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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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Ruda ki laakh koshisho ke baad bhi sach saamne aa hi gaya or uske gunaho ko dekhkar maut ki saza bhi uske liye kam hai, itne saalo se Nisha ke dil me jo dard tha wah bahar aa raha tha.

Har kisi ki kahani jhoothi saabit ho rahi hai mukhauto ke piche ke asal chahre saamne aa rahe hai, koi insaan Kitna niche tak gir sakta hai dikh raha hai..

Dekhte hai dere me konsa raaz khulta hai.
 

Game888

Hum hai rahi pyar ke
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Behtareen updates funtastic maaza agaya padkar awesome
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
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#150



“क्या कहा था उसने मरने से पहले ”निशा ने चीखते हुए रुडा के सर पर लट्ठ मारा . चीखती रही वो मारती रही. बरसो से उसके मन में भरा दर्द आज क्रोध बन कर बह रहा था . मेरे सामने वो कत्ल कर रही थी पर मैंने उसे रोका नहीं, ये दर्द, ये गम बह जाना चाहिए था .निशा जब थमी तो मैंने उसे अपने सीने से लगा लिया. कुवे पर आकर मैंने उसे खून साफ़ करने को कहा. मैंने अपने जख्म को देखा. ऐतिहत के लिए मैंने उस पर पट्टी बाँध ली. घर जाने को अब समय भी नहीं था . हम लोग वही पर सो गए.



“उठ भी जाओ , चाय लो ” निशा ने मुझे जगाते हुए कहा. मैंने कप लिया उसके हाथ से और बाहर कुवे की मुंडेर पर आकर बैठ गया . महावीर का कातिल, खंडहर के कमरों का रहस्य खुल गया था . पर अभी भी काफी सवाल बाकी थे. कहानी में रुडा का पक्ष जान लिया था अब बारी थी राय साहब के नकाब उतारने की. जब मैं जानता था की महावीर वो आदमखोर नहीं था तो फिर भैया-भाभी-अंजू ने क्यों जोर देकर कहा की महावीर ही था इस बात की पुष्टि करनी थी . अब किसी पर भी यकीन नहीं करना था ये साले सब एक दुसरे से जुड़े थे , सब झूठे थे.



“क्या सोच रहे हो ” निशा ने मेरे पास बैठते हुए कहा.

मैं- हमें शहर जाना होगा अंजू के घर .

निशा- वहां पर क्यों

मैं- अंजू के बारे में तुम कितना जानती हो. कल रात के बाद अब लगता है की उसकी सकशियत सिर्फ ये नहीं है की वो अमीर जमींदार की बेटी है . वो कुछ और भी है . राय साहब ने महावीर और अंजू को अपने संरक्षण में लिया तो क्यों लिया , आखिर क्यों चाहते थे वो की ये दोनों बच्चे बड़े हो जिए इस दुनिया में .

निशा- जहाँ भी चलना है चल पर अबसे मैं तुझे एक पल भी अकेला नहीं छोडूंगी

मैं-हाय मेरी जान

मैंने निशा को अपनी बाँहों में उठाया और कमरे में लेकर घुस गया .

घर पहुंचे तो भाभी आँगन में ही थी. हमें देख कर बोली- कहाँ थी जोड़ी रात भर .

मैं- कुवे पर थे . हमको ये घर कहाँ रास आता है .

भाभी- बता कर जाया करो जहाँ भी जाना हो .

मैं- नाहा कर आता हूँ

भाभी- निशा यहाँ आओ

भाभी निशा को लेकर अन्दर चली गयी . मैं जब नहा कर आया तो देखा की चाची, निशा और भाभी बाते कर रही थी ..

चाची- कबीर, वो मालूम कर न सरला क्यों नहीं आ रही . मैंने कल भी बुलावा भेजा था पर वो आई नहीं.

मैं-वो नहीं आएगी उसने काम करने से मना कर दिया . ब्याह वाले दिन जो हुआ उसके बाद डर गयी वो.

चाची- समझती हूँ . पर ये मंगू भी न जाने कहाँ गायब है न घर पे आया न यहाँ पे आया. कोई बताता भी नहीं किस काम गया है वो . पता नहीं क्यों ऐसा लगता है की सब कामचोर हो गए है .

