bantoo
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Bahot ache bhai#136
जीप से सूरजभान और उसके साथी उतरे. मैं जानता था की ये दिन जरुर आएगा .
सूरजभान- बहुत बड़ी गलती की है कबीर , दुनिया में सब कुछ करना था ये नहीं करना था ये तो सोच लिया होता की सूरजभान किस आग का नाम है
मैं- इश्क किया है कोई चोरी नहीं की जो सच कर करूँगा. अज का दिन बहुत खास है रस्ते से हट जा सूरजभान , आज फेरे लेने है मुझे निशा संग मत रोक मेरा रास्ता .
सूरज- जुबान को लगाम दे हरामजादे , तेरी हिम्मत कैसे हुई ये कहने की . और तुम, तुमने जरा भी नहीं सोचा, ये पाप करने से पहले . क्या तुम्हारे पैर एक बार भी नहीं कांपे उस चोखट को पार करते हुए .
मैं-निशा को कुछ भी कहा न तो मैं भूल जाऊंगा की तू कौन है , और आज अगर मैं बिगड़ा न सूरजभान तो फिर ये होली खून से खेली जाएगी .
सूरजभान- तूने तो मेरे दिल की बात कह दी कबीर. जो गुस्ताखी तूने की है न तेरे टुकड़े टुकड़े भी बिखेर दू तो ताज्जुब नहीं रहेगा मुझे . आज दुनिया देखेगी की हमारी तरफ नजर उठा कर देखने वालो का क्या हाल होता है . और तुम , तुमसे ये उम्मीद नहीं थी . अरे इतनी ही आग लगी थी तो घर में ही घाघरा खोल लेती , मेरे ही दुश्मन के साथ रंगरेली करनी थी तुमको.
निशा- अपनी हद में रहो सूरज, तुम्हारी जुबान क्यों नहीं कट गयी ये कहते हुए . काश तुम समझ पाते.
सूरज- समझ तो मैं गया हूँ, गलती बस ये हुई की मैं पहले नहीं समझा, काश पहले समझ जाता तो आज ये बेइज्जती नहीं होती.
मैं- निशा से एक और बार बदतमीजी की न सूरजभान तो दुबारा तेरी जुबान कुछ नहीं कह पाएगी.
सूरज- जुबान तो तेरी माफ़ी मांगेगी मुझसे , देख क्या रहे हो मारो साले को .
मैंने निशा को पीछे की तरफ किया और जो भी लड़का सबसे पहले मेरी तरफ आया था उसके सर पर खींच कर मुक्का मारा. कहते है की होली ऐसा त्यौहार है जहाँ दुश्मन भी गले मिलकर गिले शिकवे भुला देते है पर आज ये फाग का दिन न जाने क्या करवाने वाला था . मारापीटी शुरू हो गयी .
मैं एक वो अनेक पर वो नहीं जानते थे की मेरे अन्दर एक आदमखोर पनप रहा था . दो लडको ने पीछे से मुझे पकड़ लिया सूरजभान ने मेरे मुह पर घूँसा मारा . एक पल को लगा की जबड़ा ही हिल गया मेरा . अगला वार मेरे सीने पर पड़ा.
“कबीर,” निशा चीख पड़ी .
मैंने लात मार कर सूरजभान को पीछे धकेला . निशा ने एक लड़के से डंडा छीन लिया और झगडे में कूद गयी . मामला गंभीर हो गया था .मैंने निशा को पीछे किया लोहे की चेन का वार मेरी पीठ पर पड़ा निशा ने उस चेन को अपने हाथ से पकड़ लिया
निशा- मेरे गुरुर को मत ललकारो तुम लोग . मत मजबूर करो मुझे . मैं जाना चाहती हूँ जाने दो मुझे.
सूरज- कही नहीं जाओगी तुम . अपने आशिक को यही मरते देखोगी तुम. पहले इसे मारूंगा फिर तुम्हारा फैसला होगा. ऐसी सजा दूंगा तुम्हे की जमाना याद रखेगा. ऐसी गुस्ताखी करने से पहले फिर कोई सौ बार सोचेगा.
निशा- ये गलती मत करो सूरज, कहीं ऐसा न हो की पछताने के लिए न तुम्हारे पास कुछ बचे न मेरे पास.
सूरज- बचा तो वैसे भी कुछ नहीं है फिर.
निशा- ठीक है , अगर तुम्हारी यही मर्जी है तो फिर आज मैं जी भर के फाग खेलूंगी, कभी रंगों से तो नहीं खेल पायी और आज रक्त से खेलूंगी मैं.
