Love Sword
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Fuaji bhai Kaya aaj ka update nahi ayega
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आँख खुली तो दोपहर हो रही थी ,अलसाया बदन लिए मैं मुश्किल से उठा. हाथ मुह धोये . गाँव पहुँच कर सबसे पहले मैं मंगू से ही मिला उसे साइड में लेकर गया.
मैं- कुछ जरुरी बात करनी है तुझसे
मंगू- हाँ भाई .
मैं- तूने प्रकाश को क्यों मारा.
मेरी बात सुनकर मंगू के चेहरे का रंग उड़ गया पर मैं हरगिज नहीं चाहता था की वो नजरे चुराए.
मैं- मंगू , तू मेरा दोस्त है और मैं उम्मीद करता हूँ की तू मुझे सच बताये.
मंगू-वो राय साहब पर दबाव बना रहा था
मैं- किस चीज का दबाव
मंगू- यही की राय साहब उसे वसीयत का एक टुकड़ा दे दे और साथ में चंपा को भी उसके पास भेजे.
मैंने एक गहरी साँस ली.
मैं- क्या था उस वसीयत में
मंगू- नहीं जानता. राय साहब ने इतना ही कहा की उनका पाला हुआ सपोला उनको डसना चाहता है , उसका फन कुचल दिया जाए.
मैं- ऐसा क्या था प्रकाश के पास की वो राय साहब को ब्लेकमेल करने की जुर्रत कर पाया.
मंगू- नहीं जानता, राय साहब ने कहा उसे मार दे मैंने मार दिया .
मैं- कल को राय साहब कहेगा की कबीर को मार दे तू मुझे भी मार देगा.
मंगू- कैसी बाते कर रहे हो भाई
मैं- तूने गलत राह चुनी है मेरे दोस्त. इस राह पर तुझे कुछ नहीं मिलेगा . मेरा बाप तुझे इस्तेमाल कर रहा है जब उसका मन भरेगा तुझे लात मार देगा. बाकि तेरी मर्जी है.
मंगू- मैं कविता के कातिल की तलाश के लिए कर रहा हूँ ये सब.
मैं- काविता तुझे कभी नहीं चाहती थी , वो बस तेरा इस्तेमाल कर रही थी. इस बात को जितना जल्दी समझ लेगा तेरी जिन्दगी उतनी ही आसान होगी.
मंगू- झूठ कह रहे हो तुम
मैं- तेरी दोस्ती की कसम मैंने तुझसे कभी झूठ नहीं बोला.
मंगू के जाने के बाद मैंने सोचा की बाप चुटिया के मन में आखिर चल क्या रहा है. कैसे मालूम हो की वो क्या करना चाहता है क्या कर रहा है. थोड़ी देर बाद मैंने अंजू को देखा , उसके पास गया .
मैं- कैसी हो अब
अंजू- बेहतर तुम बताओ
मैं-तुम्हे ठीक लगे तो क्या तुम मेरे साथ सुनैना की समाधी पर चल सकती हो
अंजू- अभी
मैं- अभी
अंजू - ठीक है मेरी गाड़ी की चाबी ले आओ ऊपर से
हम दोनों जंगल की तरफ चल पड़े और ठीक उसी जगह पहुँच गए जहाँ निशा मुझे ले गयी थी .पत्थरों के टुकड़े अभी भी वैसे ही पड़े थे .
अंजू- देख लो जो देखना है
मैं- बुरा मत मानना पर मैं वो सोना देखना चाहता हूँ
अंजू ने कंधे उचकाए और समाधी के कुछ पत्थर हटा कर एक हांडी जो की बेहद पुराणी थी काली पड़ चुकी थी बाहर निकाल ली. हांडी का ढक्कन हटाते ही मैंने देखा की वो सोने से लबालब भरी थी .
अंजू ने सही कहा था मुझे.
मैं- रख दो इसे वापिस
अंजू- तुमको चाहिए क्या सोना
मैं- नहीं
अंजू- फिर क्यों देखना चाहते थे तुम इसे.
अंजू की आवाज में उतावलापन लगा मुझे.
मैं- मुझे लगा था की सुनैना ने सोना निकाला था ये एक अफवाह है .
अंजू- सच तुम्हारे सामने है .
मैं- आओ चलते है
वापसी में मुझे ध्यान आया की बैंक जाना था . अंजू को छोड़ने के बाद मैं सीधा मेनेजर के पास गया और चाचा के खाते की जानकारी मांगी. मनेजेर ने मुझे ऊपर से निचे तक देखा और बोला- कुंवर, अगर ठाकुर लोग अपना धन बैंक में रखने लगे तो उनका रसूख क्या ही रह जायेगा. बैंक ठाकुरों के दरवाजे पर जाते है ठाकुर बैंक नहीं आते. ठाकुर जरनैल सिंह का कोई खाता नहीं यहाँ.
मामला अब और उलझ गया था . मैं मलिकपुर गया उन गहनों को लेकर सुनार ने पुष्टि कर दी की वो गहने उसने ही चाची के लिए बनाये थे. रात को मैं थोड़ी देर भाभी के पास बैठा इधर उधर की बाते की . अंजू साथ थी तो खुलकर मैं कुछ कह नहीं पा रहा था . सबके सोने के बाद मैं चाची को छत पर ले गया और सीढियों का किवाड़ बंद करते ही अपने आगोश में भर लिया.
चाची- कबीर, थोड़े दिन सब्र कर ले फिर खूब बिस्तर गर्म करुँगी तेरा.
मैं- ज्यादा देर नहीं लगाऊंगा.
मैंने चाची को घुटनों के बल झुकाया और उसके लहंगे को कमर तक उंचा कर दिया. चाची के मादक नितम्बो को चूमते हुए मैंने उनको चौड़ा किया और चाची की झांटो से भरी चूत पर अपने होंठ रख दिए.
“सीईईईईई कबीर ” चाची चाह कर भी अपने पैरो को कांपने से नहीं रोक पाई. जीभ का नुकीला कोना चाची की चूत के दाने पर रगड पैदा कर रहा था जिस से वो भी उत्तेजित होने लगी थी . मैं जानता था की समय कम है. मैंने लंड पर थूक लगाया और चाची की चूची मसलते हुए उसे चोदने लगा.
चाची के गाल चूमते हुए , ठंडी रात में छत पर चुदाई का अपना ही सूख था . चाची थोडा और झुक गयी मैंने अपने हाथ उसके कन्धो पर रखे और पूरी रफ्तार से चूत मारने लगा. चुदाई का दौर जब रुका तो हम दोनों पसीने से लथपथ थे.
चाची- कर ली अपनी मनचाही, अब ब्याह तक कुछ न कहना मुझसे.
मैं - दो मिनट रुक फिर जाना निचे.
चाची- अब क्या है .
मैंने वो गहनों का डिब्बा चाची के हाथ में दे दिया. और बोला- ये गहने कभी चाचा ने तेरे लिए बनवाए थे, आज गहने लाया हूँ किसी दिन चाचा को भी ले आऊंगा. बहुत दुःख झेल लिए तूने तेरे हिस्से का सुख अब ज्यादा दिन दूर नहीं है तुझसे.
