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सत्य वचन सरकारमुंह में खून, हाथ में लाश ?
ये भी छलाबा
सत्य वचन सरकारमुंह में खून, हाथ में लाश ?
ये भी छलाबा
Hahaha bhai yeh fauji bhai ki story hai.jitne bi kyaas laga lo sab dhare reh jayengeसभी ने ध्यान दिया और फौजी को पुछा भी पर इन्होने वैसे ही लीपापोती कर दी जैसे इनके सब निकट वाले इनके साथ कर रहे हैं और इस लीपापोती के सब से बड़े पीड़ित हम ही हो रहे हैं
Aaye hay kya tadap hai fauji bhaiकहां गई Moon Light
Wah wah kya zwaab haiWatching game
Fauji bhai payar se dant diyaबस ये कहानी का अंतिम भाग लिख दु फिर और कहीं ये ध्यान लगाना है दोस्त
Are to dimagh kiu karab karne ka is ke baad new story le aao phir se pass pasहर नया अपडेट मुझे तुमसे थोड़ा और दूर करे जाता है
शानदार जबरदस्त भाई लाजवाब#83
मैंने रमा को सुना था, मैंने सरला को सुना था पर तीसरी कड़ी कविता से कोई बात नहीं हो पाई थी, उसकी मौत का मलाल था, वो जिन्दा होती तो इस गुत्थी को सुलझाने में मेरी बड़ी मदद कर सकती थी . रुडा से हर हाल में मुझे उसका पक्ष जानना था पर पिछले कुछ समय से जो हालात रहे थे क्या वो तैयार होगा मुझसे बात करने को ये भी था. बहुत कोशिश की पर भाभी अपने सीने में न जाने क्या दबाये हुई थी. अतीत के पन्ने का ऐसा क्या राज था जो जानते सभी थे बताता कोई नहीं था.
शाम को मैं भाभी के साथ खाना खा रहा था तो मैंने एक बार फिर से बातो का सिलसिला शुरू किया
मैं- भाभी,रुडा और पिताजी के बिच दुश्मनी की वजह सुनैना थी . पर क्या आपको नहीं लगता की दो दोस्तों को एक दुसरे पर इतना विश्वास तो होना चाहिए था न.
भाभी- विश्वास की डोर बड़ी कच्ची होती है कबीर. दरअसल सब कुछ परिस्तिथियों पर निर्भर होता है , कभी कभी आँखे वो देखती है जो नहीं होता . जब सुनैना मरी ठीक उसी समय रुडा का वहां पहुंचा और राय साहब को खून से लथपथ देखना. ये ठीक वैसा ही है जब कविता की मौत के बाद मैंने तुम पर शक किया था .
मैं- मैं हर हाल में अतीत के पन्नो को पढना चाहता हूँ
भाभी- दुसरो की जिंदगियो में झांकना एक तरह की बदतमीजी होती है . उन जिंदगियो से तुम्हारा क्या लेना देना .
मैं- लेना देना है , क्योंकि मैं भी अब उन कहानियो का एक पात्र हूँ.
भाभी- यही तो बदकिस्मती है
मैं- आप बता क्यों नहीं देती मुझे की अतीत में क्या हुआ था
भाभी- मैं अतीत का एक पहलु हूँ बस, मैं अभिमानु से जुडी हूँ यही मेरा सच है यही मेरा आज है यही मेरा कल था. रही बात तुम्हारे पिता की , चाचा की तो उनकी कहानी में हम सब जुड़ गए क्योंकि हम सब परिवार की डोर से बंधे है. और परिवार एक ऐसी चीज है जिसे एक सूत्र में बांधे रखने के लिए हमें बहुत कुछ करना पड़ता है .
मैं- ऐसी बात थी तो फिर चंपा और राय साहब के रिश्ते के बारे में मुझे क्यों बताया .
भाभी- तुम्हारे अटूट स्नेह के कारन कबीर. चंपा से तुम कितना स्नेह करते हो मुझसे छिपा नहीं है . पर उसी स्नेह , उसी निश्छलता का कोई गलत फायदा उठाये तो उसके पक्ष को जाहिर होना ही चाहिए न .
