलिये रुपा की जाँघो के करीब आते ही उसकी चुत की मादक तीखी व तेज गन्ध राजु के नथुनो मे भरती चली गयी थी।
अपनी जीज्जी की जाँघो बीच से निकल रही इस मादक गन्ध को राजु दिन मे उसकी शलवार का नाङा खोलते समय पहले भी महसूस कर चुका था। उत्तेजना के मारे उसकी साँसे पहले ही तेजी से चल रही थी उपर से अपनी जीज्जी की जाँघो के बीच से निकल रही इस मादक महक से उसकी साँसे और भी तेज हो गयी जो की सीधे अब रुपा की चुत व जाँघो पर पङने लगी। उसकी तेजी से चलती गर्म गर्म साँसो को अपनी चुत पर महसूस करके रुपा के पुरे बदन मे अब सिँहरन सी होने लगी तो उसकी साँसे भी अब भारी हो आयी।
राजु को अब कुछ समझ नही आया की ये क्या हो रहा है, और उसे क्या करना है..? मगर फिर भी अपनी जीज्जी की जाँघो से आ रही इस मादक गँध से राजु जैसे मदहोश सा ही हो गया था। अपनी जीज्जी की जाँघो के बीच से फुट रही ये मादक गँध राजु को भा सी रही थी इसलिये अपने आप ही उसका सिर अब रुपा की जाँघो बीच घुसता चला गया और उसके तपते सुलगते एकदम सुखे व खुरदुरे होठ सीधे रुपा की चुत के उभार से चिपक गये।
इतनी देर से चल रहे इन टोने टोटको व बुढे वैद की दवा के असर से उत्तेजना के कारण राजु का पुरा बदन सुलग सा रहा था। उत्तेजना के मारे मानो जैसे उसके शरीर का पानी भाप बनकर उड गया था इसलिये उसके होठो पर पपङी सी जम आई थी जिससे उसके होठो एकदम सुखे व खुरदरे से हो गये थे। अपनी चुत पर राजु की गर्म गर्म साँसे को ही महसूस करके रुपा के बदन मे सिँहरन की लहर दौङने लगी थी, उपर से अब जैसे ही उसे अपनी नँगी चुत पर राजु के सुखे सुखे होठ का स्पर्श महसूस हुवा उत्तेजना व जोरो की सिँहरन के मारे वो...
"ओ्य्ह्ह्...रा्.जु्उ्उ्ह्ह्ह...." कहकर वो सुबक सी उठी।
राजु के साथ ये सब टोटके करते करते रुपा का पहले ही बुरा हाल था उपर से उसने जो फकीर बाबा की भस्म समझकर जो बुढे वैद की दवा खाई थी उसका भी रुपा पर अब पुरा असर हो रहा था इसलिये राजु के एकदम सुखे व खुरदरे होठो के स्पर्श को अपनी नँगी चुत पर पाकर वो अब सहम सा गयी थी।
अपनी जीज्जी की चुत से आ रही मादक महक राजु को भी भा रही थी इसलिये उसके तपते सुलगते होठो ने अब उसकी गीली चुत को छुवा तो अपने आप ही उसके होठ हल्के हल्के थरथराकर चुत के उभार को चुमने सा लगे जिससे रुपा को भी अपनी चुत मे अब चिँटियाँ सी काटती महसूस हुई तो वो भी अब एकदम जङ सी होकर रह गयी।
उत्तेजना के मारे रुपा को भी अपनी तपती सुलगती चुत पर राजु के होठो की छुवन भा सी रही थी इसलिये अपने आप ही उसके पैर अब खुल गये तो वही जाँघे थोङा फैल सा गयी। जाँघो के फैल जाने से राजु के होठ सीधा अब रुपा की चुत की फाँको पर दस्तक देने लगे जिससे उसके होठो पर अपनी जीज्जी की चुत की खारीश सी आ गयी। रुपा की चुत की फाँको पर दिनभर का उसका पिशाब व चुतरश जमा हुवा था तो उत्तेजना के वश उसकी चुत कब से चुतरश की लार सी टपका रही थी जो की होठो के रास्ते थोङा बहुत अब राजु के मुँह मे भी घुल गया जिससे उसके मुँह का स्वाद एकदम चिकना व नमकिन होते चला गया।
राजु को अपनी जीज्जी की चुत का ये नमकिन स्वाद भी पसन्द आया होगा की उसने तुरन्त दोनो हाथो से उसके नँगे कुल्हो को अपनी बाहो मे भर लिया और यँहा वहाँ उसकी पुरी चुत व जाँघो को जोरो से चुमना सा शुरु कर दिया जिससे रुपा ने दोनो हाथो से उसके सिर को पकङ लिया और...
