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Adultery ठाकुर ज़ालिम और इच्छाधारी नाग

आपका सबसे पसंदीदा चरित्र कौनसा है?

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andypndy

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ये कहानी तो समाप्त हुई दोस्त अभी के लिए.
तब तक आप अनुश्री और शार्ट स्टोरी सीरीज पढ़ सकते है मेरी लिखी हुई 👍
 

S.h.a.m.a

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चैप्टर -2 नागवंश और घुड़वंश कि दुश्मनी , अपडेट -15

वीरा लगातार दोड़े जा रहा था.... तूफानी रफ्तार थी उसकी
वीरा आज से 15 साल पहले रूपवती को जंगल मे घायल अवस्था मे मरने कि हालत मे मिला था, वीरा के पुरे शरीर मे जहर फैला हुआ था.
रूपवती उस वक़्त कच्ची जवानी कि दहलीज पे थी, दिल मे दयालुता थी... जंगल वो अपने पिता कसाथ शिकार पे आई हुई थी.... तभी उसकी नजर एक काले घोड़े पे पड़ती है जो दर्द से तड़प रहा था.
उस दिन वीरा मर ही जाता यदि रूपवती उसे अपने साथ हवेली ना ले अति... उसका उपचार ना कराती.
तब से आज तक वीरा हद से ज्यादा रूपवती का वफादार था... परन्तुआज उसे ऐसा क्या हुआ कि वो कामवती का नाम सुनते ही खुद को ना रोक सका दौड़ चला कामगंज कि ओर...
उसके मन मे कई सवाल उठ रहे थे जिसका जवाब वो खुद ही दे रहा था... " हे घुड़ देव ये वही कामवती निकले जिसकी मुझे 1000 सालो से तलाश है इसकी ही प्रतीक्षा किये मे ये नरक जैसा जीवन भोग रहा हूँ. कृपा करना घुड़ देव.... वीरा कामगंज कि दहलीज पे पहुंच चूका था...
ठाकुर कि बारात भी गांव कि दहलीज पे आ चुकी थी अब वीरा भी बारात मे शामिल था...
सब को एक ही जगह जाना था "कामवती के घर "

घर पे कामवती तैयार हो चुकी थी, क्या रूप निखर के आया था.. लगता था जैसे लाल जोड़े मे कोई स्वर्ग कि अप्सरा उतर आई है.
गहनो से लदी, तंग चोली मे कसे हुए मदमस्त दो गोल आकृतिया, नीचे सपाट गोरा पेट, नाभी से नीचे बंधा हुआ लहंगा. जो देखता देखता ही रह गया.
सखियाँ कामवती को देख हैरान थी कोई चुटकी ले रहा था तो कोई हिदायत दे रहा था.
"ठाकुर साहेब तो देखते ही गश खा जायेंगे "
एक सखी :- देखो कामवती सुहागरात को जैसा ठाकुर साहेब कहे वैसा ही करना.
लेकिन कामवती को जैसे इन सब बातो मे कोई दिलचस्पी ही नहीं थी, सुहागरात क्या है उसे पता था उसने पहले भी अपने शादी सुदा सहेलियों से सुना था परन्तु ये सब सुन क भी उसके दिल मे ना कोई हुक उठती थी ना ही कोई उत्तेजना आती थी.
कैसी स्त्री थी कामवती? नाम तो कामवती परन्तु काम कि लेश मात्र भी कोई इच्छा नहीं.
ऐसे कैसे हो सकता है?
खेर ठाकुर कि बारात दरवाजे आ चुकी थी.... रामनिवास के घर हड़कंप मचा हुआ था कोई स्वागत कर रहा था तो कोई खाने पीने कि तैयारी मे था.
रुखसाना जो कामगंज कि ही रहने वाली थी वो भी मौलवी साहेब म साथ रामनिवास क घर मौजूद थी..
अचानक उसकी नजर रंगा पे पड़ती है जो कि मजदूरों क साथ सामान अंदर रखवा रहा था.
दोनों कि नजर मिलती है और नजरों मे ही कुछ बाते हो जाती है.
तीन प्राणी और बेचैन थे एक ठाकुर साहेब जो अपनी होने वाली बीवी को देख लेना चाहते थे.
दूसरा वीरा जो कि देखना चाहता था कि कौन है ये कामवती.
तीसरा फलो कि टोकरी मै बैठा कामवती को देख लेने का ही इंतज़ार कर रहा था.
तभी पंडित ज़ी घोसणा करते है कि ठाकुर साहेब मंडप मे बठिये, और दुल्हन को लाया जाये.
रतीवती अपनी बेटी क साथ मंडप कि और चली आ रही थी... वाह कहना मुश्किल था कि माँ ज्यादा जवान है या बेटी ज्यादा खूबसूरत.
असलम तो जैसे ही रतीवती को देखता है उसकी बांन्छे खिल उठती है, जाते वक़्त भी रतीवती का साथ नहीं मिल पाया था उसे आजरात ही कोई मौका ढूंढना था..
रतीवती पे चोर मंगूस भी नजर टिकाये था.. क्या औरत है ये लगता है जैसे इसकी जवानी फटने पे आतुर है.
रतीवती अपनी बड़ी गांड हिलती कामवती को मंडप तक ले आती है और असलम के पास आ क बैठ जाती है.
वो बहुत ख़ुश थी डॉ. असलम को देखते ही उसकी चुत को चीटिया खाने लगती थी...
जैसे ही कामवती मंडप मे बैठती है एक जोर का हवा का झोंका आता है और उसका घूँघट उड़ जाता है ऐसा हसीन चेहरा देख के ठाकुर साहेब के होश उड़ जाते है..
ठाकुर :- कितना नसीब वाला हूँ मै जो कामवती जैसी सुन्दर स्त्री मिली...
वही दो और लोगो ने जैसे ही कामवती को देखा उनके तो दिलो पे बिजली गिरने लगी, उनकी बरसो कि तलाश पूरी ही चुकी थी..
वीरा :- वही है वही है.... यही है मेरी कामवती जिसकी मुझे तलाश थी धन्यवाद घुड़ देव इतने सालो बाद कामवती का पता चल ही गया.
टोकरी मे बैठा प्राणी :- हे नाग देव कही मै सपना तो नहीं देख रहा यही तो है मेरी कामवती जिसकी मुझे तलाश थी.
अब मेरा जीवन सफल होगा, मेरी शक्तियां वापस लौट आएंगी.
दोंनो कि बांन्छे खिली हुई थी.... परन्तु जैसे ही वीरा कि नजर उस प्राणी से मिलती है
उन दोनों का चेहरा घृणा और नफरत से भर जाता है.
वीरा :- ये मनहूस यहाँ कहाँ से आ गया? क्या इसने भी कामवती को देख लिया है.
परन्तु इस बात कामवती को मै हासिल कर क रहूँगा और इस सपोले नागेंद्र को मिलेगी मौत.
नागेंद्र :- ये कमीना अभी भी जिन्दा है, पर कैसे मैंने तो इसके बदन मे इतना जहर भर दिया था कि इसका मरना तय था.
खेर इस बार ये नहीं बचेगा कामवती मेरी ही रानी बनेगी. नफरत से वीरा कि तरफ फूंकार देता है.
वीरा का रुकना अब व्यर्थ था उसे जो देखना था देख चूका था वो वापस घुड़पुर कि और दौड़ चलता है रूपवती कि हवेली कि ओर...
पंडित मंत्रोउच्चारण मे लगे थे, शादी हो रही थी.. तभी रतीवती पेशाब का बहाना कर के उठ चलती है, घर के पीछे उसे चुत कि गर्मी सहन नहीं हो रही थी.... असलम पास हो ओर वो सम्भोग से अछूती रह जाये ये गवारा नहीं था
गली के मुहने पे खड़ी हो वो पीछे पलट क असलम कि ओर देखती है ओर एक हाथ अपने स्तन पे रख क हल्का सा मसल देती है.
असलम उसकी ऐसी निडरता पे हैरान था, इतने लोग होने क बावजूद भी उसे अपनी प्यास बुझानी थी...
डॉ. असलम कामुक औरत को ज्ञान ले रहे थे उन्हें समझ आ रहा था कि जब हवास हावी होती है तो जगह मौका नहीं देखा करती.
ऊपर से रतीवती जैसे औरत ऐसा मौका नहीं छोड़ना चाहती थी क्युकी आज कि रात थी सिर्फ फिर पता नहीं असलम कब मिलेंगे.
थोड़ी देर बाद असलम भी बहाने से उठ कर गली से लग के अँधेरे मे खो जाते है.
असलम जैसे ही घर के पीछे पहुँचता है भोचक्का रह जाता है. रतीवती हमेशा ही उसके होश उड़ा दिया करती थी... आज भी वो अपना ब्लाउज खोले खड़ी थी साड़ी सिर्फ उसकी कमर मे लिपटी पड़ी थी
20210802-203826.jpg

