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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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#151

जब हम वहां पर पहुंचे तो वहां के हालात देख कर कहना मुश्किल था की एक बस्ती होती थी वहां पर. वक्त की बेरहमी ने उजाड़ दिया था सब कुछ. सामने था तो बस कुछ कच्ची मिटटी के घर जो बस नाम के रह गए थे .आबादी का तो कोई सवाल ही नहीं था. पर फिर भी एक उम्मीद थी दिल के किसी कोने में

निशा- कुछ भी तो नहीं यहाँ पर सिवाय इस बियाबान के

मैं- बियाबान होना ही इसे खास बनाता है निशा.

निशा- तुमको क्यों है इतनी दिलचस्पी

मैं- क्यों ना हो निशा, इस सोने से अब हम लोग भी जुड़े है कहीं न कहीं. रुडा ने कहा था की पिताजी एक रोज अचानक से गायब हो गए थे और वो बहुत दिन बाद लौटे थे. कहाँ थे वो इतने दिन. वो कुछ ढूंढ रहे थे , क्या . मुझे लगता है की सुनैना पिताजी के जायदा करीब थी. और उसने केवल सोना ही नहीं तलाश किया था उस सोने के साथ कुछ और भी था , कुछ ऐसा जिसने इन सब की जिदंगी बदल दी.

निशा- ऐसा क्या हो सकता है .

मैं- श्राप , निशा . वो सोना श्रापित था . कैसे ये तो नहीं जानता पर उस सोने ने सबसे पहले सुनैना को खाया और फिर दोनों दोस्तों को . और फिर उन सबको जिस जिस ने उनका लालच किया. महावीर ने सिर्फ सुनैना का अतीत ही नहीं जाना था बल्कि उस वजह को भी जान गया था जिसके लिए ये सब हुआ था .

निशा- तुमको पूरा यकीन है इस बात का .

मैं- निशा, अक्सर हमने कितने किस्से-कहानिया सुनी है , कुछ झूठी कुछ सच्ची . अब देखो न जंगल खुद अपनी कहानी सुना रहा है की नहीं. कितनी कहानियो में हमने सुना है की भूत-प्रेत किसी को वहां मिले वहां मिले ऐसे ही कहानिया एक पीढ़ी से दूसरी तक आती-जाती रहती है पर यहाँ इस कहानी में सच था वो सोना पर उसे सुनैना ने कैसे हासिल किया वो सोना किसका था उसे हासिल करने की क्या कीमत चुकाई और क्या थी वो कीमत.

निशा- बात तो सही कही तुमने पर कैसे मालूम होगा.

मैं- तलाशी करेंगे , इतिहास ने जब यहाँ बुला ही लिया है तो सबूत भी वो देगा अगर किसी ने सबूत छोड़ा होगा तो .

मैं और निशा बस्ती के हर एक हिस्से की गहराई से जांच करने लगे. कुछ घंटे बीत गए धुल मिटटी में सने हम लोग थकने लगे थे पर हाथ कुछ नहीं आया . और फिर निशा को एक मिटटी की संदूकची मिली . हमने उसे खोला तो कुछ चान्दी के आभूषण थे उसमे . उसके निचे एक लाल कपडा था मिटटी से सना हुआ धुल झाडी तो कुछ और मिला. एक तस्वीर थी श्वेत-श्याम तस्वीर जो जंगल में खींची गयी थी .

निशा- काफी पुरानी है ये तो

मैं- इसे रख लो .

डेरे की भोगोलिक स्तिथि को जांचने लगा. कल्पना करने लगा की जब ये आबाद होगा तो कैसा होगा और यहाँ से खंडहर कितनी दूर होगा भला. मैंने मिटटी में एक नक्सा सा बनाया और तमाम सम्भावनाये देखने लगा. रुडा-सुनैना-बिशम्भर त्रिदेव , तीन टुकड़े, त्रिकोण . त्रिकोण ओह तो ये था वो सुराग . मैंने अपने गले से चांदी का लाकेट उतारा और उसे उस नक़्शे पर रख दिया.

