जगदीश राय टीवी पर दौड रहे अनगिनत न्यूज़ चैनल से रिमोट दौड़ा रहा था।
पर उनका ध्यान वहां नहीं था, वह निशा के बारे में सोच रहा था। की कैसे उसकी लड़की ने बिना कुछ कहे उसका सारा वीर्य साफ़ कर दिया।और अब हँस भी रही है। क्या उसने इसके पहले किसी और के वीर्य को छुआ होगा? हो तो नहीं सकता, वह जानता था की निशा कितनी सुशील है। पर सुशील होती तो फर्श पर पड़े वीर्य देखकर साफ़ नहीं करती, पिता को मसाज देते उसे ओर्गास्म नहीं आती।
क्या यह सिर्फ , उसके चरित्र पर , उम्र का एक धब्बा तो नहीं?
तभी उसकी सोच को चीरते हुआ बेल बजी। निशा ने जाके दरवाज़ा खोला। सशा और आशा घर में घूसे।
निशा: आ गई राजकुमारीया। क्या लिया वैलेंटाइन के लिये।
सशा: जो लिया आशा ने लिये। मेरे स्कूल में क्या वलेन्टाइन।
आशा (दीदी से): तुम से मतलब। यह मेरे और मेरे फ्रेंड्स के बीच की बात है।
निशा(आशा के कान में): ज्यादा बकवास मत कर। मैं अच्छी तरह जानती हु तेरे कैसे फ्रेंड्स है। तू पापा को बेवकूफ बना सकती है। मुझे नही, समझी क्या।
आशा (थोड़ी डरी हुई): वह दीदी …। मैं तो ऐसे ही…ऐसा कुछ भी नहीं है।
निशा: चुप चाप पढाई में ध्यान दे, यह साल बारहवी का मेजर साल है। चल जा अब।
फिर सशा और आशा दोनों अपने कमरे में चलि गयी। जगदीश राय ने कुछ बेटियों के बीच ख़ुसर-पुसार सूनी पर कुछ समझ नहीं पाया।
करीब 8:30 बजे निशा ने आवाज़ लगाई" चलो सब आ जाओ, खाना लग गया है"
निशा (मुस्कुराते): पापा , आप भी आइए।
जगदीश राय बिना कुछ कहे डाइनिंग टेबल पर बैठ गया, सशा सामने थी, आशा और निशा दाए बाए। वह निशा के आँखों में देख नहीं पा रहा था। पर निशा को अपने पापा से कोई शर्म नहीं आ रही थी, बल्कि उसको पापा की शर्मन्दिगी पर प्यार और हँसी आ रही थी।
आशा : निशा दीदी, क्या हम एक रैबिट (खरगोश) ले सकती है।
निशा : क्यु।
आशा: मुझे रैब्बिटस बहुत पसंद है। लवीना के पास एक ख़रगोश है, उसकी टेल बहुत प्यारी है।
सशा: अगर तुझे उसकी टेल इतनी पसंद है, तो सिर्फ टेल काटकर ले आ। पुरी रैबिट की क्या ज़रुरत है।
आशा: तू चुप कर। दीदी, बोलो न।
निशा: शार्ट एंड स्ट्रैट आंसर देती हु , नही।
आशा: लेकिन, मुझे उसकी टेल बहुत प्यारी लगती है।