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#33
“हाँ, कबीर वो ट्रक तुम्हारे चाचा के नाम है ”दरोगा ने दुबारा से कहा तो मैं सोच में पड़ गया, कैसी गुत्थी थी जिसमे मैं उलझ गया था.
“ट्रक सामान से भरा था ,ट्रक के आगे आवारा सांड आ गया था उसे बचाने की कोशिश में ये हादसा हो गया. ” दरोगा बोला.
दरोगा की बात मानने की मेरी कोई इच्छा नहीं थी पर उसके तथ्यों को नकारा भी नहीं जा सकता था .
“ जाना चाहता हु मैं यहाँ से ” मैंने कहा
दरोगा- मैं छोड़ देता हु
हम दोनों गाँव की तरफ चल दिए. गाँव के बाहर बने ठेके के पास मैंने दरोगा को रोकने के लिए कहा .
“बस मुझे यही छोड़ दो,”मैने कहा
दरोगा- यहाँ
मैं- शराब पीते हो
दरोगा- नहीं
मैं- फिर क्या ख़ाक जीते हो.
दरोगा- तुम तो पीते हो , फिर तो खूब जीते होगे.
हम दोनों ही मुस्कुरा दिए. मैंने बोतल खरीदी और चल दिया. आधी बोतल पीने के बाद भी मुझे चैन नहीं था. रत्ना का असली चेहरा कुछ और था वो चाचा के ट्रक से मारी गयी वो भी ठीक तभी जब हम अलग हो रहे थे , इस इत्तेफाक की टाइमिंग इतनी परफेक्ट कैसे हो सकती थी . सोचते सोचते मैं जब ताई के घर आया तो मामी मिली मुझे.
“कबीर कहाँ गायब थे तुम ” उसने कहा
मैं- शहर गया था कुछ काम से आने में थोड़ी देर हो गयी .
मामी- कोई बात नहीं. तुम खाना खा लो मैं तुम्हारी चाची के घर जा रही हु.
मैं- रुको जरा.
“क्यों भला,” मामी ने मुस्कुराते हुए कहा
मैंने कुछ नहीं किया बस मामी को गोद में उठा लिया.
“ये ठीक समय नहीं कबीर, मैं बाद में हवेली आ जाउंगी ” मामी ने कहा
मैं- हवेली अब मेरी नहीं रही पर तुम मेरी जरुर हो.
मामी- ठीक है पर कपडे मत उतरना.
मैंने मामी को घुटनों भर झुकाया और साड़ी को ऊपर कर दिया. मामी की गोल गांड जिसका मैं बचपन से ही दीवाना था और होता भी क्यों नहीं मामी मेरे लिए बहुत अहम् थी वो पहली औरत जिसकी चूत मैंने मारी थी.
“इस चूत के लिए मैं सब कुछ हार जाऊ , उफ्फ्फ कितनी ही प्यारी है ये ” मैंने मामी के झांट के बालो पर जीभ चलाई
मामी- तुम्हे देखते ही मैं आप खोने लगती हु कबीर
मैं- फिर क्यों रोक रही हो मुझे
मामी- क्योंकि मैं खुल कर करना चाहती हु तुम्हारे साथ और फिलहाल ये समय मुझे इजाजत नहीं दे रहा .
मैंने मामी की चूत पर थूक लगाया और अपने लंड को गर्म चूत से सटा दिया. पहले धक्के में ही लंड चूत में घुस गया .
“आहिस्ता ” मामी ने अपने पैरो को आपस में जोड़ते हुए कहा.
मैं- रुका नहीं जा रहा
मैंने मामी की कमर को पकड़ा और मामी को छोड़ने लगा. गर्दन से टपकते पसीने को जीभ से चाटते हुए मैं चुचियो को मसलते हुए मामी को चोद रहा था .
“आज भी याद है वो रात जब हम एक हुए थे ” मैंने मामी के कान में फुसफुसाया
“तीन बार ली थी तूने सुजा के रख दी थी ” मामी ने गांड को हिलाते हुए कहा.
“फिर से वो रात दोहराना चाहता हु ” मैंने कस से धक्के लगाते हुए कहा
मामी- जाने से पहले ये खवाहिश पूरी करके जाउंगी. ऊपर आ जा मेरे
मामी ने बिस्तर पर लेटते ही अपने पैरो को विपरीत दिशाओ में फैला लिया. गदराई जांघो के बीच कांपती चूत कोई कमजोर हो तो वैसे ही झड जाए. मैंने मामी की जांघो पर अपनी जांघे चढ़ाई मामी ने खुद लंड को चूत पर लगया और बोली- जल्दी से कर ले.
