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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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सवाल बहुत है और जवाब कोई नहीं

#55

दिमाग सुन्न हो गया था . मेरे भाई ने एक पराये के लिए मुझे धक्का दिया था . मुझसे जायदा मेरे दुश्मन की फ़िक्र थी उसे. सोच कर मैं पागल ही हो गया.

“मैं थोड़ी देर कुवे पर ही रुकुंगा तू घर जा ” मैंने चंपा से कहा

चंपा- मैं भी तेरे साथ ही रहूंगी

मैं-तू तो सुन ले मेरी. जा अकेला छोड़ दे थोड़ी देर.

मैं कुवे की मुंडेर पर बैठ गया और सोचने लगा. इस हालत में मुझे निशा की बड़ी कमी महसूस हो रही थी उसके बिना ऐसे लगता था की जैसे आत्मा का एक टुकड़ा निकाल ले गया हो कोई. मैं खुद को कोस रहा था की काश मैंने उस से मोहब्बत का इजहार नहीं किया होता तो वो नहीं जाती. पर वो नहीं थी , मैं था और ये तन्हाई थी .

तीन दिन ऐसे ही गुजर गए भैया का कोई अतापता नहीं था . मैं दिन भर राय साहब को देखता . रात में चोकिदारी करता सोचता की कब ये कुछ करेगा. पर चंपा और रायसाहब का व्यवहार सामान्य ही था . ऐसे ही समय गुजर रहा था और पूनम की शाम को भैया घर आये. काफी थके से लग रहे थे . मैं चबूतरे पर ही बैठा था . मुझे देख कर भैया गाड़ी से उतर कर मेरे पास आये.

भैया- कैसा है छोटे

मैं- जैसा छोड़ कर गए थे वैसा ही हूँ

भैया- नाराज है अभी तक

मैं- क्या फर्क पड़ता है

भैया - समझता हूँ तेरी नाराजगी

मैं- रोकना नहीं चाहिए था मुझे

भाई-- रोकना जरुरी था

मैं- सूरजभान को तो मैं मौका लगते ही मार दूंगा.

भैया- ऐसा नहीं होने दूंगा मैं

मैं- पर क्यों, ऐसा क्या है जो मेरे भाई और मेरे बिच वो नीच आ गया है

भैया- तेरे मेरे बीच कोई नहीं आ सकता छोटे

मैं- तो फिर उस गलीच की इतनी फ़िक्र क्यों आपको

भैया- उसकी चिंता नहीं है . तेरी फ़िक्र है मैं नहीं चाहता तू इस दलदल में फंस जाये

मैं- किस दलदल में

भैया -छोटे, ये खून खराबा हमारे लिए नहीं है

मैं- और उसने जो किया क्या वो ठीक था

भैया- नियति बड़ी निराली होती है छोटे . तेरा दिमाग अभी गर्म है तू समझेगा नहीं पर मैं जानता हु तेरी क्या अहमियत है मेरे लिए . तू मेरी इतनी तो बात मान. इतना तो तुझ पर हक़ है न मेरा

मैं- ठीक है पर आपको भी मुझसे एक वादा करना होगा दुश्मनी मेरी और उसकी है हम दोनों के बेची ही रहे. किसी मजलूम को उसने सताया मुझसे दुश्मनी के चलते तो मैं नहीं सुनूंगा आपकी

भैया- ठीक है .

मैं- दूसरी बात . ऐसा क्या है उस में जो उसके लिए अपने छोटे भाई के सामने खड़े हो गए आप.

भैया -थोड़ी थकान है मैं नहा कर आता हूँ .

भैया ने टाल दी थी बात को पर मेरे मन में जो शंका का बीज था वो जल्दी ही पेड़ बनने वाला था . खैर, रात को मेरी नींद खुली तो मैंने देखा की पूरा बिस्तर गीला हुआ पड़ा था . क्या नींद में ही मूत दिया मिअने अपने आप से सवाल किया. सूंघ कर देखा मूत तो नहीं था . कपडे चिपचिपे हो रहे थे इतना पसीना तो पहले कभी नहीं आया था . दिसम्बर की ठण्ड में पसीना आना क्या ही कहे अब.

बिस्तर से उठ कर मैं गली में गया मूत रहा था की मेरी नजर ऊपर आसमान में चाँद पर पड़ी. अचानक से पैर लडखडा गए मेरे. गला सूखने लगा. मुझे निशा की बात याद आई की पूर्णिमा को काली मंदिर में ही रहना . बदन में अजीब सी खुजली दौड़ने लगी थी मैं अपने जिस्म को खरोंचने लगा.

