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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Ashwathama

अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः 🕸
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#137

दिलो में जज्बात लिए, हाथो में हाथ लिए हम दोनों जंगल में चले जा रहे थे . ये जंगल , ये जंगल बस जंगल नहीं था ये गवाह था उस दास्ताँ का जिसे इसने जवान होते हुए थे. ये गवाह था उन रातो का जब मैंने निशा के साथ जी थी . ये जंगल आज गवाह था अंधियारों की रानी को उजालो में लाने का. पानी की खेली पर निशा रुकी और अपने होंठो को पानी से लगा दिया. . होंठो से टपकती पानी की बूंदे, इस से खूबसूरत दोपहर मैंने नहीं देखि थी . उसकी साँस बड़ी तेज चल रही थी . एक नजर उसने मुझे देखा और फिर पेड़ का सहारा लेकर बैठ गयी .

मैं- क्या सोच रही है

निशा- तुझे और मुझे सोच रही हूँ. डाकन से बगावत करवा दी तूने .

मैं- मैंने बस प्यार किया है इस डाकन से . इजहार किया है अपनी जान से . तूने कभी कहा था की अंधियारों से वास्ता है तेरा देख मेरी जान तेरे उजाले ले आया हूँ मैं .तुझे ले आया हु मैं

निशा- कैसी ये तेरी बारात सजना , न घोड़ी कोई भी संग न

मैं- क्या करते घोड़े हाथी, तू मेरी मैं तेरा साथी.

निशा- प्रेम समंदर दिल के अन्दर ओ मेरे साजन मुझ को ले चल मंदिर .

मैं- जब मन से मैंने तुझे , तूने मुझे अपना मान लिया तो क्या मंदिर जाना , रातो को इस जंगल में तुझे देखा था इसी जंगल में उजालो में तुझे अपनी बनाऊंगा

निशा- चल छोड़ बहाना, तू कैसा दीवाना सुन मेरी सुन, मुझे ले चल मंदिर.

मैं- जहाँ मेरी मोहब्बत वो ही मेरा मंदिर फिर उस मंदिर क्यों जाना

निशा- ये रीत पुराणी, ये प्रीत पुराणी

मैं- रीत भी तू , प्रीत भी तू. एक मन है एक प्राण हमारे जन्म जन्म से हम हुए तुम्हारे .

निशा- चल खा ले कसमे, जोड़ ले बंधन ओ साजन सुन मुझे ले चल मंदिर.

मैंने निशा का हाथ पकड कर खड़ा किया , उसके माथे को चूमा और बोला- चल मेरी जान मंदिर.



मैं निशा को कुवे पर ले आया.

निशा- यहाँ क्यों लाया

मैं उसे कमरे में ले गया और उसे वो दिया जिसके लिए मैं कबसे बेक़रार था .

निशा की आँखों में आंसू भर आये .

मैं- कबसे तम्मना थी मेरी जान तुझे इस पहनावे में देखने की , कितनी राते ये सोच कर बीत गयी की जब तुझे इस रूप में देखूंगा तो तू कैसी लगेगी . अब और इंतज़ार नहीं करना मुझे.

निशा - दिल धडकने की क्या बात करू मेरे साजन , ये सपना ही लग रहा है मुझे .

मैं- प्रीत की रीत सदा चली आई , मेरे सपने भी अब हो गए तेरे.

निशा- दिन लगते थे काली रैना जैसे, सोच राते कैसे बीती होंगी

मैं- अंधियारों में तेरा मन था जोगन और मेरा दिल था रमता जोगी. मन में तेरे प्यार के दीप जलाकर अब कर दे दूर अँधेरे.

जोड़ा पहनने के बाद उसने लाल चुडिया पहनी .

मैं- अब चल मंदिर.

दिल में हजारो अरमान लिए मैं निशा को थामे गाँव मे ले आया था . धड़कने कुछ बढ़ी सी थी पर किसे परवाह थी गाँव के लोग कोतुहल से हमें ही देख रहे थे. उनकी नजरो का उपहास उड़ाते हुए मैंने निशा के हाथ को कस कर थाम लिया. मंदिर के रस्ते में हम चौपाल के चबूतरे के पास से गुजरे , वो पेड़ ख़ामोशी से हमें ही देख रहा था .



“अब कोई लाली नहीं लटकेगी इस पेड़ पर मैं रीत बदल दूंगा.” मैंने खुद से कहा . निशा का हाथ थामे मैं मंदिर की सीढिया चढ़ रहा था .

“पुजारी, कहाँ हु पुजारी . देखो मैं अपनी दुल्हन ले आया हूँ , आकर हमारे फेरे करवाओ ” मैंने कहा

मैंने देखा पुजारी हमारी तरफ आया उसकी आँखों में मैंने क्रोध देखा,असमंस देखा.

पुजारी- कुंवर, बहुत गलत कर रहे हो तुम इसे प्रांगन में ले आये सब अपवित्र कर दिया.

मैं- जुबान पर लगाम रखो पुजारी . मैंने तुझसे कहा था न की मेरे फेरे तू ही करवाएगा

पुजारी- ये पाप है एक डाकन से ब्याह कहाँ जगह मिलेगी तुमको कुंवर.

मैं- मैं तुझसे पूछता हूँ पुजारी इसे डाकन किसने बनाया, उस माँ ने तो नहीं बनाया न जो सामने बैठी तुझे भी और मुझे भी देख रही है . उसने तो इसे तेरे मेरे जैसा ही बनाया था न . नियति ने दुःख दिया तो इसमें इसका क्या दोष, इसको भी हक़ है ख़ुशी से जीने का . कब तक ये दकियानूसी चलेगी, कोई न कोई तो इस रीत को बदलेगा न . इस गाँव में ये बदलाव मैं लाऊंगा. तू फेरो की तयारी कर

पुजारी- हरगिज नहीं , ये पाप मैं तो जीते जी नहीं करूँगा. मेरा इश्वर मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा.

