#98
दो सवाल अंजू यहाँ क्या कर रही थी , और भैया रात को कहाँ गए थे. घूमते घूमते मैं मलिकपुर पहुँच गया , रमा की दूकान पर कुछ लोग थे. मैं अन्दर गया तो रमा मुझे मिल गयी .
मैं- कब से ढूंढ रहा हूँ और तुम हो की कहा गायब हो गयी थी , तुमसे जरुरी बात करनी थी .
रमा- अन्दर चलो मैं आती हूँ
कुछ देर बाद वो आई.
रमा- क्या बात थी
मैं- पिताजी और तुम्हारे बीच कब से ये सब चल रहा है
रमा- कुछ नहीं है हमारे बीच, कभी कभी वो बुलाते है मुझे . कभी अपनी मनमानी करते है कभी नहीं पर एक सवाल जरुर पूछते है
मैं- कैसा सवाल
रमा- यही की ठाकुर जरनैल मेरे पास आये क्या .
मैं- और क्या जवाब होता है तुम्हारा
रमा- यही की मैंने बरसो से उनको नहीं देखा.
मैं- मैंने मंगू के साथ भी देखा तुमको
रमा- राय साहब का कुत्ता है वो , हमारे जिस्मो की कुछ बोटिया कुत्तो को भी डाल देते है राय साहब ताकि हमें हमेशा याद रहे हमारी औकात.
मैं- उस रात जंगल में प्रकाश के साथ तुम चुदाई कर रही थी . तुम दोनों मिल कर चुतिया बना रहे थे मुझे
रमा- मेरी ऐसी मंशा नहीं थी न ही कभी प्रकाश ने मुझसे कुछ कहा तुम्हारे बारे में . वो बस आता चोदता और चले जाता.
मैं- बस इतना ही
रमा- हां, इतना ही .
मैं- देख रमा, मैंने तुझे वैध से चुदते देखा, फिर परकाश से फिर पिताजी और मंगू से, चाचा पहले से ही पेलता था तुझे. मैं नहीं जानता इस खेल में कौन गलत है कौन सही, मैं नहीं जानता तेरे मन में क्या चल रहा है तू चाहे दुनिया में आग लगा दे परवाह नहीं पर इतना ध्यान रखना तेरी खुराफात में किसी मजलूम का नुकसान न हो . तेरी चूत तू किसी को भी दे तू जाने.
रमा- क्या जानना चाहते हो मुझसे कुंवर.
मैं- चाचा कहाँ है ये जानना चाहता हूँ मैं
रमा- बस यही नहीं जानती मैं
मैं- रुडा और चाचा की लड़ाई हुई थी क्या रुडा का हाथ हो सकता है इसमें
रमा- मुझे नहीं लगता. रुडा बेशक घटिया है पर इतना नहीं गिरेगा वो .
मैं- परकाश को किसने मारा होगा.
रमा- चर्चा तो ये है की सूरजभान ने मारा है
मैं- किसने कहा ऐसा.
रमा- कहने को कौन आएगा उडती उडती खबर है .
मैं- पर सूरजभान तो साथ रहता था प्रकाश के फिर क्यों मारेगा उसे.
रमा-पिछले कुछ समय से अंजू और सूरजभान की तल्खी बहुत बढ़ गयी है . सूरज को लगता है की प्रकाश अंजू को चोदता है , कोई उसके घर की लड़की पर हाथ डाले ये उसे गवारा नहीं था शायद इसलिए ही .
मैं- पर अंजू तो उनके साथ रहती तो नहीं
रमा- साथ नहीं रहती पर है तो उनके परिवार की ही , है तो उसकी बहन ही.
मैं- चाचा को सबसे प्यारी तू थी , कभी चाचा ने तुझे कुछ ऐसा बताया जो तुझे खटका हो .
रमा- ऐसा तो कुछ खास नहीं था . पर वो कभी कभी कहते थे की राय साहब उनसे स्नेह नहीं करते थे .
मैं- और
रमा- छोटे ठाकुर का दिल उस घर में नहीं लगता था वो जायदातर समय जंगल में ही रहना पसंद करते थे .
