#120
“तू वो नहीं है, तू वो नहीं बनेगा ” निशा के कहे शब्दों पर मैंने ध्यान लगाया पर जानता था की ये बेचैनी बढती जाएगी . मैंने सर पर साफा बाँध लिया और बारात पर ध्यान लगाने लगा. बारात जनवासे से चल पड़ी थी थोड़ी ही देर में आ पहुंचनी थी . मेरी नजर भैया पर पड़ी जो बाप चुतिया के साथ चर्चा मे लगे थे भैया ने मुझे देखा तो मेरी तरफ आने लगे पर रस्ते में किसी ने उन्हे रोक लिया और हम मिलते मिलते रह गए.
जैसे जैसे बारात आगे बढ़ रही थी मेरी बेचैनी भी बढ़ने लगी थी. पल पल भारी हो रहा था मुझ पर. जैसे ही बारात गाँव के स्कूल से होते हुए आगे मुड़ी , मैं वहीँ पर रह गया . मैं चाहता था की अँधेरा मुझे लील जाए.मैंने दिशा बदली और कुवे की तरफ चल पड़ा. बाजे की आवाज मेरे कानो में गूंजती रही .
नियति ने कितना बेबस कर दिया था मुझे. घर में शादी थी और मोजूद होते हुए भी होना न होना बराबर था मेरा. कुवे पर पहुँच कर मैंने मटके को उठाया और होंठो से लगा लिया. ठंडा पानी भी उस अग्न को शांत नहीं कर पाया. मैंने खुद को कमरे में बंद कर लिया. पर बढती रात मुझे झुलसा रही थी , गुस्से में मैंने अपने हाथ दिवार से रगड़े , जिनसे की दिवार पर रगड बन गयी .
पर उन निशानों ने मुझे दिशा दिखाई, तालाब के कमरे का सच ये ही था की आदमखोर उस कमरे का इस्तेमाल करता था , वो आदमखोर भी मेरी तरह अपनी मज़बूरी को समझता था इसलिए ही वो इस खास रात को वहां छिपता होगा . पर ये अनुमान अधुरा था क्योंकि मैं दो चाँद रातो के बाद भी पूरा क्या आधा आदमखोर भी नहीं बन पाया था और उस आदमखोर को मैंने बिना चाँद रात भी देखा था . यानी की वो अपने रूप को जब चाहे तब बदल सकता था .
एक बात और जो मुझे परेशान किये हुए थी वो ये की आज कहाँ होगा वो आदमखोर , गाँव में इतना बड़ा आयोजन था कहीं उसने हमला कर दिया तो . ये सोच कर ही मेरा कलेजा कांप उठा. मैं उसी पल वापिस गाँव के लिए चल पड़ा. सोचा जो होगा देखा जायेगा. वैसे भी घर पर कम से कम निशा तो साथ होगी मेरे.
बारात का खाना चालु था . शेखर बाबु मंडप में पहुँच गए थे . देखते ही देखते चंपा भी आ गयी और फेरो की रस्म शुरू हो गयी. मंगल गीत गाये जा रहे थे मैंने एक कुर्सी उठाई और मंडप से थोडा दूर हुआ ही था की किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा . मैंने मुड कर देखा भैया थे .
भैया- ठीक है न छोटे
मैं- हाँ बढ़िया भैया , कुछ काम था क्या
भैया ने जेब से एक पुडिया निकाली और बोले- इसे घोल कर पी ले. असर रोक तो नहीं पायेगी ये पर थोड़ी राहत जरुर देगी .
“तो ये है वो दवा जिसके लिए आप भटकते थे ” मैंने कहा
भैया- इसका कोई इलाज नहीं है , ये पुडिया तकलीफ को कम कर देगी, तेरा पूर्ण रुपंतार्ण नहीं हुआ है तो क्या पता असर ज्यादा कर जाये. वैसे मुझे कुछ और बात भी करनी थी पर कल करूँगा . अभी पी ले इसे.
भैया ने मुझे गिलास दिया मैंने तुरंत पुडिया घोली और पी गया. भैया ने ठीक ही कहा था मेरी तकलीफ काफी कम हो गयी . दुल्हन बनी चंपा के चेहरे से नजर हट ही नहीं रही थी . इतनी खूबसूरत वो पहले कभी लगी भी तो नहीं थी . मेरी नजर निशा पर पड़ी जो भाभी और अंजू के साथ खड़ी थी .उसके चेहरे पर जो नूर था देखने लायक था.मैंने गौर किया की चाची कहीं दिखाई नहीं दे रही थी . चूँकि फेरो में काफी समय लगना था मैं टेंट में चला गया . बाराती मजे से पकवानों का आनन्द उठा रहे थे. सब कुछ वैसे ही था जैसा किसी आदर्श शादी में होना चाहिए था .
पर क्या ये शादी सामान्य थी , नहीं जी नहीं बिलकुल नहीं. कुछ तो ऐसा था जो सामने होते हुए भी छिपा था . राय साहब का प्रयोजन, भैया के अपने किस्से , अंजू का अतीत. मेरा और निशा का प्रेम . चाची का राज. रमा का राज सब कुछ तो था यहाँ इस जगह पर . मेरी नजरे हर एक पर जमी थी मैं जानता था की यहाँ कोई न कोई तो ऐसा है जो मेरे सवालो के जवाब जानता होगा.
टेंट से मैं वापिस मंडप में आया तो वहां पर ना राय साहब थे , न भैया, न भाभी , ना ही अंजू. मैंने देखा निशा भी नहीं थी . और चाची तो पहले से ही गायब थी. इतने लोगो को अचानक से भला क्या काम हो गया होगा. मैं रसोई में गया तो वहां पर निशा मिली जो विदाई के लिए रंग घोल रही थी ताकि दुल्हन के हाथो की छाप ली जा सके, उसके साथ ही सरला थी .
निशा- क्या हुआ कबीर
मैं- कुछ नहीं , और तुम्हे ये सब करने की क्या जरुरत है
मैंने बात बदली पर वो समझ गयी .
निशा- सब ठीक होगा कबीर. मैं हूँ ना.
मैं- जानता हूँ . अगर फुर्सत हो तो थोडा समय सात बिताते है
निशा- विदाई के बाद समय ही है , सरकार
निशा मेरे पास आई और बोली- आसमान को मत देखना , सोचना ये कोई खास रात नहीं है बस एक रात है जो बीत जाएगी जल्दी ही . मुझे पूर्ण विश्वास है तुम वैसे नहीं बनोगे. मैं साथ ही हूँ
बिना सरला की परवाह किये उसने मेरे माथे को चूमा और मुझे रसोई से बाहर धकेल दिया. मैं फेरे देखता रहा, कन्यादान किया गया वो घडी अब दूर नहीं थी जब चंपा की डोली उठते ही उसके नए जीवन की शुरुआत हो जानी थी . मेरी उडती सी नजर रमा पर पड़ी जो मंगू के साथ खड़ी बात कर रही थी . दोनों का साथ होना किसी खुराफात का इशारा कर रहा था . मैं उनकी तरफ जाने को हुआ ही था की तभी अचानक से अँधेरा हो गया . ...................................