चाची ने उन गहनों को देखा , फिर मुझे देखा और बिना कुछ कहे वो वहां से चली गयी. निचे आने के बाद मैं कुछ खाने के लिए रसोई में गया . मैंने देखा की कमरे के दरवाजे पर अब ताला नहीं लगा है . खाना खाने के बाद मैं भैया के पुराने कमरे में चला गया हजारो किताबो ने अपने अन्दर न जाने क्या छिपाया हुआ था .
मैंने लैंप मेज पर रखा और एक किताब ऐसे ही उठा ली. दो चार पन्ने पलटे ही थे की बेख्याली में मेरा हाथ लैंप के शीशे पर लग गया . लैंप मेज पर गिर गया और उसकी नीली लौ मेज की लकड़ी पर फ़ैल गयी. उस नीली रौशनी में मुझे मेज पर कुछ उकेरा गया दिखा. और जब मैंने उसे समझा तो एक बार फिर से मेरे पास कहने को कुछ नही
समाधि चाचा की है शायद।#
आँख खुली तो दोपहर हो रही थी ,अलसाया बदन लिए मैं मुश्किल से उठा. हाथ मुह धोये . गाँव पहुँच कर सबसे पहले मैं मंगू से ही मिला उसे साइड में लेकर गया.
मैं- कुछ जरुरी बात करनी है तुझसे
मंगू- हाँ भाई .
मैं- तूने प्रकाश को क्यों मारा.
मेरी बात सुनकर मंगू के चेहरे का रंग उड़ गया पर मैं हरगिज नहीं चाहता था की वो नजरे चुराए.
मैं- मंगू , तू मेरा दोस्त है और मैं उम्मीद करता हूँ की तू मुझे सच बताये.
मंगू-वो राय साहब पर दबाव बना रहा था
मैं- किस चीज का दबाव
मंगू- यही की राय साहब उसे वसीयत का एक टुकड़ा दे दे और साथ में चंपा को भी उसके पास भेजे.
मैंने एक गहरी साँस ली.
मैं- क्या था उस वसीयत में
मंगू- नहीं जानता. राय साहब ने इतना ही कहा की उनका पाला हुआ सपोला उनको डसना चाहता है , उसका फन कुचल दिया जाए.
मैं- ऐसा क्या था प्रकाश के पास की वो राय साहब को ब्लेकमेल करने की जुर्रत कर पाया.
मंगू- नहीं जानता, राय साहब ने कहा उसे मार दे मैंने मार दिया .
मैं- कल को राय साहब कहेगा की कबीर को मार दे तू मुझे भी मार देगा.
मंगू- कैसी बाते कर रहे हो भाई
मैं- तूने गलत राह चुनी है मेरे दोस्त. इस राह पर तुझे कुछ नहीं मिलेगा . मेरा बाप तुझे इस्तेमाल कर रहा है जब उसका मन भरेगा तुझे लात मार देगा. बाकि तेरी मर्जी है.
मंगू- मैं कविता के कातिल की तलाश के लिए कर रहा हूँ ये सब.
मैं- काविता तुझे कभी नहीं चाहती थी , वो बस तेरा इस्तेमाल कर रही थी. इस बात को जितना जल्दी समझ लेगा तेरी जिन्दगी उतनी ही आसान होगी.
मंगू- झूठ कह रहे हो तुम
मैं- तेरी दोस्ती की कसम मैंने तुझसे कभी झूठ नहीं बोला.
मंगू के जाने के बाद मैंने सोचा की बाप चुटिया के मन में आखिर चल क्या रहा है. कैसे मालूम हो की वो क्या करना चाहता है क्या कर रहा है. थोड़ी देर बाद मैंने अंजू को देखा , उसके पास गया .
मैं- कैसी हो अब
अंजू- बेहतर तुम बताओ
मैं-तुम्हे ठीक लगे तो क्या तुम मेरे साथ सुनैना की समाधी पर चल सकती हो
अंजू- अभी
मैं- अभी
अंजू - ठीक है मेरी गाड़ी की चाबी ले आओ ऊपर से
हम दोनों जंगल की तरफ चल पड़े और ठीक उसी जगह पहुँच गए जहाँ निशा मुझे ले गयी थी .पत्थरों के टुकड़े अभी भी वैसे ही पड़े थे .
अंजू- देख लो जो देखना है
मैं- बुरा मत मानना पर मैं वो सोना देखना चाहता हूँ
अंजू ने कंधे उचकाए और समाधी के कुछ पत्थर हटा कर एक हांडी जो की बेहद पुराणी थी काली पड़ चुकी थी बाहर निकाल ली. हांडी का ढक्कन हटाते ही मैंने देखा की वो सोने से लबालब भरी थी .
अंजू ने सही कहा था मुझे.
मैं- रख दो इसे वापिस
अंजू- तुमको चाहिए क्या सोना
मैं- नहीं
अंजू- फिर क्यों देखना चाहते थे तुम इसे.
अंजू की आवाज में उतावलापन लगा मुझे.
मैं- मुझे लगा था की सुनैना ने सोना निकाला था ये एक अफवाह है .
अंजू- सच तुम्हारे सामने है .
मैं- आओ चलते है
वापसी में मुझे ध्यान आया की बैंक जाना था . अंजू को छोड़ने के बाद मैं सीधा मेनेजर के पास गया और चाचा के खाते की जानकारी मांगी. मनेजेर ने मुझे ऊपर से निचे तक देखा और बोला- कुंवर, अगर ठाकुर लोग अपना धन बैंक में रखने लगे तो उनका रसूख क्या ही रह जायेगा. बैंक ठाकुरों के दरवाजे पर जाते है ठाकुर बैंक नहीं आते. ठाकुर जरनैल सिंह का कोई खाता नहीं यहाँ.
मामला अब और उलझ गया था . मैं मलिकपुर गया उन गहनों को लेकर सुनार ने पुष्टि कर दी की वो गहने उसने ही चाची के लिए बनाये थे. रात को मैं थोड़ी देर भाभी के पास बैठा इधर उधर की बाते की . अंजू साथ थी तो खुलकर मैं कुछ कह नहीं पा रहा था . सबके सोने के बाद मैं चाची को छत पर ले गया और सीढियों का किवाड़ बंद करते ही अपने आगोश में भर लिया.
चाची- कबीर, थोड़े दिन सब्र कर ले फिर खूब बिस्तर गर्म करुँगी तेरा.
मैं- ज्यादा देर नहीं लगाऊंगा.
मैंने चाची को घुटनों के बल झुकाया और उसके लहंगे को कमर तक उंचा कर दिया. चाची के मादक नितम्बो को चूमते हुए मैंने उनको चौड़ा किया और चाची की झांटो से भरी चूत पर अपने होंठ रख दिए.