मैं- आ जायेगा चाची, वैसे भी कई कई दिन वो गायब रहता है गया होगा यही कहीं, खैर, मैं मालूम करूँगा.

मैं- अंजू न दिख रही .

भाभी- वो तो कल ही शहर लौट गयी.

चोबारे में आईने के सामने खड़ा मैं कपडे बदल रहा था मेरे सीने में लटकता चांदी का लाकेट झूल रहा था .माहवीर का ये लाकेट कुछ तो कहना चाहता था मुझसे. अंजू के अनुसार उसने गोलिया मारी थी उसे. अक्सर हम उन चीजो से दूर भागते है जिनके लिए हमारे मन में पश्चाताप होता है , हम पश्चाताप की कोई निशानी नहीं रखते तो फिर क्या वजह थी जो अंजू इस लाकेट को पहनती थी जो हर पल उसे महावीर की याद दिलाता अपने किये कर्म की याद दिलाता. क्या कारण था फिर अंजू का ये लाकेट पहनने का.

क्या था ये लाकेट, क्या कहानी थी इसकी. इस लाकेट ने मुझे खंडहर के छिपे कमरे दिखाए थे क्या पता ये लाकेट कुछ ऐसा भी जानता हो जो छिपा हो.

“सच बड़ा अनोखा होता है , सच बड़ा घिनोना होता है ” रुडा के कहे शब्द मैंने सीने में उतरते महसूस किये. महावीर इसलिए मरा की वो कुछ जान गया था , सच पर कैसा सच किसका सच. मैंने कपडे पहने और तुरंत निचे आया और भाभी के पास गया सीधा- मैं भैया की गाडी चाहिए मुझे

भाभी- इसमें पूछने की क्या जरुरत .

मैं- आज तक उसे कभी हाथ नहीं लगाया न

भाभी- चाबी खूँटी पर होगी वैसे कहाँ जाने का सोचा है .

मैं- निशा को घुमा कर लाना चाहता हूँ

भाभी- एक मिनट रुको जरा

भाभी अन्दर गयी और नोटों की गड्डी लेकर आई.

मैं- इसकी जरुरत नहीं

भाभी- रख लो.

भाभी ने मेरे सर पर हलके से हाथ मारा और बोली- नई शुरुआत है जिन्दगी की रात को समय से लौट जाया करो.

मैंने निशा को इशारा किया और हम लोग गाँव से बाहर निकल गए.

निशा- कहाँ

मैं- वहां जहा बहुत पहले जाना चाहिए था .बंजारों के डेरे पर.

निशा- डेरा तो बरसो पहले तबाह हो गया.

मैं- तबाही के निशान ही तो देखने है सरकार. अभी भी कुछ ऐसा है जो छिपा है

निशा- तू छोड़ क्यों नहीं देता ये जिद, तू कहे तो हम यहाँ से दूर चले जाएँगे . एक छोटा सा घर कहीं और बसा लेंगे जहाँ कोई नहीं होगा. कोई अतीत नहीं , होगा तो बस आने वाला खूबसूरत कल.

मैं- यहाँ से कहाँ जायेंगे सरकार. इस मिटटी में जिए है इसी में मरेंगे . तेरे कहने से गाँव छोड़ दूंगा पर दिल से कैसे निकाल पाऊंगा इसको . किसान हूँ यहाँ की मिटटी को पसीने से सींचा है . जहाँ भी जायेंगे इस मिटटी की महक साथ रहेगी .

निशा-क्यों है तू ऐसा.

मैं- नियति जाने .


मैंने गाड़ी की रफ़्तार और तेज कर दी. जल्दी से जल्दी हम उस जगह पर जाना चाहते थे जहाँ डेरा होता था कभी और जब हम वहां पर पहुंचे तो .......................
Bhai silsilewar sab raajo ki Parate hat-ti ja rahi hai, ab dere me ja kar kya milega ye to niyati (foji bhai) jaane.
Great update with awesome writing Skills
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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मित्रों आपको reply नहीं दे पा रहा इसके लिए माफी चाहूँगा, नयी जगह पर बसे है काम चल रहा है कुछ मरम्मत है कुछ तार बंदी, बिजली लगा ली है बाकी काम भी हो जाएंगे उम्मीद है कि आपका सहयोग रहेगा.
Koi baat Nahi foji bhai aap update De rahe ho samay nikal kar ye kya kam hai.
 

