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अगर कहीं मंगू के साथ निशा हुई फिर क्या होगा ? या भाभी ?
निशा हुई तो फिर मायने ही बदल जाएंगे कहानी के, जैसा मैंने कहा अंत को रक्त से लिखना है तो ये विचार बेमिसाल हैअगर कहीं मंगू के साथ निशा हुई फिर क्या होगा ? या भाभी ?
सोचना क्या है, टाइटल को जस्टिफाई कर देगा फिर, अब मुझे पता चल गई नियतिसोचो अगर निशा हुई मंगू के साथ तो फिर.......
चंपा निर्दोष है, अब उसकी मजबूरी क्या थी ये तो पता नही, दूध का धुला कोई नही, लेकिन प्यार के नाम पर कबीर का काटना तय है।निशा हुई तो फिर मायने ही बदल जाएंगे कहानी के, जैसा मैंने कहा अंत को रक्त से लिखना है तो ये विचार बेमिसाल है
जिस सवाल का जवाब हम ढूंढ रहे थे चलो उसका पता चल गया की भाभी ही आदमखोर है लेकिन जो हुआ वो भाभी ने नही किया तो किसने किया है क्या मंगू ने किया था या कोई और भी उसके पीछे एक सवाल ये भी है की भाभी को ये बीमारी दी किसने है#126
“मैं हूँ वो वजह कबीर, जिसे अभिमानु तमाम जहाँ से छिपाते हुए फिर रहे है . मैं नंदिनी ठकुराइन मैं हूँ इस सारे फसाद की जड़ मैं हूँ वो गुनेहगार जिसकी गर्दन दबोचने को तुम तड़प रहे हो . मैं हूँ वो राज जो अभिमानु को चैन से जीने नहीं दे रहा ” भाभी ने कहा.
मेरी आँखों के सामने अँधेरा छा गया. उस पल मैंने सोचा की क्यों ये रात अब खत्म नहीं हो जाती. मेरे सामने भाभी खड़ी थी जो अभी अभी उस छिपे हुए कमरे से बाहर आई थी .
“नहीं ये नहीं हो सकता ” मैंने कहा
भाभी- यही सच है कबीर . इस जंगल का सबसे भयानक सच . वो सच जिसका बोझ बस तुम्हारे भैया उठा रहे है .
भैया- नंदिनी, मैंने तुमसे कहा था न चाहे कुछ भी हो जाये ........
भाभी- इसके आगे जो होता वो ठीक तो नहीं होता न अभी. एक न एक दिन कोई न कोई तो ये बात जान ही जाता न. तुमने बहुत कोशिश की फिर भी देखो ....... कबीर, इसमें तुम्हारे भैया का कोई दोष नहीं है . जो कुछ भी हुआ उसकी जिम्मेदार हूँ . मैं ही हूँ वो रक्त प्यासी ........
मेरी तो जैसे साँस ही अटक गयी थी. ना कुछ समझ आ रहा था न कुछ कहते बन रहा था .
मैं- तो इसलिए वो आदमखोर मुझ पर हमला नहीं करता था ,वो पहचानता था मुझे.
भाभी- अपने बच्चे के जैसे पाला है तुमको , मेरी ममता के आगे तृष्णा हार जाती थी .
मैं- पर मैंने उस अवस्था में आप पर हाथ उठाया . ये गुनाह हुआ मुझसे भाभी.
भाभी- कोई गुनाह नहीं, उस अवस्था में तुमने मुझे संभाला बहुत बड़ी बात है .
मैं- कुछ समझ नहीं आ रहा , चंपा के साथ जो हुआ . बरातियो की लाशे . उनका क्या कसूर था
भैया- कबीर, नंदिनी ने मंडप और बारात पर हमला नहीं किया
मैं- मैं भी भाभी के राज को सीने में दबा लूँगा भैया
भैया- वो बात नहीं है कबीर. मैं तुझसे सच कह रहा हूँ , नंदिनी और मैं भी इसी सोच में पड़े है की किसने काण्ड किया ये .नंदिनी शुरू से ही चांदनी रात की वजह से परेशां थी , ये हरगिज नहीं चाहती थी की ब्याह उस रात हो , उसने पुजारी से भी ब्याह टालने को कहा पर राय साहब की जिद थी की ब्याह आज रात ही हो. इसलिए हमने निर्णय कर लिया था की जैसे ही बारात आएगी मैं नंदिनी को लेकर इस जगह पर आ जाऊंगा . कोई न कोई बहाना बना लेंगे लोगो के सामने और हमने किया भी ऐसा. जब तुम हमारे पास आये थे नंदिनी ने तुम्हे टोका था तब हम इसी बारे में बात कर रहे थे . मौका देखते ही हम लोग जंगल में आ गए.