मैं- किस इश्वर की बात करता है पुजारी , ये तो माँ हैं न ये मेरी माँ है तो निशा की भी माँ हुई न. और माँ अपने बच्चो में कब से भेदभाव करने लगी. और अगर बात माँ और उसकी औलादों की है तो तेरी फिर क्या जरूरत हुई भला.

मैं निशा को लेकर माता की मूर्त के सामने आया . मैंने थाली में रखा सिंदूर उठाया और निशा की मांग में भर दिया.निशा ने अपनी आँखे बंद कर ली. मैंने अपने गले से वो लाकेट उतारा और निशा के गले में पहना दिया . निशा मेरे गले से लग गयी मैंने उसके माथे को चूमा और बोला- देख पुजारी , माँ ने तो कोई ऐतराज नहीं किया. वो भी जानती है की उसके बच्चो की ख़ुशी किस्मे है . और हाँ अब ये मेरी पत्नी है , अब तेरा मंदिर पवित्र हो गया न . मोहब्बत ने पुराणी परम्परा की नींव हिला दी है पुजारी. आने वाले वक्त में तू जिया तो न जाने क्या क्या देखेगा. चल मेरी जान घर चल. अपने घर चल.

गाँव का सीना चीरते हुए मैं अपनी सरकार को अपने घर ले आया. मैंने देखा दरवाजे पर भाभी खड़ी थी ,हमें देख कर उसकी आँखों में चमक होंठो पर मुस्कान आ गयी थी . शायद हमारे आने की खबर हवाए हमसे पहले घर ले आई थी .

“तो ” भाभी ने बस इतना कहा और निशा को अपनी बाँहों में भर लिया.


“स्वागत है “ भाभी ने कहा और निशा को घर में ले लिया पीछे पीछे मैं भी आया. मैंने देखा अंजू दौड़ कर आई और निशा के गले लग गयी . अंजू की आँखों में आंसू थे. मैंने चाची को आरती की थाली लेकर आते हुए देखा. .................ये ख़ुशी , ये ख़ुशी जो मैं महसूस कर रहा था इसके पीछे आते तूफान को मैं महसूस नहीं कर पा रहा था .
संवाद.... प्रीत की संवाद... जहाँ न तो प्रेमी के लव बोलते हैं और न ही प्रेमिका के...
संवाद होते है तो शिर्फ अंतर्मन के उस समर्पण की, जो बिना एक दूसरे के हमेशा ही अधूरे गिने जाते है ।

आखिर, कवीर व्याह लाया निशा को, बांध लिया प्रीत की डोर.... बना लाया एक डाकन को अपनी संगनी ।

पर इस शांत मिलन के पीछे आने बाली अशांत आंधी... किस किस पर अपना कहर वरसायेगी ये जानना रोचक होगा ।
 

Tiger 786

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#136

जीप से सूरजभान और उसके साथी उतरे. मैं जानता था की ये दिन जरुर आएगा .

सूरजभान- बहुत बड़ी गलती की है कबीर , दुनिया में सब कुछ करना था ये नहीं करना था ये तो सोच लिया होता की सूरजभान किस आग का नाम है

मैं- इश्क किया है कोई चोरी नहीं की जो सच कर करूँगा. अज का दिन बहुत खास है रस्ते से हट जा सूरजभान , आज फेरे लेने है मुझे निशा संग मत रोक मेरा रास्ता .

सूरज- जुबान को लगाम दे हरामजादे , तेरी हिम्मत कैसे हुई ये कहने की . और तुम, तुमने जरा भी नहीं सोचा, ये पाप करने से पहले . क्या तुम्हारे पैर एक बार भी नहीं कांपे उस चोखट को पार करते हुए .

मैं-निशा को कुछ भी कहा न तो मैं भूल जाऊंगा की तू कौन है , और आज अगर मैं बिगड़ा न सूरजभान तो फिर ये होली खून से खेली जाएगी .

सूरजभान- तूने तो मेरे दिल की बात कह दी कबीर. जो गुस्ताखी तूने की है न तेरे टुकड़े टुकड़े भी बिखेर दू तो ताज्जुब नहीं रहेगा मुझे . आज दुनिया देखेगी की हमारी तरफ नजर उठा कर देखने वालो का क्या हाल होता है . और तुम , तुमसे ये उम्मीद नहीं थी . अरे इतनी ही आग लगी थी तो घर में ही घाघरा खोल लेती , मेरे ही दुश्मन के साथ रंगरेली करनी थी तुमको.

निशा- अपनी हद में रहो सूरज, तुम्हारी जुबान क्यों नहीं कट गयी ये कहते हुए . काश तुम समझ पाते.

सूरज- समझ तो मैं गया हूँ, गलती बस ये हुई की मैं पहले नहीं समझा, काश पहले समझ जाता तो आज ये बेइज्जती नहीं होती.

मैं- निशा से एक और बार बदतमीजी की न सूरजभान तो दुबारा तेरी जुबान कुछ नहीं कह पाएगी.

सूरज- जुबान तो तेरी माफ़ी मांगेगी मुझसे , देख क्या रहे हो मारो साले को .

मैंने निशा को पीछे की तरफ किया और जो भी लड़का सबसे पहले मेरी तरफ आया था उसके सर पर खींच कर मुक्का मारा. कहते है की होली ऐसा त्यौहार है जहाँ दुश्मन भी गले मिलकर गिले शिकवे भुला देते है पर आज ये फाग का दिन न जाने क्या करवाने वाला था . मारापीटी शुरू हो गयी .