मैं- पर अगर दोनों की सहमती है तो क्या बुराई है भाभी .
भाभी- यही तो दोगलापन है कबीर , दोनों की सहमती पर क्या मायने है इस सहमती के.ये सब खोखली बाते है , यदि कोई नियम है तो फिर सबके लिए समान क्यों नहीं ये तुमने पूछा था मुझसे उस दिन जब लाली को मार कर लटका दिया था मेरे पास उस दिन कोई जवाब नहीं था . लाली और उसका प्रेमी के बीच भी तो सहमती थी न . आज मेरा भी यही सवाल है की पूजनीय राय साहब खुद इस घ्रणित कार्य में लिप्त क्यों है.
मैं- तो क्या पिताजी के सुनैना से भी इस प्रकार के सम्बन्ध हो सकते थे .
भाभी- उन तीनो की कहानी में हमें बस इतना मालूम है की रुडा और राय साहब की दुश्मनी का कारन सुनैना की मौत थी .
मैं- और चाचा , उसका क्या
भाभी- उसका जाना एक पहेली है जिसे आज तक सुलझाया नहीं गया.
मैं- रुडा और चाचा के सम्बन्ध भी ठीक नहीं थे उसका क्या कारन
भाभी- काश मुझे मालूम होता.
उस रात मैं चाची की लेना चाहता था पर अभिमानु भैया घर पर नहीं थे तो भाभी ने अपना बिस्तर चाची के पास लगा लिया . मैंने सरला के घर जाने का सोचा. मुझे देखते ही उसके होंठो पर मुस्कुराहट आ गयी . मैंने बिना देर किये उसे पकड़ लिया और चूमने लगा. सरला का हाथ मेरे लंड पर पहुँच गया . इतनी बेसब्री थी की कुछ पलो में ही हम दोनों नंगे एक दुसरे से चिपके हुए थे.
“आग बहुत है तुझमे ” मैंने उसके नितम्बो को मसलते हुए कहा.
सरला- कल मेरा ससुर और बच्चे आ जायेंगे फिर रात को मौका मिलना मुश्किल होगा. आज की रात जी भर कर चोद लो मुझे.
मैं- फिर कुछ ऐसा कर की ये रात भुलाये न भूले भाभी,
मैंने सरला की गांड के छेद को सहलाया , तभी मुझे उन नंगी तस्वीरों वाली किताब के एक पन्ने का ध्यान आया जिसमे एक आदमी ने औरत की गांड में लंड डाला हुआ था . मैंने सरला के साथ ये करने का सोचा. पर तभी सरला घुटनों के बल बैठ गयी और मेरे लंड को अपने मुह में भर लिया. अब मुझे लंड की सुजन की कोई परवाह नहीं थी क्योंकि मैं जान गया था की इसकी मोटाई ही वो वजह थी जो औरते इसे चूत में लेने को मचल जाती थी.
सरला को अपना मुह ज्यादा खोलना पड़ रहा था पर वो मजे से चूस रही थी . मुझे मानना पड़ा था की चचा ने इन रंडियों को चुदाई की गजब कला सिखाई थी . सरला ने अब लंड को मुह से निकाला और मेरे अन्डकोशो को मुह में भर कर जीभ से चाटने लगी. ये एक ऐसी हरकत थी जिससे मैंने अपने घुटने कांपते हुए महसूस किये.
“ओह सरला,,,,, क्या चीज है तू ” मैंने होंठो से उसकी तारीफ निकले बिना रह न सकी. तारीफ सुन कर उसकी आँखों में चमक आ गयी वो और तलीनता से चूसने लगी. ये मजा चाची ने कभी नहीं दिया था मुझे.
तभी वो उठ खड़ी हुई और बिस्तर पर चढ़ कर घोड़ी बन गयी . इतने मादक नितम्ब देख कर कोई कैसे रोक पाए खुद को. मैंने बड़े प्यार से सरला के कुलहो को मसला . बिना बालो की लपलपाती चूत जो रस से भीगी हुई थी और उसकी गांड का भूरा छेद. अपनी नाक से रगड़ते हुए मैंने उसे सूंघा उफ्फ्फ्फ़ ऐसी उत्तेजना पहले कभी चढ़ी नहीं मुझे पर. सरला की गांड चची से बड़ी थी तो और भी नशा था उसका.
