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कबीर के मन को समझिए कहानी को समझ जाएंगेBhabhi ka alg hi hisab hai lkin accha nature lg rha h bhabhi ka ar apna hero to hero km bkra halal hone vala lg rha
कबीर के मन को समझिए कहानी को समझ जाएंगेBhabhi ka alg hi hisab hai lkin accha nature lg rha h bhabhi ka ar apna hero to hero km bkra halal hone vala lg rha
निशा जल्दी ही सब के सामने होगी उस दिन कयामत होगीBhut shandaar update......
Bhabhi Nisha ko pahle se janti h par jab pahli Baat mili thi badi teish m mili thi...... ab ghar par utna hi samman diya.....
Malum nahi kya masla h ye....
Jungle se jab nandini janti h Nisha ko... To pakka
ABHIMANU bhi janti hi hoga.....
Dekhte h uska reaction kya hota h jab use malum hoga DAKAAN k bare m
सब नियति पर निर्भर हैNahi..........Bilkul nahi, chahe 8-10 sal lag jaye..........ye failta rehna chahiye.......
Kyunki iske baad aapne na likhne ki kasam khayi he.................
ThanksNice update bro
सब नियति पर निर्भर है
Nisha nandini ki badi bahan hai bhaiसम्मान तो है ही, लेकिन निशा नंदिनी के पैर छूती तो समझ आता, यहां तो उल्टा ही हुआ, मतलब समझना जरूरी है न।
क्योंकि सम्मान अगर जो कबीर के चलते है तो निशा पैर छूती,और अगर जो पहले से है तो पहली मुलाकात में भी होना चाहिए था ये।
Surprise#102
“कौन है उधर ” भाभी की आवाज आई . निशा ने मेरा हाथ पकड़ लिया और मेरे पीछे हो गयी. लालटेन की रौशनी हमारी तरफ आने लगी. मेरा दिल जोरो से धडकने लगा. भाभी यहाँ इस हालत में निशा को देखती तो पक्का गुस्सा करती ही . हम दोनों आँगन के बीचोबीच खड़े थे. लालटेन की रौशनी हमारी तरफ आ ही रही थी
“नंदिनी क्या कर रही हो “
ऊपर से भैया की आवाज आई
“आई, ” भाभी ने कहा और वापिस मुड गयी . हमें राहत सी मिली मैं निशा को लेकर घर से बाहर निकल गया. फिर सीधा हम कुवे पर ही आकर रुके.
निशा- तो छिपना भी जानते हो तुम
मैं- छिप कर मिलने का अपना ही मजा है जान.
निशा मुस्कुराने लगी.
निशा- वैसे मेरे साथ देख लेती नंदिनी तो तुम पर गुस्सा बहुत करती
मैं- घबरा तो तुम भी गयी थी
निशा- तुमसे ही सीखा की छिप कर मिलने का मजा बहुत है .
हम दोनों ही हंस पड़े.
निशा- चंपा को कुछ तोहफे देना चाहती हूँ मैं भिजवा दूंगी कल तुम मेरी तरफ से उसे दे देना.
मैं- तुम खुद मिल कर दोगी तो अच्छा लगेगा उसे और हमें हमारी जान का दीदार हो जायेगा.
निशा- बस बहाने ढूंढते हो तुम
मैं- क्या करे जान, तुम बहाने कहती हो तुमसे मिलने के लिए हम जान दे दे
निशा ने अपनी ऊँगली मेरे होंठो पर रखी और बोली- जान देने के लिए नहीं होती , फिर न कहना ऐसा.
मैं- तो फिर क्या कहूँ मेरी सरकार
निशा- कुछ नहीं रात बहुत हुई .
मैं- अभी तो रात जवान हुई है और अभी से तुम घबराने लगी
निशा- अच्छा जी हमारी बाते हमी को सुनाई जा रही है. खैर, बयाह में अंजू भी आएगी ऐसा मेरा मानना है
मैं- आएगी जानता हूँ
निशा- तुम्हारे पास पूरा मौका रहेगा उसके साथ रहना वो अभिमानु के बहुत करीब है जब वो बाते करे तो कान लगाये रखना उम्मीद है कुछ मिलेगा तुमको.