"ईईश्श्श्श्.. राजुऊह्ह्ह्..!" कहकर एक बार फिर से सुबक सा उठी।
उत्तेजना के मारे रुपा का पुरा बदन जलने सा लगा था तो वही उसे अपनी चुत मे तो अँगारे से सुलगते महसूस हो रहे थे। ये कुछ तो इन टोने टोटको का असर था और बाकी का काम उस बुढे वैद की दवा कर रही थी जो की उसने फकिर बाबा की भस्म जानकर खायी थी। उत्तेजना के मारे रुपा का अब एक बार तो दिल किया की वैसे ऐसे ही राजु से अपनी इस सुलगती चुत की आँग को ठण्डा कर ले, मगर फिर तभी उसका दिल एक अनजाने से भय व शरम हया के कारण घबरा सा गया। शायद उसे अपने व राजु के रिश्ते का ख्याल आया होगा की कही राजु के साथ बहककर उससे कुछ गलत ना हो जाये इसलिये एक अनजाने से भय के वश उसका दिल जोरो से घबरा सा उठा।
लीला के बताये टोटके व बुढे वैद की दवा अपना पुरा असर कर रही थी मगर अपने व राजु के रिश्ते की जो दिवार थी वो अभी भी रुपा के आङे आ रही थी इसलिये उत्तेजना व एक अनजाने से भय के मारे रुपा का पुरा बदन कँपकँपाने सा लगा। उसके एकदम सुखे व खुरदरे होठो की छुवन रुपा से अब सहन नही हो रहे थे इसलिये...
"ईईईश्श्श्..बस्स्स्..! ह्.हो गया..!" कहते हुवे दोनो हाथो से राजु के सिर को पकङकर उसे अपनी चुत पर से हटा दिया जिससे राजु बस अब अपना मन मसोसकर रह गया...
कामुक updateराजु अभी भी पहले के जैसे ही उकङु बैठा हुवा था जबकि टोटके के लिये रुपा को उसके मुँह से अपनी चुत को छुवाकर अब उसकी गोद मे बैठना था इसलिये...
"..य्.ये्..प.पै.र सीधे करके बैठ..!" उत्तेजना व शरम के मारे रुपा ने अब कँपकँपती सी आवाज मे धीरे से कहा, जिससे राजु पहले के जैसे ही अपने कुल्हे टिकाकर नीचे फर्स पर बैठ गया।
रुपा भी अब उसके पैरो के दोनो ओर पैर करके खङी हो गयी और दोनो हाथो से उसके कन्धो को पकङकर धीरे से उसकी जाँघो पर कुल्हे टिकाकर बैठ गयी। राजु की गोद मे बैठते हुवे रुपा ने अब अपनी चुत को उसके लण्ड से दुर ही रखना चाहा था मगर राजु अपने कुल्हे नीचे फर्स पर तो टिकार बैठ गया था पर उसने पैरो को पुरा सीधा नही किया हुवा था। उसने घुटनो को मोङकर अपनी जाँघो को थोङा सा उपर कर रखा था इसलिये रुपा के उसकी गोद मे बैठते ही वो राजु की जाँघो पर से फिसलते हुवे नीचे आ गयी जिससे उसकी नँगी चुत सीधे राजु के लण्ड से चिपक गयी तो वही उसकी चुँचिया भी राजु के सीने से दब सा गयी।
वो तो राजु का लण्ड उसके पेट के समान्तर एकदम सीधा खङा हुवा था नही तो उसका लण्ड अब सीधा ही रुपा की चुत मे समा जाना था इसलिये उत्तेजना व एक अनजाने भय के वश रुपा...