“चांदी शीतल है ये तुम्हे काबू में रखेगी ” अंजू के ये शब्द मेरे कानो में जैसे गूँज पड़े. जंगल में सबसे शीतल क्या था जल और जल था उस तालाब में .

मैं- निशा हमें और कहीं चलना होगा .

निशा- कहाँ कबीर.

मैं- तू जान जाएगी.

मैंने गाडी कुवे की पगडण्डी पर खड़ी की और निशा के साथ खंडहर पर पहुँच गए.

निशा- एक बार फिर यहाँ

मैं-यही पर छिपा है वो राज़ , ये कहानी जंगल में शुरू हुई खत्म भी यही पर होगी मेरी सरकार. ये पानी , ये तालाब निशा मेरी जान तूने बहुत देखा इसे मैने बहुत देखा इसे पर वो तली में पड़ा सोना , एक छलावा था . उफ्फ्फ काश मैं क्यों नहीं पहचान पाया इस जाल को .

मैंने तुरंत पानी में गोता लगा दिया. ठंडा पानी जैसे मुझे मार ही गया . एक बार बाहर आकर मैंने फेफड़ो में हवा भरी और दुबारा से तली की तरफ चला गया . मैंने निशा को अपने पीछे आते महसूस किया . सोना आज भी शान से वैसे ही पड़ा था . पर उसमे मेरी कोई दिलचश्पी नहीं थी . साँसों को हवा की जरुरत थी पर अब दिल में उमंग थी और कहते है न कोशिश करने वालो की कोई हार नहीं होती. उस बड़े से झूलते त्रिकोण को मैंने जोर लगा कर घुमाया और गजब हो गया. अपने साथ थोडा सा पानी लिए मैं अब जमीं पर खड़ा था ठोस काले पत्थरों का ये फर्श एक और गुप्त तहखाना था इस खंडहर का . बनाने वाले ने भी क्या गजब ही चीज बनाई थी ये.

“इस खंडहर को समझना मुश्किल है ” मेरे पीछे आती निशा ने कहा .

कुछ देर लगी हमें इस कमरे को समझने में पर जब समझा तो बहुत कुछ समझ आ गया . त्रिदेव तीन दोस्तों की कहानी , ये कहानी अगर शुरू हुई होगी तो इसी तहखाने से शुरू हुई होगी. कमरे के बीचो बीच एक स्टैंड था पत्थर कर जिस पर एक सरोखा रखा था जिसमे पानी नहीं था ताजा रक्त था .खून की महक को मैंने पल भर में पहचान लिया था . न जाने क्यों मेरी तलब बढ़ सी गयी उस खून को चखने की .

निशा- नहीं कबीर वो विचार त्याग दो . तुम वो नहीं हो तुम कभी नहीं बनोगे वो .

निशा ने मेरे हाथ को पकड़ लिया.

निशा- ताजा खून


मेरे दिमाग में सब कुछ तेजी से भाग रहा था . जंगल में हुई हत्याए . इसी खून के लिए हुई थी कोई तो था जिसकी प्यास इस खून से बुझाई जा रही थी . कोई तो था जो इस खून का इस्तेमाल कर रहां था पर कौन . कौन होगा वो मैं सोच ही रहा था की एक आवाज की वजह से हम दोनों कोने में छिप गए और मशाल लिए जो उस कमरे में आया .................
राय साहब...

