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क्या लगता है
क्या लगता है
भाई रमा समझ में आ गई होती तो ये कहानी के राज ना समझ में आ जातेतुम अब तक रमा को नहीं समझ पाये भाई. महावीर ने मरने से पहले डायन कहा था इस पर सभी पाठकों को ध्यान देना चाहिए था ना. खिचड़ी स्वास्थ्य के लिए लाभदायक रहती है. कनेक्ट इसलिए नहीं हो रहा क्योंकि सच खूबसूरत होता है सच घिनौना होता है
जो आपके साथ नहीं हैं, उन्हें अपने खिलाफ मानकर चलो..............ये शतरंज नही है, शतरंज में दोनो तरफ से चालें चलीं जाती हैं, यहां तो कबीर और निशा बस लड़े जा रहे हैं, और बेचारों को पता भी नही कि किसके खिलाफ और किस लिए??
#152
मैने और निशा ने राय साहब को कमरे में आते हुए देखा . इस रायसाहब और उस रायसाहब जिसे मैं जानता था दोनों में फर्क सा लगा मुझे. ये इन्सान कुछ थका सा था. उसके चेहरे पर कोई तेज नहीं था. धीमे कदमो से चलते हुए वो सरोखे के पास आये और उस रक्त को देखा जिसकी खुसबू मुझे पागल किये हुए थी. पिताजी ने अपनी कलाई आगे की और पास में रखे चाकू से घाव किया ताजा रक्त की धार बह कर सरोखे में गिरने लगी. सरोखे में हलचल हुई और फिर मैंने वो देखा जो देख कर भी यकीन के काबिल नहीं था . सरोखा खाली होने लगा.
कलाई से रक्त की धार तब तक बहती रही जब तक की सरोखा फिर से भर नहीं गया. पिताजी ने फिर अपने हाथ पर कुछ लगाया और जिन कदमो से वापिस आये थे वो वैसे ही चले गए. मेरा तो दिमाग बुरी तरह से भन्ना गया था . मैं और निशा सरोखे के पास आये और उसे देखने लगे.
निशा- इसका मतलब समझ रहे हो तुम
मैं- सोच रहा हूँ की रक्त से किसे सींचा जा रहा है . पिताजी किस राज को छिपाए हुए है आज मालूम करके ही रहूँगा
मैंने सरोखे को देखा , रक्त निचे गया था तो साफ़ था की इस कमरे के निचे भी कुछ है . छिपे हुए राज को जानने की उत्सुकता इतनी थी की मैंने कुछ नहीं सोचा और सीधा सरोखे को ही उखाड़ दिया , निचे घुप्प अँधेरा था , सीलन से भरी सीढियों से होते हुए मैं और निशा एक मशाल लेकर निचे उतरे और मशाल की रौशनी में बदबू के बीच हमने जो देखा, निशा चीख ही पड़ी थी . पर मैं समझ गया था. उस चेहरे को मैं पहचान गया था . एक बार नहीं लाखो बार पहचान सकता था मैं उस चेहरे को . लोहे की अनगिनत जंजीरों में कैद वो चेहरा. मेरी आँखों से आंसू बह चले . जिन्दगी मुझे न जाने क्या क्या दिखा रही थी .
“चाचा ” रुंधे गले से मैं बस इतना ही कह पाया. लोहे की बेडिया हलकी सी खडकी .
“चाचे देख मुझे , देख तो सही तेरा कबीर आया है . तेरा बेटा आया है . एक बार तो बोल पहचान मुझे अपने बेटे से बात कर ” रो ही पड़ा मैं. पर वो कुछ नहीं बोला. बरसो से जो गायब था , जिसके मरने की कहानी सुन कर मैंने जिस से नफरत कर ली थी वो इन्सान इस हाल में जिन्दा था . उसके अपने ही भाई ने उसे कैदी बना कर रखा हुआ था
“चाचे , एक बार तो बोल न , कुछ तो बोल देख तो सही मेरी तरफ ” भावनाओ में बह कर मैं आगे बढ़ा उसके सीने से लग जाने को पर मैं कहाँ जानता था की ये अब मेरा चाचा नहीं रहा था . जैसे ही उसको मेरे बदन की महक हुई वो झपटा मुझ पर वो तो भला हो निशा का जिसने समय रहते मुझे पीछे खीच लिया .
