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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Studxyz

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studxyz भाई
लगता है आप चम्पा की लेकर ही मानोगे ...!!😄😄

कबीर से धोखा करने की सज़ा तो चम्पा को मिलनी ही थी बस अब इस हादसे के बाद वो सज़ा का मज़े में तब्दील होने की उम्मीद बंधी है
 

Studxyz

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studxyz भाई
लगता है आप चम्पा की लेकर ही मानोगे ...!!😄😄

वैसे ये साले राये-वाये व् मंगू-शंगु हैं पक्के लंड बाज़ ये बाज़ आने वाले नहीं जब तक की कबीर इनकी गांड में बम्बू ना ड़ाल दे :D
 

Rajadhiraaj

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Shaandar jaandar zabardast
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Studxyz

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फौजी भाई जी आप की पिछली कहानियों में २-२ हीरोइन थी और ये आम बात रही है यहाँ पर कहीं ३ ना हो जाये जैसे की निशा-अंजू=चम्पा

चाहे कबीर का पहला प्यार निशा ही रहेगी लेकिन फिर भी ये तगड़ा दिल फेंक हैऔर चुदी चुदाई चाचियों व् सरलाओं को हुमच हुमच के पूरे दिल व् लगन से चोदता रहा है और रमा को भी ज़रूर चोदता लेकिन उसने इसे लिफ्ट ही नहीं करवाई और शादी में भी सरला की गांड देख कर उस को लिटा लिटा के पेलने का मौका ढून्ढ रहा था इसे से पहले अंजू के भी होंठ चूस चूस के खून निकाल चूका है
 
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मैं चौपाल पर पहुंचा जहाँ पर पेड़ से दो लाशे लटक रही थी
मुझे याद है ये सीन Xossip में भी एक कहानी लिखे थे वैसा ही है और ये कहानी भी कुछ ऐसा ही लग रहा है
 

Sanju@

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#119



एक ऐसी कड़ी जो इन सबको जोड़ सकती थी मुझसे छूट रही थी . प्रकाश की माँ ने जो खुलासा किया उसने कहानी को अलग ही दिशा दे दी थी . चाचा को मरे एक जमाना हो गया था तो फिर कविता जंगल में किससे मिलने जाती थी अगर ये जवाब मिल जाता तो काफी हद तक मामला सुलझ जाता . राय साहब के बिस्तर से मिली चुडिया और कविता के घर से मिली चुडिया कहीं न कहीं इशारा कर रही थी की हो न हो कविता को राय साहब भी चोदते थे.

चलो मान लिया की राय साहब ने कविता को भी चोदा क्योंकि रमा की चुदाई प्रमाण थी पर यहाँ से एक सवाल और खड़ा हो जाता था की हवस के पुजारी ने फिर नंदिनी भाभी और चाची पर डोरे क्यों नहीं डाले.मामला बेहद संगीन था , चुदाई के साथ साथ रक्त की सड़ांध भी फैली हुई थी इस अतीत में . कल का दिन बहुत खास था व्यस्त रहने वाला था पर ये रात, ये रात , इसकी ख़ामोशी मुझे बेचैन किये हुए थी. ब्याह की सब तैयारिया पूरी हो चुकी थी, कल चंपा की डोली उठ जानी थी . जिसे कभी अपनी माना था वो पराई हो जानी थी.



पराई, अपने आप में बहुत भारी था ये शब्द,. पराई तो चंपा तभी हो गयी थी जब उसने मेरे बाप के साथ उस दलदल में उतरने का सोचा. बाप चुतिया को रंगे हाथ चुदाई करते पकड़ भी लेता तो कुछ हासिल नहीं होना था . मुझे तलाश थी उस वजह की , आखिर क्या थी वो वजह जिसकी वजह से ये सब हो रहा था .चाची ने मेरी कसम खाकर कहा था की राय शाब ने कभी भी उसे गन्दी नजरो से नहीं देखा. पर जिस तरह से चाची ने इतना बड़ा राज छिपाया था , क्या मैं पूर्ण विस्वास कर सकता था उस पर.



दो पेग लगाने के बाद भी मुझे चैन नहीं था , मेरी नजर सरला की गांड पर थी जिसे शाल ओढने के बाद भी वो छिपा नहीं पा रही थी .पर खचाखच भरे घर में मौका मिलना था ही नहीं उसे चोदने का. सुबह बड़ी खूबसूरत थी , वैसे तो मैं रोज जल्दी ही उठता था पर आज सुबह की बात ही कुछ और थी. भोर के उजाले में केसरिया रंगत लिए सूरज को देखना सकून था . सुबह सबसे पहले मैंने चंपा को ही देखा जो चाय देने आई थी मुझे.



