अठारहवाँ भाग
मैंने कुछ सोच समझकर राहुल से बोला, “राहुल भैया मैं इस वक्त आपको कुछ नहीं बता पाऊंगा। आप मुझे एक दो दिन के लिए सोचने का समय दीजिये उसके बाद ही मैं आपको बता पाऊँगा कि मुझे इस चुनाव में खड़ा होना हैं या नही।” मैने राहुल भैया से कहा।
ठीक है तुम्हारी जैसी मर्जी। अच्छी तरह से सोच लो उसके बाद मुझे कॉलेज में या फिर कॉल करके बता देना” राहुल भैया ने यह बोलकर फोन काट दिया।
कॉल डिस्कनेक्ट होने के बाद मैं अपना मोबाइल टेबल पर रखकर चुपचाप बिस्तर पर लेट गया और आंखें बंदकर सोचने लगा।
मुझे क्या करना चाहिए। राहुल भैया की बात मान लूँ और चुनाव में उम्मीदवार बनूँ या इन सब से दूर रहूँ। क्या करूँ मुझे कुछ समय में नहीं आ रहा था।
फिर अचानक से मेरे दिमाग में देवांशु की वह सारी बातें याद आने लगी जो हमेशा मुझसे गुस्से में बोलता था और साथ ही इस चुनाव में उसके जीत जाने का गुरूर भी मेरे आंखों के सामने नाचने लगा।। जिसके कारण मुझे लगने लगा कि मुझे छात्रसंघ चुनाव लड़ना ही चाहिए क्योंकि अगर मैं उम्मीदवार बना तो दीपा स्लोगन लिखने या चुनाव प्रचार के लिए उसके पास नहीं जाएगी बल्कि वह हमेशा मेरे साथ ही रहेगी।जिसकी वजह से देवांशु चाहकर भी दीपा के साथ समय बिताने में कामयाब नहीं होगा और सबसे बड़ी बात अगर मैं जीत गया तो फिर उसका सारा गुरुर तोड़कर रख दूंगा।
ये सारी बातें सोचने के बाद भी मैं किसी अंतिम बिंदु पर नहीं आ पाया था। मैंने अपना फोन उठाकर अपने सहपाठियों और 1-2 दोस्तों को कॉल कर के छात्र संघ के चुनाव में उम्मीदवार बनने के बारे में चर्चा किया ।इस बात से मेरे सभी दोस्त खुश हो गए और सब ने मुझे छात्रसंघ चुनाव लड़ने को बोला साथ ही सब लोगों ने मुझे सहयोग करने का वादा भी किया। इन सब से बात करने के बाद मैं खुद को छात्र संघ चुनाव का उम्मीदवार बनने के लिए तैयार कर लिया। अब इसके लिए मुझे घरवालों से बात करनी थी। तभी कमरे में दीपा आई।
“ओ ... छोटेबाबू क्या सोच रहे हैं? चलिए खाना बन गया है।सब लोग खाने पर इंतजार कर रहे हैं।” कमरे में आते ही दीपाबोली।
दीपा रुको तुमसे एक बात करनी है।” मैंने बोला।
मेरी बात सुनकर दीपा कमरे में रुक गई और बोली,”कोई बातें नहीं, चलो पहले खाना खा लेते हैं।”
मैं फिर दोबारा न बोल कर चुपचाप दीपा के साथ खाना खाने के लिए चल दिया। हम सभी एक साथ बैठकर खाना खा रहे थे।
मेरे परिवार में दूर-दूर तक किसी ने कोई राजनीतिक में भाग नहीं लिया था। वह चाहे कॉलेज की राजनीति कहो या फिर कॉलेज से बाहर की, लेकिन पापा कभी-कभी चुनावी रैलियों में हिस्सा लेने के लिए दूसरे शहर जाया करते थे। इसीलिए मैंने अपने घर वालों से इस बारे में चर्चा कर लेना उचित समझा।
“भैया मेरे कॉलेज में छात्र संघ चुनाव होने वाला है और उसके उम्मीदवारों का नामांकन भी शुरू हो चुका है। मेरे कुछ दोस्तों ने इस चुनाव में मुझे उम्मीदवार बनाने के लिए चुना है” मैंने अपने अर्जुन भैया से बोला।
मेरी यह बात सुन कर सभी लोग मेरी तरफ देखने लगे और दीपा तो बहुत आश्चर्य चकित होकर मेरी तरफ देख रही थी।