"ईईईश्श्श्.. ओ्ओ्ह्ह्य्...! कहकर एकदम चिहुँक सी गयी।
राजु का लण्ड अब रुपा की चुत की फाँको के बीचो बीच एकदम सीधे लम्बवत सट गया था जिससे रुपा की साँसे भी फुल सी आई, तो वही राजु भी अपनी जीज्जी की चुत से निकल रही गर्मी को अपने लण्ड पर महसूस करके सिँहर सा गया था। रुपा की एकदम सुडौल व कसी हुई चुँचियो का स्पंजी सा अहसास राजु को एक बेहद मादक और आनंदायक अहसास करा रहा था तो उसकी चुत से निकल रही गर्मी को अपने लण्ड पर महसूस करके उसका लण्ड अपने आप ही झटके से खाने लगा...
राजु से भी अब सब्र नही हुवा, आखिर वो ये सहता भी कब तक..? इसलिये उसने भी अपने दोनो हाथो से रुपा के नँगे कुल्हो को पकङकर उसे अपने लण्ड से और भी कसकर चिपका लिया जिससे रुपा की चुत के साथ साथ उसकी नँगी चुँचियाँ भी अब राजु के सीने से पिसकर चटनी हो गयी। उसका लण्ड पहले ही उसकी चुत की फाँको के बीचो नीच लम्बवत चिपका हुवा था जो की अब उसकी चुत की फाँको को फैलाकर उनके बीचो बीच एकदम धँस सा गया और...
"ईईईश्श्श्.. ओ्ओ्ह्ह्य्...! कहकर रुपा भी सुबक सी उठी।
राजु का लण्ड भी अब अपनी जीज्जी की चुत की एकदम करीब से तपिस पाकर और भी जोरो से झटके खाने लगा, तो वही उसमे से पानी सा रीश रीश कर रुपा की चुत की फाँको पर भी बह निकला। रुपा के नर्म मुलायम बदन के स्पर्श से राजु अब और भी उत्तेजित हो उठा था इसलिये उसने धीरे धीरे मस्क मस्क कर अपने लण्ड को उसकी चुत की फाको के बीच ही घीसना सा शुरु कर दिया जिससे राजु के साथ रुपा की भी हालत अब खराब होने लगी।
रुपा को भी अपनी चुत के पास राजु के लण्ड के झटके साफ महसूस हो रहे थे तो, उसके लण्ड से निकल रहे गीलेपन का भी उसे पुरा अहसास हो रहा था। राजु क्या उत्तेजना के वश खुद उसकी चुत से भी लार सी टपक रही थी जिससे उसकी चुत व जाँघो के पास एकदम गीलापन फैल गया था। राजु की गोद मे बैठकर उसके एकदम सीधे तने खङे लण्ड की कठोरता व गर्माहट को अब अपनी चुत पर इतने करीब से महसूस करके रुपा का पुरा बदन कँपकँपाने सा लगा था, उसका दिल तो कर रहा था की वो अभी ही उसके लण्ड पर बैठकर एक ही झटके मे अपनी चुत से उसका पुरा लण्ड निगल जाये, मगर राजु के प्रति उसकी जो सोच थी वो उसे रोके हुवे थी।
उत्तेजना के वश राजु की साँसे अब फुल आई थी तो वही रुपा की साँसे भी उफन सी रही थी जिससे दोनो की गर्म गर्म साँसे एक दुसरे के चेहरे पर पङ रही थी। दोनो को ही जोरो की उत्तेजना का अहसास हो रहा था, मगर राजु को कुछ ये मालुम नही था की वो आगे कुछ करे तो कैसे क्या करे..? और रुपा मे इतना साहस नही था की वो अपने व राजु के रिश्ते की दीवार को लाँघ सके।
इससे पहले कभी भी रुपा ने इतनी उत्तेजना का अनुभव नही किया था तो अपने जीवन मे वो पहली बार इतनी बेबसी भी महसूस कर रही थी। ये कुछ तो बुढे वैद की दवा का असर था और कुछ राजु के एकदम तने खङे लण्ड का, की उसकी कठोरता व तपिस को अपनी चुत पर महसूस करके रुपा को अपनी चुत ही पिँघलती सी महसूस हो लगी थी इसलिये एक बार राजु की गोद मे बैठकर वो अब उठकर खङी हो गयी तो साथ ही उसने राजु को भी हाथ पकङकर खङा कर लिया...
