अब क्या होगा दरोगा का?
रुखसाना,सर्पटा से बदला ले पायेगी?
बने रहिये....कथा जारी है...
Wow, wow
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रुखसाना,सर्पटा से बदला ले पायेगी?
बने रहिये....कथा जारी है...
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Mast update mitrचैप्टर :-4 नागमणि की खोज अपडेट -53
मांगूस बेहोशी के गर्त मे समाता चला जा रहा था.
और ऊपर हवेली मे असलम कामवती की मादक बड़ी गांड मे समाता जा रहा था.
गुदा छिद्र पे लगातार हमला कर रहा था,अपने होंठो से पकड़ पकड़ के चूस रहा था,बाहर को खिंच रहा था..
ऐसा स्वाद ऐसी महक कभी ना मिली थी असलम को,
कामवती भी ना जाने किस आनंद मे थी आंखे बंद किये दांतो तले होंठ दबाये लेती थी,गांड थूक से भर गई थी थूक रिसता हुआ नीचे जाता की तभी असलम जोर से सुर्रा मार के थूक वापस अपने मुँह मे खिंच लेता.
कामवती को ये अहसास ना जाने किस विचार मे डूबाता जा रहा था उसके मानस पटल पे दृश्य उभर रहे थे
एक मनमोहक जंगल मे एक वो पूर्ण नग्न चट्टान पे झुकी पडी है,पसीने से लथ पथ लम्बी लम्बी सांसे भर रही है,बदन मे एक उत्तेजना दौड़ रही है उसका कारण था पीछे कोई नौजवान उसकी बड़ी गांड मे अपना मुँह धसाये हुआ था उसकी जबान कामवती की चुत और गांड को कुरेद रही थी.
कामवती को लगता है जैसे उसके शरीर से कुछ निकलने वाला है,कोई गरम चीज चुत और गांड फाड़ के बाहर आ जाएगी.
सहना मुश्किल था...
आअह्ह्हभ........कामवती चिल्ला पड़ती है और आगे को गिर जाती है.
असलम जो उसकी गांड चूस रहा था एक दम बोखला जाता है.
"क्या हुआ...क्या हुआ....कामवती "?
कामवती जो बदहवास थी...आंखे खोले आसपास देखने लगी."ये कैसे दृश्य था,वो जंगल कैसा था?मै वहा क्या कर रही थी? वो युवक मेरी गन्दी जगह को क्यों चाट रहा था?कैसा मजा था वो?"
असलम :- क्या हुआ कामवती कुछ बोलो...पसीने पसीने क्यों हो गई. असलम बुरी तरह डर गया था क्युकी उसके मन मे पाप था.
कामवती खुद को संभालती है और लहंगा नीचे कर लेती है, "कुछ नहीं काका...लगता है बुरा सपना देखा मैंने "
असलम की जान मे जान आती है "कोई बात नहीं कामवती अब जहर निकल गया है डरने की कोई बात नहीं "
कामवती जो कही गुम थी....अच्छा काका अब उसके चेहरे पे डर का कोई नामोनिशान नहीं था.
"जो भी देखा वो सपना तो नहीं था"
तभी बाहर कदमो की आवाज़ आती है,असलम संभल के बिस्तर के पास खड़ा हो जाता है कामवती अभी भी लेटी हुई थी.
ठाकुर :- असलम मेरे दोस्त सांप तो मिला नहीं अब क्या होगा?
असलम :- डरिये मत ठाकुर साहेब सांप ज्यादा जहरीला नहीं था मैंने जहर निकाल दिया है. आज आराम करेगी तो कल तक ठीक हो जाएगी मै कुछ दवाई दे देता हूँ.
ठाकुर नाम से ही ज़ालिम था बाकि एक नंबर का बेवकूफ ये पूछने की जहमत भी नहीं उठाई की कैसे निकाला जहर? कहाँ काटा था सांप ने?
बेवकूफ था या असलम की दोस्ती पे विश्वास रखता था परन्तु इसी विश्वास की हत्या कर चूका था डॉ.असलम.
ठाकुर :- कैसे सुक्रिया अदा करू मेरे दोस्त तुम्हारा तुम ना होते तो ना जाने क्या होता मेरा.
असलम :- इसमें शुक्रिया की कैसी बात अपने मित्र कहा है मुझे ये तो मेरा फर्ज़ है.
वैसे इतना कुछ हो गया भूरी काकी नहीं दिखी? कहाँ है?
ठाकुर :- यही तो मुसीबत है जब जरुरत है तो भूरी काकी गायब है.
कालू रामु तुम दोनों जाओ और आस पास के गांव मे काकी की खबर लो कही कोई मुसीबत मे तो नहीं.?
"जी मालिक "
बिल्लू भी ठकुराइन की माँ को लेने गया है शाम तक रतिवती जी आ जाएगी फिर कोउ चिंता नहीं.
ठाकुर और असलम बात करते करते बाहर को निकाल जाते है.
अंदर कामवती उस दृश्य को भूल नहीं पा रही थी,उसके बदन मे एक अजीब सा संचार हो रहा था,एक उन्माद उठ रहा था.
सूरज सर पे चढ़ आया था
काली पहाड़ी मे स्थति एक गुफा नुमा कमरे मे.
"मेरे भाई बिल्ला देख मै आ गया हूँ " रंगा कमरे मे रुखसाना के साथ आ पंहुचा था.
बिल्ला अब काफ़ी स्वस्थ हो चूका था रंगा को देखते है उस से गले मिल बैठा,लगता था जैसे दो बिछड़े भई सालो बाद मिले है,
रंगा बिल्ला दो शख्स एक जान थे और उन्हें नया जीवन दिया था रुखसाना ने.
रंगा बिल्ला बहुत कुरुर थे,ज़ालिम थे ना जाने कितनी हत्या की थी
परन्तु आज वो दोनों ही रुखसाना के अहसान मंद थे.
रंगा :- कैसा है बिल्ला मेरे भाई? वो इंस्पेक्टर बोलता था की तू मरने की कगार पे है.
बिल्ला :- मै तो मर ही गया था लेकिन रुखसाना ने बचा लिया.
रंगा :- उस साले हरामजादे इस्पेक्टर को तो खून के आंसू रुलायेंगे बिल्ला उसकी सातों पुस्ते उसकी मौत याद रखेगी.
बिल्ला रुखसाना की और देखते हुए "रुखसाना आज तक कभी किसी ने मेरे लिए इतना नहीं किया जीतना तुमने किया, तुमने हमें नया जीवन दिया है.
बोलो क्या मांगती हो?
रुखसाना जो की ना जाने कब से इसी क्षण की प्रतीक्षा मे थी, यही वो समय था जिसके लिए उसने इतना कुछ किया.