“सीईईईईई कबीर ” चाची चाह कर भी अपने पैरो को कांपने से नहीं रोक पाई. जीभ का नुकीला कोना चाची की चूत के दाने पर रगड पैदा कर रहा था जिस से वो भी उत्तेजित होने लगी थी . मैं जानता था की समय कम है. मैंने लंड पर थूक लगाया और चाची की चूची मसलते हुए उसे चोदने लगा.
चाची के गाल चूमते हुए , ठंडी रात में छत पर चुदाई का अपना ही सूख था . चाची थोडा और झुक गयी मैंने अपने हाथ उसके कन्धो पर रखे और पूरी रफ्तार से चूत मारने लगा. चुदाई का दौर जब रुका तो हम दोनों पसीने से लथपथ थे.
चाची- कर ली अपनी मनचाही, अब ब्याह तक कुछ न कहना मुझसे.
मैं - दो मिनट रुक फिर जाना निचे.
चाची- अब क्या है .
मैंने वो गहनों का डिब्बा चाची के हाथ में दे दिया. और बोला- ये गहने कभी चाचा ने तेरे लिए बनवाए थे, आज गहने लाया हूँ किसी दिन चाचा को भी ले आऊंगा. बहुत दुःख झेल लिए तूने तेरे हिस्से का सुख अब ज्यादा दिन दूर नहीं है तुझसे.
चाची ने उन गहनों को देखा , फिर मुझे देखा और बिना कुछ कहे वो वहां से चली गयी. निचे आने के बाद मैं कुछ खाने के लिए रसोई में गया . मैंने देखा की कमरे के दरवाजे पर अब ताला नहीं लगा है . खाना खाने के बाद मैं भैया के पुराने कमरे में चला गया हजारो किताबो ने अपने अन्दर न जाने क्या छिपाया हुआ था .
मैंने लैंप मेज पर रखा और एक किताब ऐसे ही उठा ली. दो चार पन्ने पलटे ही थे की बेख्याली में मेरा हाथ लैंप के शीशे पर लग गया . लैंप मेज पर गिर गया और उसकी नीली लौ मेज की लकड़ी पर फ़ैल गयी. उस नीली रौशनी में मुझे मेज पर कुछ उकेरा गया दिखा. और जब मैंने उसे समझा तो एक बार फिर से मेरे पास कहने को कुछ नही था.
चाची....#115
सुबह मेरा सर बहुत दुःख रहा था .कल की रात बड़ी मुश्किल से बीती थी. मैंने भैया को देखा जो आँगन में ही बैठे मालिश करवा रहे थे . मैं उनके पास गया .
भैया- सही समय पर आया है छोटे, तू भी बदन खोल ले .
मैं- फिर कभी , अभी कुछ बात करनी है .
भैया - क्या
साथ ही उन्होंने मालिश वाले को जाने को कहा
मैं- चाचा का पता चल गया है जल्दी ही वो घर आयेंगे
भैया- क्या, कहाँ है चाचा
मैं- जहाँ भी है उन्होंने कहा है की वो सही समय का इंतज़ार कर रहे है घर लौटने को .
भैया- कहाँ है वो बता मुझे अभी के अभी मैं जाऊंगा उनको लेने
जीवन में पहली बार मुझे अधीरता लगी भैया के व्यवहार में .
मैं- उन्होंने कहा था की आते ही वो सबसे पहले आपसे ही मिलेंगे.
तभी मैंने राय साहब को आते देखा तो मैं उठ कर उनके पास चला गया .
मैं- प्रकाश को मरवाने की क्या जरूरत आन पड़ी थी
पिताजी- तुझे कोई मतलब नहीं इस से
मैं- मतलब है मुझे. जानने की इच्छा है की इतने रसूखदार इन्सान को प्रकाश क्यों ब्लेकमेल कर रहा था .
पिताजी- अभी इतने नहीं हुए हो की हमसे आँख मिला कर बात कर सको
मैं- इतना हो गया हूँ की आप नजरे झुका कर बात करेंगे.
पिताजी- तेरी ये जुर्रत , जानता है किसके सामने खड़ा है घर में शादी नहीं होती तो अभी के अभी तुम्हारी पीठ लाल हो चुकी होती.
मैं- किस शादी की बात करते है आप. अपनी बेटी समान लड़की को तो खुद ख़राब कर चुके हो. दो कौड़ी की रमा के साथ राते रंगीन करने वाला ये इन्सान रसूख की बात करते अच्छा नहीं लगता. वैसे भी मै चाचा से मिल कर आया हूँ जल्दी ही वो घर लौट आयेंगे.
पिताजी ने धक्का दिया मुझे और अपने कमरे में चले गये.
“वसीयत के चौथे पन्ने का राज जान गया हूँ मैं , जल्दी ही आपको बेनकाब करूँगा ” मैंने पीछे से कहा पर पिताजी ने जैसे सुना ही नहीं.
सुबह ऐसी थी तो दिन कैसा होगा मैंने चाय की चुस्की लेते हुए सोचा. जेब से चाचा की तस्वीर निकाल कर मैं कुछ देर देखता रहा और फिर वापिस उसे जेब में रख लिया.
दिन भर मैं घर में ही रहा . सबको देखता रहा . घर के छोटे मोटे काम किये. भैया-पिताजी दोनों ही घर पर थे. भैया ने ज्यादातर समय आराम करते हुए ही बिताया .सब अपनी मस्ती में मस्त थे पर मुझे चैन नहीं था . एक बात और जिसकी मुझे बेहद फ़िक्र थी की निशा को लाने के बाद रखूँगा कहाँ, बेशक भाभी ने स्वीकारती दे दी थी पर राय साहब के रहते ये मुमकिन नही था .
मैं एक ऐसे मोड़ पर खड़ा था जहाँ से बन कुछ नहीं सकता था पर बिगड़ना सब कुछ था .जो मैं करने जा रहा था उसके क्या परिणाम होंगे ये नहीं जानता था मैं . पर इतना जरुर जानता था की चार दिन बाद पूनम की रात थी , चंपा का ब्याह था और दो दिन बाद फाग के दिन मुझे निशा को लेने जाना था .
रात के सन्नाटे में ख़ामोशी से मैं इंतज़ार कर रहा था, जरा जरा सी आहट मुझे चेता रही थी की मैं अकेला नहीं हूँ यहाँ पर जंगल भी जाग रहा है . और ये जागा हुआ जंगल अपनी हद में इन्सान के आने से खफा तो था. इंतज़ार करना मुश्किल हो रहा था पर मैंने सुना था की सब्र का फल मीठा होता है .
देर, बहुत देर में बीतने लगी थी , तनहा रात में खड़े खड़े मुझे कोफ़्त होने लगी थी .झपकी लगभग आ ही गयी थी की कुछ आवाजो से मेरे कान खड़े हो गए. शाल ओढ़े उसे अपनी तरफ आते देख कर मेरे होंठो पर अनचाहे ही एक मुस्कान आ गयी . मैं जानता था की कोई तो जरुर आयेगा पर कौन ये देखने की बात थी .