“पुच ” अपने होंठो से मैंने सरला की गांड के छेद को चूमा. भूकंप सा कम्पन मैंने सरला के जिस्म में महसूस किया. गांड को चूसते चाटते हुए मैंने अपनी दो उंगलिया सरला की चूत में घुसा दी और अन्दर बाहर करने लगा. सरला के मुह से निकलती गर्म आहे उस कमरे में ठण्ड को पिघलाने लगी थी . सब कुछ भूल कर मैं बस उसके जिस्म में खो सा गया था . सरला की चूत हद से जायदा रस बहा रही थी . दोनों छेदों इ मस्ती सरला ज्यादा देर तक नहीं झेल पाई और सिसकारी भरते हुए झड गयी . बिस्तर पर पड़ी वो लम्बी सांसे ले रही थी .
“मुझे गांड मारनी है तेरी ” मैंने अपने मन की बात कही उस से .
कुछ देर बाद सरला उठी और सरसों का तेल ले आई. मैं समझ गया की क्या करना है औंधी पड़ी सरला के छेद पर मैंने तेल लगाया और अपनी एक ऊँगली गांड में सरका दिया. एक पल उसने बदन को कसा और फिर ढीला छोड़ दिया. जितनी अन्दर जा सकती थी ऊँगली मैंने खूब तेल लगया और फिर अपने लंड को भी तेल से चिकना कर लिया.
सरला- जबरदस्ती न करना कुंवर. जब मैं कहूँ रुको तो रुकना, दोनों का सहयोग रहेगा तभी तुम ये मजा ले पाओगे.
मैंने हाँ कहा और अपना लंड उसकी गांड के चिकने छेद पर लगा दिया. सरला के कहे अनुसार मैं धीरे धीरे लंड को अन्दर डालने लगा. उसे दर्द हो रहा था पर वो भी मुझे ये सुख देना चाहती थी . तेल की वजह से काफी आसानी हो रही थी . थोडा थोडा करके मैं उसकी गांड में घुसा जा रहा था फिर उसने रुकने को कहा और धीरे धीरे लंड आगे पीछे करने को कहा. चूत मारने से काफी अलग अनुभव था ये क्योंकि गांड का छल्ला काफी कसा हुआ था लंड पर दबाव ज्यादा था. पर कहते है न की कोशिश करने वालो की हार नहीं होती. हमने भी मंजिल को पा ही लिया. मैंने सरला के गालो को दोनों हाथो में थामा और उसके गर्म जिस्म को चोदने लगा.
मैंने उस रात जाना था की क्यों चाचा इन औरतो के जिस्म का दीवाना था .सरला ने सच में समां बाँध दिया था . उसने मुझे वो सुख दिया था जो बहुत कम लोगो को नसीब होता है . मैंने जब उसकी गांड में अपना वीर्य छोड़ा तो ऐसा लगा की किसी ने जिस्म से जान ही निचोड़ ली हो . उस रात हमने दो बार चुदाई की . आधी रात से कुछ ज्यादा का समय रहा होगा मैं उसके घर से निकल कर जा रहा था . मैं गली में मूतने को रुका ही था की मैंने वैध के घर में एक औरत को जाते हुए देखा. इतनी रात में वैध के घर में कौन औरत जा सकती है. मेरा मूत ऊपर चढ़ गया वापिस से . वो औरत घर में घुस गयी . मैंने मालूम करने का सोचा की कौन होगी ये . मैं घूम कर कविता के कमरे वाली खिड़की के पास पहुंचा उसे धक्का दिया और मैं घर में घुस गया. अन्दर से दो लोगो की आवाजे आ रही थी मतलब की वैध भी घर में ही था. दबे पाँव मैं वैध के कमरे की तरफ गया और वहां जाकर जो मैंने देखा मेरी आंखे जैसे जम ही गयी............................
