#148
“इस तरह देखने की जरुरत नहीं है चौधरी साहब , जब सबके नकाब उतर रहे है तो आपका चेहरा कैसे बच जायेगा. माना की रात बहुत लम्बी हुई पर सुबह की एक किरण बहुत होती है रात के अँधेरे को चीरने के लिए. रमा के पति को क्यों मारा ” मैंने सवाल किया.
रुडा- मैं, भला मैं क्यों मारूंगा उसे.
मैं- ये तो आप जानते है . मुझे तो बस इतना मालुम है की उसको आपने मारा क्यों मारा ये बता कर आप मेरी उत्सुकता खत्म कर सकते है .
रुडा- उसे एक बिमारी थी , वही बीमारी जो तुमको है . जरुरत से ज्यादा जानने की बिमारी. उसकी गांड में एक कीड़ा कुलबुला रहा था . ये जंगल इसमें कुछ भी छिपाना ना मुमकिन है उस चूतिये का लालच . क्या ही कहे . रमा की कीमत चाहिए थी उसे और कीमत क्या मांगी उसने हिस्सेदारी हम से हिस्सेदारी. हम से कबीर. हमारे टुकडो पर पलने वाले हमारे बराबर बैठने की बात करे लगे थे . सोना चाहिए था उसको , सोना . साला दो कौड़ी का नौकर हमने उसे सोना दिया. सदा के लिए सुला दिया उसे.
मैं-पर कोई था जिसने उस क़त्ल को होते हुए देखा.
रुडा- आंह ,जैसा हमने कहा ये दुनिया चुतियो से भरी है . महावीर . उसको भी यही बीमारी थी जो तुमको है दुसरो के मामलो में नाक घुसना , क्या कमी थी उसको . जवान था मौज करता. पर उसे जंगल का सच जानना था वो सच जिसे छुपाते छुपाते हमारी जुती घिस गयी . न जाने लोग क्यों नहीं समझते की जिन्दगी कोआज में जीना चाहिए . जब मैं तुमको देखता हूँ न तो मुझे कभी भी तुम नहीं दिखे कबीर, मैंने हमेशा महावीर को देखा. किसी ने तुम्हे नहीं बताया होगा पर मैं तुम्हे बताता हूँ वो तुम सा ही था . उसके सीने में दिल था जो धडकता था अपने लोगो के लिए.
सवाल बहुत करता था वो . मैंने क्या नहीं दिया उसे पर उस चूतिये को शौक था ऊँगली करने का . न जाने कैसे उसने सोने के राज को मालूम कर लिया था . चलो ठीक था इतना भी हमारे बाद हमारी औलादों को ही काम आता वो .
मैं ख़ामोशी से रुडा को देख रहा था कुछ पल पहले वो मुझे दर्द भरी कहानी सूना रहा था और मेरे एक सवाल ने उसके चेहरे पर पुते रंग को बहाना शुरू कर दिया था
मैं- महावीर को सोना नहीं चाहिए था कभी भी .
रुडा- सही समझे तुम . जानता था की तुम समझोगे इस बात को
मैं- महावीर की दिलचस्पी कभी नहीं थी सोने में. उसे तलाश थी किसी की
रुडा- उसे तलाश थी कातिल की
मैं- सुनैना के कातिल की . मुझे लगा ही था . मैंने सोचा था इस बारे में पर कड़ी अब जाकर जुडी है . कड़ी थी सुनैना और उसके बच्चे उस रात सुनैना को एक नहीं दो औलाद पैदा हुई थी . महावीर सुनैना का बेटा था .
न जाने क्यों मेरे पैरो तले जमीं खिसकने लगी थी . क्योंकि इस सच ने तमाम लोगो को कटघरे में खड़ा कर दिया था . महावीर को साजिश के तहत मारा गया था तो उस साजिश में भैया, भाभी और अंजू भी शामिल थे. इतना कमजोर मैंने पहले कभी नहीं महसूस किया था खुद को. सच के आखिर कितने रूप हो सकते है
रुडा- सच , कबीर, सच , अपने आप में अनोखा अप्रतिम . सच से खूबसूरत कुछ नहीं सच से घिनोना कुछ नहीं. महावीर को मालूम हो गया था की उसकी माँ का कातिल कौन है . रिश्तो के बोझ से दबा वो बदहवास भटक रहा था और फिर उसने मुझे रमा के पति को मारते हुए देखा, उसका सब्र टूट गया. और ना चाहते हुए भी मुझे वो फैसला लेना पड़ा जिसकी वजह से आज हम दोनों यहाँ पर है .