ASR

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Divine
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ये मेरे वो प्रश्न है जिसके जवाब फौजी भाई को कहानी खत्म होने से पहले देना पड़ेगा

हालंकि कुछ प्रश्न के जवाब मिले है लेकिन उन जवाबों में सब उल्टा पुल्टा हो गया है तो फिर से review करना पड़ेगा उनका
अद्भुत 😍 मित्र यहां तो एक से बढ़कर एक धुरंधरों की भरमार है 😍.. इंन प्रतिक्रियाएं मे कई पहेलियां के जबाब है कहानी की बारीकियों को समेटा गया है लेखक के प्रति असीम प्यार है 😍... सबसे ज्यादा लेखक को अपनी कहानी मे निरंतरता बनाय रखने मे सहयोग मिलता है 😍.. जय हो 💞💓💕❤️🤗👀👓👁️‍🗨️👓👁️‍🗨️🥈🚅
 

ASR

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#151

जब हम वहां पर पहुंचे तो वहां के हालात देख कर कहना मुश्किल था की एक बस्ती होती थी वहां पर. वक्त की बेरहमी ने उजाड़ दिया था सब कुछ. सामने था तो बस कुछ कच्ची मिटटी के घर जो बस नाम के रह गए थे .आबादी का तो कोई सवाल ही नहीं था. पर फिर भी एक उम्मीद थी दिल के किसी कोने में

निशा- कुछ भी तो नहीं यहाँ पर सिवाय इस बियाबान के

मैं- बियाबान होना ही इसे खास बनाता है निशा.

निशा- तुमको क्यों है इतनी दिलचस्पी

मैं- क्यों ना हो निशा, इस सोने से अब हम लोग भी जुड़े है कहीं न कहीं. रुडा ने कहा था की पिताजी एक रोज अचानक से गायब हो गए थे और वो बहुत दिन बाद लौटे थे. कहाँ थे वो इतने दिन. वो कुछ ढूंढ रहे थे , क्या . मुझे लगता है की सुनैना पिताजी के जायदा करीब थी. और उसने केवल सोना ही नहीं तलाश किया था उस सोने के साथ कुछ और भी था , कुछ ऐसा जिसने इन सब की जिदंगी बदल दी.

निशा- ऐसा क्या हो सकता है .

मैं- श्राप , निशा . वो सोना श्रापित था . कैसे ये तो नहीं जानता पर उस सोने ने सबसे पहले सुनैना को खाया और फिर दोनों दोस्तों को . और फिर उन सबको जिस जिस ने उनका लालच किया. महावीर ने सिर्फ सुनैना का अतीत ही नहीं जाना था बल्कि उस वजह को भी जान गया था जिसके लिए ये सब हुआ था .

निशा- तुमको पूरा यकीन है इस बात का .

मैं- निशा, अक्सर हमने कितने किस्से-कहानिया सुनी है , कुछ झूठी कुछ सच्ची . अब देखो न जंगल खुद अपनी कहानी सुना रहा है की नहीं. कितनी कहानियो में हमने सुना है की भूत-प्रेत किसी को वहां मिले वहां मिले ऐसे ही कहानिया एक पीढ़ी से दूसरी तक आती-जाती रहती है पर यहाँ इस कहानी में सच था वो सोना पर उसे सुनैना ने कैसे हासिल किया वो सोना किसका था उसे हासिल करने की क्या कीमत चुकाई और क्या थी वो कीमत.

निशा- बात तो सही कही तुमने पर कैसे मालूम होगा.

मैं- तलाशी करेंगे , इतिहास ने जब यहाँ बुला ही लिया है तो सबूत भी वो देगा अगर किसी ने सबूत छोड़ा होगा तो .