शानदार bhai#84
वैध और रमा बिस्तर पर एक दुसरे संग लिपटे पड़े थे. मेरी आँखे ये देख कर हैरान थी की एक बुजुर्ग रमा जैसी औरत की ले रहा था . रमा और वैध के ऐसे सम्बन्ध होगने कोई सोच भी नहीं सकता था . वैध मुझे शुरू से ही कुछ अजीब तो लगता था पर इतना घाघ होगा ये सोचा नहीं था. खैर, मुझे इतंजार करना था . कुछ देर बाद चुदाई ख़त्म हुई और दोनों बिस्तर पर बैठ गए.
रमा- वैध, तुमने वादा किया था मुझसे
वैध- तेरे काम में ही लगा हूँ
रमा- कितने साल बीत गए ये सुनते सुनते तुमने बदले में मेरा जिस्म माँगा था मैंने तुमको वो भी दिया आज तक देती आ रही हूँ और कितना इंतज़ार करना होगा
वैध- जिस्म देकर कोई अहसान नहीं किया तूने , अपनी लाज बचाने का सौदा था वो . ठाकुर से चुद रही थी थोडा मैंने चोद लिया तो क्या हुआ .
रमा- तूने सौदा किया था मुझसे
वैध- रंडिया कब से सौदा करने लगी. तू और वो साली तेरी दोस्त कविता रंडिया ही तो थी .ठाकुर की रंडिया , उसको घर में रखा था जब बाहर चुद रही थी तो घर वालो से क्यों नहीं , मैंने भी चोद लिया तो क्या गुनाह किया .
तो वैध भी चोदता था कविता को. साला हद ठरकी निकला ये साला. हिकारत से मैंने थूका.
रमा- गरीब की आह में आवाज नहीं होती वैध पर जब लगती है न तो बड़ी जोर से लगती है .
वैध- धमकी दे रही है तू मुझे
रमा- मैं सिर्फ इतना चाहती हूँ की तू अपना वादा निभा
वैध- तो समझ ले की मैंने वादा तोड़ दिया.
रमा- तू ऐसा नहीं कर सकता , तुजे अंजाम भुगतना होगा इसका.
वैध- जानती नहीं तू मेरे ऊपर किसका हाथ है
रमा- जानती हूँ ”
वैध- जानती है तो जब भी बुलाऊ आया कर और चुद कर चुपचाप चली जाया कर
रमा इस से पहले कुछ कहती अन्दर से निकल कर मैं उन दोनों के सामने आकर खड़ा हो गया. दोनों की गांड फट गयी मुझे अचानक से देख कर.
मैं- किसका हाथ है तेरे सर पर वैध
“कुंवर आप यहाँ ” वैध की आँखे बाहर आने को हो गयी .
मैं- ये मत पूछ मैं यहाँ क्यों ये बता की तेरे सर पर किसका हाथ है जो तू रमा से किया अपना वादा नहीं निभा रहा . औरत की चूत इतनी भी सस्ती नहीं की तू चोद ले और बदले में उसे कुछ न दे.
वैध मिमियाने लगा.
मैं- रमा से क्या वादा किया था तूने , मैं सुनना चाहता हूँ और अगर तेरी जुबान तुरुन्त शुरू नहीं हुई तो ये रात बहुत भारी पड़ेगी तुझ पर .
वैध- मैं अभिमानु ठाकुर से कहूँगा की तुम चोरी से मेरे घर में घुसे और मुझे पीटा
मैं- ये कर ले तू पहले, चल भैया के पास अभी चल रमा को तूने चोदा मैं गवाह हूँ वो ही करेंगे तेरा फैसला .
वैध के बदन में बर्फ जम गयी .
मैं- तो बता फिर क्या वादा था वो.
वैध की शकल ऐसी थी की रो ही पड़ेगा . मैंने एक थप्पड़ मारा उसके गाल पर और उसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी .
वैध- मैंने रमा से वादा किया था की वो अगर मेरे साथ सोएगी तो मैं उसे बता दूंगा की इसकी बेटी को किसने मारा था
वैध की बात ने मुझे भी हिला कर रख दिया था . जिस सवाल को मैं बाहर तलाश रहा था उसे इस चुतिया ने अपने सीने में दफ़न कर रखा था . रमा की आँखों से आंसू बहने लगे , मैं समझ सकता था एक माँ के दिल पर क्या बीत रही होगी. औरत चाहे जैसी भी हो पर उसका माँ का स्वरूप , उसका दर्जा बहुत बड़ा होता है .
