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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Ajju Landwalia

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Sabse pehle to aapka hardik dhanyawad Fauzi Bhai, jo itni kathin duty me se bhi time nikalkar teen teen updates post ki......... hamari Diwali ko aur bhi dhamakedar bana diya.........

Nandini aur Abhimanu shayad purnima ke din Kabir ke aadmakhor me badal jane ki baat kar rahe ho................ya fir aisa ho sakta he unko pata ho ki aaj aadamkhor jarur aayega, aur ain waqt par in dono ke sath sath Ray sahab, Mangu aur Anju bhi gayab the.................

Kabir me parivartan to aa raha he lekin uska khud par kaabu bhi he........kaafi had tak wo khud ko sambhal leta he..........

Aadmkhor ka Nisha ko ghayal kar jana ye ek aashcharyjanak baat huyi is ghatnakram me............

Abhimanu aur ray ki gaadiya bhi kuye par mili, aur mangu ek ggadi lekar chala bhi gaya.........lekin dono hi gayab the........... shayad kamre se bhi gupt rasta ho.....

Chachi ka kirdar ekdum rahasyamayi ho chuka he........ almost everytime ho scene se gayab ho jati he.........

Aur Fauzi Bhai, Jaldbazi me kahani ka ant na karna aap, har ek sawal ka jawab milna chahiye hum pathko ko...... aur 900 kya 1000 pages bhi ho jayenge.....aap please fast forward mode me na aana......

Agli update ke besabri se intezar rahega
 

Naik

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#119



एक ऐसी कड़ी जो इन सबको जोड़ सकती थी मुझसे छूट रही थी . प्रकाश की माँ ने जो खुलासा किया उसने कहानी को अलग ही दिशा दे दी थी . चाचा को मरे एक जमाना हो गया था तो फिर कविता जंगल में किससे मिलने जाती थी अगर ये जवाब मिल जाता तो काफी हद तक मामला सुलझ जाता . राय साहब के बिस्तर से मिली चुडिया और कविता के घर से मिली चुडिया कहीं न कहीं इशारा कर रही थी की हो न हो कविता को राय साहब भी चोदते थे.

चलो मान लिया की राय साहब ने कविता को भी चोदा क्योंकि रमा की चुदाई प्रमाण थी पर यहाँ से एक सवाल और खड़ा हो जाता था की हवस के पुजारी ने फिर नंदिनी भाभी और चाची पर डोरे क्यों नहीं डाले.मामला बेहद संगीन था , चुदाई के साथ साथ रक्त की सड़ांध भी फैली हुई थी इस अतीत में . कल का दिन बहुत खास था व्यस्त रहने वाला था पर ये रात, ये रात , इसकी ख़ामोशी मुझे बेचैन किये हुए थी. ब्याह की सब तैयारिया पूरी हो चुकी थी, कल चंपा की डोली उठ जानी थी . जिसे कभी अपनी माना था वो पराई हो जानी थी.



पराई, अपने आप में बहुत भारी था ये शब्द,. पराई तो चंपा तभी हो गयी थी जब उसने मेरे बाप के साथ उस दलदल में उतरने का सोचा. बाप चुतिया को रंगे हाथ चुदाई करते पकड़ भी लेता तो कुछ हासिल नहीं होना था . मुझे तलाश थी उस वजह की , आखिर क्या थी वो वजह जिसकी वजह से ये सब हो रहा था .चाची ने मेरी कसम खाकर कहा था की राय शाब ने कभी भी उसे गन्दी नजरो से नहीं देखा. पर जिस तरह से चाची ने इतना बड़ा राज छिपाया था , क्या मैं पूर्ण विस्वास कर सकता था उस पर.



दो पेग लगाने के बाद भी मुझे चैन नहीं था , मेरी नजर सरला की गांड पर थी जिसे शाल ओढने के बाद भी वो छिपा नहीं पा रही थी .पर खचाखच भरे घर में मौका मिलना था ही नहीं उसे चोदने का. सुबह बड़ी खूबसूरत थी , वैसे तो मैं रोज जल्दी ही उठता था पर आज सुबह की बात ही कुछ और थी. भोर के उजाले में केसरिया रंगत लिए सूरज को देखना सकून था . सुबह सबसे पहले मैंने चंपा को ही देखा जो चाय देने आई थी मुझे.



