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Awesome update with great writing skills manish bhai. U are such a jam..#८७
रमा- अब मेरा उस जगह से कोई वास्ता नहीं रहा
मैं- घर तो घर होता है . माना की दुःख के बादल थे घने पर कभी तो सुख की किलकारी भी गूंजी होगी वहां पर. यदि मैं कहूँ की तेरे जख्मो पर मरहम लगा दूंगा तो गलत होगा. पर मैं एक नयी जिन्दगी जीने में तेरी मदद कर सकता हु रमा. तेरी बीती जिन्दगी में हमारे परिवार के कारन दुःख आये, माफ़ी मांगता हूँ ये जानते हुए भी की मेरी माफ़ी तुझे कुछ भी वापिस नहीं लौटा पायेगी. पर फिर भी मेरी विनती है की तू अपने घर चल.
रमा- तुम समझते क्यों नहीं कुंवर, अब मेरी जिन्दगी यही है . जो है जैसा है वैसा ही रहने दो. कभी कभी मिलने आते रहना बहुत रहेगा मेरे लिए.
मैं समझता था उसके दिल के हालात मैंने फिर ज्यादा जोर नहीं दिया . मुझे रुडा से मिलना था पर बहुत कोशिशो के बाद भी बात बन नहीं रही थी . वापसी में मैंने परकाश की गाडी को जंगल में देखा .
“ये चूतिये की गाड़ी इस वक्त जंगल में क्या कर रही है ” मैंने सोचा और गाड़ी की तरफ बढ़ा पास जाकर देखा की प्रकाश किसी औरत को चोद रहा था . वैसे तो मेरी इच्छा नहीं थी ये सब देखने की पर मन के किसी कोने से आवाज आई की देख तो ले कौन है ये . मैं जितना पास हो सकता था उतना हुआ पर एक तो जंगल का अँधेरा उपर से धुंध समझ आ नहीं रहा था . ना ही वो दोनों आपस में कोई बात कर रहे थे .
औरत के हाथ गाड़ी के बोनट पर टिके हुए थे और परकाश पीछे से उसकी कमर थामे उसे पेल रहा था .
“जल्दी कर , देर हो गयी है ” मैंने उस औरत की खनकती चूडियो के बीच आवाज सुनी.
प्रकाश- चिंता मत कर गाड़ी से छोड़ आऊंगा तुझे बहुत दिनों बाद मिली है तू पूरा मजा लूँगा तेरी चूत का.
फिर वो औरत कुछ नहीं बोली बस चुदती रही . दिल कह रहा था की आगे बढ़ कर पकड़ ले और देख की कौन औरत है पर मैं ऐसा कर नहीं सका. थोड़ी देर बाद उनकी चुदाई खत्म हुई तो परकाश ने गाडी मलिकपुर की जगह मेरे गाँव वाले रस्ते पर मोड़ ली. मैं और हैरान हो गया ये औरत मलिकपुर की नहीं थी . मेरे गाँव की औरत का प्रकाश के साथ चुदाई सम्बन्ध .
अब मैंने सोचा की ये तो देखना ही पड़ेगा पर तभी गाडी स्टार्ट हुई और तेजी से आगे बढ़ गयी . ये जानते हुए भी की मैं गाड़ी की रफ़्तार नहीं पकड़ पाउँगा मैं उसके पीछे भागा. होना ही क्या था मैं पीछे रह गया बहुत पीछे. खैर, जब मैं कुवे पर पहुँचने वाला था तो दूर से ही कमरे के जलते बल्ब को देख कर मैं समझ गया था की कोई मोजूद है वहां पर .
कुवे पर पहुँचते ही मैंने हाथ पाँव धोये और पानी पी ही रहा था की मैंने पाया की सरला थी वहां पर .
मैं- तू इतनी रात को यहाँ क्या कर रही है .
सरला- वो मंगू की वजह से देर हो गयी.
मैं- उसकी वजह से कैसे.