नंदिनी- कबीर, उस अवस्था को बहुत हद तक मैंने तुम्हारे भैया की मदद से संभालना सीख लिया है , पर रक्त पीना उस रूप की मज़बूरी है , हमने इसका भी रास्ता निकाल लिया जरुरत पड़ने पर मैं जानवरों का शिकार कर लेती हूँ.पर एक सवाल जो मुझे खाए जा रहा है की यदि मैं यहाँ थी तो फिर वो हमला किसने किया
मैं- मंगू ने , वो ही नकली आदमखोर बन कर घूम रहा है
भैया- उसकी तो खाल खींच लूँगा मैं .
मैं- वो सिर्फ मोहरा है असली गुनेहगार कौन है ये समझ नहीं आ रहा वो रमा भी हो सकती है और राय साहब भी . वो मैं मालुम कर लूँगा खैर मैं जानता हूँ की आप दोनों ने इस जगह पर सात-आठ साल बाद कदम रखा है जबकि आप दोनों इस जगह के बारे में जानते थे , कम से कम भैया तो पुराने राज दार है इस कहानी के . और मैं बड़ा बेसब्र हूँ ये जानने को की क्यों . आखिर क्यों रूठना पड़ा भैया इस जगह से आपको . क्या हुआ था ऐसा जो आपने अपनी यादो तक से इस जगह को मिटा दिया. माफ़ कीजिये, मुझे मेरे शब्द पलटने पड़ेंगे, भाभी आप आज की रात ही यहाँ पर आई है . क्यों मैंने सही कहा न
भाभी के चेहरे पर उडती हवाइयो को मैंने चिमनी की धीमी रौशनी में भी देख लिया था .
मैं- क्यों भैया सही कह रहा हूँ न मैं
भैया- हाँ छोटे . नंदिनी इस खंडहर में आज ही आई है .
मैं- मैंने अनुमान लगा लिया था की आदमखोर का किस्सा इतना भी सुलझा हुआ नहीं है जितना की दिख रहा है. भाभी ने मुझे काटा पर भाभी आपको ये बीमारी किसने दी ,
भाभी- नहीं जानती बस एक शाम जंगल में मुझ पर हमला हुआ और तक़दीर बदल गयी .
मैं- आप आदमखोर है ये राज और कौन कौन जानता है
भाभी- अभी और अब तुम भी.
मैं- गलत , कोई और भी था जो जानता था की आप आदमखोर हो
“कौन ” भैया-भाभी दोनों एक साथ बोल पड़े.
मैं- चाचा, और इसी वजह से वो नहीं चाहता था की आप दोनों की शादी हो . मैं चाचा को न जाने कैसे पर ये बात मालूम हो गयी होगी.
नंदिनी- पर चाचा ने कभी भी मुझसे कोई ऐसा दुर्व्यवहार नहीं किया था . हमारी शादी के बाद उन्होंने हमेशा सम्मान किया मेरा.
मैंने अपनी जेब में हाथ डाला और वही तस्वीर जो मैंने चुराई थी , उसे टेबल पर रख दिया और चिमनी को आले से हटा कर तस्वीर के पास ही रख दिया.
मैं- भैया इस तस्वीर ने मुझे पागल किया हुआ है , दो नाम तो मैने सुलझा लिए है पर ये तीसरा नाम उलझाये हुए है . अतीत के किस पन्ने में जिक्र है त्रिदेव के इस हिस्से का और अगर त्रिदेव की कहानी खुद त्रिदेव का मेरे सामने खड़ा हिस्सा ही बताये तो सही रहे.
भैया ने जैसे मेरी बात सुनी ही नहीं .
मैं- इस हमाम में हम सब नंगे है भैया , अब कैसा पर्दा . आप चाहे लाख कहें की कुछ नहीं अतीत में पर मेरी आने वाली जिन्दगी आपके अतीत से जुडी है , निशा को तो आज मिल ही लिए आप. आपके माथे पर चिंता की लकीरों को पढ़ लिया था मैंने. निशा से ब्याह करना है मुझे . डाकन को अपनी दुल्हन बनाना है मुझे.
“ये कभी नहीं हो पायेगा छोटे ” भैया ने टूटी सी साँस में कहा.
