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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Naik

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#89

ये रात कुछ ज्यादा ही लम्बी हो गयी थी . वैध को कौन मार गया एक कोने में बैठे बैठे मैं ये ही सोच रहा था .. एक तो अंजू ने मेरे दिमाग का बल्ब बुझा दिया था ऊपर से इसको कोई पेल गया था. सर हद से जायदा दुखने लगा तो मैं घर आ गया और बिस्तर पकड़ लिया. ये पहली बार था जब किसी मौत से मुझे कोई भी फर्क नहीं पड़ा था.



सुबह बड़ी बोझिल थी पर आज मुझे बहुत से काम करने थे.मैं वैध के अंतिम संस्कार में भी नहीं गया. मैं भैया के कमरे में गया और कुछ तलाशने लगा. जिन्दगी में पहली बार मैंने ये हिमाकत की थी . चोरी छिपे मैंने भैया की अलमारी खोली पहले दो खाने कपड़ो से भरे थे. तीसरे में व्यापार के , जमीनों के कागज और नोटों की गद्दिया .

मैंने दूसरी अलमारी खोली जिसमे शराब की बोतले भरी थी .

“क्या दूंढ रहे हो ” ये भाभी की आवाज थी जो कमरे में दाखिल हो रही थी .

मैं- अतीत ,उस अतीत को ढूंढ रहा हूँ जिसने मेरे आज को परेशान करके रखा हुआ है .

भाभी- क्या चाहिए तुम्हे

मैं- वो तस्वीर जिसे भैया ने पुराने कमरे से हटा दिया

भाभी- यहाँ ऐसी कोई तस्वीर नहीं है .

मैं-आप जानती है अंजू किस से प्यार करती है

भाभी-मेरे जानने न जानने से कुछ फर्क पड़ेगा क्या . उसकी जिन्दगी है वो जैसे चाहे जिए .

मैं- फिर भी क्या आप जानती है की वो किस से प्यार करती है .

भाभी- आप अंजू को हमेशा से जानती है मैं अंजू के बारे में सबकुछ जानना चाहता हूँ सब कुछ .

भाभी- वो अलग है वो जुदा है . हम में से एक होते हुए भी वो हमारे जैसी नहीं है. बेशक फूफा ने उसे सब कुछ दिया पर वो कभी भी रुडा की बेटी नहीं थी वो हमेशा सुनैना की बेटी ही रही. उस घर ने उसे हमेशा सबसे आगे रखा पर अंजू कभी स्वीकार नहीं पाई उस परिवार को और फिर एक दिन ऐसा आया की वो घर छोड़ कर चली गयी.

मैं- अंजू कहती है की रुडा की वजह से अपनी जिन्दगी नहीं जी पा रही थी इसलिए घर छोड़ कर गयी.

भाभी- झूठी है वो. माना की फूफा घटिया आदमी है पर कोई भी बाप अपने परिवार के लिए बहुत कुछ करता है . अंजू यदि ये कहे की उस घर से उसे कोई भी शिकायत थी तो ये झूठ है . वो दुनिया की सबसे खुशकिस्मत बहन है .

मैं- समझ नहीं आ रहा की कौन झूठ बोल रहा है वो या फिर आप

भाभी- मुझे क्या जरुरत झूठ बोलने की , तुमने मुझसे अंजू के बारे में पुछा मैंने तुम्हे बताया .

मैं भाभी को बताना चाहता था प्रकाश के बारे में पर खुद को रोक लिया.

मैं- अंजू भी जंगल में भटक रही है

भाभी- इसमें कुछ नया नहीं बचपन से ही ऐसा करती रही है वो.

मैं- क्या तलाशती है वो जंगल में

भाभी- नहीं जानती

मैं- वो क्या काम करती है , मेरा मतलब उसका रहन सहन हम सब से अलग है महँगी गाड़ी, महंगे शहरी कपडे . पैसा कहाँ से आता उसके पास.

भाभी-तुम शायद भूल गए की वो चौधरी रुडा की बेटी है .

मैं- अंजू कुछ तो ऐसा कर रही है जो संदिग्ध है समझ नही आ रहा , वैसे आप आखिरी बार कब मिली थी उस से.

भाभी- शायद छ साल पहले

भाभी भी गजब ही थी .

मैं-क्या आपकी और अंजू की आपस में नहीं बनती .

भाभी- उस से ही पूछ लेना तुम.

मैं- आप कभी भी कुछ भी सीधा क्यों नहीं बताती.

भाभी- सभी भाई-बहनों में सबसे घटिया कोई था तो अंजू ही थी. यही काफी है तुम्हारी जानकारी के लिए.

मैं- उसने मुझे ये दिया .

मैंने अपनी चेन भाभी को दिखाई . भाभी मेरे और पास आई और उस चेन के लाकेट में बने सर्पो को अपनी उंगलियों से छुआ और बोली- तुमने पूछा क्यों नहीं की क्यों दिया ये .