मैं और निशा बस्ती के हर एक हिस्से की गहराई से जांच करने लगे. कुछ घंटे बीत गए धुल मिटटी में सने हम लोग थकने लगे थे पर हाथ कुछ नहीं आया . और फिर निशा को एक मिटटी की संदूकची मिली . हमने उसे खोला तो कुछ चान्दी के आभूषण थे उसमे . उसके निचे एक लाल कपडा था मिटटी से सना हुआ धुल झाडी तो कुछ और मिला. एक तस्वीर थी श्वेत-श्याम तस्वीर जो जंगल में खींची गयी थी .

निशा- काफी पुरानी है ये तो

मैं- इसे रख लो .

डेरे की भोगोलिक स्तिथि को जांचने लगा. कल्पना करने लगा की जब ये आबाद होगा तो कैसा होगा और यहाँ से खंडहर कितनी दूर होगा भला. मैंने मिटटी में एक नक्सा सा बनाया और तमाम सम्भावनाये देखने लगा. रुडा-सुनैना-बिशम्भर त्रिदेव , तीन टुकड़े, त्रिकोण . त्रिकोण ओह तो ये था वो सुराग . मैंने अपने गले से चांदी का लाकेट उतारा और उसे उस नक़्शे पर रख दिया.

“चांदी शीतल है ये तुम्हे काबू में रखेगी ” अंजू के ये शब्द मेरे कानो में जैसे गूँज पड़े. जंगल में सबसे शीतल क्या था जल और जल था उस तालाब में .

मैं- निशा हमें और कहीं चलना होगा .

निशा- कहाँ कबीर.

मैं- तू जान जाएगी.

मैंने गाडी कुवे की पगडण्डी पर खड़ी की और निशा के साथ खंडहर पर पहुँच गए.

निशा- एक बार फिर यहाँ

मैं-यही पर छिपा है वो राज़ , ये कहानी जंगल में शुरू हुई खत्म भी यही पर होगी मेरी सरकार. ये पानी , ये तालाब निशा मेरी जान तूने बहुत देखा इसे मैने बहुत देखा इसे पर वो तली में पड़ा सोना , एक छलावा था . उफ्फ्फ काश मैं क्यों नहीं पहचान पाया इस जाल को .

मैंने तुरंत पानी में गोता लगा दिया. ठंडा पानी जैसे मुझे मार ही गया . एक बार बाहर आकर मैंने फेफड़ो में हवा भरी और दुबारा से तली की तरफ चला गया . मैंने निशा को अपने पीछे आते महसूस किया . सोना आज भी शान से वैसे ही पड़ा था . पर उसमे मेरी कोई दिलचश्पी नहीं थी . साँसों को हवा की जरुरत थी पर अब दिल में उमंग थी और कहते है न कोशिश करने वालो की कोई हार नहीं होती. उस बड़े से झूलते त्रिकोण को मैंने जोर लगा कर घुमाया और गजब हो गया. अपने साथ थोडा सा पानी लिए मैं अब जमीं पर खड़ा था ठोस काले पत्थरों का ये फर्श एक और गुप्त तहखाना था इस खंडहर का . बनाने वाले ने भी क्या गजब ही चीज बनाई थी ये.

“इस खंडहर को समझना मुश्किल है ” मेरे पीछे आती निशा ने कहा .

कुछ देर लगी हमें इस कमरे को समझने में पर जब समझा तो बहुत कुछ समझ आ गया . त्रिदेव तीन दोस्तों की कहानी , ये कहानी अगर शुरू हुई होगी तो इसी तहखाने से शुरू हुई होगी. कमरे के बीचो बीच एक स्टैंड था पत्थर कर जिस पर एक सरोखा रखा था जिसमे पानी नहीं था ताजा रक्त था .खून की महक को मैंने पल भर में पहचान लिया था . न जाने क्यों मेरी तलब बढ़ सी गयी उस खून को चखने की .

निशा- नहीं कबीर वो विचार त्याग दो . तुम वो नहीं हो तुम कभी नहीं बनोगे वो .

निशा ने मेरे हाथ को पकड़ लिया.