असलम को देखते ही उसे अपने पास आने का इशारा करती है असलम आ चूका था बिल्कुल नजदीक, असलम कि सांसे रतीवती क गोल सुडोल स्तन पे तीर कि तरह लग रही थी, असलम कि लम्बाई ही इतनी थी.
रतीवती प्यासी थी बहुत प्यासी... वो असलम का सर पकड़ धड़ाम से अपने स्तन क बीच दे मरती है
रतीवती :- असलम ज़ी सब्र नहीं होता पीजिये इसे, काटिये इसे...और अपना एक स्तन पकड़ के उसके मुँह मे दे देती है
असलम भी गरम हो चूका था, जो ऐसा दृश्य देख के भी गरम ना हो वो नामर्द ही होगा.
असलन लपा लप स्तन चाट रहा था, काट रहा था, निप्पल को तंटो तले चबा रहा था.
रतीवती का एक हाथ तुरंत असलम के पाजामे मे कुछ टटोले लगती है... जैसे ही उसे वो खजाना मिलता है उसके मुँह से सिसकारिया निकल पड़ती है
आहहहह.... असलम ज़ी चुसिये और जोर से काटिये.
आपके लिए ही तरस रही थी मै.
रतीवती असलम के पाजामे का नाड़ा खोल देती है पजामा तो जैसे मुर्दे इंसान कि तरह भर भरा के नीचे गिर जाता है और एक जिन्न प्रकट होता है काला मोटा, भयानक लंड के रूप मे.
रतीवती तुरंत इस कालजाई लंड का अहसास पा लेना चाहती थी तुरंत अपने गोरे चूड़ी पहने हाथ से सहलाने लगती है.

असलम :- आह रतीवती... क्या कर रही हो जान ही लोगी क्या समय कम है जल्दी से साड़ी ऊपर करो.
रतीवती तुरंत घूम के चौपया बन जाती है और अपनी साड़ी कमर तक ऊपर उठा लेती है.... एक दम गोरी गांड प्रकट होती है लगता था जैसे अमवास कि रात मे चाँद निकल आया हो इस चाँद के बीच एक लकीर भी थी जो चाँद को दो भागो मे बाटती थी... इसी लकीर मे दो अनमोल खजाने छुपे थे...
20210809-151528.jpg