असली आदमखोर, और इकलौते असली वाले।

साथ में अंजू, जो इस खेल को खत्म करना चाहती है, तभी कबीर को हिंट दे रही है कई सारे।
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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जैसा मैने पहले भी कहा की हर पात्र दुसरे से जुड़ा है . हर किरदार की अपनी अलग कहानी है . तो जाहिर है सबका अपना अपना पक्ष होगा ही वैसे मैंने एक हिंट दिया था जिसे कोई भी पाठक नहीं समझा . बहुत आसान था वो हिंट . खैर , मजा लीजिये
सस्पेंस में सब पहले ही समझ जाएं तो क्या खाक सस्पेंस??
 

rangeen londa

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#151

जब हम वहां पर पहुंचे तो वहां के हालात देख कर कहना मुश्किल था की एक बस्ती होती थी वहां पर. वक्त की बेरहमी ने उजाड़ दिया था सब कुछ. सामने था तो बस कुछ कच्ची मिटटी के घर जो बस नाम के रह गए थे .आबादी का तो कोई सवाल ही नहीं था. पर फिर भी एक उम्मीद थी दिल के किसी कोने में

निशा- कुछ भी तो नहीं यहाँ पर सिवाय इस बियाबान के

मैं- बियाबान होना ही इसे खास बनाता है निशा.

निशा- तुमको क्यों है इतनी दिलचस्पी

मैं- क्यों ना हो निशा, इस सोने से अब हम लोग भी जुड़े है कहीं न कहीं. रुडा ने कहा था की पिताजी एक रोज अचानक से गायब हो गए थे और वो बहुत दिन बाद लौटे थे. कहाँ थे वो इतने दिन. वो कुछ ढूंढ रहे थे , क्या . मुझे लगता है की सुनैना पिताजी के जायदा करीब थी. और उसने केवल सोना ही नहीं तलाश किया था उस सोने के साथ कुछ और भी था , कुछ ऐसा जिसने इन सब की जिदंगी बदल दी.

निशा- ऐसा क्या हो सकता है .

मैं- श्राप , निशा . वो सोना श्रापित था . कैसे ये तो नहीं जानता पर उस सोने ने सबसे पहले सुनैना को खाया और फिर दोनों दोस्तों को . और फिर उन सबको जिस जिस ने उनका लालच किया. महावीर ने सिर्फ सुनैना का अतीत ही नहीं जाना था बल्कि उस वजह को भी जान गया था जिसके लिए ये सब हुआ था .

निशा- तुमको पूरा यकीन है इस बात का .

मैं- निशा, अक्सर हमने कितने किस्से-कहानिया सुनी है , कुछ झूठी कुछ सच्ची . अब देखो न जंगल खुद अपनी कहानी सुना रहा है की नहीं. कितनी कहानियो में हमने सुना है की भूत-प्रेत किसी को वहां मिले वहां मिले ऐसे ही कहानिया एक पीढ़ी से दूसरी तक आती-जाती रहती है पर यहाँ इस कहानी में सच था वो सोना पर उसे सुनैना ने कैसे हासिल किया वो सोना किसका था उसे हासिल करने की क्या कीमत चुकाई और क्या थी वो कीमत.

निशा- बात तो सही कही तुमने पर कैसे मालूम होगा.

मैं- तलाशी करेंगे , इतिहास ने जब यहाँ बुला ही लिया है तो सबूत भी वो देगा अगर किसी ने सबूत छोड़ा होगा तो .

मैं और निशा बस्ती के हर एक हिस्से की गहराई से जांच करने लगे. कुछ घंटे बीत गए धुल मिटटी में सने हम लोग थकने लगे थे पर हाथ कुछ नहीं आया . और फिर निशा को एक मिटटी की संदूकची मिली . हमने उसे खोला तो कुछ चान्दी के आभूषण थे उसमे . उसके निचे एक लाल कपडा था मिटटी से सना हुआ धुल झाडी तो कुछ और मिला. एक तस्वीर थी श्वेत-श्याम तस्वीर जो जंगल में खींची गयी थी .

निशा- काफी पुरानी है ये तो

मैं- इसे रख लो .

