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अब जबकि कैमरा मेरे हाथ में था तो कहीं न कहीं मुझे बताई गयी बातो में से कुछ तो सच होंगी ही.जिस तरह से इसे छुपाया गया था ये तो पक्का था की कुछ तो बताने वाला था ये मुझे बक्से में कुछ नेगेटिव भी थे जिनमे से जायदा तर की हालत ठीक नहीं लगती थी पर गनीमत थी की कैमरा में रील थी. मैं तुरंत शहर में पहुच गया एक बार फिर मैं राज बुक स्टोर पर खड़ा था .
दूकान वाले ने पहली नजर में ही कैमरा को पहचान लिया , उसकी दूकान से ही ख़रीदा था . ये पक्का होने में देर नहीं लगी की ये महावीर की ही अमानत थी. दुकानदार ने मुझे मदद की , उसके बताये बन्दे के पास मैं नेगेटिव और वो रील लेकर गया. जल्दी से जल्दी मैं उन आने वाली तस्वीरों को देखना चाहता था .
शहर से वापिस आते हुए बार बार मेरे हाथ उस लिफाफे पर जा रहे थे जिसमे वो तस्वीरे थी, कायदे से मुझे शहर में ही खोल कर देख लेना चाहिए था पर मैं चाहता था की कुवे पर ही खोला जाये. जो खेल कुवे पर शुरू हुआ , उस अतीत को वहीँ पर देखने की अजीब इच्छा थी वो. तस्वीरे थी जवान तीन दोस्तों की , खेत में कीचड़ में खेलते हुए. जंगल में पेड़ो पर चढ़े हुए.अटखेलियो की. मैंने उन्हें साइड में रखा दुसरे लाट में महावीर की तस्वीरे थी , लम्बा-तगड़ा मूंछ रखने वाला गबरू. विलायती कपड़ो में खूब जंचता था वो.
मैंने नंदिनी भाभी की तस्वीरे देखि, अंजू की तस्वीरे देखि जंगल के किसी कोने में टहलते हुए. अब तक कुछ ख़ास नहीं था , पर तीसरी रील ने कहानी के असली पन्ने पलटने शुरू किये. मैंने चाचा की तस्वीरे देखि रमा के साथ आपतिजनक अवस्था, में आगे वो कविता के साथ था . पर सरला के साथ उसकी कोई तस्वीर नहीं थी . एक दो तस्वीरों के बाद वो फोटो आई जिसने मुझे हिला कर रख दिया. वो थी चाची की तस्वीरे, चाची की नहाते हुए तस्वीरे. कुछ में उनकी चुचियो को केन्द्रित किया था तो कुछ में पूरी नंगी पर ताजुब ये था की चाची की इन तस्वीरों में से एक भी हमारे घर की नहीं थी सारी तस्वीरे यही इसी कुवे की थी.
मतलब साफ़ था , फोटो खींचने वाले को मालूम था की चाची यहाँ भी नहाती है .अपने हाथो में चाची की नंगी तस्वीरे लिए मैं गहरी सोच में डूबा हुआ था . हो सकता था की महावीर ये कर्म कर रहा हो. जैसा की मुझ को बताया गया था महावीर ही लग रहा था इन सब के पीछे. पर अगली कुछ तस्वीरों ने फिर से मुझे उलझा दिया. कुछ तस्वीरे अंजू की थी , अंजू की नंगी तस्वीरे देखना अजीब , दरसल तस्वीरे अजीब नहीं थी बल्कि ऐसा लगता था की जैसे अंजू जानती हो की कोई उसकी तस्वीरे ले रहा हो.
फिर बारी आई उनकी जो अस्पष्ट थी . जिनके नेगेटिव समय के साथ नहीं चल पाए थे. उन तस्वीरों में भी कोई औरत थी , ये चुदाई की तस्वीरे थी इतना तो समझा जा सकता था पर कौन ये समझना मुश्किल था . साफ़ नहीं थी ऐसे ही उन तस्वीरों को एक के बाद एक देखते हुए एक तस्वीर पर मेरी नजर ठहर गयी . उस कड़े को मैं पहचान गया था ये चांदी का कड़ा मेरे बाप का था . पर औरत कौन थी ये साला मगजमारी का विषय हो गया था .