रुखसाना :- मुझे अपने पति परवेज के हत्यारे का नाम और पता चाहिए रंगा बिल्ला?
रुखसाना की आँखों मे अँगारे थे
रंगा :- ये..ये...क्या कह रही हो रुखसाना तुम?
बिल्ला :- तुम्हे तो अपने पति से कोई प्यार नहीं था?
रुखसाना :- मानती हूँ की मुझे जो शारीरिक सुख तुम दोनों से मिला वो कभी मेरे पति से नहीं मिला,लेकिन मै परवेज से बहुत प्यार करती थी वो भी दिलो जान से चाहता था मुझे, मेरी मजबूरी या मेरे बदन की जरुरत ही कह लीजिये की मै आप दोनों के पास चली आई.
रंगा बिल्ला उसकी बाते सुन दंग रह गए एक स्त्री क्या नहीं कर सकती उन्हें इस बात का अहसास हो चला था.
बिल्ला :- ठीक भी रुखसाना बता देंगे परन्तु उसके बाद तुम्हारा हमसे खोज रिश्ता नहीं रहेगा,क्युकी उसके बाद तुम जिन्दा ही नहीं बचोगी....हाहाहाहाबा....
"मुझे अपना अंजाम मंजूर है "
रंगा :- तो सुनो काली पहाड़ी और विष रूप के जंगलो मे एक काली गुफा है जहाँ हमारे देवता सर्पटा विराजमान है हमने सुना है की उन्होंने ही तुम्हारे पति की बली ली है. जा बिगाड़ ले उसका.
रुखसाना ये बात सुनते ही आगबबूला हो गई...
रुखसाना आँखों मे आंसू लिए बाहर निकल गई इसकी आँखों मे अँगारे थे, बदला लेने का इरादा था..ये आँसू प्रतिशोध के आँसू थे.
सर्पटा के दुश्मनो मे एक और शख्स शामिल हो गया था.
गांव कामगंज
बिल्लू कामगंज पहुंच चूका था
रामनिवास का घर की छटा ही बदल गई थी,घर चमचमा रहा था किसी हवेली को तरह शोभा बिखेर रहा था बिखेरता भी क्यों ना.
आखिर ठाकुर खानदान के समधी जो थे, हमेशा की तरह रामनिवास दारू के अड्डे पे बैठा था,और रतिवती गुसालखाने मे नहाने को गई हुई थी,
जाते जाते रामनिवास को बोला था की बाहर से दरवाज़ा बंद कर के जाये.लेकिन रामनिवास को कहाँ सुध थी वो तो दरवाज़ा खुला छोड़े ही चला गया था.
बिल्लू रामनिवास के दरवाजे पे पहुंच गया था, ठक ठक ठक..।अंदर कोई है?
कोई उत्तर नहीं मिला
वापस ठक ठक ठक....ठाकुर साहेब के यहाँ से सन्देश आया है,कोई है?
कोई जवाब नहीं
बिल्लू :- क्या माजरा है,दरवाजा तो खुला हुआ है अंदर ही चल के आवाज़ देता हूँ.
अंदर रतिवती नहा चुकी थी, अंगवस्त्र पहन लिए थे उसकी साड़ी कमरे मे ही थी
अब घर पे तो कोई था नहीं तो कमरे मे ही जा के पहन लुंगी ऐसा सोच रतिवती बेखबर गुसालखाने से बाहर निकल आई....
बिल्लू चलता हुआ आंगन तक आ गया था.... रतिवती ने गुसालखाने का दरवाजा खोल दिया और पहला कदम बाहर ही रखा था की उसकी नजर बिल्लू पे पड़ गई....
आआहहहह......इईईईई.....डर से उसके हाथ से तौलिया भी छूट गया.
रतिवती सिर्फ अंगवस्त्र पहने बिल्लू के सामने खड़ी थी किसी कामदेवी की तरह बिलकुल तरासा हुआ बदन,असलम और मंगूस से चुद के उसके बदन मे कामुक निखार आ गया था एक चमक निकल रही थी उसके बदन से.
इस चमक से... बिल्लू भी अछूता ना रह सका उसकी सांसे ही थमने लगी थी, ऐसी स्त्री,ऐसा भरा बदन गिला पानी की बून्द टपकता,लाल अंग वस्त्र मे भरपूर यौवन उसके सामने खड़ा था
चोर.....चोर...डाकू....चिल्लाती रतिवती अपने कमरे की और भागती है, भागने से उसकी गद्देदार गांड हिल हिल के भूकंप पैदा कर रही थी और ये भूकंप,थिरकन बिल्लू को साफ अपनी धोती मे महसूस हो रही थी.
अब क्या होगा दरोगा का?
रुखसाना,सर्पटा से बदला ले पायेगी?
बने रहिये....कथा जारी है...
Dhaanshu update mitrचैप्टर :-4 कामवती का पुनः जन्म अपडेट -54
गांव घुड़पुर
"हमें अपने भाई विचित्र सिंह की चिंता हो रही है वीरा, बहुत दिन बीत गए उसकी कोई खबर ही नहीं है "
रूपवती अपने घोड़े वीरा के साथ चिंतित अवस्था मे हवेली के पास ही जंगल मे घूम रही थी.
जब से वीरा ने उसकी चुदाई की है वो वीरा की दीवानी हो गई है उस दिन के बाद से वीरा रोज़ रात को इंसानी रूप मे रूपवती को खूब भोगता था,खूब निचोड़ता था.
रूपवती भी इस चुदाई से खिलतीं जा रही थी उसके अंग अंग मे मदकता आ गई थी.
वीरा की खास बात ही यही थी की वो भले इंसानी रूप मे हो लेकिन लंड घोड़े का ही रहता था, अपने भयानक लंड से वो रूपवती की चुत गांड को पूरी तरह फाड़ चूका था इतने दिनों मे, क्या चुत और क्या गांड अब कोई फर्क नहीं था उसकी जगह एक बड़ा सा गड्डा भर था.
सिर्फ बदकिस्मती से उलजुलूल के श्राप से वो सिर्फ रात मे ही इंसानी रूप ले सकता था दिनभर उसे घुड़रूप मे ही रहना होता था.
अभी भी घुड़रूप मे ही रूपवती के साथ टहल रहा था.
वीरा :- आप व्यर्थ ही चिंता करती है रूपवती,मत भूलिए वो ठाकुर विचित्र सिंह के अलावा महान चोर मंगूस भी है वो चोर जो कभी नाकामयाब नहीं हुआ.
रूपवाती :- जानते है हम की वो कभी हारता नहीं है फिर भी मेरा छोटा भाई है...कोई समाचार नहीं है उसका
कही कोई अनहोनी तो नहीं हो गई उसके साथ.
वीरा :- यदि ऐसी ही बात है तो आप चिंतित ना हो मै खुद विष रूप जा के विचित्र सिंह की खबर ले आता हूँ.