“वाह! यह तो बहुत अच्छी बात है। मगर तुम्हारे दोस्तों ने इस चुनाव के लिए तुम्हे ही उम्मीदवार उम्मीदवार क्यों चुना?” अर्जुन भैया बोले।
“भैया उन लोगों का मानना है कि इस चुनाव के लिए मैं एक अच्छा उम्मीदवार हो सकता हूं।” मैंने बोला।
“ठीक है अगर तुम्हारे दोस्तों को ऐसा लगता है तो तुम इस चुनाव में जरूर भाग लो, वैसे भी कॉलेज समय में राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना बहुत अच्छी बात है।” अर्जुन भैया बोले।
लेकिन तुझे चुनाव लड़ने की क्या जरूरत है। तू जिस काम के लिए के लिए कॉलेज जाता है वो काम कर, इन फालतू के कामों में अपना समय और पैसा क्यों बरबाद कर रहा है। तुझे पता है तेरा भाई कितनी मेहनत करता है ताकि घर को अच्छे से संभाल सके और तुझे पढ़ा सके। माँ ने अर्जुन भैया की बात खत्म होने के बाद कहा।
लेकिन मैं पढ़ाई के साथ-साथ कॉलेज की और भी गतिविधियों में हिस्सा लेना चाहता हूँ। तो इसमें बुराई क्या है। आपको तो खुश होना चाहिए कि मैं छात्रसंघ का चुनाव लड़ रहा हूँ। मैंने माँ से कहा।
मैं नहीं चाहती कि तू इन सब चक्करों में पड़े। माँ ने कहा।
क्या माँ आप भी। अगर निशांत कुछ अच्छा करने का सोच रहा है तो आप उसे क्यों मना कर रही हैं। आखिर परेशानी क्या है इसमें अगर वह छात्रसंघ का चुनाव लड़े तो। अर्जुन भैया बोले।
तुझे पता है न। तेरे पापा इसी राजनीति के चक्कर में अपनी कंपनी और हम लोगों से कई कई दिनों तक दूर रहते थे। कभी इस चुनावी रैली में तो कभी उस चुनावी रैली में। और उनके इसी रवैये के चलते कंपनी की स्थिति डावाडोल हो गई थी। उसके बाद वो कंपनी का हादसा। जिसने तेरे पापा को हम सबसे छीन लिया। मैं अपने बच्चे को इस राजनीति के चक्कर में नही पड़ने दूँगी। माँ ने कहा।
क्या माँ आप कहाँ पुरानी बातें लेकर बैठ गई हैं। जो बीत गया सो बीत गया। अब क्या सारी जिंदगी उसे याद करके हम कुछ अच्छा करने से पीछे हट जाएँ। भैया ने माँ को समझाते हुए कहा।
माँ तो मान ही नहीं रही थी कि मैं छात्रसंघ चुनाव लड़ूँ, परंतु भैया और भाभी के बार-बार समझाने के बाद आखिरकार माँ को मानना ही पड़ा।
माँ से इजाजत मिलने के बाद मैं बहुत खुश था। हम सब खाना खाने के बाद अपने-अपने कमरे में सोने चले गए और उस दिन दीपा अपने घर ना जाकर इस बार भी वह मेरे ही घर रुक गई थी। मगर चुनाव लड़ने के फैसले से वह थोड़ी खफा हो गई थी। उसे लग रहा था कि यह मेरा गलत फैसला है।
दीपा उस रात सब से छुपकर मेरे कमरे में आई और मुझे समझाते हुए बोली, “निशांत मुझे लगता है तुम्हे चुनाव में भाग नहीं लेना चाहिए क्योकि इससे तुम्हारी पढ़ाई भी बाधित हो सकती है।”
वैसे दीपा की यह बात बिल्कुल सही थी। और उसका यह भी मानना था कि जो लोग नेता नही बनना चाहते हो उसे छात्र संघ चुनाव से दूर ही रहना चाहिए वरना पढ़ाई के लिए समय नहीं मिल पाएगा। जिससे उसका भविष्यभी प्रभावित हो सकता है।
