इक्कीसवाँ भाग
भैया से दीपा के यहाँ रुकने की अनुमति मिलने के बाद मैंने भैया को अपनी जीत के बारे में भी बता दिया। भैया मेरी जीत पर बहुत खुश हुए, फिर मैंने उन्हें माँ की नाराजगी के बारे में भी बताया।
उसके बाद मैं कुर्सी पर बैठ गया और दीपा घर के अंदर कपड़े बदलने के लिए चली गई। थोड़ी देर बाद दीपा कपड़े बदल कर बाहर आई तो मैं दीपा को देखता ही रह गया। दीपा को मैंने हमेशा ही थोड़ा बहुत साजो-श्रृंगार में देखा था, लेकिन वो आज बिना साजो-श्रृंगार के साधारण कपड़ों में भी और भी ज्यादा खूबसूरत और मासूम लग रही थी। ऐसा नहीं था कि दीपा खूबसूरत नहीं थी, परंतु रोज के मुकाबले आज मुझे वो ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। मैं बस एकटक दीपा को देखे जा रहा था। दीपा भी आकर मेरे पास वाली चारपाई पर बैठ गई।
अरे छोटे बाबू क्या हुआ। ऐसे क्या देख रहे हो जैसे पहली बार देख रहे हो। दीपा ने मुझसे कहा।
देखता तो मैं तुमको रोज ही हूँ, मगर आज तुम रोज से अलग लग रही हो। मैंने कहा।
अच्छा, आज ऐसा क्या खास है जो अलग लग रही हूँ मैं। दीपा ने मुझसे पूछा।
तुम इस समय बहुत ज्यादा खूबसूरत और मासूम लग रही हो। मैंने दीपा से कहा।
मेरी बात सुनकर दीपा शरमाने लगी और वहाँ से उठकर जाने लगी तो मैंने उसका हाथ पकड़ कर जोर से अपनी तरफ खीचा। दीपा सीधे आकर मेरी गोद में गिर पड़ी। मैंने दीपा को कसकर अपनी बाहों में भर लिया और उसके चेहरे पर आई लटों को अपने हाथों से संवार कर उसके कंधे के पीछे कर दिया तथा उसके खूबसूरत चेहरे को निहारने लगा।
दीपा ने कुछ देर मेरी आँखों में देखा। उसकी आँखों में मुझे अपने लिए बेइंतेहाँ प्यार नजर आया। मैंने उसकी आँखों में देखते हुए अपने होंठ उसके गुलाबी होंठों पर रख दिए। दीपा ने भी मेरा साथ दिया। लगभग 5 मिनट सॉफ्ट किस करने के बाद दीपा ने अपने आपको मुझसे अलग किया।
यही सब गंदी हरकतें करने के लिए रुके हो क्या छोटे बाबू। दीपा ने मुझसे कहा।
इससे भी ज्यादा गंदी हरकतें करने का मन है मेरी प्यारी दीपा। मैंने दीपा को छेड़ते हुए कहा।
चलो हटो। खाना भी बनाना है। भूखा सोने का इरादा है क्या। दीपा ने मुझे प्यार से झिड़कते हुए कहा।
फिर दीपा खाना बनाने के लिए रसोईघर में चली गई। मैं भी उसके पीछे-पीछे रसोईघर में चला गया। दीपा मुझे मना करती रही लेकिन मैंने उसकी थोड़ी बहुत मदद खाना बनाने में की। खाना बन जाने के बाद हमदोनों ने मिलकर खाना खाया। फिर दीपा बरतन साफ करने लगी और मैं वापस आकर चारपाई पर बैठ गया।
उधर घर पर मेरे न पहुँचने के बाद माँ बहुत परेशान थी। खाना खाने की मेज पर जब सभी लोग खाना खाने के लिए बैठे तो माँ ने अर्जुन भैया से पूछा।
आज ये निशांत कहाँ रह गया है। अभी तक घर नहीं आया।
वो आज दीपा के यहाँ पर रूका हुआ है। अर्जुन भैया ने माँ से कहा।
क्यों कुछ काम था क्या उसे जो वो दीपा के यहाँ रुका है। माँ ने अर्जुन भैया से पूछा।