क्रमश....
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गयाअभी तक आपने पढा की की अपनी माँ के कहने पर रुपा राहुल के साथ लिँगा बाबा पर दीया जलाकर अपनी चुत पर राजु के आँखो की सेल लगा ली थी, मगर बुढे वैद की दवा के असर से व राजु के खङे लण्ड को देख रुपा का उत्तेजना के मारे बुरा हाल हो गया था। जैसा हाल रुपा का था उससे कही बुरा हाल राजु का था। उस पर भी बुढे वैद की दवा का पुरा असर हो रहा था तो अपने जीवन मे पहली बार चुत को देखकर उसका लण्ड उबाल खाने लगा था मगर रुपा ने दीये मे बहुत ही कम तेल डाला था जिससे कुछ देर बाद ही दीया बुझ गया था।
अब उसके आगे:-
दीये के बुझते ही कमरे मे अब फिर से अन्धेरा हो गया था। बस दरवाजे व खिङकी से जो थोङी बहुत चाँद की रोशनी आ रही थी उसका ही उजाला था, नही तो पुरे कमरे मे अन्धेरा हो गया था। टोटके को पुरा करने के लिये रुपा को अब राजु के से हमबिस्तर होने का दीखाव करना था, मगर दीये के बुझते ही
राजु ने अब फिर से टाॅर्च जला ली जिससे...
"ओ्य्.. क्या कर रहा है..? बन्द करके रख इसे..!" रुपा ने उसे डाटते हुवे से कहा तो राजु ने भी टाॅर्च को बन्द करके रख दिया जिससे कमरे मे एक बार फिर से अन्धेरा हो गया था इसलिये रुपा अब उठकर राजु के पास आकर खङी हो गयी और एक हाथ से उसके सिर को पकङकर उसका मुँह अपनी जाँघो के जोङ से लगा लिया। रुपा की जाँघो के बीच से पिशाब व चुत की तीखी व तेज मादक गँध आ रही थी जो की राजु के उसकी जाँघो के करीब जाते ही अब उसके नथुनो मे भरती चली गयी...
रुपा सुबह से ही राजु के साथ थी इसलिये उसने एक बार भी अपनी चुत को धोया नही था, नही तो पिशाब करने के बाद वो अपनी चुत को पानी से अच्छे से धोकर ही उठती थी, मगर रास्ते मे उसने खुले मे पिशाब किया था जहाँ एक तो पानी नही था, उपर से राजु भी उसके साथ था इसलिये उसकी चुत दिन भर के पसिने व पिशाब की गँध से भरी हुई थी। उपर से दिनभर मे दो तीन बार उसकी चुत मे कामरश तो भर आया था मगर चुत के होठो तक आते आते वो वही चुत की फाँको पर ही सुखकर जम गया था...
