Riky007
उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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वही तो सब करते हैं, पर सफलता किसी किसी के नसीब में होती है, तो कोशिश करते रहना चाहिए।मैं बस कोशिस करता हूं
वही तो सब करते हैं, पर सफलता किसी किसी के नसीब में होती है, तो कोशिश करते रहना चाहिए।मैं बस कोशिस करता हूं
zabardast mod kahani me.....jungle me mangle ki bakchodi hai, bhoot logo ka moot nikalwa raha hai. idhar champa ki aag na bhujh rahi.#3
“हाय रे , तोड़ दी मेरी कमरिया आज तो ऊपर से देखो नालायक कैसे खड़ा है , मुझे तो उठा जरा ” चाची ने कराहते हुए कहा तो मेरा ध्यान गया की मैं चाची से टकरा गया था . चाची का लहंगा घुटनों तक उठ गया था जिस से सुबह की रौशनी में उनकी दुधिया जांघे चमक उठी थी . पांवो में पिंडियो पर मोटे चांदी के कड़े क्या खूब सज रहे थे . मैंने देखा की चाची के सीने से शाल हट गया था तंग चोली में से बाहर निकलने को बेताब चाची की चुचियो पर मेरी नजर पड़ी तो उठ नहीं पायी.
“रे हरामखोर मैं इधर पड़ी हूँ और तुझे परवाह ही नहीं है एक बार मुझे खड़ी कर जरा हाय रे मेरी कमर . हाथ दे जरा ” चाची ने फिर से कहा तो मैं होश में आया .
मैंने सहारा देकर चाची को खड़ी किया चाची ने एक धौल मेरी पीठ पर मारी .
चाची- जब देखो अफरा तफरी में रहता है , किसी दिन एक आधे की जान जरुर लेगा तू
मैं- चाची तुम को तो देख लेना चाहिए था न
चाची- हाँ गलती तो मेरी ही हैं न .
मैं- मेरी प्यारी चाची , तुम्हारी गलती कैसे हो सकती है . मैं आगे से ध्यान रखूँगा अभी गुस्सा न करो. इतने खूबसूरत चेहरे पर गुस्से की लाली अच्छी नहीं लगती .
मैंने चाची को मस्का मारा तो चाची हंस पड़ी .
चाची- बाते बनाना कोई तुझसे सीखे . दो दिन से कहा गायब था तू .
मैं- बस यूँ ही
चाची- कोई न बच्चू ये दिन है तेरे
मैं- चाची मैं बाद में मिलता हूँ आपसे
मैं सीधा मंगू के घर गया और दरवाजे पर ही उसकी बहन चंपा मिल गयी .
मैं- मंगू कहा है
चंपा- जब देखो मंगू, मंगू करते रहते हो इस घर में और कोई भी रहता है
मैं- तुझसे कितनी बार कहा है की मेरे साथ ये बाते मत किया कर .
चंपा- तो कैसी बाते करू तुम ही बताओ फिर.
मैं- चंपा. मंगू कहा है
चंपा- अन्दर है मिल लो
मैं सीधा मंगू के कमरे में गया पर वो वहां नहीं था मैं पलट ही रहा था की तभी चंपा आकर मुझसे लिपट गयी. तो ये इसकी चाल थी मंगू घर पर था ही नहीं . मैंने झटके से उसे दूर किया
मैं- चंपा हम दोनों को अपनी अपनी हदों में रहना चाहिए. आखिर तू समझती क्यों नहीं .
चंपा- आधा गाँव मेरी जवानी पर फ़िदा है पर मैं तुझ पर फ़िदा हूँ और तू है की मेरी तरफ देखता भी नहीं . ये मेरे रसीले होंठ तड़प रहे है की कब तू इनका रस निचोड़ ले. ये मेरा हुस्न बेताब है तेरे आगोश में पिघलने को .
मैं- खुद पर काबू रख , थोड़े दिन में तेरा ब्याह हो ही जायेगा फिर अपने पति को जी भर कर इस जवानी का रस पिलाना
चंपा- तू बस एक बार कह अभी तुझे अपना पति मान कर सब कुछ अर्पण कर दूंगी.
चंपा मेरे पास आई और मेरे गालो को चूम लिया .
मैं- तू समझती क्यों नहीं . मंगू भाई जैसा है मेरा. मैं तुझे हमेशा पवित्र नजरो से देखता हूँ . तेरे साथ सोकर मंगू की पीठ में छुरा मारा तो दोस्ती बदनाम होगी. मैं तेरी बहुत इज्जत करता हूँ चंपा क्योंकि तेरा मन साफ़ है पर तू मुझे मजबूर मत कर .