मैं- मैंने भी यही सोचा है . वैसे प्रकाश इस जमीं के आस पास मरा था , अंजू भी इधर के चक्कर ज्यादा लगा रही है तुमको क्या लगता है
निशा- शायद इधर कुछ हो सकता है उनके मतलब का
मैं- मेरा भी यही विचार है जान, पर खुले खेत और ये कमरा इसके सिवा और क्या ही है यहाँ
निशा- जमीन तो है न , तुम हमेशा से यहाँ खेती कर रहे हो अगर तुम अपनी जमीं को नहीं पहचानते तो फिर क्या ख़ाक किसान हो तुम.
निशा की बात में दम था जमीं से बेहतर क्या हो सकता था कुछ छिपाने के लिए . पर इतनी बड़ी जमीन में उसे तलाशना बहुत मुशकिल था पर कोशिश करनी ही थी.
सुबह आँख खुली तो रजाई में मैं अकेला था . वो जा चुकी थी . रात भर जागने की वजह से आँखे भारी भारी सी हो रही थी जैसे तैसे करके उठा और पूरी जमीन का एक चक्कर लगाया. बारीकी से निरिक्षण किया. जमीन भी तो बहुत बड़ी थी ,जब थक गया तो गाँव की तरफ चल दिया.
जाते ही एक कप चाय ली, देखा बाप के कमरे पर ताला लटका था ये चुतिया न जाने कहा गायब था .
मेरी चाय ख़त्म भी नहीं हुई थी की राय साहब की गाडी आकर रुकी. साथ में मंगू का बाप भी था . मालुम हुआ की आज लग्न देने के लिए घर और गाँव के कुछ लोग शेखर बाबु के घर जायेंगे. दोपहर होते होते सामान , कपडे, भेंटे सब लाद दिया गया और चलने की तयारी होने लगी. भैया मेरे पास आये और बोले- छोटे, हम लग्न देने जा रहे है तू यही रहेगा,पीछे से व्यवस्था में कोई कमी नहीं आये.
मैं- पर मैं भी चल रहा हूँ
भैया- पिताजी ने कहा है की तू यही रहेगा.
मैंने एक गहरी साँस ली बाप चुतिया मुझे क्यों नहीं ले जाना चाहता था .
भाभी- कबीर थोड़ी हल्दी बची है कहे तो तुझे लगा दू, शुभ होता है इसे लगाना
मैं- मेरा आज नहाने का मन नहीं है भाभी
भाभी ने थोड़ी हल्दी मेरे गाल पर लगाई और भैया से बोली- आपके भाई को ब्याह करना है और हल्दी से घबरा रहा है .
भैया- कम न समझना मेरा भाई है ये
भाभी- एक बार आपको कम समझने की भूल की थी ,मन हार बैठी थी
भैया- मन हार कर हमें तो जीत ही गयी थी न .
मैं- आप लोगो का हो गया हो तो मेरी भी सुन लो
भैया- तुम मेरी सुनो छोटे,
उन लोगो के जाने के बाद चाची ने बताया की वो मंदिर जा रही है . रह गए मैं और भाभी . भाभी अपने कमरे में चली गयी मैं भी छोटा मोटा काम करने लगा. कुछ देर ही बीती थी की कुछ लोग आये और काफी सारे कपडे, आभूषण और तोहफे रखने लगे. लग्न तो चला गया फिर ये सामान कैसा, मैंने एक पल सोचा और फिर समझा की राय साहब के ही लोग रहे होंगे. मैंने ध्यान नहीं दिया. पूरी रात निशा के साथ जागा था तो सोचा की थोड़ी देर सो जाता हूँ वैसे भी रात को फिर से जागना ही था. पीठ मोड़ कर कमरे की तरफ चला ही था की.....
“एक बार फिर हम दर पर आये सनम के और एक बार फिर पीठ मोड़ ली तुमने ” पलट कर देखे बिना ही मेरे होंठो पर मुस्कान आ गयी.
“मेहमान है तुम्हारे , ” निशा ने कहा
मैं- मेहमान नहीं मेजबान हो तुम सरकार, ये घर मेरा ही नहीं तुम्हारा भी है .
मैंने आगी बढ़ कर उसे बाँहों में भर लिया और अपने होंठ उसके होंठो पर रख दिए. इश्क का ऐसा नशा था की भूल गया मेरे सिवा घर पर कोई और भी था .
“कौन आया है कबीर ” भाभी ने ऊपर से झाँका , निशा को मेरे साथ देख कर भाभी बस देखती ही रह गयी हमें. मैंने निशा का हाथ कस कर पकड़ लिया .