रतीवती के पास यही तो एक अमूल्य धरोहर थी
जिसे असलम जल्द से जल्द खोद के निकाल लेना चाहता था.
इस गोरी गांड के दर्शन पा के कोई और भी हैरान था..
चोर मंगूस तो सुबह से ही रतीवती पे नजरें टिकाये बैठा था असलम क साथ साथ उसने भी ये हरकत देख ली थी.
वो भी असलम के पूछे चल पड़ा.
चोर मंगूस ने जब ये नजारा देखा तो उसकी बांन्छे खिल गई थी... रतीवती वाकई काम कि देवी ही है.
क्या बड़ी मुलायम गांड है इसकी मजा आ गया.लेकिन अब ये मेरी है... हाहाहाहा...
तभी हलकी से आहट करता है... पीछे कामक्रीड़ा मे लिप्त असलम और रतीवती ये आवाज़ सुन के चौंक जाते है.पीछे देखते है तो गली के पास कोई आकृति दिखती है
असलम भाग के गली के मुहने पे जाता है... लेकिन वहाँ कोई नहीं था, होता भी कैसे चोर मंगूस था ही छालावा.. हो गया गायब
लेकिन इनका काम बिगाड़ गया.
रतीवती असलम खौफजदा थे कि कही कोई देख ले... अभी उचित टाइम नहीं है.. वो दोनों वापस आ के मंडप के पास बैठ जाते है.
रतीवती तो काम अग्नि मे बुरी तरह जल रही थी... उसकी उत्तेजना चरम पे थी लेकिन मंजिल तक ना पहुंच सकी.
इधर दरोगा वीर प्रताप जो कि बारात मे ही अपने हवलदार के साथ शामिल था वो बारीकी से सब पे नजर बनाये हुए था.... उनका ध्यान सब जगह था बस सामने नहीं था
इधर रुखसाना घर से बाहर जा रही थी और दरोगा वीरप्रताप घर के अंदर.
दोनों आपस मे टकरा जाते है,
वीरप्रताप :- माफ़ करना बहन मैंने देखा नहीं.
रुखसाना : कोई बात नहीं मेरी भी गलती है माफ़ कीजियेगा
उठते वक़्त जैसे ही उनकी नजर पड़ती, दोनों के मन मे विचार उत्पन्न होता है... इसे तो कही देखा है?कौन है कहाँ देखा है? समझ नहीं आ रहा?
रुखसाना बाहर को चल पड़ती है और दरोगा घर के अंदर..

तभी अंदर पंडित घोषणा करते है कि शादी संपन्न हुई, दूल्हा दुल्हन को मंगलसूत्र पहनाये... और विदाई आज ही होनी चाहिए ठाकुर साहेब वरना बढ़ा अपशुकुन होगा.
ठाकुर :- सब समय पे होगा पंडित ज़ी...
रुखसाना .. अपनी सोच मे आगे बढ़ती जाती है कहाँ देखा है कहाँ देखा है उस आदमी को..
अचानक उसे याद आ जाता है अरे हाँ ये तो दरोगा वीर प्रताप सिंह है मेरे पति कि मौत पे घर आये थे परन्तु ये यहाँ क्या कर रहे है....
कही कही कही.... इन्हे रंगा बिल्ला के बारे मे तो कोई खबर नहीं.
मुझे रंगा बिल्ला को बचाना होगा.. रुखसाना वापस रामनिवास के घर दौड़ पड़ती है.. रंगा को सचेत करने.
क्या रुखसाना पहुंच पायेगी?
रंगा बिल्ला कामयाब होंगे?
बने रहिये कथा जारी है..
Shandar
 
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Colonel_RDX

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अपडेट -88

घुड़पुर मे एक योजना तैयार हो गई थी.
और विषरूप के जंगलो मे भी सर्पटा और ठाकुर जलन सिंह हाथ मिला चुके थे.
शाम ढल आई थी...सर्पटा और जलन सिंह घुड़पुर कि दहलीज पे आ धमके थे.
"ज़ालिम सिंह तुम हवेली के पीछे से अपने आदमियों के साथ घुसो मै,आगे से जाता हूँ आज इस हवेली को ही कब्रिस्तान बना देंगे "हाहाहाहा.....सर्पटा ने जैसे हुक्म सुना दिया.
"साला रस्सी जल गई लेकीन बल नहीं गया,अभी भी खुद को राजा ही समझता है हुँह " जलन सिंह मन ही मन बड़बड़या.
"क्या हुआ जलन सिंह जाओ,उस घोड़ी को भोगने के लिए आतुर हूँ मै " सर्पटा कामवासना मे अंधा हुए जा रहा था.
"हम्म्म्म...चला ले बेटा जीतना हुक्म चलाना है,बाद मे बताता हूँ कि कौन राजा और कौन गुलाम " चलो रे..... नामुरादों
ठाकुर और उसके तीनो सेवक गांव के दूसरे रास्ते से हवेली के पीछे कि तरफ बढ़ चला.
हवेली के अंदर