चंपा- और मेरे मन का क्या . इस दिल का क्या कसूर है जो ये तेरे लिए ही पागल है .
मैं-दिल तो पागल ही होता है .तू तो पागल मत बन . जल्दी ही तेरा ब्याह होगा , हंसी-खुशी तेरी डोली उठेगी. एक बार तेरा घर बस जायेगा तो फिर ये सब बेमानी तेरा पति तुझे इतना सुख देगा की तू सुख की बारिश में भीग जाएगी. मैं जानता हूँ की तेरे मन में ये हवस नहीं है वर्ना गाँव में और भी लड़के है . इसलिए ही तेरा इतना मान है मुझे .
मैंने चंपा के माथे को चूमा और उसे गले से लगा लिया.
मैं- अब तो बता दे कहा है मंगू
चंपा- खेत में गया है माँ बाबा संग.
खेत में जाने से पहले मैं वैध जी के घर गया हरिया को देखने . उसकी हालत में कोई खास सुधार नहीं था , बदन पीला पड़ा था जिससे की खून की कमी हो गई हो उसे. बार बार गर्दन को झटक रहा था , हाथो से अजीब अजीब इशारे कर रहा था .मैंने हरिया के परिवार वालो को देखा जो बस रोये जा रहे थे उसकी हालत को देख कर.
मैं- वैध जी क्या लगता है आपको
वैध- शहर में बड़े डॉक्टर को दिखाना चाहिए , खून की कमी लगातार हो रही है , आँखे तक पीली पड़ गयी है.
मैं- तो देर किस बात की ले चलते है इसे शहर
वैध- इसके परिवार के पास इतने पैसे नहीं है
मैं- तो क्या पैसो के पीछे इसे मरने देंगे. आप इसे लेकर अभी के अभी शहर पहुँचिये . मैं पैसे लेकर आता हूँ .
मैंने घर जाकर भाभी को बताया की हरिया को एडमिट करवाना है और पैसे चाहिए . भाभी ने तुरंत मेरी मदद की. शाम तक मैं और मंगू शहर के हॉस्पिटल में पहुँच गए. मालूम हुआ की हरिया को खून चढ़ाया गया है . बुखार भी थोडा काबू में है . पर बड़े डॉक्टर भी बता नहीं पा रहे थे की उसे हुआ क्या है .
चाय की टापरी पर बैठे हुए मैं गहरी सोच में डूबा था .
मैं- यार मंगू, जंगल में क्या हुआ इसके साथ . अगर किसी ने लूट खसूट की होती तो घोड़े भी ले जाता . बहनचोद मामला समझ नहीं आ रहा .
मंगू- भूत-प्रेत देख लिया हो हरिया ने शायद
मैं मंगू की बात को झुठला नहीं सकता था बचपन से हम सुनते आये थे की जंगल में ये है वो है एक तय समय के बाद गाँव वाले जंगल की तरफ रुख करते भी नहीं थे.
मंगू- देख भाई, अपन इसके लिए जितना कर रहे है कोई नहीं करता. ये तो इसकी किस्मत थी की हम को मिला ये वर्ना क्या मालूम इसकी लाश ही मिलती
मैं- यही तो बात है की ये हम को मिला मंगू. अब इसको बचाने की जिम्मेदारी अपनी है
तभी मुझे जिम्मेदारी से याद आया की आज रात चाची के साथ खेतो पर जाना है
मैं- मंगू साइकिल उठा , अभी वापिस चलना होगा हमें
मैं हरिया की पत्नी से मिलकर आया उसे आश्वश्त किया की हम आते रहेंगे उसे कुछ पैसे दिए और फिर सांझ ढलते गाँव के लिए चल पड़े. गाँव हमारा कोई बारह कोस पड़ता है शहर से. और सर्दी के मौसम में अँधेरा तो पूछो ही मत कब हो जाता है फिर भी हम दोनों चल दिए.
सीटी बजाते हुए, गाने गाते हुए हम अपनी मस्ती में चले जा रहे थे पर हमें कहाँ मालूम था की मंजिल कितनी दूर है ............