मैं एक वो अनेक पर वो नहीं जानते थे की मेरे अन्दर एक आदमखोर पनप रहा था . दो लडको ने पीछे से मुझे पकड़ लिया सूरजभान ने मेरे मुह पर घूँसा मारा . एक पल को लगा की जबड़ा ही हिल गया मेरा . अगला वार मेरे सीने पर पड़ा.

“कबीर,” निशा चीख पड़ी .

मैंने लात मार कर सूरजभान को पीछे धकेला . निशा ने एक लड़के से डंडा छीन लिया और झगडे में कूद गयी . मामला गंभीर हो गया था .मैंने निशा को पीछे किया लोहे की चेन का वार मेरी पीठ पर पड़ा निशा ने उस चेन को अपने हाथ से पकड़ लिया

निशा- मेरे गुरुर को मत ललकारो तुम लोग . मत मजबूर करो मुझे . मैं जाना चाहती हूँ जाने दो मुझे.

सूरज- कही नहीं जाओगी तुम . अपने आशिक को यही मरते देखोगी तुम. पहले इसे मारूंगा फिर तुम्हारा फैसला होगा. ऐसी सजा दूंगा तुम्हे की जमाना याद रखेगा. ऐसी गुस्ताखी करने से पहले फिर कोई सौ बार सोचेगा.

निशा- ये गलती मत करो सूरज, कहीं ऐसा न हो की पछताने के लिए न तुम्हारे पास कुछ बचे न मेरे पास.

सूरज- बचा तो वैसे भी कुछ नहीं है फिर.

निशा- ठीक है , अगर तुम्हारी यही मर्जी है तो फिर आज मैं जी भर के फाग खेलूंगी, कभी रंगों से तो नहीं खेल पायी और आज रक्त से खेलूंगी मैं.

निशा का ये रूप देख कर मैं भी एक पल के लिए घबरा गया . निशा ने वो चेन अपने हाथ में ले ली और पहला वार किया , एक बार फिर से मारा मारी शुरू हो गयी .



निशा- तुझे कसम है मेरी कबीर जो आज तू रुका. अगर आज हमने कदम रोक लिए तो फिर कोई हिम्मत नहीं कर पायेगा मोहब्बत करने की .

मैं- मेरी सरकार, तुझे लेने आया हूँ लेकर जाऊंगा. ये तो दस-पांच लोग है सारी दुनिया भी जोर लागले तो भी लेकर जाऊंगा ही .

मैंने एक लड़के को उठा कर पटका की वो गाड़ी के बोनट पर जाकर गिरा. अगले ही पल मेरा घुटना उसकी छाती पर जा लगा. उसके मुह से खून की उलटी निकली और वो साइड में गिर गया . मैंने देखा की निशा ने एक लड़के की आँखों में अपनी उंगलिया घुसा दी थी वो लड़का चीख रहा था . तडप रहा था पर निशा का गुस्सा उसके सर पर चढ़ा था .

मैंने सूरजभान का वार बचाया और अपना कन्धा निचे ले जाते हुए उसे उठा लिया. गाडी का शीशा तोड़ते हुए वो जीप के अन्दर जाकर गिरा. शीशे के टुकड़े कई जगह घुस गए उसके शरीर में . मैंने उसे खींचा और चेहरे पर वार किया. खून से सन गया उसका चेहरा . आसपास काफी लोग इकठ्ठा हो गए थे पर किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी की बीच में पड़ जाये. मैं चाहता तो सूरजभान का किस्सा ख़त्म कर सकता था पर मुझे भैया की कही बात याद आ गयी



मैंने उसके सीने पर पैर रखा और बोला- काश तू समझ सकता. काश तू जान पाता इस बात को . निशा का साथ मैंने इसलिए नहीं किया था की तुझसे दुश्मनी निभा सकू. ये दुनिया बड़ी खूबसूरत हो सकती है अगर कुछ लोग अपनी सोच बदलदे तो . सबको सम्मान से जीने का हक़ है , खुली हवा में साँस लेने का हक़ है . देख मैं तेरी आँखों के सामने से निशा को लेकर जा रहा हूँ, तेरा फर्ज बनता था की तू इसके मन को समझता , इसे ख़ुशी से विदा करता पर तेरे अन्दर भी वही कीड़ा कुलबुला रहा है, औरत किसी की गुलाम नहीं है . उसे अपनी मर्जी से जीने का हक़ है . आज मैंने ये कदम उठाया है . समय सदा एक सा नहीं रहता , कल कोई ये काम करेगा. आज नहीं तो कल नहीं तो कुछ साल बाद , जैसे जैसे शिक्षा प्राप्त होगी जनता को गुलामी की जंजीरे टूटेगी. हर आदमी बराबरी का हक़ मांगेगा . तब क्या रहेगी तेरी मेरी सामन्ती, क्या रहेगी ये जमींदारी. मैं अपनी सरकार को लेकर जा रहा हूँ ,किसी और को रोकने की कोशिश करनी है तो कर लो . प्रीत की डोर बाँधी है निशा से मैंने ज़माने की बेडिया तोड़ कर जा रहा हूँ.