मैं- जंगल में कहा था ठिकाना तुम लोगो के मिलने का.
रमा- ज्यादातर तो खेतो पर बने कमरे में ही मिलते थे या फिर छोटे ठाकुर की गाडी में .
चाचा भी गाडी रखते थे , ये तो मुझे मालूम ही था क्योंकि मैंने कभी भी चाचा की गाड़ी नहीं देखि थी .
मैं- चाचा की गाडी
रमा- हाँ,
मैं- तो अब कहा है वो गाडी
रमा- मालूम नहीं , जब से छोटे ठाकुर गए है गाड़ी देखि नहीं मैंने,शायद वो साथ ही ले गए हो.
मैं- इतने लोग से चुदने का क्या कारन है , चूत देकर क्या पाना चाहती है तू .
रमा- नहीं जानती .
मैं- जानता हु अब वापिस लौटना मुश्किल है पर फिर भी कोशिश तो कर ही सकती है न , अगली बार जब राय साहब तेरे पास आये तो तू मना करना कहना की कबीर ने कहा है .
रमा- राय साहब के खिलाफ जाओगे कुंवर.
मैं- वो मेरी समस्या है . क्या इतना मालूम कर सकती है की जिस दिन चाचा यहाँ से गया आखिरी बार वो किसके साथ था , किस से मिला था . कोई लेन देन कुछ तो ऐसा बताया होगा तुझे चाचा ने जो उस समय अजीब नहीं लगा हो पर आज उसका महत्त्व हो.
रमा- ऐसा तो कुछ खास नहीं है , छोटे ठाकुर बात बहुत कम करने लगे थे जब वो मिलने को बुलाते थे तो बस चुदाई की और हमारे लिए जो भी तोहफे लाते थे देकर चले जाते थे . कभी मैं पूछती तो टाल देते थे पर शायद अपने मन में कुछ तो छिपा रहे थे वो.
मैं- ऐसी कौन सी जगह थी जहाँ पर वो सबसे जायदा जाते थे मतलब जब वो चुदाई नहीं कर रहे होते थे तब.
रमा-नहीं मालूम पर वो हमें गहने देते थे तो कहते थे की ये बहुत बढ़िया कारीगर से बनवाये है .
मैं- कौन था वो कारीगर
रमा- यही, अपने सुनार और कौन. मुझे याद है एक बार उन्होंने कहा था की वो छोटी ठकुरानी के लिए कुछ विशेष गहने बनवा रहे थे.
“सुनार , ह्म्म्म ” मैंने कहा और वहां से चल दिया. अचानक से मुझे उन गहनों में उत्सुकता जाग गयी थी जो चाचा ने चाची के लिए बनवाये थे . मुझे वो गहने देखने थे और साथ ही मालूम करना था की चाचा की गाडी कहाँ गयी.
वापसी में मुझे अंजू फिर मिली, तनहा रात में आग जलाये सडक किनारे बैठी थी वो . इतनी रात को ये बहन की लोडी क्या करती है जंगल में मैं सोच कर ही पगला जा रहा था.
मैं- इतनी रात को यु अकेले जंगल में भटकना ठीक नहीं
अंजू- ये बात तुम पर भी लागू होती है
मैं- मैं तो अपने काम से गया था
अंजू- मुझे भी कोई काम हो सकता है न
मै आंच के पास बैठ गया और हाथ सेंकने लगा.
अंजू- क्या चाहते हो तुम इस जंगल से
मैं- अपने कुछ सवालो के जवाब
अंजू- क्या है सवाल तुम्हारे.
मैं- यही की ये जंगल क्या छिपा रहा है मुझसे
अंजू- मौत छिपी है यहाँ पर ,
मैं- कैसी मौत किसकी मौत
अंजू- मेरी मौत तुम्हारी मौत . हम सब की मौत. यहाँ जो ख़ामोशी है वो चीखो से दबी है , जंगल का कोना कोना रक्तरंजित है
मैं- किसका रक्त
अंजू- न तुम्हारा, न मेरा . अरमानो का रक्त, जज्बातों का रक्त, ..................