Champa ka dil kunwar pe dola, par kunwar langot ka kaafi pakka hai, bistar par neend ke alwa kuch nahi letaमैं- तू समझती क्यों नहीं . मंगू भाई जैसा है मेरा. मैं तुझे हमेशा पवित्र नजरो से देखता हूँ . तेरे साथ सोकर मंगू की पीठ में छुरा मारा तो दोस्ती बदनाम होगी. मैं तेरी बहुत इज्जत करता हूँ चंपा क्योंकि तेरा मन साफ़ है पर तू मुझे मजबूर मत कर .
चंपा- और मेरे मन का क्या . इस दिल का क्या कसूर है जो ये तेरे लिए ही पागल है .
Bohot bohot subh kamnaye manish bhai, ye Ek Millstone hai, chote mote to kewal iska sapna hi dekh sakte hai.आपकी सहायता से कहानी 20 लाख व्यू पार कर गई है मित्रों
kunwar saab ko kaafi baar girte hue dikha dia, zindagi me sukh hi nahi mil raha hai kunwar ko#4
वापसी में मैं जंगल में रुक कर उस जगह की छानबीन करना चाहता था पर मंगू साथ था तो ये विचार त्याग दिया और घर आ गया .मैंने जल्दी से कपडे बदले और बाहर जा ही रहा था की भाभी की आवाज ने मेरे कदम रोक लिए.
भाभी- खाना खाए बिना ही जा रहे हो .
मैं- देर हो रही है भाभी , आज खेतो पर नहीं गया तो भैया की डांट खानी पड़ेगी.
भाभी- इसलिए कह रही हूँ की खाना खाकर जाओ. डांट से भला पेट थोड़ी भरता है .
भाभी ने खाना परोसा और मेरे सामने ही बैठ गयी.
भाभी- कुछ परेशान लगते हो
मैं- नहीं भाभी सब ठीक है
मैंने निवाला मुह में डालते हुए कहा . भाभी की नजरे मेरे चेहरे पर ही जमी थी .
मैं- अब यूँ न देखो सरकार
भाभी- तुम भी हमसे न छिपाओ दिल के राज
मैं- सब्जी अच्छी बनी है आज
भाभी- खाना तो रोज ही ऐसा बनता है , तुम बात न बदलो
मैं- कोई बात हो तो बताओ
इस से पहले की भाभी कुछ और कहती चाची अन्दर आ गयी .
भाभी- चाची आपको भी खाना परोस दू
चाची- नहीं बहुरानी, मैंने शाम को ही खा लिया था अब भूख नहीं है . वैसे मुझे उम्मीद नहीं थी की ये समय पर मिल जायेगा.
मैं- क्या चाची . आप भी ऐसा कह रही हो
चाची- जल्दी से खाना खा ले. खेतो पर समय से पहुँच जाए तो ठीक रहेगा.
खाने के बाद मैंने गर्म कम्बल लपेटा और अपनी साइकिल उठा ली .
चाची- न बाबा न बिलकुल नहीं मैं इस पर नै बैठूंगी पिछली बार तूने मुझे गिरा दिया कितने दिन कमर में दर्द रहा था .
भाभी- गाड़ी ले जाओ देवर जी .
मैं- अपने लिए तो यही ठीक है भाभी , और चाची वो मेरी गलती से नहीं गिरी थी तुम, इतनी मोटी जो हो गयी हो मेरा क्या दोष है .
मेरी बात सुन कर भाभी हंस पड़ी .
चाची- अच्छा बच्चू, मैं तुझे मोटी लगती हूँ , इधर आ अभी बताती हूँ तुझे.
चाची ने मेरा कान खींचा. भाभी हंसती रही .
मैं- माफ़ करो चाची , और जल्दी से आओ देर हो रही है .
भाभी ने मुझे थर्मस और बैटरी दी . घर से बाहर आते हुए हम गली में मुड गए.
मैं- चाची, तुम कहाँ मेरे साथ ठण्ड में मरोगी यही रुक जाओ पानी ही तो देना है मैं दे देता हूँ .
चाची- अरे नहीं कुंवर, काम करना जरुरी है बेशक तुम सब हमेशा मेरे लिए खड़े हो पर मेरा भी कुछ फ़र्ज़ है और इसी बहाने काम में मन भी लगा रहेगा.
“आराम से बैठना ” मैंने बस इतना ही कहा
चाची के बैठने के बाद मैंने साइकिल खेतो की तरफ मोड़ दी. करीब आधा घंटा तो आराम से लग जाना ही था . मेरे दिमाग में बस हरिया ही घूम रहा था .