बिन कुछ सोचे समझे मैं गाँव से बाहर की तरफ दौड़ पड़ा. तन जलने लगा था . जैसे किसी ने आग में झोंक दिया हो मुझे. आव देखा न ताव मैं उसी तालाब में कूद गया. सर्दी के मौसम में जमे हुए पानी ने मुझे अपने आगोश में पनाह दी पर चैन नहीं मिला. पानी भी जैसे मेरा गला घोंट रहा हो. साँस लेने में मुश्किल हो रही थी . जब बिलकुल जोर नहीं चला तो मैं मंदिर में घुस गया और उन काली दीवारों से लग कर खुद को सँभालने की कोशिश करने लगा. आँखे धुंधली होने लगी थी . दिल कर रहा था की जोर जोर से चीखू.

जैसे जैसे रात बढती गयी मेरी तकलीफ बढती गयी . अपने आप से जूझता रहा मैं और जब सुबह का पहर सुरु हुआ तो खांसते हुए मैं वही धरती पर गिर गया. जब आँख खुली तो सब कुछ शांत था मालूम नहीं कितना समय रहा होगा पर दिन था. धुधं ने चारो दिशाओ कोकाबू किया हुआ था . मैं उठा खुद को देखा बदन ठण्ड से कांप रहा था मेरे कपडे सीले थे .

कुवे पर आने के बाद मैंने दुसरे कपडे पहने और रजाई में घुस गया. सोचता रहा की रात को क्या हुआ था .

“कबीर कबीर है क्या यहाँ तू ” बाहर से चाची की आवाज आई

मैं- अन्दर हु चाची

चाची अन्दर आई और मुझे बिस्तर में घुसे हुए देख कर बोली- सुबह से गायब है . मुझे फ़िक्र हो रही थी और तू है की यहाँ आराम से पड़ा है . ले खाना खाले .

मैंने जैसे तैसे खाना खाया पर बदन कांप रहा था . चाची ने मेरे माथे पर हाथ रखा और बोली- तुझे तो बुखार है .

मैं-ठीक हो जायेगा.

चाची बर्तन लेकर बाहर जा रही थी तो मेरी निगाह चाची की मदमस्त गांड पर पड़ी . मन बेईमान हो गया.

मैं- किवाड़ लगा लो और आओ मेरे पास

चाची- दिन में नहीं कोई आ निकलेगा.

मैं- आओ तो सही , ये ठण्ड ऐसे ही उतरेगी.

वो कहते है न की आदमी किसी भी हालत में हो उसे इस चीज का चस्का हमेशा ही रहता है . मैंने भी चाची को बिस्तर में घसीट लिया और अपनी मनमानी कर ली सच कहू तो राहत भी मिली मुझे. आराम मिला तो बातो सा सिलसिला शुरू हुआ .

मैं- चाची, माँ के जाने के बाद पिताजी चाहते तो दूसरी शादी कर लेते

चाची- पर उन्होंने नहीं की

मैं- कैसे जिए होंगे वो अकेले. मैं तेरे बिना थोड़ी देर न रह पा रहा पिताजी की भी तो इच्छा होती होगी .

चाची- देख कबीर इच्छा तो सबकी होती ही है. राय साहब की जो हसियत है वो किसी भी औरत को जरा भी इशारा कर दे तो कोई भी अपनी खुशकिस्मती ही समझेगी. अब ज्यादातर तो वो बाहर ही रहते है बाहर कुछ कर लिया हो तो मैं कह नहीं सकती .

मैं- वैसे तुम कोशिश करती तो वो देखते जरुर तुम्हारी तरफ इतना मस्त जुगाड़ घर में है तो

चाची- जिस परिवार से हम आते है न वहां औरतो का सम्मान है

मैं- इतना ही सम्मान है तो अपनी बेटी की उम्र की चंपा को क्यों चोद दिया पिताजी ने ,



मेरी बात सुन कर चाची के चेहरे का रंग उड़ गया .


“क्या कहा तूने , ” चाची की आवाज लडखडा गयी ...........
Dhasu update bhai.
Kuch to locha hai abhimanu or surajbhan ke beech me.
Or kya chachi ko nahi pata champa or ray sab ka?
Kya kabir bhediya manav ban ban raha hai????
 
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Avinashraj

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#55

दिमाग सुन्न हो गया था . मेरे भाई ने एक पराये के लिए मुझे धक्का दिया था . मुझसे जायदा मेरे दुश्मन की फ़िक्र थी उसे. सोच कर मैं पागल ही हो गया.

