Sanju@
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निशा और भाभी की पहली मुलाकात में भी ऐशा लगा था कि वो दोनो एक दूसरे को जानती है जबकि आज उनकी बातो से ऐसा ही लगता है कि दोनो में कुछ तो संबंध है और भाभी बार बार ये क्यो कहती हैं कि कबीर मर जायेगा निशा के साथ ऐसी क्या वजह है। लगता है पहले कुछ तो खूनी खेल हुआ है जिसका जिक्र भाभी ने किया था लेकिन क्यो और किस वजह से ये पता नही चला है लेकिन लगता है निशा या उसके किसी अपने की वजह से खूनी खेल हुआ था इसलिए भाभी ने कहा कि अगर कबीर का एक कतरा खून भी गिरा तो बहुत बुरा होगा#82
“हाँ तुम्हे तो आना ही था , मैं सोच ही रही थी की कबीर ने तुमको बता दिया होगा उसके बाद तुम्हे आना ही था ” निशा ने शांति से कहा और दिवार के पास बैठ गयी.
भाभी- कबीर तो नादान है पर तुम्हे तो रुकना चाहिए था .
निशा- अब देर हो चुकी है नंदिनी
निशा ने भाभी को उसके नाम से पुकारा .
भाभी- देर हुई नहीं है अंधेर हो रहा है ये . बड़ी मुश्किल से थमा है वक्त का पहिया , पुराना लहू अभी सूखा भी नहीं है और तुम सब बर्बाद करना चाहती हो .
निशा- मैं बस जीना चाहती हूँ, मैं उसके लिए , मैं उसके साथ जीना चाहती हूँ उसने मुझे सिखाया है की जिन्दगी क्या होती है .
भाभी- पर तुम्हारा साथ उसे मौत के करीब ले जायेगा.
निशा- सब नियति के हाथ में है .
भाभी- तू समझती क्यों नहीं
निशा- समझा है इसलिए ही तो कबीर का हाथ थामा है .
भाभी- देख, तू चाहे कबीर के साथ कुछ भी कर , समझ रही है न , चोरी छिपे मिल कोई दिक्त नहीं पर ये ब्याह की जिद छोड़
निशा- तुझे क्या लगता है नंदिनी कबीर को मेरे जिस्म की प्यास है . वो चाहता है मुझे. वो तुम सब जैसा नहीं है उसे मुझसे कुछ नहीं चाहिए वो बस मुझे हँसते हुए देखना चाहता है . अक्सर वो मुझसे कहता है की भाभी एक औरत जिसने अपने प्यार को पाया है वो उसके प्यार को क्यों नहीं समझती और मेरे पास कोई जवाब नहीं होता उसे देने के लिए.
भाभी- वो समझता भी तो नहीं है जबसे तुझसे मिला है वो पहले वाला कबीर नहीं रहा .
निशा- मैंने कुछ नहीं किया सब नियति का खेल है
भाभी- नियति , कितना आसन है न नियति की आड़ लेना
निशा- मुझे आड़ की क्या जरुरत नंदिनी.
भाभी- अब तू जिद पर ही आ गयी है तो ये ही सही पर इतना कह देती हूँ मेरे देवर की एक बूँद भी रक्त की धरा पर गिरी न तो ठीक नहीं होगा.
निशा- ठीक तो पहले भी नहीं था तू तब भी खामोश थी तू आज भी खामोश है नंदिनी .वक्त बदल गया पर हालात नहीं बदले नंदिनी.
भाभी- काश तुम समझ पाती
निशा- काश.......................
भाभी- समझती हूँ , मेरे ही आंचल तले पला है वो जानती हु तुमसे मोहब्बत उसकी जिद नहीं है हद से ज्यादा चाहता है वो तुमको, तुम्हे पाने के लिए कुछ भी कर जायगा वो मैं इस बात से डरती हूँ . तक़दीर ने हम सबको ऐसे मोड़ कर लाकर खड़ा कर दिया है की सामने अँधेरे के कुछ नही दीखता.
निशा- ये अँधेरा ही नियति है .
भाभी- तुम एक बार फिर सोच लो. तुम्हारा एक फैसला सब कुछ बदल देंगा
निशा- फैसला हो चूका है मैंने कबीर का हाथ थाम लिया है
भाभी- ये नियति के खेल ........... ठीक है फिर
भाभी आगे बढ़ी और कमरे से बाहर निकल गयी.
