stupid bunny
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Koi purani janam ka rend Rona mat karna fauji bhai yahi fir koi tantrik kriya sein kuch pana ka natak yeh sab hum guzarish aur purani story mai pad chuka hai iska end alag karna
एन्जॉय करे और अपने दोस्त के साथ पुरानी यादें ताजा करेमत सोचो इतना भाई अभी हमको खुद नहीं मालूम अगला भाग कैसे लिखना है. दारू पीने के बाद विचार करूंगा कुछ बेहतर हो जाए अंत इसका खैर एक दोस्त है साथ आज पुरानी बाते याद करेंगे अभी और अपडेट नहीं आएगा.
भगवान उनकी आत्मा को शान्ति दे और आप को इस दुख से उभरने की शक्ति देमुसाफिर आज मन बहुत ही अवसाद मे है, आपकी कहानी के अपडेट व xforum.live के मित्रों की प्रतिक्रियाएं पढ़ कर उन पर अपना विचार प्रकट करते हुए दिमाग़ को शांत करने के लिए कोशिश कर रहा हूं
कल मेने अपने एक अति प्रिय मित्र को खो दिया जो कि मेरे स्कुल कॉलेज के समय से थे व मुझसे बहुत ही लगाव रखते थे, परंतु परिस्थितियों व जीवन की भाग दोड़ ने अलग अलग कर दिया था physically..
दोस्त के साथ तो जब भी मौका मिले या मौका पैदा करके जरूर मिल लेना चाहिए व ये आपकी busters dose होते हैं जीवन की हर खुशी गम को शान्ति से पूरे उत्साह से सामना करने के लिए तत्पर रहते हैं मदद करते हैं...
पूरे मजे करिए...
आज मेने अपना दोस्त खो दिया, परंतु मैं जानता हूं कि वो ऊपर से भी मुझे दुआ दे रहा है![]()
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ये कहानी अतीत की है इसीलिए सबको अतीत ही याद आ रहा है और वह जस्सी है ।जस्सी जस्सी लगा रखा है इत्ती देर से
निशा निशा कहो![]()
Bhai rajput mai Mann maryada aur ghar ki izzat sabse zaruri hoti hai jassi baar kehti thi jhoti Mann maryada hawas to khandani virasat hai dossra agar main galat nahi ho to woh khud Rana Saheb ki beti thi uski premika sein Goya usna apna bhai sein shadi ki plus woh khud Raaz Janna chahti thi aur kundan ko mehfooz rakhna chahti thi
भाई राजपूत की बहस कहानी से अलग है.................. फिल्मों, और एकता कपूर के धारावाहिकों के ड्रामे को तर्क मत बनाओ.......................Bhai yeh lafaz kehna sahi hai magar aaj bhi rajasthan up haryana jaisa kuch area main Maan maryada pratishta anushahan hai thakura mai rajput mai isko strictly follow Kiya jata hai kahani ko kahani ka character ki tarah samjho unka halato par gaur Karo mai yeh hi batana chahata hu
घर का हर व्यक्ति झूठा है सब ने चाचा की अलग अलग कहानी बताई है लेकिन आज सच हमारे सामने है कि चाचा जिंदा है तो सवाल ये है कि कुएं पर चाची ने जो कंकाल बताया था वो किसका था और चाचा आदमखोर था और यहां कैद था तो बाहर कोन घूम रहा था और राय साहब क्यों अपने खून से उनकी प्यास भुझा रहा था???#152
मैने और निशा ने राय साहब को कमरे में आते हुए देखा . इस रायसाहब और उस रायसाहब जिसे मैं जानता था दोनों में फर्क सा लगा मुझे. ये इन्सान कुछ थका सा था. उसके चेहरे पर कोई तेज नहीं था. धीमे कदमो से चलते हुए वो सरोखे के पास आये और उस रक्त को देखा जिसकी खुसबू मुझे पागल किये हुए थी. पिताजी ने अपनी कलाई आगे की और पास में रखे चाकू से घाव किया ताजा रक्त की धार बह कर सरोखे में गिरने लगी. सरोखे में हलचल हुई और फिर मैंने वो देखा जो देख कर भी यकीन के काबिल नहीं था . सरोखा खाली होने लगा.
