चैप्टर -2 नागवंश और घुड़वंश कि दुश्मनी अपडेट -17
काबूम.... धमाके के साथ नदी पे बनी कच्ची पक्की पुलिया बिल्ला ने बम से उड़ा दी थी, हड़कंप मच जाता है चारो तरफ, ठाकुर और असलम को तो कुछ समझ ही नहीं आता कि क्या हुआ एक दम
धमाके से प्रकाश होता है सबकी नजर पुलिया के पार जाती है जहाँ रंगा और उसके आदमी डोली उठाये अलग ही दिशा मे भागे जा रहे थे.
बिल्ला भी रंगा के पास पहुंच चूका था उसके बाकि आदमी हड़कंप का फायदा उठा के दो तीन घोड़ा गाड़ी को अपने साथ जंगल ओझल हो गये किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है
ठाकुर :- ये क्या हो रहा है असलम ये हमला किसने किया?
दरोगा :- ठाकुर साहेब ये रंगा बिल्ला का काम है, मुझे पहले ही खबर थी कि ये लूट मचाएंगे, इसलिए मै वेश बदल आपकी बारात मे शामिल हो क्या था.
परन्तु इन सब के बीच नागेंद्र सर सरा जाता है, पानी मे उतर के जितना तेज़ हो सकता उतना तेज़ तेरे जा रहा था, नदी का बहाव तेज़ था.... नहीं नहीं... मुझे नदी पार करनी होंगी मै कामवती को वापस हाथ से नहीं निकलने दूंगा.
दरोगा और उसके आदमियों ने भी स्थति को काबू कर लिया था, अब उन्हें नदी पार करनी थी.
नदी तो रूपवती को भी पार करनी थी अपनी हवस कि नदी...परन्तु ये नदी गरम लावे से बह रही थी सफ़ेद लावा जो लगातार रूपवती कि चुत से रिस रहा था मोटी लकड़ी रुपी बाँध इस सैलाब को रोकने मे असमर्थ था.
रूपवती उस लावे को लकड़ी से अंदर ठेलने का प्रयास कर रही थी, किन्तु जितना वो लकड़ी अंदर डालती उतना पानी बह के बाहर आ जाता.
ये हवस ये उत्तेजना आज बेकाबू थी, इस हवस को शांत करने के लिए वो कुछ भी कर सकती थी.
घोड़ा वीरा भी कामअग्नि मे जल रहा था, उसके मुँह से बेबसी कि हुक निकले जा रही थी वो हिनहिना रहा था हवस मे हिनहिना रहा था.
रूपवती के कानो मे लगातार वीरा कि हिनहिनहत पहुंच रही थी... वो अपनी हवस को काबू कर उठ जाती है, उसे लगता है वीरा किसी तकलीफ मे है, उसका ब्लाउज खुला हुआ था पेटीकोट ढीला सा कमर पे नाभी के नीचे अटका पड़ा था.
बड़े बड़े काले स्तन अँधेरे मे हिलते चमक रहे थे, बड़ी सी गांड धल धला के हिल रही थी "वीरा कभी इस तरह तो शोर नहीं करता क्या हुआ उसे "
कोई जानवर तो नहीं आ गया?
रूपवती अर्धनग्न अवस्था मे ही अस्तबाल कि ओर चल पड़ती है, भले एक घोड़े के सामने जाने से क्या शर्माना.
वो अस्तबाल पहुंच के देखती है सब ठीक है लेकिन अंधेरा होने कि वजह से वीरा का इंसानी रूप नहीं देख पाती वहाँ एक कला बड़ा सा इंसान पूर्णरूप से नंगा खड़ा था उसका बड़ा सा लंड उसे दीखता नहीं है, रूपवती को लगता है शायद वीरा भूखा है वो उसे पास जाती है ओर घास उठा के उसके खाने कि टंकी (नांद ) मे डालने के लिए झुकती है, स्तन अपने भार कि वजह से आगे को झूल जाते है, पीछे पेटीकोट सरकार के गांड पे टिक जाता है, रूपवती कि गांड इतनी बड़ी थी कि नीचे झुकने से पेटीकोट टाइट हो जाता है इतना टाइट कि चरररररर... कि आवाज़ के साथ फट पड़ता है.