मैं- निशा आई है भाभी .
भाभी सीढिया उतर कर निचे आई. कुछ देर तक वो बस हमें देखती रही .
मैं- आपने इसे न्योता दिया है भाभी
पर भाभी ने मेरी बात जैसे सुनी ही नहीं .....दो पल वो एक दुसरे को देखती रही और फिर वो हुआ जिसकी कभी उम्मीद नहीं थी भाभी झुकी और निशा के पैरो को हाथ लगा कर अपने माथे पर लगाया. नंदिनी भाभी की आँखों से गिरते आंसू उनके गालो को भिगो गए. मैं हैरान था , परेशान था .
भाभी- कबीर, मेहमान आई है घर पर . मेरे कमरे में लेकर चलो इनको मैं आती हूँ .
मैंने निशा का हाथ पकड़ा और ऊपर सीढिया चढ़ने लगे. भाभी बस हमें देखती रही .........
Jabar just update foji bhai.#103
“ये मेरा कमरा है ” मैंने निशा को अन्दर लाते हुए कहा
निशा- बढ़िया सजाया है
मैं- क्या तुम भी सब कुछ अस्त व्यस्त तो पड़ा है , वैसे भी आजकल मैं ज्यादातर कुवे पर ही रहता हूँ न
“कोई बात नहीं कबीर ” निशा ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा.
मैं- समझ नहीं आ रहा क्या करू तुम्हारे लिए
निशा- तुमने बहुत कुछ कर दिया है अब और की जरुरत नहीं
“ये कबीर के कमरा किसने खोला ” बाहर से चंपा की आवाज आई तो मैंने उसे अन्दर आने को कहा. चंपा मेरे साथ निशा को देख कर थोडा हैरान हो गयी.
मैं- ऐसे क्या देख रही है , मैंने कहा था न तुझसे की निशा से मिलवा दूंगा तुझे
चंपा- ये तो वो ........
मैं- हाँ वो ही है. आ बैठ पास
निशा ने आगे बढ़ कर चंपा को गले लगाया और उसके माथे को चूमा
“बड़ी प्यारी हो ” निशा ने कहा.
चंपा- मैं कुछ लाती हूँ आपके लिए
निशा- जरुरत नहीं तुम बैठो पास मेरे, तुमसे मिलने ही तो आई हूँ मैं
निशा की सादगी, उसका बड़प्पन उसका स्नेह एक डायन के दिल में इंसानों से ज्यादा दरियादिली थी .
निशा- सब लोग खामोश क्यों हो बोलो भी कुछ
चम्पा- मैं क्या बोलू
निशा- जो तुम्हारा दिल करे वो बोलो. कबीर तो तुम्हारी तारीफ करते हुए नहीं थकता.
तभी भाभी नाश्ता ले आई निचे से. चंपा ने भाभी के हाथ से ट्रे ली और सबको चाय नाश्ता देने लगी.
भाभी- चंपा निशा तेरे लिए कुछ तोहफे लाई है तू निचे जाकर देख और संभाल कर रख दे उनको.
चंपा के जाने के बाद हमारी तरफ मुखातिब हुई.
भाभी- तुमको यहाँ देख कर बड़ी प्रसन्नता हुई ,
निशा- तुम्हारे निमन्त्रण को कैसे मना करती .
मैं- आप दोनों एक दुसरे को कैसे जानती है
भाभी- जंगल में सिर्फ तुम ही नहीं जी रहे हो तुमसे पहले भी कुछ लोग है जो तुमसे ज्यादा जानते है जंगल को.
मैं- भाभी आपसे मैंने कुछ नहीं छिपाया . आज जब निशा भी यहाँ पर है तो मैं आपसे विनती करता हूँ की आप हमारे रिश्ते पर अपनी हाँ की मोहर लगा दे. ये प्रेम दुनिया समझे ना समझे आप जरुर समझेंगी मैंने शुरू से ही ये माना है . मेरा और निशा का रिश्ता किसी स्वार्थ पर नहीं टिका है
भाभी- जानती हु, समझती भी हूँ प्रेम को .पर मैं डरती हूँ कबीर . शुरू में मुझे लगता था की निशा कभी इतना आगे नहीं बढ़ेगी पर जब निशा ने ये निर्णय लिया है तो सोच कर ही लिया होगा.