"ठकुराइन रात घिर आई है, मुझे सर्पटा का आभास हो रहा है,वो आ रहा है " नागेंद्र कि छटी इन्द्रियों ने सटीक अंदाजा लगाया था.
वीरा :- आने दो हम भी तैयार है, वीरा और घुड़वती अपनी अपनी तलवार उठा चूके थे,और हवेली के द्वारा कि ओर बढ़ गए.
अमावस कि रात बिल्कुल अँधेरी थी, हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था, हवेली कि सभी रौशनी बुझा दि गई.
वीरा और घुड़वती अपने हथियारों के साथ द्वारा पे तैनात थे.
"फीस्स्स्स.......हहहहरररर.......फूननननन......फुससससस....करता एक देत्यकार आकृति हवेली के मुख्य दरवाजे कि ओर बढ़ी आ रही थी,
धड़ इंसान का था लेकीन वो सरसरा रहा था,जैसे कोई सांप हो..... सर्पटा दुर्त वेग से जलन सिंह से पहले ही हवेली के सामने खड़ा था.
"ठकुराइन रूपवती मै जानता हूँ कामवती और घुड़वती इसी हवेली मे है,चुपचाप दोनों को मेरे हवाले कर दो,बदले मे मै तुम लोगो कि जान बक्श दूंगा "
सर्पटा ने एक दहाड़ लगाई,उसकी आवाज़ मे आज जहर था,एक कम्पन था जो कि किसी भी जीवित इंसान के कलेजे हिलाने के लिए काफ़ी था.
चारों तरफ सन्नाटा छा गया,सर्पटा कि चेतावनी के सामने कोई जवाब नहीं था.
"हाहाहाहाहा.....इसका मतलब तुम लोग अपनी मौत चाहते हो?" सर्पटा गरज उठा, उसने कदम आगे ही बढ़ाये थे कि.
"वही रुक जा नीच.....जान कि सलामती चाहता है तो वही रुक जा " हवेली का दरवाजा खुला सामने रूपवती हाथ मे चाकू लिए सर्पटा को ललकार रही थी.
"हाहाहाहाहा.......अच्छा तो तू है रूपवती, ठाकुर कि पहली पत्नी, नाम रूपवती और काया भद्दी, मोटी काली कलूटी " सर्पटा ने रूपवती कि दुखती नस पे पूँछ मार दि थी.
"हरामी.....अभी बताती हूँ तुझे,रूपवती कि आँखों मे खून सवार था, चेहरा गुस्से से लाल हो गया,वो हाथ मे चाकू थामे सर्पटा कि ओर लपक ली.
"ठकुराइन रुकिए....ये हमारी योजना नहीं थी " पीछे नागेंद्र चिल्लाता रह गया लेकीन गुस्से पे सवार रूपवती कहाँ सुनने वाली थी,आखिर जीवन भर वो अपने कुरूप होने का ही ताना सुनती रही.
"छोडूंगी नहीं तुझे बदजात सांप "
कि तभी धाड़.....थाड....थाड......एक लहराती सी पूछ आगे बढ़ती रूपवती के सीने से जोरदार टकराई.......
आआआहहहहह...........एक चीख गूंज गई वातावरण मे,
रूपवती सर्पटा का वार नहीं झेल सकी,दूर घास और मिट्टी के टीले पे जा गिरी,लगता नहीं था कि वो अब उठेगी.
"हाहाहाहा......बस यहीं औकात है तुम लोगो कि,अभी भी वक़्त है घुड़वती और कामवती मुझे सौंप दो,मै जान बक्श दूंगा तुम लोगो कि "
"छिई......छी....मुझे शर्म आती ही पिताजी आप पे,आप को बाप बोलते हुए भी घृणा होती है " रूपवती के धाराशाई होने से नागेंद्र आगबबूला सामने खड़ा था.
"ओह्ह्ह....तो तू भी यहीं है मेरा नपुंसक बेटा, कामवती तो मेरी ही है,चुपचाप मेरे हवाले कर उसे,उसकी जवानी संभालना तेरे जैसे नपुंसको का काम नहीं " सर्पटा का इरादा पक्का था.
"तो आ के ले ले ना रोका किसने है?" अचानक नागेंद्र शांत हो गया, शायद यहीं उसकी योजना थी.
"अच्छा चूहें तेरी इतनी औकात " सर्पटा गुस्से मे बड़बड़ता आगे को बढ़ चला, अभी हवेली के दरवाजे पे पहुँचता ही था कि भाहारररररर......भास्स्स......करती जमीन धसने लगी....
हवेली के दरवाजे के बाहर एक गड्ढा सा बनता चला गया, सर्पटा का पूरा वजूद उसमे समाता चला गया.
"वीरा घुड़वती ये खड्ढा जल्दी भरो,मै ठकुराइन को देखता हूँ.
वीरा और घुड़वती ने योजना के अनुसार अपना काम किया और पल भर मे ही उस खड्डे को भर दिया,जिन्दा सर्पटा जमीन कि नीचे दबा था.....
"भाई मुझे पता नहीं था ये जंग हम इतनी आसानी सी जीत जायेंगे,नागेंद्र कि योजना काम कर गई" घुड़वती जीत पा के चहक उठी.

"अअअअअ....आप ठीक तो है ना ठकुराइन रूपवती " नागेंद्र रूपवती से जा लिपटा था.
"आए...अअअअअ....हाँ...हाँ....मै ठीक हूँ,रूपवती करहाती हुई खड़ी हो गई
"सर्पटा जमीन मे दफ़न है बस जलन का इंतज़ार है अब " वीरा और घुड़वती भी रूपवती के पास पहुंच गए थे.
पहली जीत मिल गई थी.
कि तभी....धाय...धाय.....बन्दुक कि आवाज़ से वातावरण गूंज उठा
चारों लोगो ने आवाज़ कि दिशा मे सर उठाया तो सभी के कलेजे सुख गए.
"इतनी आसानी से कहाँ मित्रो....जलन सिंह कभी हारता नहीं है, जलन सिंह हवेली के दरवाजे पे खड़ा था,उसके कब्जे मे कामवती थी.
"हीस्स्स्स......फुसससस......हरामी छोड़ दें कामवती को " नागेंद्र फुसफुसा गया
वीरा का कलेजा जल उठा.
"तुम्हे क्या लगा मै पीछा छोड़ दूंगा कामवती मेरी ही थी,मेरी ही रहेगी क्यों कामवती " सससन्नणीयफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.......ज़ालिम सिंह ने कामवती के स्तन को जोरदार तरीके से भींच दिया और एक जोरदार सांस खींची.
"आअह्ह्हह्म..ममममम ..आज भी वही खुसबू "
"चलो अब ये खड्डा जल्दी से खोदो",जलन सिंह ने हुकुम दिया
मरता क्या ना करता, घुड़वती और वीरा ने पल भर मे ही वो खड्डा खोद डाला,
हहहएआरररररर........हहहहहररर....फुससससससस......बाहर आते ही सर्पटा कि कुंडली वीरा के बदन पे कसने लगी.
उनका सबसे शक्तिशाली योद्धा अब सर्पटा के कब्जे मे था..
जीती हुई बाजी पलट गई थी.