मैं- महावीर के क़त्ल का फैसला
रुडा- क्या करे, दुनियादारी असी ही चीज है
मैं- पर कैसे. उसे तो ...
“उसे तो किसी और ने घायल किया था . जंगल में घायल पड़ा था वो . कमजोर सांसे लड़ रही थी जिन्दगी से . गोलियों के घाव गहरे थे . उसी दोपहर उसकी और मेरी लड़ाई हुई थी . बदहवासी , बेखुदी में बस वो निशा को पुकारे जा रहा था . वो उसे बताना चाहता था कुछ
मैं- क्या बताना चाहता था .
रुडा- डायन , महावीर के अंतिम शब्द डायन थे.जानता है कबीर कोई भी आज तक उसके कातिल को क्यों नहीं तलाश कर पाया.
मैं- क्योंकि कोई नही जानता की उसका कातिल उसका बाप है.
मेरे ये शब्द मेरे गले की फांस बन गए, मेरी आँखों से आंसू बह चले. बेशक महावीर मेरा कुछ नहीं लगता था पर फिर भी मेरे मन में संवेदना थी उसके लिए. एक पल के लिए मेरे और रुडा के दरमियान बर्फ सी जम गयी . इन्सान से घटिया और कोई जानवर नहीं . मैं दो पल के लिए अपने ख्यालो में खो गया और जब होश आया तो मेरे बदन में कुछ नुकीला सा घुस चूका था . दर्द को मैंने बस महसूस किया . कुछ बोल नहीं पाया.
“जानता है महावीर के कातिल को कोई भी नहीं तलाश कर पाया क्योंकि कोई जान ही नहीं पाया . तूने जाना अब तू भी नहीं रहेगा. ये राज तेरे साथ ही दफन हो जायेगा ” रुडा ने चाकू को दुबारा से मेरे पेट में घुसेदा.
मैं कुछ भी नहीं बोल पाया अचानक से हुए हमले ने मुझे स्तब्ध कर दिया था . मैं समाधी के पत्थरों पर गिर गया .
रुडा- जैसा मैंने कहा दुनिया चुतियो से भरी है , तू उन चुतियो का सरदार है . क्या नहीं मिल रहा था तुझे. यहाँ तक निशा भी दी तुझे सोचा की उसके साथ जी लेगा तू पर तुझे तो सच जानना था , देख सच , सच ये है की तू मरने वाला है तेरी लाश कहाँ गायब हो गयी कोई नहीं जान पायेगा.
रुडा ने अबकी बार मेरे सीने पर धार लगाई चाक़ू की . और मेरी आवाज गले से बाहर निकली.
“निशा ” मेरे होंठो से ये ही पुकार निकली.
रुडा- कैसा अजीब इतीफाक है न ये, तू भी निशा को ही पुकार रहा है . मोहब्बत भी साली क्या ही होती है हम तो कभी समझ ही नहीं पाए इस बला को . हमें तो चुदाई से ही फुर्सत ना मिली और तुम हो के साले मरने को मर रहे हो फिर भी इश्क का भूत नहीं उतर रहा.
“मैं नहीं मरूँगा रुडा , मुझे जीना है मेरी जान के साथ मुझे जीना है निशा के साथ . ” मैंने पूरी ताकत लगाई और रुडा को अपने ऊपर से हटाने की कोशिश करने लगा. पर कामयाब नहीं हो पाया.
रुडा ने दो थप्पड़ मारे मुझे और बोला-बस जल्दी ही तू इस दर्द से आजाद होकर हमेशा के लिए सो जाएगा.
रुडा के मजबूत हाथ मेरा गला दबाने लगे . मैं हाथ पाँव तो पटक रहा था पर जोर नहीं चल रहा था और जब लगा की सांसो की डोर अब टूट ही गयी . मेरे मन के अन्दर सोया जानवर जाग ही गया था की तभी मैंने रुडा पर अपने सियार को छलांग लगाते हुए देखा. और अगले ही पल रुडा की पीठ पर एक जोर का लट्ठ पड़ा . रुडा जमीं पर गिर गया .