खूबसूरत तो पहले भी थी वो पर ब्याह का रंग चढ़ा था उस पर उबटन ने उसे और निखार दिया था .

चंपा- क्या देख रहा है कबीर

मैं- देख लेना चाहता हूँ तुझे आज , कल तो परायी हो जाएगी तू

चंपा- एक न एक दिन तो हर लड़की पराई हो ही जाती है किसी न किसी के लिए.

मैं- वक्त कितना जल्दी बीत जाता है न

चंपा- वक्त तो आज भी वही है , बस हम दोनों थोडा आगे बढ़ गए है .ये गलिया, ये घर , ये चौबारे. कल तक यही जी मैं, यही पर बड़ी हुई, कल यही सब छोड़ कर जाना होगा.

मैं- नियति यही है .लडकिया एक घर छोडती है तो एक घर पाती भी है .

चंपा- डोली को सबसे पहले तू हाथ लगाना , इतना हक़ तो देगा न मुझे.



चंपा की बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. आज की रात भारी पड़ने वाली थी मुझ पर , मैंने पहले ही सोच लिया था की रात होते ही मैं कुवे पर चला जाऊंगा. मैं हरगिज नहीं चाहता था की ब्याह में मेरी वजह से रंग में भंग पड़े.

चंपा- कुछ कह रही हूँ तुझसे

मैं- ये भी कोई कहने की बात है .

मैंने चंपा से कह तो दिया था पर कैसे संभाल पाउँगा खुद को ये नहीं जानता था .

“तू वो नहीं बनेगा, क्योंकि तू वो नहीं है तू बस कबीर है ये याद रखना ” निशा के शब्द मुझे याद आने लगे. दिन ऐसे बीत रहा था की जैसे पंख लग गए हो उसके. भाभी, अंजू, चाची और तमाम औरते ऐसे सजी-धजी थी की जैसे आसमान से अप्सराये उतर आई हो पर मेरा दिल जब काबू से बाहर हो गया जब मैंने अपनी जान को आते देखा, या जान जाते देखा.

मैं जनवासे में चाय पानी की वयवस्था देख कर घर आया ही था की मैंने भाभी के साथ निशा को खड़ी देखा, और देखता ही रह गया. जैसे ही हमारी नजरे मिली काबू नहीं रहा खुद पर . दिल किया की बस आगोश में भर लू उसे और उसके गाल चूम लू.

इठलाते हुए निशा मेरे पास आई और बोली- तैयार नहीं हुए अभी तक तुम .

मैं- आओ मेरे साथ

मैं उसे चाची के घर ले पंहुचा और हम दोनों छत पर आ गए . एकांत मिलते ही मैं उस से लिपट गया

निशा- किस बात की बेसब्री है ये

मैं- बहुत अच्छा किया तुमने जो आ गयी .

निशा- मुझे तो आना ही था .

मैं- दिल बहुत घबरा रहा था, रात का सोच कर

निशा- रात ही तो है बीत जाएगी . सोचना ही नहीं उस बारे में .

मैं- और इस खूबसूरत चेहरे के बारे में सोचु या नहीं

निशा- डायन से इश्क किया है तुमने, इस चेहरे के बारे में नहीं सोचोगे तो फिर किसका ख्याल होगा.

निशा ने मेरा माथा चूमा और बोली- निचे जा रही हूँ मेरे आगे-पीछे मत घूमना. नजरो से देखना मुझे, नजरो से छेड़ना मुझे .

मैंने उसका हाथ पकड़ा और कहा- इश्क किया है तुमसे कोई चोरी नहीं की है.

निशा- इसीलिए तो सारे बंधन तोड़ कर आ गयी. तेरा बंधन बाँध लिया पिया .

मैंने उसे फिर से अपने आगोश में खींच लिया . उसकी सांसे मेरे गालो पर पड़ने लगी.

निशा- जाने दो न

मैं- अब कही नहीं जाना तुमको

निशा-जिस दिन ज़माने की छाती पर पैर रख कर आउंगी फिर एक पल दूर ना जाउंगी तुमसे.

बड़ी नफासत से उसने अपनी छातिया मेरे सीने पर रगड़ी और बाँहों से निकल कर निचे चली गयी. नहा-धोकर नए कपडे पहन कर मैं निचे गया तो भाभी और भैया किसी गहरी चर्चा में डूबे थे . मुझे अपनी तरफ आते देख दोनों चुप हो गए. जिन्दगी में पहली बार मैंने भैया के माथे पर बल पड़े देखे.