खूबसूरत तो पहले भी थी वो पर ब्याह का रंग चढ़ा था उस पर उबटन ने उसे और निखार दिया था .

चंपा- क्या देख रहा है कबीर

मैं- देख लेना चाहता हूँ तुझे आज , कल तो परायी हो जाएगी तू

चंपा- एक न एक दिन तो हर लड़की पराई हो ही जाती है किसी न किसी के लिए.

मैं- वक्त कितना जल्दी बीत जाता है न

चंपा- वक्त तो आज भी वही है , बस हम दोनों थोडा आगे बढ़ गए है .ये गलिया, ये घर , ये चौबारे. कल तक यही जी मैं, यही पर बड़ी हुई, कल यही सब छोड़ कर जाना होगा.

मैं- नियति यही है .लडकिया एक घर छोडती है तो एक घर पाती भी है .

चंपा- डोली को सबसे पहले तू हाथ लगाना , इतना हक़ तो देगा न मुझे.



चंपा की बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. आज की रात भारी पड़ने वाली थी मुझ पर , मैंने पहले ही सोच लिया था की रात होते ही मैं कुवे पर चला जाऊंगा. मैं हरगिज नहीं चाहता था की ब्याह में मेरी वजह से रंग में भंग पड़े.

चंपा- कुछ कह रही हूँ तुझसे

मैं- ये भी कोई कहने की बात है .

मैंने चंपा से कह तो दिया था पर कैसे संभाल पाउँगा खुद को ये नहीं जानता था .

“तू वो नहीं बनेगा, क्योंकि तू वो नहीं है तू बस कबीर है ये याद रखना ” निशा के शब्द मुझे याद आने लगे. दिन ऐसे बीत रहा था की जैसे पंख लग गए हो उसके. भाभी, अंजू, चाची और तमाम औरते ऐसे सजी-धजी थी की जैसे आसमान से अप्सराये उतर आई हो पर मेरा दिल जब काबू से बाहर हो गया जब मैंने अपनी जान को आते देखा, या जान जाते देखा.

मैं जनवासे में चाय पानी की वयवस्था देख कर घर आया ही था की मैंने भाभी के साथ निशा को खड़ी देखा, और देखता ही रह गया. जैसे ही हमारी नजरे मिली काबू नहीं रहा खुद पर . दिल किया की बस आगोश में भर लू उसे और उसके गाल चूम लू.

इठलाते हुए निशा मेरे पास आई और बोली- तैयार नहीं हुए अभी तक तुम .

मैं- आओ मेरे साथ

मैं उसे चाची के घर ले पंहुचा और हम दोनों छत पर आ गए . एकांत मिलते ही मैं उस से लिपट गया

निशा- किस बात की बेसब्री है ये

मैं- बहुत अच्छा किया तुमने जो आ गयी .

निशा- मुझे तो आना ही था .

मैं- दिल बहुत घबरा रहा था, रात का सोच कर

निशा- रात ही तो है बीत जाएगी . सोचना ही नहीं उस बारे में .

मैं- और इस खूबसूरत चेहरे के बारे में सोचु या नहीं

निशा- डायन से इश्क किया है तुमने, इस चेहरे के बारे में नहीं सोचोगे तो फिर किसका ख्याल होगा.

निशा ने मेरा माथा चूमा और बोली- निचे जा रही हूँ मेरे आगे-पीछे मत घूमना. नजरो से देखना मुझे, नजरो से छेड़ना मुझे .

मैंने उसका हाथ पकड़ा और कहा- इश्क किया है तुमसे कोई चोरी नहीं की है.

निशा- इसीलिए तो सारे बंधन तोड़ कर आ गयी. तेरा बंधन बाँध लिया पिया .

मैंने उसे फिर से अपने आगोश में खींच लिया . उसकी सांसे मेरे गालो पर पड़ने लगी.

निशा- जाने दो न

मैं- अब कही नहीं जाना तुमको

निशा-जिस दिन ज़माने की छाती पर पैर रख कर आउंगी फिर एक पल दूर ना जाउंगी तुमसे.

बड़ी नफासत से उसने अपनी छातिया मेरे सीने पर रगड़ी और बाँहों से निकल कर निचे चली गयी. नहा-धोकर नए कपडे पहन कर मैं निचे गया तो भाभी और भैया किसी गहरी चर्चा में डूबे थे . मुझे अपनी तरफ आते देख दोनों चुप हो गए. जिन्दगी में पहली बार मैंने भैया के माथे पर बल पड़े देखे.