निशा का ये रूप देख कर मैं भी एक पल के लिए घबरा गया . निशा ने वो चेन अपने हाथ में ले ली और पहला वार किया , एक बार फिर से मारा मारी शुरू हो गयी .
निशा- तुझे कसम है मेरी कबीर जो आज तू रुका. अगर आज हमने कदम रोक लिए तो फिर कोई हिम्मत नहीं कर पायेगा मोहब्बत करने की .
मैं- मेरी सरकार, तुझे लेने आया हूँ लेकर जाऊंगा. ये तो दस-पांच लोग है सारी दुनिया भी जोर लागले तो भी लेकर जाऊंगा ही .
मैंने एक लड़के को उठा कर पटका की वो गाड़ी के बोनट पर जाकर गिरा. अगले ही पल मेरा घुटना उसकी छाती पर जा लगा. उसके मुह से खून की उलटी निकली और वो साइड में गिर गया . मैंने देखा की निशा ने एक लड़के की आँखों में अपनी उंगलिया घुसा दी थी वो लड़का चीख रहा था . तडप रहा था पर निशा का गुस्सा उसके सर पर चढ़ा था .
मैंने सूरजभान का वार बचाया और अपना कन्धा निचे ले जाते हुए उसे उठा लिया. गाडी का शीशा तोड़ते हुए वो जीप के अन्दर जाकर गिरा. शीशे के टुकड़े कई जगह घुस गए उसके शरीर में . मैंने उसे खींचा और चेहरे पर वार किया. खून से सन गया उसका चेहरा . आसपास काफी लोग इकठ्ठा हो गए थे पर किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी की बीच में पड़ जाये. मैं चाहता तो सूरजभान का किस्सा ख़त्म कर सकता था पर मुझे भैया की कही बात याद आ गयी
मैंने उसके सीने पर पैर रखा और बोला- काश तू समझ सकता. काश तू जान पाता इस बात को . निशा का साथ मैंने इसलिए नहीं किया था की तुझसे दुश्मनी निभा सकू. ये दुनिया बड़ी खूबसूरत हो सकती है अगर कुछ लोग अपनी सोच बदलदे तो . सबको सम्मान से जीने का हक़ है , खुली हवा में साँस लेने का हक़ है . देख मैं तेरी आँखों के सामने से निशा को लेकर जा रहा हूँ, तेरा फर्ज बनता था की तू इसके मन को समझता , इसे ख़ुशी से विदा करता पर तेरे अन्दर भी वही कीड़ा कुलबुला रहा है, औरत किसी की गुलाम नहीं है . उसे अपनी मर्जी से जीने का हक़ है . आज मैंने ये कदम उठाया है . समय सदा एक सा नहीं रहता , कल कोई ये काम करेगा. आज नहीं तो कल नहीं तो कुछ साल बाद , जैसे जैसे शिक्षा प्राप्त होगी जनता को गुलामी की जंजीरे टूटेगी. हर आदमी बराबरी का हक़ मांगेगा . तब क्या रहेगी तेरी मेरी सामन्ती, क्या रहेगी ये जमींदारी. मैं अपनी सरकार को लेकर जा रहा हूँ ,किसी और को रोकने की कोशिश करनी है तो कर लो . प्रीत की डोर बाँधी है निशा से मैंने ज़माने की बेडिया तोड़ कर जा रहा हूँ.
मैंने निशा का हाथ पकड़ा और उसे ले चला. नयी जिन्दगी सामने खड़ी हमें पुकार रही थी .
Mujhe laga hi tha koi aurat hogi wo bhi kabir ki jaan pahchan ki jo use pyaar karti hogi...par paheli adhuri rah gyi.asli first/alpha aadamkhor ka pata nahi lag paaya#126
“मैं हूँ वो वजह कबीर, जिसे अभिमानु तमाम जहाँ से छिपाते हुए फिर रहे है . मैं नंदिनी ठकुराइन मैं हूँ इस सारे फसाद की जड़ मैं हूँ वो गुनेहगार जिसकी गर्दन दबोचने को तुम तड़प रहे हो . मैं हूँ वो राज जो अभिमानु को चैन से जीने नहीं दे रहा ” भाभी ने कहा.
मेरी आँखों के सामने अँधेरा छा गया. उस पल मैंने सोचा की क्यों ये रात अब खत्म नहीं हो जाती. मेरे सामने भाभी खड़ी थी जो अभी अभी उस छिपे हुए कमरे से बाहर आई थी .