मैंने निशा का हाथ पकड़ा और उसे ले चला. नयी जिन्दगी सामने खड़ी हमें पुकार रही थी .
Surajbhan ki to gand Tod di ab rayi sahab ka kya reaction hota hai vo bi mazedaar hoga

Shandaar update
 

Tiger 786

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दिलो में जज्बात लिए, हाथो में हाथ लिए हम दोनों जंगल में चले जा रहे थे . ये जंगल , ये जंगल बस जंगल नहीं था ये गवाह था उस दास्ताँ का जिसे इसने जवान होते हुए थे. ये गवाह था उन रातो का जब मैंने निशा के साथ जी थी . ये जंगल आज गवाह था अंधियारों की रानी को उजालो में लाने का. पानी की खेली पर निशा रुकी और अपने होंठो को पानी से लगा दिया. . होंठो से टपकती पानी की बूंदे, इस से खूबसूरत दोपहर मैंने नहीं देखि थी . उसकी साँस बड़ी तेज चल रही थी . एक नजर उसने मुझे देखा और फिर पेड़ का सहारा लेकर बैठ गयी .

मैं- क्या सोच रही है

निशा- तुझे और मुझे सोच रही हूँ. डाकन से बगावत करवा दी तूने .

मैं- मैंने बस प्यार किया है इस डाकन से . इजहार किया है अपनी जान से . तूने कभी कहा था की अंधियारों से वास्ता है तेरा देख मेरी जान तेरे उजाले ले आया हूँ मैं .तुझे ले आया हु मैं

निशा- कैसी ये तेरी बारात सजना , न घोड़ी कोई भी संग न

मैं- क्या करते घोड़े हाथी, तू मेरी मैं तेरा साथी.

निशा- प्रेम समंदर दिल के अन्दर ओ मेरे साजन मुझ को ले चल मंदिर .

मैं- जब मन से मैंने तुझे , तूने मुझे अपना मान लिया तो क्या मंदिर जाना , रातो को इस जंगल में तुझे देखा था इसी जंगल में उजालो में तुझे अपनी बनाऊंगा

निशा- चल छोड़ बहाना, तू कैसा दीवाना सुन मेरी सुन, मुझे ले चल मंदिर.

मैं- जहाँ मेरी मोहब्बत वो ही मेरा मंदिर फिर उस मंदिर क्यों जाना

निशा- ये रीत पुराणी, ये प्रीत पुराणी

मैं- रीत भी तू , प्रीत भी तू. एक मन है एक प्राण हमारे जन्म जन्म से हम हुए तुम्हारे .

निशा- चल खा ले कसमे, जोड़ ले बंधन ओ साजन सुन मुझे ले चल मंदिर.

मैंने निशा का हाथ पकड कर खड़ा किया , उसके माथे को चूमा और बोला- चल मेरी जान मंदिर.



मैं निशा को कुवे पर ले आया.

निशा- यहाँ क्यों लाया

मैं उसे कमरे में ले गया और उसे वो दिया जिसके लिए मैं कबसे बेक़रार था .

निशा की आँखों में आंसू भर आये .

मैं- कबसे तम्मना थी मेरी जान तुझे इस पहनावे में देखने की , कितनी राते ये सोच कर बीत गयी की जब तुझे इस रूप में देखूंगा तो तू कैसी लगेगी . अब और इंतज़ार नहीं करना मुझे.

निशा - दिल धडकने की क्या बात करू मेरे साजन , ये सपना ही लग रहा है मुझे .

मैं- प्रीत की रीत सदा चली आई , मेरे सपने भी अब हो गए तेरे.

निशा- दिन लगते थे काली रैना जैसे, सोच राते कैसे बीती होंगी

मैं- अंधियारों में तेरा मन था जोगन और मेरा दिल था रमता जोगी. मन में तेरे प्यार के दीप जलाकर अब कर दे दूर अँधेरे.

जोड़ा पहनने के बाद उसने लाल चुडिया पहनी .

मैं- अब चल मंदिर.

दिल में हजारो अरमान लिए मैं निशा को थामे गाँव मे ले आया था . धड़कने कुछ बढ़ी सी थी पर किसे परवाह थी गाँव के लोग कोतुहल से हमें ही देख रहे थे. उनकी नजरो का उपहास उड़ाते हुए मैंने निशा के हाथ को कस कर थाम लिया. मंदिर के रस्ते में हम चौपाल के चबूतरे के पास से गुजरे , वो पेड़ ख़ामोशी से हमें ही देख रहा था .



“अब कोई लाली नहीं लटकेगी इस पेड़ पर मैं रीत बदल दूंगा.” मैंने खुद से कहा . निशा का हाथ थामे मैं मंदिर की सीढिया चढ़ रहा था .

“पुजारी, कहाँ हु पुजारी . देखो मैं अपनी दुल्हन ले आया हूँ , आकर हमारे फेरे करवाओ ” मैंने कहा

मैंने देखा पुजारी हमारी तरफ आया उसकी आँखों में मैंने क्रोध देखा,असमंस देखा.

पुजारी- कुंवर, बहुत गलत कर रहे हो तुम इसे प्रांगन में ले आये सब अपवित्र कर दिया.

मैं- जुबान पर लगाम रखो पुजारी . मैंने तुझसे कहा था न की मेरे फेरे तू ही करवाएगा

पुजारी- ये पाप है एक डाकन से ब्याह कहाँ जगह मिलेगी तुमको कुंवर.

मैं- मैं तुझसे पूछता हूँ पुजारी इसे डाकन किसने बनाया, उस माँ ने तो नहीं बनाया न जो सामने बैठी तुझे भी और मुझे भी देख रही है . उसने तो इसे तेरे मेरे जैसा ही बनाया था न . नियति ने दुःख दिया तो इसमें इसका क्या दोष, इसको भी हक़ है ख़ुशी से जीने का . कब तक ये दकियानूसी चलेगी, कोई न कोई तो इस रीत को बदलेगा न . इस गाँव में ये बदलाव मैं लाऊंगा. तू फेरो की तयारी कर

पुजारी- हरगिज नहीं , ये पाप मैं तो जीते जी नहीं करूँगा. मेरा इश्वर मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा.