सरला- वो मछली पकड़ने गया कह कर गया था की जल्दी ही आऊंगा फिर साथ चलेंगे. मैंने सोचा की कुछ मछली मैं भी ले जाउंगी . पर देखो कब से राह देख रही हु उसकी.
मैं- मैंने तुझसे कहा था की शाम होते ही तू घर चली जाया कर.
सरला- गलती हुई कुंवर, आगे से ध्यान रखूंगी.
मैं- और वो चुतिया ऐसी कितनी मछली पकड़ेगा.
मैं जानता था की गाँव में सबसे जायदा मछली मंगू को ही पसंद थी . पर अकेली औरत को छोड़ कर ऐसे जाना बेवकूफी ही थी .
मैं- चल गाँव चलते है वो आ जायेगा.
सरला ने हाँ में सर हिलाया मैंने कमरे की कुण्डी लगाई ही थी की मंगू आता दिखा मुझे . मुझे देख कर मंगू खुश हो गया और बताने लगा की कितनी मछली पकड़ी उसने. पर मैंने उसे थोडा गुस्सा किया और समझाया की आगे से ऐसे काम नहीं करे. खैर फिर हम तीनो बाते करते हुए गाँव पहुँच गए. मैंने मंगू से कहा की जल्दी से पका लेना खाना मैं उसके घर ही खाऊंगा फिर सरला को उसके घर छोड़ने चला गया.
उसका ससुर आज भी नहीं आया था .
सरला- कुंवर, आज भी आओगे क्या
मैं- नहीं . आज मुझे कुछ काम है .
दरअसल मैं सरला के जिस्म की आदत नहीं डालना चाहता था खुद को. दूसरी बात मेरे दिमाग में ये बात थी की परकाश किस औरत को चोद रहा था . गाँव की औरत पटाना उसके लिए मुश्किल नहीं था क्योंकि राय साहब के काम की वजह से वो काफी आता-जाता था गाँव में . सरला की बड़ी इच्छा थी पर मैंने उसे मना किया और मंगू के घर पहुँच गया. मछली-रोटी का भोजन करके आत्मा त्रप्त हो गयी . मैंने वही चारपाई पर बिस्तर लगाया और रजाई ओढ़ कर पसर गया. प्यास के मारे मेरी आँख खुली तो उठ कर मैं सुराही से पानी पी रहा था की मेरी नजर पास वाली चारपाई पर पड़ी, मंगू वहां नहीं था . घर का दरवाजा खुला पड़ा था .
“ये कहाँ गया इतनी रात को ” मैंने खुद से सवाल किया और कम्बल ओढ़ कर घर के बाहर गली में आ गया. मेरे दिमाग में एक ख्याल आया मैं सीधा सरला के घर गया दबे पाँव अन्दर घुसा , उसे मैंने सोते हुए पाया. न जाने मुझे लगा था की शायद मंगू ने सरला को भी पटा लिया हो. पर अनुमान गलत था .
अब उसे तलाशना मुमकिन नहीं था. वो कहीं भी किसी भी दिशा में जा सकता था . पर सवाल ये था की किस वजह से वो घर से बाहर निकला था इस ठिठुरती रात में. अब मेरा भी मन उचट गया था मैं वापिस मंगू के घर नहीं गया क्योंकि नींद टूट गयी थी . मैं कुवे की तरफ जाने के लिए गाँव से बाहर निकल गया. पगडण्डी पर पैर रखते ही उस जलते बल्ब को देख कर एक बार फिर मैं समझ गया था की कुवे पर कोई है , पर इतनी रात को कौन हो सकता है , क्या मकसद है आने वाले का सोचते हुए मैं कमरे के पास पंहुचा और उसे हल्का सा धक्का दिया. दरवाजा खुलते ही मेरी आँखे हैरत से फ़ैल गयी . ......................
Ab ye bhosdi ka mangu raat ko kaha gayab ho jata hai? Jab bhi foji ko kuch gadbad milta h to mangu saq k ghere me kyu rehta h.
Ab kue pe kon aagaya pata nahi? Kahi mangu to adamkhor k roop me nahi h waha?