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चैप्टर -2 नागवंश और घुड़वंश कि दुश्मनी अपडेट -19
नागेंद्र कामवती कि जांघो पे लिपटा फूंकार रहा था भयानक रूप धारण किये हुआ था, इस से ज़्यदा वो कर भी क्या सकता था जहर तो बचा नहीं थी...
रंगा बिल्ला अचानक हमले से चौक जाते है और छीटक के कामवती को छोड़ देते है.
तभी एज़ आवाज़ गूंजती है घायययय...
एक गोली कही से चलती हुई बिल्ला कि बाहाँ को चीर देती है, सभी लोग अचानक होती घटना से अचंभित थे,
रंगा कुछ समझने लायक नहीं था, बिल्ला गोली के झटके से संतुलन खो कमरे कि खिड़की के पास जा गिरता है,
गोली दरोगा वीरप्रताप कि राइफल से निकली थी जो कि अपनी प्रतिज्ञा के चलते समय पे पहुंच चुके थे,
पीछे से दरोगा के आदमी भी भागते हुए वहाँ पहुंचते है.
हवलदार :- साहब रंगा बिल्ला के सभी आदमी मारे गये है.
दरोगा :- शाबास लखन शबास वो देखो इनके सरदार एक भीगी बिल्ली बना पड़ा है दूसरा गोली खा के मरने के कगार पे है.
हाहाहाहाहा... हाहाहाहा..
जोरदार ठहका लगा देता है उसे अपने सफलता पे अतिआत्मविश्वास हो चला था अपितु उसे यकीन नहीं हो रहा था कि इतनी आसानी से रंगा बिल्ला हाथ आ जायेंगे.
दरोगा :- देख लखन देख... जिन डाकुओ से सारा इलाका काँपता है, जिनका खौफ फैला हुआ है उन्हें हमने पकड़ लिया.
कब्जे मे लो सालो को....
लखन और उसके आदमी जैसे ही आगे बढ़ने को होते है
तभी अचानक खिड़की के पास एक साया प्रकट होता है निपट अँधेरी रात मे सिर्फ एक परछाई दिखती है.
परछाई बिल्ला को पकड़ती है और रस्सी के सहारे खिड़की से नीचे कुदा देता है साथ ही खुद भी गायब.
दरोगा के आदमी जब तक पहुंचते बिल्ला और परछाई गायब... बचता है सिर्फ रंगा.
लखन :- साहेब यहाँ तो कोई नहीं है लगता है बिल्ला भाग गया.
दरोगा :- कोई बात नहीं रंगा तो हाथ आया बिल्ला को तो वैसे ही गोली लगी है ज्यादा दिन नहीं जी पायेगा. हाहाहाहाा.....
दरोगा वीरप्रताप बहुत ख़ुश था उसनेअपने जीवन का मुकाम हाशिल कर लिया था बिल्ला घायल मारने को था रंगा उसकी गिरफ्त मे था.
वीर प्रताप कामयाब हो चूका था....
यहाँ रामनिवास के घर पे मंगूस को भी कामयाब होना था लेकिन कैसे हो रतीवती तो काम कि देवी थी हार कहाँ मानती थी, जितना चोदो सब कम है....
मंगूस :- मुझे कामयाब होना है तो इस स्त्री को काबू करना ही होगा, ये सोच के मंगूस रतीवती को उल्टा पटक देता है और उसके ऊपर सवार हो जाता है.
उसका लंड अभी भी रतीवती कि गांड मे घुसा हुआ था पूरा जड़ तक टपा टप मारे जा था, रतीवती कामुक आहे भर रही थी वो तो कब से इसी अग्नि मे जल रही थी, वो भी अपनी गांड मंगूस के लंड पे पटक रही थी.
रतीवती :- जो भी है ये शख्स कमाल का है गांड कि खुजली मिट रही है.