मैं- किस इश्वर की बात करता है पुजारी , ये तो माँ हैं न ये मेरी माँ है तो निशा की भी माँ हुई न. और माँ अपने बच्चो में कब से भेदभाव करने लगी. और अगर बात माँ और उसकी औलादों की है तो तेरी फिर क्या जरूरत हुई भला.

मैं निशा को लेकर माता की मूर्त के सामने आया . मैंने थाली में रखा सिंदूर उठाया और निशा की मांग में भर दिया.निशा ने अपनी आँखे बंद कर ली. मैंने अपने गले से वो लाकेट उतारा और निशा के गले में पहना दिया . निशा मेरे गले से लग गयी मैंने उसके माथे को चूमा और बोला- देख पुजारी , माँ ने तो कोई ऐतराज नहीं किया. वो भी जानती है की उसके बच्चो की ख़ुशी किस्मे है . और हाँ अब ये मेरी पत्नी है , अब तेरा मंदिर पवित्र हो गया न . मोहब्बत ने पुराणी परम्परा की नींव हिला दी है पुजारी. आने वाले वक्त में तू जिया तो न जाने क्या क्या देखेगा. चल मेरी जान घर चल. अपने घर चल.

गाँव का सीना चीरते हुए मैं अपनी सरकार को अपने घर ले आया. मैंने देखा दरवाजे पर भाभी खड़ी थी ,हमें देख कर उसकी आँखों में चमक होंठो पर मुस्कान आ गयी थी . शायद हमारे आने की खबर हवाए हमसे पहले घर ले आई थी .

“तो ” भाभी ने बस इतना कहा और निशा को अपनी बाँहों में भर लिया.


“स्वागत है “ भाभी ने कहा और निशा को घर में ले लिया पीछे पीछे मैं भी आया. मैंने देखा अंजू दौड़ कर आई और निशा के गले लग गयी . अंजू की आँखों में आंसू थे. मैंने चाची को आरती की थाली लेकर आते हुए देखा. .................ये ख़ुशी , ये ख़ुशी जो मैं महसूस कर रहा था इसके पीछे आते तूफान को मैं महसूस नहीं कर पा रहा था .
Toofan to bohot bada hi aayega
 

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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Surajbhaan ki baato se lagta hai ki Nisha uski bahan hai or aakhir khulasa ho hi gaya ki wah kis pariwaar ki ladki hai, surajbhaan se to humari purani dushmani hai ab to or maza aayega ladne me Nisha or Kabir ka saath waah kya kahne, bahot maza aa raha tha..

Har baar ki tarah is baar bhi wah bach gaya bhaiya ka ye waada bahot bhaari pad raha hai ek hi baar me iska kissa khtam ho jaata hai laut ke waar karne ki naubat hi nahi rahti khair..

Preet ki dor hai itni aasani se nahi tuti wo zamana hi aisa tha us time aisa hi hota tha logo ki soch waqt ke saath badal rahi hai kuch aaz bhi hai jo ise galat maante hai sab soch ka fark hai nahi to surajbhaan or kabir me kya fark rah jaata...

Khair jo hona tha ho chuka ab ek dil ko chu lene waala pyaara sa update de do lekin kabir jab Nisha ko lekar ghar jaayega tab kya honga.. Laali ki maut bhi isi ishq ki wajah se hui thi kahi kuch galat na ho jaaye..waise surajbhaan ko Thoda or maar dete to maza double ho jaata humara...

Intzaar rahega...
 

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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निशा- कैसी ये तेरी बारात सजना , न घोड़ी कोई भी संग न

मैं- क्या करते घोड़े हाथी, तू मेरी मैं तेरा साथी.

निशा- प्रेम समंदर दिल के अन्दर ओ मेरे साजन मुझ को ले चल मंदिर .

मैं- जब मन से मैंने तुझे , तूने मुझे अपना मान लिया तो क्या मंदिर जाना , रातो को इस जंगल में तुझे देखा था इसी जंगल में उजालो में तुझे अपनी बनाऊंगा

निशा- चल छोड़ बहाना, तू कैसा दीवाना सुन मेरी सुन, मुझे ले चल मंदिर.

मैं- जहाँ मेरी मोहब्बत वो ही मेरा मंदिर फिर उस मंदिर क्यों जाना

निशा- ये रीत पुराणी, ये प्रीत पुराणी

मैं- रीत भी तू , प्रीत भी तू. एक मन है एक प्राण हमारे जन्म जन्म से हम हुए तुम्हारे .

निशा- चल खा ले कसमे, जोड़ ले बंधन ओ साजन सुन मुझे ले चल मंदिर.

मैंने निशा का हाथ पकड कर खड़ा किया , उसके माथे को चूमा और बोला- चल मेरी जान मंदिर.​

Kya kahe Manish Bhai hum aapne to har ek line ko pyaar se bhar diya hai man karta hai bas padte hi jaao, bahot khubsurat lines likhi hai aapne...

Saare zamane ke saamne Kabir ne Nisha ka haath thama hai har koi un dono ke pyaar ka gawah hai, Nisha daayan kaise hai matlab sach me hai ya sirf kahne ke liye hume nahi pata lekin Mandir me kabir ne bilkul sahi kaha Nisha daayan hai isme uska kya dosh or aisa kaha likha hai ki daayan mohabbat nahi kar sakti, shaadi nahi kar sakti, ye sab baate avdhaarna humari hi to banai hui hai..

Aagman ho chuka hai sabhi khush hai ye dekh kar hume bhi khushi ho rahi hai raaji to sabhi the hi bas raay sahab or nisha ke pariwaar ko chodke to agar hugama honga to inhi logo ka honga dekhte hai kya hota hai...