"बहुत प्यार है ना तुम दोनों को कामवती से आज तुम दोनों के सामने इसकी चुत कि धज्जियाँ उड़ाएगा जलन सिंह,आज तुम जानोगे कि मेरा नाम जलन सिंह क्यों है "
जलन सिंह के एलान से सभी कि रुहे कांप गई.
नागेंद्र :- ऐसा मत करो जलन सिंह, हमें मार दो लेकीन ऐसा मत करो कामवती को छोड़ दो.
"हाहाहाहाहा.......साला नपुंसक " सर्पटा ने एक ताना कस दिया,भीख मांग रहा है.
आज तो सुहागरात मनेगी..चलो सभी अंदर.
बिल्लू कालू रामु ने सभी को कब्जे मे ले लिया.
हवेली का आंगन रोशन हो गया था, घुड़वती और कामवती को छोड़ सभी लोग मजबूती से रस्सीयो से बंधे हुए थे.
कामवती फर्श पे असहाय गिरी हुई थी, घुड़वती बेबस गर्दन झुकाये सर्पटा के सामने अपने स्त्री रूप मे थी.
जलन सिंह :- सर्पटा शुरू करे?
सर्पटा :- जल्दी क्या है मित्र अब तो सब कुछ अपना है,ये बेचारे कल का सूरज भी नहीं देख पाएंगे तो क्यों ना आज इन्हे वो मंजर दिखाया जाये जो इन्हे मरते दम तक याद रहे..हाहाहाबा
रूपवती घायल थी,नागेंद्र शक्तिहिन,और वीरा असहाय तीनो अपने सामने दोनों लड़कियों कि इज़्ज़त लूटते देखने को तैयार खड़े थे.
जलन सिंह :- देख क्या रहे हो नामुरादों....फाड़ दो दोनों के कपड़े,ऐसे हसीन बदन नंगे ही अच्छे लगते है.
बिल्लू इस काम मे सबसे आगे था,उसी के कदम आगे बढ़े ही थे कि....धाय......एक गोली आती हुई बिल्लू के पैर मे जा धसी आआहहहहह.......मालिक....
सभी कि नजरें पीछे को दौड़ गई.
"नामर्दो बेबस स्त्री कि इज़्ज़त लूटते हो " पीछे इंस्पेक्टर काम्या खड़ी थी हाथ मे पिस्तौल लिए.
" ख़बरदार कोई आगे बढ़ा तो सीने मे गोली उतार दूंगी " काम्या फूंकार रही थी उसे कतई बर्दाश्त नहीं था कि मर्द जात स्त्री कि मज़बूरी का फायदा उठाये.
जलन सिंह और सर्पटा मे भले लाख ताकत हो लेकीन काम्या के रोंध रोप के सामने उनकी घिघी बंध गई थी.
"बहादुर जल्दी कर रस्सी खोल सबकी " बहादुर अभी आगे बढ़ता ही कि
धाड़.......ठाक.......काम्या के सर पे एक तेज़ लठ का प्रहार हो गया....
"रररऱ......ररररम....लखन तू " काम्या अपने होश ना संभाल सकी,पहली बार उसने किसी पुरुष से मात खाई थी.
जमीन पे ओंधे मुँह गिरी काम्या अचेत थी लेकीन आंखे खुली हुई थी.
"हाहाहाहा....क्या देख रही है साली रामलखान शुरू से ही हमारा आदमी था " जलन सिंह दहाड़ उठा.
नंगी करो इस साली को भी,देखे तो कितना दम है इसकी चुत मे "
जीत वापस से हार मे तब्दील हो चली थी.

"देख क्या रहे हो फाड़ो कपड़े इन तीनो के " शर्म और हार से नागेंद्र वीरा के सर झुक गए वो तो अपनी मौत कि इच्छा कर रहे थे ये दृश्य देखने से पहले..
"अरे भाई ठाकुर जलन सिंह उर्फ़ डॉ.असलम रुको भी जरा इतनी भी क्या जल्दी है कपड़े उतारने कि " हवेली के आंगन मे एक चिरपरिचित आवाज़ गूंज उठी.
रूपवती कि रूह ही कांप गई इस आवाज़ को सुन के "भा...भा.....भा.....भाई......."
लेकीन आस पास कोई नहीं था सिर्फ आवाज़ थी, जलन सिंह के होश फकता थे कि मेरा ये राज कौन जानता है.
"चौको मत डॉ.असलम.......हाहाहाहाहा.......धदाम.......हिस्स्स्स......ठाक.....से एक इंसानी जिस्म आंगन के बीचो बीच कूद आया जैसे तो हवा से प्रकट हुआ हो.
"तततततत......तुम.....तुम जिन्दा हो लेकीन कैसे?" जलन सिंह के चेहरे पे हवाइया उडी हुई थी.
"चोर मंगूस भला कभी मर सकता है,हाहाहाहा......एक आठहस....गूंज उठा हवेली के आंगन मे,लालच बहुत बड़ी चीज है ठाकुर, इंसान को मार भी देती है और बचा भी लेती है "
सर्पटा के अलावा वहाँ मौजूद हर शख्स के होश फकता हो गए थे चोर मंगूस को अपने सामने पा के.
"बहादुर सभी कि रस्सी खोल दो.....इनकी दोनों कि मौत आ गई है "
काम्या के जख़्मी होने से जहाँ बहादुर दुम दबाये बैठा था ना जाने कैसे मंगूस के हुक्म ने उसके बदन मे जान फूँक दि,बहादुर तुरंत उठ खड़ा हुआ...
" तो जलन सिंह उर्फ़ डॉ.असलम हुआ यूँ कि उस दिन जब तुमने ठाकुर ज़ालिम सिंह और मुझे दफ़नाने भेजा था...
रास्ते मे...
अमवास कि पहले कि रात
"देख भाई बिल्लू...ठाकुर ज़ालिम सिंह तो मर गया,मेरे से नागमणि भी जलनसिंह ने छीन ली,अब मै बेचारा किस काम का?"
बिल्लू :- नहीं नहीं.....हमने सुना है तू खतरनाक आदमी है,तुझे भी ठाकुर के साथ दफना देंगे.
मंगूस :- मुझे मार के तुम लोगो को क्या मिलेगा? डॉ.असलम को तो नागमणि मिल ही गई,कामवती को भी पा ही लेगा लेकीन तुम तीनो का क्या....अब तो भूरी काकी भी नहीं है जिसके साथ तुम लोगो ने मजे लिए