मैं- कहा था उसने कहा की भेंट है .

भाभी- उस से दूर रहना . बेशक बहन है वो मेरी पर तुम दूर रहना उस से . वो तस्वीर इस कमरे में नहीं है तुम्हारे भैया ने गायब कर दिया है उसे.

मैं- रुडा से मिलना है मुझे समझ नहीं आ रहा की कैसे बात करू उस से

भाभी- कभी कभी वो सुनैना की समाधी पर जाते है , तभी शायद ठीक रहेगा उनसे मिलना.

मैं- चाचा क्यों नहीं चाहते थे की आपका और भैया का ब्याह हो.

भाभी- हम पहले भी तुम्हे बता चुके है की हम नहीं जानते. वैसे तुम्हे क्या लगता है की वैध को किसने मारा होगा.

मैं- नहीं जानता पर मालूम कर ही लूँगा.

भाभी- कोई क्यों मारेगा उसे

मैं- इस क्यों के बहुत कारन हो सकते है वैध वैसे था तो घटिया ही . साला ऐसे ऐसे कर्म किये हुए था की मैं क्या ही बताऊ.

भाभी- कर्म तो सबके ऐसे ही होते है बस करने वाले को अपने कर्म अच्छे लगते है .

मैं- फिर भी ........ वैसे मुझे दुःख नहीं है उसके मरने का.

घर से बाहर आकर मैं कुवे की तरफ चल पड़ा. कल रात ने मुझे एक बात अच्छी तरह से समझा दी थी की जंगल उतना सुरक्षित नहीं था .अंजू मेरे कमरे तक आ पहुंची थी , मुझे कुछ तो करना ही था . मैं एक बार फिर से उस तालाब की दिवार के पास खड़ा सोच रहा था की अन्दर जाऊ या नहीं. इस कमरेमे कुछ तो ऐसा था जो मुझे फिर से खींच लाया था इसकी तरफ. पूरी सावधानी के साथ मैं अन्दर घुस गया . कमरा ठीक वैसा ही था जैसा की मैं छोड़ कर गया था . न जाने क्यों मुझे लगता था की इस कमरे की ख़ामोशी ने एक ऐसे शोर को छिपाया हुआ था की जब वो सामने आएगा तो कानो के परदे फट पड़ेंगे.

मैं दुसरे कमरे में गया , और उस कुर्सी पर बैठ कर सोचने लगा. कोई तो आता जाता होगा यहाँ पर फिर निशा को कैसे नहीं मालुम . क्या वो सख्श निशा की उपस्तिथि को भी जानता था यहाँ पर.



औरतो के रंग-बिरंगी ब्रा-कछी , नंगी तस्वीरों वाली ढेरो किताबे और सोना. यहाँ पर ये कुछ ऐसा था की समझना बहुत आसन था और बहुत मुश्किल. यहाँ पर आने वाला सक्श बहुत रंगीला था , तो ये भी था की वो औरते जरुर लाता होगा यहाँ पर. और अगर औरते आती थी तो फिर अब क्यों नहीं आती. उन औरतो को मालूम होगा की सोना है तो सोने के लालच में तो आना चाहिए था न उनको.



चाचा भोसड़ी के ने अगर यहाँ पर चुदाई का अड्डा बनाया हुआ था तो फिर रमा और सरला को क्यों नहीं मालूम इस जगह के बारे में. वो चाहती तो यहाँ से सोना चुरा कर बढ़िया जिन्दगी जी सकती थी फिर क्यों नहीं चाहत थी उनको सोने की. अब मुझे लगने लगा था की कविता वो कड़ी थी जो चाचा की जिन्दगी का अनचाहा राज खोल सकती थी . इतनी रात को वो जरुर यही पर आ रही होगी.



पर वो नहीं जानती थी की उसका इन्तजार मौत कर रही थी .कविता ने मंगू को बताया होगा सोने के बारे में और वो चुतिया जरुर उसी की तलाश में आता हो रातो को . एक सवाल और था की यदि कविता यहाँ चुदने आती थी तो फिर चाचा कहाँ है . वो बहनचोद किस बिल में छुपा है की निकल ही नहीं रहा ........