भाभी- देवर जी, हमे थोडा समय दो

भाभी ने मुझे वहां से जाने को कहा. मैं और काम देखने लगा पर मन में सवाल था की क्या बात कर रहे थे दोनों. जैसे जैसे अँधेरा घिर रहा था मुझ पर अनजाना डर छाता जा रहा था . कुछ ही देर में सुचना आई की बारात जनवासे में पहुँच चुकी है. हम लोग रस्मो के लिए वहां पहुँच गए. बारात को चाय पानी करवाने के बाद गोरवे की रस्म की और शेखर बाबू घोड़ी पर बैठ गए .बैंड बाजा बजने लगा. बाराती नाचने लगे. मेरी नजर आसमान में चमकते चाँद पर पड़ी और छाती में आग सी लग गयी................................
Bahot khoob shaandaar update bhai
Tow barat aa gayi or Nisha ji bhi aa gayi bhabi or bhayya kiss baat per gahen chintan ker rehe h
Dekhte yeh raat or yeh chaand kia kia dikhane wale h
Lajawab
 

Naik

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#120



“तू वो नहीं है, तू वो नहीं बनेगा ” निशा के कहे शब्दों पर मैंने ध्यान लगाया पर जानता था की ये बेचैनी बढती जाएगी . मैंने सर पर साफा बाँध लिया और बारात पर ध्यान लगाने लगा. बारात जनवासे से चल पड़ी थी थोड़ी ही देर में आ पहुंचनी थी . मेरी नजर भैया पर पड़ी जो बाप चुतिया के साथ चर्चा मे लगे थे भैया ने मुझे देखा तो मेरी तरफ आने लगे पर रस्ते में किसी ने उन्हे रोक लिया और हम मिलते मिलते रह गए.

जैसे जैसे बारात आगे बढ़ रही थी मेरी बेचैनी भी बढ़ने लगी थी. पल पल भारी हो रहा था मुझ पर. जैसे ही बारात गाँव के स्कूल से होते हुए आगे मुड़ी , मैं वहीँ पर रह गया . मैं चाहता था की अँधेरा मुझे लील जाए.मैंने दिशा बदली और कुवे की तरफ चल पड़ा. बाजे की आवाज मेरे कानो में गूंजती रही .

नियति ने कितना बेबस कर दिया था मुझे. घर में शादी थी और मोजूद होते हुए भी होना न होना बराबर था मेरा. कुवे पर पहुँच कर मैंने मटके को उठाया और होंठो से लगा लिया. ठंडा पानी भी उस अग्न को शांत नहीं कर पाया. मैंने खुद को कमरे में बंद कर लिया. पर बढती रात मुझे झुलसा रही थी , गुस्से में मैंने अपने हाथ दिवार से रगड़े , जिनसे की दिवार पर रगड बन गयी .

पर उन निशानों ने मुझे दिशा दिखाई, तालाब के कमरे का सच ये ही था की आदमखोर उस कमरे का इस्तेमाल करता था , वो आदमखोर भी मेरी तरह अपनी मज़बूरी को समझता था इसलिए ही वो इस खास रात को वहां छिपता होगा . पर ये अनुमान अधुरा था क्योंकि मैं दो चाँद रातो के बाद भी पूरा क्या आधा आदमखोर भी नहीं बन पाया था और उस आदमखोर को मैंने बिना चाँद रात भी देखा था . यानी की वो अपने रूप को जब चाहे तब बदल सकता था .



एक बात और जो मुझे परेशान किये हुए थी वो ये की आज कहाँ होगा वो आदमखोर , गाँव में इतना बड़ा आयोजन था कहीं उसने हमला कर दिया तो . ये सोच कर ही मेरा कलेजा कांप उठा. मैं उसी पल वापिस गाँव के लिए चल पड़ा. सोचा जो होगा देखा जायेगा. वैसे भी घर पर कम से कम निशा तो साथ होगी मेरे.



बारात का खाना चालु था . शेखर बाबु मंडप में पहुँच गए थे . देखते ही देखते चंपा भी आ गयी और फेरो की रस्म शुरू हो गयी. मंगल गीत गाये जा रहे थे मैंने एक कुर्सी उठाई और मंडप से थोडा दूर हुआ ही था की किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा . मैंने मुड कर देखा भैया थे .