कालू :-....ततट....तुम भूरी काकी के बारे मे कैसे जानते हो.
मंगूस :- जनता तो मै सब हूँ दोस्त....लेकीन सवाल वही है क्या जिंदगी भर ऐसे ही गुलामी कि जिंदगी जियोगे ठाकुर के टुकड़ो पे?
मंगूस कि छल भारी बातो से तीनो का दिमाग़ हिल गया,तीनो ही सोच मे डूब गए.
मंगूस :- सोचो मत ये...लो....मंगूस ने अपने कपड़ो से एक पोटली निकाल के बिल्लू के हाथ मे थमा दि.
बिल्लू ने जैसे ही पोटली खोली तीनो कि आंखे रौशनी से जगमगा गई.
"सोने के सिक्के " तीनो के मुँह से एक साथ निकला..
मंगूस :- हाँ दोस्तों सब तुम्हारा है, मै तो अब इस गांव मे दिखूंगा भी नहीं, आखिर जान मुझे भी प्यारी है.
मंगूस अपनी चाल मे कामयाब हो चूका था.

मंगूस के जिन्दा बचे रहने कि कहानी सुन सभी सकते मे थे..
"हरामियों.....जलन सिंह तलवार ले खड़ा हो गया खच....खच....खच.....एक एक प्रहार मे तीनो कि गर्दन अलग हो गई
मंगूस मुस्कुरा रहा था, वो अभी भी चाल ही चल रहा था.
कि तभी शांत बैठा सर्पटा कि पूँछ सरसरा उठी....."धोखेबाज जलन सिंह तेरे पास नागमणि है और तूने मुझे नहीं दि "
सर्पटा कि कुंडली जलन सिंह को गिरफ्त मे लेने लगी.
"नहीं...नहीं....सर्पटा हुजूर मै बताने ही वाला था.....ये...लो.....ये लीजिये नागमणि " जलन सिंह मौत के भय से कांप उठा,तुरंत ही नागमणि निकाल सर्पटा कि ओर उछाल दि.
"आआहहहह......कब से इसका इंतज़ार था मुझे " सर्पटा ने नागमणि तुरंत लपक ली और मस्तक पे स्थापित भी कर ली.
सभी को मौत अब साफ नजर आ रही थी.....
"सबसे पहले तेरी ही मौत है लड़के,तू शातिर इंसान है " सर्पटा कि कुंडली मंगूस को भींचने के लिए आगे बढ़ गई....परन्तु जैसे ही छुआ....."आआहहहहहह.......एक तगड़ा झटका सा लगा,जैसे प्राण ही निकल जायेंगे,सर्पटा के मुँह से चीख निकल गई, उसकी कुंडली वापस से सिमटती चली गई.
"ये.....ये...क्या हुआ " सर्पटा और जलन सिंह दोनों हैरान थे.
"अबे बूढ़े सपोले अब नकली नागमणि ले के असली मणि धारक को छुवेगा तो मरेगा ही ना हाहाहाहा....
जलन सिंह :- ककककक....क्या मतलब?
मंगूस :- मतलब ये कि मै जानबूझ के ही पकड़ाई मे आया था, तुझे निश्चित करना जरुरी था कि नागमणि तेरे ही पास है,
मैंने दिन मे ही मणि बादल दि थी,और नकली तुझे थमा दि.
ये है असली नागमणि...मंगूस ने अपनी जेब से केंचूलिनमे लिपटी नागमणि बाहर निकाल दि.
आंगन मे मणि कि चमक बिखर गई.
सर्पटा सामने नागमणि को देख एक बार फिर मंगूस कि ओर लपका कि....."सररररर.......मंगूस ने अपना हाथ उछाल दिया जिसकी अमानत है उसके पास ही जाएगी.
नागमणि सीधा नागेंद्र के मस्तक पे जा टिकी.
काद्दफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.....कड़क.....कड़ाक....वातावरण मे बिजली कोंध उठी,अचानक ही बादल घिर आये..
नागेंद्र अपने अर्ध सर्प रूप मे आने लगा,.
"हाहाहाःहाहा......तुम सच्चे मित्र हो मंगूस " नागेंद्र का विशालरूप सर्पटा को अपने आगोश मे कसने लगा,
आज तक नागेंद्र का ऐसा रूप किसी ने नहीं देखा था.
बहादुर सभी के बंधन खोल चूका था.
वीरा के हाथ उठ गए थे, जमीन पे पड़ी तलवार उसके हाथ कि शोभा बढ़ा रही थी....कच्छह्ह्ह्हब्ब....खच......एक भयंकर प्रहार और तलवार जलन सिंह के सीने को पार कर आंगन मे धस गई थी.