Kuch to adhura sa laga hume kuch chuth gaya hai khair ummid hai jo bhi honga accha hi honga...
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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दिलो में जज्बात लिए, हाथो में हाथ लिए हम दोनों जंगल में चले जा रहे थे . ये जंगल , ये जंगल बस जंगल नहीं था ये गवाह था उस दास्ताँ का जिसे इसने जवान होते हुए थे. ये गवाह था उन रातो का जब मैंने निशा के साथ जी थी . ये जंगल आज गवाह था अंधियारों की रानी को उजालो में लाने का. पानी की खेली पर निशा रुकी और अपने होंठो को पानी से लगा दिया. . होंठो से टपकती पानी की बूंदे, इस से खूबसूरत दोपहर मैंने नहीं देखि थी . उसकी साँस बड़ी तेज चल रही थी . एक नजर उसने मुझे देखा और फिर पेड़ का सहारा लेकर बैठ गयी .

मैं- क्या सोच रही है

निशा- तुझे और मुझे सोच रही हूँ. डाकन से बगावत करवा दी तूने .

मैं- मैंने बस प्यार किया है इस डाकन से . इजहार किया है अपनी जान से . तूने कभी कहा था की अंधियारों से वास्ता है तेरा देख मेरी जान तेरे उजाले ले आया हूँ मैं .तुझे ले आया हु मैं

निशा- कैसी ये तेरी बारात सजना , न घोड़ी कोई भी संग न

मैं- क्या करते घोड़े हाथी, तू मेरी मैं तेरा साथी.

निशा- प्रेम समंदर दिल के अन्दर ओ मेरे साजन मुझ को ले चल मंदिर .

मैं- जब मन से मैंने तुझे , तूने मुझे अपना मान लिया तो क्या मंदिर जाना , रातो को इस जंगल में तुझे देखा था इसी जंगल में उजालो में तुझे अपनी बनाऊंगा

निशा- चल छोड़ बहाना, तू कैसा दीवाना सुन मेरी सुन, मुझे ले चल मंदिर.

मैं- जहाँ मेरी मोहब्बत वो ही मेरा मंदिर फिर उस मंदिर क्यों जाना

निशा- ये रीत पुराणी, ये प्रीत पुराणी

मैं- रीत भी तू , प्रीत भी तू. एक मन है एक प्राण हमारे जन्म जन्म से हम हुए तुम्हारे .

निशा- चल खा ले कसमे, जोड़ ले बंधन ओ साजन सुन मुझे ले चल मंदिर.

मैंने निशा का हाथ पकड कर खड़ा किया , उसके माथे को चूमा और बोला- चल मेरी जान मंदिर.



मैं निशा को कुवे पर ले आया.

निशा- यहाँ क्यों लाया

मैं उसे कमरे में ले गया और उसे वो दिया जिसके लिए मैं कबसे बेक़रार था .

निशा की आँखों में आंसू भर आये .

मैं- कबसे तम्मना थी मेरी जान तुझे इस पहनावे में देखने की , कितनी राते ये सोच कर बीत गयी की जब तुझे इस रूप में देखूंगा तो तू कैसी लगेगी . अब और इंतज़ार नहीं करना मुझे.

निशा - दिल धडकने की क्या बात करू मेरे साजन , ये सपना ही लग रहा है मुझे .

मैं- प्रीत की रीत सदा चली आई , मेरे सपने भी अब हो गए तेरे.

निशा- दिन लगते थे काली रैना जैसे, सोच राते कैसे बीती होंगी

मैं- अंधियारों में तेरा मन था जोगन और मेरा दिल था रमता जोगी. मन में तेरे प्यार के दीप जलाकर अब कर दे दूर अँधेरे.

जोड़ा पहनने के बाद उसने लाल चुडिया पहनी .

मैं- अब चल मंदिर.

दिल में हजारो अरमान लिए मैं निशा को थामे गाँव मे ले आया था . धड़कने कुछ बढ़ी सी थी पर किसे परवाह थी गाँव के लोग कोतुहल से हमें ही देख रहे थे. उनकी नजरो का उपहास उड़ाते हुए मैंने निशा के हाथ को कस कर थाम लिया. मंदिर के रस्ते में हम चौपाल के चबूतरे के पास से गुजरे , वो पेड़ ख़ामोशी से हमें ही देख रहा था .



“अब कोई लाली नहीं लटकेगी इस पेड़ पर मैं रीत बदल दूंगा.” मैंने खुद से कहा . निशा का हाथ थामे मैं मंदिर की सीढिया चढ़ रहा था .

“पुजारी, कहाँ हु पुजारी . देखो मैं अपनी दुल्हन ले आया हूँ , आकर हमारे फेरे करवाओ ” मैंने कहा

मैंने देखा पुजारी हमारी तरफ आया उसकी आँखों में मैंने क्रोध देखा,असमंस देखा.

पुजारी- कुंवर, बहुत गलत कर रहे हो तुम इसे प्रांगन में ले आये सब अपवित्र कर दिया.

मैं- जुबान पर लगाम रखो पुजारी . मैंने तुझसे कहा था न की मेरे फेरे तू ही करवाएगा

पुजारी- ये पाप है एक डाकन से ब्याह कहाँ जगह मिलेगी तुमको कुंवर.

मैं- मैं तुझसे पूछता हूँ पुजारी इसे डाकन किसने बनाया, उस माँ ने तो नहीं बनाया न जो सामने बैठी तुझे भी और मुझे भी देख रही है . उसने तो इसे तेरे मेरे जैसा ही बनाया था न . नियति ने दुःख दिया तो इसमें इसका क्या दोष, इसको भी हक़ है ख़ुशी से जीने का . कब तक ये दकियानूसी चलेगी, कोई न कोई तो इस रीत को बदलेगा न . इस गाँव में ये बदलाव मैं लाऊंगा. तू फेरो की तयारी कर

पुजारी- हरगिज नहीं , ये पाप मैं तो जीते जी नहीं करूँगा. मेरा इश्वर मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा.