“नहीं ये नहीं हो सकता ” मैंने कहा
भाभी- यही सच है कबीर . इस जंगल का सबसे भयानक सच . वो सच जिसका बोझ बस तुम्हारे भैया उठा रहे है .
भैया- नंदिनी, मैंने तुमसे कहा था न चाहे कुछ भी हो जाये ........
भाभी- इसके आगे जो होता वो ठीक तो नहीं होता न अभी. एक न एक दिन कोई न कोई तो ये बात जान ही जाता न. तुमने बहुत कोशिश की फिर भी देखो ....... कबीर, इसमें तुम्हारे भैया का कोई दोष नहीं है . जो कुछ भी हुआ उसकी जिम्मेदार हूँ . मैं ही हूँ वो रक्त प्यासी ........
मेरी तो जैसे साँस ही अटक गयी थी. ना कुछ समझ आ रहा था न कुछ कहते बन रहा था .
मैं- तो इसलिए वो आदमखोर मुझ पर हमला नहीं करता था ,वो पहचानता था मुझे.
भाभी- अपने बच्चे के जैसे पाला है तुमको , मेरी ममता के आगे तृष्णा हार जाती थी .
मैं- पर मैंने उस अवस्था में आप पर हाथ उठाया . ये गुनाह हुआ मुझसे भाभी.
भाभी- कोई गुनाह नहीं, उस अवस्था में तुमने मुझे संभाला बहुत बड़ी बात है .
मैं- कुछ समझ नहीं आ रहा , चंपा के साथ जो हुआ . बरातियो की लाशे . उनका क्या कसूर था
भैया- कबीर, नंदिनी ने मंडप और बारात पर हमला नहीं किया
मैं- मैं भी भाभी के राज को सीने में दबा लूँगा भैया
भैया- वो बात नहीं है कबीर. मैं तुझसे सच कह रहा हूँ , नंदिनी और मैं भी इसी सोच में पड़े है की किसने काण्ड किया ये .नंदिनी शुरू से ही चांदनी रात की वजह से परेशां थी , ये हरगिज नहीं चाहती थी की ब्याह उस रात हो , उसने पुजारी से भी ब्याह टालने को कहा पर राय साहब की जिद थी की ब्याह आज रात ही हो. इसलिए हमने निर्णय कर लिया था की जैसे ही बारात आएगी मैं नंदिनी को लेकर इस जगह पर आ जाऊंगा . कोई न कोई बहाना बना लेंगे लोगो के सामने और हमने किया भी ऐसा. जब तुम हमारे पास आये थे नंदिनी ने तुम्हे टोका था तब हम इसी बारे में बात कर रहे थे . मौका देखते ही हम लोग जंगल में आ गए.
नंदिनी- कबीर, उस अवस्था को बहुत हद तक मैंने तुम्हारे भैया की मदद से संभालना सीख लिया है , पर रक्त पीना उस रूप की मज़बूरी है , हमने इसका भी रास्ता निकाल लिया जरुरत पड़ने पर मैं जानवरों का शिकार कर लेती हूँ.पर एक सवाल जो मुझे खाए जा रहा है की यदि मैं यहाँ थी तो फिर वो हमला किसने किया
मैं- मंगू ने , वो ही नकली आदमखोर बन कर घूम रहा है
भैया- उसकी तो खाल खींच लूँगा मैं .
मैं- वो सिर्फ मोहरा है असली गुनेहगार कौन है ये समझ नहीं आ रहा वो रमा भी हो सकती है और राय साहब भी . वो मैं मालुम कर लूँगा खैर मैं जानता हूँ की आप दोनों ने इस जगह पर सात-आठ साल बाद कदम रखा है जबकि आप दोनों इस जगह के बारे में जानते थे , कम से कम भैया तो पुराने राज दार है इस कहानी के . और मैं बड़ा बेसब्र हूँ ये जानने को की क्यों . आखिर क्यों रूठना पड़ा भैया इस जगह से आपको . क्या हुआ था ऐसा जो आपने अपनी यादो तक से इस जगह को मिटा दिया. माफ़ कीजिये, मुझे मेरे शब्द पलटने पड़ेंगे, भाभी आप आज की रात ही यहाँ पर आई है . क्यों मैंने सही कहा न
भाभी के चेहरे पर उडती हवाइयो को मैंने चिमनी की धीमी रौशनी में भी देख लिया था .