कलाई से रक्त की धार तब तक बहती रही जब तक की सरोखा फिर से भर नहीं गया. पिताजी ने फिर अपने हाथ पर कुछ लगाया और जिन कदमो से वापिस आये थे वो वैसे ही चले गए. मेरा तो दिमाग बुरी तरह से भन्ना गया था . मैं और निशा सरोखे के पास आये और उसे देखने लगे.
निशा- इसका मतलब समझ रहे हो तुम
मैं- सोच रहा हूँ की रक्त से किसे सींचा जा रहा है . पिताजी किस राज को छिपाए हुए है आज मालूम करके ही रहूँगा
मैंने सरोखे को देखा , रक्त निचे गया था तो साफ़ था की इस कमरे के निचे भी कुछ है . छिपे हुए राज को जानने की उत्सुकता इतनी थी की मैंने कुछ नहीं सोचा और सीधा सरोखे को ही उखाड़ दिया , निचे घुप्प अँधेरा था , सीलन से भरी सीढियों से होते हुए मैं और निशा एक मशाल लेकर निचे उतरे और मशाल की रौशनी में बदबू के बीच हमने जो देखा, निशा चीख ही पड़ी थी . पर मैं समझ गया था. उस चेहरे को मैं पहचान गया था . एक बार नहीं लाखो बार पहचान सकता था मैं उस चेहरे को . लोहे की अनगिनत जंजीरों में कैद वो चेहरा. मेरी आँखों से आंसू बह चले . जिन्दगी मुझे न जाने क्या क्या दिखा रही थी .
“चाचा ” रुंधे गले से मैं बस इतना ही कह पाया. लोहे की बेडिया हलकी सी खडकी .
“चाचे देख मुझे , देख तो सही तेरा कबीर आया है . तेरा बेटा आया है . एक बार तो बोल पहचान मुझे अपने बेटे से बात कर ” रो ही पड़ा मैं. पर वो कुछ नहीं बोला. बरसो से जो गायब था , जिसके मरने की कहानी सुन कर मैंने जिस से नफरत कर ली थी वो इन्सान इस हाल में जिन्दा था . उसके अपने ही भाई ने उसे कैदी बना कर रखा हुआ था
“चाचे , एक बार तो बोल न , कुछ तो बोल देख तो सही मेरी तरफ ” भावनाओ में बह कर मैं आगे बढ़ा उसके सीने से लग जाने को पर मैं कहाँ जानता था की ये अब मेरा चाचा नहीं रहा था . जैसे ही उसको मेरे बदन की महक हुई वो झपटा मुझ पर वो तो भला हो निशा का जिसने समय रहते मुझे पीछे खीच लिया .
चाचा पूरा जोर लगा रहा था लोहे की उन मजबूत बेडियो की कैद तोड़ने को पर कामयाबी शायद उसके नसीब में नहीं थी. उसकी हालात ठीक वैसी ही थी जैसी की कारीगर की हो गयी थी .
निशा- कबीर , समझती हूँ तेरे लिए मुश्किल है पर चाचा को इस कैद से आजाद कर दे.
मैं उसका मतलब समझ गया .
मैं- क्या कह रही है तू निशा .
निशा- जानती हूँ ये बहुत मुश्किल है अपने को खोने का दर्द मुझसे ज्यादा कोई क्या समझेगा पर चाचा के लिए यही सही रहेगा कबीर यही सही रहेगा. अब जब तू जानता है की चाचा किस हाल में जिन्दा है . इस हकीकत का रोज सामना करना कितना मुश्किल होगा . इसे तडपते देख तुम भी कहाँ चैन से रह पाओगे. चाचा की मिटटी समेट दो कबीर . बहुत कैद हुई आजाद कर दो इनको.
मैं- नहीं होगा मुझसे ये
निशा- करना ही होगा कबीर करना ही होगा.
