बीसवाँ भाग
मेरी जीत पर कॉलेज के सभी छात्र-छात्राएं काफी खुश थे। मैं भी काफी खुश था।और मैं चाहता था मेरी जीत की जानकारी मेरे घरवालों को भी होनी चाहिए।ताकि वो भी मेरी जीत की खुशी का जश्न मनाये।
इसलिए यह खुशखबरी बताने के लिए मैंने अपनी मां को फोन किया।
"हेलो मां मैं निशांत बोल रहा हूं"
"हां छोटे बोलो। कॉलेज से वापस कब आ रहे हो।" मां बोली।
" मां मैं छात्र संघ चुनाव जीत चुका हूं।
मैं कॉलेज का छात्र नेता बन गया हूँ।" मैंने अपनी खुशी को दुगुना करते हुए मां को बताया।
"देखो बेटा अपनी पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान दो।और अगर पढ़ाई लिखाई नहीं हो रही है तुमसे तो भैया काऑफिस ज्वाइन कर लो।" मां थोड़ी चिढ़ी हुई बोली।
मुझे लगा छात्र नेता बनने की खुशखबरी सुनकर मेरी माँ खुश होगी। मगर वह तो चिढ़ सी गयी।
"मां...." मैं बोला।
"मैंने तुझे कितनी बार समझाया है कि इन सब चक्करो में मत पड़ो। मैं तो तुझे चुनाव में भी खड़ा नहीं होने देना चाहती थी लेकिन अर्जुन की वजह से मैं मना नहीं कर पाई।" मां बोली।
लेकिन माँ आपको तो मेरी जीत पर खुश होने चाहिए था। मैंने माँ से कहा।
मैं तेरी कोई दुश्मन नहीं हूँ निशांत। जिस दिन तू कोई अच्छा काम करेगा उस दिन मैं बहुत खुश होऊँगी। माँ ने कहा।
मेरे जीत पर माँ से इस तरह की बात सुनकर मैं उदास सा हो गया।
मैं उदास होकर कॉलेज के कॉरिडोर में खड़ा था। उसी वक्त कुछ लड़के-लड़कियां अपने हाथों में माला लिए मेरे पास आए। सभी के चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी।
" बहुत बहुत बधाई निशांत।आपकी जीत के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं" सभी एक साथ बोले।
धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद आप सभी लोगों का मेरा सहयोग करने और मुझे इस काबिल समझने के लिए कि मैं कॉलेज के लिए कुछ कर सकता हूँ। मैंने सभी का अभिवादन स्वीकार करते हुए कहा।
वो सभी लोग मुझे शुभ कामनाएं देकर वापस लाइब्रेरी की ओर चले गए उसके बाद वहां दीपा आई।
" निशांत क्या हुआ उदास लग रहे हो?" दीपा आते ही मेरे हाथ को पकड़ती हुई बोली।
"नहीं बस ऐसे ही" मैंने कहा।
"कुछ तो बात है, वरना ऐसे उदास ना होते।देखो तुम्हारी जीत की खुशी में सारा कॉलेज जश्न मना रहा है और तुम यहां उदास एकांत में खड़े हो।कहीं तुम्हें देवांशु ने कुछ तो नही कहा। दीपा मेरी उदासी को झांकती हुई बोली।
" नही, नही।मेरी तो देवांशु से अभी तक कोई मुलाकात ही नहीं हुई है।मां से बात हुई है। मेरी जीत पर मां खुश नहीं है और वो ये सब छोड़कर मुझे भैया के ऑफिस ज्वाइन करने के लिए बोल रही है।" मैंने उदासी भरे स्वर में कहा।
"बस इतनी सी बात के लिए मेरा राजा बाबू उदास है। ओहो... निशांत यह सारी बातें छोड़ो हमलोग इस बारे में घर पर चलकर मां से बात कर लेंगे।अभी चलो। देखो सारे लड़के - लड़कियां तुम्हें खोज रहे हैं और राहुल भैया भी तुम्हें ही ढूंढ रहे हैं।"दीपा मुझे जबरदस्ती वहां से बाहर खिंचती हुई बोली।
" तो आप दोनों छुपकर ईधर खड़े हैं भाई साहब। मेरे वजह से ही जीते हो और जीतते ही मुझसे दूर निकल रहे हो।" राहुल भैया नजदीक आते ही मजाकिया लहजे से बोले।
"नहीं भैया ऐसी कोई बात नहीं है।आपको कैसे भूल सकता हूँ? चलिए बैठकर बात करते हैं।"
दीपा, मैं और राहुल भैया तीनों लोग कॉलेज के सेमिनार हॉल में चले गए।राहुल भैया ने कुछऔर लड़कों को कॉल कर के सेमिनार हॉल में आने के लिए कहा।हम लोगों ने इस जीत को किसी एक की व्यक्तिगत जीत ना मानते हुए इसमें शामिल सारे लोगों की जीत समझा और सभी लोगों का आभार व्यक्त किया।
उस समय हम लोगों के बीच बहुत सारी कॉलेज संबंधी बातें हुई और इस जीत को सेलिब्रेट करने का 1 दिन निर्धारित किया गया।इसके बाद कॉलेज के बंद होने से पहले हम सभीअपने-अपने घर जाने के लिए निकल आए।