निशा- नंदिनी, मैं तुम्हारे मन की बात समझती हूँ . जानती हूँ की जिस पथ पर चलने के लिए मैंने कबीर का हाथ थामा है वो राह आसान नहीं है
मैं- हर राह आसान कर लूँगा मैं निशा, मेरा वादा है तेरे दामन में इतनी खुशिया भर दूंगा की तू नाज करेगी मुझ पर
भाभी- वो नाज करती है तुझ पर कबीर. पर ये जमाना, अभिमानु को कैसे समझा पाउंगी मैं
मैं- आप फ़िक्र ना करे, भैया ने मुझसे वादा किया है की वो खुद जायेंगे रिश्ता लेके
भाभी- एक बार मुझसे पूछ तो लेते कबीर,
निशा- नियति का खेल निराला है नंदिनी . खैर, अब मुझे चलना चाहिए . ब्याह की रात नहीं आ सकती थी इसलिए सोचा की आज ही चंपा से मिल लू .
भाभी- अच्छा किया
हम लोग निचे आये. निशा ने थोड़ी बाते चंपा के साथ की और फिर चली गयी. मैं उसके साथ जाना चाहता था पर भाभी ने मुझे रोक लिया.
भाभी- क्या वादा किया है अभिमानु ने तुझसे
मैं- यही की वो खुद मेरे रिशते की बात करने जायेंगे.
भाभी और कुछ कहती की तभी उनकी नजर आँगन में आती चाची पर पड़ी तो वो चुप हो गयी. मैं चंपा के पास गया .
मैं- तोहफे कैसे लगे.
चंपा- अप्रतिम, तेरी दोस्त तो बहुत अमीर है
मैं- अमीर का तो मालूम नहीं पर दिल की बहुत नेक है .और हाँ डाकन कभी बुरी नहीं होती वो मेरे जैसी ही होती है .
मेरी बात सुन कर चंपा के चेहरे पर हवाइया उड़ने लगी. चाची के पीछे पीछे मैं कमरे में गया और उसे अपनी बाँहों में भर लिया. चाची के लाल होंठ चूसने लगा.
चाची- मत कर कोई आ निकलेगा मरवा के मानेगा तू
मैं- कितने दिन हो गए रुका नहीं जा रहा मुझसे
चाची- ठीक है आज रात को कर दूंगी तेरा काम अभी तंग मत कर.
चाची के लहंगे में हाथ डाला और चूत को मसलते हुए बोला- रात को पक्का
एक बार फिर मैंने चाचा की चाबी को देखा और सोचने लगा की क्या चक्कर है इस चाबी का, कहाँ होगा वो ताला जो चाचा की गुत्थी सुलझाएगा. रसोई में मैंने देखा की सरला बर्तन धो रही थी .
मैं- बर्तनों पर ध्यान मत दे थोडा ध्यान मुझ पर भी दे भाभी
सरला- कल मौका ही नहीं मिला पर आज तुम्हारी मनचाही कर दूंगी.
मैं- यहाँ जगह नहीं है , और तेरे घर पर आ नहीं सकता
सरला- एक जगह है , जहाँ मिल सकते है
मैं- कहाँ
सरला- वैध के घर पर . घर बंद पड़ा है किसी को मालूम भी नहीं होगा
मैं- ठीक है पर आज ना नहीं होनी चाहिए
मैं अपने दोनों हाथो में लड्डू रखना चाहता था चाची या सरला दोनों में से एक को तो चोदना ही चोदना था मुझे. तभी मुझे ध्यान आया की चोदने के लिए इस घर में भी तो जगह है . मैंने रसोई में छिपे दरवाजे को खोलना चाहा पर उस पर ताला लगा था . जरुर भाई ने ही किया होगा ये काम.
थोड़ी देर सोना चाहता था पर ब्याह के घर में सब कुछ मिल सकता है बस नींद नहीं. चाची ने कहा की भाभी को बुला ला ऊपर गया तो देखा की भाभी पलंग पर बैठी थी उनकी गोद में लाल जोड़ा था .
मुझे देख कर वो बोली- सोचा था की तेरी दुल्हन को दूंगी ये
मैं- आई तो थी दे देती हमारा भी थोडा मान रह जाता.
भाभी- पर दे नहीं पाई
मैं- आपका मन अब भी नहीं मान रहा क्या
भाभी- मुझे डर लग रहा है कबीर.
मैं- कैसा डर भाभी
भाभी- यही की तुझे खो न दू कहीं.