सर्पटा दर्द से कांप रहा था "नागेंद्र मेरे बेटे.....मै तेरा बाप हूँ, हम मिल के राज करेंगे,छोड़ दें अपने बाप को "
नागेंद्र :- तू बाप के नाम पे कलंक है,जिस स्त्री को बहु बनाना था उसका बलात्कार किया,उस से भी पेट नहीं भरा उसकी कामना को जीता रहा,और आज फिर वही दूससाहस करना चाहा.
तेरी मौर्या निश्चित है.....नागेंद्र कि कुंडली कसने लगी.
"नहीं नागेंद्र.....ये मेरा शिकार है " घुड़वती ने पास पड़ी तलवार उठा ली

खाक्कक्क्सह्ह्ह्हह्ह.....खच......पल भर मे सर्पटा का सर नीचे जमीन चाट रहा था.
रामलखन कबका मौका देख वहाँ से भाग छूटा था.
हवेली मे अजीब सन्नटा छा गया था.
"भाई....भाई......मेरे भाई....सुबुक...सुबुक....." रूपवती दौड़ के मंगूस के गले जा लगी.
"मुझे माफ़ कर दें भाई मेरी जिद्द मेरे लालच ने तुझे मौत के मुँह मे पंहुचा दिया था "
मंगूस :- दीदी आप तो मेरी जान हो आपके लिए कुछ भी कर सकता है आपका भाई, मुझे बस दुख है कि मै आपकी इच्छा पूरी नहीं कर सका और आजतक कोई पैदा नहीं हुआ जो चोर मंगूस को उसकी मर्ज़ी के बिना पकड़ सके.
"अच्छा ऐसी बात तुम आज और अभी गिरफ्तार हो महान चोर मंगूस " पीछे एक पिस्तौल मंगूस से आ सटी.
काम्या को होश आ गया था, उसकी पिस्तौल मंगूस के सर पे टिकी हुई थी.
हाहाहाहाहा..... सभी मौजूद लोग हॅस पड़े.
काम्या :- अच्छा ठकुराइन हम चलते है,हमारा काम तो इस चोर ने ही कर दिया, काम्या जैसे खफा थी.
रूपवती :-अभी नहीं काम्या...आज तुम हमारी मेहमान हो, ये जश्न का मौका है,और हम तुम्हे आमंत्रित करते है.
नागेंद्र :- आपने ठीक कहाँ ठकुराइन.....आज जश्न का अवसर है,क्यूंकि आज मंगूस से किया वादा पूरा करने का वक़्त आ गया है, जिसके लिए ये सब हुआ वो अब होगा,आपको आपका सौंदर्य मै दूंगा.
नागेंद्र कि बात सुनते ही रूपवती शर्मा गई....अपने भारी बदन को लिए,धाड़ धाड़ करता उसका दिल....उसके पैर कमरे कि ओर भाग चले.
कामवती वीरा कि बांहों मे थी,
सभी रूपवती कि खुशी को देखते ही रह गए.

कुछ समय बाद
अँधेरी रात शबाब पे थी, हवेली मे उत्सव का माहौल था.
हवेली के आंगन मे रूपवती टांगे चौड़ी किये लेटी थी,वही नागेंद्र कि कोमल जीभ उसकी मोटी जांघो के बीच काली चुत को कुरेद रही थी.
"आआहहहह......उफ्फ्फ.....नागेंद्र......" रूपवती कि कामुक चीख हवेली कि शोभा बढ़ा रही थी.
अब भला ऐसे कामुक दृश्य को देख कोई कैसे खुद पे काबू पाता.
कामवती का स्वतः ही वीरा के विशालकाय लंड को टटोलने लगा, कामवती भी जन्मो कि प्यासी थी.
कुछ ही देर मे वीरा का लंड कामवती कि गांड कि धज्जियाँ उड़ा रहा था,नागेंद्र पूरी सिद्दत से रूपवती कि चुत का भोग लगा रहा था.
काम्या भी खुद को ना रोक सकी....बहादुरबक लिए जो प्रेम पनपा था उसने अपना असर आखिर दिखा ही दिया,बहादुर पूरी बहदुरी से काम्या कि गांड और चुत को चटखारे ले के चाट रहा था.
ये सब दृश्य देख घुड़वती कि चुत भी खुजलाने लगी थी,मौका ही ऐसा था कुंवर विचित्र सिंह उर्फ़ चोर मंगूस कहाँ पीछे रहता,आज वो इस कामुक कमसिन घोड़ी कि सवारी कर रहा था.
ये सिलसिला रात भर.....चलता रहा.....
सूरज कि पहली किरण ने सभी के चेहरे को भिगो दिया.
"चलो उठो सभी लोग....सुबह हो गई.....एक मदहोश कामुक आवाज़ सुन सभी उठे, आंख मचलते हुए.....
सामने एक अप्सरा खड़ी थी,कामुक बदन,काले बाल, माथे पे बिंदी,गोरा जिस्म, भरा हुआ बदन.....
IMG-20220726-194654.jpg


"ठ...ठ....ठा....ठकुराइन रूपवती आप " सभी के मुँह से एक साथ यहीं निकला.

समाप्त


क्या वाकई लेकीन कोई भी कहानी कभी ख़त्म नहीं होती,
भविष्य में क्या छुपा है कोई नहीं जनता.