राजु के रहते नहाते समय भी उसने शरम के मारे अपनी चुत को धोया नही था, बस उपर उपर से ही चुत की फाँको को पानी से गीला किया था, नही तो दिनभर के पसिने व पिशाब के साथ उसकी चुत कामरश की गँध से भरी पङी थी। महावारी(पीरियड) के बाद वैसे ही चुत से निकलने वाली गन्ध मादक हो जाती है उपर से चुत की फाँको पर जमे दिनभर के पसिने व पिशाब की महक ने उसकी चुत की गँध को और भी तीखा व मादक बना दिया था इसलिये रुपा की जाँघो के करीब आते ही उसकी चुत की मादक तीखी व तेज गन्ध राजु के नथुनो मे भरती चली गयी थी।
अपनी जीज्जी की जाँघो बीच से निकल रही इस मादक गन्ध को राजु दिन मे उसकी शलवार का नाङा खोलते समय पहले भी महसूस कर चुका था। उत्तेजना के मारे उसकी साँसे पहले ही तेजी से चल रही थी उपर से अपनी जीज्जी की जाँघो के बीच से निकल रही इस मादक महक से उसकी साँसे और भी तेज हो गयी जो की सीधे अब रुपा की चुत व जाँघो पर पङने लगी। उसकी तेजी से चलती गर्म गर्म साँसो को अपनी चुत पर महसूस करके रुपा के पुरे बदन मे अब सिँहरन सी होने लगी तो उसकी साँसे भी अब भारी हो आयी।
राजु को अब कुछ समझ नही आया की ये क्या हो रहा है, और उसे क्या करना है..? मगर फिर भी अपनी जीज्जी की जाँघो से आ रही इस मादक गँध से राजु जैसे मदहोश सा ही हो गया था। अपनी जीज्जी की जाँघो के बीच से फुट रही ये मादक गँध राजु को भा सी रही थी इसलिये अपने आप ही उसका सिर अब रुपा की जाँघो बीच घुसता चला गया और उसके तपते सुलगते एकदम सुखे व खुरदुरे होठ सीधे रुपा की चुत के उभार से चिपक गये।
इतनी देर से चल रहे इन टोने टोटको व बुढे वैद की दवा के असर से उत्तेजना के कारण राजु का पुरा बदन सुलग सा रहा था। उत्तेजना के मारे मानो जैसे उसके शरीर का पानी भाप बनकर उड गया था इसलिये उसके होठो पर पपङी सी जम आई थी जिससे उसके होठो एकदम सुखे व खुरदरे से हो गये थे। अपनी चुत पर राजु की गर्म गर्म साँसे को ही महसूस करके रुपा के बदन मे सिँहरन की लहर दौङने लगी थी, उपर से अब जैसे ही उसे अपनी नँगी चुत पर राजु के सुखे सुखे होठ का स्पर्श महसूस हुवा उत्तेजना व जोरो की सिँहरन के मारे वो...
"ओ्य्ह्ह्...रा्.जु्उ्उ्ह्ह्ह...." कहकर वो सुबक सी उठी।
राजु के साथ ये सब टोटके करते करते रुपा का पहले ही बुरा हाल था उपर से उसने जो फकीर बाबा की भस्म समझकर जो बुढे वैद की दवा खाई थी उसका भी रुपा पर अब पुरा असर हो रहा था इसलिये राजु के एकदम सुखे व खुरदरे होठो के स्पर्श को अपनी नँगी चुत पर पाकर वो अब सहम सा गयी थी।
अपनी जीज्जी की चुत से आ रही मादक महक राजु को भी भा रही थी इसलिये उसके तपते सुलगते होठो ने अब उसकी गीली चुत को छुवा तो अपने आप ही उसके होठ हल्के हल्के थरथराकर चुत के उभार को चुमने सा लगे जिससे रुपा को भी अपनी चुत मे अब चिँटियाँ सी काटती महसूस हुई तो वो भी अब एकदम जङ सी होकर रह गयी।
उत्तेजना के मारे रुपा को भी अपनी तपती सुलगती चुत पर राजु के होठो की छुवन भा सी रही थी इसलिये अपने आप ही उसके पैर अब खुल गये तो वही जाँघे थोङा फैल सा गयी। जाँघो के फैल जाने से राजु के होठ सीधा अब रुपा की चुत की फाँको पर दस्तक देने लगे जिससे उसके होठो पर अपनी जीज्जी की चुत की खारीश सी आ गयी। रुपा की चुत की फाँको पर दिनभर का उसका पिशाब व चुतरश जमा हुवा था तो उत्तेजना के वश उसकी चुत कब से चुतरश की लार सी टपका रही थी जो की होठो के रास्ते थोङा बहुत अब राजु के मुँह मे भी घुल गया जिससे उसके मुँह का स्वाद एकदम चिकना व नमकिन होते चला गया।
राजु को अपनी जीज्जी की चुत का ये नमकिन स्वाद भी पसन्द आया होगा की उसने तुरन्त दोनो हाथो से उसके नँगे कुल्हो को अपनी बाहो मे भर लिया और यँहा वहाँ उसकी पुरी चुत व जाँघो को जोरो से चुमना सा शुरु कर दिया जिससे रुपा ने दोनो हाथो से उसके सिर को पकङ लिया और...