“मैं थोड़ी देर कुवे पर ही रुकुंगा तू घर जा ” मैंने चंपा से कहा

चंपा- मैं भी तेरे साथ ही रहूंगी

मैं-तू तो सुन ले मेरी. जा अकेला छोड़ दे थोड़ी देर.

मैं कुवे की मुंडेर पर बैठ गया और सोचने लगा. इस हालत में मुझे निशा की बड़ी कमी महसूस हो रही थी उसके बिना ऐसे लगता था की जैसे आत्मा का एक टुकड़ा निकाल ले गया हो कोई. मैं खुद को कोस रहा था की काश मैंने उस से मोहब्बत का इजहार नहीं किया होता तो वो नहीं जाती. पर वो नहीं थी , मैं था और ये तन्हाई थी .

तीन दिन ऐसे ही गुजर गए भैया का कोई अतापता नहीं था . मैं दिन भर राय साहब को देखता . रात में चोकिदारी करता सोचता की कब ये कुछ करेगा. पर चंपा और रायसाहब का व्यवहार सामान्य ही था . ऐसे ही समय गुजर रहा था और पूनम की शाम को भैया घर आये. काफी थके से लग रहे थे . मैं चबूतरे पर ही बैठा था . मुझे देख कर भैया गाड़ी से उतर कर मेरे पास आये.

भैया- कैसा है छोटे

मैं- जैसा छोड़ कर गए थे वैसा ही हूँ

भैया- नाराज है अभी तक

मैं- क्या फर्क पड़ता है

भैया - समझता हूँ तेरी नाराजगी

मैं- रोकना नहीं चाहिए था मुझे

भाई-- रोकना जरुरी था

मैं- सूरजभान को तो मैं मौका लगते ही मार दूंगा.

भैया- ऐसा नहीं होने दूंगा मैं

मैं- पर क्यों, ऐसा क्या है जो मेरे भाई और मेरे बिच वो नीच आ गया है

भैया- तेरे मेरे बीच कोई नहीं आ सकता छोटे

मैं- तो फिर उस गलीच की इतनी फ़िक्र क्यों आपको

भैया- उसकी चिंता नहीं है . तेरी फ़िक्र है मैं नहीं चाहता तू इस दलदल में फंस जाये

मैं- किस दलदल में

भैया -छोटे, ये खून खराबा हमारे लिए नहीं है

मैं- और उसने जो किया क्या वो ठीक था

भैया- नियति बड़ी निराली होती है छोटे . तेरा दिमाग अभी गर्म है तू समझेगा नहीं पर मैं जानता हु तेरी क्या अहमियत है मेरे लिए . तू मेरी इतनी तो बात मान. इतना तो तुझ पर हक़ है न मेरा

मैं- ठीक है पर आपको भी मुझसे एक वादा करना होगा दुश्मनी मेरी और उसकी है हम दोनों के बेची ही रहे. किसी मजलूम को उसने सताया मुझसे दुश्मनी के चलते तो मैं नहीं सुनूंगा आपकी

भैया- ठीक है .

मैं- दूसरी बात . ऐसा क्या है उस में जो उसके लिए अपने छोटे भाई के सामने खड़े हो गए आप.

भैया -थोड़ी थकान है मैं नहा कर आता हूँ .

भैया ने टाल दी थी बात को पर मेरे मन में जो शंका का बीज था वो जल्दी ही पेड़ बनने वाला था . खैर, रात को मेरी नींद खुली तो मैंने देखा की पूरा बिस्तर गीला हुआ पड़ा था . क्या नींद में ही मूत दिया मिअने अपने आप से सवाल किया. सूंघ कर देखा मूत तो नहीं था . कपडे चिपचिपे हो रहे थे इतना पसीना तो पहले कभी नहीं आया था . दिसम्बर की ठण्ड में पसीना आना क्या ही कहे अब.

बिस्तर से उठ कर मैं गली में गया मूत रहा था की मेरी नजर ऊपर आसमान में चाँद पर पड़ी. अचानक से पैर लडखडा गए मेरे. गला सूखने लगा. मुझे निशा की बात याद आई की पूर्णिमा को काली मंदिर में ही रहना . बदन में अजीब सी खुजली दौड़ने लगी थी मैं अपने जिस्म को खरोंचने लगा.

बिन कुछ सोचे समझे मैं गाँव से बाहर की तरफ दौड़ पड़ा. तन जलने लगा था . जैसे किसी ने आग में झोंक दिया हो मुझे. आव देखा न ताव मैं उसी तालाब में कूद गया. सर्दी के मौसम में जमे हुए पानी ने मुझे अपने आगोश में पनाह दी पर चैन नहीं मिला. पानी भी जैसे मेरा गला घोंट रहा हो. साँस लेने में मुश्किल हो रही थी . जब बिलकुल जोर नहीं चला तो मैं मंदिर में घुस गया और उन काली दीवारों से लग कर खुद को सँभालने की कोशिश करने लगा. आँखे धुंधली होने लगी थी . दिल कर रहा था की जोर जोर से चीखू.

