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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

erriction

Eric
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जानता है , तू जान जायेगा. जब दिन के उजाले में घटा रंग बन कर बिखरेगी , जब आसमान भीगा होगा . मन के इन्द्रधनुष में प्रेम की बरसात के दरमियाँ मैं पहला पग उठा कर आगे बढ़ आउंगी तो तू जान जायेगा. ” उसने मेरे सीने में समाते हुए कहा.
कबीर और निशा नही
निशा और कबीर
भाई कितना अद्भुत दृश्य होगा जब कबीर और निशा दिन के उजाले मे रंग बिरंगी फ़िज़ा मे भीगे आसमां के दरमियाँ इंद्रधनुष की छावँ मे दीन दुनिया से दूर प्रेमालाप कर रहे होंगे🌹🌹🌹🌹🌹
इसकी कल्पना आप जैसे ही कर सकते है मेरे जैसे के बस की बात नही 🙏🙏🙏
कवि के रूप मे आपने मैं मोह लिया है

मै अब भी कहना चाहता हूँ सरकार आपकी की कलम पर कहीं न कहीं निशा का प्रभाव अवश्य है उसी प्रभाव के वशीभूत सारे पाठक सभी कार्य छोड़ कर बस आपके अगले अनुछेद की प्रतिक्षा करते है और दिमागी घोड़े दौड़ाते रहते है उन पाठकों मे मुझ जैसा नाचीज़ भी है

10 लाख से भी अधिक व्यु वो भी मात्र तीन माह से भी कम समय में 👏👏👏👏बहुत बहुत बबधाई और हार्दिक अभिनंदन

सरकार मैंने पहले भी अर्ज किया वर्तमान मे इस समय इस मंच पर आपकी और आपकी रचना की लोकप्रियता टीवी की भाषा मे TRP बहुत ही हाई है

बस आपसे अनुरोध है प्रेम की वर्षा करते रहे बाकी
आना जाना लगा रहता है
इक आयेगा इक जायेगा
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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:lotpot::lotpot: readers ko is stage tak sochne par majboor karne wale do log hain 1 kabir 2 writer
आज मैंने निशा का सच बता दिया है उम्मीद है कि आप समझ जाएंगे और अपने तक ही रखियेगा
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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मित्रों, मैं आपका बहुत आभारी हूं आपके प्रेम और विश्वास के साथ इस कहानी ने मात्र ढाई महीनों मे ही दस लाख व्यू की संख्या को पार कर लिया है.
Badhai ho bhai 🙏🙏
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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#91

सर्दियों की खामोश रातो में अक्सर आवाज बड़ी दूर तक गूंजती है . मैं और निशा भागते हुए मोड़ पर पहुंचे तो देखा की परकाश जमीं पर पड़ा था. मैंने उसे हिलाया-दुलाया पर बदन में कोई हरकत नहीं थी. बदन बेशक गर्म था पर साँस की डोर टूट चुकी थी . मैंने और निशा ने उसके बदन का अवलोकन किया .

निशा- चाकू से मारा है इसे.

मैं- पर किसने

निशा- होगा कोई दुश्मन इसका.

मैं- कल ही मैंने इसे अंजू के साथ देखा था , कल ही अंजू ने मुझे इसकी और उसकी प्रेम कहानी के बारे में बताया था और आज ये लाश बन गया.

निशा ने मेरा हाथ पकड़ा और जंगल की तरफ बढ़ गयी. कुछ देर बाद हम खंडहर में मोजूद थे.

मैं- यहाँ क्यों ले आई.

निशा- वहां खतरा था हो सकता था.

कहाँ तो मैं निशा के साथ अपने लम्हे जी रहा था और कहाँ अब ये रात मेरी मोहब्बत के सबब को बर्बाद करने पर तुली थी .

कुछ देर ख़ामोशी रही फिर मैंने ख़ामोशी को तोडा.

मैं- आज के बाद तू इन रातो में नहीं भटकेगी. जब तक मैं मालूम नहीं कर लेता की जंगल में चल क्या रहा है मैं तेरी सुरक्षा से समझौता नहीं करूँगा.

