Sanju@
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कहने और निभाने में बहुत फ़र्क होता है लेकिन जहां मोहब्बत है वहा तो ये सोचना भी नहीं पड़ता है सब कुछ अपने आप हो जाता है#97
भाभी- कितना चाहते हो उसे.
मैं- जितना तुम भैया को.
भाभी ने मेरे हाथ को अपने हाथ में लिया और बोली- निभा पाओगे उस से. उम्र के जिस दौर से तुम गुजर रहे हो कल को तुम्हारा मन बदल गया तो. मोहब्बत करना अलग बात है कबीर और मोहब्बत को निभाना अलग. तुम जिसे मंजिल समझ रहे हो वो ऐसा रास्ता है जिस पर जिन्दगी भर बस चलते ही रहना होगा. कभी सोचा है की किया होगा जब तुम्हारे भैया को मालूम होगा, जब राय साहब को मालूम होगा.
मैं- भैया को मैं मना लूँगा, और राय साहब को मैं कुछ समझता नहीं
भाभी- अच्छा जी , इतने तेवर बढ़ गए है , डाकन का ऐसा रंग चढ़ा है क्या.
मैं- जो है अब वो ही है .
भाभी- पुजारी से पूछा था मैंने कहता है कोई योग नहीं
मैं- उसके हाथो की लकीरों में मेरा नाम लिखा है , और कितना योग चाहिए पुजारी को .
भाभी- पर मेरा दिल नहीं मानता
मैं- दिल को मना लेंगे भाभी ,
“दिल ही तो नहीं मानता देवर जी ” भाभी ने अपनी गर्म सांसे मेरे गालो पर छोड़ते हुए कहा
मैं- भूख लगी है , कुछ दे दो खाने को .
भाभी- भैया को बुला लाओ मैं परोसती हूँ.
भाभी रसोई की तरफ बढ़ गयी मैं ऊपर चल दिया भैया के कमरे की तरफ. देखा भैया कुर्सी पर बैठे थे.
मैं- खाना नहीं खाना क्या
भैया- आ बैठ मेरे पास जरा
मैं वही कालीन पर बैठ गया .
मैं- क्या आप को मालूम है की सुनैना अंजू के लिए कितना सोना छोड़ कर गयी है .
भैया- क्या तू जानता है की मेरा छोटा भाई, जिसके कदमो में मैं दुनिया को रख दू, वो खेतो पर पसीना क्यों बहाता है .
मैं- क्योंकि मेरे पसीने की रोटी खा कर मुझे सकून मिलता है . मेरी मेहनत मुझे अहसास करवाती है की मैं एक आम आदमी हूँ , ये पसीना मुझे बताता है की मेरे पास वो है जो दुनिया में बहुत लोगो के पास नहीं है .
भैया- अंजू समझती है की वो सोना उसका नहीं है , वो जानती है की वो सोना अंजू को कभी नहीं फलेगा.
मैं-तो उस सोने की क्या नियति है फिर.
भैया- माटी है वो समझदारो के लिए और माटी का मोल मेरे भाई से ज्यादा कौन जाने है
मैं- दो बाते कहते हो भैया
भैया- सुन छोटे, कल से तू ज्यादा समय घर पर ही देना, ब्याह में कोई कसर नहीं रहनी चाहिए .बरसों बाद हम कोई कारण कर रहे है .
मैं- जो आप कहे, पर मैं कुछ कहना चाहता हूँ
भैया- हा,
मैं- ब्याह की रात पूनम की रात है
मैंने जान कर के बात अधूरी छोड़ दी.
भैया - तू उसकी चिंता मत कर , तेरा भाई अभी है . चल खाना खाते है भूख बहुत लगी है .
हम दोनों निचे आ गए. खाना खाते समय मैंने महसूस किया की भैया के मन में द्वंद है , शायद वो मेरी बात की वजह से थोड़े परेशान हो गए थे. मैं भी समझता था इस बात को . उस रात परेशानी होनी ही थी मुझको . पर मैंने सोच लिया था की मैं दिन भर रहूँगा और रात को खेतो पर चला जाऊंगा, यही एकमात्र उपाय था मेरे पास.
खाना खाने के बाद मैं चाची के पास आ गया . मैंने बिस्तर लगाया और रजाई में घुस गया . थोड़ी देर बाद चाची भी आ गयी . और मेरे सीने पर सर रख कर लेट गयी .
चाची - क्या सोच रहा है कबीर
मैं- राय साहब के कमरे में कोई औरत आती है रात को उसी के बारे में की कौन हो सकती है
चाची- शर्म कर , क्या बोल रहा है तू अपने पिता के बारे में
मैं - पिता है तो क्या उसे चूत की जरूरत नहीं
चाची- कुछ भी बोलेगा तू
मैं- मैंने देखा है पिताजी को उस औरत को चोदते हुए
चाची- बता फिर कौन है वो
मैं- चेहरा नहीं देख पाया.
मैंने झूठ बोला.
चाची- घर में इतना कुछ हो रहा है और मुझे मालूम नहीं
मैं- पता नहीं तेरा ध्यान किधर रहता है.
