Riky007
उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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राय साहब...#151
जब हम वहां पर पहुंचे तो वहां के हालात देख कर कहना मुश्किल था की एक बस्ती होती थी वहां पर. वक्त की बेरहमी ने उजाड़ दिया था सब कुछ. सामने था तो बस कुछ कच्ची मिटटी के घर जो बस नाम के रह गए थे .आबादी का तो कोई सवाल ही नहीं था. पर फिर भी एक उम्मीद थी दिल के किसी कोने में
निशा- कुछ भी तो नहीं यहाँ पर सिवाय इस बियाबान के
मैं- बियाबान होना ही इसे खास बनाता है निशा.
निशा- तुमको क्यों है इतनी दिलचस्पी
मैं- क्यों ना हो निशा, इस सोने से अब हम लोग भी जुड़े है कहीं न कहीं. रुडा ने कहा था की पिताजी एक रोज अचानक से गायब हो गए थे और वो बहुत दिन बाद लौटे थे. कहाँ थे वो इतने दिन. वो कुछ ढूंढ रहे थे , क्या . मुझे लगता है की सुनैना पिताजी के जायदा करीब थी. और उसने केवल सोना ही नहीं तलाश किया था उस सोने के साथ कुछ और भी था , कुछ ऐसा जिसने इन सब की जिदंगी बदल दी.
निशा- ऐसा क्या हो सकता है .
मैं- श्राप , निशा . वो सोना श्रापित था . कैसे ये तो नहीं जानता पर उस सोने ने सबसे पहले सुनैना को खाया और फिर दोनों दोस्तों को . और फिर उन सबको जिस जिस ने उनका लालच किया. महावीर ने सिर्फ सुनैना का अतीत ही नहीं जाना था बल्कि उस वजह को भी जान गया था जिसके लिए ये सब हुआ था .
निशा- तुमको पूरा यकीन है इस बात का .
मैं- निशा, अक्सर हमने कितने किस्से-कहानिया सुनी है , कुछ झूठी कुछ सच्ची . अब देखो न जंगल खुद अपनी कहानी सुना रहा है की नहीं. कितनी कहानियो में हमने सुना है की भूत-प्रेत किसी को वहां मिले वहां मिले ऐसे ही कहानिया एक पीढ़ी से दूसरी तक आती-जाती रहती है पर यहाँ इस कहानी में सच था वो सोना पर उसे सुनैना ने कैसे हासिल किया वो सोना किसका था उसे हासिल करने की क्या कीमत चुकाई और क्या थी वो कीमत.
निशा- बात तो सही कही तुमने पर कैसे मालूम होगा.
मैं- तलाशी करेंगे , इतिहास ने जब यहाँ बुला ही लिया है तो सबूत भी वो देगा अगर किसी ने सबूत छोड़ा होगा तो .
मैं और निशा बस्ती के हर एक हिस्से की गहराई से जांच करने लगे. कुछ घंटे बीत गए धुल मिटटी में सने हम लोग थकने लगे थे पर हाथ कुछ नहीं आया . और फिर निशा को एक मिटटी की संदूकची मिली . हमने उसे खोला तो कुछ चान्दी के आभूषण थे उसमे . उसके निचे एक लाल कपडा था मिटटी से सना हुआ धुल झाडी तो कुछ और मिला. एक तस्वीर थी श्वेत-श्याम तस्वीर जो जंगल में खींची गयी थी .
निशा- काफी पुरानी है ये तो
मैं- इसे रख लो .
डेरे की भोगोलिक स्तिथि को जांचने लगा. कल्पना करने लगा की जब ये आबाद होगा तो कैसा होगा और यहाँ से खंडहर कितनी दूर होगा भला. मैंने मिटटी में एक नक्सा सा बनाया और तमाम सम्भावनाये देखने लगा. रुडा-सुनैना-बिशम्भर त्रिदेव , तीन टुकड़े, त्रिकोण . त्रिकोण ओह तो ये था वो सुराग . मैंने अपने गले से चांदी का लाकेट उतारा और उसे उस नक़्शे पर रख दिया.
“चांदी शीतल है ये तुम्हे काबू में रखेगी ” अंजू के ये शब्द मेरे कानो में जैसे गूँज पड़े. जंगल में सबसे शीतल क्या था जल और जल था उस तालाब में .
मैं- निशा हमें और कहीं चलना होगा .
निशा- कहाँ कबीर.
मैं- तू जान जाएगी.
मैंने गाडी कुवे की पगडण्डी पर खड़ी की और निशा के साथ खंडहर पर पहुँच गए.
निशा- एक बार फिर यहाँ
मैं-यही पर छिपा है वो राज़ , ये कहानी जंगल में शुरू हुई खत्म भी यही पर होगी मेरी सरकार. ये पानी , ये तालाब निशा मेरी जान तूने बहुत देखा इसे मैने बहुत देखा इसे पर वो तली में पड़ा सोना , एक छलावा था . उफ्फ्फ काश मैं क्यों नहीं पहचान पाया इस जाल को .
मैंने तुरंत पानी में गोता लगा दिया. ठंडा पानी जैसे मुझे मार ही गया . एक बार बाहर आकर मैंने फेफड़ो में हवा भरी और दुबारा से तली की तरफ चला गया . मैंने निशा को अपने पीछे आते महसूस किया . सोना आज भी शान से वैसे ही पड़ा था . पर उसमे मेरी कोई दिलचश्पी नहीं थी . साँसों को हवा की जरुरत थी पर अब दिल में उमंग थी और कहते है न कोशिश करने वालो की कोई हार नहीं होती. उस बड़े से झूलते त्रिकोण को मैंने जोर लगा कर घुमाया और गजब हो गया. अपने साथ थोडा सा पानी लिए मैं अब जमीं पर खड़ा था ठोस काले पत्थरों का ये फर्श एक और गुप्त तहखाना था इस खंडहर का . बनाने वाले ने भी क्या गजब ही चीज बनाई थी ये.
“इस खंडहर को समझना मुश्किल है ” मेरे पीछे आती निशा ने कहा .
कुछ देर लगी हमें इस कमरे को समझने में पर जब समझा तो बहुत कुछ समझ आ गया . त्रिदेव तीन दोस्तों की कहानी , ये कहानी अगर शुरू हुई होगी तो इसी तहखाने से शुरू हुई होगी. कमरे के बीचो बीच एक स्टैंड था पत्थर कर जिस पर एक सरोखा रखा था जिसमे पानी नहीं था ताजा रक्त था .खून की महक को मैंने पल भर में पहचान लिया था . न जाने क्यों मेरी तलब बढ़ सी गयी उस खून को चखने की .
निशा- नहीं कबीर वो विचार त्याग दो . तुम वो नहीं हो तुम कभी नहीं बनोगे वो .
निशा ने मेरे हाथ को पकड़ लिया.
निशा- ताजा खून
मेरे दिमाग में सब कुछ तेजी से भाग रहा था . जंगल में हुई हत्याए . इसी खून के लिए हुई थी कोई तो था जिसकी प्यास इस खून से बुझाई जा रही थी . कोई तो था जो इस खून का इस्तेमाल कर रहां था पर कौन . कौन होगा वो मैं सोच ही रहा था की एक आवाज की वजह से हम दोनों कोने में छिप गए और मशाल लिए जो उस कमरे में आया .................
असली आदमखोर, और इकलौते असली वाले।
साथ में अंजू, जो इस खेल को खत्म करना चाहती है, तभी कबीर को हिंट दे रही है कई सारे।
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