Tiger 786
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Tridev ki kahani shuru ho gayi kahani apne antim padaw ki or agrsar hai#127
मैं- होगा, इस बार फाग मैं ऐसा खेलूँगा की किसी ने नहीं खेला होगा.
भैया- तूने ऐसा किया तो गुलाल की जगह रक्त की ही होगी ये होली
मैं- किसे परवाह है भैया, जानते है दुनिया उसे क्या कहती है डाकन . मैंने एक डाकन का हाथ थामा है , खुशनसीबी है ये मेरी की वो मेरी जिन्दगी में आई .
भैया- काश ये मुझे पहले मालूम होता
मैं- आशिको पर क्या जोर किसी का भैया, वैसे भी आपने मुझसे वादा किया हुआ है की मैं जहाँ चाहूँ जिस से चाहूँ आप मेरी शादी करवा देंगे.
भैया-मैं आज भी अपनी बात पर कायम हूँ , निशा के अलावा तो किसी की तरफ भी इशारा कर
मैं- निशा नहीं तो फिर कोई नहीं
भैया- मुझे धर्म संकट में मत डाल छोटे,
मैं- साथ नहीं दे सकते तो मुझे रोकना भी मत भैया.
भैया- नंदिनी तुम ही समझाओ इसे कुछ
मैं- भाभी ने हमारे प्रेम को आशीर्वाद दे दिया है
भैया ने भाभी की तरफ देखा और बोले- ये क्या अनर्थ किया तुमने नंदिनी क्या कर दिया ये तुमने
भाभी- अपनी मोहब्बत के लिए तुम जमाने से अड़ गए थे अभी, और अगर अपने बच्चे के हक़ के लिए हम खड़े नहीं होंगे तो फिर कौन होगा.
भैया- सब जानते हुए भी नंदिनी
भाभी- हाँ सब जानते हुए . सब समझते हुए.
भैया- ये जानते हुए भी की क्या कीमत चुकानी पड़ेगी.
भाभी- कब तक कोई न कोई ये कीमत चुकाता रहेगा अभी कब तक कोई न कोई तो खड़ा होगा न . आखिर कब तक अभी कब तक , आपको क्या लगता है कबीर रुक जायेगा. आशिक किस हद तक जा सकते है आपसे बेहतर कौन जानता है .
भैया- नंदिनी, मुझे मेरे भाई की फ़िक्र है
भाभी- आप अपने भाई को जानते है न , आपसे ज्यादा कौन जानता है इसे .
भैया- फिलहाल हमें घर चलना चाहिए . वैसे भी सुबह होने में अब ज्यादा देर बची नहीं है .
मैं समझ गया था की भैया भाभी के आगे त्रिदेव की कहानी नहीं बताना चाहते थे या फिर वो कहानी भाभी भी ठीक से नहीं जानती होंगी. पर इस रात ने मुझे आदमखोर वाली चिंता से मुक्त कर दिया था फिलहाल के लिए तो ऐसा ही मान लिया मैंने.कमरे से निकलने से पहले मैंने एक नजर फिर से उन दीवारों पर डाली जिन्होंने न जाने क्या क्या देखा था . एक बार फिर मुझे लगा की वो कुछ कहना चाहती है मुझसे पर तभी भैया ने चिमनी बुझा दी और हम लोग कुवे पर आ गए. भैया ने गाडी स्टार्ट की और हम घर की तरफ चल दिए जहाँ पर मातम हमारा इंतज़ार कर रहा था .
मैंने किसी से कुछ भी नहीं कहा . एक खाली कोना पकड़ा और मेरी आँखे नींद में डूब गयी. शायद नींद ही मरहम की तरह थी उस वक्त. जब मैं जागा तो देखा की पंडाल, मंडप हटा दिए गए थे . लाशे भी हटा दी गयी थी. जो सामान रह गया था वो इधर उधर बिखरा पड़ा था जैसे किसी ने परवाह ही नहीं की थी उसकी.अंजू मेरे पास आई और बोली- मंगू का कल रात से कुछ पता नहीं है.
मैं- तलाश लूँगा उसे भी. फिलहाल भैया कहा है ये बताओ मुझे .
अंजू- जंगल में
मैं- समझ गया .
मैं तुरंत जंगल की तरफ दौड़ पड़ा. मैं जानता था की भैया मुझे कहा मिलेंगे. वो ठीक मुझे वहां पर मिले जहाँ से ये कहानी शुरू हुई थी, मतलब जहाँ पर कोचवान हरिया पर हमला हुआ था .