कमरे से बाहर निकल कर मैं ऊपर जाकर दिवार का सहारा लेकर बैठ गया और सोचने लगा. सोचते सोचते न जाने कब मेरी आँख लग गयी . और अजब खुमारी टूटी तो मैंने खुद के सामने उसे बैठे देखा.............
Bhabi ko sab pata h lekin woh kich bhi batana nahi chahti ab yeh bhi bol dia kabir ko ki anju se door raho yeh kia baat huwi kich batati bhi nahi or bas sabse door raho
Baherhal ek baar fir kuch nahi mila kamre
Dekhte h aage
Shaandaar update bhai
 

ASR

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Divine
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वर्तमान समय में आचार्य चतुरसेन के उपन्यास 'सोना और खून' (4 भागों में) से लेकर फिल्म K. G. F. (kolar Gold Fields) तक सब सोने के लिये बहे खून की असली कहानियों पर आधारित हैं

ज़र (धन/सोना), जोरू (औरत) और ज़मीन .... हमेशा खून की प्यासी रही हैं.... इश्क इनसे भी बढ़कर है :D (इश्क़ का मेरा अपना अनुभव है)
आचार्य चतुरसेन अद्भुत अद्वितीय उपन्यासकार थे उनकी रचनाएँ इतिहास, संस्कृति, धर्म, स्थानों के अलावा जीवन को पूरा दर्शनार्थ बना देती है 😍...
 

Naik

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मैंने उसे देखा बस देखता ही रहा .

“कितना देखोगे कुछ बोलो भी अब ” निशा ने हौले से कहा.

मैं- कुछ नहीं कहना धड़कने खुद ही बात कर लेंगी तेरी धडकनों से.

निशा- ऐसी भी क्या दीवानगी

मैं- मुझ से मत पूछो सरकार की क्या हाल है मेरा . तुम्हारी झुकी निगाहे बता चुकी है तुमको .

निशा- अब उठ भी जाओ थक गयी हूँ मैं तुम्हारा इंतज़ार करते करते की अब उठो अब उठो.

मैं- जगाया क्यों नहीं

निशा- यूँ ही .

मैं- कुवे पर चलते है थोड़ी चाय पियूँगा तो थकान कम होगी.

निशा- इस वक्त वहां

मैं- चल न.

निशा ने अपना हाथ मेरे हाथ में दिया और बोली- चल फिर.

पुरे रस्ते मैंने अपनी नजर बनाये रखी की कोई हमारे पीछे तो नहीं है .

निशा- क्या बात है ये बेचैनी सी किसलिए

मैं- कुवे पर चल कर बताता हूँ

जल्दी ही हम वहां पहुँच गए. मैंने बल्ब जलाया और चाय का सामान निशा के हाथ में दिया .

निशा मुझे देखने लगी.

मैं- चाय बना मेरी जान.

मुस्कुराते हुए उसने चूल्हा जलाया , ठण्ड में थोड़ी तपत मिली तो मैं चूल्हे के पास ही बैठ गया .

मैं- बड़ी प्यारी लग रही है तू

निशा- इन बातो का मुझ पर कोई जोर नहीं चलने वाला.

उसने चूल्हे में फूंक दी. केसरिया आंच के ताप में उसका सिंदूरी चेहरा क्या खूब लग रहा था .

निशा- जंगल में बार बार क्या तलाश रही थी तेरी निगाहे

मैं- इस जंगल में हम अकेले नहीं है जो भटक रहे है .

निशा- जानती हूँ

मैं- मुझे तेरी सुरक्षा की फ़िक्र है , उस खंडहर पर सिर्फ तेरा ही हक़ नहीं है , किसी और की आमद महसूस की है मैने. और मैं बिलकुल नहीं चाहता की मेरा कोई दुश्मन तुझे कुछ नुकसान पहुंचाए .

निशा ने उफनती चाय को हिलाया और बोली- समझती हूँ तेरे मन की पर तू फ़िक्र मत कर उस खंडहर के बारे में किसी को भी नहीं मालूम. इस जंगल में सिर्फ वो ही एक जगह है जो अनोखी है.

मैं- कैसे मानु तेरी बात

निशा- क्योंकि पिछले बहुत सालो में तू एकमात्र था जिसके कदम वहां पर पड़े थे.

निशा की बात ने मुझे हैरत में डाल दिया. निशा का कथन मेरी कविता की सोने वाली धारणा को ध्वस्त कर रही थी .

निशा- तेरी चिंता मैं समझती हूँ . जानती हूँ तेरा मन विचलित है पर मैं कह रही हूँ न खंडहर सुरक्षित है

मैं- इतना यकीं कैसे

निशा- क्योंकि किसी और को अगर भान होता तो तालाब में सोना पड़ा नहीं होता. इन्सान की सबसे बड़ी कमी लालच होती है . किसी भी इन्सान को यदि मालूम होता की वहां पर ऐसा कुछ है तो सोने का लालच उसे तालाब तक खींच लाता.

मैं- पर कुछ लोग अगर जंगल में उसी सोने की तलाश कर रहे हो तो .

निशा- उनका नसीब. मिला हुआ सोना, पड़ा हुआ सोना अपने साथ दुर्भाग्य लाता है .

निशा ने सच कहा था इस बारे में.

मैं- पर लालच कहाँ सोचता है इस बात को

निशा- तो तुझे क्यों फ़िक्र है , जो करेगा सो भरेगा .

मैं- मुझे तेरी फ़िक्र है बस .