रूपवती उसकी इस बात से सहमत थी उसने अपना सर वीरा के सर पे टिका दिया...उसके प्यार एयर स्नेह का यही तरीका था.
वीरा :- जल्दी ही लोटूंगा रूपवती...
वीरा सरपट दौड़ जाता है...पीछे कामुक बदन लिए रूपवती उसे देखती रह जाती है.
"बस मेरे भाई के साथ कोई अनहोनी ना हुई हो "
अनहोनी तो हो चुकी थी चोर मंगूस सफल हो भी असफल जमीन की धूल चाट रहा था,
चाटककककक..... उठ साले हरामी.
कहाँ है मेरी मणि? तू यहाँ क्या कर रहा है?
चाटककककम.....फुसससस...
आअह्ह्ह.... चोर मंगूस होश मे आ रहा था,तभी चाटकककम.....
उसकी आंखे पूरी तरह खुल जाती है,सर मे भयानक पीड़ा हो रही थी..परन्तु जैसे ही उसकी नजर सामने पड़ती है हवा टाइट हो जाती है.
उसके सीने पे भयानक काला सांप बैठा था,सांप ने मंगूस के गले मे फंदा बना कुंडली मे जकड़ा हुआ था.
नागेंद्र :- बोल कहाँ है मेरी नागमणि? बोल वरना गला दबा दूंगा
मंगूस : बताता हूँ बताता हूँ...गला तो छोड़.
मंगूस,रूपवती के द्वारा सुनी पूरी बात बता देता है.
नागेंद्र :- ओह तो ये बात है...तुझे वीरा ने भेजा है?
बोल कहाँ है मेरी मणि?
मंगूस :- मुझे किसी ने नहीं भेजा है मै चोर हूँ चोर मंगूस नायब हिरे जवाहरत चुराना मेरा शौक है.
और तेरी मणि भूरी काकी ले गई...और वही कामरूपा है.
नागेंद्र ये बात सुन के चौक जाता है "क्या...क्या..क्या कहाँ तूने भूरी काकी ही कामरूपा है?
हाँ भाई हाँ...सब मेरी आँखों के सामने ही हुआ, और तेरा बाप सर्पटा भी जिन्दा है उसी के लिए वो नागमणि ले गई है.
सारा किस्सा कह सुनाता है मंगूस.
नागेंद्र की कुंडली ढीली होती चली जाती है,मंगूस के सीने से उतर बाजु मे गिर पड़ता है उसके लिए यकीन कर पाना मुश्किल था.
"मतलब वो कामिनी कामरूपा इतने बरसो से मेरी आँखों के सामने रही और मै पहचान भी ना सका "
मंगूस भी उठ के बैठ गया था.
नागेंद्र :- ये तूने क्या किया अब बिना मणि के कामवती को कैसे हासिल कर पाउँगा मै?
मंगूस :- कामवती? वो ठाकुर की नयी बीवी? उस से तेरा क्या लेना देना?
नागेंद्र दुख मे डूबा हुआ था "कामवती मेरा प्यार है मंगूस और ये उसका दूसरा जन्म है इस जन्म मे उसे पाने के लिए ही मै शाप ग्रस्त जीवन जीने पे मजबूर हूँ,एक नागमणि ही थी जो मेरी ताकत थी वो भी तूने गवा दी.
मंगूस को अफ़सोस होने लगा "नागेंद्र,मंगूस कभी नाकामयाब नहीं होता मणि मै वापस ले आऊंगा.
तुम मुझे पूरी बात बताओ....
तो सुनो मंगूस.....
नागेंद्र अब अपने और कामवती के प्यार की कहानी कहने जा रहा है.
जो की बड़ा ही अजीब प्यार होने वाला है.
ये चक्कर क्या है जिसमे वीरा भी कामवती से प्यार का दावा करता है और नागेंद्र भी कामवती का प्यार है?
क्या एक ही समय दो लोगो से प्यार संभव है?
बने रहिये इस प्यार की बाहर मे....कथा जारी है.
Nice update Bhaiअपडेट 7 contd....
रतीवती अपनी सांसे दुरुस्त करती है और तुरंत भाग के अपना ब्लाउज पहन लेती है इस गहमा गहमी मे पसीने से तर हो जाती है इतना पसीना आने मे कुछ हाथ थोड़ी देर पहले हुई घटना का भी था,
रतीवती पसीने मे भीगी सकपाकाहाट मे दरवाजे कि और बढ़ती है,एक अजीब उत्तेजना पुरे बदन को हिला रही थी.
रतीवती कापते हाथो से दरवाजा खोल देती है, कल्लूराम अभी भी बाहर मुँह खोले खड़ा था.
रतीवती को समझ नहीं आ रहा था कि वो हलवाई से कैसे कुछ बोले?
कल्लूराम अभी भी मूर्ति बने ही खड़ा था.
रतीवती को उसकी ये हालत देख के खुद पे घमंड होता है कि मेरे बदन मे आज भी वो बात है कि किसी मर्द को जडवत कर दू, हैरान कर दू.
काका ओ काका.... कहाँ खो गये ऐसा बोलते हुए रतीवती दरवाजे से बाहर हो के निकलती है, कल्लूराम ऐसे खड़ा था कि जगह ही नहीं थी, रतीवती निकलते वक़्त कल्लूराम से रगड़ जाती है.
इस रगड़ाहट से एक उत्तेजक चिंगारी निकलती है जो दोनों के ही शरीर को हिला देती है.
उत्तेजना का करंट लगने से हलवाई होश मे आता है और पहले से ही खड़े लंड को सँभालने के लिए उसे हाथ से दबाता है.
रतीवती उसे ऐसा करते देख लेती है, लेकिन बिना कुछ बोले पलट के आगे आगे चलने लगती है जहाँ खाना बन रहा था, रतीवती चलते हुए मुस्कुरा रही थी
मन मे "कैसे काका अपना लंड दबा रहे थे, क्या मै अभी भी सुन्दर हूँ?"
इतना सोचना था कि रतीवती कि चाल मे अचानक परिवर्तन आ गया अब वो और ज्यादा अपनी बड़ी गांड मटकाये जा रही थी.
जिसे पीछे पीछे आता कल्लूराम एक टक देख रहा था, जब गांड दाये जाती तो कल्लूराम का सर भी दाये जाता, और जब गांड बाएं जाती तो सर भी बाएं को झुकता.
ऐसा लगता था जैसे रातीवती कि गांड मे कोई रिमोट फिट है जो कल्लूराम कि गर्दन को हिला रहा है.
रतीवती समझ चुकी थी कि बुड्ढा हलवाई उसका दीवाना हो गया है.