मैं- क्यों भैया सही कह रहा हूँ न मैं
भैया- हाँ छोटे . नंदिनी इस खंडहर में आज ही आई है .
मैं- मैंने अनुमान लगा लिया था की आदमखोर का किस्सा इतना भी सुलझा हुआ नहीं है जितना की दिख रहा है. भाभी ने मुझे काटा पर भाभी आपको ये बीमारी किसने दी ,
भाभी- नहीं जानती बस एक शाम जंगल में मुझ पर हमला हुआ और तक़दीर बदल गयी .
मैं- आप आदमखोर है ये राज और कौन कौन जानता है
भाभी- अभी और अब तुम भी.
मैं- गलत , कोई और भी था जो जानता था की आप आदमखोर हो
“कौन ” भैया-भाभी दोनों एक साथ बोल पड़े.
मैं- चाचा, और इसी वजह से वो नहीं चाहता था की आप दोनों की शादी हो . मैं चाचा को न जाने कैसे पर ये बात मालूम हो गयी होगी.
नंदिनी- पर चाचा ने कभी भी मुझसे कोई ऐसा दुर्व्यवहार नहीं किया था . हमारी शादी के बाद उन्होंने हमेशा सम्मान किया मेरा.
मैंने अपनी जेब में हाथ डाला और वही तस्वीर जो मैंने चुराई थी , उसे टेबल पर रख दिया और चिमनी को आले से हटा कर तस्वीर के पास ही रख दिया.
मैं- भैया इस तस्वीर ने मुझे पागल किया हुआ है , दो नाम तो मैने सुलझा लिए है पर ये तीसरा नाम उलझाये हुए है . अतीत के किस पन्ने में जिक्र है त्रिदेव के इस हिस्से का और अगर त्रिदेव की कहानी खुद त्रिदेव का मेरे सामने खड़ा हिस्सा ही बताये तो सही रहे.
भैया ने जैसे मेरी बात सुनी ही नहीं .
मैं- इस हमाम में हम सब नंगे है भैया , अब कैसा पर्दा . आप चाहे लाख कहें की कुछ नहीं अतीत में पर मेरी आने वाली जिन्दगी आपके अतीत से जुडी है , निशा को तो आज मिल ही लिए आप. आपके माथे पर चिंता की लकीरों को पढ़ लिया था मैंने. निशा से ब्याह करना है मुझे . डाकन को अपनी दुल्हन बनाना है मुझे.
“ये कभी नहीं हो पायेगा छोटे ” भैया ने टूटी सी साँस में कहा.
राय साहब तो खिलाफ होंगे ही, उनकी नकली इज्जत की जो बात है।तो सूरजभान ही आया लड़ने, जब कहानी की शुरुआत थी तभी से मुझे लगा था की निशा मलिकपुर और रूढ़ा से संबंधित है।
अब लग तो ऐसे ही रहा है की निशा रूढ़ा की बहु है, महावीर ठाकुर की बीवी,
बहन नहीं क्योंकि सुरजभान ने जिस हिसाब से घाघरा निकालने के लिए बोला ऐसी बद्तमीजी लोग अपनी wife या भाभी से ही करते है।
वैसे भी रंगो से होली गांव घर में विधवाएं ही नही खेलती है।
और देखा जाए तो पिछले कुछ अपडेट में कहानी के इतने सारे जवाब मिले है, कहानी इतनी सुलझ गई है अंदाजा लगाना इतना मुश्किल भी नहीं
last कुछ अपडेट को फौजी भाई ने बड़ी सूझ बूझ से लिखा है
खैर देखते है विशंभर दयाल बंदूक निकालते है की नहीं, कारण भी देखना है की वो रूढ़ा से दोस्ती के वजह से ही कबीर के खिलाफ होगा या फिर उसके कोई अलग ही कारण है।
सुरजभान जंगल में घूम घूम कर क्या ढूंढता रहता था इस प्रश्न का उत्तर अभी बाकी है, आगे के अपडेट में इस प्रश्न का उत्तर का इंतजार रहेगा
कबीर के पक्ष में कौन कौन है ये तो नही मालूम लेकिन कबीर की खिलाफ रूढ़ा, सुरजभान, विशम्बर दयाल ही दिख रहे है, गांव की पंचायत ज्यादा से ज्यादा क्या कर लेगी,गांव से निकल देगी
इंतजार रहेगा अगले अपडेट का,
मंगू अच्छे से नहीं कुटाया, आसान मौत मर गया
सुरजभान भी अच्छे से नहीं पीट पाया
उम्मीद है की विशंभर दयाल की गांड़ अच्छे से टूटेगी
कहानी इतने अच्छे phase पे चल रही है, ज्यादा कुछ बोलने की गुंजाइश नही है
और अपडेट की quality अच्छी है उस पर कोई comment नही है
मैं इंतजार कर रहा हूं, अपने प्रश्नों के उत्तर का जो की मुझे हर कुछ अपडेट में मिल जा रहे है
अभी बहुत से प्रश्नों के उत्तर बाकी है जिनका इंतजार बेसब्री है।
ऐसे ही अच्छे अपडेट देते रहे, thankyou
एक ज़माने मे मैं मीता का हाथ पकड़ कर उसे नहीं ला पाया था पर कबीर निशा को ले चला है. क्या ही कहे
#136
जीप से सूरजभान और उसके साथी उतरे. मैं जानता था की ये दिन जरुर आएगा .