जैसे जैसे रात बढती गयी मेरी तकलीफ बढती गयी . अपने आप से जूझता रहा मैं और जब सुबह का पहर सुरु हुआ तो खांसते हुए मैं वही धरती पर गिर गया. जब आँख खुली तो सब कुछ शांत था मालूम नहीं कितना समय रहा होगा पर दिन था. धुधं ने चारो दिशाओ कोकाबू किया हुआ था . मैं उठा खुद को देखा बदन ठण्ड से कांप रहा था मेरे कपडे सीले थे .

कुवे पर आने के बाद मैंने दुसरे कपडे पहने और रजाई में घुस गया. सोचता रहा की रात को क्या हुआ था .

“कबीर कबीर है क्या यहाँ तू ” बाहर से चाची की आवाज आई

मैं- अन्दर हु चाची

चाची अन्दर आई और मुझे बिस्तर में घुसे हुए देख कर बोली- सुबह से गायब है . मुझे फ़िक्र हो रही थी और तू है की यहाँ आराम से पड़ा है . ले खाना खाले .

मैंने जैसे तैसे खाना खाया पर बदन कांप रहा था . चाची ने मेरे माथे पर हाथ रखा और बोली- तुझे तो बुखार है .

मैं-ठीक हो जायेगा.

चाची बर्तन लेकर बाहर जा रही थी तो मेरी निगाह चाची की मदमस्त गांड पर पड़ी . मन बेईमान हो गया.

मैं- किवाड़ लगा लो और आओ मेरे पास

चाची- दिन में नहीं कोई आ निकलेगा.

मैं- आओ तो सही , ये ठण्ड ऐसे ही उतरेगी.

वो कहते है न की आदमी किसी भी हालत में हो उसे इस चीज का चस्का हमेशा ही रहता है . मैंने भी चाची को बिस्तर में घसीट लिया और अपनी मनमानी कर ली सच कहू तो राहत भी मिली मुझे. आराम मिला तो बातो सा सिलसिला शुरू हुआ .

मैं- चाची, माँ के जाने के बाद पिताजी चाहते तो दूसरी शादी कर लेते

चाची- पर उन्होंने नहीं की

मैं- कैसे जिए होंगे वो अकेले. मैं तेरे बिना थोड़ी देर न रह पा रहा पिताजी की भी तो इच्छा होती होगी .

चाची- देख कबीर इच्छा तो सबकी होती ही है. राय साहब की जो हसियत है वो किसी भी औरत को जरा भी इशारा कर दे तो कोई भी अपनी खुशकिस्मती ही समझेगी. अब ज्यादातर तो वो बाहर ही रहते है बाहर कुछ कर लिया हो तो मैं कह नहीं सकती .

मैं- वैसे तुम कोशिश करती तो वो देखते जरुर तुम्हारी तरफ इतना मस्त जुगाड़ घर में है तो

चाची- जिस परिवार से हम आते है न वहां औरतो का सम्मान है

मैं- इतना ही सम्मान है तो अपनी बेटी की उम्र की चंपा को क्यों चोद दिया पिताजी ने ,



मेरी बात सुन कर चाची के चेहरे का रंग उड़ गया .


“क्या कहा तूने , ” चाची की आवाज लडखडा गयी ...........
Nyc update bhai
 

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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Nisha ki yaad to hume bhi sata rahi hai pyaar ko ek taraf rakh ke soche to kam se kam sukun bhari baate to hoti thi jisse dil ko karaar aa jaata tha ab ye akelapan kaatne ko dauad raha hai mitra.

Bhaiya ne phir baat ko ghuma diya aisa bhi kya hai jo chupa rahe hai wo or itne din kaha gayab the kuch to hai kabir ko gade murde ukhadna honga. Nisha ne kaha tha jab sahan na ho to talaab me naha lena matlab use pahle hi pata tha aisa honga lekin ye hua kya ye to humare samjh ke pare hai.

Chachi ke bhaavo ko dekhkar lagta hai unhe bhi sach nahi pata hai waise wo sach me itni bholi hai, kabir to kuch uglwa nahi paaya to khud hi saamne se bol diya ab dekhte hai unka kya jawab hota hai ya fir wo bhi baat ko ghuma dengi.
 