मैं- किस इश्वर की बात करता है पुजारी , ये तो माँ हैं न ये मेरी माँ है तो निशा की भी माँ हुई न. और माँ अपने बच्चो में कब से भेदभाव करने लगी. और अगर बात माँ और उसकी औलादों की है तो तेरी फिर क्या जरूरत हुई भला.

मैं निशा को लेकर माता की मूर्त के सामने आया . मैंने थाली में रखा सिंदूर उठाया और निशा की मांग में भर दिया.निशा ने अपनी आँखे बंद कर ली. मैंने अपने गले से वो लाकेट उतारा और निशा के गले में पहना दिया . निशा मेरे गले से लग गयी मैंने उसके माथे को चूमा और बोला- देख पुजारी , माँ ने तो कोई ऐतराज नहीं किया. वो भी जानती है की उसके बच्चो की ख़ुशी किस्मे है . और हाँ अब ये मेरी पत्नी है , अब तेरा मंदिर पवित्र हो गया न . मोहब्बत ने पुराणी परम्परा की नींव हिला दी है पुजारी. आने वाले वक्त में तू जिया तो न जाने क्या क्या देखेगा. चल मेरी जान घर चल. अपने घर चल.

गाँव का सीना चीरते हुए मैं अपनी सरकार को अपने घर ले आया. मैंने देखा दरवाजे पर भाभी खड़ी थी ,हमें देख कर उसकी आँखों में चमक होंठो पर मुस्कान आ गयी थी . शायद हमारे आने की खबर हवाए हमसे पहले घर ले आई थी .

“तो ” भाभी ने बस इतना कहा और निशा को अपनी बाँहों में भर लिया.


“स्वागत है “ भाभी ने कहा और निशा को घर में ले लिया पीछे पीछे मैं भी आया. मैंने देखा अंजू दौड़ कर आई और निशा के गले लग गयी . अंजू की आँखों में आंसू थे. मैंने चाची को आरती की थाली लेकर आते हुए देखा. .................ये ख़ुशी , ये ख़ुशी जो मैं महसूस कर रहा था इसके पीछे आते तूफान को मैं महसूस नहीं कर पा रहा
#137

दिलो में जज्बात लिए, हाथो में हाथ लिए हम दोनों जंगल में चले जा रहे थे . ये जंगल , ये जंगल बस जंगल नहीं था ये गवाह था उस दास्ताँ का जिसे इसने जवान होते हुए थे. ये गवाह था उन रातो का जब मैंने निशा के साथ जी थी . ये जंगल आज गवाह था अंधियारों की रानी को उजालो में लाने का. पानी की खेली पर निशा रुकी और अपने होंठो को पानी से लगा दिया. . होंठो से टपकती पानी की बूंदे, इस से खूबसूरत दोपहर मैंने नहीं देखि थी . उसकी साँस बड़ी तेज चल रही थी . एक नजर उसने मुझे देखा और फिर पेड़ का सहारा लेकर बैठ गयी .

मैं- क्या सोच रही है

निशा- तुझे और मुझे सोच रही हूँ. डाकन से बगावत करवा दी तूने .

मैं- मैंने बस प्यार किया है इस डाकन से . इजहार किया है अपनी जान से . तूने कभी कहा था की अंधियारों से वास्ता है तेरा देख मेरी जान तेरे उजाले ले आया हूँ मैं .तुझे ले आया हु मैं

निशा- कैसी ये तेरी बारात सजना , न घोड़ी कोई भी संग न

मैं- क्या करते घोड़े हाथी, तू मेरी मैं तेरा साथी.

निशा- प्रेम समंदर दिल के अन्दर ओ मेरे साजन मुझ को ले चल मंदिर .

मैं- जब मन से मैंने तुझे , तूने मुझे अपना मान लिया तो क्या मंदिर जाना , रातो को इस जंगल में तुझे देखा था इसी जंगल में उजालो में तुझे अपनी बनाऊंगा

निशा- चल छोड़ बहाना, तू कैसा दीवाना सुन मेरी सुन, मुझे ले चल मंदिर.

मैं- जहाँ मेरी मोहब्बत वो ही मेरा मंदिर फिर उस मंदिर क्यों जाना

निशा- ये रीत पुराणी, ये प्रीत पुराणी

मैं- रीत भी तू , प्रीत भी तू. एक मन है एक प्राण हमारे जन्म जन्म से हम हुए तुम्हारे .

निशा- चल खा ले कसमे, जोड़ ले बंधन ओ साजन सुन मुझे ले चल मंदिर.

मैंने निशा का हाथ पकड कर खड़ा किया , उसके माथे को चूमा और बोला- चल मेरी जान मंदिर.



मैं निशा को कुवे पर ले आया.

निशा- यहाँ क्यों लाया

मैं उसे कमरे में ले गया और उसे वो दिया जिसके लिए मैं कबसे बेक़रार था .

निशा की आँखों में आंसू भर आये .

मैं- कबसे तम्मना थी मेरी जान तुझे इस पहनावे में देखने की , कितनी राते ये सोच कर बीत गयी की जब तुझे इस रूप में देखूंगा तो तू कैसी लगेगी . अब और इंतज़ार नहीं करना मुझे.

निशा - दिल धडकने की क्या बात करू मेरे साजन , ये सपना ही लग रहा है मुझे .

मैं- प्रीत की रीत सदा चली आई , मेरे सपने भी अब हो गए तेरे.