मंगूस :- हे भगवान क्या स्त्री है स्सखालित होने का नाम ही नहीं लेती.... फच फच पच कि आवाज़ करता चुत से पानी का सागर छलके जा रहा था जिसे रतीवती अपना हाथ डाले रोकने कि नाकाम कोशिश कर रही थी.चुत के दाने को घिसी जा रही थी, इसे अपनी चुत रुपी नदी पे बाँध बनाना था, परन्तु भला कभी कोई हवस को रोक पाया है जो आज रतीवती रोकती
मंगूस अब देर नहीं कर सकता था,
वो कामअग्नि मे जलती रतीवती को बिस्तर से नीचे पलट देता है उसका सर नीचे और गांड बिस्तर के सहारे ऊपर को थी.
इस कला ऐसे आसन से रतीवती घन घना गई और उत्तेजना मे एक पानी का फव्वारा मार दिया जो ऊपर उछल वापस नीचे आ के सीधा रतीवती के मुँह मे गिरा, खुद कि चुत का पानी पी के रतीवती तृप्त होने लगी आंखे बंद किये स्वाद ही ले रही थी कि गरम पानी छोड़ती चुत मे मोटा सा कुछ सरकने लगा, और धीरे धीरे जा बच्चेदानी से जा लगा ये वही खूबसूरत बच्चेदानी है जहाँ से कामवती जैसी अप्सरा निकली है..
रतीवती सिसकारी मारती आंखे खोलती है मनहूस पूरी तरह उसकी चुत ने लंड फ़साये खड़ा रहा
रतीवती नीचे से मंगूस का गोरा लंड अपनी चुत मे धसा देख पा रही थी...
आअह्ह्ह..... चोदो मुझे रहा नहीं जा रहा कस के चोदो फाड़ दो चुत
मंगूस गचा गच चुत मे लंड पिरोये जा रहा था, ऐसी उत्तेजक और गरम चिकनी पानी से भरी चुत रोज़ नहीं मिला करती.
नीचे रतीवती सर पटक रही थी, अपने स्तन नोच रही थी मांग मे सिदुर लगाए माथे पे बिंदी सजाये एक कामुक औरत को और क्या चाहिए.
मंगूस अब तेज़ हो चूका था पूरी रफ़्तार से चुत मारे जा रहा था टप थप थप.... कि आवाज़ गूंज रही थी.
गांड का छेद खुल बंद हो रहा था,मंगूस गांड पे ढेर सारा थूक देता है और उस थूक को ऊँगली से गांड के छेद के चारो तरफ फैलाने लगता है..
आअह्ह्ह...... इस अहसास ने तो जान ही ले ली रतीवतीं कि. भयंकर सिसकारी कि गरजना उठीं थी रतीवती के मुँह से.
मंगूस :- लगता है यही है इसका कमजोर बिंदु.
ऐसा सोच वो पक से एक ऊँगली गांड मे डाल देता है और गांड को अंदर से कुरेदने लगता है. चुत मे पड़ते लंड और गांड मे घुसी ऊँगली एक अलग ही गुदगुदी मचा रही थी,चुत से निकलता करंट नाभी को भेद रहा था.
रतीवती उत्तेजना के उन्माद मे गांड ऊपर कि और धकेल रही थी चाहती थी कि गांड कि जड़ तक कुछ पहुंच जाये.
तड़प रही थी, बेचैन थी उसे वो चरम सुख चाहिए था जिसका परिचय डॉ. असलम से मिला था लेकिन ये कुछ अलग था कुछ नया था.
जहाँ डॉ. असलम पे रतीवती हावी रहती थी वही आज मंगूस भारी था काम कला का अलग सबक सिख़ रही थी रतीवती.
चुत से निकलते पानी को मंगूस अच्छे से हाथ मे लपेट लेता है और एक तीखी आवाज़ धक फच केसाथ गांड का छेद बड़ा होता चला जाता है मंगूस कलाई तक हाथ पूरा गांड मे उतार चूका था.
आअह्ह्हम...... ये क्या किया आहहहह मरी मै रतीवती सिहर उठी उन्माद मे जोर से चीख पड़ी परन्तु ये चीख किसी के कान तक ना पहुंच सकी सब थके हारे गहरी नींद मे थे ....