वीरा का मुँह बिल्कुल रूपवती कि गांड के पीछे था जैसे ही पेटीकोट फटता है एक मादक खुशबू आ के वीरा के नाथूनो को हिला देती है, वीरा जो पहके से ही गरम था मदहोश हो जाता है बरसो बाद उसे स्त्री के कामुक अंग कि खुशबू मिली थी ऊपर से रूपवती कि चुत तो पानी ओर खुशबू भारी मात्र मे छोड़ रही थी.
जैसे ही रूपवती को अपने पेटीकोट फटने का अहसास होता है वो उठने को होती है तभी अचानक एक घूरदरी,गीली सी चीज उसकी चुत के दाने से ले कर गांड के छेद तक लप लपाती चली जाती है
आह्हः..... इतना गर्म ओर गिला अहसास यही तो चाहिए था रूपवती को, खुर्दरापन ऐसा कि चुत गांड घिस गई थी.
एक बार फिर सड़प कि आवाज़ के साथ वही कामुक अहसास होता है जैसे कोई गीली चीज उसकी चुत को पिघला रही हो.
वो पीछे मुड़ के देखती है उसके पीछे एक इंसान खड़ा था उसके बदन पे बहुत बाल थे,रूपवती चीख पड़ती है डर से आअह्ह्ह..... तुम कौन हो? मेरा घोड़ा वीरा कहाँ है. वीरा अपनी जीभ उसकी गांड मे लगाए खड़ा था, रूपवती चुपचाप वैसी ही झुकी खड़ी रहती है. उसे तो मन कि मुराद पूरी हो रही थी, उसे अभी सिर्फ अपनी हवस मिटानी थी, अब ये इंसान कौन है ये बाद मे देखा जायेगा, उसे खुर्दरी जीभ का अहसास मन्त्रीमुग्ध कर रहा था. खड़े खड़े अपनी चुत और गांड को वीरा कि जीभ को धकेलने लगती है. मस्ती मे चुत चाटवा रही थी...
चुत चटाई तो रामनिवास के घर भी हो रही थी
रतीवती उस अनजान शख्स के मुँह पे बैठी पागलो कि तरह अपनी गांड उठा उठा के पटके जा रही थी, घिसे जा रही थी
नीचे लेटा शख्स रतीवती के द्वारा किये गये हमले से चौक गया था, परन्तु अब वो चुत से निकलती महक मे खोने लगा था,वो भी अपनी जीभ बाहर निकाल के लपा लप चाट रहा था,
रतीवती :- अह्ह्ह.... कामम्मो के बापू.. आअह्ह्ह आज तो बड़ा लपक केचाट रहे हो, इतना जोश कहाँ से लाये.
इतना कह के रतीवती अपना हाथ नीचे ले जाती है रामनिवास का लंड टटोलने लगती है.
ये क्या इतना बड़ा लंड, वो भी इतना कड़क मोटा, रामनिवास का खड़ा होने पे भी इतना नहीं होता....
कही कही कहीं..... ये कोई और तो नहीं
लेकिन रतीवती हवस के मार्ग पे इतना आगे बढ़ चुकी थी कि वापस लौटना मुश्किल था, उसे समझ आ चूका था कि ये रामनिवास नहीं है लेकिन अब क्या फर्क पड़ता है उसे तो लंड चाहिए था ऐसा ही लंड जो उसकी प्यास बुझा सके, उसकी गांड फाड़ सके.
उसे अपनी हवा मिटानी थी भले लंड किसी का भी हो.
नीचे लेटा शख्स अपनी जीभ को तिकोना कर चुत मे घुसा देता है . आह्हब..... रतीवती अपनी सोच से बाहर आती है और उत्तेजना के मारे शख्स के बाल पकड़ के अपनी चुत मे घुसाने लगती है लगता था जैसे पूरा मुँह ही अपनी चुत मे डाल लेगी.