भैया- ठीक है न छोटे

मैं- हाँ बढ़िया भैया , कुछ काम था क्या

भैया ने जेब से एक पुडिया निकाली और बोले- इसे घोल कर पी ले. असर रोक तो नहीं पायेगी ये पर थोड़ी राहत जरुर देगी .

“तो ये है वो दवा जिसके लिए आप भटकते थे ” मैंने कहा

भैया- इसका कोई इलाज नहीं है , ये पुडिया तकलीफ को कम कर देगी, तेरा पूर्ण रुपंतार्ण नहीं हुआ है तो क्या पता असर ज्यादा कर जाये. वैसे मुझे कुछ और बात भी करनी थी पर कल करूँगा . अभी पी ले इसे.



भैया ने मुझे गिलास दिया मैंने तुरंत पुडिया घोली और पी गया. भैया ने ठीक ही कहा था मेरी तकलीफ काफी कम हो गयी . दुल्हन बनी चंपा के चेहरे से नजर हट ही नहीं रही थी . इतनी खूबसूरत वो पहले कभी लगी भी तो नहीं थी . मेरी नजर निशा पर पड़ी जो भाभी और अंजू के साथ खड़ी थी .उसके चेहरे पर जो नूर था देखने लायक था.मैंने गौर किया की चाची कहीं दिखाई नहीं दे रही थी . चूँकि फेरो में काफी समय लगना था मैं टेंट में चला गया . बाराती मजे से पकवानों का आनन्द उठा रहे थे. सब कुछ वैसे ही था जैसा किसी आदर्श शादी में होना चाहिए था .



पर क्या ये शादी सामान्य थी , नहीं जी नहीं बिलकुल नहीं. कुछ तो ऐसा था जो सामने होते हुए भी छिपा था . राय साहब का प्रयोजन, भैया के अपने किस्से , अंजू का अतीत. मेरा और निशा का प्रेम . चाची का राज. रमा का राज सब कुछ तो था यहाँ इस जगह पर . मेरी नजरे हर एक पर जमी थी मैं जानता था की यहाँ कोई न कोई तो ऐसा है जो मेरे सवालो के जवाब जानता होगा.

टेंट से मैं वापिस मंडप में आया तो वहां पर ना राय साहब थे , न भैया, न भाभी , ना ही अंजू. मैंने देखा निशा भी नहीं थी . और चाची तो पहले से ही गायब थी. इतने लोगो को अचानक से भला क्या काम हो गया होगा. मैं रसोई में गया तो वहां पर निशा मिली जो विदाई के लिए रंग घोल रही थी ताकि दुल्हन के हाथो की छाप ली जा सके, उसके साथ ही सरला थी .

निशा- क्या हुआ कबीर

मैं- कुछ नहीं , और तुम्हे ये सब करने की क्या जरुरत है

मैंने बात बदली पर वो समझ गयी .

निशा- सब ठीक होगा कबीर. मैं हूँ ना.

मैं- जानता हूँ . अगर फुर्सत हो तो थोडा समय सात बिताते है

निशा- विदाई के बाद समय ही है , सरकार

निशा मेरे पास आई और बोली- आसमान को मत देखना , सोचना ये कोई खास रात नहीं है बस एक रात है जो बीत जाएगी जल्दी ही . मुझे पूर्ण विश्वास है तुम वैसे नहीं बनोगे. मैं साथ ही हूँ

बिना सरला की परवाह किये उसने मेरे माथे को चूमा और मुझे रसोई से बाहर धकेल दिया. मैं फेरे देखता रहा, कन्यादान किया गया वो घडी अब दूर नहीं थी जब चंपा की डोली उठते ही उसके नए जीवन की शुरुआत हो जानी थी . मेरी उडती सी नजर रमा पर पड़ी जो मंगू के साथ खड़ी बात कर रही थी . दोनों का साथ होना किसी खुराफात का इशारा कर रहा था . मैं उनकी तरफ जाने को हुआ ही था की तभी अचानक से अँधेरा हो गया . ...................................
Bahot khoob shaandaar update
Andhera huwa kia anhoni hone wali h sab log Kabir ko bol rehe sab theek rahega lekin dekhte h kia aisa ho sakta h
Baharhal dekhte h kia hota h
 

Naik

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#121

बिजली गए मुश्किल से दो चार लम्हे बीते होंगे की बाहर से चीख-पुकार मचनी शुरू हो गयी. आवाजे टेंट से आ रही थी . मेरे दिल ने उस पल जो महसूस किया काश वो बताया जा सकता . तुरंत मैं टेंट की तरफ भागा. अँधेरे में कुछ सुझाई नहीं दे रहा था , कुछ दिखाई नहीं दे रहा था .सिवाय लोगो की चीखो के .