निशा- ताजा खून


मेरे दिमाग में सब कुछ तेजी से भाग रहा था . जंगल में हुई हत्याए . इसी खून के लिए हुई थी कोई तो था जिसकी प्यास इस खून से बुझाई जा रही थी . कोई तो था जो इस खून का इस्तेमाल कर रहां था पर कौन . कौन होगा वो मैं सोच ही रहा था की एक आवाज की वजह से हम दोनों कोने में छिप गए और मशाल लिए जो उस कमरे में आया .................
HalfbludPrince मुसाफिर आज तो पूरा वीक एंड का मजा दिला रहे हो 😍....
तू सी तो आज बिल्कुल न रुकना एसी भी प्रतिक्रिया देने बीच न रुकेंगे... बहुत से प्रश्नों के उत्तर मिले हैं तो कई प्रश्नों के उत्तर बाकी है 😍...
दिल 💖💓से अगले घटनाक्रम के इंतजार में 😊 💕 💖
 

Raj_sharma

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जब हम वहां पर पहुंचे तो वहां के हालात देख कर कहना मुश्किल था की एक बस्ती होती थी वहां पर. वक्त की बेरहमी ने उजाड़ दिया था सब कुछ. सामने था तो बस कुछ कच्ची मिटटी के घर जो बस नाम के रह गए थे .आबादी का तो कोई सवाल ही नहीं था. पर फिर भी एक उम्मीद थी दिल के किसी कोने में

निशा- कुछ भी तो नहीं यहाँ पर सिवाय इस बियाबान के

मैं- बियाबान होना ही इसे खास बनाता है निशा.

निशा- तुमको क्यों है इतनी दिलचस्पी

मैं- क्यों ना हो निशा, इस सोने से अब हम लोग भी जुड़े है कहीं न कहीं. रुडा ने कहा था की पिताजी एक रोज अचानक से गायब हो गए थे और वो बहुत दिन बाद लौटे थे. कहाँ थे वो इतने दिन. वो कुछ ढूंढ रहे थे , क्या . मुझे लगता है की सुनैना पिताजी के जायदा करीब थी. और उसने केवल सोना ही नहीं तलाश किया था उस सोने के साथ कुछ और भी था , कुछ ऐसा जिसने इन सब की जिदंगी बदल दी.

निशा- ऐसा क्या हो सकता है .

मैं- श्राप , निशा . वो सोना श्रापित था . कैसे ये तो नहीं जानता पर उस सोने ने सबसे पहले सुनैना को खाया और फिर दोनों दोस्तों को . और फिर उन सबको जिस जिस ने उनका लालच किया. महावीर ने सिर्फ सुनैना का अतीत ही नहीं जाना था बल्कि उस वजह को भी जान गया था जिसके लिए ये सब हुआ था .

निशा- तुमको पूरा यकीन है इस बात का .

मैं- निशा, अक्सर हमने कितने किस्से-कहानिया सुनी है , कुछ झूठी कुछ सच्ची . अब देखो न जंगल खुद अपनी कहानी सुना रहा है की नहीं. कितनी कहानियो में हमने सुना है की भूत-प्रेत किसी को वहां मिले वहां मिले ऐसे ही कहानिया एक पीढ़ी से दूसरी तक आती-जाती रहती है पर यहाँ इस कहानी में सच था वो सोना पर उसे सुनैना ने कैसे हासिल किया वो सोना किसका था उसे हासिल करने की क्या कीमत चुकाई और क्या थी वो कीमत.

निशा- बात तो सही कही तुमने पर कैसे मालूम होगा.

मैं- तलाशी करेंगे , इतिहास ने जब यहाँ बुला ही लिया है तो सबूत भी वो देगा अगर किसी ने सबूत छोड़ा होगा तो .

मैं और निशा बस्ती के हर एक हिस्से की गहराई से जांच करने लगे. कुछ घंटे बीत गए धुल मिटटी में सने हम लोग थकने लगे थे पर हाथ कुछ नहीं आया . और फिर निशा को एक मिटटी की संदूकची मिली . हमने उसे खोला तो कुछ चान्दी के आभूषण थे उसमे . उसके निचे एक लाल कपडा था मिटटी से सना हुआ धुल झाडी तो कुछ और मिला. एक तस्वीर थी श्वेत-श्याम तस्वीर जो जंगल में खींची गयी थी .