Golu

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Shandar bhai mza aa jata hai padh ke har update ko bhiya ne to baat taal diya batane se ki surajbhan ki madad kyu kar rahe wo aur ab dekhte hai Chachi kya bahana banati hai Champa ki baat ko ab kya kahengi wo ya phir se Kabir ko koi path padha dengi ya sbki trah bs kisi tarike se baat ko taal dengi

Aur sbra to bs isi ka hai ki har kahani ki tarah is baar bhi us kirdar ka fuddu na Kate jo puri story me itni mehnat kare aur last 3 ya 4 update me kahani hi kisi aur ki ho jati thi dekhte hai isme any Kabir karega is story ka as a Nayak
Ya ray shahab ya bhaiya ya Nisha ki ho Jani hai ye story
 
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#55

दिमाग सुन्न हो गया था . मेरे भाई ने एक पराये के लिए मुझे धक्का दिया था . मुझसे जायदा मेरे दुश्मन की फ़िक्र थी उसे. सोच कर मैं पागल ही हो गया.

“मैं थोड़ी देर कुवे पर ही रुकुंगा तू घर जा ” मैंने चंपा से कहा

चंपा- मैं भी तेरे साथ ही रहूंगी

मैं-तू तो सुन ले मेरी. जा अकेला छोड़ दे थोड़ी देर.

मैं कुवे की मुंडेर पर बैठ गया और सोचने लगा. इस हालत में मुझे निशा की बड़ी कमी महसूस हो रही थी उसके बिना ऐसे लगता था की जैसे आत्मा का एक टुकड़ा निकाल ले गया हो कोई. मैं खुद को कोस रहा था की काश मैंने उस से मोहब्बत का इजहार नहीं किया होता तो वो नहीं जाती. पर वो नहीं थी , मैं था और ये तन्हाई थी .

तीन दिन ऐसे ही गुजर गए भैया का कोई अतापता नहीं था . मैं दिन भर राय साहब को देखता . रात में चोकिदारी करता सोचता की कब ये कुछ करेगा. पर चंपा और रायसाहब का व्यवहार सामान्य ही था . ऐसे ही समय गुजर रहा था और पूनम की शाम को भैया घर आये. काफी थके से लग रहे थे . मैं चबूतरे पर ही बैठा था . मुझे देख कर भैया गाड़ी से उतर कर मेरे पास आये.

भैया- कैसा है छोटे

मैं- जैसा छोड़ कर गए थे वैसा ही हूँ

भैया- नाराज है अभी तक

मैं- क्या फर्क पड़ता है

भैया - समझता हूँ तेरी नाराजगी

मैं- रोकना नहीं चाहिए था मुझे

भाई-- रोकना जरुरी था

मैं- सूरजभान को तो मैं मौका लगते ही मार दूंगा.

भैया- ऐसा नहीं होने दूंगा मैं

मैं- पर क्यों, ऐसा क्या है जो मेरे भाई और मेरे बिच वो नीच आ गया है

भैया- तेरे मेरे बीच कोई नहीं आ सकता छोटे

मैं- तो फिर उस गलीच की इतनी फ़िक्र क्यों आपको

भैया- उसकी चिंता नहीं है . तेरी फ़िक्र है मैं नहीं चाहता तू इस दलदल में फंस जाये

मैं- किस दलदल में

भैया -छोटे, ये खून खराबा हमारे लिए नहीं है

मैं- और उसने जो किया क्या वो ठीक था

भैया- नियति बड़ी निराली होती है छोटे . तेरा दिमाग अभी गर्म है तू समझेगा नहीं पर मैं जानता हु तेरी क्या अहमियत है मेरे लिए . तू मेरी इतनी तो बात मान. इतना तो तुझ पर हक़ है न मेरा

मैं- ठीक है पर आपको भी मुझसे एक वादा करना होगा दुश्मनी मेरी और उसकी है हम दोनों के बेची ही रहे. किसी मजलूम को उसने सताया मुझसे दुश्मनी के चलते तो मैं नहीं सुनूंगा आपकी

भैया- ठीक है .

मैं- दूसरी बात . ऐसा क्या है उस में जो उसके लिए अपने छोटे भाई के सामने खड़े हो गए आप.

भैया -थोड़ी थकान है मैं नहा कर आता हूँ .

भैया ने टाल दी थी बात को पर मेरे मन में जो शंका का बीज था वो जल्दी ही पेड़ बनने वाला था . खैर, रात को मेरी नींद खुली तो मैंने देखा की पूरा बिस्तर गीला हुआ पड़ा था . क्या नींद में ही मूत दिया मिअने अपने आप से सवाल किया. सूंघ कर देखा मूत तो नहीं था . कपडे चिपचिपे हो रहे थे इतना पसीना तो पहले कभी नहीं आया था . दिसम्बर की ठण्ड में पसीना आना क्या ही कहे अब.