नहीं माँ कुछ काम नहीं था। आज आशीष कहीं बाहर गया हुआ है और दीपा घर में अकेली है, इसलिए वो आज दीपा के साथ ही रुक गया है। अर्जुन भैया ने माँ को बताया।
क्या कहा। दीपा घर में अकेली है और निशांत उसके साथ है। ये लड़का भी ना। क्या जरूरत थी दोनों को अकेला वहाँ रहने की। दीपा को लेकर वो घर भी तो आ सकता था। माँ ने कहा।
दीपा यहाँ आने के लिए तैयार नहीं थी, इसलिए निशांत रुक गया उसके साथ। अर्जुन भैया ने कहा।
क्यों नहीं आने को तैयार थी वो। तुम लोगों ने कुछ कहा है क्या उससे। माँ ने अर्जुन भैया से कहा।
नहीं माँ उसके लगता है कि बार बार हमारे घर आने से पास-पड़ोस में तरह-तरह की बातें होने लगेंगी। इसलिए वो यहाँ आने को तैयार नहीं थी। अर्जुन भैया ने कहा।
और वो दोनो जो कर रहे हैं उससे पास-पड़ोस में कोई बातें नहीं होंगी। एक जवान लड़का और लड़की पूरी रात एक घर में अकेले रहेंगें। तो लोगों को तो और भी मौका मिलेगा तरह तरह की बात बनाने का। माँ ने अर्जुन भैया से कहा।
क्या माँ। आपको अपने बेटे के ऊपर विश्वास नहीं है क्या। अर्जुन भैया ने कहा।
मुझे दोनों पर पूरा विश्वास है कि वो दोनों कोई ऐसा-वैसा काम नहीं करेंगे जिससे हम लोगों की बदनामी हो, लेकिन हम समाज के बनाए नियमों को अनदेखा भी तो नहीं कर सकते। हम सबको समाज के साथ ही चलना पड़ता है। दोनों ने ये बिलकुल ठीक नहीं किया। माँ ने निशांत भैया को समझाते हुए कहा।
माँ की बात भी एक हद तक सही ही थी। एक लड़का लड़की अकेले एक घर में रात गुजार लें तो लोगों के मुँह पर तरह-तरह की बातें होने लगती है।
छोड़ों न माँ। आप कहाँ ये सब बातें लेकर बैठ गई हो। एक बात कहूँ अगर आपको बुरा न लगे तो। अर्जुन भैया ने माँ से कहा।
हाँ बोलो अर्जुन। माँ ने कहा।
आपको दीपा कैसी लगती है माँ। अर्जुन भैया ने कहा।
दीपा बहुत अच्छी और संस्कारों वाली लड़की है। भगवान ऐसी बेटी सभी को दे। माँ-बाप के न रहने के बाद भी आशीष ने बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं दीपा को। माँ ने दीपा की तारीफ करते हुए कहा।
माँ मुझे लगता है कि अपना निशांत दीपा का बहुत पसंद करता है और दीपा भी निशांत को पसंद करती है। तो क्यों न दोनों की शादी करवा दी जाए।
ये तो बहुत अच्छी बात है अर्जुन। दीपा जैसी लड़की अगर इस घर की बहू बने। ये तो हमारे लिए बहुत सौभाग्य की बात है। सबसे बड़ी बात ये कि दीपा जैसी संस्कारों वाली लड़की के साथ शादी करके उस नालायक की किस्मत खुल जाएगी। माँ ने खुश होते हुए कहा।
माँ की सहमति मिलने के बाद अर्जुन भैया और अदिती भाभी बहुत खुश हो गए। कुछ ही दिनों में दीपा ने अपने कुशल व्यवहार और अपने पन से घर के हर सदस्य के अंदर एक अलग जगह बना ली थी।
लेकिन अभी तो दोनों की पढ़ाई चल रही है। बिना पढ़ाई पूरी हुए शादी करना जल्दबाजी होगी, और सबसे बड़ी बात क्या आशीष इस रिश्ते के लिए तैयार होंगे। माँ ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा।