निशा का क्या अतीत है और भैया के मना करने का क्या कारण है ये अभी तक पता नहीं चला है शायद जिसकी कीमत मौत हो सकती है#127
मैं- होगा, इस बार फाग मैं ऐसा खेलूँगा की किसी ने नहीं खेला होगा.
भैया- तूने ऐसा किया तो गुलाल की जगह रक्त की ही होगी ये होली
मैं- किसे परवाह है भैया, जानते है दुनिया उसे क्या कहती है डाकन . मैंने एक डाकन का हाथ थामा है , खुशनसीबी है ये मेरी की वो मेरी जिन्दगी में आई .
भैया- काश ये मुझे पहले मालूम होता
मैं- आशिको पर क्या जोर किसी का भैया, वैसे भी आपने मुझसे वादा किया हुआ है की मैं जहाँ चाहूँ जिस से चाहूँ आप मेरी शादी करवा देंगे.
भैया-मैं आज भी अपनी बात पर कायम हूँ , निशा के अलावा तो किसी की तरफ भी इशारा कर
मैं- निशा नहीं तो फिर कोई नहीं
भैया- मुझे धर्म संकट में मत डाल छोटे,
मैं- साथ नहीं दे सकते तो मुझे रोकना भी मत भैया.
भैया- नंदिनी तुम ही समझाओ इसे कुछ
मैं- भाभी ने हमारे प्रेम को आशीर्वाद दे दिया है
भैया ने भाभी की तरफ देखा और बोले- ये क्या अनर्थ किया तुमने नंदिनी क्या कर दिया ये तुमने
भाभी- अपनी मोहब्बत के लिए तुम जमाने से अड़ गए थे अभी, और अगर अपने बच्चे के हक़ के लिए हम खड़े नहीं होंगे तो फिर कौन होगा.
भैया- सब जानते हुए भी नंदिनी
भाभी- हाँ सब जानते हुए . सब समझते हुए.
भैया- ये जानते हुए भी की क्या कीमत चुकानी पड़ेगी.
भाभी- कब तक कोई न कोई ये कीमत चुकाता रहेगा अभी कब तक कोई न कोई तो खड़ा होगा न . आखिर कब तक अभी कब तक , आपको क्या लगता है कबीर रुक जायेगा. आशिक किस हद तक जा सकते है आपसे बेहतर कौन जानता है .
भैया- नंदिनी, मुझे मेरे भाई की फ़िक्र है
भाभी- आप अपने भाई को जानते है न , आपसे ज्यादा कौन जानता है इसे .
भैया- फिलहाल हमें घर चलना चाहिए . वैसे भी सुबह होने में अब ज्यादा देर बची नहीं है .
मैं समझ गया था की भैया भाभी के आगे त्रिदेव की कहानी नहीं बताना चाहते थे या फिर वो कहानी भाभी भी ठीक से नहीं जानती होंगी. पर इस रात ने मुझे आदमखोर वाली चिंता से मुक्त कर दिया था फिलहाल के लिए तो ऐसा ही मान लिया मैंने.कमरे से निकलने से पहले मैंने एक नजर फिर से उन दीवारों पर डाली जिन्होंने न जाने क्या क्या देखा था . एक बार फिर मुझे लगा की वो कुछ कहना चाहती है मुझसे पर तभी भैया ने चिमनी बुझा दी और हम लोग कुवे पर आ गए. भैया ने गाडी स्टार्ट की और हम घर की तरफ चल दिए जहाँ पर मातम हमारा इंतज़ार कर रहा था .
मैंने किसी से कुछ भी नहीं कहा . एक खाली कोना पकड़ा और मेरी आँखे नींद में डूब गयी. शायद नींद ही मरहम की तरह थी उस वक्त. जब मैं जागा तो देखा की पंडाल, मंडप हटा दिए गए थे . लाशे भी हटा दी गयी थी. जो सामान रह गया था वो इधर उधर बिखरा पड़ा था जैसे किसी ने परवाह ही नहीं की थी उसकी.अंजू मेरे पास आई और बोली- मंगू का कल रात से कुछ पता नहीं है.
मैं- तलाश लूँगा उसे भी. फिलहाल भैया कहा है ये बताओ मुझे .
अंजू- जंगल में
मैं- समझ गया .
मैं तुरंत जंगल की तरफ दौड़ पड़ा. मैं जानता था की भैया मुझे कहा मिलेंगे. वो ठीक मुझे वहां पर मिले जहाँ से ये कहानी शुरू हुई थी, मतलब जहाँ पर कोचवान हरिया पर हमला हुआ था .
भैया- आ गया तू
मैं- आना ही था .