निशा ने चाय का कप मुझे दिया और बोली- तेरे मन में और क्या सवाल है

मैं- रुडा की बेटी के पास ऐसा क्या है की वो इतना शाही जीवन जी रही है . रुडा से अलग हुए उसे काफी बरस हो गए है कहाँ से पैसा आ रहा है उसके पास.

निशा- पूछ क्यों नहीं लेते उससे वैसे तुम्हे उसके पैसो में क्यों दिलचश्पी

मैं- अंजू मुझे थोड़े दिन पहले जंगल में मिली थी . पहली मुलाकात में उसने मुझे ये लाकेट दिया और फिर कल रात मैंने उसे प्रकाश के साथ देखा , कल रात ही जब मैं कुवे पर आया तो वो यहाँ मोजूद थी . मेरे कुवे पर उसका क्या प्रयोजन हो सकता था .



निशा- जंगल में होना अलग बात है और कुवे पर होना अलग.

मैं- मैंने भाभी से अंजू के बारे में बात की उन्होंने कहा की अंजू घटिया औरत है . और परकाश के साथ उसका होना पुष्टि भी करता है की वो घटिया है .

निशा- नंदिनी तो रुडा के परिवार की ही है , उसने कहा है तो घटिया होगी अंजू.

मैं- पर सवाल यही है की क्यों भटकती है वो जंगल में

निशा- तुम्हे उसका पीछा करना चाहिए , आज नहीं तो कल वजह मालूम कर ही लोगे.

निशा ने कितनी सरलता से कहा था .

मैं- पर मेरी दुश्मनी है परकाश से , बात बिगड़ेगी.

निशा- कबीर, कभी कभी मैं सोचती हूँ की तुम्हारी ये सरलता ही तुम्हारी शत्रु है. बेह्सक सरल होना अच्छा है पर जीवन में कुछ पल आते है जब हमें कठोर होना पड़ता है . आदत डाल लो , वैसे भी जब नंदिनी को मालूम होगा की तुम मुझे ब्याहने वाले हो तो बवाल करेगी वो.

मैं- बवाल तो हो गया सरकार, मैंने भाभी को बता दिया.

निशा- तुम भी ना

मैं- उसने कहा है की तुमसे कहूँ की जब मैं तुम्हे लेने आऊ तो फाग का दिन हो. रातो की रानी को दिन के उजाले में हाथ थामने को कहना .

निशा ने एक पल चूल्हे में पड़े अंगारों को देखा और बोली- ठीक है कबीर, तुम उसी समय आना मुझे लेने के लिए मैं तैयार मिलूंगी. पर जगह मैं चुनुंगी . हमारी अगली मुलाकात में मैं तुम्हे बता दूंगी की कहाँ तुम मेरा हाथ थामना. और नंदिनी से कहना , की इस डायन ने कहा है की उसके सब्र का इम्तिहान न ले. बरसो जली हूँ मैं . बहुत सोच कर मैंने तुमसे ये बंधन बाँधा है . ऐसा ना हो की मेरे सीने में जलती आग जमाने को जला दे. नंदिनी से कहना की डायन ने कहा है की मैंने बस प्रेम किया है तुमसे प्रेम किया है कबीर.

मैंने आगे बढ़ कर निशा को अपनी बाँहों में भर लिया और उसके होंठो को अपने होंठो से जोड़ लिया. चूमते हुए मैंने देखा की सियार कुवे की मुंडेर पर बैठे हुए आसमान को देख रहा था .कुछ देर बाद वो मुझसे अलग हुई.

निशा- तूने अभी तक निर्माण शुरू नहीं करवाया , ब्याह के बाद मुझे रखेगा कहाँ पर.



मैं- अंजू के यहाँ आने के बाद मुझे नहीं लगता की ये जगह सुरक्षित होगी.

निशा- तो कहाँ रखेगा मुझे, क्या तेरे घर में नंदिनी में मुझे आने देगी. और मेरी वजह से वहां पर कोई फसाद हो ये मैं चाहती नहीं. बता

निशा की इस बात का कोई जवाब नहीं था मेरे पास.

मैं- ब्याह से पहले मैं कोई सुरक्षित ठिकाना बना लूँगा.

निशा इस से पहले की कुछ और कहती , एक जोरदार चीख ने हमें चौंका दिया. हमारे आस पास कोई और भी था .मेरा शक बिलकुल सही था की कोई निगरानी तो जरुर कर रहा था मेरी. हम दोनों चीख की दिशा में भागे.
Nandni ki shart manjoor kerli nisha n
Badhiya
Shaandaar update bhai
 

Naik

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#91

सर्दियों की खामोश रातो में अक्सर आवाज बड़ी दूर तक गूंजती है . मैं और निशा भागते हुए मोड़ पर पहुंचे तो देखा की परकाश जमीं पर पड़ा था. मैंने उसे हिलाया-दुलाया पर बदन में कोई हरकत नहीं थी. बदन बेशक गर्म था पर साँस की डोर टूट चुकी थी . मैंने और निशा ने उसके बदन का अवलोकन किया .