गहरी तो रतीवती कि गांड भी थी, मंगूस लंड का धक्का रोक चूका था लंड सिर्फ अंदर बच्चेदानी के साथ चुम्बन कि अवस्था मे था परन्तु मंगूस का हाथ कहर ढा रहा था आज इस मादक स्त्री पे.
मंगूस अपना हाथ गांड ने घुसाए अंदर मुठी ने गांड के मांस को टटोल रहा था, भींच रहा रहा नोच रहा था.
पांचो उंगलियां गांड से खेल रही थी वो भी अंदर... लगता था जैसे मंगूस किसी संकरे खड्डे मे हाथ डाले मछली पकड़ रहा हो, कभी पकड़ाई अति तो कभी हाथ से छूटजाती..
रतीवती बेसुध हो गई थी, पसीने से लाल सिदूर चेहरे पे फ़ैल गया था, स्तन तेज़ी से ऊपर नीचे हो रहे थे. ऐसा सुख वो भी गांड के रास्ते ऐसा तो कभी सोचा ही नहीं.
रतीवती मंगूस का हाथ पकड़ लेती है, उसपे दबाव बनाने लगती है जैसे कह रही हो और अंदर डालों भींच लो पकड़ के.... आअह्ह्ह.... सिसकारी बंद होने का नाम नहीं ले रही थी.
मंगूस गांड के मांस को अंदर से पकड़ के थोड़ा बाहर खिंचता फिर छोड़ देता... रतीवती तो दोहरी ही होती जा रही थी, अब लंड भी चल पड़ा था इसी रास्ते पे...
चुत और गांड के बीच सिर्फ एक पतली से चमड़ी ही थी... चुत मे जाते लंड को मंगूस का हाथ गांड से ही महसूस कर रहा था. वो गांड मे हाथ डाले ही खुद के लंड को पकडडने कि कोशिश करने लगता है.... ऐसा मजा ऐसा सुख रतीवती सहन ही ना कर सकी.... भरभरा के फछाक से सफ़ेद पानी के फव्वारा चुत से निकल पड़ता है, फव्वारा इतना प्रेशर से निकलता है कि अंदर घुसे लंड को बाहर फेंक देता है.... रतीवती कि चुत काँपे जा रही थी... गांड को इतनी जोर से भींच लिया था कि मंगूस का हाथ अंदर ही फस गया थ.... गांड मे हाथ फ़साये मंगूस रतीवती के बदन मे होते झटको को महसूस कर रहा था.
चुत से पानी निकल निकल के सीधा रतीवती के मुँह मे गिर रहा था क्युकी उसका मुँह नीचे और गांड ऊपर थी..
बेसुध अपनी चरम अवस्था को महसूस करती रतीवती मुँह खोले पड़ी थी उसकी आंखे बंद हो चुकी थी लगता था अब नहीं उठेगी.
मंगूस धीरे से पुक कि आवाज़ के साथ गांड से अपना हाथ बाहर निकलता है अब वहाँ बड़ा से द्वार खुल चूका था.
बेहोशी कि हालत मे पड़ी रतीवती को कोई सुध नहीं थी कि उसके जिस्म से सोने के गहने खुलते चले जा रहे है....
सोने के कंगन, मंगलसूत्र, कान कि बलिया... सब उतरने लगे.
मंगूस को अपना खजाना मिल चूका था और रतीवती भी चरमसुःख का खजाना प्राप्त कर चुकी थी...
धीरे से दरवाज़ा खुलता है और जैसे अँधेरे से पैदा हुआ था वैसे ही अँधेरे मे गायब....
मंगूस अपने घर जा रहा था!
कही और भी घोर अँधेरे मे एक साया बिल्ला को थामे लड़खड़ाते लिए चले जा रहा था. बाह मे गोली धसी हुई थी, लगातार खून बहे जा रहा था, लगता था बिल्ला अब मरा कि तब मरा.
मालिक कुछ नहीं होगा आपको? मै हूँ ना?
आप मर नहीं सकते.
तो क्या बिल्ला मर जायेगा?
और मंगूस कहाँ चल दिया? कहाँ रहता है मंगूस?
कथा जारी है... बने रहिये