तभी रतीवती एक दम से पीछे गर्दन घुमा के बड़ी अदा से बुड्ढे हलवाई को देखती है, समझ जाती है कि वो उसकी लचकती गांड को ही घूर रहा है
उसे भी मजा आ रहा था उसे अपना बदन दिखाने मे, अब जिसे मेरी बदन कि कद्र है उसे तो सुख दे ही सकती हूँ थोड़ा वो ऐसा सिर्फ खुद को दिलासा देने के लिए सोच रही थी जबकि असल मे कल्लूराम के दीवानेपन और उसकी हरकतों कि वजह से उसके शरीर गर्म हो रहा था, गर्म हो भी क्यों ना उसका शराबी पती तो उसकी तरफ देखता तक़ नहीं था तारीफ और प्यार क्या खाक करता और स्वभाव तो था ही चंचल
खाने का पंडाल आ चूका था,
रतिवती :-चखाइये ना काका, क्या चखा रहे थे? बड़ी अदा के साथ वापस पीछे हलवाई कि तरफ घूम जाती है.
कल्लूराम :- वो मै मै..... वो मै.. बबबब.... क्या था मै.
रातीवती हॅस पड़ती है, काका क्या बात है ऐसे हकला क्यों रहे है.
हलवाई हसती हुई रतीवती को देखता ही रह जाता है, क्या खूबसूरत है बीबी ज़ी ऐसी खूबरत तो दूर दूर के गांव मे भी नहीं होंगी.
तभी कही से एक हवा का झोंका आता है और रतीवती का पल्लू सरक जाता है,
रतीवती ने जल्दबाज़ी मे साड़ी अच्छे से नहीं पहनी थी और ना ही ब्लाउज के पुरे बटन लगाए थे.
हलवाई फिर से ये नजारा घूरता ही रह जाता है, उतने मे ही रतीवती साड़ी संभल लेती है यदि आज साड़ी सँभालने मे थोड़ी से भी देर हुई होती तो पक्का बुड्ढे हलवाई को दिल का दौरा पड़ जाता.
कल्लूराम :- कितनी.... कितनी.. बबबब... मै... क्या... कितनी सुन्दर हो बीबी ज़ी आप, पता नहीं किस आवेश या उत्तेजना मे वह ये बात कह गया.
रतीवती अपनी तारीफ सुन के शर्म से अपना सर नीचे चूका लेती है तभी उसकी नजरें अपने ब्लाउज पे पड़ती है ऊपर के दो बटन खुले हुए थे तो क्या काका ने मेरे स्तन फिर से देख लिए.
क्या हो रहा है मेरे साथ ये सुबह से उफ्फ्फ्फ़.....
ऐसा सोच के वो जल्दी से अपनी साड़ी से स्तन के ऊपरी हिस्से को ढक के नार्मल होने कि कोशिश करती है.
रतीवती :- क्या कह रहे थे काका आप? उसकी आवाज़ ने एक कंपकपी थी मदहोशी से आवाज़ थोड़ी अटक रही थी.
रतीवती को नाराज ना होता देख कल्लूराम मे थोड़ी हिम्मत आति है
कल्लूराम:- वो बीबी ज़ी आप कितनी सुन्दर है.इस बार हलवाई ने बिना अटके ही बोल दिया था रतीवती कि मुस्कुराहट से उसमे आत्मविश्वास आ गया था.
रतीवती :- क्या काका आप भी अब तो मै बूढ़ी हो चली हूँ, देखो अब तो मेरी बेटी कि भी शादी होने वाली है.
कल्लूराम :- अजी छोड़िये क्यों मुँह खुलवाती है मेरा? कौन कहता है आप बूढ़ी हो गई है.
भगवान कसम आप तो आज भी जवान लड़कियों को फ़ैल कर दे, क्या जवानी है आपकी. साक्षात् रती देवी का अवतार है आप.
ऐसा बोल के हलवाई अपने खड़े लंड को मसल देता है.
रतीवती अपनी ऐसी तारीफ सुन के उत्तेजित होने लगती है ऊपर से वो हलवाई को अपना लंड सहलाते देख लेती है.
दबी हुई वासना हिलोरे मारने लगी थी, सांसे थोड़ी तेज़ हो चली थी इसका सबूत रतीवती के ऊपर नीचे होते गोरे बड़े स्तन दे रहे थे.
आअह्ह्ह l...हलवाई के मुँह से ऊपर नीचे होते स्तन देख के आह्हःम... निकल जाती है, जिसे रतीवती सुन नहीं पाती.
रतीवती :- चलिए छोड़िये ये सब बाते, अब इस सुंदरता कि कोई कदर नहीं, आप तो चखाइये क्या चखा रहे थे?क्या किस्मत है रतीवती कि पति ध्यान देता नहीं और यहाँ बुढ़ा मरा जा रहा है उसके लिए.
वाह री किस्मत....
कल्लूराम :- हाँ आइये बीवी ज़ी, ऐसा बोल के पंडाल के पीछे जाने लगता है,
जहाँ एक बड़ा सा भगोना रखा था जिसमे सब्जी बनी हुई थी, हलवाई उसका ढक्कन खोल देता है और थोड़ा सा पीछे हटता है.
कल्लूराम :- लो बीवी ज़ी देख लीजिये.
रतीवती जा के कलकुराम के आगे खड़े हो जाती है और भागोने पे झुकने लगती है, सब्जी कि खुशबू लेने के लिए
ऐसा करने से उसकी गांड बाहर को निकल जाती है, उसके झुकने से गांड पीछे जाती हुई किसी सख्त लम्बी चीज से टकराती है.
अब ऐसा रतीवती ने जान बुझ के किया था या खुद से हो गया कह नहीं सकते.
वो सख्त चीज हलवाई का लोड़ा था जो कि ऐसी हाहाकारी मदमस्त गांड देख के तनतना गया था.
उसका बूढ़ा लंड कभी भी वीर्य कि बौछार कर सकता था, बूढ़े के लंड ने आज कितने सालो बाद अंगड़ाई ली थी.
रतीवती सब्जी कि खुशबू लेती है और जानबूझ के अपनी गांड थोड़ा पीछे धकेल देती है, बिल्कुल कल्लूराम कि धोती से चिपक जाती है.
कल्लूराम का लंड तनतनाया रतीवती कि गांड कि दरार मे साड़ी के ऊपर से ही दब जाता है.
अब बुढ़ा मरा लगता है...
रतीवती खुशबू के के वॉयस खड़ी होने लगती है और बहाने से अपनी गांड दो बार हलवाई के लंड पे ऊपर नीचे घिस देती है...
हलवाई चीख पड़ता है. आआआहहहहह..... आअह्ह्ह....
पीच पीच पीछाक... हलवाई धोती मे ही स्सखलित ही चूका था और पीछे पड़ी कुर्सी पे ढेर हो जाता है लगता था जैसे किसी ने प्राण ही खींच लिए हो कल्लूराम के.