सूरजभान- बहुत बड़ी गलती की है कबीर , दुनिया में सब कुछ करना था ये नहीं करना था ये तो सोच लिया होता की सूरजभान किस आग का नाम है
मैं- इश्क किया है कोई चोरी नहीं की जो सच कर करूँगा. अज का दिन बहुत खास है रस्ते से हट जा सूरजभान , आज फेरे लेने है मुझे निशा संग मत रोक मेरा रास्ता .
सूरज- जुबान को लगाम दे हरामजादे , तेरी हिम्मत कैसे हुई ये कहने की . और तुम, तुमने जरा भी नहीं सोचा, ये पाप करने से पहले . क्या तुम्हारे पैर एक बार भी नहीं कांपे उस चोखट को पार करते हुए .
मैं-निशा को कुछ भी कहा न तो मैं भूल जाऊंगा की तू कौन है , और आज अगर मैं बिगड़ा न सूरजभान तो फिर ये होली खून से खेली जाएगी .
सूरजभान- तूने तो मेरे दिल की बात कह दी कबीर. जो गुस्ताखी तूने की है न तेरे टुकड़े टुकड़े भी बिखेर दू तो ताज्जुब नहीं रहेगा मुझे . आज दुनिया देखेगी की हमारी तरफ नजर उठा कर देखने वालो का क्या हाल होता है . और तुम , तुमसे ये उम्मीद नहीं थी . अरे इतनी ही आग लगी थी तो घर में ही घाघरा खोल लेती , मेरे ही दुश्मन के साथ रंगरेली करनी थी तुमको.
निशा- अपनी हद में रहो सूरज, तुम्हारी जुबान क्यों नहीं कट गयी ये कहते हुए . काश तुम समझ पाते.
सूरज- समझ तो मैं गया हूँ, गलती बस ये हुई की मैं पहले नहीं समझा, काश पहले समझ जाता तो आज ये बेइज्जती नहीं होती.
मैं- निशा से एक और बार बदतमीजी की न सूरजभान तो दुबारा तेरी जुबान कुछ नहीं कह पाएगी.
सूरज- जुबान तो तेरी माफ़ी मांगेगी मुझसे , देख क्या रहे हो मारो साले को .
मैंने निशा को पीछे की तरफ किया और जो भी लड़का सबसे पहले मेरी तरफ आया था उसके सर पर खींच कर मुक्का मारा. कहते है की होली ऐसा त्यौहार है जहाँ दुश्मन भी गले मिलकर गिले शिकवे भुला देते है पर आज ये फाग का दिन न जाने क्या करवाने वाला था . मारापीटी शुरू हो गयी .
मैं एक वो अनेक पर वो नहीं जानते थे की मेरे अन्दर एक आदमखोर पनप रहा था . दो लडको ने पीछे से मुझे पकड़ लिया सूरजभान ने मेरे मुह पर घूँसा मारा . एक पल को लगा की जबड़ा ही हिल गया मेरा . अगला वार मेरे सीने पर पड़ा.
“कबीर,” निशा चीख पड़ी .
मैंने लात मार कर सूरजभान को पीछे धकेला . निशा ने एक लड़के से डंडा छीन लिया और झगडे में कूद गयी . मामला गंभीर हो गया था .मैंने निशा को पीछे किया लोहे की चेन का वार मेरी पीठ पर पड़ा निशा ने उस चेन को अपने हाथ से पकड़ लिया
निशा- मेरे गुरुर को मत ललकारो तुम लोग . मत मजबूर करो मुझे . मैं जाना चाहती हूँ जाने दो मुझे.