शख्स :- वाह वाह क्या गरम माल हाथ लगा है, क्या स्वाद है इसकी चुत का आज चोरी का ही मजा आ जायेगा.
ये चोर मंगूस ही था जो चोरी के इरादे से घुसा था परन्तु यहाँ तो जरुरत से ज्यादा मिल रहा था.
चोर मंगूस अपनी कला का प्रदर्शन कर रहा था कभी जीभ चुत मे डालता कभी वही जीभ गांड मे डाल देता,
चुत के दाने से लेकर गांड तक लगातार चाटे जा रहा था, रतीवती इस कला से मरी जा रही थी अपने स्तन नोच रही थी परिणाम सामने आया रतीवती भरभरा के मंगूस के मुँह मे ही झड़ने लगती है, कई दिनों से रुका ज्वालामुखी फट पड़ता है आहहहह...... फच फच फच... करती रतीवती चुत से फववारा छोड़ने लगती है.
रतीवती ने अभी भी मंगूस के बाल पकड़े अपनी चुत पे दबाये जा रही थी अपना सारापानी मंगूस के मुँह मे उतार दिया.... धम.. से बिस्तर पे गिर पड़ती है आह्हः..... मै गई.
उधर जंगल मे रंगा बिल्ला कामवती को डोली से उतार चुके थे, कामवती ये सब देख हैरान रह जाती है उसके सामने दो हैवान जैसे दिखने वाले दो आदमी खड़े थे, लगता था जैसे कोई दो राक्षस प्रकट हो गये हो.
कामवती जोर से चिल्लाती है..... उसके मुँह पे अभी भी घूँघट था, चीख कि आवाज़ इतनी जोरदार थी कि पुरे जंगल मे गूंज उठती है.
रंगा उसका मुँह बंद करता है.... दोनों उसे कंधे पे उठाये उबड़ खबड़ रास्ते पे दौड़ पड़ते है अपने अड्डे कि ओर.
काली पहाड़ी पे स्थित अड्डे पे पहुंच चुके थे... कामवती को नीचे जमीन पे बिछी घाँस मे पटक देते है.
रंगा :- हम कामयाब हुए बिल्ला, हाहाहाहा.. उतार इसके गहाने खूब लदि पड़ी है गहनो से..
बिल्ला कामवती कि ओर बढ़ चलता है.
कामवती डर ओर घबराहट से पसीने पसीने हो गई थी, उसकी सांसे ज्वार भाटे कि तरह ऊपर नीचे हो रही थी.
बिल्ला करीब पहुंच चूका था... एक दम से घूँघट हटा देता है, चेहरे ओर स्तन से कपड़ा हट जाता है,जैसे ही कामवती का चेहरा सामने आता है दोनों के होश उड़ जाते है, ऐसा सुन्दर चेहरा इतनी सुन्दर स्त्री सोनो ने कभी नहीं देखि थी, माथे पे बिंदी मांग मे सिंदूर लाल चोली से झाँकते गोरे बड़े सुडोल स्तन...
आअह्ह्ह.... रंगा देख तो सही क्या माल हाथ लगा है, गहनो के साथ ऐसा यौवन भी हाथ लग गया.
रंगा :- वाह बिल्ला मजा आ गया खूब रागड़ेंगे इसे आज.स्तन देख कितने गोरे ओर बड़े है.
कामवती ये सब बाते सुन घबराने लगी थी.
नागेंद्र नदी पार कर चूका था... फिर भी उसे अभी लम्बा सफर तय करना था.
"मै वापस से कामवती के साथ ऐसा नहीं होने दूंगा " नागेंद्र फुसफुसाता तेज़ी से रेंगे जा रहा था.
क्या कामवती बच पायेगी?
वापस मतलब? क्या पहले भी कामवती के साथ ऐसा हुआ है?
बने रहिये कथा जारी है