निशा- काफी पुरानी है ये तो

मैं- इसे रख लो .

डेरे की भोगोलिक स्तिथि को जांचने लगा. कल्पना करने लगा की जब ये आबाद होगा तो कैसा होगा और यहाँ से खंडहर कितनी दूर होगा भला. मैंने मिटटी में एक नक्सा सा बनाया और तमाम सम्भावनाये देखने लगा. रुडा-सुनैना-बिशम्भर त्रिदेव , तीन टुकड़े, त्रिकोण . त्रिकोण ओह तो ये था वो सुराग . मैंने अपने गले से चांदी का लाकेट उतारा और उसे उस नक़्शे पर रख दिया.

“चांदी शीतल है ये तुम्हे काबू में रखेगी ” अंजू के ये शब्द मेरे कानो में जैसे गूँज पड़े. जंगल में सबसे शीतल क्या था जल और जल था उस तालाब में .

मैं- निशा हमें और कहीं चलना होगा .

निशा- कहाँ कबीर.

मैं- तू जान जाएगी.

मैंने गाडी कुवे की पगडण्डी पर खड़ी की और निशा के साथ खंडहर पर पहुँच गए.

निशा- एक बार फिर यहाँ

मैं-यही पर छिपा है वो राज़ , ये कहानी जंगल में शुरू हुई खत्म भी यही पर होगी मेरी सरकार. ये पानी , ये तालाब निशा मेरी जान तूने बहुत देखा इसे मैने बहुत देखा इसे पर वो तली में पड़ा सोना , एक छलावा था . उफ्फ्फ काश मैं क्यों नहीं पहचान पाया इस जाल को .

मैंने तुरंत पानी में गोता लगा दिया. ठंडा पानी जैसे मुझे मार ही गया . एक बार बाहर आकर मैंने फेफड़ो में हवा भरी और दुबारा से तली की तरफ चला गया . मैंने निशा को अपने पीछे आते महसूस किया . सोना आज भी शान से वैसे ही पड़ा था . पर उसमे मेरी कोई दिलचश्पी नहीं थी . साँसों को हवा की जरुरत थी पर अब दिल में उमंग थी और कहते है न कोशिश करने वालो की कोई हार नहीं होती. उस बड़े से झूलते त्रिकोण को मैंने जोर लगा कर घुमाया और गजब हो गया. अपने साथ थोडा सा पानी लिए मैं अब जमीं पर खड़ा था ठोस काले पत्थरों का ये फर्श एक और गुप्त तहखाना था इस खंडहर का . बनाने वाले ने भी क्या गजब ही चीज बनाई थी ये.

“इस खंडहर को समझना मुश्किल है ” मेरे पीछे आती निशा ने कहा .

कुछ देर लगी हमें इस कमरे को समझने में पर जब समझा तो बहुत कुछ समझ आ गया . त्रिदेव तीन दोस्तों की कहानी , ये कहानी अगर शुरू हुई होगी तो इसी तहखाने से शुरू हुई होगी. कमरे के बीचो बीच एक स्टैंड था पत्थर कर जिस पर एक सरोखा रखा था जिसमे पानी नहीं था ताजा रक्त था .खून की महक को मैंने पल भर में पहचान लिया था . न जाने क्यों मेरी तलब बढ़ सी गयी उस खून को चखने की .

निशा- नहीं कबीर वो विचार त्याग दो . तुम वो नहीं हो तुम कभी नहीं बनोगे वो .

निशा ने मेरे हाथ को पकड़ लिया.