मैं- वादा निभाने की घडी आ गयी है वैध, मैंने भी रमा से एक वादा किया है तू बता मुझे कौन था वो हैवान
वैध ने थूक गटका और बोला- ठाकुर जरनैल सिंह, छोटे ठाकुर ने मारा था रमा की बेटी को .
वैध की आवाज बेशक कमजोर थी पर उसके शब्दों का भार बहुत जायदा था .
मैं- होश में है न तू
वैध- झूठ बोलने का साहस नहीं है मुझमे
चाचा ने अपनी ही प्रेयसी की बेटी का क़त्ल कर दिया था . रमा तो ये सुनकर जैसे पत्थर की ही हो गयी थी .
मैं-रमा तुझसे वादा किया है मैं चाचा को तलाश कर लूँगा तेरी आँखों के सामने ही उसे सजा दूंगा.
रमा की आँखों से झरते आंसुओ के आगे मेरे शब्द कमजोर थे मैं जानता था . दर्द आंसू बन कर बह रहा था . रमा कुछ नहीं बोली , दरवाजा खोल कर घर से बाहर निकल गयी .रह गए हम दोनों
मैं- बड़ा नीच निकला तू वैध. दिल करता है की अभी के अभी तुझे मार दू पर अभी तुझसे कुछ और सवाल करने है जिनके सही सही जवाब चाहिए मुझे, बता भैया के साथ कहाँ जाता है तू .
वैध- कही नहीं जाता मैं
मैं- सुना नहीं तूने
मैंने फिर से एक थप्पड़ मारा.
मैं- बेशक तेरी वफ़ादारी रही होगी भैया से पर आज की रात यदि मुझे तेरा कत्ल करके तेरी रूह से भी अपने जवाब मांगने पड़े न तो भी मैं गुरेज नहीं करूँगा. अब तू सोच ले.
वैध-उनको तलाश है
मैं- किस चीज की तलाश
वैध- ऐसी दवा की जो प्यास को काबू कर सके.
मैं- कैसी प्यास
वैध- रक्त तृष्णा को काबू करना चाहते है वो .
ये रात साली कयामत ही हो गयी थी . भैया को रक्त की प्यास थी . मेरा तो सर ही चकरा गया .
मैं- भैया को रक्त की प्यास , तो क्या भैया ही वो आदमखोर है
वैध- नहीं वो नहीं है .
मैं- तो फिर कौन है किसके लिए भैया को दवा की तलाश है
वैध- नहीं जानता न उन्होंने कभी बताया. अभिमानु को दवाओ का ज्ञान मुझसे भी जायदा है जंगल में अजीब बूटियों की तलाश रहती है उनको वो मुझे सहयोग के लिए ले जाते है .
मैं- क्या कभी भैया ने उस आदमखोर का जिक्र किया तुमसे
वैध- नहीं कभी नहीं .
मैं- कब से जारी है ये तलाश ,
वैध- ठीक तो याद नहीं पर करीब ५-७ साल से वो लगातार इसी प्रयास में लगे है .
मैं- क्या कभी किसी पुरे चाँद की रात को तू भैया के साथ रहा है
वैध- नहीं , कभी नहीं .
मैं- और कोई ऐसी बात जो तुझे लगता है की मुझे बतानी चाहिए
वैध- बस इतना ही
मैं- आज के बाद रमा की तरफ आँख भी उठा कर नहीं देखेगा तू . मुझे मालूम हुआ की इस कमरे में हुई कोई भी बात हमारे सिवा किसी को भी मालूम हुई तो तेरा अंतिम दिन होगा वो.
वैध के घर से निकल तो आया था पर कदमो में जान नहीं बची थी , या तो मेरा भाई ही वो आदमखोर था और वो नहीं था तो फिर किसकी रक्त तृष्णा का इलाज तलाश रहा था वो . आने वाले कल का सोच कर मेरी आत्मा कांप गयी.