निशा- दिन लगते थे काली रैना जैसे, सोच राते कैसे बीती होंगी

मैं- अंधियारों में तेरा मन था जोगन और मेरा दिल था रमता जोगी. मन में तेरे प्यार के दीप जलाकर अब कर दे दूर अँधेरे.

जोड़ा पहनने के बाद उसने लाल चुडिया पहनी .

मैं- अब चल मंदिर.

दिल में हजारो अरमान लिए मैं निशा को थामे गाँव मे ले आया था . धड़कने कुछ बढ़ी सी थी पर किसे परवाह थी गाँव के लोग कोतुहल से हमें ही देख रहे थे. उनकी नजरो का उपहास उड़ाते हुए मैंने निशा के हाथ को कस कर थाम लिया. मंदिर के रस्ते में हम चौपाल के चबूतरे के पास से गुजरे , वो पेड़ ख़ामोशी से हमें ही देख रहा था .



“अब कोई लाली नहीं लटकेगी इस पेड़ पर मैं रीत बदल दूंगा.” मैंने खुद से कहा . निशा का हाथ थामे मैं मंदिर की सीढिया चढ़ रहा था .

“पुजारी, कहाँ हु पुजारी . देखो मैं अपनी दुल्हन ले आया हूँ , आकर हमारे फेरे करवाओ ” मैंने कहा

मैंने देखा पुजारी हमारी तरफ आया उसकी आँखों में मैंने क्रोध देखा,असमंस देखा.

पुजारी- कुंवर, बहुत गलत कर रहे हो तुम इसे प्रांगन में ले आये सब अपवित्र कर दिया.

मैं- जुबान पर लगाम रखो पुजारी . मैंने तुझसे कहा था न की मेरे फेरे तू ही करवाएगा

पुजारी- ये पाप है एक डाकन से ब्याह कहाँ जगह मिलेगी तुमको कुंवर.

मैं- मैं तुझसे पूछता हूँ पुजारी इसे डाकन किसने बनाया, उस माँ ने तो नहीं बनाया न जो सामने बैठी तुझे भी और मुझे भी देख रही है . उसने तो इसे तेरे मेरे जैसा ही बनाया था न . नियति ने दुःख दिया तो इसमें इसका क्या दोष, इसको भी हक़ है ख़ुशी से जीने का . कब तक ये दकियानूसी चलेगी, कोई न कोई तो इस रीत को बदलेगा न . इस गाँव में ये बदलाव मैं लाऊंगा. तू फेरो की तयारी कर

पुजारी- हरगिज नहीं , ये पाप मैं तो जीते जी नहीं करूँगा. मेरा इश्वर मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा.

मैं- किस इश्वर की बात करता है पुजारी , ये तो माँ हैं न ये मेरी माँ है तो निशा की भी माँ हुई न. और माँ अपने बच्चो में कब से भेदभाव करने लगी. और अगर बात माँ और उसकी औलादों की है तो तेरी फिर क्या जरूरत हुई भला.

मैं निशा को लेकर माता की मूर्त के सामने आया . मैंने थाली में रखा सिंदूर उठाया और निशा की मांग में भर दिया.निशा ने अपनी आँखे बंद कर ली. मैंने अपने गले से वो लाकेट उतारा और निशा के गले में पहना दिया . निशा मेरे गले से लग गयी मैंने उसके माथे को चूमा और बोला- देख पुजारी , माँ ने तो कोई ऐतराज नहीं किया. वो भी जानती है की उसके बच्चो की ख़ुशी किस्मे है . और हाँ अब ये मेरी पत्नी है , अब तेरा मंदिर पवित्र हो गया न . मोहब्बत ने पुराणी परम्परा की नींव हिला दी है पुजारी. आने वाले वक्त में तू जिया तो न जाने क्या क्या देखेगा. चल मेरी जान घर चल. अपने घर चल.

गाँव का सीना चीरते हुए मैं अपनी सरकार को अपने घर ले आया. मैंने देखा दरवाजे पर भाभी खड़ी थी ,हमें देख कर उसकी आँखों में चमक होंठो पर मुस्कान आ गयी थी . शायद हमारे आने की खबर हवाए हमसे पहले घर ले आई थी .

“तो ” भाभी ने बस इतना कहा और निशा को अपनी बाँहों में भर लिया.


“स्वागत है “ भाभी ने कहा और निशा को घर में ले लिया पीछे पीछे मैं भी आया. मैंने देखा अंजू दौड़ कर आई और निशा के गले लग गयी . अंजू की आँखों में आंसू थे. मैंने चाची को आरती की थाली लेकर आते हुए देखा. .................ये ख़ुशी , ये ख़ुशी जो मैं महसूस कर रहा था इसके पीछे आते तूफान को मैं महसूस नहीं कर पा रहा था .
मैं- रीत भी तू , प्रीत भी तू. एक मन है एक प्राण हमारे जन्म जन्म से हम हुए तुम्हारे .

निशा- चल खा ले कसमे, जोड़ ले बंधन ओ साजन सुन मुझे ले चल मंदिर.

मैंने निशा का हाथ पकड कर खड़ा किया , उसके माथे को चूमा और बोला- चल मेरी जान मंदिर.


जज्बातों की आंधी लाय हो फौजी भाई इस हिस्से में :applause:

अब कोई लाली नहीं लटकेगी इस पेड़ पर मैं रीत बदल दूंगा.” मैंने खुद से कहा . निशा का हाथ थामे मैं मंदिर की सीढिया चढ़ रहा था

और इस में रूढ़ियों को तोड़ने की लगन।

उम्दा भाई उम्दा।

अब आंधियों के बाद तूफान ही आने वाला है।
 
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