"ईईश्श्श्श्.. राजुऊह्ह्ह्..!" कहकर एक बार फिर से सुबक सा उठी।
उत्तेजना के मारे रुपा का पुरा बदन जलने सा लगा था तो वही उसे अपनी चुत मे तो अँगारे से सुलगते महसूस हो रहे थे। ये कुछ तो इन टोने टोटको का असर था और बाकी का काम उस बुढे वैद की दवा कर रही थी जो की उसने फकिर बाबा की भस्म जानकर खायी थी। उत्तेजना के मारे रुपा का अब एक बार तो दिल किया की वैसे ऐसे ही राजु से अपनी इस सुलगती चुत की आँग को ठण्डा कर ले, मगर फिर तभी उसका दिल एक अनजाने से भय व शरम हया के कारण घबरा सा गया। शायद उसे अपने व राजु के रिश्ते का ख्याल आया होगा की कही राजु के साथ बहककर उससे कुछ गलत ना हो जाये इसलिये एक अनजाने से भय के वश उसका दिल जोरो से घबरा सा उठा।
लीला के बताये टोटके व बुढे वैद की दवा अपना पुरा असर कर रही थी मगर अपने व राजु के रिश्ते की जो दिवार थी वो अभी भी रुपा के आङे आ रही थी इसलिये उत्तेजना व एक अनजाने से भय के मारे रुपा का पुरा बदन कँपकँपाने सा लगा। उसके एकदम सुखे व खुरदरे होठो की छुवन रुपा से अब सहन नही हो रहे थे इसलिये...
"ईईईश्श्श्..बस्स्स्..! ह्.हो गया..!" कहते हुवे दोनो हाथो से राजु के सिर को पकङकर उसे अपनी चुत पर से हटा दिया जिससे राजु बस अब अपना मन मसोसकर रह गया...
बडा ही गरमागरम कामुक और उत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गयाराजु अभी भी पहले के जैसे ही उकङु बैठा हुवा था जबकि टोटके के लिये रुपा को उसके मुँह से अपनी चुत को छुवाकर अब उसकी गोद मे बैठना था इसलिये...
"..य्.ये्..प.पै.र सीधे करके बैठ..!" उत्तेजना व शरम के मारे रुपा ने अब कँपकँपती सी आवाज मे धीरे से कहा, जिससे राजु पहले के जैसे ही अपने कुल्हे टिकाकर नीचे फर्स पर बैठ गया।
रुपा भी अब उसके पैरो के दोनो ओर पैर करके खङी हो गयी और दोनो हाथो से उसके कन्धो को पकङकर धीरे से उसकी जाँघो पर कुल्हे टिकाकर बैठ गयी। राजु की गोद मे बैठते हुवे रुपा ने अब अपनी चुत को उसके लण्ड से दुर ही रखना चाहा था मगर राजु अपने कुल्हे नीचे फर्स पर तो टिकार बैठ गया था पर उसने पैरो को पुरा सीधा नही किया हुवा था। उसने घुटनो को मोङकर अपनी जाँघो को थोङा सा उपर कर रखा था इसलिये रुपा के उसकी गोद मे बैठते ही वो राजु की जाँघो पर से फिसलते हुवे नीचे आ गयी जिससे उसकी नँगी चुत सीधे राजु के लण्ड से चिपक गयी तो वही उसकी चुँचिया भी राजु के सीने से दब सा गयी।
वो तो राजु का लण्ड उसके पेट के समान्तर एकदम सीधा खङा हुवा था नही तो उसका लण्ड अब सीधा ही रुपा की चुत मे समा जाना था इसलिये उत्तेजना व एक अनजाने भय के वश रुपा...