कुवे की मुंडेर पर झुक कर उसने कुछ देर देखा. और फिर मुंडेर पर उसके हाथ चलने लगे. लग रहा था की वो साया कुछ तलाश कर रहा है . धीमी सांसे लेते हुए मेरी नजर एक एक क्रियाकलाप पर जमी थी. कुवे पर कुछ तो था . तभी उस साए का हाथ कही लगा और , और फिर वो हुआ जो कोई सोच भी नहीं सकता था .
साए ने पास पड़ी कुदाल उठाई और जमीन खोदने लगा. बहुत देर तक वो खोदता रहा और फिर उसने हाथो से मिटटी हटानी शुरू की जब उसके हाथ किसी चीज से लगे तो वो शांत हो गया. कुछ देर उसकी उंगलिया कुछ टटोलती रही और जब वो सुनिश्चित हो गया तो उसने गड्ढा भरना शुरू किया.
यही समय था उस साये से रूबरू होने का.
मैं दबे पाँव उसके पीछे गया और , उसे पकड लिया. हाथ लगाते ही मैं जान गया की वो कोई औरत है. मैंने उसे कमरे की तरफ धक्का दिया और तुरंत बल्ब जला दिया. अचानक हुई रौशनी से उसकी आँखे चुंधिया गयी पर जब मेरी नजर उसके चेहरे पर पड़ी तो चुन्धियाने की बारी मेरी थी .
उस चेहरे को देखते ही मेरे पैरो तले जमीन खिसक गयी . जुबान को जैसे लकवा मार गया हो. समझ नहीं आ रहा था की कहूँ तो क्या कहूँ कभी सोचा नहीं था की ऐसे हालात हम दोनों के दरमियान होंगे. वो मुझे देखती रही मैं उसे देखता रहा. वो चाहती तो भाग सकती थी पर नहीं, शायद जानती थी की अब जाएगी तो कहाँ जाएगी.
गड्ढा जो उसने खोदा था मैंने उसमे झाँक कर देखा , और जो देखा दिल धक्क से रह गया. मैं वही दिवार का सहारा लेकर बैठ गया.
“क्यों, क्यों किया तुमने ऐसा ” मैंने पूछा
“और कोई चारा नहीं था मेरे पास ” उसने हौले से कहा.
बिलकुल, मैं भी इसी पक्ष में हूं, समय लीजिए, पर कहानी अच्छे से पूरी करिए।सबसे पहले तो फौजी भाई अगर आप इस कहानी को होली तक खत्म करना चाहे तो मुझे कोई दिक्कत नही है
मैं तब तक wait कर लूंगा ,आप poll भी करा सकते हो
थोड़े बहुत राज आज खत्म कर दो और बाकी होली के समय कर देना
तब तक हम इस कहानी को नए लोगो तक share कर देंगे और उन्हें भी मौका मिल जायेगा इस कहानी के अब तक के अपडेट को होली तक पढ़ कर खत्म करने का
आप बस मैसेज pin करके जाना की कहानी होली तक ब्रेक पर है
मैं आपको इस कहानी को जबरदस्ती लंबा खींचने को नहीं कह रहा, पर लग रहा है की कहानी को विस्तृत किया जा सकता है
जैसे सुनैना की कहानी, अभिमानु नंदिनी की प्रेम कहानी की कैसे उनकी शादी हुई और क्या क्या अड़चन आया,
निशा और कबीर की प्रेम कहानी को भी थोड़ा details me elaborate कर सकते है और मैं पढ़ना चाहूंगा, अतीत के रहस्यों को सुलझाने में इतनी उलझ गया की इनकी प्रेम कहानी के बारे में पढ़ने का ज्यादा मौका नहीं मिला
तो क्यों कहानी इतनी अच्छी कहानी को इतने अच्छे सफर को जल्दी खत्म किया जाए,
आप भी ज्यादा सोच विचार ना करे बस हा कर दे की बाकी की कहानी ब्रेक के बाद खत्म करेंगे
तो please ये request मान लीजिए, ज्यादातर लोग यही चाहते है मुझे लगता है
मैं आशा करता हूं की इस बार अपने readers की भी सुनेगे
बाकी सारे दोस्तो को ये बोलूंगा की भाई ये मेरे personal suggestions है, गुस्सा मत हो जाना
सब की राय हो तभी ऐसा हो इसलिए poll कराने को सबसे पहले लिखा है
हो सकता है कुछ लोगों को राज जानने की जल्दी हो और मुझे उनके ऐसा सोचने से कोई दिक्कत नही है
सब का अपना अपना सोचने का तरीका होता है सब एक जैसा नहीं सोचते, मैं ये भी समझता हूं
अगर आप मेरे comment से agree नहीं करते तो मेरे side से अभी से सॉरी है
चाची ही आखिर वो कड़ी निकली जो बहुत शांत हैं इस पूरी कहानी में।#116
गड्ढे में पड़े कंकाल के टुकड़े चीख चीख कर बता रहे थे की क्यों राय साहब और अभिमानु उसे तलाश नहीं कर पाए थे, करते भी कैसे वो तो यहाँ दफ़न था और उसे दफ़न करने वाली कोई और नहीं बल्कि उसकी अपनी पत्नी थी, वो पत्नी जिसने इतने बड़े राज को बड़े आराम से छिपाया हुआ था .मुझे शक तो उसी पल हो गया था जब उन गहनों को देख कर भी चाची की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई थी. मैंने तभी ये जा फेंकने का सोच लिया था और किस्मत देखो चाची फंस गयी थी .
मैं- क्यों किया ये सब , जरा भी नहीं सोची की अगर राय साहब को मालूम हुआ तो क्या करेंगे वो तुम्हारे साथ.
चाची- आदमी के पापो का घड़ा जब भर जाता है न कबीर तो वो घड़ा अपने आप नहीं फूटता , किसी न किसी को हिम्मत करनी पड़ती है उसे फोड़ने के लिए, जिसे तू अपना चाचा समझता है न वो राक्षस था और राक्षसों का अंत होना ही उचित है. मैं नहीं मारती तो अभिमानु मार देता छोटे ठाकुर को मैंने बस अभिमानु के हाथ गंदे नहीं होने दिए.
मैं- तो क्या भैया जानते है इस बात को
चाची- एक वो ही तो है जो सबके किये पर मिटटी डाले हुए है
मैं बहुत कुछ समझ रहा था चाचा की मौत को भैया ने चाची की वजह से छिपाया था अगर पिताजी को मालुम होती तो वो बक्शते नहीं चाची को .
मैं- तो वो क्या कारण था जो तुमने अपने हाथो से अपना सुहाग उजाड़ दिया.
चाची - सुहाग के नाम कर कालिख था ये आदमी. सच कहूँ तो आदमी कहलाने के लायक ही नहीं था ये नीच. हवस में डूबे इस आदमी ने रमा की बेटी का बलात्कार किया था . एक मासूम फूल को उजाड़ दिया था इसने. ये बात अभिमानु को भी मालूम हो गयी थी, अपनी शर्म में उसने जैसे तैसे इस बात को दबा दिया. रमा ने बहुत गालिया दी उसे. पर वो चुप रहा . सब सह गया ताकि परिवार की बदनामी न हो . पर तेरा चाचा सिर्फ वही तक नहीं रुका. उसने वो किया जो करते हुए उसके हाथ कांपने चाहिए थे.