“रौशनी जलाओ कोई , ” मैंने जोर से चिल्लाया पर किसे परवाह थी मेरी आवाज सुनने की. मैं जरनेटर की तरफ भागा , तभी अँधेरे में मैं किसी से टकराया, टक्कर ऐसी थी की जैसे किसी शिला से टकरा गया हूँ मैं. पर तभी एक ऐसी गन्ध मेरे नाक में समाती चली गयी , जिसे मैं बिलकुल नहीं सूंघना चाहता था , वो महक थी रक्त की ताजा रक्त की. इस पूनम की रात बस यही नहीं चाहता था मैं. मेरा खुद पर काबू रखना मुश्किल हो गया.

मैं तुरंत टेंट से बाहर भागा . खुली हवा में जो साँस मिली , राहत सी मिली. मैंने जरनेटर का हेंडल घुमाया और रौशनी से आखे चुंधिया गयी .मैंने आँखे बंद कर ली, इसलिए नहीं की रौशनी हो गयी थी बल्कि इसलिए की सामने को देखा, फिर देखा ही नहीं गया. टेंट तार तार हो चूका था . इधर उधर जहाँ देखो इंसानों के टुकड़े पड़े थे कुछ मारे गए थे कुछ घायल तडप रहे थे .

दौड़ते हुए मैं मंडप की तरफ पहुंचा तो जो मेरा कलेजा बाहर आ गया . बेशक मैं धरा पर खड़ा था पर पैरो की जान निकल चुकी थी . जिस डोली को मैंने उठा कर चंपा को विदा करने का वादा किया था वो डोली रक्त रंजित थी , पास में ही शेखर बाबु की लाश पड़ी थी . जिस मंडप में कुछ देर पहले चंपा अपने जीवन की नयी दिशा के सपने संजो रही थी , उसी मंडप में चंपा दुल्हन के लिबास में अर्ध-मुर्छित सी बैठी थी . घर घर न होकर शमशान बन चूका था .

इधर उधर दौड़ते हुए मैं परिवार के लोगो को तलाश करने लगा. मुझे निशा मिली जो बेहोश पड़ी थी . उसके सीने और कंधो पर घाव थे. मैंने उसे होश में लाया. खांसते हुए वो उठ बैठी और अपनी हालात देखने लगी. निशा के पास ही सरला थी जिसके सर पर चोट लगी थी पर ठीक थी वो भी .

निशा और सरला अपनी चोटों की फ़िक्र किये बिना घायलों को संभालने लगी पर जो बात मुझे हैरान किये हुई थी की बाकि के घर वाले कहाँ थे. मुझे मंगू तो मिला पर रमा गायब थी . साला ये हो क्या रहा था . मैं वापिस से चंपा के पास आया. सबसे पाहे शेखर बाबु के शव को वहां से हटाया और फिर चंपा को देखा, वो कुछ नहीं बोल रही थी . काठ मार गया था जैसे उसे.

मैं- कुछ तो बोल चंपा , कुछ तो बोल

पर वो गूंगी बनी बैठी रही . मुझे लगा की कहीं गम न बैठ जाये इसके सीने में . मैंने खींच कर थप्पड़ मारा उसे तो रुलाई छूट पड़ी उसकी . दहाड़े मार कर रोटी चंपा मेरे आगोश में थी, उसके आंसुओ ने मेरा कलेजा चीर दिया था . निशा दौड़ कर मेरे पास आई पर मैंने हाथ के इशारे से उसे रोक दिया. चंपा का दर्द बह जाना जरुरी था. एक सपना मेरी आँखों के आगे टूट गया था .



जिस डोली को मैंने राजी खुसी विदा करने का वादा किया था वो डोली खामोश खड़ी हजारो सवाल पूछ रही थी और मेरे हाथ खाली थे.