भाभी- देवर जी, हमे थोडा समय दो

भाभी ने मुझे वहां से जाने को कहा. मैं और काम देखने लगा पर मन में सवाल था की क्या बात कर रहे थे दोनों. जैसे जैसे अँधेरा घिर रहा था मुझ पर अनजाना डर छाता जा रहा था . कुछ ही देर में सुचना आई की बारात जनवासे में पहुँच चुकी है. हम लोग रस्मो के लिए वहां पहुँच गए. बारात को चाय पानी करवाने के बाद गोरवे की रस्म की और शेखर बाबू घोड़ी पर बैठ गए .बैंड बाजा बजने लगा. बाराती नाचने लगे. मेरी नजर आसमान में चमकते चाँद पर पड़ी और छाती में आग सी लग गयी................................
दिवाली का शानदार तोफहा देने के लिए शुक्रिया भाई हम तो सोच रहे थे कि जनवरी से पहले अपडेट नहीं आएगा लेकिन आ गया इतनी खुशी हुई कि बता नहीं सकते
कबीर ने जैसा कहा है कि चंपा तो उस दिन ही पराई हो गई थी जिस दिन वह राय साहब के साथ दलदल में उतरी थी लेकिन हम अभी तक उलझे हुए हैं कि आखिर चंपा की भी तो कोई मजबूरी होगी लेकिन हम अभी तक पता नहीं कर पाए हैं किसी खिलखिलाते चेहरे पर आंसु तो नही आते खेर बेटी होती तो पराया धन ही है उसे दूसरे घर जाना होता है अपनी नई दुनिया सजाने
निशा भी आई है दो पल ही सही कम से कम दिल को सुकुन तो मिला है कबीर को देखकर डर लग रहा है कही कबीर काबू नहीं कर पाया तो खुशियों के घर में अनर्थ हो जायेगा
 

Sanju@

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“तू वो नहीं है, तू वो नहीं बनेगा ” निशा के कहे शब्दों पर मैंने ध्यान लगाया पर जानता था की ये बेचैनी बढती जाएगी . मैंने सर पर साफा बाँध लिया और बारात पर ध्यान लगाने लगा. बारात जनवासे से चल पड़ी थी थोड़ी ही देर में आ पहुंचनी थी . मेरी नजर भैया पर पड़ी जो बाप चुतिया के साथ चर्चा मे लगे थे भैया ने मुझे देखा तो मेरी तरफ आने लगे पर रस्ते में किसी ने उन्हे रोक लिया और हम मिलते मिलते रह गए.

जैसे जैसे बारात आगे बढ़ रही थी मेरी बेचैनी भी बढ़ने लगी थी. पल पल भारी हो रहा था मुझ पर. जैसे ही बारात गाँव के स्कूल से होते हुए आगे मुड़ी , मैं वहीँ पर रह गया . मैं चाहता था की अँधेरा मुझे लील जाए.मैंने दिशा बदली और कुवे की तरफ चल पड़ा. बाजे की आवाज मेरे कानो में गूंजती रही .

नियति ने कितना बेबस कर दिया था मुझे. घर में शादी थी और मोजूद होते हुए भी होना न होना बराबर था मेरा. कुवे पर पहुँच कर मैंने मटके को उठाया और होंठो से लगा लिया. ठंडा पानी भी उस अग्न को शांत नहीं कर पाया. मैंने खुद को कमरे में बंद कर लिया. पर बढती रात मुझे झुलसा रही थी , गुस्से में मैंने अपने हाथ दिवार से रगड़े , जिनसे की दिवार पर रगड बन गयी .

पर उन निशानों ने मुझे दिशा दिखाई, तालाब के कमरे का सच ये ही था की आदमखोर उस कमरे का इस्तेमाल करता था , वो आदमखोर भी मेरी तरह अपनी मज़बूरी को समझता था इसलिए ही वो इस खास रात को वहां छिपता होगा . पर ये अनुमान अधुरा था क्योंकि मैं दो चाँद रातो के बाद भी पूरा क्या आधा आदमखोर भी नहीं बन पाया था और उस आदमखोर को मैंने बिना चाँद रात भी देखा था . यानी की वो अपने रूप को जब चाहे तब बदल सकता था .



एक बात और जो मुझे परेशान किये हुए थी वो ये की आज कहाँ होगा वो आदमखोर , गाँव में इतना बड़ा आयोजन था कहीं उसने हमला कर दिया तो . ये सोच कर ही मेरा कलेजा कांप उठा. मैं उसी पल वापिस गाँव के लिए चल पड़ा. सोचा जो होगा देखा जायेगा. वैसे भी घर पर कम से कम निशा तो साथ होगी मेरे.