एक बार फिर से हमारी चुदाई शुरू हो गयी. मामी के लजीज होंठ मेरे होंठो में भरे हुए थे मामी अपनी गांड उठा उठा कर चुद रही थी और जब ये चुदाई का तूफ़ान शांत हुआ तो पसीने से लथपथ दो जिस्म हांफ रहे थे और बिस्तर की सलवटे चीख रही थी .
“मैं जा रही हु, खाना खा लेना और यही रहना ” मामी ने कपडे ठीक करते हुए कहा. मामी के जाने के बाद मेरे पास करने को कुछ खास नहीं था हवाए थोड़ी तेज चलने लगी थी मैंने दरवाजा बंद किया , ताईजी से घर बढ़िया बनाया था. दिवार पर ताई ताऊ और उनके बच्चो की तस्वीरे लगी थी.एक खुशहाल परिवार किसी और क्यों इसके सिवा और ही चाहत रहे, ताऊ की मौत के बाद ताई अकेली हो गयी थी छोटे भाई-बहन अपनी जिंदगी में खुश थे पर ऐसा कोई इन्सान नहीं जो घर ना आना चाहता होगा. खैर, भागते समय में ये कोई नई बात तो थी नहीं. ताऊ और चाचा की मौत लगभग एक ही तरीके से हुई थी इस बात ने मुझे परेशां करके रखा हुआ था , अवश्य ही ताऊ को भी हीरो वाली बात मालूम हो गयी थी इतना तो मुझे विश्वास था पर क्या वो खान तक पहुंचा था .
खान का ध्यान आते ही मुझे लगा की फिर वहां जाना चाहिए पर रात को नहीं . मैं घर से बाहर निकल आया इधर मन भी नहीं लग रहा था . एक बार फिर से मैं हवेली के सामने खड़ा था , सरसराती हवा में ख़ामोशी से खड़ी वो ईमारत भी तनहा थी मेरी तरह पर क्या सच में ऐसा था , नहीं बिलकुल नहीं. अगर अँधेरे में वो हलकी सी चिंगारी न जलती जो शायद माचिस की थी तो मुझे क्या फरिश्तो तक को नहीं मालूम था की मेरे सिवा वहां पर कोई और भी था. दबे पाँव मैं हवेली की टूटी दिवार से लगते हुए अन्दर आया. हवा में अजीब सी ख़ामोशी थी .
“बहुत देर लगाई ” धीमे से एक आवाज आई.
“मैं तुमसे ही कह रही हु कबीर ” आहिस्ता से वो मेरे पास आई और उसके नर्म होंठ मेरे होंठो से मिल गए. ................
“हाँ, कबीर वो ट्रक तुम्हारे चाचा के नाम है ”दरोगा ने दुबारा से कहा तो मैं सोच में पड़ गया, कैसी गुत्थी थी जिसमे मैं उलझ गया था.
“ट्रक सामान से भरा था ,ट्रक के आगे आवारा सांड आ गया था उसे बचाने की कोशिश में ये हादसा हो गया. ” दरोगा बोला.
दरोगा की बात मानने की मेरी कोई इच्छा नहीं थी पर उसके तथ्यों को नकारा भी नहीं जा सकता था .
“ जाना चाहता हु मैं यहाँ से ” मैंने कहा
दरोगा- मैं छोड़ देता हु
हम दोनों गाँव की तरफ चल दिए. गाँव के बाहर बने ठेके के पास मैंने दरोगा को रोकने के लिए कहा .
“बस मुझे यही छोड़ दो,”मैने कहा
दरोगा- यहाँ
मैं- शराब पीते हो
दरोगा- नहीं
मैं- फिर क्या ख़ाक जीते हो.
दरोगा- तुम तो पीते हो , फिर तो खूब जीते होगे.
हम दोनों ही मुस्कुरा दिए. मैंने बोतल खरीदी और चल दिया. आधी बोतल पीने के बाद भी मुझे चैन नहीं था. रत्ना का असली चेहरा कुछ और था वो चाचा के ट्रक से मारी गयी वो भी ठीक तभी जब हम अलग हो रहे थे , इस इत्तेफाक की टाइमिंग इतनी परफेक्ट कैसे हो सकती थी . सोचते सोचते मैं जब ताई के घर आया तो मामी मिली मुझे.
“कबीर कहाँ गायब थे तुम ” उसने कहा
मैं- शहर गया था कुछ काम से आने में थोड़ी देर हो गयी .
मामी- कोई बात नहीं. तुम खाना खा लो मैं तुम्हारी चाची के घर जा रही हु.
मैं- रुको जरा.
“क्यों भला,” मामी ने मुस्कुराते हुए कहा
मैंने कुछ नहीं किया बस मामी को गोद में उठा लिया.
“ये ठीक समय नहीं कबीर, मैं बाद में हवेली आ जाउंगी ” मामी ने कहा
मैं- हवेली अब मेरी नहीं रही पर तुम मेरी जरुर हो.
मामी- ठीक है पर कपडे मत उतरना.