“दीपा इस चुनाव के लिए मेरे सभी दोस्तों ने मुझे उम्मीदवार चुना हैं क्योकि कॉलेज के सिस्टम को सही तरीके से चलाने के लिए एक अच्छे उम्मीदवार की जरूरत होती हैं। और इस चुनाव में जो भी उम्मीदवार खड़े हुए हैं उनमे से कोई ऐसा उम्मीदवार नहीं है जो कॉलेज को सही तरीके से चला सके इसलिए मैं इस चुनाव में उम्मीदवार बनने की योजना पर अपने दोस्तों को सहमति दे दिया हूँ ताकि अगर मैं यह चुनाव जीत जाऊँ तो कॉलेज के सिस्टम को सही तरीके से चला सकूं। क्या तुम नहीं चाहती कि मैं यह चुनाव जीतकर कॉलेज के लिए कुछ अच्छा करूँ।” मैंने दीपा को समझाते हुए कहा।
निशांत अगर तुम्हें लगता है छात्र संघ चुनाव में तुम्हें चुनाव लड़ने चाहिए तो तुम उम्मीदवार अवश्य बनो । मैं तुम्हारे साथ हूं” दीपा मुस्कुराती हुई बोली।
दीपा की यह बात सुनकर मैं खुश हो गया और साथ ही मुझे बहुत अच्छा भी लगा कि दीपा इतनी जल्दी मेरे सपोर्ट में आ गयी। अब मुझे खुद पर और अपने प्यार पर विश्वास हो गया था कि हम गलत नहीं हैं। उसवक्त बात करते हुए मुझे यह महसूस हुआ कि दीपा देवांशु को सिर्फ एक अच्छा उम्मीदवार सोच कर ही उसके सपोर्ट में खड़ी थी ना कि किसी और वजह से।
मैंने दीपा को गले लगाते हुए बोला," थैंक यू दीपा मुझे पूरा विश्वास था कि तुम मेरा इस चुनाव में सपोर्ट करोगी"।
पहले तो दीपा कुछ देर तक ऐसे ही मुझसे लिपटी रही फिर मैंने उसे अपने आपसे अलग किया और बोला।
अगर मैं चुनाव में हिस्सा ले रहा हूँ तो फिर तुम किसको अपना सहयोग दोगी।मैने दीपा से कहा।
ये भी कोई पूछने की बात है निशांत। ऑफकोर्स तुम्हें याऱ। दीपा मेरे कन्धे पर चपत लगाती हुई बोली।
फिर उस देवांशु के लिए प्रचार कौन करेगा। मैंने दीपा से मुस्कुराते हुए कहा।
देवांशु की बात सुनकर दीपा कुछ देर खामोश रही फिर मेरी आँखों में देखती हुई बोली।
मुझे पता है निशांत तुम देवांशु के बारे में क्या सोचते हो, जब भी कभी तुम्हारे मुँह से देवांशु का जिक्र होता है तो तुम्हारे चेहरे का भाव बदल जाता है। अगर मैं कभी देवांशु का जिक्र कर देती हूँ तो तुम्हें बहुत दुख होता है। तुम्हारे चेहरे की रौनक तुरंत गायब हो जाती है। तुम्हें लगता है कि वो देवांशु मुझे तुमसे छीन लेगा। ये कभी नहीं हो सकता निशांत, मैं तुम्हारी हूँ और हमेशा तुम्हारी रहूंगी। तुमने देवांशु के बारे में मुझसे कभी सीधा सवाल नहीं पूछा हमेशा घुमा-फिरा कर सवाल पूछते हो ये जानने के लिए कि मेरे दिल में उसके लिए क्या है। वो सिर्फ मेरा दोस्त है और तुम मेरी दुनिया। तुम्हारे लिए तो मैं ऐसे कई देवांशु को कुरबान कर सकती हूँ। तुम्हारे लिए मैं पूरी दुनिया छोड़ सकती हूँ सिर्फ अपने भैया और उनका मेरे लिए लिए गए फैसले को छोड़कर।
इतना कहकर दीपा थोड़ी देर चुप रही और फिर से मेरी आँखों में दिखती हुई बोली।
“निशांत छात्र संघ चुनाव क्या है? मैं तो हर कदम से कदम मिलाकर तुम्हारे साथ रहूंगी। यह तो तुम्हारा सबसे अच्छा फैसला है कि तुमने कॉलेज और विद्यार्थियों की भलाई के लिए छात्र संघ चुनाव लड़ने का फैसला लिया हैं।”
दीपा की बात सुनकर मुझे अब अपने आपसे शर्म आ रही थी। मैंने दीपा के बारे में कितना गलत समझा। जाने अनजाने में उसके दिल दुखाया। यही सब सोचकर मेरा सिर दीपा के सामने झुक गया। दीपा ने जब ये देखा तो उसने मुझे आवाज दी।
क्या हुआ छोटे बाबू। तुम अपना मुँह लटका कर क्यों खड़े हो।