“मैं कसम खाता हूँ चंपा, तेरी खुशियों के कातिल को इसी आँगन में मारूंगा ” मैंने कहा.

रोते रोते चंपा बेहोश सी हो गयी थी मैंने उसे बाँहों में उठाया और कमरे में लेजाकर बिस्तर पर सुला दिया.

निशा- बहुत गलत हो गया कबीर , बहुत गलत हो गया

मै- मेरे घर की खुशिया खाई है उसने, बदला जरुर लूँगा. और ऐसा बदला लूँगा की क़यामत तक याद रखेगी दुनिया.

तभी बदहवास सी चाची घर में दाखिल हुई.

मैं- कहाँ थी तुम

चाची-मंदिर में थी , प्रथा के अनुसार मुझे फेरो के बाद ही लौटना था और जब लोटी तो . ये क्या हो गया कबीर



चाची भी रो पड़ी. रो तो हम सब ही रहे थे न . पर मैंने निर्णय कर लिया था उस आदमखोर को कहीं से भी तलाश कर के यही लाना था मुझे . चाहे जंगल को जला देना पड़ता मुझे. रक्त की प्यास उस आदमखोर ने हमारी खुशियों से बुझाई थी ,कीमत तो उसे चुकानी ही थी . बदन प्रतिशोध की अग्नि में इतना धधक रहा था की आदमखोर सामने होता तो आज या तो वो नहीं तो मैं रहता .

“कबीर मैं तेरे साथ चलूंगी ” निशा ने मेरी तरफ आते हुए कहा .

हम दोनों गाँव से बाहर की तरफ चल दिए. लाशो की दुर्गन्ध पीछा ही नहीं छोड़ रही थी .

“तुझे लौट जाना चाहिए , तुझे खतरे में नहीं डाल सकता वैसे भी चोटिल है तू ” मैंने निशा से कहा

निशा- आज तेरा साथ छोड़ दिया तो फिर क्या जवाब दूंगी कल तुझे मैं . छोड़ने के लिए नहीं थामा तुझे मैंने

कुवे की तरफ जाने वाले रस्ते पर खड़ी दोनों गाडियों को मैंने दूर से ही पहचान लिया था , एक गाड़ी राय साहब की थी और दूसरी गाडी भैया की , दोनों गाडियों का साथ होना अजीब था . घर पर मातम मचा था और ये दोनों यहाँ कुवे पर क्या कर रहे थे . सोचने की बात थी .

निशा- खान में चले क्या

मैं- खान में कुछ नहीं मिलेगा निशा, ये गाडिया भरम है और कुछ नहीं. खान में जाना होता तो पैदल आते गाड़िया लेकर नहीं. खान को गुमनाम रखने के लिए इतना कुछ किया गया है

निशा- समझती हूँ पर गाडिया यहाँ मोजूद है तो इनके मालिक भी होने चाहिए ना.

इस से पहले की निशा अपनी बात पूरी कर पाती उसने मुझे झाड़ियो में खींच लिया. हमने देखा की मंगू कुवे की तरफ से आया और राय साहब वाली गाड़ी को स्टार्ट करके वहां से चलता बना .

निशा- ये क्या कर रहा था यहाँ पर

मैं- देखते है , और चोकन्ना रहना . न जाने इनका कौन सा खेल चल रहा है .



हम दोनों कुवे के पास पहुंचे, कमरे को देखा सब कुछ वैसा ही था जो मैं छोड़ कर गया था . पर मंगू का इस परिस्तिथि में यहाँ होना संदेह पैदा कर गया था . निशा से मैंने लालटेन मंगवाई और हम कमरे के चारो तरफ देखने लगे. और जल्दी ही हमें कुछ ऐसा मिला जिसने सोचने समझने की शक्ति को समाप्त कर दिया गया. जहाँ से चले थे घूम कर हम एक बार फिर उसी मोड़ पर खड़े थे ........................
Yeh tow bahot bura ho gaya Adamkhor n tow tabahi macha di lemin sabae imported sawal usne shekher ko kyon mara champa ko kyon nahi mara tow kia Adamkhor nahi chahta ki champa yeh gaow chhod na jaye tow Adamkhor Rai sahab h ya fir Mangu kyonki woh Rai sahab ka khaas banda h
Ab aisa kia dekh lia dono n
Baharhal dekhte h aage kia hota h
 
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