निशा- चाकू से मारा है इसे.

मैं- पर किसने

निशा- होगा कोई दुश्मन इसका.

मैं- कल ही मैंने इसे अंजू के साथ देखा था , कल ही अंजू ने मुझे इसकी और उसकी प्रेम कहानी के बारे में बताया था और आज ये लाश बन गया.

निशा ने मेरा हाथ पकड़ा और जंगल की तरफ बढ़ गयी. कुछ देर बाद हम खंडहर में मोजूद थे.

मैं- यहाँ क्यों ले आई.

निशा- वहां खतरा था हो सकता था.

कहाँ तो मैं निशा के साथ अपने लम्हे जी रहा था और कहाँ अब ये रात मेरी मोहब्बत के सबब को बर्बाद करने पर तुली थी .

कुछ देर ख़ामोशी रही फिर मैंने ख़ामोशी को तोडा.

मैं- आज के बाद तू इन रातो में नहीं भटकेगी. जब तक मैं मालूम नहीं कर लेता की जंगल में चल क्या रहा है मैं तेरी सुरक्षा से समझौता नहीं करूँगा.

निशा- तू भी बता फिर कहाँ सुरक्षित रहूंगी मैं

मैं- कर लूँगा जुगाड़ .

निशा- इस वक्त मुझे तेरे साथ रहना जरुरी है .

मैं- जानता हूँ ,

मैं जानता था की प्रकाश की मौत का अंजू को जब पता चलेगा तो वो हिंसक हो जाएगी , देखना बस ये था की वो आरोप किस पर लगाएगी.

मैंने निशा का हाथ पकड़ा और बोला- मैं एक बार फिर तुझसे पूछता हूँ की तू इस खंडहर को सब कुछ जानती है

निशा- निशा बार बार क्यों पूछता है

मैं- क्योंकि ऐसा कुछ है जो तुझसे भी छिपा है.

निशा- दिखा फिर मुझे

मैं निशा को सीढियों पर ले आया और गुप्त दरवाजे से अन्दर आ गए. माचिस से मैंने चिमनी को जलाया और हलकी रौशनी हो गयी.

मैं- मैं तुझसे इन कमरों के बारे में जानना चाहता हूँ.

निशा आँखे फाड़े उस कमरे को देख रही थी . मैं उसे दुसरे कमरे में ले गया . जहाँ पर तमाम वो सामान और सोने से भरा बैग रखा था . उसने उस समान को देखा और फिर मुझे देखने लगी.

मैं- इसलिए ही मैं तुझसे कह रहा था की तू अकेली नहीं है मेरी सरकार जो इस जगह को जानती है कोई और भी है जिसने अपना राज छुपाया है यहाँ पर . ये सोना ये अय्याशी का समान ये बिस्तर इतना तो बता रहे है की है कोई जो जिस्मो की प्यास बुझाने आता है यहाँ .जितना मैं ढूंढ सकता था मैंने कोशिश की . मैं जानना चाहता हूँ की इस सोने का मालिक कौन है .

निशा ने एक गहरी साँस ली और उठ कर वापिस बहार वाले कमरे में आ गयी . मैं उसके पीछे आया .

निशा- बहुत सालो से मैं इस पानी में पड़े सोने के वारिस को तलाश रही हूँ. तूने सही कहा कबीर, यहाँ किसी और की आमद भी थी , पर मैं भी कहती हूँ की यहाँ बरसो से किसी ने मेरे सिवा और अब तेरे सिवा कदम नहीं रखा.

निशा की बात इस कहानी के तारो को और उलझा रही थी . आखिर कौन ऐसा चुतिया होगा जो इतने सोने को ऐसे ही छोड़ कर चला जायेगा. पर मुझे सोना नहीं चाहिए था , मैं तो देखना भी नहीं चाहता था इसकी तरफ . मैं अपनी जिन्दगी को देखना चाहता था जो मेरे सामने निशा के रूप में खड़ी थी .

मैं जानता था की प्रकाश की मौत का जब सुबह मालूम होगा तो नयी कहानी बनेगी पर माँ चुदाये प्रकाश साला कल मरते आज मरा . मैं अपनी प्रेयसी की बाँहों में जीना चाहता था . मैंने निशा की कमर पकड़ कर उसे अपने आगोश में लिया और उसके नितम्बो को सहलाते हुए उसके होंठ पीने लगा. उसने भी मेरा साथ दिया.

“मेरी जान एक अहसान तू भी कर अपने दीवाने पर . इस डाकन का सच भी बता दे मुझ को ” मैंने निशा के कान को चुमते हुए कहा.