शानदार जबरदस्त भाई लाजवाब भाई#85
चौपाल के पेड़ के निचे बैठे बैठे मैंने सोचा की सूरजभान को पकडूँगा दिन उगते ही . उस से ही शुरू करूँगा अब जो भी होगा किसी का लिहाज नहीं करूँगा. मैंने रमा से वादा किया था की उसकी बेटी के कातिल से मैं बदला लूँगा पर वो कातिल मेरा चाचा था . खून ही खून को बहाने वाला था . सुबह होते ही मैं मलिकपुर पहुँच गया . सूरजभान मुझे रमा की दुकान के पास ही मिल गया . मैं उसके पास गया .मुझे देख कर वो चौंक गया.
सूरजभान- तू यहाँ क्या कर रहा है
मैं- तुझसे ही मिलने आया हूँ
सूरज-मुझसे, भला मुझसे क्या लेना देना तेरा
मैं- कुछ बात करनी थी तुझसे , सिर्फ बात करनी है फिर मैं लौट जाऊंगा.
सूरज ने कुछ पल सोचा फिर अपने कंधे उचकाए और बोला- ठीक है
हम दोनों पास में बड़ी एक बेंच पर बैठ गए .
मैं- देख सूरजभान मैं मानता हूँ की पिछला कुछ वक्त हम दोनों के लिए ठीक नहीं रहा , तेरे मेरे बिच जो हुआ वो नहीं होना चाहिए था . मेरे कुछ सवाल है जिनके जवाब मैं तुझसे चाहता हूँ
सूरज- मेरी कोई मंशा नहीं थी तुझसे झगडा करने की . खैर जो हुआ सो हुआ बता क्या पूछना चाहता है तू
मैं- क्या वजह है की अभिमानु भैया मुझसे ज्यादा तुझे चाहते है
सूरज- ऐसा नहीं है , वो बस मेरी मदद कर रहे है मेरे व्यापार को शुरू करने में .
मैं- पर किसलिए
सूरज- कभी बताया नहीं पर शायद नंदिनी दीदी ने कहा हो उनसे .
मैं- भैया ने काफी सालो से मलिकपुर की तरफ देखा भी नहीं था फिर ऐसा क्या हुआ की वो लौट आये यहाँ
सूरज- कबीर तेरी मेरी उम्र लगभग एक सी ही है , मुझे क्या मालूम की पहले क्या हुआ था और क्या नहीं .
मैं- तू समझ नहीं रहा है मेरी बात को सूरजभान, भैया कुछ तो ऐसी बात करते होंगे तुझसे जो तू समझ नही पाता होगा. कोई तो बात उनका व्यवहार तू इतने साथ रहता है उनके कुछ तो खटकता होगा तुझे.
सूरज- भैया बहुत अच्छे है , तू भाग वाला है कबीर जो तेरे सर पर बड़े भाई का हाथ है . कभी कभी मुझे जलन होती है तुझसे की काश तेरी जगह मैं होता.
मैं- समझ सकता हूँ नंदिनी भाभी और भैया की प्रेम कहानी मलिकपुर में ही शुरू हुई थी उसके बारे में बता दे कुछ जानता है तो .
सूरज- मैं छोटा था तब पर फिर भी इतना जानता हूँ की पिताजी और तेरे चाचा दोनों इस ब्याह के खिलाफ थे , पिताजी और ठाकुर जरनैल की तब ताजा ताजा लड़ाई हुई थी किसी बात को लेकर . उसी समय अभिमानु भैया और नंदिनी दीदी के प्रेम वाली बात सामने आ गयी थी .
मैं- कोई है जो आसपास के गाँव वालो को मार रहा है ,
सूरज- तलाश में हूँ उसकी
मैंने सूरजभान के कंधे पर हाथ रखा और बोला- हमारे दरमियाँ जो भी हुआ नहीं होना चाहिए था . कुछ बाते समझनी चाहिए थी मुझे .