डेरे की भोगोलिक स्तिथि को जांचने लगा. कल्पना करने लगा की जब ये आबाद होगा तो कैसा होगा और यहाँ से खंडहर कितनी दूर होगा भला. मैंने मिटटी में एक नक्सा सा बनाया और तमाम सम्भावनाये देखने लगा. रुडा-सुनैना-बिशम्भर त्रिदेव , तीन टुकड़े, त्रिकोण . त्रिकोण ओह तो ये था वो सुराग . मैंने अपने गले से चांदी का लाकेट उतारा और उसे उस नक़्शे पर रख दिया.

“चांदी शीतल है ये तुम्हे काबू में रखेगी ” अंजू के ये शब्द मेरे कानो में जैसे गूँज पड़े. जंगल में सबसे शीतल क्या था जल और जल था उस तालाब में .

मैं- निशा हमें और कहीं चलना होगा .

निशा- कहाँ कबीर.

मैं- तू जान जाएगी.

मैंने गाडी कुवे की पगडण्डी पर खड़ी की और निशा के साथ खंडहर पर पहुँच गए.

निशा- एक बार फिर यहाँ

मैं-यही पर छिपा है वो राज़ , ये कहानी जंगल में शुरू हुई खत्म भी यही पर होगी मेरी सरकार. ये पानी , ये तालाब निशा मेरी जान तूने बहुत देखा इसे मैने बहुत देखा इसे पर वो तली में पड़ा सोना , एक छलावा था . उफ्फ्फ काश मैं क्यों नहीं पहचान पाया इस जाल को .

मैंने तुरंत पानी में गोता लगा दिया. ठंडा पानी जैसे मुझे मार ही गया . एक बार बाहर आकर मैंने फेफड़ो में हवा भरी और दुबारा से तली की तरफ चला गया . मैंने निशा को अपने पीछे आते महसूस किया . सोना आज भी शान से वैसे ही पड़ा था . पर उसमे मेरी कोई दिलचश्पी नहीं थी . साँसों को हवा की जरुरत थी पर अब दिल में उमंग थी और कहते है न कोशिश करने वालो की कोई हार नहीं होती. उस बड़े से झूलते त्रिकोण को मैंने जोर लगा कर घुमाया और गजब हो गया. अपने साथ थोडा सा पानी लिए मैं अब जमीं पर खड़ा था ठोस काले पत्थरों का ये फर्श एक और गुप्त तहखाना था इस खंडहर का . बनाने वाले ने भी क्या गजब ही चीज बनाई थी ये.

“इस खंडहर को समझना मुश्किल है ” मेरे पीछे आती निशा ने कहा .

कुछ देर लगी हमें इस कमरे को समझने में पर जब समझा तो बहुत कुछ समझ आ गया . त्रिदेव तीन दोस्तों की कहानी , ये कहानी अगर शुरू हुई होगी तो इसी तहखाने से शुरू हुई होगी. कमरे के बीचो बीच एक स्टैंड था पत्थर कर जिस पर एक सरोखा रखा था जिसमे पानी नहीं था ताजा रक्त था .खून की महक को मैंने पल भर में पहचान लिया था . न जाने क्यों मेरी तलब बढ़ सी गयी उस खून को चखने की .

निशा- नहीं कबीर वो विचार त्याग दो . तुम वो नहीं हो तुम कभी नहीं बनोगे वो .

निशा ने मेरे हाथ को पकड़ लिया.

निशा- ताजा खून


मेरे दिमाग में सब कुछ तेजी से भाग रहा था . जंगल में हुई हत्याए . इसी खून के लिए हुई थी कोई तो था जिसकी प्यास इस खून से बुझाई जा रही थी . कोई तो था जो इस खून का इस्तेमाल कर रहां था पर कौन . कौन होगा वो मैं सोच ही रहा था की एक आवाज की वजह से हम दोनों कोने में छिप गए और मशाल लिए जो उस कमरे में आया .................
RAY SAAHAB KI ENTRY
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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कभी कभी मुर्दे भी बोलने लग जाते हैं 🌞🌞
जब तक मुर्दे ना बोले असली राज नही खुलते।
 