बाप की कहानी सुन कर मैं सोच में डूबा हुआ था . रुडा, विशम्बर दयाल और सुनैना. क्या ये प्रेम त्रिकोण हो सकता था . क्या रुडा का कहना की सुनैना की मौत के पीछे पिताजी का हाथ था सच हो सकता था . तमाम सवालों के जवाब के लिए मुझे रुडा का पक्ष जानना बेहद जरुरी था . दूसरी बात ये चाचा किधर गायब था . ऐसी कौन सी जगह थी जहाँ पर वो बिना किसी की नजरो में आये अपनी जिन्दगी जी रहा था . क्या सरला या रमा आज भी चाचा से चोरी छिपे मिलती होंगी क्या उस रात कविता चाचा से ही मिलने गयी थी जंगल में.
पर चाचा चोरी छिपे कही रह रहा था तो क्या उस चूतिये को कभी अपनी लुगाई की याद नहीं आती होगी. अपनी लुगाई को प्यासी छोड़ कर बाहर मजा करना , चलो मान लिया बाहर की चूत चाहिए थी पर रह तो सकता था न घर में.
सुबह आँख खुली तो मैंने पाया की घर पर पुजारी आया हुआ है मालूम हुआ की चंपा के ब्याह के लिए हल्दी की गाँठ आज शेखर बाबु के घर भेजी जाएगी. अब बस कुछ दिनों की बात थी फिर चंपा पराई हो जानी थी.पर मुझे तसल्ली ये थी की चंपा के ब्याह के तुंरत बाद मैं निशा से ब्याह कर लेता.
दोपहर तक रेस साहब, मंगू , उसका बाप और भैया शेखर बाबु के घर की तरफ रवाना हो गए थे. मैं सरला से मिलने खेतो की तरफ चल दिया. वहां पहुँचते ही मैंने उसे पास बुलाया और हमारी बाते शुरू हुई.
मैं- तूने और तेरी दोस्तों ने कभी कोशिश नहीं की चाचा को तलाशने की
सरला- की थी पर कुछ नहीं हुआ
मैं- ऐसी कौन सी जगह हो सकती है जहाँ चाचा बिना किसी की नजर में आये तुम सबको चोद भी सकता था और किसी को मालूम भी न हो
सरला- एक अरसा बीत चूका है कुंवर. तुम चाहो तो मैं जल उठा लू हाथ में मैंने उनको नहीं देखा.
मैं- आज रात को तुम्हारे घर आ जाऊ
सरला- अगर मेरा ससुर और बच्चे आज नहीं लौटे तो जरुर आ सकते हो .
मैं- ठीक है जाकर काम करो और शाम को समय से लौट जाना
एक बार फिर मैं उसी कमरे में खड़ा था जिसे मैंने तलाश किया था. इस बार मैंने रौशनी की अच्छी व्यवस्था की थी ये काई लगी दीवारे कुछ तो छिपाए हुए थी. गहनता से देखने पर मुझे एक लोहे की जंग खाई हुई खूँटी दिखी जिसे हिलाने पर एक छोटा दरवाजा सरका. दिवार के पार एक कमरा और था. जाले और धुल देख कर अंदाजा लगाया जा सकता था की बरसो से किसी ने कदम नहीं रखे थे यहाँ पर.
मैंने जाले हटाये और कमरे को देखा. कमरे में पलंग पड़ा था जिसके पायो में अब दीमक थी. दो कुर्सिया थी . इस बियाबान जंगल में पलंग कुर्सिया होने का मतलब था की इंसानी आमद की बसावट थी यहाँ, पलंग पर पड़े बिस्तर के निचे मुझे नंगी तस्वीरों वाली कुछ किताबे मिली जिनके पन्ने वक्त की मार झेल नहीं पाए थे. मुझे नोटों की गड्डी भी मिली जो अब किसी काम की नहीं रही थी .पलंग के निचे एक छोटा सा बक्सा था जिसने सोना भरा था . खरा सोना
“तस्वीरों का होना इशारा था की चाचा को मालूम था इस जगह के बारे में अपनी रांडो को यही लाकर चोदता होगा वो पर सोना मेरे विचार बदल रहा था क्या ये सोना चाचा का था अगर हाँ तो उसने पानी के निचे क्यों छिपाया और ऐसा क्या किया था उसने की उसे इतना सोना मिला ” इन सवालो ने मेरे सर में दर्द कर दिया.......................
अब ऐसे दिन आ गए हैं की कबीर का अपनो से भरोसा उठ गया है इसलिए रूड़ा का पक्ष जानना जरूरी है कबीर के लिए क्योंकि हर मोड़ पर एक प्रश्न खड़ा हो जाता है
अब ये समझ में नहीं आ रहा कि ये बक्शे में सोना किसका है और पानी के नीचे का सोना किसका है ???