चाची ने पास रखे मटके से गिलास भरा और अपना गला तर किया. कुछ देर वो खामोश रही पर वो दो लम्हों की ख़ामोशी मुझे बरसो के इंतज़ार सी लगी.
चाची- छोटे ठाकुर ने अंजू का बलात्कार किया था .
चाची के कहे शब्दों का भार इतना ज्यादा था की मैंने खुद को उस बोझ तले दबते हुए महसूस किया. .
चाची- अंजू का हमारे घर में बहुत बड़ा ओहदा है, जैसे की तू और अभिमानु ,हमारे घर की सबसे प्यारी बेटी अंजू. सुनैना को बहुत मानते थे जेठ जी. उनकी कोई बहन नहीं थी शायद इस वजह से, सुनैना की मौत के बाद अंजू को दो पिताओ का प्यार मिला. रुडा और जेठ जी. ये रमा की बेटी की मौत के कुछ दिनों बाद की बात होगी. अंजू अक्सर कुवे पर आती थी . इस जंगल में बहुत जी लगता था उसका. पर एक शाम नशे में धुत्त तेरे चाचा की आँखों पर वासना की ऐसी पट्टी चढ़ी की वो समझ नहीं पाया की जिस वो भोग रहा है वो उसके ही घर की बेटी है .
मैं और अभिमानु जब यहाँ पहुंचे तो अंजू को ऐसी हालात में देख कर घबरा गए. हमारे सीने में ऐसी आग थी की उस पल अगर दुनिया भी जल जाती न तो कोई गम नहीं होता. जब अंजू ने उसके गुनेहगार का नाम बताया तो हमें बहुत धक्का लगा. एक तरफ बेटी की आन थी दूसरी तरफ पति का पाप. मैंने अपनी बेटी को चुना. छोटे ठाकुर को तो मरना ही था , मैं नहीं मारती तो चौधरी रुडा मार देता. अभिमानु मार देता या फिर जेठ जी मार देते. मेरा दिल बहुत टुटा था, उस इन्सान की हर खता माफ़ की थी मैंने , पर अगर ये पाप माफ़ करती तो फिर कभी खुद से नजरे नहीं मिला पाती. अपनी बेटी के न्याय के लिए मैंने छोटे ठाकुर को मार दिया और यहाँ दफना दिया ताकि कोई उसे तलाश नहीं कर पाए.
“दर्द सिर्फ तेरे हिस्से में नहीं है , यहाँ बहुत है जिन्होंने दर्द पिया है , दर्द जिया है ” अंजू के कहे ये शब्द मेरे कलेजे को बेध रहे थे .
तो ये था वो सच जो मेरी दहलीज में छिपा था .ये था वो राज वो भैया हर किसी से छिपाने की कोशिश कर रहे थे . अब मैंने जाना था की अंजू क्यों इतनी अजीज थी मेरे घर में . मैं समझा था की सोने के लिए ये सब काण्ड हुए है पर असली कारण ये था .
नफरत से मैंने चाचा के कनकाल पर थूका और उस गड्ढे को वापिस मिटटी से भरने लगा. जिन्दगी वैसी तो बिलकुल नहीं थी जिसे मैं सोचते आया था . समझते आया था . अगर मेरे सामने ऐसी हरकत चाचा ने की होती तो मैं भी उसे मार देता . फर्क सिर्फ इतना था की भैया और चाची उसकी मौत को छिपा गए थे मैं सरे आम चौपाल पर मारता उसे, ताकि फिर कोई कीसी की बहन-बेटी की आबरू तार-तार न कर सके.
चाची के गले लग कर बहुत रोया मैं उस रात. घर वापसी में मेरे कदम जिस बोझ के तले दबे थे वो मैं ही जानता था .मैंने देखा की भैया छज्जे के निचे सोये हुए थे, मैं उनके बिस्तर में घुसा, झप्पी डाली और आँखे बंद कर ली.
सुबह मैं उठा तो देखा की अंजू आँगन में बैठी थी . मैं उसके पास गया.
अंजू- क्या हुआ क्या चाहिए.
मैंने उस से कुछ नहीं कहा. बस उसके पांवो पर हाथ लगा कर अपने माथे पर लगा लिया. मेरे आंसू उसके पैरो पर गिरने लगे. उसने मुझे अपने पास बिठाया और बोली- क्या हुआ .
मैं कह नहीं पाया उस से की क्या हुआ. मेरा गला जकड़ गया . उसके सीने से लग कर मैं बस रोता ही रहा . वो मेरी पीठ सहलाती रही . बिना बोले ही हम लोग बहुत कुछ समझ गए थे.
मैं भाभी के पास गया और उनसे निशा के बारे में बात की . कल निशा को लेकर आना था मुझे.
भाभी- ले आ उसे देखा जायेगा जो होगा
मैं- कुछ पैसे चाहिए थे , शहर जाकर कपड़े गहने लाने है उसके लिए
भाभी- ये तेरा काम नहीं है , मैं देख लुंगी उसे. मैंने पूजारी को बता दिया है चंपा के फेरे होते ही तुरंत तुम दोनों के फेरे करवा देगा .
निशा को तो मैं ले ही आने वाला था पर मुझे उस से पहले कुछ राज और मालूम करने थे , गले में पड़े लाकेट को पकड़ कर मैंने दाई बाई घुमाया और सोचने लगा की मेज पर उकेरे शब्द और उन चुदाई की किताबो का क्या नाता हो सकता है .
कविता के पति के करने का शक तो पहले से ही था वरना ऐसा कौन ही पति और बेटा होगा जो मौत पर भी न आए??#117
दो बातो ने मुझे उलझा रखा था की क्या रमा जानती थी चाचा ने ही उसकी बेटी को मारा था . दूसरा वैध को किसने मारा. वैध एक ऐसा इन्सान था जो कविता को भी पेल रहा था , रमा को भी . वैध जरुर जानता था की कविता उस रात जंगल में क्या करने गयी थी . मैं उसी वक्त कविता के घर पर गया और तलाशी लेने लगा पर इस बार कमरा कविता का नहीं बल्कि वैध का था .
बात केवल चुदाई की नहीं थी नशा उस सोने का भी था जिसका साला कोई दावेदार नहीं था . जर, जोरू और जमीन दुनिया में इस से बड़ा कोई नशा नहीं हुआ . ये तीन ही चीज था जो क्या से क्या करवा सकती थी . वैध के कमरे में मुझे बहुत कुछ मिला जो सोच से परे था. वैध ने अपनी बहु से ही चुदाई के सम्बन्ध बनाये थे, मतलब साफ़ था वो शौक़ीन बुढा था . बेटा उसका शहर में था घर पर जवान बहु दोनों को रोकने वाला कोई नहीं था .