रतीवती:- सब्जी कि खुशबू तो अच्छी है, ऐसा बोल के जैसे ही पीछे देखती है हलवाई पीछे कुर्सी पे ढेर पड़ा था.
बुड्ढा कहाँ रतीवती जैसे गरम कामुक औरत को संभल पाता, साड़ी के ऊपर से ही गांड कि गर्मी ना झेल सका.
उतने मे ही रामनिवास कि आवाज़ आती है "अरी भगवान सब्जी चखी नहीं क्या अभी तक़? जल्दी करो ठाकुर साहेब का आने का टाइम हो ही गया है "
रतीवती आई कम्मो के बापू, रतीवती हलवाई को वैसे ही मुर्दा अवस्था मे छोड़ के निकल पड़ती है.
रामनिवास :- कैसी बनी सब्जी?
रतीवती :- सब्जी चखती उस से पहले ही चखाने वाला ढह गया.
और मंद मंद मुस्कुरा देती है.
रामनिवास बैल बुद्धि को कुछ समझ नहीं आता.
रामनिवास :- अच्छा चलो तैयार हो लो तुम भी जल्दी से और देखो कि कामवती तैयार हुई या नहीं?
रतीवती अपने कमरे मे चल पड़ती है.
अब उसकी चाल से मादकता झलक रही थी बुड्ढा खुद तो ढेर हो गया था परन्तु रतीवती कि जिस्म मे आग लगा गया था काम कि आग.....
कहानी जारी है
Nice update Bhaiअपडेट 8 contd...
गांव कामगंज मे रामनिवास ठाकुर और डॉ. असलम के सोने कि तैयारी कर चूका था. दोनों को बाहर वाले कमरे मे सोने को बोल दिया गया था.
बाहर तूफान जोरो पे था मौसम बिल्कुल ठंडा हो चूका था, मौसम ऐसा रुमानी था कि बुड्ढ़ो के लंड भी खड़ा कर दे.
ठाकुर साहेब तो अपने आने वाले हसीन दिनों के बारे मे सोच सोच के सो गये थे.
उनके सपने मे भी कामवती ही थी जो उनका वंश बढ़ा रही थी पुरे चार लड़के पैदा किये थे कामवती ने.
लेकिन हक़ीक़त तो ये है कि चार क्या एक मच्छर भी पैदा नहीं कर सकते ठाकुर साहेब अपने 3 इंच कि लुल्ली से.
डॉ. असलम भी सोने कि कोशिश कर रहे थे लेकिन बार बार उनके जहन मे रतीवती का झुक के नमस्कार करने वालादृश्य चल रहा था,
क्या गोरे गोरे बड़े स्तन थे, कितना रस भरा था उनमे.
दिन कि सभी बाते सोच सोच के असलम अपना लंड मसले जा रहे थे ऊपर से रूहानी मौसम कि मार... लंड पूरा खड़ा हो चूका था इतना कड़क कि दर्द देने लगा था.
ठाकुर साहेब बाजु मे लेटे थे तो हिला भी नहीं सकता था. अजीब दुविधा और कामोंउत्तेजना से घिरे थे डॉ असलम.
डॉ. असलम :- ऐसे तो मेरा लंड फट ही जायेगा, थोड़ा बाहर टहल लेता हूँ ध्यान हटे मेरा इन सब पे से वैसे भी में किस्मत कहाँ कि औरत का सुख मिले.
असलम निराश मन से बाहर को निकल पड़ते है.
दूसरे कमरे मे रतीवतीं रामनिवास के साथ लेटी थी,वो आज सुबह से ही गरम थी, ये आग बुड्ढे हलवाई ने लगाई थी लेकिन वो ये आज बुझाता उस से पहले ही खुद बुझ गया.
आज इस खुशी के मौके पे रामनिवास ज्यादा शराब पी आया था और रतीवती के बगल मे ओंधा पड़ा खर्राटे मार रहा था.
रतीवती :- इस हरामी को शराब पिने से ही फुर्सत नहीं है मै यहाँ मरे जा रही हूँ.
रतीवती अपना ब्लाउज उतार देती है और अपने बड़े गोरे स्तन से खेलने लगती है, उसकी आग उसे जला रही थी... अपने दोनों हाथो से अपने दोनों स्तनों को पकड़ के दबा रही थी, मसल रही थी, नोच रही थी... जैसे आज नोच के शरीर से अलग ही कर देगी.
आअह्ह्ह..... आह्हः.... निप्पल को अपनी ऊँगली से पकड़ पकड़ के खींच रही थी आज दिन मे हुए हलवाई के किस्से और बाहर होती बारिश मे गजब कि हवस पैदा कर दिया था रतीवती के कामुक जिस्म मे.
इसी मदहोशी मे वो एक बार मे ही अपनी साड़ी, पेटीकोट निकाल फेंकती है अब ये गर्मी बर्दाश्त के बाहर हो चुकी थी
अपना एक हाथ अपनी मखमली चुत पे रख देती है और जोर जोर से मसलने लगती है आअह्ह्हम.. आह्हः...
परन्तु आज मसलने रगड़ने मे वो मजा नहीं आ रहा था....उसे लंड चाहिए था जो उसकी चुत और गांड फाड़ दे.
जिस्म कि आग है ही ऐसी चीज.... ये जिस्म कि आग तो कही और भी लगी हुई थी
गांव विषरूप, ठाकुर कि हवेली
भूरी काकी अकेली तन्हा हवस कि आग मे तड़पे जा रही थी, बैचैनी से करवट बदल रही थी.
भले भूरी काकी कि उम्र 50 साल थी लेकिन उसे पिछले 30 सालो से किसी मर्द का अहसाह नहीं हुआ था.
वो तड़पती थी तरसती थी लेकिन शर्माहत और इज़्ज़त के कारण कुछ कर नहीं पाती थी बस कभी जब उत्तेजना ज्यादा बढ़ जाती तो बेंगन, लोकि बेलन चुत मे डाल के काम चला लेती थी.
इसी उत्तेजना मे वो अपना ब्लाउज खोल फेंकती है, दोनों बड़े और टाइट स्तन उछल के बाहरआ जाते है
जैसे ही स्तनों पे थोड़ी हवा पड़ती है, निप्पल खड़े हो के तन जाते है और सलामी देने लगते है. भूरी अपने निप्पल को पकड़ के जोर से मरोड़ देती है.
आह्हः.... आआआआहहहहह..
आज तो उतत्तेजना अपने चरम पे थी, ऐसी उत्तेजना उसने आज तक़ कभी महसूस नहीं कि.
लगता था आज मर ही जाएगी उत्तेजना से.
