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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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भाई फौजी जी आप अचानक से दिवाली के शुभ मोके पर ऐसे तूफानी अंदाज़ में एंट्री मारे हो और उस से भी बढ़कर तूफानी चक्रवात का खुनी अपडेट का तूफ़ान ले आये हो की सब के दिल की धड़काएं बढ़ा दी और ऐसा ग़दर मचाया है की पाठकों की सोचने समझने की ताक़त ही खतम हो गयी अब चाहे केसा भी अपडेट देते रहो :laugh::laugh:
मेरा पूर्ण प्रयास है कि आप सब के लिए ऐसा कुछ लिख जाऊँ जो याद किया जाए
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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इतने सारे लोगों की मौत का जिम्मेदार अगर कोई है तो वो है केवल और केवल कबीर...........
इन सारे मामलों को जानते हुये और इनको रोकने की नियत रखते हुये भी अगर उसने इनको रोकने की कोई वास्तविक कोशिश नहीं की.... तो वो किसी और को दोष कैसे दे सकता है
केवल वर्तमान ही नहीं अतीत के भी सभी राज और बवाल सिर्फ एक आदमी से कहीं न कहीं जुड़े हुये हैं.......... राय साहब
अगर कबीर समय रहते उस हवस के पुजारी को रास्ते से हटा देता ............. और साथ ही उसके साथी मंगु को भी
तो कुछ लोग शायद फिर भी मारे जाते (ध्यान दें ....शायद)............. ....लेकिन इतने सब किसी कीमत पर नहीं मरते

अब हमारे फौजी भाई कहेंगे कि कबीर राय साहब को कैसे मार पता......... तो उसका एक ही जवाब है......... घर में, जहां राय साहब खुद को सबसे सुरक्षित समझते हैं, वहीं वो सबसे आसानी से मारे जा सकते थे


खैर देखते हैं फौजी भाई क्या निष्कर्ष निकलते हैं इस कहानी का और उसे कैसे न्यायोचित ठहराते हैं .............. फिर हम अपनी प्रतिक्रिया देंगे कि हमें भी वो न्यायोचित लगा या ............. लीपापोती :D
मैंने मोहब्बत लिखना बरसों पहले छोड़ दिया भाई. कबीर का किरदार एक आम इंसान का किरदार है, वो कोई सुपर हीरो नहीं. अभी तक मैंने कबूल नहीं किया की राय सहाब ही मुख्य विलेन है. बेशक उसके तरीके गलत रहे हो. मैंने कभी कहा कि कबीर राय सहाब को मारेगा या नहीं क्योंकि नियति ने ईन किरदारों के भाग्य मे जो लिखा है वो मिलेगा उनको
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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सही कहा भाई कामदेव जी कबीर गाँव का रसुखधार ठाकुर होते हुए ना तो गांव वालो का न्याय दिला पाया और व्यक्तिगत तौर पर ना ही किसी भी मख़मली व् रसभरी चुत का भँवरा बन कर जवान होते हुए भी रस ही पी पाया जबकि खलनायक राये साब जी लोटे भर भर के लिटरों रस पी गए वो भी कबीर की नाल तले और डकार भी नहीं मारी

हद तो तब हो गयी की चोदू शहनशाह ने कबीर की करीबी दोस्तनी चम्पा की टाइट मख़मली चुत मार मार के उसका भी भोसडा बना दिया और कबीर कुछ ना कर सके सिवाए सिवाए भैया भाभी या सरकार निशा से पूछ ताछ करता रहा या फिर बासी चाची व् रमा की भोसडी यां मारता रहा और अब जब इतने बेकसूर मारे गए तो बदला बदला कर रहा है
गांव वालों का कैसा न्याय भाई. राय सहाब और कबीर को जो बात अलग करती है वो यही सेक्स ही तो है
 
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