चाचा पूरा जोर लगा रहा था लोहे की उन मजबूत बेडियो की कैद तोड़ने को पर कामयाबी शायद उसके नसीब में नहीं थी. उसकी हालात ठीक वैसी ही थी जैसी की कारीगर की हो गयी थी .
निशा- कबीर , समझती हूँ तेरे लिए मुश्किल है पर चाचा को इस कैद से आजाद कर दे.
मैं उसका मतलब समझ गया .
मैं- क्या कह रही है तू निशा .
निशा- जानती हूँ ये बहुत मुश्किल है अपने को खोने का दर्द मुझसे ज्यादा कोई क्या समझेगा पर चाचा के लिए यही सही रहेगा कबीर यही सही रहेगा. अब जब तू जानता है की चाचा किस हाल में जिन्दा है . इस हकीकत का रोज सामना करना कितना मुश्किल होगा . इसे तडपते देख तुम भी कहाँ चैन से रह पाओगे. चाचा की मिटटी समेट दो कबीर . बहुत कैद हुई आजाद कर दो इनको.
मैं- नहीं होगा मुझसे ये
निशा- करना ही होगा कबीर करना ही होगा.
बेशक ये इन्सान जैसा भी था पर किसी अपने को मारने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए थी और निशा की कही बात सच थी राय साहब के इसे यहाँ रखने के जो भी कारण हो पर सच तो ये था की नरक से बदतर थी उसकी सांसे .
गले में पड़े लाकेट की चेन को इधर उधार घुमाते हुए मैं सोच रहा था आखिर इतना आसान कहा था ये फैसला लेना मेरे लिए और तभी खट की आवाज हुई और वो लाकेट में से एक चांदी का चाक़ू निकल आया . ये साला लाकेट भी अनोखा था . कांपते हाथो से मैंने चाकू पकड़ा और मेरी नजरे चाचा से मीली. पीली आँखे हाँ के इशारे में झपकी. क्या ये मेरा वहम था मैंने अपनी आँखे बंद की और चाकू चाचा के सीने में घुसा दिया. वो जिस्म जोर से झटका खाया और फिर शांत हो गया . शरीर को आजाद करके मैं ऊपर लाया और लकडिया इकट्ठी करने लगा. अंतिम-संस्कार का हक़ तो था इस इंसान को .
जलती चिता को देखते हुए मैं रोता रहा . पहले रुडा और अब ये दोनों ने तमाम कहानी को फिर से घुमा दिया था . तमाम धारणाओं , तमाम संभावना ध्वस्त हो गयी थी . एक बार फिर मैं शून्य में ताक रहा था . मैं ये भी जानता था की बाप को जब मालूम होगा की ये मेरा काम है तो उसके क्रोध का सामना भी करना होगा पर एक सवाल जिसने मुझे हद से जायदा बेचैन कर दिया था अगर चाचा यहाँ पर था तो कुवे पर किसका कंकाल था .
#153
निशा- दो बाते हो सकती है या तो राय साहब अपने भाई से बहुत प्यार करते थे या फिर वो हद नफरत करते थे जो सब जानते हुए भी उसे कैद किये हुए थे.
मैं- सहमत हूँ . पर अभी ख्यालो से बाहर आने का समय है . बहुत हुआ परिवार का , रिश्तेनातो का चुतियापा अब इस किस्से को खत्म करना है मेरी आने वाली जिन्दगी सकून के साथ जीनी है मुझे. और इस सकून को जो भी कीमत चुकानी पड़े, परवाह नहीं करूँगा मैं. चल मेरे साथ .
निशा- अब कहाँ
मैं- जान जाएगी
कुवे पर आते ही मैंने उस गड्ढे को खोदना शुरू किया जहाँ पर चाची ने दावा किया था की वो कंकाल चाचा का था . मैंने उन हड्डियों को निकाला और एक थैले में भर लिया. शहर जाने से पहले मैंने कपडे बदलने का सोचा , जब मैं कपडे उतार रहा था तो मेरी नजर उस जगह पर पड़ी जहाँ वो तस्वीरे रखी थी मैंने पर अब वो तस्वीरे वहां नहीं थी .