“तू जानता है , तू जान जायेगा. जब दिन के उजाले में घटा रंग बन कर बिखरेगी , जब आसमान भीगा होगा . मन के इन्द्रधनुष में प्रेम की बरसात के दरमियाँ मैं पहला पग उठा कर आगे बढ़ आउंगी तो तू जान जायेगा. ” उसने मेरे सीने में समाते हुए कहा.

मैंने उसके गाल चूमे और बोला- मैं जानता हु, मेरी सरकार. तुझसे प्रेम किया है , तेरे संग जीना है तेरी बाँहों में मरना है तुझे नहीं जाना तो फिर क्या प्रेम किया मेरी सरकार .

उसने अपने पैर थोड़े ऊँचे किये और मेरे माथे को चुमते हुए बोली- मर तो बहुत पहले गयी थी ,अब और नहीं मरना अब जीना है मुझे .

इसके बाद न उसे कुछ कहने की जरुरत थी न मुझे. बेशक ये कमरा किसी का भी रहा हो. पर आज इस रात में ये हमारा था . रात के तीसरे पहर तक हम दोनों अपनी बाते करते रहे . उसके जाने से पहले मैंने उससे वादा लिया की वो ऐसा कुछ नहीं करेगी की उसको किसी भी किस्म का खतरा महसूस हो.



निशा के जाने के बाद भी मैं बहुत देर तक तालाब की मुंडेर पर बैठे उस सोने के बारे में सोचता रहा जिसके मालिक की दिलचस्पी ही नहीं थी उसमे. कोई प्रकाश भोसड़ी वाले को मार गया था . पर प्रकाश क्या कर रहा था वहां पर . मेरे कुवे के पर एक रात पहले अंजू का होना और अगली रात उसके पास ही प्रकाश की मौत , कुवे पर कुछ तो ऐसा था जिसकी तलाश में ये दोनों थे. मैं जब तक लौटा प्रकाश की लाश वहां से हटाई जा चुकी थी , मैंने देखा की पिताजी और भैया दोनों ही कुवे पर मोजूद थे.

“तू कल रात कहाँ था ” पिताजी ने सवाल किया मुझसे

मैं- यही पर था ,

पिताजी- हम लोग आये तब तो नहीं था तू

मैं- हर समय मोजूद रहना जरुरी तो नहीं, सुबह उठते ही मैं दौड़ने जाता हूँ, आप तो जानते ही है

पिताजी- कल रात प्रकाश की मौत हो गयी . किसी ने उसे यही थोड़ी दूर मार डाला

मैं- बढ़िया हुआ

पिताजी- कही इसमें तेरा तो हाथ नहीं .

मैं- काश होता पिताजी, उसे तो मरना ही था उसके कर्म ही ऐसे थे मैं नहीं तो कोई और सही , धरती से एक बोझ कम हो गया .

पिताजी- उसका बचपन हमारे सामने ही बीता था , हमारा विस्वसनीय भी था वो . अगर हमें मालूम हुआ की उसकी मौत में तुमहरा हाथ है तो फिर रहम की गुंजाईश मत करना

मैं- कोशिश कर लीजिये राय साहब. उसकी किस्मत इतनी भी मेहरबान नहीं थी की मेरे हाथो मौत होती उसकी.

पिताजी कुछ कहना चाहते थे पर उनकी नजर भैया पर पड़ी तो उन्होंने कुछ नहीं कहा. पिताजी के साथ भैया भी चले गए. ये जिन्दगी में पहली बार था जब भैया मेरे साथ हो और मुझसे बात नहीं की हो. मैं ये सोचने लगा की कुवे पर क्या हो सकता है ऐसा सोचते सोचते दोपहर हो गयी मैं तब तक सोचता रहा की जब तक मैंने चाची को अपनी तरफ आते हुए नहीं देखा.
Parkash ki bhi maut ho gayi Kabir k hisab se achcha huwa mar gaya
Nisha ko bhi kamre k baare kuch nahi pata itne saalo se waha reh rahi h koyi aaya hi nahi ta ajjub ki baat kon h jo yeh sab sona chhod ker chala gaya
Rai sahab n saaf saaf keh dia h ki ager parkash ki maut m tumhra h haath h tow rahem ki gunjaish mat kerna
Baherhal dekhte h ab kabir kuwe per kuch dhoot pata h ya nahi
Shaandaar update bhai lajawab
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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अंजू, कहानी के हरेक पात्र से प्रत्यक्ष या फ़िर अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई मालूम पड़ती है । तभी तो उसके मुख से जो भी बाते निकलती है सब अपने आप मे ही एक पहेली होती है । जैसे की भाभी की बातो से भी हमे एक पहेली के अलावा कुछ नही मिलता है । रमा, किस चीज के तलाश मे है ये बात नही बताई, कुछ तो होगा जिसके तलाश मे रमा को इतने मर्दो संग संबंध बनाना पड़ा । या फिर ये भी अपने कबीर को बस चुतिया बना रही है । साला मंगू , विषम्बर का पाला हुआ कुत्ता निकला, हद् है यार... कबीर को सब चुतिया ही बनाने बाले मिले है, क्या भाभी, क्या बाप, क्या दोस्त, क्या भाई ,.... अब तो कभी कभी निशा पर भी सक जाता है की कहीं वो भी बेचारे कवीर की बुंद न मार ले भेंचो ।
अंजू और कबीर की जो मुलाकात चल रही है उम्मीद है कि उसमे कुछ बाते सामने आयेंगी
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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मोहतरमा ऐसी शायद ही कोई बात होगी जो नजरों में ना आई हो। सबसे पहले इस बात को उठाया गया था।
अब सवाल ये उठता है कि क्या डायन भी 2 है?