ऐसे रूहानी मौसम मे भी भूरी पसीने से भीगी हुई थी सांसे तेज़ तेज़ चल रही थी.
अब बर्दाश्त के बाहर था भूरी तुरंत उठती है और रसोई कि तरफ भागती है जहाँ कुछ लोकि बैंगन मिल जाये.
परन्तु हाये री फूटी किस्मत आज रसोई मे ऐसा कुछ नहीं था जिसे चुत मे डाल के प्यास बुझाई जा सके.
बाहर बगीची मे लोकि, तरोई, बैगन उगे हुए थे, लेकिन जोरदार बारिश हो रही थी कैसे जाये बाहर... क्या करे ये चुत जीने नहीं देगी.
खूब पानी छोड़े जा रही थी... भूरी पागल हुए जा रही थी.
भूरी निर्णय ले लेती है और हवेली का दरवाजा खोल अर्द्धनंग अवस्था मे ही बाहर लोकि तोड़ने निकल पड़ती है उसे कोई सुध बुध नहीं थी, थी तो सिर्फ हवस जो कि उस कि जान लेने पे उतारू थी.
हवेली के दरवाजे के बाहर बगीची थी, बगीची के आगे बरामदा था उसके आगे मुख्य दरवाजे से लग के एक झोपडी नुमा कमरा था जो कि कालू, बिल्लू और रामु का था वही रह के तीनो हवेली कि सुरक्षा करते थे.
परन्तु आज ठाकुर साहेब हवेली मे नहीं थे तो तीनो मौज मे थे कोई डांटने वाला नहीं कोई रोक टॉक नहीं.
बिल्लू :- यार एक एक बॉटल दारू और हो जाये तो ऐसे मौसम मे मजा आ जाये, साला क्या मौसम बना है आज ऊपर से ठाकुर साहेब भी नहीं है जम के पीते है, क्यों भाई लोग?
कालू, रामु भी बिल्लू कि बात से सहमत थे,
कालू :- ठीक है बिल्लू हम लोग दारू और साथ मे कुछ खाने को लाते है तू तब तक़ नजर रख हवेली पे.
ऐसा बोल के कालू रामु निकल जाते है दारू लेने.
इधर भूरी काकी हवस के उन्माद मे भागी भागी लोकि तोड़ने का रही थी, अपने स्तन को उछालती हुई, सिर्फ पेटीकोट मे ऊपर से बिल्कुल नंगी, मस्त सुडोल बड़े स्तन उछल रहे थे ऊपर नीचे
तभी अचानक उसका पैर फिसलता है और धड़ाम से पीठ के बल गिर पड़ती है और जमीन पे जोरदार टकराती है.
आअह्ह्ह आआहहहह...... चीख के साथ बेहोश हो जाती है.
गांव कामगंज मे रामनिवास के घर पे भी हवस छाई हुई थी
रतीवती पूर्ण रूप से नंगी हो चुकी थी, बस मंगल सूत्र, माथे पे बिंदी, हाथों मे मेहंदी और मांग मे सिंदूर ही बचा था.
वो अपनी चुत रगड़े जा रही थी, पूरी चुत पानी से पच पच कर रही थी चुत से पानी निकल निकल के नीचे गांड के रास्ते होता हुआ बिस्तर को भिगो रहा था. चुत मे ऊँगली करते हुए चूडियो कि छन छानहत गूंज रही थी, ये छन छानहत माहौल मे मादकता घोल रही थी, खुद कि चूडियो का मधुर संगीत सुन के रतीवती हवस के सातवे आसमान पे पहुंच चुकी थी,उसे लंड चाहिए था किसी भी कीमत पे..
वो अपना एक हाथ रामनिवास कि धोती पे रख उसका लंड टटोलने लगती है परन्तु लंड का कोई नामोनिशान नहीं
रतीवती उसकी धोती खोल देती है शायद कोई उम्मीद हो शायद लंड खड़ा हो जाये.
धोती हटा के देखती है तो मरा हुआ चूहा दीखता है जो अब कभी जिन्दा नहीं होगा.
रतीवती बहुत ज्यादा निराश हो जाती है, उसकी किस्मत मे ही यही था... शायद भगवान ने उसकी जिंदगी मे सम्भोग लिखा ही नहीं था.
उसकी उत्तेजना वापस से दब जाती है या यु कहिये वो अपनी इच्छा अपनी हवस को किस्मत का लेखा समझ के दबा लेती है.अपनी उत्तेजना को कम करने के लिए वो मूतना चाहती थी परन्तु बाहर बारिश हो रही थी.
रतीवती :- बाहर बारिश हो रही है, घर के पीछे ही चली जाती हूँ वैसे भी इस तूफानी बरसाती रात मे कौन जग रहा होगा, उसके कमरे से ही पीछे का रास्ता था जिसे खोल के वो नंगी ही मूतने निकल पड़ती है.
क्युकी बाहर तो कौन होगा.
क्या कोई होगा?
Nice update Bhaiचैप्टर -1, ठाकुर कि शादी,अपडेट -9
विषरूप, ठाकुर कि हवेली मे... भूरी मदहोशी, हवस मे भरी स्तन उछालती भागे जा रही थी. और गिर पड़ी.
धमममममम...... और किसी कि चीखने कि आवाज़ गूंज उठी
ये आवाज़ झोपडीनुमा कमरे मे बैठे बिल्लू तक़ भी पहुंची उसके कान खड़े हो गये. उसे लगा जैसे कोई चोर उच्चका हवेली मे घुस आया है , वाह फ़ौरन अपनी लाठी उठा के आवाज़ कि दिशा मे भागा.. उसे दूर से ही कोई ज़मीन पे चित लेता हुआ दिखाई दिया.दौड़ के वो इस आकृती के पास पंहुचा, तभी बिजली जोर से चमकी और जो उसे दिखाई दिया उस चीज ने उसके रोंगटे खड़े कर दिए, ऐसा आदमय नजारा उसने कभी देखा ही नहीं था.
नीचे भूरी गिरी पड़ी थी बिल्कुल चित बारिश मे भीगी हुई, एक बार तो वो उसे एकटक देखता ही रह गया इतनी गोरी, सुडोल वक्ष स्थल एक दम गोल, कही कोई लचक नहीं सपाट पेट, बीच मे पतली से नाभि.
उसके नीचे पेटीकोट भीग के बिल्कुल कमर से चिपक गया था, थोड़ी नीचे नजर पड़ते ही उसके होश ही उड़ गये.
वो बूत बना खड़ा बराबर उस उभरी जगह को देखने लगा, भूरी का पेटीकोट उसकी चुत से भीगे होने के कारण बिल्कुल चिपक गया था, चुत भी ऐसी कि क्या कहने बिल्कुल उभरी हुई जैसे किसी ने समोसा रख दिया हो.