मैंने चाची का हाथ पकड़ा और निचे ले जाकर अपने लंड पर रख दिया.चाची ने मेरे पायजामे में हाथ डाल दिया और अपने खिलोने से खेलने लगी. मैंने चाची के चेहरे को अपनी तरफ किया और उसके होंठ चूसने लगा. आज की रात चाची की ही लेने वाला था मैं पर नसीब देखिये, बाहर से दरवाजा पीटा जाने लगा ये भाभी थी जो रंग में भंग डालने आ पहुंची थी .
हम अलग हुए और चाची ने दरवाजा खोला भाभी अन्दर आई और बोली- चाची , अभिमानु कही बाहर गए है मैं आपके पास ही सोने वाली हूँ. मैंने मन ही मन भाभी को कुछ कुछ कहा .मैं बिस्तर से उठा और बाहर जाने लगा.
भाभी- तुम कहाँ चले
मैं- कुवे पर ही सो जाऊंगा. वैसे भी अब इधर नींद कम ही आती है मुझे.
मैंने कम्बल ओढा और बाहर निकल गया चूत से ज्यादा मैं ये जानना चाहता था की भैया रात में कहा गए. मैंने एक नजर बाप के कमरे पर डाली जिसमे अँधेरा छाया हुआ था , सवाल ये भी था की बाप चुतिया कहा रहता था रातो को .
सोचते सोचते मैं पैदल ही खेतो की तरफ जा रहा था . पैर कुवे की तरफ मुड गए थे पर थोडा आगे जाकर मैंने रास्ता बदल दिया मैंने खंडहर पर जाने का सोचा. हवा की वजह से ठण्ड और तेज लगने लगी थी . मैंने कम्बल कस कर ओढा और आगे बढ़ा. थोडा और आगे जंगल में घुसने पर मुझे कुछ आवाजे आई. आवाज एक औरत और आदमी की थी . इस जंगल में इतना कुछ देख लिया था की अब ये सब हैरान नहीं करता था.
झाड़ियो की ओट लिए मैं उस तरफ और बढ़ा. आवाजे अब मैं आराम से सुन पा रहा था .
“मुझे जो चाहिए मैं लेकर ही मानूंगा, तुम लाख कोशिश कर लो रोक नहीं पाओगी मुझे ”
“मुझे रोकने की जरुरत नहीं तुमको, तुम्हारे कर्म ही तुमको रोकेंगे. ” औरत ने कहा
इस आवाज को मैंने तुरंत पहचान लिया ये अंजू थी पर दूसरा कौन था ये समझ नहीं आया फिर भी मैंने कान लगाये रखे.
“तुम कर्मो की बात करती हो , हमारे खानदान की होकर भी तुमने एक नौकर का बिस्तर गर्म किया , घिन्न आती है तुम पर मुझे ”
“जुबान संभाल कर सूरज , ” अंजू ने कहा.
तो दूसरी तरफ सूरजभान था जो अपनी बहन से लड़ रहा था .
सूरजभान- शुक्र करो काबू रखा है खुद पर वर्ना न जाने क्या कर बैठता
अंजू- क्या करेगा तू मारेगा मुझे, है हिम्मत तुजमे तू मारेगा मुझे. आ न फिर किसने रोका है तुझे .
सूरज- मारना होता तो कब का मार देता पर तुम्हारे गंदे खून से मैं अपने हाथ क्यों ख़राब करू.
अंजू- मेरा सब्र टूट रहा है सूरज. मुझे मजबूर मत कर की मैं भूल जाऊ की तू मेरा भाई है .
सूरज- तुम हमारी बहन नहीं हो. कभी नहीं थी तुम हमारी, तुम बस हमारे बाप की वो गलती हो जिसे हम छिपा नहीं सकते.
तड़क थप्पड़ की आवाज ने बता दिया था की सूरजभान का गाल लाल हो गया होगा.
अंजू- तेरी तमाम गुस्ताखियों को आज तक मैंने माफ़ किया, पर आज इसी पल से तेरा मेरा रिश्ता ख़तम करती हूँ मैं. और मेरा वादा है तुझसे, अगर मेरा शक सही हुआ तो तेरी जिन्दगी के थोड़े ही दिन बाकी रह गए है. दुआ करना की तू शामिल ना हो मेरे दर्द में .
कुछ देर ख़ामोशी छाई रही और फिर मैंने गाड़ी चालू होते देखि . मैं तुरंत झाड़ियो में अन्दर को हो गया की कही रौशनी में मुझे न देख लिया जाए. कुछ देर मैं खामोश खड़ा सोचता रहा की अंजू के सामने जाऊ या नहीं .
चंपा के ब्याह की तैयारी हो रही है अच्छी बात है पर हमें लगता है वह इस शादी से खुश नहीं है कारण पता नही है
सूरजभान को क्या चाहिए जो वह लेकर रहेगा इसे किसकी तलाश है देखते हैं अंजू को लगता है शायद परकाश की मौत में सुरजभान का हाथ है देखते हैं आगे क्या होता है
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