जहाँ तक मुझे लगता है निशा जी बुरी शक्ति नहीं है। तो फिर कोचवान और सरपंच के बेटे को किसने मारा?
ना तो आदम खोर दो है और ना ही दो डायन है,
 

HalfbludPrince

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कह कर लेना.... कोई इन दोनो नर - नारी से सीखें...
दिमाग का अस्थि पंजर तो कब का ढीला हो गया था अब ये अपनी स्पॉइलर्स से हृदयाघात भी लाने को आतुर है 😅
हम तो बस दो लम्हे जीने की कोशिश कर रहे थे अपनी दोस्त संग
 

Avinashraj

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दो सवाल अंजू यहाँ क्या कर रही थी , और भैया रात को कहाँ गए थे. घूमते घूमते मैं मलिकपुर पहुँच गया , रमा की दूकान पर कुछ लोग थे. मैं अन्दर गया तो रमा मुझे मिल गयी .

मैं- कब से ढूंढ रहा हूँ और तुम हो की कहा गायब हो गयी थी , तुमसे जरुरी बात करनी थी .

रमा- अन्दर चलो मैं आती हूँ

कुछ देर बाद वो आई.

रमा- क्या बात थी

मैं- पिताजी और तुम्हारे बीच कब से ये सब चल रहा है

रमा- कुछ नहीं है हमारे बीच, कभी कभी वो बुलाते है मुझे . कभी अपनी मनमानी करते है कभी नहीं पर एक सवाल जरुर पूछते है

मैं- कैसा सवाल

रमा- यही की ठाकुर जरनैल मेरे पास आये क्या .

मैं- और क्या जवाब होता है तुम्हारा

रमा- यही की मैंने बरसो से उनको नहीं देखा.

मैं- मैंने मंगू के साथ भी देखा तुमको

रमा- राय साहब का कुत्ता है वो , हमारे जिस्मो की कुछ बोटिया कुत्तो को भी डाल देते है राय साहब ताकि हमें हमेशा याद रहे हमारी औकात.

मैं- उस रात जंगल में प्रकाश के साथ तुम चुदाई कर रही थी . तुम दोनों मिल कर चुतिया बना रहे थे मुझे

रमा- मेरी ऐसी मंशा नहीं थी न ही कभी प्रकाश ने मुझसे कुछ कहा तुम्हारे बारे में . वो बस आता चोदता और चले जाता.

मैं- बस इतना ही

रमा- हां, इतना ही .

मैं- देख रमा, मैंने तुझे वैध से चुदते देखा, फिर परकाश से फिर पिताजी और मंगू से, चाचा पहले से ही पेलता था तुझे. मैं नहीं जानता इस खेल में कौन गलत है कौन सही, मैं नहीं जानता तेरे मन में क्या चल रहा है तू चाहे दुनिया में आग लगा दे परवाह नहीं पर इतना ध्यान रखना तेरी खुराफात में किसी मजलूम का नुकसान न हो . तेरी चूत तू किसी को भी दे तू जाने.

रमा- क्या जानना चाहते हो मुझसे कुंवर.

मैं- चाचा कहाँ है ये जानना चाहता हूँ मैं

रमा- बस यही नहीं जानती मैं

मैं- रुडा और चाचा की लड़ाई हुई थी क्या रुडा का हाथ हो सकता है इसमें

रमा- मुझे नहीं लगता. रुडा बेशक घटिया है पर इतना नहीं गिरेगा वो .

मैं- परकाश को किसने मारा होगा.

रमा- चर्चा तो ये है की सूरजभान ने मारा है

मैं- किसने कहा ऐसा.

रमा- कहने को कौन आएगा उडती उडती खबर है .

मैं- पर सूरजभान तो साथ रहता था प्रकाश के फिर क्यों मारेगा उसे.

रमा-पिछले कुछ समय से अंजू और सूरजभान की तल्खी बहुत बढ़ गयी है . सूरज को लगता है की प्रकाश अंजू को चोदता है , कोई उसके घर की लड़की पर हाथ डाले ये उसे गवारा नहीं था शायद इसलिए ही .