मैंने मामी को घुटनों भर झुकाया और साड़ी को ऊपर कर दिया. मामी की गोल गांड जिसका मैं बचपन से ही दीवाना था और होता भी क्यों नहीं मामी मेरे लिए बहुत अहम् थी वो पहली औरत जिसकी चूत मैंने मारी थी.
“इस चूत के लिए मैं सब कुछ हार जाऊ , उफ्फ्फ कितनी ही प्यारी है ये ” मैंने मामी के झांट के बालो पर जीभ चलाई
मामी- तुम्हे देखते ही मैं आप खोने लगती हु कबीर
मैं- फिर क्यों रोक रही हो मुझे
मामी- क्योंकि मैं खुल कर करना चाहती हु तुम्हारे साथ और फिलहाल ये समय मुझे इजाजत नहीं दे रहा .
मैंने मामी की चूत पर थूक लगाया और अपने लंड को गर्म चूत से सटा दिया. पहले धक्के में ही लंड चूत में घुस गया .
“आहिस्ता ” मामी ने अपने पैरो को आपस में जोड़ते हुए कहा.
मैं- रुका नहीं जा रहा
मैंने मामी की कमर को पकड़ा और मामी को छोड़ने लगा. गर्दन से टपकते पसीने को जीभ से चाटते हुए मैं चुचियो को मसलते हुए मामी को चोद रहा था .
“आज भी याद है वो रात जब हम एक हुए थे ” मैंने मामी के कान में फुसफुसाया
“तीन बार ली थी तूने सुजा के रख दी थी ” मामी ने गांड को हिलाते हुए कहा.
“फिर से वो रात दोहराना चाहता हु ” मैंने कस से धक्के लगाते हुए कहा
मामी- जाने से पहले ये खवाहिश पूरी करके जाउंगी. ऊपर आ जा मेरे
मामी ने बिस्तर पर लेटते ही अपने पैरो को विपरीत दिशाओ में फैला लिया. गदराई जांघो के बीच कांपती चूत कोई कमजोर हो तो वैसे ही झड जाए. मैंने मामी की जांघो पर अपनी जांघे चढ़ाई मामी ने खुद लंड को चूत पर लगया और बोली- जल्दी से कर ले.
एक बार फिर से हमारी चुदाई शुरू हो गयी. मामी के लजीज होंठ मेरे होंठो में भरे हुए थे मामी अपनी गांड उठा उठा कर चुद रही थी और जब ये चुदाई का तूफ़ान शांत हुआ तो पसीने से लथपथ दो जिस्म हांफ रहे थे और बिस्तर की सलवटे चीख रही थी .
“मैं जा रही हु, खाना खा लेना और यही रहना ” मामी ने कपडे ठीक करते हुए कहा. मामी के जाने के बाद मेरे पास करने को कुछ खास नहीं था हवाए थोड़ी तेज चलने लगी थी मैंने दरवाजा बंद किया , ताईजी से घर बढ़िया बनाया था. दिवार पर ताई ताऊ और उनके बच्चो की तस्वीरे लगी थी.एक खुशहाल परिवार किसी और क्यों इसके सिवा और ही चाहत रहे, ताऊ की मौत के बाद ताई अकेली हो गयी थी छोटे भाई-बहन अपनी जिंदगी में खुश थे पर ऐसा कोई इन्सान नहीं जो घर ना आना चाहता होगा. खैर, भागते समय में ये कोई नई बात तो थी नहीं. ताऊ और चाचा की मौत लगभग एक ही तरीके से हुई थी इस बात ने मुझे परेशां करके रखा हुआ था , अवश्य ही ताऊ को भी हीरो वाली बात मालूम हो गयी थी इतना तो मुझे विश्वास था पर क्या वो खान तक पहुंचा था .
खान का ध्यान आते ही मुझे लगा की फिर वहां जाना चाहिए पर रात को नहीं . मैं घर से बाहर निकल आया इधर मन भी नहीं लग रहा था . एक बार फिर से मैं हवेली के सामने खड़ा था , सरसराती हवा में ख़ामोशी से खड़ी वो ईमारत भी तनहा थी मेरी तरह पर क्या सच में ऐसा था , नहीं बिलकुल नहीं. अगर अँधेरे में वो हलकी सी चिंगारी न जलती जो शायद माचिस की थी तो मुझे क्या फरिश्तो तक को नहीं मालूम था की मेरे सिवा वहां पर कोई और भी था. दबे पाँव मैं हवेली की टूटी दिवार से लगते हुए अन्दर आया. हवा में अजीब सी ख़ामोशी थी .
“बहुत देर लगाई ” धीमे से एक आवाज आई.
“मैं तुमसे ही कह रही हु कबीर ” आहिस्ता से वो मेरे पास आई और उसके नर्म होंठ मेरे होंठो से मिल गए. ................
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