चीजो को खंगालते हुए मैं सोच रहा था . और जो चीज मुझे खटकी वो थी उस झोले से निकला एक पहचान पत्र जिस पर वैध के बेटे रोहताश का फोटो था और जहाँ वो चोकिदारी करता था वहां का पता लिखा था , रोहताश शहर में था तो उसका ये परिचय पत्र यहाँ क्या कर रहा था . ये तो उसके पास होना चाहिए था न, मैंने गौर किया वो काफी समय से यहाँ गाँव में नहीं आया था , न कविता की मौत पर न बाप की मौत पर . क्या इतना जरुरी था उसका काम. चाचा के बारे में जो मैंने पिछली रात जाना था मुझे शंका होने लगी की कहीं रोहताश भी बस नाम का जिन्दा न हो. किसी ने बहुत पहले उसे भी रस्ते से हटा दिया हो.
पर किसने, शायद उसी न जिसने रमा के पति को मरवाया हो. ये दोनों लोग रमा और कविता के साथ खुली चुदाई में रोड़े थे , माना की रोहताश तो शहर में था पर रमा का आदमी यही रहता था तो मुमकिन था की दोनों को एक ही कातिल ने पेल दिया हो. मैंने वो परिचय पत्र जेब में डाला उन चुदाई की किताबो को झोले में वापिस रखा और तुंरत अंजू के पास गया .
अंजू- क्या हुआ साँस क्यों उखड़ रही है तुम्हारी
मैं- मदद चाहिए
अंजू- मुझसे कैसी मदद
मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लिया और बोला- मेरी बहन अगर मेरी मदद नहीं करेगी तो कौन करेगी
अंजू- बता क्या चाहिए
मैं- गाडी की चाबी और रमा को धर लो जहाँ भी मिले , चाहे उसकी खाल उतारनी क्यों ना पड़े. उस से पूछो वैध को किसने मारा.
अंजू- धर तो लुंगी पर फिर कहना मत की क्या कर दिया
मैं- जो चाहे करो
उसने मुझे चाबी दी और मैंने गाडी शहर की तरफ दौड़ा दी. मैं सीधा वहां गया जहाँ का पता परिचय पत्र पर था और वहां एक छिपा सच मेरा इंतज़ार कर रहा था . मालूम हुआ की एक बार रोहताश छुट्टी गया था फिर कभी लौटा ही नहीं . इसका अंदेशा तो था मुझे पर पुष्टि जरुरी थी . मैंने गाडी वापिस मोड़ दी. अब रमा ही वो चाबी थी जो कुछ बातो के ताले खोलने वाली थी . वापसी में मैं मलिकपुर होते हुए आया. रमा के कमरे पर ताला लगा था . मैंने ताले को तोड़ दिया और तलाशी लेने लगा पर यहाँ कुछ भी नहीं था . रमा अपना अतीत साथ लेकर नहीं आई थी यहाँ .
चौधरी रुडा से मिलने की एक और कोशिश नाकाम रही , आज भी नहीं मिला वो मुझे बता नहीं सकता कितनी हताशा थी मुझे उस वक्त. पर हालात पर भला किसका जोर चला है जो मेरा चलेगा. दिमाग में बहुत कुछ था , हो सकता था की राय साहब के कहने पर ही मंगू ने वैध को भी मारा हो . हो सकता था की इस शतरंज के असली खिलाड़ी राय साहब ही रहे हो जंगल में सबने अपनी अपनी जिन्दगिया जी थी . सबको एक साथ लाना बहुत टेढ़ा काम था .
रोहताश मर चूका था उसकी लाश यही कहीं इसी जंगल में गाड दी गयी होगी. चंपा का राय साहब से सिर्फ इसलिए चुदना की वो अहसान उतार रही थी मामला जम सा नहीं रहा था . घर वापिस आने के बाद मैं सीधा चाची के पास गया .
मैं- मुझे हर हाल में मालूम करना है की चंपा क्यों चुदी राय साहब से . चाची तुम्हारे बहुत करीब है वो ये बात पता करके दो
चाची- इस बारे में हमने बात की थी न, और फिर ब्याह के बाद वो चली ही जाएगी छोड़ो इस बात को
मैं- नहीं छोड़ सकता . मालूम करके बताओ
चाची- कोशिश करती हूँ
मैंने हाँ में सर हिलाया और दरवाजे से बाहर निकला ही था की भाभी से टकरा गया .
भाभी- देख कर चला करो , सर फूट ही गया क्या मेरा
मैं- रोहताश मर चूका है. एक बार छुट्टी आया तो फिर वो वापिस नहीं गया काम पर . प्रकाश को राय शाब ने मरवाया मंगू के हाथो कहीं ऐसा तो नहीं की मंगू ने ही वैध, रोहताश, को मारा हो .
भाभी- राय साहब के कमरे की तलाशी लेने की कोशिश करो . क्या पता कुछ सुराग मिले. वैसे अभिमानु के पास कमरे की एक चाबी हमेशा रहती है .
मैं- बात चाबी की नहीं है मैं ताला भी तोड़ दू. पर बाप इधर ही है , उसे किसी काम में उलझा दिया जाये की वो कमरे में न आ पाए तो भी मेरा काम हो जायेगा.
भाभी- कोशिश करती हूँ .
तभी मैंने देखा की अभिमानु भैया पैदल ही घर से बाहर जा रहे थे . मैंने देखा की बाप हमारा हलवाइयो से बात कर रहा था मैंने सही समझा और उसके कमरे में घुस गया . एक बार फिर से मैं कुछ तलाशना चाहता था . दराज में पड़े कागजो पर जो हाथ डाला, तो किस्मत ने मेरा ऐसा साथ दिया की अगर किस्मत सामने होती तो उसके लब चूम लिए होते मैंने.
आज ही है, होलिका वाले दिनचम्पा चमेली व् चुदायी की मल्लिका की शादी नहीं हुई और होली आ गयी ?
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आँख खुली तो दोपहर हो रही थी ,अलसाया बदन लिए मैं मुश्किल से उठा. हाथ मुह धोये . गाँव पहुँच कर सबसे पहले मैं मंगू से ही मिला उसे साइड में लेकर गया.
मैं- कुछ जरुरी बात करनी है तुझसे
मंगू- हाँ भाई .
मैं- तूने प्रकाश को क्यों मारा.
मेरी बात सुनकर मंगू के चेहरे का रंग उड़ गया पर मैं हरगिज नहीं चाहता था की वो नजरे चुराए.
मैं- मंगू , तू मेरा दोस्त है और मैं उम्मीद करता हूँ की तू मुझे सच बताये.
मंगू-वो राय साहब पर दबाव बना रहा था
मैं- किस चीज का दबाव
मंगू- यही की राय साहब उसे वसीयत का एक टुकड़ा दे दे और साथ में चंपा को भी उसके पास भेजे.
मैंने एक गहरी साँस ली.