“बहुत बढ़िया ” मैंने खुद से कहा. तस्वीरे गायब होना मुझे इशारा था की कोई तो है जो मुझ पर निगाह रखे हुए है .
“चल निशा ” मैंने गाड़ी में बैठने का इशारा किया उसे.
निशा- कहाँ
मैं- शहर
मैं सीधा गाड़ी लेकर उस डॉक्टर के पास गया . मैं हड्डियों की जांच करवाना चाहता था . चूँकि डॉक्टर वो काम के काबिल नहीं था पर उसने कहा की उसकी जानकारी है थोडा समय दो वो करवा देगा. फिर मैं राज बुक स्टोर पर गया .
मालिक- अब क्या चाहिए तुमको
मैंने जेब से वो तस्वीर निकाली जो डेरे में मिली थी मुझे. उसने वो तस्वीर देखि और फिर मेरे मुह की तरफ देखने लगा.
मैं- इतना जानना है की आज ये तस्वीर बनाई जाये तो इसमें मोजूद ये लोग कैसे लगेंगे.
मालिक- भाई , ये काम तो चित्रकार कर सके है . रुक मैं तुझे करके देता हु कुछ जुगाड़. उस स्टोर वाले ने मुझे एक पता दिया जहाँ पर हमे एक तस्वीरे बनाने वाला मिला मैंने उसे पैसे दिए और सम्भंवाना बताई. उसने समय जरुर लिया पर काम कर दिया . यदि ये तस्वीर आज खिंचाई जाये तो कैसी दिखेगी ये सोच कर मैं हैरान जरुर था.
डॉक्टर के जानकार दुसरे डॉक्टर से मालूम हुआ की हड्डिया थी तो किस पुरुष की ही पर ज्यादा जानकारी के लिए और समय की जरुरत थी .फिलहाल के लिए मेरा इतनी जानकारी से काम चल सकता था . गाँव वापिस जाने से पहले मैंने गाडी एक जगह पर और घुमाई, अंजू की हवेली. हमेशा की तरह दरवाजे पर नौकरनी थी .
मैं- अंजू से मिलना है
नौकरानी- वो तो नहीं है यहाँ पर .
ये कैसे हो सकता था वो यहाँ नहीं थी घर पर नहीं थी तो फिर कहा थी वो .
निशा- कोई बात नहीं हमें हवेली देखनी है
नौकरानी- आप ऐसे अन्दर नहीं आ सकते.
उसकी बात पूरी होने से पहले निशा ने उसकी गर्दन पकड़ ली
“जितनी है उतनी ही रह , हमें हमारा काम करने दे जरुरी है ये . ” निशा ने उसे धक्का दिया और हम अन्दर घुस गए
सबसे पहले मैंने उसी तस्वीर को देखा , उसे देखा और फिर अपनी जेब से निकाल कर उस तस्वीर को देखा . फिर मैंने पूरा घर छान मारा पर कुछ भी संदिग्ध नहीं निकला कुछ भी ऐसा नहीं जो जरा भी शक पैदा करे.
निशा- आखिर तुम्हे तलाश किस चीज की है
मैं- सच की मेरी जान . अंजू कुछ तो छिपा रही है क्या ये मैं नहीं जानता .
निशा- कंकाल में दिलचस्पी क्यों
मैं- कविता के पति का कंकाल था वो , ऐसा मैं मानता हूँ. सम्भावना ये है की रोहताश को भी रस्ते से हटा दिया गया हो और जब ये बात कविता जान गयी तो उसे भी मार दिया गया.
निशा- पर कौन होगा वो.
मैं- कोई भी हो सकता है , राय साहब, रुडा. प्रकाश यहाँ पर मैं सोचता हूँ की रुडा के भी कविता के साथ सम्बन्ध थे .
निशा-एक बात और जिस पर विचार किया जाना चाहिए
मैं- क्या
निशा- हो सकता है की अभिमानु को भी मालूम हो चाचा के बारे में , वैध की मदद लेने का ये भी एक कारण हो सकता है की कैसे भी करके वो चाचा को ठीक करना चाहता हो .
