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आओ कभी हवेली परदारू जैसी चीज को में हाथ भी नही लगाती
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(दारू को हाथ लगाने की जरूरत थोड़ी होती है)
आओ कभी हवेली परदारू जैसी चीज को में हाथ भी नही लगाती
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(दारू को हाथ लगाने की जरूरत थोड़ी होती है)
[बहुत सोचा इस बारे मे, खैर थोड़े दिन अजीब लगेगा पर कभी ना कभी ये दिन आना ही था तो आज ही क्यों नहीं. बस ये सोच रहे है कि घर कहाँ बनाएंगे. जहां भी जाएंगे खेती करेंगे मिट्टी को छोड़ कर आए थे मिट्टी मे ही जायेंगे. एक दो दिन मे निकल जाएंगे यहां से. आप सब की शुभकामना के लिए आभारी है.
मेरी बेटी का नाम माही है
जब ये कहानी खत्म होगी, पहले पन्ने पर होंगी ये पंक्तियाँभले आज नही तुम संग सबके,
एक बार हमारी तो सोचो...
इश्क़ को वीरान जंगल मे जीके बितायी हूँ मैं...
पहले महावीर... फिर तुम कवीर....
इस घर तक तक, पल पल मर के आयी हूँ मैं...
ज़रा सोचो...
शिकायते तो बहुते होगी, तेरे अपने चाहने बालों से...
पर मेरा क्या, रुसवा रहूँ भी तो किस से रहूँ...
कहानी तो तुमने अपनी सुना दी सबको, मेरी कहानी क्या मै तुम से कहूँ...
ज़रा सोचो...
की क्या समा रही होगी उस शाम की, जब ज़माने ने मुझे डाकन कहा...
एक नवविवाहित स्त्री के मत्थे, कलंकनी का भयावह धब्बा पड़ा...
मूर्छित सी पड़ी, मै सब सुनती रही...
ज़माने ने जाने क्या कुछ न कहा...
सब से दूर चल, यादों का ये जंगल...
जब आशियाना बना, हम तुम मिले उसी पल...
_nisha_
आती हूं जल्दआओ कभी हवेली पर
मैं भी उत्सुक हूं क्या होगा उस कैमरा मेपता नही क्यूँ, पर ये अध्याय कहीं से भी अंत का संकेत नही दिखा रहा है, सब कुछ एक बार फिर से उलट पलट हो चुका है, निशा से उसके पूर्व पति के बारे मे जो बाते कवीर को पता चली वो कहीं से भी आभूमानु और नंदनी के दलीलों से मेल खाती हुई नही दिखती । हर एक छंद मे रोचकता भर भर के डाला है आपने जनाब । अब बस ये देखना है की आखिर उस कैमरे मे क्या क्या कांड छुपा हुआ है । आगे के लिए शुभकामनाएं ।
आती हूं जल्द
जब तक मेरी माँ नहीं बुलाएगी नहीं जाऊँगा देखते है उसकी जिद कब तक है
अरे, हम तो सोचे कुछ नया ट्राई किया जाएगा, पर आप तो...नहीं बताऊंगी![]()
नही, मेरे साथ नही पढ़ती थी।पिशाचनी को जानते हो ?