बिस्तर से उठ कर मैं गली में गया मूत रहा था की मेरी नजर ऊपर आसमान में चाँद पर पड़ी. अचानक से पैर लडखडा गए मेरे. गला सूखने लगा. मुझे निशा की बात याद आई की पूर्णिमा को काली मंदिर में ही रहना . बदन में अजीब सी खुजली दौड़ने लगी थी मैं अपने जिस्म को खरोंचने लगा.

बिन कुछ सोचे समझे मैं गाँव से बाहर की तरफ दौड़ पड़ा. तन जलने लगा था . जैसे किसी ने आग में झोंक दिया हो मुझे. आव देखा न ताव मैं उसी तालाब में कूद गया. सर्दी के मौसम में जमे हुए पानी ने मुझे अपने आगोश में पनाह दी पर चैन नहीं मिला. पानी भी जैसे मेरा गला घोंट रहा हो. साँस लेने में मुश्किल हो रही थी . जब बिलकुल जोर नहीं चला तो मैं मंदिर में घुस गया और उन काली दीवारों से लग कर खुद को सँभालने की कोशिश करने लगा. आँखे धुंधली होने लगी थी . दिल कर रहा था की जोर जोर से चीखू.

जैसे जैसे रात बढती गयी मेरी तकलीफ बढती गयी . अपने आप से जूझता रहा मैं और जब सुबह का पहर सुरु हुआ तो खांसते हुए मैं वही धरती पर गिर गया. जब आँख खुली तो सब कुछ शांत था मालूम नहीं कितना समय रहा होगा पर दिन था. धुधं ने चारो दिशाओ कोकाबू किया हुआ था . मैं उठा खुद को देखा बदन ठण्ड से कांप रहा था मेरे कपडे सीले थे .

कुवे पर आने के बाद मैंने दुसरे कपडे पहने और रजाई में घुस गया. सोचता रहा की रात को क्या हुआ था .

“कबीर कबीर है क्या यहाँ तू ” बाहर से चाची की आवाज आई

मैं- अन्दर हु चाची

चाची अन्दर आई और मुझे बिस्तर में घुसे हुए देख कर बोली- सुबह से गायब है . मुझे फ़िक्र हो रही थी और तू है की यहाँ आराम से पड़ा है . ले खाना खाले .

मैंने जैसे तैसे खाना खाया पर बदन कांप रहा था . चाची ने मेरे माथे पर हाथ रखा और बोली- तुझे तो बुखार है .

मैं-ठीक हो जायेगा.

चाची बर्तन लेकर बाहर जा रही थी तो मेरी निगाह चाची की मदमस्त गांड पर पड़ी . मन बेईमान हो गया.

मैं- किवाड़ लगा लो और आओ मेरे पास

चाची- दिन में नहीं कोई आ निकलेगा.

मैं- आओ तो सही , ये ठण्ड ऐसे ही उतरेगी.

वो कहते है न की आदमी किसी भी हालत में हो उसे इस चीज का चस्का हमेशा ही रहता है . मैंने भी चाची को बिस्तर में घसीट लिया और अपनी मनमानी कर ली सच कहू तो राहत भी मिली मुझे. आराम मिला तो बातो सा सिलसिला शुरू हुआ .

मैं- चाची, माँ के जाने के बाद पिताजी चाहते तो दूसरी शादी कर लेते

चाची- पर उन्होंने नहीं की

मैं- कैसे जिए होंगे वो अकेले. मैं तेरे बिना थोड़ी देर न रह पा रहा पिताजी की भी तो इच्छा होती होगी .

चाची- देख कबीर इच्छा तो सबकी होती ही है. राय साहब की जो हसियत है वो किसी भी औरत को जरा भी इशारा कर दे तो कोई भी अपनी खुशकिस्मती ही समझेगी. अब ज्यादातर तो वो बाहर ही रहते है बाहर कुछ कर लिया हो तो मैं कह नहीं सकती .

मैं- वैसे तुम कोशिश करती तो वो देखते जरुर तुम्हारी तरफ इतना मस्त जुगाड़ घर में है तो

चाची- जिस परिवार से हम आते है न वहां औरतो का सम्मान है

मैं- इतना ही सम्मान है तो अपनी बेटी की उम्र की चंपा को क्यों चोद दिया पिताजी ने ,



मेरी बात सुन कर चाची के चेहरे का रंग उड़ गया .