निशा- ताजा खून


मेरे दिमाग में सब कुछ तेजी से भाग रहा था . जंगल में हुई हत्याए . इसी खून के लिए हुई थी कोई तो था जिसकी प्यास इस खून से बुझाई जा रही थी . कोई तो था जो इस खून का इस्तेमाल कर रहां था पर कौन . कौन होगा वो मैं सोच ही रहा था की एक आवाज की वजह से हम दोनों कोने में छिप गए और मशाल लिए जो उस कमरे में आया .................
Are bhai ye Kya tha ye update To dimaak ghuma gaya, khoon kiska tha bhai? Or sarokha kya hota hai, gajab ka update
 

Devilrudra

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जब हम वहां पर पहुंचे तो वहां के हालात देख कर कहना मुश्किल था की एक बस्ती होती थी वहां पर. वक्त की बेरहमी ने उजाड़ दिया था सब कुछ. सामने था तो बस कुछ कच्ची मिटटी के घर जो बस नाम के रह गए थे .आबादी का तो कोई सवाल ही नहीं था. पर फिर भी एक उम्मीद थी दिल के किसी कोने में

निशा- कुछ भी तो नहीं यहाँ पर सिवाय इस बियाबान के

मैं- बियाबान होना ही इसे खास बनाता है निशा.

निशा- तुमको क्यों है इतनी दिलचस्पी

मैं- क्यों ना हो निशा, इस सोने से अब हम लोग भी जुड़े है कहीं न कहीं. रुडा ने कहा था की पिताजी एक रोज अचानक से गायब हो गए थे और वो बहुत दिन बाद लौटे थे. कहाँ थे वो इतने दिन. वो कुछ ढूंढ रहे थे , क्या . मुझे लगता है की सुनैना पिताजी के जायदा करीब थी. और उसने केवल सोना ही नहीं तलाश किया था उस सोने के साथ कुछ और भी था , कुछ ऐसा जिसने इन सब की जिदंगी बदल दी.

निशा- ऐसा क्या हो सकता है .

मैं- श्राप , निशा . वो सोना श्रापित था . कैसे ये तो नहीं जानता पर उस सोने ने सबसे पहले सुनैना को खाया और फिर दोनों दोस्तों को . और फिर उन सबको जिस जिस ने उनका लालच किया. महावीर ने सिर्फ सुनैना का अतीत ही नहीं जाना था बल्कि उस वजह को भी जान गया था जिसके लिए ये सब हुआ था .

निशा- तुमको पूरा यकीन है इस बात का .

मैं- निशा, अक्सर हमने कितने किस्से-कहानिया सुनी है , कुछ झूठी कुछ सच्ची . अब देखो न जंगल खुद अपनी कहानी सुना रहा है की नहीं. कितनी कहानियो में हमने सुना है की भूत-प्रेत किसी को वहां मिले वहां मिले ऐसे ही कहानिया एक पीढ़ी से दूसरी तक आती-जाती रहती है पर यहाँ इस कहानी में सच था वो सोना पर उसे सुनैना ने कैसे हासिल किया वो सोना किसका था उसे हासिल करने की क्या कीमत चुकाई और क्या थी वो कीमत.

निशा- बात तो सही कही तुमने पर कैसे मालूम होगा.

मैं- तलाशी करेंगे , इतिहास ने जब यहाँ बुला ही लिया है तो सबूत भी वो देगा अगर किसी ने सबूत छोड़ा होगा तो .

मैं और निशा बस्ती के हर एक हिस्से की गहराई से जांच करने लगे. कुछ घंटे बीत गए धुल मिटटी में सने हम लोग थकने लगे थे पर हाथ कुछ नहीं आया . और फिर निशा को एक मिटटी की संदूकची मिली . हमने उसे खोला तो कुछ चान्दी के आभूषण थे उसमे . उसके निचे एक लाल कपडा था मिटटी से सना हुआ धुल झाडी तो कुछ और मिला. एक तस्वीर थी श्वेत-श्याम तस्वीर जो जंगल में खींची गयी थी .

निशा- काफी पुरानी है ये तो

मैं- इसे रख लो .

डेरे की भोगोलिक स्तिथि को जांचने लगा. कल्पना करने लगा की जब ये आबाद होगा तो कैसा होगा और यहाँ से खंडहर कितनी दूर होगा भला. मैंने मिटटी में एक नक्सा सा बनाया और तमाम सम्भावनाये देखने लगा. रुडा-सुनैना-बिशम्भर त्रिदेव , तीन टुकड़े, त्रिकोण . त्रिकोण ओह तो ये था वो सुराग . मैंने अपने गले से चांदी का लाकेट उतारा और उसे उस नक़्शे पर रख दिया.