चाची- क्या बात है गुमसुम क्यों हो क्या हुआ है
मैं- नहीं तो चाची , ऐसी कोई बात नहीं
कुछ देर बाद गाँव पीछे रह गया . कच्ची सड़क पर झुंडो के बीच से होते हुए साइकिल चली जा रही थी . ठण्ड के मारे कभी कभी चाची मेरी पीठ को सहला देती तो बड़ी राहत मिलती . ऐसे ही हम खेतो पर पहुँच गए . मैंने साइकिल रोकी , थोड़ी दूर हमें पगडण्डी से होते हुए पैदल ही जाना था .
मैंने फटाफट से कमरा खोला . गर्मी का अहसास मेरे रोम रोम में उतर गया पर कुछ पल के लिए ही. मैंने जूते उतारे और पानी की मोटर को चालु कर दिया .
मैं- चाची तुम यही रुको . ठण्ड जयादा है
चाची - नहीं मैं भी साथ चलूंगी.
मैंने बाहर आकर लाइन बदली और खेतो में पानी छोड़ दिया सरसों की फसल में ये हमारा पहला पानी था तो पूरा लबालब करना था . ठण्ड में हाड जमा देने वाला बर्फीला पानी जब बदन पैरो पर गिरा तो कसम से जान निकली ही समझो. चाची ने अपने लहंगे को थोडा ऊँचा कर लिया जिस से उसके मांसल घुटने दिखने लगे.
घंटे भर में हमने पाला भर दिया था . लाइन बदली अभी इस तरफ पानी भरने में समय लग्न था तो मैंने कहा- थोड़ी देर आराम करते है चाची ,
चाची ने भी हां कहा और हम कुवे पर बने कमरे की तरफ चल दिए. पगडण्डी पर चलते हुए चाची के नितम्ब बड़े मादक लग रहे थे. उपर से ठण्ड का जबर मौसम .
बेशक मेरे मन में चाची के प्रति अगाध सम्मान था पर कभी कभी मैं सोचता था की मेरे नसीब में कहीं चाची के हुस्न का प्यार तो नहीं लिखा. चाची का हमेशा से ही मेरे प्रति गहरा लगाव रहा था , मुझसे खूब हंसी-मजाक करती थी कभी कभी तो वो खुल कर दोहरी बाते भी कहती थी . मैं अपनी सीमाए जानता था पर मेरे कच्छे में सर उठाता वो हथियार कहाँ इतनी समझ रखता था .
चाची- तू चल अन्दर मैं अभी आई .
मैं- कोई काम है तो मैं कर देता हूँ
चाची- ये काम मुझे ही करना होगा
मैं- कहो तो सही मुझसे
चाची- अरे पेशाब करने जा रही हूँ
चाची की हंसी मेरे दिल पर लगी .
मैंने अलाव सुलगाया और बैठ गया . कुछ देर बाद वो आई और हम चाय की चुस्किया लेने लगे.
तपती आंच में बाला की खूबसूरत लग रही थी वो .
चाची- वो हरिया को क्या हुआ है
मैं- तुम्हे किसने बताया हरिया के बारे में
चाची- मंगू की माँ मिली थी वो ही कह रही थी
मैं- शायद किसी जानवर ने काट लिया उसे
चाची- बेटा रात बेरात तुम भी मत घुमा करो, जंगल खतरनाक है . मेरा दिल घबरा गया था कहीं वो जानवर हरिया की जगह तुम पर हमला कर देता तो क्या होता.
मैं- मुझे भला क्या होगा चाची.
मैं चाची से कुछ पूछना चाहता था पर फिर नहीं पूछा. चाय पीने के बाद हम फिर से पाले को देखने लगे. ठण्ड में नंगे पाँव गीली मिटटी और ठन्डे पानी ने मेरी ले रखी थी ऐसा ही हाल चाची का था .
“आज रात में तो काम पूरा नहीं हो पायेगा.” मैंने कहा
चाची- कल फिर आना पड़ेगा फिर तो क्योंकि इधर बिजली दिन में नहीं आती .
बिजली का जैसे ही जिक्र हुआ बिजली चली गयी .
मैं- हो गया सत्यानाश
अब करने को और कुछ था नहीं . हाथ पैर धोने के बाद चाची अपनी रजाई में घुस चुकी थी. मैंने अलाव की आंच थोड़ी सी तेज की और मूतने चला गया. ठंडी में गर्म मूत की धारा अभी बड़ा सुख दे रही थी पर तभी वो हुआ जो न जाने क्यों किसलिए हुआ.
“aahhhhhhhhhhhh ” मैं बस चीखते हुए धरती पर गिर पड़ा.