भैया- आ गया तू
मैं- आना ही था .
भैया- मैं नहीं जानता की इसके बाद तू क्या सोचेगा . क्या समझेगा पर मैंने निर्णय कर लिया है की तुझे वो सब बताया जाये जो शायद नहीं होना चाहिए था . कहते है की वक्त बलवान होता है , वक्त अपने अन्दर न जाने क्या छिपाए होता है पर तब तक जब तक की कोई वक्त को थाम ने ले. जैसे तूने वकत के पहिये को थाम लिया उसे वापिस से उस दिशा में घुमा दिया जो मैंने कभी नहीं सोचा था .
“त्रिदेव , हाँ हम त्रिदेव ही तो थे, दोस्ती की ऐसी मिसाल जो सबने देखि थी , ये जंगल हमारा घर था . इसने हमारी चढ़ती जवानी को थामा . इसमें खेल पर हम बड़े हुए. हम सोचते थे की इस जंगल को हमसे बेहतर कोई नहीं जानता था पर कहते है न की आधी दुनिया भ्रम में जीती है . मैं भी ऐसे ही भ्रम में था की दोस्ती से बड़ा कुछ नहीं होता. कम से कम मेरे लिए तो बिलकुल नहीं .” भैया ने ये कह कर अपनी सांसो को थामा थोड़े समय के लिए
भैया-ये बरगद का पेड़ देख छोटे, इसकी शाखाओ पर तुझे वो तीन नाम बहुत सी जगह पर खुदे मिलेंगे जो तुझे परेशां किये हुए है MAP जिस तरीके से हमने ये लिखे कोई भी उस तीसरे छिपे हुए नाम को नहीं समझ सकता था सिवाय हमारे. सब कुछ बड़ा सही था पर हमें ये नहीं मालूम था की इस जंगल में हमसे पहले भी कोई अपनी जिन्दगी जी गया है या जी रहा है , हम नादान तो बस ये ही समझते थे की हम तीनो ही मालिक है इस जंगल के
मैं- अभिमानु, परकाश के अलावा वो तीसरा नाम किसका था भैया
भैया- महावीर ठाकुर का
भैया ने एक गहरी सांस ली . हम दोनों के बीच सन्नाटा छा गया .
भैया त्रिदेवो की तीसरी कड़ी महावीर ठाकुर. उबलती जवानी के जोश से भरे तीन युवाओ की कहानी, त्रिदेव की कहानी जो शुरू हुई उस दोपहर से जिसने हम तीनो की जिंदगियो को बदल दिया. और बदलने वाला कोई और नहीं था सिवाय चाचा के . जैसा मैंने कहा चाचा भी इस जंगल को खुद का हिस्सा मानता था . चाचा को हमने एक दोपहर रमा के साथ देखा , जिन्दगी में ये पहली बार था पर चूँकि मैंने चाचा के बारे में गाँव के लोगो से बहुत सुना था आज देख भी लिया. मुझे उसी दिन से घर्णा हो गयी थी उस से.
“पर कहाँ जानता था की चाचा और रमा को आपतिजनक अवस्था में देखना आगे जाकर क्या करवा देगा. कुछ दिनों बाद महावीर बाहर चला गया पढने के लिए रह गए मैं और प्रकाश . सब ठीक ही था की एक दिन रमा के पति की लाश मिली. और फिर ये सिलसिला शुरू हो गया . पिताजी भी कम नहीं थे चाचा से अय्याशी के मामले में पर उनकी छवि मजबूत थी गाँव में . रमा वो औरत थी जिसके लिए दोनों भाइयो में दरार पड़ गयी बहुत से लोग ऐसा कहते है पर सच मैं जानता हूँ , सच था वो सोना . वो सोने की खान जो मुझे विश्वास है की तूने जान लिया होगा उसके बारे में . ” भैया ने कहा .
मैं- जान लिया है .
भैया- उस खान के बारे में सिर्फ और सिर्फ पिताजी को मालूम था उन्होंने ही तलाश की थी उसकी कैसे ये कोई नहीं जानता पर चाचा को न जाने कैसे ये मालूम हो गया. अपनी अय्याशियों के लिए वो सोना चुराने लगा. पिताजी को ये बात जब मालूम हुई तो दोनों में कलेश हो गया . थोडा वक्त और बीता और महावीर वापिस लौट आया .
मैं- फिर , फिर क्या हुआ ................
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