मैं- पर अंजू तो उनके साथ रहती तो नहीं

रमा- साथ नहीं रहती पर है तो उनके परिवार की ही , है तो उसकी बहन ही.

मैं- चाचा को सबसे प्यारी तू थी , कभी चाचा ने तुझे कुछ ऐसा बताया जो तुझे खटका हो .

रमा- ऐसा तो कुछ खास नहीं था . पर वो कभी कभी कहते थे की राय साहब उनसे स्नेह नहीं करते थे .

मैं- और

रमा- छोटे ठाकुर का दिल उस घर में नहीं लगता था वो जायदातर समय जंगल में ही रहना पसंद करते थे .

मैं- जंगल में कहा था ठिकाना तुम लोगो के मिलने का.

रमा- ज्यादातर तो खेतो पर बने कमरे में ही मिलते थे या फिर छोटे ठाकुर की गाडी में .

चाचा भी गाडी रखते थे , ये तो मुझे मालूम ही था क्योंकि मैंने कभी भी चाचा की गाड़ी नहीं देखि थी .

मैं- चाचा की गाडी

रमा- हाँ,

मैं- तो अब कहा है वो गाडी

रमा- मालूम नहीं , जब से छोटे ठाकुर गए है गाड़ी देखि नहीं मैंने,शायद वो साथ ही ले गए हो.

मैं- इतने लोग से चुदने का क्या कारन है , चूत देकर क्या पाना चाहती है तू .

रमा- नहीं जानती .

मैं- जानता हु अब वापिस लौटना मुश्किल है पर फिर भी कोशिश तो कर ही सकती है न , अगली बार जब राय साहब तेरे पास आये तो तू मना करना कहना की कबीर ने कहा है .

रमा- राय साहब के खिलाफ जाओगे कुंवर.

मैं- वो मेरी समस्या है . क्या इतना मालूम कर सकती है की जिस दिन चाचा यहाँ से गया आखिरी बार वो किसके साथ था , किस से मिला था . कोई लेन देन कुछ तो ऐसा बताया होगा तुझे चाचा ने जो उस समय अजीब नहीं लगा हो पर आज उसका महत्त्व हो.

रमा- ऐसा तो कुछ खास नहीं है , छोटे ठाकुर बात बहुत कम करने लगे थे जब वो मिलने को बुलाते थे तो बस चुदाई की और हमारे लिए जो भी तोहफे लाते थे देकर चले जाते थे . कभी मैं पूछती तो टाल देते थे पर शायद अपने मन में कुछ तो छिपा रहे थे वो.

मैं- ऐसी कौन सी जगह थी जहाँ पर वो सबसे जायदा जाते थे मतलब जब वो चुदाई नहीं कर रहे होते थे तब.

रमा-नहीं मालूम पर वो हमें गहने देते थे तो कहते थे की ये बहुत बढ़िया कारीगर से बनवाये है .

मैं- कौन था वो कारीगर

रमा- यही, अपने सुनार और कौन. मुझे याद है एक बार उन्होंने कहा था की वो छोटी ठकुरानी के लिए कुछ विशेष गहने बनवा रहे थे.

“सुनार , ह्म्म्म ” मैंने कहा और वहां से चल दिया. अचानक से मुझे उन गहनों में उत्सुकता जाग गयी थी जो चाचा ने चाची के लिए बनवाये थे . मुझे वो गहने देखने थे और साथ ही मालूम करना था की चाचा की गाडी कहाँ गयी.

वापसी में मुझे अंजू फिर मिली, तनहा रात में आग जलाये सडक किनारे बैठी थी वो . इतनी रात को ये बहन की लोडी क्या करती है जंगल में मैं सोच कर ही पगला जा रहा था.

मैं- इतनी रात को यु अकेले जंगल में भटकना ठीक नहीं

अंजू- ये बात तुम पर भी लागू होती है

मैं- मैं तो अपने काम से गया था

अंजू- मुझे भी कोई काम हो सकता है न

मै आंच के पास बैठ गया और हाथ सेंकने लगा.

अंजू- क्या चाहते हो तुम इस जंगल से

मैं- अपने कुछ सवालो के जवाब

अंजू- क्या है सवाल तुम्हारे.

मैं- यही की ये जंगल क्या छिपा रहा है मुझसे

अंजू- मौत छिपी है यहाँ पर ,

मैं- कैसी मौत किसकी मौत

अंजू- मेरी मौत तुम्हारी मौत . हम सब की मौत. यहाँ जो ख़ामोशी है वो चीखो से दबी है , जंगल का कोना कोना रक्तरंजित है

मैं- किसका रक्त


अंजू- न तुम्हारा, न मेरा . अरमानो का रक्त, जज्बातों का रक्त, ..................
Nyc update bhai
 
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