बेशक ये इन्सान जैसा भी था पर किसी अपने को मारने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए थी और निशा की कही बात सच थी राय साहब के इसे यहाँ रखने के जो भी कारण हो पर सच तो ये था की नरक से बदतर थी उसकी सांसे .
गले में पड़े लाकेट की चेन को इधर उधार घुमाते हुए मैं सोच रहा था आखिर इतना आसान कहा था ये फैसला लेना मेरे लिए और तभी खट की आवाज हुई और वो लाकेट में से एक चांदी का चाक़ू निकल आया . ये साला लाकेट भी अनोखा था . कांपते हाथो से मैंने चाकू पकड़ा और मेरी नजरे चाचा से मीली. पीली आँखे हाँ के इशारे में झपकी. क्या ये मेरा वहम था मैंने अपनी आँखे बंद की और चाकू चाचा के सीने में घुसा दिया. वो जिस्म जोर से झटका खाया और फिर शांत हो गया . शरीर को आजाद करके मैं ऊपर लाया और लकडिया इकट्ठी करने लगा. अंतिम-संस्कार का हक़ तो था इस इंसान को .
जलती चिता को देखते हुए मैं रोता रहा . पहले रुडा और अब ये दोनों ने तमाम कहानी को फिर से घुमा दिया था . तमाम धारणाओं , तमाम संभावना ध्वस्त हो गयी थी . एक बार फिर मैं शून्य में ताक रहा था . मैं ये भी जानता था की बाप को जब मालूम होगा की ये मेरा काम है तो उसके क्रोध का सामना भी करना होगा पर एक सवाल जिसने मुझे हद से जायदा बेचैन कर दिया था अगर चाचा यहाँ पर था तो कुवे पर किसका कंकाल था .
रूपाली का ससुर से संबंध बनाना उतना गलत नहीं था जितना कि रूपाली का सबके सामने झुक जाना............बरसों बाद क्या ही जिक्र इस बात काजस्सी बस जस्सी थी. लोग कुछ ना कुछ तो कहेंगे ही ना कल एक लेखक कह रहे थे उनको रूपाली का ससुर से सम्बंध बनाना ठीक नहीं लगा क्या ही कहे. वैसे मेरा मानना है कि कोई पुरुष स्त्री के मन को पढ़ पाए ऐसा लेखन अभी लिखा ही नहीं गया. कहानी थी भुला दो उसे
मैं अभी यही कहने वाला था कि सवाल तो असली राजपुताने वाले ने उठा दिया है।भाई राजपूत की बहस कहानी से अलग है.................. फिल्मों, और एकता कपूर के धारावाहिकों के ड्रामे को तर्क मत बनाओ.......................
जिसके तर्क को आप इमोश्नल ड्रामा से झुठला रहे हो...... मर्यादा की बात कर रहे हो........ उसको भी जान लो
मैं खुद राजपूत हूँ, राणा हुकम सिंह की तरह मेरा नाम भी राणा से शुरू होकर सिंह पर ही खत्म होता है....................... (जो 90% राजपूतों का नहीं होता, और मुझे शक है कि मेरा असली नाम फौजी भाई ने जब जान लिया था उसके बाद ही ये राणा हुकम सिंह नाम रखा कैरक्टर का)............ राजपूताने की मर्यादा और परंपरा शायद 90% राजपूतों से ज्यादा तर्कपूर्ण जानता हूँ......... मर्यादा पुरुषोत्तम राम का वंशज हूँ................................. और उसी राजपूताना/राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र का रहने वाला हूँ .....................
सहमत हूं आपकी बात से, लेकिन ये सब बहस आपके लिए ही है, ताकि आप फिर से वो गलती न कर दें।मैं फिर से कहता हूं दिल अपना प्रीत पराई को भूल जाओ. कुछ कहानिया बस लिख दी जाती है पांच साल बीत गए उसे लिखे हुए अब जाने भी दो यारो. कभी कभी कहानिया तर्क से परे होती है उनको बस एंजॉय करो. ये होता वो होता अलग बात है पर फिर वो कहानी, कहानी कहाँ रहती