दृश्य -1
साल 2022
आधुनिक भारत
भव्यता से भरा हुआ भारत,
जिला मुरादाबाद
रात का समय.....
"हिचहह......साले.....हिचहह....आज लेट हो गए देख रात हो गई है,रास्ता सुनसान है "
हाँ रामु बात तो सही है...तुझे पता है कभी इस जगह को मुर्दाबाड़ा काबिला कहते थे हिचहहह....हिचहह

दो शराबी दोस्त दारू कि बोत्तल हाथ मे लिए झूमते जा रहे थे.
"अबे बिल्लू डराता क्यों है,कितना अजीब नाम है मुर्दाबाड़ा हिचहहह.....
"ये तो कुछ भी नहीं मेरे दादा जी बताते थे कि यहाँ कभी एक काबिला था जो जिन्दा औरतों को मौत से भी बदतर मौत दिया करता था हिच......"
रामु का कलेजा कांप गया ये बात सुन के.....
"चल बे ऐसा कुछ नहीं होता हीच.....गुटूक.....रामु ने एक घुट और खिंच लिया

कि तभी सामने से एक आकृति चली आ रही थी.
"अबे बिल्लू वो सामने देख कोई आ रहा है,औरत लगती है कोई?" रामु के चेहरे पे रौनक आ गई.
"हाँ बे औरत ही है चल....आज तो मजा आ गया,बहुत दिन से किसी औरत को चोदा नहीं है हिचहह.....
दोनों दोस्त उस औरत के पास पहुंच गए.....आये हाय...क्या औरत है यार शहर कि कोई मेमसाहेब लगती है.
"क्या मैडम कोई दिक्कत,कहाँ जाना है? क्या नाम है आपका?"
बिल्लू ने लगभग एक साथ सरे सवाल दाग़ दिये

सामने एक दिलकश चेहरे मोहरे कि औरत खड़ी थी, कसा हुआ बदन, कामुक जिस्म, भरा हुआ बदन.
लेकीन जवाब कोई नहीं आया
"बोल ना बे क्या नाम है तेरा " रामु ने उस औरत का हाथ पकड़ लिया.
"कक...कामरूपा....."औरत ने अपना पल्लू हटा दिया.


आआहहहह........नाहीइ।....नहीं......बचाओ..... सुनसान रास्ता दोनों दोस्तों कि चीख से गूंज उठा.

दृश्य -2

विषनगर
आज के समय का महानगर.
"देखो आज हमें सौभाग्य मिला है इस एंटीक कलाकृति,वस्तुओ को अपने शहर मे प्रदर्शनी करने का, इसकी जिम्मेदारी हम पर है कि कोई सामान यहाँ सही सलामत ही रहे.
विषनगर कलकृति केंद्र का मैनेजर अपने सिक्योरिटी गार्ड को सम्बोधित कर रहा था.
आज विषनगर मे एंटीक चीज़ो कि प्रदर्शनी लगीहै है , दूर दूर से लोग देखने आने वाले है .
सभी के आकर्षण का केंद्र वो चमकता हिरा था जिसके बारे मे अफवाह थी कि ये नागमणि है

"यार श्याम क्या सच मे ये नागमणि है "
"फालतू बात करता है यार तू राधे...ऐसा भी कहीं होता है,ये अफवाह प्रदर्शनी वाले ही उड़ाते है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग आये और उतनी ही कमाई हो"
दोनों सिक्योरिटी गार्ड रात कि ड्यूटी बजा रहे थे.
"सही बोला श्याम...ये सच मे नागमणि होती तो हम ही इसे चुरा लेते हाहाहाहाहा......
कहते है ना शुभ शुभ बोलना चाहिए ना जाने कब जबान पे सरस्वती विराजमान हो.
धापललल......धप......अचानक ही हॉल मे अंधेरा छा गया.
"अरे राधे ये बिजली को क्या हुआ,जल्दी एमरजेंसी लाइट जला "
राधे अभी लाइट जलाता ही कि धप....से बिजली वापस आ गई....
मात्र 5सेकंड का समय बिता होगा.
परन्तु लाइट आते ही राधे और श्याम कि आंखे फ़ैल गई, पैर कांप गए......
जा.....जा...जल्दी साहब को फ़ोन कर......
बता कि वो हिरा गायब है जिसे सब लोग नागमणि कहते है.
सब कुछ सही सलामत है,बस जहाँ वो हिरा रखा वहाँ एक कार्ड रखा है.
दूसरी तरफ फ़ोन पे :- कैसा कार्ड? क्या लिखा है?

लिखा है......


"चोर मंगूस"


समाप्त.....



दोस्तों फिर कभी मिलेंगे,कामरूपा और चोर मंगूस कि कहानी ले के,आधुनिक भारत मे..तब तक के लिए tata


आप सभी का प्यार इस कहानी को मिला उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया.
❤️❤️❤️❤️🙏🏼
बहुत ही शानदार उम्दा रचना। पूर्ण करने के लिए धन्यवाद
 
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andypndy

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दोस्तों इस कहानी मे कुछ कमी थी या यूँ कहे कि एक बंदिश थी,
मैंने वीरा को इंसानी रूप मे दिखाया,क्यूंकि xforum पे bestiality sex allow नहीं था. इसलिए मेरी मज़बूरी थी कहानी को बदलना,.
लेकीन मै अब इस कहानी का pdf तैयार कर रहा हूँ with pics बस स्टोरी मे थोड़ा सा चेंज होगा जो कि मेरी सोची गई ओरिजनल स्टोरी ही है..इसमें वीरा घोड़े के ही रूप मे है क्यूंकि उसकी इच्छाधारी शक्ति तो वैसे भी छीन गई थी.
और वही नागेंद्र का साँप रुपी सम्भोग भी आप लोगो को नहीं दिखा पाया.
खेर कुछ ही दिनों मे मै ओरिजनल स्टोरी का pdf बना लूंगा.
आपको मिल जाएगी.......
वैसे मज़ाक मज़ाक मे कहानी बहुत बड़ी हो गई 🤣
 

andypndy

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please send me your pdf
बिल्कुल दोस्त बस एडिटिंग मे ही लगा हूँ.
कुछ चेंज कर रहा हूँ.
जैसे ही तैयार हो जाएगी सेंड कर दूंगा
 
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