ऐसा नजर ऐसा कामुक बदन बिल्लू क्या उसके पुरखो ने भी कभी नहीं देखा होगा,दुनिया पता नहीं क्यों भूरी को काकी काकी कहती है.
बिल्लू बेसुध भूरी के हुस्न का दीदार कर रहा था बारिश मे भीगता हुआ, तभी नीचे पड़ी भूरी कि एक हलकी से आह निकली, थोड़ा हिली.
उसके हिलता देख बिल्लू जड़ अवस्था से बाहर आया और तुरंत भूरी को अपनी बलिष्ट बाहो मे उठा लिया, भूरी को उठाने से उसके भीगे स्तन बिल्लू कि छाती से चिपक गये, बिल्लू का एक हाथ भरी कि बड़ी गद्देदार गांड पे था.
भूरी के शरीर से निकलती खुशबू और गर्मी बिल्लू के बदन मे आने लगी और उसका लंड तन तनाने लगा जो कि भूरी कि कमर मे धसा जा रहा था, भूरी बेसुध बिल्लू कि बाहों मे झूली पड़ी थी.
बिल्लू भूरी को ले के अपने कमरे कि और चल पड़ता है, कमरे मे रखे बड़े से पलंग पे लिटा देता है, ये पलंग बहुत बड़ा था क्युकी तीनो लोग इसी पे सोते थे इसलिए ठाकुर साहेब ने बड़ा पलंग बनवा के दिया था.
बिल्लू भूरी को लेटाने के बाद भी उसके मखमली बदन को घूरे जाता है, सांस लेने कि वजह से भूरी के सुडोल स्तन ऊपर नीचे हो रहे थे,
ऐसा नजारा बिल्लू का दिल रोक सकता था उसका लंड फटने पे आतुर था. क्या करे क्या ना करे कुछ समझ नहीं आ रहा था.
तभी धड़ाम से कमरे का दरवाजा खुलता है,
बिल्लू चौक के पीछे देखता है तो कालू रामु दो बॉटल और हाथ मे खाना लिए खड़े थे.
कालू रामु कभी बिल्लू को देखते कभी पीछे पलंग पे पड़ी भूरी काकी को. उनके समझ से सबकुछ बाहर था.
बिल्लू मूर्ति बने खड़ा था उसके तो इन सब मे होश उड़ गये थे...
कालू :- अबे बिल्लू ये सब क्या है? क्या किया तूने भूरी काकी के साथ?
रामु :- साले कही तूने इसे नशे मे मार तो नहीं दिया?
हरामी ठाकुर साहेब हमें जिन्दा नहीं छोड़ेंगे.
बिल्लू जस का तस खड़ा था.
रामु और कालू अंदर आ जाते है और दरवाजा बंद कर देते है.कालू उसका खड़ा लंड देख लेता है.
रामु :- बोल बे हरामी क्या किया तूने? कालू उसे झकझोरता है.
तब बिल्लू होश मे आता है. म..... मै.... मैंने......
मैंने..... मम... कुछ नहीं किया.
कालू :- साले पहले होश मे आ, हरामखोर
बिल्लू खुद को संभालता है और सारा वाक्य बयान कर देता है.
तब कालू और रामु भी भूरी के नजदीक आते है और देखते है दंग रह जाते है ये भूरी काकी है? अपनी भूरी काकी?
कपड़ो मे तो ऐसी नहीं लगती.
भूरी के सुडोल स्तन, उभरी हुई चुत देख के उन दोनों कि हालात भी बिल्लू जैसी हो जाती है.
कालू थोड़ा समझदार था उन तीनो मे.
कालू :- एक बात समझ नहीं अति ये साली इतनी रात को नंगी बाहर करने क्या आई थी?
बिल्लू :- साला मेरा तो दिमाग़ ही भंड हो गया है इसे देख के लोड़ा बैठने का नाम ही नहीं ले रहा.
पहले दारू पीते है फिर सोचते है.
कालू ने जल्दी से एक एक पग बनाया और तीनो एक ही सांस मे नीट पी गये.
गरमागरम दारू गले के नीचे गई तब जा के तीनो नार्मल हुए....
कालू :- मुझे तो लगता है ऐसे मौसम मे काकी को भी गर्मी चढ़ी होंगी तभी गर्मी उतरने बाहर आई.
रामु :- साले काकी तो मत बोल उसे, देख उसके दूध, उसकी चुत देखि है कभी ऐसी? किसी नई नवेली जवान लड़की को भी मात दे दे.
बिल्लू :- बात तो तुम दोनों कि सही है लेकिन अब करे क्या?
कालू :- करना क्या है चल इसकी गर्मी उतारते है.
Ramu- साले पागल हो गया है क्या? मरवाएगा इसने ठाकुर को बता दिया तो हम तीनो को मौत नसीब होंगी समझा.
कालू :- अरे कुछ नहीं होगा मै जो देख रहा हूँ वो तुम नहीं देख रहे, कालू कि आँखों मे हवस थी आखिर हो भी क्यों ना
इन तीनो ने पिछली बार कब चुत मारी थी इन्हे खुद नहीं पता...
अच्छा सुनो एक काम करते है.... जिसमे हमारी कोई गलती भी नहीं होंगी.
उधर गांव कामगंज ने डॉ. असलम बेचैन थे और कमरे के बाहर टहल रहे थे, परन्तु मौसम और ठंडी हवा ने उत्तेजना कम करने के बदले और बड़ा थी थी ऐसी उत्तेजना खुमारी पहले कभी नहीं चढ़ी थी असलम को, ये आग अब सहन से बाहर थी लंड अकडे अकडे दर्द देने लगा था.
डॉ. असलम आस पास नजर दौड़ाते है बरामदा खाली था किन्तु बारिश हो रही थी तभी बरामदे से लगी एक गली दिखती है जिसके अंत मे छज्जा था,
डॉ. असलम :- वो जगह ठीक लगती है, वहाँ अंधेरा भी है कोई देखेगा नहीं वही जा के हस्थमैथुन कर लेता हूँ थोड़ी शांति तो आये.
डॉ. असलम चल पड़ते है ये वही गली थी जिस से रतीवती का कमरा लगा हुआ था.
डॉ. असलम जल्दी से वहाँ पहुंच कर अपना पजामा पूरा नीचे सरका के लंड आज़ाद कर देते है, आज लंड फूल के कुप्पा हो गया था नसे फटने पे आतुर थी, एकदम कड़क था लंड.
इधर रतीवती भी दरवाजा खोल के जल्दी से बाहर निकलती है, बारिश हो रही थी तो वो जल्दी से मूत के भाग लेना चाहती थी.