दीपा की बात का मैंने कोई जवाब नहीं दिया। मेरी आँखें पश्चाताप के कारण डबडबा गई थी। मेरे जवाब न देने पर दीपा ने मेरी ठुड्डी पकड़कर मेरे चेहरा ऊपर किया।
क्या हुआ निशांत। तुम रो रहे हो। मेरी बाते अगर तुम्हें अच्छी न लगी हो तो मुझे माफ कर दो। दीपा ने मेरे आँखों में आँसू देखकर उन्हें पोछते हुए कहा।
तुम माफी माँग कर मुझे और शर्मिंदा मत करों। मैंने तुम्हारे प्यार पर शक किया दीपा। मुझे माफ कर दो, लेकिन मैं क्या करूँ देवांशु के बार बार करने पर कि वो तुमसे प्यार करते है और तुम्हें पाकर रहेगा ऊपर से तुम भी उससे हँस हँस कर बात करती थी। उसके साथ घूमती थी, उसके लिए चुनाव प्रचार कर रही थी तो मुझे लगा कि शायद तुम भी उसमें रुचि लेने लगी हो। जिसके कारण मैं बहुत परेशान हो गया था। मैं तुमसे इस बारे में बात करना चाहता था, लेकिन मैं डर गया था कि कहीं तुम ये सुनकर कि मैंने तुम पर शक किया है, तुम मुझसे नाराज न हो जाओ। जो मुझे तनिक भी बरदास्त नहीं होती। प्लीज मुझे माफ कर दो दीपा। मैंने दीपा के सामने अपने हाथ जोड़ते हुए कहा।
ये क्या कर रहे हो तुम छोटे। मैं तुमसे कभी नाराज हो सकती हूँ क्या। और इसमें रोने की क्या वात है। तुम तो मेरे बहादुर छोटे हो। तुम हँसते हुए अच्छे लगते हो। रोते हुए नहीं। और देवांशु मेरे बारे में ऐसा कैसे सोच सकता है। मैं तो उसे कितना अच्छा समझती हूँ, लेकिन उसके इरादे तो कुछ और हैं मुझको लेकर। कल देखती हूँ मैं उसके कॉलेज में ऐसा मजा चखाऊंगी कि याद रखेगा कि दीपा किसका नाम है। दीपा ने मुझे समझाते हुए कहा।
नहीं दीपा अभी तुम ऐसा कुछ मत करना। तुम मेरे साथ हो यही मेरे लिए बहुत है। मैंने दीपा से कहा।
ठीक है जैसे मेरा छोटा बाबू बोलेगा मैं वैसा करूँगी। दीपा ने मस्ती में कहा।
मैंने दीपा की बात सुनकर उसके होठों को चूम लिया। उस वक्त ऐसा लग रहा था जैसे सारी दुनिया मेरे साथ खड़ी हैं और मुझे कहीं भी, किसी भी मोड़ पर किसी से डरने की कोई जरूरत नहीं है।
चाहे दुनिया आपके लाख खिलाफ हो लेकिन आप जिससे मोहब्बत करते हैं और वह आपके साथ होता है तो सारी दुनिया से लड़ लेने की ताकत खुद ब खुद आ जाती है।
मैं उसके चेहरे को प्यार भरी नजरों से देख रहा था
“छोटे बाबू ऐसे क्या देख रहे हो?” वह चुटकी लेती हुई बोली।
“बस यही कि मेरी दीपा डार्लिंग कितनी खूबसूरत लग रही हैं !” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
“अच्छा! तो मुझे हमेशा हमेशा के लिए अपने पास ही बुला लो न, फिर देखते रहना दिन रात, सुबह शाम ।” दीपा शर्माती हुई बोली।
“वैसे तुम्हे जल्द ही हमेशा-हमेशा के लिए अपने पास ले आयूंगा लेकिन अभी तुम मेरे पास हो तो क्यों ना अभी से ही देखते रहने की प्रैक्टिस कर लेते हैं?” मैंने दीपा के बातों के जवाब दिया।
उसके बाद मैंने उसकी गर्दन के पीछे अपने हाथ रख कर उसके होठों से अपने होठ लगा दिया और इसी तरह से उसके होठों को लगातार कई मिनटों तक चुमता रहा। उस रात दीपा लगभग आधी रात तक मेरे कमरे में ही मेरे साथ सोई ।मगर सुबह होने से पहले वह अपने कमरे में सोने चली गई। उस रात हम-दोनों काफी खुश थे।
साथ बने रहिए।