मैं- नहीं
निशा- क्यों नहीं
मैं- क्योंकि अभिमानु भैया ने मदद की थी चाचा की लाश को छुपाने में
निशा- नजरो का धोखा भी हो सकता है . इसे ऐसे समझो की हमले के बाद भी महावीर जिन्दा था उसे रुडा ने मारा. तो मान लो की विशेष परिस्तिथियों में चाचा भी जिन्दा हो जिसे बाद में वहां से निकाल लिया गया हो और इत्तेफाक से उसी जगह पर कातिल ने कविता के पति को गाड दिया हो.
मैं- इत्तेफाक कुछ हल्का शब्द नहीं है इस कहानी में
निशा- हो सकता है पर विचार करने में क्या बुराई है . देख कबीर , इस जंगल में हम सब अपने अपने मकसद से भटक रहे थे पर सिर्फ एक तू ही था जो जंगल में आता था क्योंकि तू प्यार करता है इसे. और प्यार सबसे बड़ी शक्ति होता है .
मैं- अगर तेरी बात मान लू तो दो धारणा बनती है एक अभिमानु भैया ने चाची से धोखा किया या फिर अगर राय साहब ने किया ये काम तो फिर उन्होंने सब जानते हुए चाची या भैया के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की .
“मैं उसे वहां छिपाती जहाँ वो सबके सामने तो होता पर उसे देख कोई नहीं पाता ” ना जाने क्यों ये शब्द बार बार मेरे जेहन में गूंजते थे.
भाभी ने कहा की वो आदमखोर है , उन्होंने कहा की महावीर आदमखोर था पर वो नहीं था या फिर था जो निशा नहीं जानती हो . सुनैंना की दो औलाद महावीर और अंजू . मेरी जेब में तस्वीर . कुवे से गायब तस्वीरे कौन ले गया और सबसे बड़ी बात चंपा ने राय साब और अपने ही भाई से सम्बन्ध क्यों बनाये. वापसी में मैंने गाड़ी फिर से कुवे की पगडण्डी पर खड़ी की और एक बार फिर मेरी मंजिल खंडहर थी जहाँ मुझे याकिन था की चाचा की चिता की राख इतनी आसानी से ठंडी नहीं हुई होगी.
ये तो रायता किंग ही बता सकता है.............KOI BATAYEGA AB TAK STORY KE COMMENT ME KITNI RECIPE AA GAYEE LIKE
RAITA.............
SIRF RAYTA THODI NA HE AUR BHI BAHOT SAARI HE DAHI KHICHADI PULAV BIRIYANIये तो रायता किंग ही बता सकता है.............
कल रात मैं छत पर प्रीतम के साथ सोते हुए बाते कर रहा था उसका हाथ मेरे सीने पर था उसने कहा कि प्यार तो तूने बस मुझसे किया है बाकी सब छलावा है मान चाहे मत मानभाई रमा समझ में आ गई होती तो ये कहानी के राज ना समझ में आ जाते
ऐसा कौन है जो इस कहानी के हर भसड में शामिल है, जो हर जगह है
जो रूढ़ा के साथ भी थी, विशंभर दयाल के साथ भी, जरनैल सिंह के साथ भी, मंगू के साथ भी, परकाश के साथ भी
हर प्रश्न के तार जाकर या तो विशंभर दयाल पर खत्म होते है या रमा पर
अब डाकन क्यों कहा इसका अंदाजा भी कोई कैसे लगाएगा आप ही बताओ
ना तो कोई hint है ना कोई सुराग
पीछे के जो 150 अपडेट पढ़े है वो भी बेईमानी लग रहा है, जैसे सब छलावा था, जैसे कबीर को अब तक कुछ भी नहीं पता
मैं बस इसी उम्मीद में ये कहानी पढ़ रहा हूं की 4–5 महीनो में जो इस कहानी के हर अपडेट हर comment पढ़े है उसका कुछ result आए
जो प्रश्न इस कहानी को पढ़ कर मेरे मन में उठ रहे है कहानी खत्म होने के साथ वो सारे प्रश्न भी खत्म हो जाए
मुझे सिर्फ आप समझते हैजो आपके साथ नहीं हैं, उन्हें अपने खिलाफ मानकर चलो..............
यहाँ निशा के अलावा ..........कबीर के साथ कोई भी नहीं..................
तो....................... सबके खिलाफ ही लड़ना पड़ेगा, सबको दुश्मन मानकर