“क्या कहा तूने , ” चाची की आवाज लडखडा गयी ...........
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#55

दिमाग सुन्न हो गया था . मेरे भाई ने एक पराये के लिए मुझे धक्का दिया था . मुझसे जायदा मेरे दुश्मन की फ़िक्र थी उसे. सोच कर मैं पागल ही हो गया.

“मैं थोड़ी देर कुवे पर ही रुकुंगा तू घर जा ” मैंने चंपा से कहा

चंपा- मैं भी तेरे साथ ही रहूंगी

मैं-तू तो सुन ले मेरी. जा अकेला छोड़ दे थोड़ी देर.

मैं कुवे की मुंडेर पर बैठ गया और सोचने लगा. इस हालत में मुझे निशा की बड़ी कमी महसूस हो रही थी उसके बिना ऐसे लगता था की जैसे आत्मा का एक टुकड़ा निकाल ले गया हो कोई. मैं खुद को कोस रहा था की काश मैंने उस से मोहब्बत का इजहार नहीं किया होता तो वो नहीं जाती. पर वो नहीं थी , मैं था और ये तन्हाई थी .

तीन दिन ऐसे ही गुजर गए भैया का कोई अतापता नहीं था . मैं दिन भर राय साहब को देखता . रात में चोकिदारी करता सोचता की कब ये कुछ करेगा. पर चंपा और रायसाहब का व्यवहार सामान्य ही था . ऐसे ही समय गुजर रहा था और पूनम की शाम को भैया घर आये. काफी थके से लग रहे थे . मैं चबूतरे पर ही बैठा था . मुझे देख कर भैया गाड़ी से उतर कर मेरे पास आये.

भैया- कैसा है छोटे

मैं- जैसा छोड़ कर गए थे वैसा ही हूँ

भैया- नाराज है अभी तक

मैं- क्या फर्क पड़ता है

भैया - समझता हूँ तेरी नाराजगी

मैं- रोकना नहीं चाहिए था मुझे

भाई-- रोकना जरुरी था

मैं- सूरजभान को तो मैं मौका लगते ही मार दूंगा.

भैया- ऐसा नहीं होने दूंगा मैं

मैं- पर क्यों, ऐसा क्या है जो मेरे भाई और मेरे बिच वो नीच आ गया है

भैया- तेरे मेरे बीच कोई नहीं आ सकता छोटे

मैं- तो फिर उस गलीच की इतनी फ़िक्र क्यों आपको

भैया- उसकी चिंता नहीं है . तेरी फ़िक्र है मैं नहीं चाहता तू इस दलदल में फंस जाये

मैं- किस दलदल में

भैया -छोटे, ये खून खराबा हमारे लिए नहीं है

मैं- और उसने जो किया क्या वो ठीक था

भैया- नियति बड़ी निराली होती है छोटे . तेरा दिमाग अभी गर्म है तू समझेगा नहीं पर मैं जानता हु तेरी क्या अहमियत है मेरे लिए . तू मेरी इतनी तो बात मान. इतना तो तुझ पर हक़ है न मेरा

मैं- ठीक है पर आपको भी मुझसे एक वादा करना होगा दुश्मनी मेरी और उसकी है हम दोनों के बेची ही रहे. किसी मजलूम को उसने सताया मुझसे दुश्मनी के चलते तो मैं नहीं सुनूंगा आपकी

भैया- ठीक है .

मैं- दूसरी बात . ऐसा क्या है उस में जो उसके लिए अपने छोटे भाई के सामने खड़े हो गए आप.

भैया -थोड़ी थकान है मैं नहा कर आता हूँ .

भैया ने टाल दी थी बात को पर मेरे मन में जो शंका का बीज था वो जल्दी ही पेड़ बनने वाला था . खैर, रात को मेरी नींद खुली तो मैंने देखा की पूरा बिस्तर गीला हुआ पड़ा था . क्या नींद में ही मूत दिया मिअने अपने आप से सवाल किया. सूंघ कर देखा मूत तो नहीं था . कपडे चिपचिपे हो रहे थे इतना पसीना तो पहले कभी नहीं आया था . दिसम्बर की ठण्ड में पसीना आना क्या ही कहे अब.

बिस्तर से उठ कर मैं गली में गया मूत रहा था की मेरी नजर ऊपर आसमान में चाँद पर पड़ी. अचानक से पैर लडखडा गए मेरे. गला सूखने लगा. मुझे निशा की बात याद आई की पूर्णिमा को काली मंदिर में ही रहना . बदन में अजीब सी खुजली दौड़ने लगी थी मैं अपने जिस्म को खरोंचने लगा.