चंपा ने कहा था की प्रकाश ने उसे चाचा की तस्वीर दिखाई थी माँ को धक्का देते हुए . पर इनमे से वैसी कोई तस्वीर नहीं निकली. मतलब साफ़ था ये कैमरा से वो तस्वीर नहीं ली गयी या फिर उसे हटा दिया गया होगा. अब सवाल ये था की क्या महावीर को बाप की अय्याशी का मालूम था या फिर इसी तस्वीर की वजह से प्रकाश बाप पर दबाव बनाये हुए हो .
शाम ढलने लगी थी , घर जाने से पहले मैंने उन तस्वीरों को छिपाने का सोचा उन्हें रख ही रहा था की कुछ फोटो मेरे हाथ से गिर गयी उन्हें फिर से उठाया ही था की एक तस्वीर पर मेरी नजर पड़ी. ये कैसे अनदेखी रह गयी . घर वापिस लौटते हुए मेरे सर में बहुत तेज दर्द हो रहा था . मैं जाते ही रजाई में घुस गया .
“एक तो सारा दिन गायब थे, और अब आते ही रजाई ओढ़ ली ” ये निशा थी जो मेरे लिए चाय ले आई थी .
मैं- चाय रहने दे, बाम लगा दे सरमे दर्द हुए जा रहा है
निशा- अभी लाती हु.
रजाई ओढ़े ओढ़े ही मैं बैठ गया और निशा मेरे सर पर बाम लगाने लगी.
निशा- देख रही हूँ कुछ परेशान हो ,
मैं- ऐसी कोई बात नहीं
निशा- मुझसे झूठ बोल रहे हो , जानती हूँ की नाराज हो तुम
मैं- तुमसे क्यों नाराज होने लगा भला
निशा- मैंने तुमसे झूठ जो बोला
मैं- मुझे मालूम था की तुम्हे पता थी वो बात .
निशा- ये सच है कबीर की मैं महावीर के कातिल को तलाशती हु. ये भी सच है कबीर की महावीर आदमखोर था ये मालूम था मुझे. मुझे बिलकुल समझ नहीं आया की तुम्हे बताऊ या नहीं क्योंकि अतीत मेरे इस आज को कहीं ख़राब न कर दे. मैं डरती हूँ कबीर अब डरती हूँ .
मैं- मुझे हमेशा से पता था की तुझे मालूम था महावीर ही आदमखोर था , क्योंकि तूने मेरे साथ साथ उसके जख्मो का भी इलाज किया था . तेरा ये विश्वास , ये बता गया था.
निशा- तूने मुझे अपनाया . इतना मान दिया इस दामन को खुशियों से भर दिया . मैं नहीं चाहती थी की अतीत की किसी भी बात से तुझे दुःख हो. ये जानते हुए की मैं पहले किसी और की थी फिर भी तूने इतना इश्क किया मुझसे. मुझे लगा की छिपाना ही ठीक होगा.
मैं- तेरी मेरी डोर इतनी भी कमजोर नहीं मेरी जान . मैं महावीर को जानना चाहता हूँ , बता मुझे वो क्या था कैसा था .
निशा इस से पहले की कुछ कहती , कमरे में किसी के आने की आहट हुई और वो मुझसे अलग हो गयी...................
“ओह, मुझे दरवाजा खड़का कर आना चाहिए था पर क्या करे तुमने कुण्डी भी तो नहीं लगाईं ” अंजू ने अन्दर आते हुए कहा.
हम दोनों मुस्कुरा पड़े.
अंजू- वापिस जा रही थी सोची तुमसे मिलती हुई चलू इसी बहाने तुमको न्योता भी दे दूंगी मेरे घर खाने पर आने का .
निशा- ऐसे कैसे जा रही हो
अंजू- काम भी तो करना है न भाभी, वैसे भी कितने दिन हो गए यहाँ पड़े हुए.
मैं- निशा अब ले आओ चाय
निशा के बाहर जाते ही मैं अंजू से बोला-तुमसे एक जरुरी बात करनी थी
अंजू-किस बारे में
मैंने जेब से अंजू की वो तस्वीरे निकाली और उसके हाथ में दे दी. उसके चेहरे का रंग बदलने लगा.