सूरज- कही नहीं जाओगी तुम . अपने आशिक को यही मरते देखोगी तुम. पहले इसे मारूंगा फिर तुम्हारा फैसला होगा. ऐसी सजा दूंगा तुम्हे की जमाना याद रखेगा. ऐसी गुस्ताखी करने से पहले फिर कोई सौ बार सोचेगा.
निशा- ये गलती मत करो सूरज, कहीं ऐसा न हो की पछताने के लिए न तुम्हारे पास कुछ बचे न मेरे पास.
सूरज- बचा तो वैसे भी कुछ नहीं है फिर.
निशा- ठीक है , अगर तुम्हारी यही मर्जी है तो फिर आज मैं जी भर के फाग खेलूंगी, कभी रंगों से तो नहीं खेल पायी और आज रक्त से खेलूंगी मैं.
निशा का ये रूप देख कर मैं भी एक पल के लिए घबरा गया . निशा ने वो चेन अपने हाथ में ले ली और पहला वार किया , एक बार फिर से मारा मारी शुरू हो गयी .
निशा- तुझे कसम है मेरी कबीर जो आज तू रुका. अगर आज हमने कदम रोक लिए तो फिर कोई हिम्मत नहीं कर पायेगा मोहब्बत करने की .
मैं- मेरी सरकार, तुझे लेने आया हूँ लेकर जाऊंगा. ये तो दस-पांच लोग है सारी दुनिया भी जोर लागले तो भी लेकर जाऊंगा ही .
मैंने एक लड़के को उठा कर पटका की वो गाड़ी के बोनट पर जाकर गिरा. अगले ही पल मेरा घुटना उसकी छाती पर जा लगा. उसके मुह से खून की उलटी निकली और वो साइड में गिर गया . मैंने देखा की निशा ने एक लड़के की आँखों में अपनी उंगलिया घुसा दी थी वो लड़का चीख रहा था . तडप रहा था पर निशा का गुस्सा उसके सर पर चढ़ा था .
मैंने सूरजभान का वार बचाया और अपना कन्धा निचे ले जाते हुए उसे उठा लिया. गाडी का शीशा तोड़ते हुए वो जीप के अन्दर जाकर गिरा. शीशे के टुकड़े कई जगह घुस गए उसके शरीर में . मैंने उसे खींचा और चेहरे पर वार किया. खून से सन गया उसका चेहरा . आसपास काफी लोग इकठ्ठा हो गए थे पर किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी की बीच में पड़ जाये. मैं चाहता तो सूरजभान का किस्सा ख़त्म कर सकता था पर मुझे भैया की कही बात याद आ गयी
मैंने उसके सीने पर पैर रखा और बोला- काश तू समझ सकता. काश तू जान पाता इस बात को . निशा का साथ मैंने इसलिए नहीं किया था की तुझसे दुश्मनी निभा सकू. ये दुनिया बड़ी खूबसूरत हो सकती है अगर कुछ लोग अपनी सोच बदलदे तो . सबको सम्मान से जीने का हक़ है , खुली हवा में साँस लेने का हक़ है . देख मैं तेरी आँखों के सामने से निशा को लेकर जा रहा हूँ, तेरा फर्ज बनता था की तू इसके मन को समझता , इसे ख़ुशी से विदा करता पर तेरे अन्दर भी वही कीड़ा कुलबुला रहा है, औरत किसी की गुलाम नहीं है . उसे अपनी मर्जी से जीने का हक़ है . आज मैंने ये कदम उठाया है . समय सदा एक सा नहीं रहता , कल कोई ये काम करेगा. आज नहीं तो कल नहीं तो कुछ साल बाद , जैसे जैसे शिक्षा प्राप्त होगी जनता को गुलामी की जंजीरे टूटेगी. हर आदमी बराबरी का हक़ मांगेगा . तब क्या रहेगी तेरी मेरी सामन्ती, क्या रहेगी ये जमींदारी. मैं अपनी सरकार को लेकर जा रहा हूँ ,किसी और को रोकने की कोशिश करनी है तो कर लो . प्रीत की डोर बाँधी है निशा से मैंने ज़माने की बेडिया तोड़ कर जा रहा हूँ.
मैंने निशा का हाथ पकड़ा और उसे ले चला. नयी जिन्दगी सामने खड़ी हमें पुकार रही थी .
अगला भाग आपके दिल को धड़का दे तो ही कमेंट कीजिएगा