बिन कुछ सोचे समझे मैं गाँव से बाहर की तरफ दौड़ पड़ा. तन जलने लगा था . जैसे किसी ने आग में झोंक दिया हो मुझे. आव देखा न ताव मैं उसी तालाब में कूद गया. सर्दी के मौसम में जमे हुए पानी ने मुझे अपने आगोश में पनाह दी पर चैन नहीं मिला. पानी भी जैसे मेरा गला घोंट रहा हो. साँस लेने में मुश्किल हो रही थी . जब बिलकुल जोर नहीं चला तो मैं मंदिर में घुस गया और उन काली दीवारों से लग कर खुद को सँभालने की कोशिश करने लगा. आँखे धुंधली होने लगी थी . दिल कर रहा था की जोर जोर से चीखू.

जैसे जैसे रात बढती गयी मेरी तकलीफ बढती गयी . अपने आप से जूझता रहा मैं और जब सुबह का पहर सुरु हुआ तो खांसते हुए मैं वही धरती पर गिर गया. जब आँख खुली तो सब कुछ शांत था मालूम नहीं कितना समय रहा होगा पर दिन था. धुधं ने चारो दिशाओ कोकाबू किया हुआ था . मैं उठा खुद को देखा बदन ठण्ड से कांप रहा था मेरे कपडे सीले थे .

कुवे पर आने के बाद मैंने दुसरे कपडे पहने और रजाई में घुस गया. सोचता रहा की रात को क्या हुआ था .

“कबीर कबीर है क्या यहाँ तू ” बाहर से चाची की आवाज आई

मैं- अन्दर हु चाची

चाची अन्दर आई और मुझे बिस्तर में घुसे हुए देख कर बोली- सुबह से गायब है . मुझे फ़िक्र हो रही थी और तू है की यहाँ आराम से पड़ा है . ले खाना खाले .

मैंने जैसे तैसे खाना खाया पर बदन कांप रहा था . चाची ने मेरे माथे पर हाथ रखा और बोली- तुझे तो बुखार है .

मैं-ठीक हो जायेगा.

चाची बर्तन लेकर बाहर जा रही थी तो मेरी निगाह चाची की मदमस्त गांड पर पड़ी . मन बेईमान हो गया.

मैं- किवाड़ लगा लो और आओ मेरे पास

चाची- दिन में नहीं कोई आ निकलेगा.

मैं- आओ तो सही , ये ठण्ड ऐसे ही उतरेगी.

वो कहते है न की आदमी किसी भी हालत में हो उसे इस चीज का चस्का हमेशा ही रहता है . मैंने भी चाची को बिस्तर में घसीट लिया और अपनी मनमानी कर ली सच कहू तो राहत भी मिली मुझे. आराम मिला तो बातो सा सिलसिला शुरू हुआ .

मैं- चाची, माँ के जाने के बाद पिताजी चाहते तो दूसरी शादी कर लेते

चाची- पर उन्होंने नहीं की

मैं- कैसे जिए होंगे वो अकेले. मैं तेरे बिना थोड़ी देर न रह पा रहा पिताजी की भी तो इच्छा होती होगी .

चाची- देख कबीर इच्छा तो सबकी होती ही है. राय साहब की जो हसियत है वो किसी भी औरत को जरा भी इशारा कर दे तो कोई भी अपनी खुशकिस्मती ही समझेगी. अब ज्यादातर तो वो बाहर ही रहते है बाहर कुछ कर लिया हो तो मैं कह नहीं सकती .

मैं- वैसे तुम कोशिश करती तो वो देखते जरुर तुम्हारी तरफ इतना मस्त जुगाड़ घर में है तो

चाची- जिस परिवार से हम आते है न वहां औरतो का सम्मान है

मैं- इतना ही सम्मान है तो अपनी बेटी की उम्र की चंपा को क्यों चोद दिया पिताजी ने ,



मेरी बात सुन कर चाची के चेहरे का रंग उड़ गया .

“क्या कहा तूने , ” चाची की आवाज लडखडा गयी ...........
 

Studxyz

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कहानी की हीरोइनी निशा डायन जी का रोल बहुत कम है मुख्य हीरोइन तो खेली खायी चाची व चम्पा है इस ओर ध्यान देना अत्यंत ही जरूरी है
 
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kamdev99008

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आधी दुनिया चुटिया है भाई एक कबीर से क्या फर्क़ पड़ता है
हमें फर्क पड़ता है फौजी भाई... कबीर के चूतिया बनने से

वैसे तो दुनिया में 90% से ज्यादा लोग चूतिया हैं लेकिन कहानियां उन 10% की होती हैं, जो चूतिया नहीं...जिनमें कहानी लिखने और कहानी पढ़ने वाले भी शामिल हैं :D
 
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