"दीपा अब तक तुम्हारे भैया नहीं आए हैं तुम्हें रिसीव करने के लिए" मैंने दीपा से पूछा।
"वो आज आएंगे भी नही, क्योंकि वो एक रिश्तेदार की शादी में बाहर गए हुए हैं। " दीपा चहकती हुई बोली।
"वाह!""कहो तो मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ दूँ" मैंने कहा।
" अच्छा, एक अकेली अबला नारी घर में अकेली रहने वाली है और तुम वाह ! बोल रहे हो छोटे बाबू।" वह मुझे छेड़ने के मूंड़ से बोली।
तुम और अबला हाहाहाहा। अबला। मैंने दीपा को चिढ़ाते हुए कहा।
अच्छा हँस लो हँस लो। मेरा भी समय आएगी फिर बताऊँगी तुमको मैं। दीपा ने कहा।
"तो मैं चलूं तुम्हारे साथ, आज इस अबला नारी के साथ ही रात बिताते हैं।" मैंने भी मस्ती के लिए बोल दिया।
यह भी भला कोई पूछने वाली बात है चलो इतना बोलकर दीपा मेरी बाइक के पास जाकर खड़ी हो गई।
मैंने भी मौके की नजाकत समझकर गाड़ी स्टार्ट करके उसे पीछे बैठने के लिए कहा दीपा के बैठने के बाद हम होनों उसके घर के लिए निकल पड़े। रास्ते में हम दोनों खूब बकबक करते रहे हैं। हमारे रास्ते खत्म हो गए मगर दीपा की बकबक अभी भी खत्म नहीं हुई थी।
"नीचे उतारिए मेरी बकबक करने वाली प्यारी दीपा जी।" मैंने बाइक को उसके घर के पास रोकते हुए बोला।
"ओहो...मुझे लगा तुम मेरी प्यारी जानेमन बोलोगे लेकिन तुमने तो प्यारी दीपा बोलकर मेरा दिल ही तोड़ दिया दीपा दांत निकालकर हंसती हुई बोली।
मैं भी उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दिया। मैं दीपा को उसके घर तक छोड़कर वापस अपने घर जाने लगा। तभी दीपा बोली," तो आज मेरे छोटे बाबू अपनी इस अबला नारी को इस सुनसान रात को घर में अकेले ही छोड़कर चले जायेगें?"
तुम कहो तो मैं तुम्हें कभी छोड़कर ही न जाऊँ, लेकिन अभी मुझे जाना पड़ेगा। घर में मम्मी और भैया मेरा इंतजार कर रहे होंगे। मैंने दीपा से कहा।
आज रात मेरे पास ही रुक जाओ न। मैं अकेली यहाँ बोर हो जाऊँगी और मुझे डर भी लगेगा। दीपा बड़े प्यार से मुझे मनाती हुई बोली।
तो चलो फिर मेरे घर चलते हैं। मेरा ख्याल है कि तुम्हें वहाँ डर नहीं लगना चाहिए। मैंने दीपा को छेड़ते हुए कहा।
नहीं निशांत मैं रोज-रोज बिना कारण के तुम्हारे घर नहीं चल सकती। तुम समझो न। लोग तरह तरह ही बाते बनाएँगे। और पता नहीं माँ और अदिति दी क्या सोचेंगी। दीपा ने अपनी बात कही।
कुछ नहीं होगा यार तुम न बिना मतलब सोचती बहुत हो। मैंने दीपा से कहा।
तुम ही रुक जाओ यहाँ पर मेरे साथ। वैसे भी भैया पता नहीं कब तक लौटेंगे। दीपा ने कहा।
बात तो वही हो गई दीपा। अगर किसी ने मुझे भैया की अनुपस्थिति में तुम्हारे घर पर रात को देख लिया तो पता नहीं क्या सोचेगा। मैंने दीपा से कहा।
किसी के सोचने से क्या होता है निशांत, और कौन सा हम कोई गलत काम कर रहे हैं कि किसी से डरें हम। दीपा ने मुझसे कहा।
तुम्हारे साथ रात रुकने पर अगर मेरा कुछ गलत काम करने का मन हुआ तो। मैं दीपा को आँख मारते हुए बोला।
तुम न निशांत बहुत गंदे हो। दीपा शरमाती हुई बोली।
अच्छा ठीक है मैं रात रुक रहा हूँ तुम्हारे साथ। अब खुश। मैंने दीपा से कहा।
मेरी बात सुनकर दीपा बहुत खुश हुई और मुझसे लिपट गई थोड़ी देर हम एक दूसरे से लिपटे खड़े रहे।
अच्छा रुको मैं भैया को फोन करके बता देता हूँ कि मैं आज रात घर नहीं आऊँगा।
फिर मैंने अर्जुन भैया को फ़ोन करके सारी बात बता दी। उन्हें पहले से ही दीपा और मेरे बारे में पता था, इसलिए उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी तो उन्होंने रात रुकने के लिए अनुमति दे दी।
भैया से अनुमति मिलने के बाद मैं और दीपा बरामदे से घर के अंदर आ गए। मैं अंदर आकर उसी टूटी हुई कुर्सी पर बैठ गया। दीपा ने मुझे पीने के लिए पानी लाकर दिया और कपड़े बदलने के लिए दूसरे कमरे में चली गई।
साथ बने रहिए।