मैं- क्या था उस वसीयत में
मंगू- नहीं जानता. राय साहब ने इतना ही कहा की उनका पाला हुआ सपोला उनको डसना चाहता है , उसका फन कुचल दिया जाए.
मैं- ऐसा क्या था प्रकाश के पास की वो राय साहब को ब्लेकमेल करने की जुर्रत कर पाया.
मंगू- नहीं जानता, राय साहब ने कहा उसे मार दे मैंने मार दिया .
मैं- कल को राय साहब कहेगा की कबीर को मार दे तू मुझे भी मार देगा.
मंगू- कैसी बाते कर रहे हो भाई
मैं- तूने गलत राह चुनी है मेरे दोस्त. इस राह पर तुझे कुछ नहीं मिलेगा . मेरा बाप तुझे इस्तेमाल कर रहा है जब उसका मन भरेगा तुझे लात मार देगा. बाकि तेरी मर्जी है.
मंगू- मैं कविता के कातिल की तलाश के लिए कर रहा हूँ ये सब.
मैं- काविता तुझे कभी नहीं चाहती थी , वो बस तेरा इस्तेमाल कर रही थी. इस बात को जितना जल्दी समझ लेगा तेरी जिन्दगी उतनी ही आसान होगी.
मंगू- झूठ कह रहे हो तुम
मैं- तेरी दोस्ती की कसम मैंने तुझसे कभी झूठ नहीं बोला.
मंगू के जाने के बाद मैंने सोचा की बाप चुटिया के मन में आखिर चल क्या रहा है. कैसे मालूम हो की वो क्या करना चाहता है क्या कर रहा है. थोड़ी देर बाद मैंने अंजू को देखा , उसके पास गया .
मैं- कैसी हो अब
अंजू- बेहतर तुम बताओ
मैं-तुम्हे ठीक लगे तो क्या तुम मेरे साथ सुनैना की समाधी पर चल सकती हो
अंजू- अभी
मैं- अभी
अंजू - ठीक है मेरी गाड़ी की चाबी ले आओ ऊपर से
हम दोनों जंगल की तरफ चल पड़े और ठीक उसी जगह पहुँच गए जहाँ निशा मुझे ले गयी थी .पत्थरों के टुकड़े अभी भी वैसे ही पड़े थे .
अंजू- देख लो जो देखना है
मैं- बुरा मत मानना पर मैं वो सोना देखना चाहता हूँ
अंजू ने कंधे उचकाए और समाधी के कुछ पत्थर हटा कर एक हांडी जो की बेहद पुराणी थी काली पड़ चुकी थी बाहर निकाल ली. हांडी का ढक्कन हटाते ही मैंने देखा की वो सोने से लबालब भरी थी .
अंजू ने सही कहा था मुझे.
मैं- रख दो इसे वापिस
अंजू- तुमको चाहिए क्या सोना
मैं- नहीं
अंजू- फिर क्यों देखना चाहते थे तुम इसे.
अंजू की आवाज में उतावलापन लगा मुझे.
मैं- मुझे लगा था की सुनैना ने सोना निकाला था ये एक अफवाह है .
अंजू- सच तुम्हारे सामने है .
मैं- आओ चलते है
वापसी में मुझे ध्यान आया की बैंक जाना था . अंजू को छोड़ने के बाद मैं सीधा मेनेजर के पास गया और चाचा के खाते की जानकारी मांगी. मनेजेर ने मुझे ऊपर से निचे तक देखा और बोला- कुंवर, अगर ठाकुर लोग अपना धन बैंक में रखने लगे तो उनका रसूख क्या ही रह जायेगा. बैंक ठाकुरों के दरवाजे पर जाते है ठाकुर बैंक नहीं आते. ठाकुर जरनैल सिंह का कोई खाता नहीं यहाँ.
मामला अब और उलझ गया था . मैं मलिकपुर गया उन गहनों को लेकर सुनार ने पुष्टि कर दी की वो गहने उसने ही चाची के लिए बनाये थे. रात को मैं थोड़ी देर भाभी के पास बैठा इधर उधर की बाते की . अंजू साथ थी तो खुलकर मैं कुछ कह नहीं पा रहा था . सबके सोने के बाद मैं चाची को छत पर ले गया और सीढियों का किवाड़ बंद करते ही अपने आगोश में भर लिया.
चाची- कबीर, थोड़े दिन सब्र कर ले फिर खूब बिस्तर गर्म करुँगी तेरा.
मैं- ज्यादा देर नहीं लगाऊंगा.
मैंने चाची को घुटनों के बल झुकाया और उसके लहंगे को कमर तक उंचा कर दिया. चाची के मादक नितम्बो को चूमते हुए मैंने उनको चौड़ा किया और चाची की झांटो से भरी चूत पर अपने होंठ रख दिए.
“सीईईईईई कबीर ” चाची चाह कर भी अपने पैरो को कांपने से नहीं रोक पाई. जीभ का नुकीला कोना चाची की चूत के दाने पर रगड पैदा कर रहा था जिस से वो भी उत्तेजित होने लगी थी . मैं जानता था की समय कम है. मैंने लंड पर थूक लगाया और चाची की चूची मसलते हुए उसे चोदने लगा.
चाची के गाल चूमते हुए , ठंडी रात में छत पर चुदाई का अपना ही सूख था . चाची थोडा और झुक गयी मैंने अपने हाथ उसके कन्धो पर रखे और पूरी रफ्तार से चूत मारने लगा. चुदाई का दौर जब रुका तो हम दोनों पसीने से लथपथ थे.
चाची- कर ली अपनी मनचाही, अब ब्याह तक कुछ न कहना मुझसे.
मैं - दो मिनट रुक फिर जाना निचे.
चाची- अब क्या है .
मैंने वो गहनों का डिब्बा चाची के हाथ में दे दिया. और बोला- ये गहने कभी चाचा ने तेरे लिए बनवाए थे, आज गहने लाया हूँ किसी दिन चाचा को भी ले आऊंगा. बहुत दुःख झेल लिए तूने तेरे हिस्से का सुख अब ज्यादा दिन दूर नहीं है तुझसे.
चाची ने उन गहनों को देखा , फिर मुझे देखा और बिना कुछ कहे वो वहां से चली गयी. निचे आने के बाद मैं कुछ खाने के लिए रसोई में गया . मैंने देखा की कमरे के दरवाजे पर अब ताला नहीं लगा है . खाना खाने के बाद मैं भैया के पुराने कमरे में चला गया हजारो किताबो ने अपने अन्दर न जाने क्या छिपाया हुआ था .
मैंने लैंप मेज पर रखा और एक किताब ऐसे ही उठा ली. दो चार पन्ने पलटे ही थे की बेख्याली में मेरा हाथ लैंप के शीशे पर लग गया . लैंप मेज पर गिर गया और उसकी नीली लौ मेज की लकड़ी पर फ़ैल गयी. उस नीली रौशनी में मुझे मेज पर कुछ उकेरा गया दिखा. और जब मैंने उसे समझा तो एक बार फिर से मेरे पास कहने को कुछ नही था.
