Vicky11
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Bhai ji nishabd hu mein.
Kya cmnt Karu soch nhi pa rha.
Kya cmnt Karu soch nhi pa rha.
कोई भी नया किरदार नहीं होगा अब जो भी है इनमे से ही है. चाची के बारे में अभी कोई धारणा मत बनाओऐसी पीली आंखे तो कबीर ने तब देखी थी जब छत पर आदमखोर आया था, तो क्या चाचा को अभी अभी बांधा गया था।
और जो दफ़न लाश थी वो सुनैना की थी
कहानी फिर से घूम गया है, समझ ही नही आ रहा है की जवाब मिला है या नही मिला है।
इस बार रेणुका चाची ने भी धोखा दे दिया, अब बस निशा बची है जिसने अभी तो धोखा नहीं दिया
उम्मीद करता हुं कंकाल को लेकर किसी नए किरदार को entry नहीं होगी क्योंकि आपने महावीर की entry के बाद बोला था अब कोई और किरदार नही आयेगा
Hope आप अपने बातों पर कायम रहेंगे
राय साहब वाला ट्रैक बस थोड़ी ही दूर हैAwesome update,
कहानी में फिर जबरदस्त ट्विस्ट डाल दिया, चाचा जिंदा हो गया , और कंकाल का नया राज सामने आया। अब चाचा आदमखोर था और यहाँ कैद था तो बाहर कौन घूम रहा था,
राय साहब अपने खून से उसकी प्यास मिटा रहे थे, उन्होंने क्यो नही खत्म किया चाचा को,
राय साहब ही अब बाकी के रहस्य से पर्दा उठा सकते है,
ThanksNice update
अंत सबसे अलग होगाDimagh ka beja gunfire ho gaya hai jise keel samjho nikal raha hai khambha
जिसका भी है मालूम हो जाएगाBhut hi shocking update....
Ab kuye par kankaal kahi Maa ka to nahi hai....
Baki niyati ke khel to wahi jane
पढ़ते रहो भाईBhai ji nishabd hu mein.
Kya cmnt Karu soch nhi pa rha.
ये शतरंज नही है, शतरंज में दोनो तरफ से चालें चलीं जाती हैं, यहां तो कबीर और निशा बस लड़े जा रहे हैं, और बेचारों को पता भी नही कि किसके खिलाफ और किस लिए??शतरंज का खेल बड़ा अनोखा होता है मित्र खासकर जब आँखों पर पर्दा हो और बिसात का कोई अनुमान नहीं हो
पूरा सर ही घूम गया#152
मैने और निशा ने राय साहब को कमरे में आते हुए देखा . इस रायसाहब और उस रायसाहब जिसे मैं जानता था दोनों में फर्क सा लगा मुझे. ये इन्सान कुछ थका सा था. उसके चेहरे पर कोई तेज नहीं था. धीमे कदमो से चलते हुए वो सरोखे के पास आये और उस रक्त को देखा जिसकी खुसबू मुझे पागल किये हुए थी. पिताजी ने अपनी कलाई आगे की और पास में रखे चाकू से घाव किया ताजा रक्त की धार बह कर सरोखे में गिरने लगी. सरोखे में हलचल हुई और फिर मैंने वो देखा जो देख कर भी यकीन के काबिल नहीं था . सरोखा खाली होने लगा.
कलाई से रक्त की धार तब तक बहती रही जब तक की सरोखा फिर से भर नहीं गया. पिताजी ने फिर अपने हाथ पर कुछ लगाया और जिन कदमो से वापिस आये थे वो वैसे ही चले गए. मेरा तो दिमाग बुरी तरह से भन्ना गया था . मैं और निशा सरोखे के पास आये और उसे देखने लगे.
निशा- इसका मतलब समझ रहे हो तुम
मैं- सोच रहा हूँ की रक्त से किसे सींचा जा रहा है . पिताजी किस राज को छिपाए हुए है आज मालूम करके ही रहूँगा
मैंने सरोखे को देखा , रक्त निचे गया था तो साफ़ था की इस कमरे के निचे भी कुछ है . छिपे हुए राज को जानने की उत्सुकता इतनी थी की मैंने कुछ नहीं सोचा और सीधा सरोखे को ही उखाड़ दिया , निचे घुप्प अँधेरा था , सीलन से भरी सीढियों से होते हुए मैं और निशा एक मशाल लेकर निचे उतरे और मशाल की रौशनी में बदबू के बीच हमने जो देखा, निशा चीख ही पड़ी थी . पर मैं समझ गया था. उस चेहरे को मैं पहचान गया था . एक बार नहीं लाखो बार पहचान सकता था मैं उस चेहरे को . लोहे की अनगिनत जंजीरों में कैद वो चेहरा. मेरी आँखों से आंसू बह चले . जिन्दगी मुझे न जाने क्या क्या दिखा रही थी .