हाँ ये बात तो सही कहा आपने माँ, लेकिन एक बार उनसे बात तो करनी ही होगी न, हो सकता है उन्हें भी ये रिश्ता पसंद हो। भैया ने कहा।
तो ठीक है किसी दिन हम सब रिश्ते के लिए दीपा के घर आशीष से बात करने के लिए चलेंगे, लेकिन तुम दोनों एक बात कान खोलकर सुन लो। निशांत और दीपा के रिश्ते से मुझे कोई परेशानी नहीं है, लेकिन निशांत ने मेरी बात न मानकर अपने मन का काम किया है। तो अब मैं जैसा भी करूँ, तुम दोनों को मेरा साथ देना होगा। माँ ने भैया और भाभी से कहा।
ठीक है माँ हम आपके साथ हैं। लेकिन आप करने क्या वाली हैं। अर्जुन भैया ने माँ से सवाल किया।
वो तुम दोनों को बाद में पता चल जाएगा। मैं इतनी जल्दी निशांत के सामने दीपा से उसकी शादी के लिए हाँ थोड़े ही बोलूँगी, उसे भी तो पता चले कि उसने किससे पंगा लिया है। माँ ने मजाकिया लहजे में कहा।
ठीक है माँ वैसे निशांत बता रहा था कि आप उसके चुनाव जीतने पर खुश नहीं हैं। भैया ने कहा।
मैं खुश क्यों नहीं होऊँगी, आखिर मेरे बेटे ने जीत हासिल की है। मैं उसके सामने नाराजगी इसलिए दिखाई, क्योंकि मैं नहीं चाहती कि वो किसी गलत रास्ते पर चले पड़े, मेरी नाराजगी से उसे कम-से-कम ये तो लगता रहेगा कि उसके किसी गलत काम करने से मैं नाराज हो सकती हूँ। माँ ने कहा।
उसके बाद माँ, भैया और भाभी ने मिलकर खाना खाया और अपने अपने कमरे में सोने चले गए।
इधर मैं और दीपा भी खाना खाकर सोने की तैयारी करने लगे। दीपा ने सोने के लिए मेरा बिस्तर लगा दिया और वो सोने के लिए दूसरे कमरे में जाने लगी। मैंने दीपा का हाथ पकड़ लिया।
मुझे अकेला छोड़कर कहाँ चल दी मेरी प्यारी दीपा। मैंने दीपा से कहा।
अब रात हो गई है और सोने के समय भी हो गया है। तो सोने जा रही हूँ। दीपा ने कहा।
क्या तुम आज रात मेरे साथ मेरे बिस्तर पर नहीं सो सकती। मैंने दीपा से कहा।
मैं तो खुद तुम्हारे साथ सोना चाहती थी, लेकिन मुझे लगा कहीं तुम नाराज न हो जाओ इसलिए मैं अंदर जो रही थी। दीपा ने कहा।
क्या बात है दीपा, मतलब तुमने पूरी तैयारी करके रखी है। मैंने शरारत के साथ दीपा से कहा।
तुम न आजकल कुछ ज्यादा ही शरारती होते जा रहे हो छोटे बाबू। दीपा ने कहा।
अभी मैंने अपनी शरारत शुरू कहाँ की है दीपा डार्लिंग। मैंने दीपा से कहा।
तुम भी न, अच्छा रुको मैं कपड़े बदलकर आती हूँ। यह बोलते हुए दीपा दूसरे कमरे मे चली गई।
थोड़ी देर बाद दीपा एक गाउन पहनकर बाहर आई। मैं दीपा को देखते हुए कहा।
लगता है तुम आज मेरी जान लेकर ही मानोगी। तुम्हें इन कपड़ों में देखकर मेरी तो नीयत खराब हो रही है दीपा डार्लिंग। मैंने दीपा से शरारत से कहा।
अच्छा, अब अपनी नीयत ठीक कर लो, नहीं तो मैं दूसरे कमरे में जा रही हूँ। दीपा ने कहा।
मैंने दीपा का हाथ पकड़ लिया और उसे पकड़कर अपने ऊपर खीच लिया, दीपा मैरे ऊपर गिर पड़ी। थोड़ी देर हम दोनों एक दूसरे के ऊपर लेटे हुए एक दूसरे की आँखों में देखते रहे।
साथ बने रहिए।