भैया- मैं नहीं जानता की इसके बाद तू क्या सोचेगा . क्या समझेगा पर मैंने निर्णय कर लिया है की तुझे वो सब बताया जाये जो शायद नहीं होना चाहिए था . कहते है की वक्त बलवान होता है , वक्त अपने अन्दर न जाने क्या छिपाए होता है पर तब तक जब तक की कोई वक्त को थाम ने ले. जैसे तूने वकत के पहिये को थाम लिया उसे वापिस से उस दिशा में घुमा दिया जो मैंने कभी नहीं सोचा था .
“त्रिदेव , हाँ हम त्रिदेव ही तो थे, दोस्ती की ऐसी मिसाल जो सबने देखि थी , ये जंगल हमारा घर था . इसने हमारी चढ़ती जवानी को थामा . इसमें खेल पर हम बड़े हुए. हम सोचते थे की इस जंगल को हमसे बेहतर कोई नहीं जानता था पर कहते है न की आधी दुनिया भ्रम में जीती है . मैं भी ऐसे ही भ्रम में था की दोस्ती से बड़ा कुछ नहीं होता. कम से कम मेरे लिए तो बिलकुल नहीं .” भैया ने ये कह कर अपनी सांसो को थामा थोड़े समय के लिए
भैया-ये बरगद का पेड़ देख छोटे, इसकी शाखाओ पर तुझे वो तीन नाम बहुत सी जगह पर खुदे मिलेंगे जो तुझे परेशां किये हुए है MAP जिस तरीके से हमने ये लिखे कोई भी उस तीसरे छिपे हुए नाम को नहीं समझ सकता था सिवाय हमारे. सब कुछ बड़ा सही था पर हमें ये नहीं मालूम था की इस जंगल में हमसे पहले भी कोई अपनी जिन्दगी जी गया है या जी रहा है , हम नादान तो बस ये ही समझते थे की हम तीनो ही मालिक है इस जंगल के
मैं- अभिमानु, परकाश के अलावा वो तीसरा नाम किसका था भैया
भैया- महावीर ठाकुर का
भैया ने एक गहरी सांस ली . हम दोनों के बीच सन्नाटा छा गया .
भैया त्रिदेवो की तीसरी कड़ी महावीर ठाकुर. उबलती जवानी के जोश से भरे तीन युवाओ की कहानी, त्रिदेव की कहानी जो शुरू हुई उस दोपहर से जिसने हम तीनो की जिंदगियो को बदल दिया. और बदलने वाला कोई और नहीं था सिवाय चाचा के . जैसा मैंने कहा चाचा भी इस जंगल को खुद का हिस्सा मानता था . चाचा को हमने एक दोपहर रमा के साथ देखा , जिन्दगी में ये पहली बार था पर चूँकि मैंने चाचा के बारे में गाँव के लोगो से बहुत सुना था आज देख भी लिया. मुझे उसी दिन से घर्णा हो गयी थी उस से.
“पर कहाँ जानता था की चाचा और रमा को आपतिजनक अवस्था में देखना आगे जाकर क्या करवा देगा. कुछ दिनों बाद महावीर बाहर चला गया पढने के लिए रह गए मैं और प्रकाश . सब ठीक ही था की एक दिन रमा के पति की लाश मिली. और फिर ये सिलसिला शुरू हो गया . पिताजी भी कम नहीं थे चाचा से अय्याशी के मामले में पर उनकी छवि मजबूत थी गाँव में . रमा वो औरत थी जिसके लिए दोनों भाइयो में दरार पड़ गयी बहुत से लोग ऐसा कहते है पर सच मैं जानता हूँ , सच था वो सोना . वो सोने की खान जो मुझे विश्वास है की तूने जान लिया होगा उसके बारे में . ” भैया ने कहा .
मैं- जान लिया है .
भैया- उस खान के बारे में सिर्फ और सिर्फ पिताजी को मालूम था उन्होंने ही तलाश की थी उसकी कैसे ये कोई नहीं जानता पर चाचा को न जाने कैसे ये मालूम हो गया. अपनी अय्याशियों के लिए वो सोना चुराने लगा. पिताजी को ये बात जब मालूम हुई तो दोनों में कलेश हो गया . थोडा वक्त और बीता और महावीर वापिस लौट आया .
मैं- फिर , फिर क्या हुआ ................
निशा हुई तो फिर मायने ही बदल जाएंगे कहानी के, जैसा मैंने कहा अंत को रक्त से लिखना है तो ये विचार बेमिसाल है