सूरजभान से मिलकर मुझे इतना समझ आया था की रुडा और चाचा के बीच जो बात हुई थी ठोस ही रही होगी वर्ना चाचा ये जानते हुए भी रुडा किसी ज़माने में राय साहब का दोस्त रहा था रुडा का गिरेबान नहीं पकड़ता . शायद यही बात चाचा और पिताजी के झगडे का कारन रही होगी. दोपहर में खेतो पर भैया मिले .
मैं- आपसे बात करनी थी भैया
भैया- हाँ, पर पहले तू मेरी मालिश कर दे.
मैं- जरुर
भैया ने अपनी शर्ट उतारी और औंधे लेट गए . मैंने तेल लिया भैया की पीठ पर मालिश करने लगा. मैंने देखा की पीठ पर काफी खरोंचे थी .
मैं- ये चोट कैसी पीठ पर
भैया- कीकर काटी थी कांटे लग गए कुछ
मुझे यकीं नहीं हुआ इस बात का क्योंकि भैया ने खेती या पेड़ो का काम मेरे देखते देखते कभी ही किया हो
भैया- कुछ कह रहा था तू .
मैं- भैया गाँव की सब औरते अपने अपने परिवार के साथ राजी ख़ुशी रहती है मुझे चाची की फ़िक्र होती है , वो कहती नहीं पर उनका दुःख समझता हूँ मैं
भैया- जानता हु तू क्या कहना चाहता है छोटे, पर हम कर भी तो नहीं सकते कुछ चाचा न जाने कहाँ गायब हो गया मैं थक गया , हार गया उसे ढूंढते हुए. गाँव शहर जहाँ भी जिसने भी बताया वाही गया उसे तलाशने पर वो नहीं मिला कभी भी .
मैं- अगर पिताजी चाचा से झगडा नहीं करते तो क्या पता चाचा हमारे साथ होते.
भैया- पिताजी चाचा को बहुत चाहते थे
मैं- आप मुझे कितना चाहते है भैया
भैया- तुझे क्या लगता है कितना चाहता हूँ मैं तुझे
मैं- आप मुझे जरा भी नहीं चाहते भैया
भैया ने पीठ मोड़ी और मेरी तरफ होकर बोले- फिरसे बोल जरा
मैं- आप मुझे नहीं चाहते , अगर चाहते तो उस तस्वीर को कमरे से नहीं हटाते मुझे बता देते की वो तस्वीर किसकी है .
भैया- बस इतनी सी बात के लिए अपने भाई के प्यार पर सवाल उठा रहा है तू छोटे
मैं- सवाल तो बहुत है पर आप जवाब नहीं देंगे
भैया- और क्या है वो सवाल
मैं- आप हमेशा से जानते थे न की रमा की बेटी को चाचा ने मारा था .
भैया खामोश से हो गए.
मैं- आप जानते थे न भैया. आप जानते थे फिर भी आपने छिपाया इस बात को
भैया- छिपाता नहीं तो क्या करता मैं छोटे
मैं- आप समझा सकते थे चाचा को रोक सकते थे
भैया- काश मैं कर पाता उसे न जाने किस चीज का जूनून था , रुडा से लड़ाई करके आया था वो . फिर घर आते ही पिताजी से लड़ पड़ा . तेरी भाभी और मेरा ब्याह नहीं होने देना चाहता था वो .
मैं- क्या दिक्कत थी चाचा को इस रिश्ते से
भैया- आजतक नहीं मालूम हुआ किसी को
मैं- जंगल में क्या तलाशते है आप
भैया- मुझे भला क्या जरुरत है कुछ तलाशने की सब कुछ तो है मेरे पास
मैं- पक्का कुछ नहीं तलाशते आप
भैया- साफ साफ बोल न छोटे
मैं- कुछ नहीं तलाशते तो तलाशनी शुरू कर दीजिये भैया , जिस रक्त तृष्णा की दवा आप ढूंढते है न आपके भाई को भी उसकी जरुरत पड़ने वाली है बहुत जल्द.
मैंने अपना राज भैया के सामने खोल दिया था मैं जानता था की मेरा भाई हद से ज्यादा मुझे चाहता है उसकी इसी कमजोरी का फायदा उठाना था मुझे अब ...........................