निशा- तू भी बता फिर कहाँ सुरक्षित रहूंगी मैं

मैं- कर लूँगा जुगाड़ .

निशा- इस वक्त मुझे तेरे साथ रहना जरुरी है .

मैं- जानता हूँ ,

मैं जानता था की प्रकाश की मौत का अंजू को जब पता चलेगा तो वो हिंसक हो जाएगी , देखना बस ये था की वो आरोप किस पर लगाएगी.

मैंने निशा का हाथ पकड़ा और बोला- मैं एक बार फिर तुझसे पूछता हूँ की तू इस खंडहर को सब कुछ जानती है

निशा- निशा बार बार क्यों पूछता है

मैं- क्योंकि ऐसा कुछ है जो तुझसे भी छिपा है.

निशा- दिखा फिर मुझे

मैं निशा को सीढियों पर ले आया और गुप्त दरवाजे से अन्दर आ गए. माचिस से मैंने चिमनी को जलाया और हलकी रौशनी हो गयी.

मैं- मैं तुझसे इन कमरों के बारे में जानना चाहता हूँ.

निशा आँखे फाड़े उस कमरे को देख रही थी . मैं उसे दुसरे कमरे में ले गया . जहाँ पर तमाम वो सामान और सोने से भरा बैग रखा था . उसने उस समान को देखा और फिर मुझे देखने लगी.

मैं- इसलिए ही मैं तुझसे कह रहा था की तू अकेली नहीं है मेरी सरकार जो इस जगह को जानती है कोई और भी है जिसने अपना राज छुपाया है यहाँ पर . ये सोना ये अय्याशी का समान ये बिस्तर इतना तो बता रहे है की है कोई जो जिस्मो की प्यास बुझाने आता है यहाँ .जितना मैं ढूंढ सकता था मैंने कोशिश की . मैं जानना चाहता हूँ की इस सोने का मालिक कौन है .

निशा ने एक गहरी साँस ली और उठ कर वापिस बहार वाले कमरे में आ गयी . मैं उसके पीछे आया .

निशा- बहुत सालो से मैं इस पानी में पड़े सोने के वारिस को तलाश रही हूँ. तूने सही कहा कबीर, यहाँ किसी और की आमद भी थी , पर मैं भी कहती हूँ की यहाँ बरसो से किसी ने मेरे सिवा और अब तेरे सिवा कदम नहीं रखा.

निशा की बात इस कहानी के तारो को और उलझा रही थी . आखिर कौन ऐसा चुतिया होगा जो इतने सोने को ऐसे ही छोड़ कर चला जायेगा. पर मुझे सोना नहीं चाहिए था , मैं तो देखना भी नहीं चाहता था इसकी तरफ . मैं अपनी जिन्दगी को देखना चाहता था जो मेरे सामने निशा के रूप में खड़ी थी .

मैं जानता था की प्रकाश की मौत का जब सुबह मालूम होगा तो नयी कहानी बनेगी पर माँ चुदाये प्रकाश साला कल मरते आज मरा . मैं अपनी प्रेयसी की बाँहों में जीना चाहता था . मैंने निशा की कमर पकड़ कर उसे अपने आगोश में लिया और उसके नितम्बो को सहलाते हुए उसके होंठ पीने लगा. उसने भी मेरा साथ दिया.

“मेरी जान एक अहसान तू भी कर अपने दीवाने पर . इस डाकन का सच भी बता दे मुझ को ” मैंने निशा के कान को चुमते हुए कहा.



“तू जानता है , तू जान जायेगा. जब दिन के उजाले में घटा रंग बन कर बिखरेगी , जब आसमान भीगा होगा . मन के इन्द्रधनुष में प्रेम की बरसात के दरमियाँ मैं पहला पग उठा कर आगे बढ़ आउंगी तो तू जान जायेगा. ” उसने मेरे सीने में समाते हुए कहा.