Riky007

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जैसा मैने पहले भी कहा की हर पात्र दुसरे से जुड़ा है . हर किरदार की अपनी अलग कहानी है . तो जाहिर है सबका अपना अपना पक्ष होगा ही वैसे मैंने एक हिंट दिया था जिसे कोई भी पाठक नहीं समझा . बहुत आसान था वो हिंट . खैर , मजा लीजिये
उस हिंट को अगर किसी ने पकड़ा भी होगा तो आपने गोली दे दी होगी उसे, अंजू तो जुड़ी ही है सबसे लॉकेट के साथ, पर लॉकेट पर आप हर बार गोली देते रहे हैं।
 

Mehup

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#148

“इस तरह देखने की जरुरत नहीं है चौधरी साहब , जब सबके नकाब उतर रहे है तो आपका चेहरा कैसे बच जायेगा. माना की रात बहुत लम्बी हुई पर सुबह की एक किरण बहुत होती है रात के अँधेरे को चीरने के लिए. रमा के पति को क्यों मारा ” मैंने सवाल किया.

रुडा- मैं, भला मैं क्यों मारूंगा उसे.

मैं- ये तो आप जानते है . मुझे तो बस इतना मालुम है की उसको आपने मारा क्यों मारा ये बता कर आप मेरी उत्सुकता खत्म कर सकते है .

रुडा- उसे एक बिमारी थी , वही बीमारी जो तुमको है . जरुरत से ज्यादा जानने की बिमारी. उसकी गांड में एक कीड़ा कुलबुला रहा था . ये जंगल इसमें कुछ भी छिपाना ना मुमकिन है उस चूतिये का लालच . क्या ही कहे . रमा की कीमत चाहिए थी उसे और कीमत क्या मांगी उसने हिस्सेदारी हम से हिस्सेदारी. हम से कबीर. हमारे टुकडो पर पलने वाले हमारे बराबर बैठने की बात करे लगे थे . सोना चाहिए था उसको , सोना . साला दो कौड़ी का नौकर हमने उसे सोना दिया. सदा के लिए सुला दिया उसे.

मैं-पर कोई था जिसने उस क़त्ल को होते हुए देखा.

रुडा- आंह ,जैसा हमने कहा ये दुनिया चुतियो से भरी है . महावीर . उसको भी यही बीमारी थी जो तुमको है दुसरो के मामलो में नाक घुसना , क्या कमी थी उसको . जवान था मौज करता. पर उसे जंगल का सच जानना था वो सच जिसे छुपाते छुपाते हमारी जुती घिस गयी . न जाने लोग क्यों नहीं समझते की जिन्दगी कोआज में जीना चाहिए . जब मैं तुमको देखता हूँ न तो मुझे कभी भी तुम नहीं दिखे कबीर, मैंने हमेशा महावीर को देखा. किसी ने तुम्हे नहीं बताया होगा पर मैं तुम्हे बताता हूँ वो तुम सा ही था . उसके सीने में दिल था जो धडकता था अपने लोगो के लिए.



सवाल बहुत करता था वो . मैंने क्या नहीं दिया उसे पर उस चूतिये को शौक था ऊँगली करने का . न जाने कैसे उसने सोने के राज को मालूम कर लिया था . चलो ठीक था इतना भी हमारे बाद हमारी औलादों को ही काम आता वो .



मैं ख़ामोशी से रुडा को देख रहा था कुछ पल पहले वो मुझे दर्द भरी कहानी सूना रहा था और मेरे एक सवाल ने उसके चेहरे पर पुते रंग को बहाना शुरू कर दिया था

मैं- महावीर को सोना नहीं चाहिए था कभी भी .