"ईईईश्श्श्.. ओ्ओ्ह्ह्य्...! कहकर एकदम चिहुँक सी गयी।
राजु का लण्ड अब रुपा की चुत की फाँको के बीचो बीच एकदम सीधे लम्बवत सट गया था जिससे रुपा की साँसे भी फुल सी आई, तो वही राजु भी अपनी जीज्जी की चुत से निकल रही गर्मी को अपने लण्ड पर महसूस करके सिँहर सा गया था। रुपा की एकदम सुडौल व कसी हुई चुँचियो का स्पंजी सा अहसास राजु को एक बेहद मादक और आनंदायक अहसास करा रहा था तो उसकी चुत से निकल रही गर्मी को अपने लण्ड पर महसूस करके उसका लण्ड अपने आप ही झटके से खाने लगा...
राजु से भी अब सब्र नही हुवा, आखिर वो ये सहता भी कब तक..? इसलिये उसने भी अपने दोनो हाथो से रुपा के नँगे कुल्हो को पकङकर उसे अपने लण्ड से और भी कसकर चिपका लिया जिससे रुपा की चुत के साथ साथ उसकी नँगी चुँचियाँ भी अब राजु के सीने से पिसकर चटनी हो गयी। उसका लण्ड पहले ही उसकी चुत की फाँको के बीचो नीच लम्बवत चिपका हुवा था जो की अब उसकी चुत की फाँको को फैलाकर उनके बीचो बीच एकदम धँस सा गया और...
"ईईईश्श्श्.. ओ्ओ्ह्ह्य्...! कहकर रुपा भी सुबक सी उठी।
राजु का लण्ड भी अब अपनी जीज्जी की चुत की एकदम करीब से तपिस पाकर और भी जोरो से झटके खाने लगा, तो वही उसमे से पानी सा रीश रीश कर रुपा की चुत की फाँको पर भी बह निकला। रुपा के नर्म मुलायम बदन के स्पर्श से राजु अब और भी उत्तेजित हो उठा था इसलिये उसने धीरे धीरे मस्क मस्क कर अपने लण्ड को उसकी चुत की फाको के बीच ही घीसना सा शुरु कर दिया जिससे राजु के साथ रुपा की भी हालत अब खराब होने लगी।
रुपा को भी अपनी चुत के पास राजु के लण्ड के झटके साफ महसूस हो रहे थे तो, उसके लण्ड से निकल रहे गीलेपन का भी उसे पुरा अहसास हो रहा था। राजु क्या उत्तेजना के वश खुद उसकी चुत से भी लार सी टपक रही थी जिससे उसकी चुत व जाँघो के पास एकदम गीलापन फैल गया था। राजु की गोद मे बैठकर उसके एकदम सीधे तने खङे लण्ड की कठोरता व गर्माहट को अब अपनी चुत पर इतने करीब से महसूस करके रुपा का पुरा बदन कँपकँपाने सा लगा था, उसका दिल तो कर रहा था की वो अभी ही उसके लण्ड पर बैठकर एक ही झटके मे अपनी चुत से उसका पुरा लण्ड निगल जाये, मगर राजु के प्रति उसकी जो सोच थी वो उसे रोके हुवे थी।
उत्तेजना के वश राजु की साँसे अब फुल आई थी तो वही रुपा की साँसे भी उफन सी रही थी जिससे दोनो की गर्म गर्म साँसे एक दुसरे के चेहरे पर पङ रही थी। दोनो को ही जोरो की उत्तेजना का अहसास हो रहा था, मगर राजु को कुछ ये मालुम नही था की वो आगे कुछ करे तो कैसे क्या करे..? और रुपा मे इतना साहस नही था की वो अपने व राजु के रिश्ते की दीवार को लाँघ सके।
इससे पहले कभी भी रुपा ने इतनी उत्तेजना का अनुभव नही किया था तो अपने जीवन मे वो पहली बार इतनी बेबसी भी महसूस कर रही थी। ये कुछ तो बुढे वैद की दवा का असर था और कुछ राजु के एकदम तने खङे लण्ड का, की उसकी कठोरता व तपिस को अपनी चुत पर महसूस करके रुपा को अपनी चुत ही पिँघलती सी महसूस हो लगी थी इसलिये एक बार राजु की गोद मे बैठकर वो अब उठकर खङी हो गयी तो साथ ही उसने राजु को भी हाथ पकङकर खङा कर लिया...
क्रमश....