“चांदी शीतल है ये तुम्हे काबू में रखेगी ” अंजू के ये शब्द मेरे कानो में जैसे गूँज पड़े. जंगल में सबसे शीतल क्या था जल और जल था उस तालाब में .

मैं- निशा हमें और कहीं चलना होगा .

निशा- कहाँ कबीर.

मैं- तू जान जाएगी.

मैंने गाडी कुवे की पगडण्डी पर खड़ी की और निशा के साथ खंडहर पर पहुँच गए.

निशा- एक बार फिर यहाँ

मैं-यही पर छिपा है वो राज़ , ये कहानी जंगल में शुरू हुई खत्म भी यही पर होगी मेरी सरकार. ये पानी , ये तालाब निशा मेरी जान तूने बहुत देखा इसे मैने बहुत देखा इसे पर वो तली में पड़ा सोना , एक छलावा था . उफ्फ्फ काश मैं क्यों नहीं पहचान पाया इस जाल को .

मैंने तुरंत पानी में गोता लगा दिया. ठंडा पानी जैसे मुझे मार ही गया . एक बार बाहर आकर मैंने फेफड़ो में हवा भरी और दुबारा से तली की तरफ चला गया . मैंने निशा को अपने पीछे आते महसूस किया . सोना आज भी शान से वैसे ही पड़ा था . पर उसमे मेरी कोई दिलचश्पी नहीं थी . साँसों को हवा की जरुरत थी पर अब दिल में उमंग थी और कहते है न कोशिश करने वालो की कोई हार नहीं होती. उस बड़े से झूलते त्रिकोण को मैंने जोर लगा कर घुमाया और गजब हो गया. अपने साथ थोडा सा पानी लिए मैं अब जमीं पर खड़ा था ठोस काले पत्थरों का ये फर्श एक और गुप्त तहखाना था इस खंडहर का . बनाने वाले ने भी क्या गजब ही चीज बनाई थी ये.

“इस खंडहर को समझना मुश्किल है ” मेरे पीछे आती निशा ने कहा .

कुछ देर लगी हमें इस कमरे को समझने में पर जब समझा तो बहुत कुछ समझ आ गया . त्रिदेव तीन दोस्तों की कहानी , ये कहानी अगर शुरू हुई होगी तो इसी तहखाने से शुरू हुई होगी. कमरे के बीचो बीच एक स्टैंड था पत्थर कर जिस पर एक सरोखा रखा था जिसमे पानी नहीं था ताजा रक्त था .खून की महक को मैंने पल भर में पहचान लिया था . न जाने क्यों मेरी तलब बढ़ सी गयी उस खून को चखने की .

निशा- नहीं कबीर वो विचार त्याग दो . तुम वो नहीं हो तुम कभी नहीं बनोगे वो .

निशा ने मेरे हाथ को पकड़ लिया.

निशा- ताजा खून


मेरे दिमाग में सब कुछ तेजी से भाग रहा था . जंगल में हुई हत्याए . इसी खून के लिए हुई थी कोई तो था जिसकी प्यास इस खून से बुझाई जा रही थी . कोई तो था जो इस खून का इस्तेमाल कर रहां था पर कौन . कौन होगा वो मैं सोच ही रहा था की एक आवाज की वजह से हम दोनों कोने में छिप गए और मशाल लिए जो उस कमरे में आया .................
Nice👍
 

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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Sona kisi ka hai hi nahi or kisi or ke sone par humara adhikaar nahi ho jaata lekin ye lalach aisi bala hai jo har kisi ko khich leti hai or fir uska harzaana bhugtna padta hai.

Us taalaab ke niche bhi ek gupt jagah hai ye baat chauka deti hai naa jaane is kahani me kitne or raaz hai, kon ho sakta is gupt sthaan Me jaanne ke liye bahut utsuk hu mai..

Raay sahab gayab ho jaate hai kai baar kahi wo yaha to nahi aa jaate shak hai hume kyuki unke alawa sabhi apni jagah pe hote hai...
 
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