रुडा- सही समझे तुम . जानता था की तुम समझोगे इस बात को

मैं- महावीर की दिलचस्पी कभी नहीं थी सोने में. उसे तलाश थी किसी की

रुडा- उसे तलाश थी कातिल की

मैं- सुनैना के कातिल की . मुझे लगा ही था . मैंने सोचा था इस बारे में पर कड़ी अब जाकर जुडी है . कड़ी थी सुनैना और उसके बच्चे उस रात सुनैना को एक नहीं दो औलाद पैदा हुई थी . महावीर सुनैना का बेटा था .

न जाने क्यों मेरे पैरो तले जमीं खिसकने लगी थी . क्योंकि इस सच ने तमाम लोगो को कटघरे में खड़ा कर दिया था . महावीर को साजिश के तहत मारा गया था तो उस साजिश में भैया, भाभी और अंजू भी शामिल थे. इतना कमजोर मैंने पहले कभी नहीं महसूस किया था खुद को. सच के आखिर कितने रूप हो सकते है

रुडा- सच , कबीर, सच , अपने आप में अनोखा अप्रतिम . सच से खूबसूरत कुछ नहीं सच से घिनोना कुछ नहीं. महावीर को मालूम हो गया था की उसकी माँ का कातिल कौन है . रिश्तो के बोझ से दबा वो बदहवास भटक रहा था और फिर उसने मुझे रमा के पति को मारते हुए देखा, उसका सब्र टूट गया. और ना चाहते हुए भी मुझे वो फैसला लेना पड़ा जिसकी वजह से आज हम दोनों यहाँ पर है .

मैं- महावीर के क़त्ल का फैसला

रुडा- क्या करे, दुनियादारी असी ही चीज है

मैं- पर कैसे. उसे तो ...

“उसे तो किसी और ने घायल किया था . जंगल में घायल पड़ा था वो . कमजोर सांसे लड़ रही थी जिन्दगी से . गोलियों के घाव गहरे थे . उसी दोपहर उसकी और मेरी लड़ाई हुई थी . बदहवासी , बेखुदी में बस वो निशा को पुकारे जा रहा था . वो उसे बताना चाहता था कुछ

मैं- क्या बताना चाहता था .

रुडा- डायन , महावीर के अंतिम शब्द डायन थे.जानता है कबीर कोई भी आज तक उसके कातिल को क्यों नहीं तलाश कर पाया.

मैं- क्योंकि कोई नही जानता की उसका कातिल उसका बाप है.

मेरे ये शब्द मेरे गले की फांस बन गए, मेरी आँखों से आंसू बह चले. बेशक महावीर मेरा कुछ नहीं लगता था पर फिर भी मेरे मन में संवेदना थी उसके लिए. एक पल के लिए मेरे और रुडा के दरमियान बर्फ सी जम गयी . इन्सान से घटिया और कोई जानवर नहीं . मैं दो पल के लिए अपने ख्यालो में खो गया और जब होश आया तो मेरे बदन में कुछ नुकीला सा घुस चूका था . दर्द को मैंने बस महसूस किया . कुछ बोल नहीं पाया.

“जानता है महावीर के कातिल को कोई भी नहीं तलाश कर पाया क्योंकि कोई जान ही नहीं पाया . तूने जाना अब तू भी नहीं रहेगा. ये राज तेरे साथ ही दफन हो जायेगा ” रुडा ने चाकू को दुबारा से मेरे पेट में घुसेदा.

मैं कुछ भी नहीं बोल पाया अचानक से हुए हमले ने मुझे स्तब्ध कर दिया था . मैं समाधी के पत्थरों पर गिर गया .

रुडा- जैसा मैंने कहा दुनिया चुतियो से भरी है , तू उन चुतियो का सरदार है . क्या नहीं मिल रहा था तुझे. यहाँ तक निशा भी दी तुझे सोचा की उसके साथ जी लेगा तू पर तुझे तो सच जानना था , देख सच , सच ये है की तू मरने वाला है तेरी लाश कहाँ गायब हो गयी कोई नहीं जान पायेगा.