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सुबह मेरा सर बहुत दुःख रहा था .कल की रात बड़ी मुश्किल से बीती थी. मैंने भैया को देखा जो आँगन में ही बैठे मालिश करवा रहे थे . मैं उनके पास गया .
भैया- सही समय पर आया है छोटे, तू भी बदन खोल ले .
मैं- फिर कभी , अभी कुछ बात करनी है .
भैया - क्या
साथ ही उन्होंने मालिश वाले को जाने को कहा
मैं- चाचा का पता चल गया है जल्दी ही वो घर आयेंगे
भैया- क्या, कहाँ है चाचा
मैं- जहाँ भी है उन्होंने कहा है की वो सही समय का इंतज़ार कर रहे है घर लौटने को .
भैया- कहाँ है वो बता मुझे अभी के अभी मैं जाऊंगा उनको लेने
जीवन में पहली बार मुझे अधीरता लगी भैया के व्यवहार में .
मैं- उन्होंने कहा था की आते ही वो सबसे पहले आपसे ही मिलेंगे.
तभी मैंने राय साहब को आते देखा तो मैं उठ कर उनके पास चला गया .
मैं- प्रकाश को मरवाने की क्या जरूरत आन पड़ी थी
पिताजी- तुझे कोई मतलब नहीं इस से
मैं- मतलब है मुझे. जानने की इच्छा है की इतने रसूखदार इन्सान को प्रकाश क्यों ब्लेकमेल कर रहा था .
पिताजी- अभी इतने नहीं हुए हो की हमसे आँख मिला कर बात कर सको
मैं- इतना हो गया हूँ की आप नजरे झुका कर बात करेंगे.
पिताजी- तेरी ये जुर्रत , जानता है किसके सामने खड़ा है घर में शादी नहीं होती तो अभी के अभी तुम्हारी पीठ लाल हो चुकी होती.
मैं- किस शादी की बात करते है आप. अपनी बेटी समान लड़की को तो खुद ख़राब कर चुके हो. दो कौड़ी की रमा के साथ राते रंगीन करने वाला ये इन्सान रसूख की बात करते अच्छा नहीं लगता. वैसे भी मै चाचा से मिल कर आया हूँ जल्दी ही वो घर लौट आयेंगे.
पिताजी ने धक्का दिया मुझे और अपने कमरे में चले गये.
“वसीयत के चौथे पन्ने का राज जान गया हूँ मैं , जल्दी ही आपको बेनकाब करूँगा ” मैंने पीछे से कहा पर पिताजी ने जैसे सुना ही नहीं.
सुबह ऐसी थी तो दिन कैसा होगा मैंने चाय की चुस्की लेते हुए सोचा. जेब से चाचा की तस्वीर निकाल कर मैं कुछ देर देखता रहा और फिर वापिस उसे जेब में रख लिया.
दिन भर मैं घर में ही रहा . सबको देखता रहा . घर के छोटे मोटे काम किये. भैया-पिताजी दोनों ही घर पर थे. भैया ने ज्यादातर समय आराम करते हुए ही बिताया .सब अपनी मस्ती में मस्त थे पर मुझे चैन नहीं था . एक बात और जिसकी मुझे बेहद फ़िक्र थी की निशा को लाने के बाद रखूँगा कहाँ, बेशक भाभी ने स्वीकारती दे दी थी पर राय साहब के रहते ये मुमकिन नही था .
मैं एक ऐसे मोड़ पर खड़ा था जहाँ से बन कुछ नहीं सकता था पर बिगड़ना सब कुछ था .जो मैं करने जा रहा था उसके क्या परिणाम होंगे ये नहीं जानता था मैं . पर इतना जरुर जानता था की चार दिन बाद पूनम की रात थी , चंपा का ब्याह था और दो दिन बाद फाग के दिन मुझे निशा को लेने जाना था .
रात के सन्नाटे में ख़ामोशी से मैं इंतज़ार कर रहा था, जरा जरा सी आहट मुझे चेता रही थी की मैं अकेला नहीं हूँ यहाँ पर जंगल भी जाग रहा है . और ये जागा हुआ जंगल अपनी हद में इन्सान के आने से खफा तो था. इंतज़ार करना मुश्किल हो रहा था पर मैंने सुना था की सब्र का फल मीठा होता है .
देर, बहुत देर में बीतने लगी थी , तनहा रात में खड़े खड़े मुझे कोफ़्त होने लगी थी .झपकी लगभग आ ही गयी थी की कुछ आवाजो से मेरे कान खड़े हो गए. शाल ओढ़े उसे अपनी तरफ आते देख कर मेरे होंठो पर अनचाहे ही एक मुस्कान आ गयी . मैं जानता था की कोई तो जरुर आयेगा पर कौन ये देखने की बात थी .
कुवे की मुंडेर पर झुक कर उसने कुछ देर देखा. और फिर मुंडेर पर उसके हाथ चलने लगे. लग रहा था की वो साया कुछ तलाश कर रहा है . धीमी सांसे लेते हुए मेरी नजर एक एक क्रियाकलाप पर जमी थी. कुवे पर कुछ तो था . तभी उस साए का हाथ कही लगा और , और फिर वो हुआ जो कोई सोच भी नहीं सकता था .
साए ने पास पड़ी कुदाल उठाई और जमीन खोदने लगा. बहुत देर तक वो खोदता रहा और फिर उसने हाथो से मिटटी हटानी शुरू की जब उसके हाथ किसी चीज से लगे तो वो शांत हो गया. कुछ देर उसकी उंगलिया कुछ टटोलती रही और जब वो सुनिश्चित हो गया तो उसने गड्ढा भरना शुरू किया.
यही समय था उस साये से रूबरू होने का.
मैं दबे पाँव उसके पीछे गया और , उसे पकड लिया. हाथ लगाते ही मैं जान गया की वो कोई औरत है. मैंने उसे कमरे की तरफ धक्का दिया और तुरंत बल्ब जला दिया. अचानक हुई रौशनी से उसकी आँखे चुंधिया गयी पर जब मेरी नजर उसके चेहरे पर पड़ी तो चुन्धियाने की बारी मेरी थी .
उस चेहरे को देखते ही मेरे पैरो तले जमीन खिसक गयी . जुबान को जैसे लकवा मार गया हो. समझ नहीं आ रहा था की कहूँ तो क्या कहूँ कभी सोचा नहीं था की ऐसे हालात हम दोनों के दरमियान होंगे. वो मुझे देखती रही मैं उसे देखता रहा. वो चाहती तो भाग सकती थी पर नहीं, शायद जानती थी की अब जाएगी तो कहाँ जाएगी.
गड्ढा जो उसने खोदा था मैंने उसमे झाँक कर देखा , और जो देखा दिल धक्क से रह गया. मैं वही दिवार का सहारा लेकर बैठ गया.
“क्यों, क्यों किया तुमने ऐसा ” मैंने पूछा
“और कोई चारा नहीं था मेरे पास ” उसने हौले से कहा.