बारात का खाना चालु था . शेखर बाबु मंडप में पहुँच गए थे . देखते ही देखते चंपा भी आ गयी और फेरो की रस्म शुरू हो गयी. मंगल गीत गाये जा रहे थे मैंने एक कुर्सी उठाई और मंडप से थोडा दूर हुआ ही था की किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा . मैंने मुड कर देखा भैया थे .

भैया- ठीक है न छोटे

मैं- हाँ बढ़िया भैया , कुछ काम था क्या

भैया ने जेब से एक पुडिया निकाली और बोले- इसे घोल कर पी ले. असर रोक तो नहीं पायेगी ये पर थोड़ी राहत जरुर देगी .

“तो ये है वो दवा जिसके लिए आप भटकते थे ” मैंने कहा

भैया- इसका कोई इलाज नहीं है , ये पुडिया तकलीफ को कम कर देगी, तेरा पूर्ण रुपंतार्ण नहीं हुआ है तो क्या पता असर ज्यादा कर जाये. वैसे मुझे कुछ और बात भी करनी थी पर कल करूँगा . अभी पी ले इसे.



भैया ने मुझे गिलास दिया मैंने तुरंत पुडिया घोली और पी गया. भैया ने ठीक ही कहा था मेरी तकलीफ काफी कम हो गयी . दुल्हन बनी चंपा के चेहरे से नजर हट ही नहीं रही थी . इतनी खूबसूरत वो पहले कभी लगी भी तो नहीं थी . मेरी नजर निशा पर पड़ी जो भाभी और अंजू के साथ खड़ी थी .उसके चेहरे पर जो नूर था देखने लायक था.मैंने गौर किया की चाची कहीं दिखाई नहीं दे रही थी . चूँकि फेरो में काफी समय लगना था मैं टेंट में चला गया . बाराती मजे से पकवानों का आनन्द उठा रहे थे. सब कुछ वैसे ही था जैसा किसी आदर्श शादी में होना चाहिए था .



पर क्या ये शादी सामान्य थी , नहीं जी नहीं बिलकुल नहीं. कुछ तो ऐसा था जो सामने होते हुए भी छिपा था . राय साहब का प्रयोजन, भैया के अपने किस्से , अंजू का अतीत. मेरा और निशा का प्रेम . चाची का राज. रमा का राज सब कुछ तो था यहाँ इस जगह पर . मेरी नजरे हर एक पर जमी थी मैं जानता था की यहाँ कोई न कोई तो ऐसा है जो मेरे सवालो के जवाब जानता होगा.

टेंट से मैं वापिस मंडप में आया तो वहां पर ना राय साहब थे , न भैया, न भाभी , ना ही अंजू. मैंने देखा निशा भी नहीं थी . और चाची तो पहले से ही गायब थी. इतने लोगो को अचानक से भला क्या काम हो गया होगा. मैं रसोई में गया तो वहां पर निशा मिली जो विदाई के लिए रंग घोल रही थी ताकि दुल्हन के हाथो की छाप ली जा सके, उसके साथ ही सरला थी .

निशा- क्या हुआ कबीर

मैं- कुछ नहीं , और तुम्हे ये सब करने की क्या जरुरत है

मैंने बात बदली पर वो समझ गयी .

निशा- सब ठीक होगा कबीर. मैं हूँ ना.

मैं- जानता हूँ . अगर फुर्सत हो तो थोडा समय सात बिताते है

निशा- विदाई के बाद समय ही है , सरकार

निशा मेरे पास आई और बोली- आसमान को मत देखना , सोचना ये कोई खास रात नहीं है बस एक रात है जो बीत जाएगी जल्दी ही . मुझे पूर्ण विश्वास है तुम वैसे नहीं बनोगे. मैं साथ ही हूँ

बिना सरला की परवाह किये उसने मेरे माथे को चूमा और मुझे रसोई से बाहर धकेल दिया. मैं फेरे देखता रहा, कन्यादान किया गया वो घडी अब दूर नहीं थी जब चंपा की डोली उठते ही उसके नए जीवन की शुरुआत हो जानी थी . मेरी उडती सी नजर रमा पर पड़ी जो मंगू के साथ खड़ी बात कर रही थी . दोनों का साथ होना किसी खुराफात का इशारा कर रहा था . मैं उनकी तरफ जाने को हुआ ही था की तभी अचानक से अँधेरा हो गया . ...................................
कबीर अपने आप को रोकने की कोशिश कर रहा है लेकिन पल पल मुश्किल लग रहा है भैया की दवा से थोड़ी बहुत राहत मिली है कैसे भी करके आज की रात निकल जाए ताकि घर में खुशियां बनी रहे। घर के सभी कहा चले गए साथ ही अंधेरा हो गया है पूरे घर में लगता है कुछ अनहोनी होने वाली है
 
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