रुडा ने अबकी बार मेरे सीने पर धार लगाई चाक़ू की . और मेरी आवाज गले से बाहर निकली.

“निशा ” मेरे होंठो से ये ही पुकार निकली.

रुडा- कैसा अजीब इतीफाक है न ये, तू भी निशा को ही पुकार रहा है . मोहब्बत भी साली क्या ही होती है हम तो कभी समझ ही नहीं पाए इस बला को . हमें तो चुदाई से ही फुर्सत ना मिली और तुम हो के साले मरने को मर रहे हो फिर भी इश्क का भूत नहीं उतर रहा.

“मैं नहीं मरूँगा रुडा , मुझे जीना है मेरी जान के साथ मुझे जीना है निशा के साथ . ” मैंने पूरी ताकत लगाई और रुडा को अपने ऊपर से हटाने की कोशिश करने लगा. पर कामयाब नहीं हो पाया.

रुडा ने दो थप्पड़ मारे मुझे और बोला-बस जल्दी ही तू इस दर्द से आजाद होकर हमेशा के लिए सो जाएगा.


रुडा के मजबूत हाथ मेरा गला दबाने लगे . मैं हाथ पाँव तो पटक रहा था पर जोर नहीं चल रहा था और जब लगा की सांसो की डोर अब टूट ही गयी . मेरे मन के अन्दर सोया जानवर जाग ही गया था की तभी मैंने रुडा पर अपने सियार को छलांग लगाते हुए देखा. और अगले ही पल रुडा की पीठ पर एक जोर का लट्ठ पड़ा . रुडा जमीं पर गिर गया .
Mast
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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सस्पेंस में सब पहले ही समझ जाएं तो क्या खाक सस्पेंस??

जब तक मुर्दे ना बोले असली राज नही खुलते।

उस हिंट को अगर किसी ने पकड़ा भी होगा तो आपने गोली दे दी होगी उसे, अंजू तो जुड़ी ही है सबसे लॉकेट के साथ, पर लॉकेट पर आप हर बार गोली देते रहे हैं।
:D लेखक का काम है है कि पाठकों को कभी समझने ना दे. जैसा मैंने हर बार कहा कि हर कहानी अपने किरदार खुद चुन लेती है यहां भी ऐसा ही है. इस कहानी को समझने के लिए महावीर को समझो. सब कुछ यही है
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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फौजी भाई हम कोई कबीर थोड़े ही हैं जो सवाल का जवाब मांगते रहें.............. :confused:
हम तो अपडेट से ही गुजारा कर लेंगे :D
नयी जगह का सन्नाटा एक बेचैनी दे रहा है मुझे क्या पता एक नयी कहानी अंगड़ाई ले रही हो. ये हवेलि भी कुछ छिपाए हुई है क्या
 

Froog

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फौजी भाई आज के चारों अपडेट बहुत से सबालो के जबाब बेशक दिये परन्तु आपके हर अपडेट का अन्त एक नया सबाल जरूर पाठकों को लिए छोड़ कर जाता है
 

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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Hume pata tha Nisha hi aayegi kyuki siyaar Nisha or Kabir ke alawa kisi ke saath nahi rahta hai...
निशा- जीना है मुझे तेरे साथ .

मैं- ये जन्म अगला जनम हर जन्म मेरी जान जीना तेरे साथ मरना तेरी बाँहों में .
:love2:

Sunaina ka sach jaane ke baad hume ruda se or bhi jaada nafrat ho gayi hai ye kahna sahi honga ki paiso ki laalch ki wajah usne ye sab kiya had se jaada ghatiya, Nich wyakti hai wo use maut de do to bhi kam hai.

Raay Sahab ka jikra hua lekin hamesha ki taraf unka palla saaf hi nazar aaya aisa kuch galat nahi dikha hume, ayyash to hai wo isme koi shak nahi..

 
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