रतीवती कमरे से पूर्ण नग्न ही बाहर निकल पड़ती है सिर्फ मंगलसूत्र और चुडिया अँधेर मे चमक रही थी वो अँधेर मे जल्दी से जा के गली के आगे अपनी बड़ी सी गांड फैला के मूतने बैठ जाती है.
इन सब बातो से अनजान डॉ असलम आंख बंद करे ठीक रतीवती के पीछे अपना लंड जोर जोर से रगड़ रहे थे.
उन्हें थोड़ा सुकून मिलता है, तभी उन के कान मे सूररररररर.... सुरररमररर.. कर के किसी सिटी कि आवाज़ पड़ती है. वो घबरा के आंखे खोलते है.
आंखे खोलते ही उनकी आंखे फटी कि फटी रह जाती है, शरीर का सारा खून लंड मे इकठ्ठा हो जाता है मुँह खुला का खुला रह जाता है, उनके सामने रतीवती कि बिजली मे चमकती सुन्दर चिकनी बड़ी गांड थी, सुररर कि आवाज़ के साथ हिल रही थी....आआआह्हःम्म... वाहहहह... उनके मुँह से ना चाहते हुए भी हवस भरी सिसकारी निकल पड़ती है.
जिसे सुन के रतीवती एकदम चौक जाती है, और खड़ी हो के तुरंत पीछे मूड जाती है.
उसकी चीख निकल जाती है डर से.... ये चीख बादल कि गर्ज़ीना मे दब जाती है. डर के मारे उसका मूत खड़े खड़े ही निकलने लगता है,
रतीवती अभी पूरी तरह मूत भी नहीं पाई थी कि सिसकारी सुन के खड़ी हो गई थी.
डॉ. असलम एकटक खड़े खड़े पेशाब करती रतीवती कि चुत को घूरे जा रहे थे,
तभी बिजली जोरदार चमकती है डॉ. असलम का बदन उजाले से नहा जाता है जो कि अभी तक़ अँधेरे मे था,एक पल के उजाले मे रतीवती डॉ असलम को देखती है, फिर बिजली चमकती है इस बार रतीवती कि नजर सीधा डॉ. असलम के तूफानी काले मोटे लंड पे पड़ती है.
पहले से ही कामउत्तेजना मे जल रही रतीवती कि चुत लंड देखते ही फड़फड़ा जाती है उसका मूत बंद हो जाता है.
वापस से गर्मी हवस उसके शरीर को घेर लेटी है, ठंडी हवा से निप्पल खड़े हो के टाइट हो जाते है.
पता नहीं किस सम्मोहन मे बँधी वो छज्जे कि तरफ बढ़ जाती है, डॉ असलम स्तम्भ खड़े थे उन्हें समझ नहीं आ रहा था इतनी सुन्दर स्त्री, इतनी सुन्दर काया, उन्नत सुडोल स्तन, बिल्कुल चिकने मुलायल, सपाट पेट, जिसके बारे मे सपने मे भी नहीं सोचा था वो पूर्ण नंगी उनके सामने खड़ी है, अजी खड़ी क्या है ये तो पास चली आ रही है.
ना ना न..... ये तो सपना है हक़ीक़त नहीं हो सकता मेरी ऐसी किस्मत कहाँ.
अब तक़ रतीवती, डॉ असलम के बिल्कुल नजदीक पहुंच चुकी थी.
इतनी पास कि डॉ. असलम कि गरम गरम सांस अपने स्तनों पे महुसूस कर रही थी. डॉ असलम कि hight ही इतनी थी कि उनका मुँह रतीवती के स्तन के सामने थे, वो मुँह फाडे खड़े थे.
रतीवती ना जाने किस नशे मे थी कोई सम्मोहन तो जरूर था, हवस का सम्मोहन, बरसो से सम्भोग ना करने का सम्मोहन.
उसकी नजर सिर्फ डॉ. असलम के लंड पे थी इतना बढ़ा, कड़क लंड उसने कभी देखा ही नहीं था, वो कड़क लंड सीधा रतीवती कि फूली चुत पे टकरा जाता है.
दोनों के मुँह से सिसकारी फुट पड़ती है आहहहह.... बारिश के छींटे दोनों जिस्म को भीगा के ठंडा करने कि कोशिश कर रहे थे कि कही फट ना पड़े.
परन्तु बारिश का ये अहसान बेकार ही था उल्टा ये छींटे गर्मी बड़ा दे रहे थे.
जैसे गर्म तवे पे पानी के छींटे मार देने से तवा ठंडा नहीं हो जाता, तवा तैयार ही तब होता है जब उसपे पानी के ठन्डे छींटे मारे जाये.
वही हाल रतीवती का था वो अपने आपे मे नहीं थी, देखते ही देखते वो असलम के लंड को अपने एक हाथ से पकड़ लेती है, लंड पकड़ते ही उसकी चुत टप टप कर के टपकने लगती है, इतनी गर्मी थी चुत मे कि पानी सीधा भाँप बन के उड़ता प्रतीत होता था..
रतीवती कामुत्तेजना मे घुटनो के बल बैठ जाती है, और असलम के कड़क लम्बे मोटे लंड को टटोल टटोल के देखने लगती है वो निश्चित कर लेना चाहती थी कि ये चीज लंड हि है ना..
दोनों मे से कोई कुछ बोल नहीं रहा था.... या शायद उनके कंठ जाम हो गये थे, भरी बरसात मे गला सुख गया था.
डॉ. असलम मन्त्रमुग्ध खड़े थे बस रतीवती कि हरकत देखे जा रहे थे.
रतीवती अपनी नाक पास ला के लंड को सुघटी है.... मम..... आआआहहहह... पूरी सांस खींच लेती है अंदर तक़
लंड कि खुशबू से रतीवती झंझना जाती है. उसकी जीभ स्वतः ही बाहर निकलती है, जीभ कि नौक से लंड के ऊपरी हिस्से को हलके से चाट लेती है...
डॉ. असलम काँप जाते है उनके लंड को पहली बार किसी औरत ने हाथ लगाया था हाथ क्या यहाँ तो जीभ भी लगाई थी..वो भी कोई ऐरी गैरी औरत नहीं साक्षात् स्वर्ग कि अप्सरा के समान रतीवती उनका लंड पकड़े बैठी थी
पहली बार के इस अहसास को वो अपने अंदर समेट लेना चाहते थे.
अब जो होना है होने दिया जाये.... ये सोच के डॉ. असलम अपनी आंखे बंद कर रतीवती के सर पे हाथ रख देते है.
पहली बार तो विषरूप मे ठाकुर कि हवेली पे भी हो रहा था.
कालू, रामु, बिल्लू तीनो भूरी को घेरे खड़े थे.तीनो एक एक पैग और ले चुके थे तीनो के लंड तनतनाये हुए थे
होते भी क्यों ना जिस्म था ही कुछ ऐसा.
कथा जारी है.....