“चाचा ” रुंधे गले से मैं बस इतना ही कह पाया. लोहे की बेडिया हलकी सी खडकी .
“चाचे देख मुझे , देख तो सही तेरा कबीर आया है . तेरा बेटा आया है . एक बार तो बोल पहचान मुझे अपने बेटे से बात कर ” रो ही पड़ा मैं. पर वो कुछ नहीं बोला. बरसो से जो गायब था , जिसके मरने की कहानी सुन कर मैंने जिस से नफरत कर ली थी वो इन्सान इस हाल में जिन्दा था . उसके अपने ही भाई ने उसे कैदी बना कर रखा हुआ था
“चाचे , एक बार तो बोल न , कुछ तो बोल देख तो सही मेरी तरफ ” भावनाओ में बह कर मैं आगे बढ़ा उसके सीने से लग जाने को पर मैं कहाँ जानता था की ये अब मेरा चाचा नहीं रहा था . जैसे ही उसको मेरे बदन की महक हुई वो झपटा मुझ पर वो तो भला हो निशा का जिसने समय रहते मुझे पीछे खीच लिया .
चाचा पूरा जोर लगा रहा था लोहे की उन मजबूत बेडियो की कैद तोड़ने को पर कामयाबी शायद उसके नसीब में नहीं थी. उसकी हालात ठीक वैसी ही थी जैसी की कारीगर की हो गयी थी .
निशा- कबीर , समझती हूँ तेरे लिए मुश्किल है पर चाचा को इस कैद से आजाद कर दे.
मैं उसका मतलब समझ गया .
मैं- क्या कह रही है तू निशा .
निशा- जानती हूँ ये बहुत मुश्किल है अपने को खोने का दर्द मुझसे ज्यादा कोई क्या समझेगा पर चाचा के लिए यही सही रहेगा कबीर यही सही रहेगा. अब जब तू जानता है की चाचा किस हाल में जिन्दा है . इस हकीकत का रोज सामना करना कितना मुश्किल होगा . इसे तडपते देख तुम भी कहाँ चैन से रह पाओगे. चाचा की मिटटी समेट दो कबीर . बहुत कैद हुई आजाद कर दो इनको.
मैं- नहीं होगा मुझसे ये
निशा- करना ही होगा कबीर करना ही होगा.
बेशक ये इन्सान जैसा भी था पर किसी अपने को मारने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए थी और निशा की कही बात सच थी राय साहब के इसे यहाँ रखने के जो भी कारण हो पर सच तो ये था की नरक से बदतर थी उसकी सांसे .
गले में पड़े लाकेट की चेन को इधर उधार घुमाते हुए मैं सोच रहा था आखिर इतना आसान कहा था ये फैसला लेना मेरे लिए और तभी खट की आवाज हुई और वो लाकेट में से एक चांदी का चाक़ू निकल आया . ये साला लाकेट भी अनोखा था . कांपते हाथो से मैंने चाकू पकड़ा और मेरी नजरे चाचा से मीली. पीली आँखे हाँ के इशारे में झपकी. क्या ये मेरा वहम था मैंने अपनी आँखे बंद की और चाकू चाचा के सीने में घुसा दिया. वो जिस्म जोर से झटका खाया और फिर शांत हो गया . शरीर को आजाद करके मैं ऊपर लाया और लकडिया इकट्ठी करने लगा. अंतिम-संस्कार का हक़ तो था इस इंसान को .
जलती चिता को देखते हुए मैं रोता रहा . पहले रुडा और अब ये दोनों ने तमाम कहानी को फिर से घुमा दिया था . तमाम धारणाओं , तमाम संभावना ध्वस्त हो गयी थी . एक बार फिर मैं शून्य में ताक रहा था . मैं ये भी जानता था की बाप को जब मालूम होगा की ये मेरा काम है तो उसके क्रोध का सामना भी करना होगा पर एक सवाल जिसने मुझे हद से जायदा बेचैन कर दिया था अगर चाचा यहाँ पर था तो कुवे पर किसका कंकाल था .