मैंने उसके गाल चूमे और बोला- मैं जानता हु, मेरी सरकार. तुझसे प्रेम किया है , तेरे संग जीना है तेरी बाँहों में मरना है तुझे नहीं जाना तो फिर क्या प्रेम किया मेरी सरकार .

उसने अपने पैर थोड़े ऊँचे किये और मेरे माथे को चुमते हुए बोली- मर तो बहुत पहले गयी थी ,अब और नहीं मरना अब जीना है मुझे .

इसके बाद न उसे कुछ कहने की जरुरत थी न मुझे. बेशक ये कमरा किसी का भी रहा हो. पर आज इस रात में ये हमारा था . रात के तीसरे पहर तक हम दोनों अपनी बाते करते रहे . उसके जाने से पहले मैंने उससे वादा लिया की वो ऐसा कुछ नहीं करेगी की उसको किसी भी किस्म का खतरा महसूस हो.



निशा के जाने के बाद भी मैं बहुत देर तक तालाब की मुंडेर पर बैठे उस सोने के बारे में सोचता रहा जिसके मालिक की दिलचस्पी ही नहीं थी उसमे. कोई प्रकाश भोसड़ी वाले को मार गया था . पर प्रकाश क्या कर रहा था वहां पर . मेरे कुवे के पर एक रात पहले अंजू का होना और अगली रात उसके पास ही प्रकाश की मौत , कुवे पर कुछ तो ऐसा था जिसकी तलाश में ये दोनों थे. मैं जब तक लौटा प्रकाश की लाश वहां से हटाई जा चुकी थी , मैंने देखा की पिताजी और भैया दोनों ही कुवे पर मोजूद थे.

“तू कल रात कहाँ था ” पिताजी ने सवाल किया मुझसे

मैं- यही पर था ,

पिताजी- हम लोग आये तब तो नहीं था तू

मैं- हर समय मोजूद रहना जरुरी तो नहीं, सुबह उठते ही मैं दौड़ने जाता हूँ, आप तो जानते ही है

पिताजी- कल रात प्रकाश की मौत हो गयी . किसी ने उसे यही थोड़ी दूर मार डाला

मैं- बढ़िया हुआ

पिताजी- कही इसमें तेरा तो हाथ नहीं .

मैं- काश होता पिताजी, उसे तो मरना ही था उसके कर्म ही ऐसे थे मैं नहीं तो कोई और सही , धरती से एक बोझ कम हो गया .

पिताजी- उसका बचपन हमारे सामने ही बीता था , हमारा विस्वसनीय भी था वो . अगर हमें मालूम हुआ की उसकी मौत में तुमहरा हाथ है तो फिर रहम की गुंजाईश मत करना

मैं- कोशिश कर लीजिये राय साहब. उसकी किस्मत इतनी भी मेहरबान नहीं थी की मेरे हाथो मौत होती उसकी.

पिताजी कुछ कहना चाहते थे पर उनकी नजर भैया पर पड़ी तो उन्होंने कुछ नहीं कहा. पिताजी के साथ भैया भी चले गए. ये जिन्दगी में पहली बार था जब भैया मेरे साथ हो और मुझसे बात नहीं की हो. मैं ये सोचने लगा की कुवे पर क्या हो सकता है ऐसा सोचते सोचते दोपहर हो गयी मैं तब तक सोचता रहा की जब तक मैंने चाची को अपनी तरफ आते हुए नहीं देखा.
बाह बाह बाह क्या बात है भाई, इतनी मिस्ट्री तो कोई नॉवेल मे भी नहीं मिलती आजकल मनीष भाई।
गजब की स्किल्स है आपकी, वैसे ये अपडेट भी कुछ सवाल छोड़ गया,
जोसे प्रकाश को किसने मारा? उनका पीछा कों कर रहा था?
निशा को कमरे के बारे मे क्यू पटा नहीं
3 बजे के बाद निशा कहा चाली जाति है वो कोनसी जगह है?
ओर सबसे बड़ा सवाल फौजी भाई पार्टी करके डबल अपडेट कब देते है????
 
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