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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Naik

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#94

अन्दर के नज़ारे को देख कर मेरे साथ साथ सरला की भी आँखे फटी की फटी रह गयी.

“अयाशी खून में दौड़ती है ” मेरे कानो में नंदिनी भाभी की आवाज गूँज रही थी .

“ये तो .............. ” मैंने सरला के मुह पर हाथ रखा और उसे चुप रहने को कहा. जरा सी आवाज भी काम बिगाड़ सकती थी. अन्दर कमरे में बिस्तर पर रमा नंगी होकर राय साहब की गोद में बैठी थी , रमा के गले में सोने की चेन, कमर पर तगड़ी और हाथो में चुडिया थी,एक विधवा को सजा कर अपनी ख्वाहिश पूरी करने वाले थे राय साहब. बाप का ये रूप देख कर मियन समझ गया था की भाभी ने सच कहा था चंपा को भी चोदता है ये.



मैं और सरला आँखे फाड़े राय साहब और रमा की चुदाई देख रहे थे, तभी मेरी नजर मंगू पर पड़ी जो वही एक कोने में बैठा था . खुद चुदाई करना और किसी दुसरे को चुदाई करते हुए देखना अपने आप में अलग सी फीलिंग थी . पर मैं खिड़की से हटा नहीं , बेशर्मो की तरफ अपने बाप की रासलीला देखता रहा .

जब राय साहब का मन भर गया तो वो बिस्तर से उठे और रमा के हाथ में नोटों की गड्डी देकर वहां से चले गए. उनके जाते ही मंगू ने अपनी धोती खोली और रमा पर चढ़ गया . रमा ने जरा भी प्रतिकार नहीं किया मंगू का और मैं खिड़की से हट गया. ऊपर दिमाग में दर्द हो गया था निचे लंड में ,

आखिरकार सरला ने चुप्पी को तोडा.

सरला- कुंवर, ये तो मामला ही उल्टा हो गया .

मैं- तूने जो भी देखा ये बात बाहर नहीं जानी चाहिए.

सरला- भरोसा रखिये.

मैं- मंगू पिताजी के लिए काम कर रहा है , उसे तोडना जरुरी होगा .

सरला- मैं पूरी कोशिश करुँगी उस से बाते निकलवाने की

मैं- रमा को प्रकाश भी चोद रहा था पिताजी भी . कुछ तो गहराई की बात है .

मेरे दिमाग में अचानक से ही बहुत सवाल उभर आये थे पर सरला के सामने जाहिर नहीं करना चाहता था. पेड़ो के झुरमुट के पास बैठे हम दोनों अपने अपने दिमाग में सवालो का ताना बुन रहे थे .

मैं- तुझे घर छोड़ आता हूँ

सरला- घर कैसे जाउंगी, घर पर तो कह आई न की छोटी ठकुराइन के पास रुकुंगी आज.

मैं- कुवे पर चलते है फिर.

वहां पहुँचने के बाद , हम दोनों बिस्तर में घुस गए. बेशक मैं नहीं करना चाहता था पर ठण्ड की रात में सरला जैसी गदराई औरत मेरी रजाई में थी जो खुद भी चुदना चाहती थी . सरला ने अपना हाथ मेरे लंड पर रखा और उसे सहलाने लगी.

मैं- सो जा न

सरला- अब मौका मिला है तो कर लो न कुंवर.

मुझे चाचा पर गुस्सा आता था की भोसड़ी वाले ने इन औरतो में इतनी हवस भर दी थी की क्या ही कहे. खैर नजाकत तो ये ही थी . मैंने सरला के होंठ चूमने शुरू किये तो वो भी गीली होने लगी. जल्दी ही हम दोनों नंगे थे और मेरा लंड सरला के मुह में था . थूक से सनी जीभ को जब वो मेरे सुपाडे पर रगडती तो मैं ठण्ड को आने जिस्म में घुसने से रोक ही नहीं पाया.

उसके सर को अपने लंड पर दबाते हुए मैं पूरी तल्लीनता से इस अजीब सुख का आनंद उठा रहा था . सरला की ये बात मुझे बेहद पसंद थी की वो जब चुदती थी तो हद टूट कर चुदती थी .मेरे ऊपर चढ़ कर जब वो अपनी गांड को हिलाते हुए ऊपर निचे हो रही थी . मेरे सीने पर फिरते उसके हाथ उफ्फ्फ क्या गर्म अहसास दे रहे थे. सरला की आँखों की खुमारी बता रही थी की वो भी रमा और राय शाब की चुदाई देख कर पागल हो गयी थी.

उस रात मैंने और सरला ने दो बार एक दुसरे के जिस्मो की प्यास बुझाई. पर मेरे मन में एक सवाल घर जरुर कर गया था की अगर रमा को राय सहाब चोदते थे तो फिर जरुर वो कबिता और सरला को भी पेलते होंगे.

मैं- क्या राय साहब ने तुझे भी चोदा है भाभी

सरला- नहीं . मुझे तो आज ही मालूम हुआ की राय सहाब भी ऐसे शौक करते है .

राय साहब सीधा ही चले गए थे रमा को चोद कर कुछ बातचीत करते उस से तो शायद कुछ सुन लेता मैं.

मै- कल से तू पूरा ध्यान मंगू पर रख भाभी, उस से कैसे भी करके रमा और राय साहब के बीच ये सम्बन्ध कैसे बने उगलवा ले.

सरला- तुम्हारे लिए कुछ भी करुँगी कुंवर.

मैं- कहीं राय साहब और चाचा के बीच झगडा इस बात को लेकर तो नहीं था की चाचा को मालूम हो गया हो की उनकी प्रेमिकाओ का भोग पिताजी भी लगाना चाहते थे .

सरला- नहीं ये नहीं हो सकता , चूत के लिए दोनों भाई क्यों लड़ेंगे, और राय साहब का ये रूप सिर्फ मैंने और तुमने देखा है , ये मत भूलो की गाँव में और इलाके में राय साहब को कैसे पूजते है लोग. उनके दर से कोई खाली हाथ नहीं जाता. सबके सुख दुःख में शामिल होने वाले राय साहब की छवि बहुत महान है .

मैं- पर असली छवि तेरे सामने थी

सरला- अगर मैंने देखा नहीं होता तो मैं मानती ही नहीं इस बात को.

एक बात तो माननी थी की चाचा ने इन तीन औरतो को कुछ सोच कर ही पसंद किया होगा तीनो हद खूबसूरत थी, जिस्मो की संरचना ऐसी की चोदने वाले को पागल ही कर दे. कविता, रमा और सरला हुस्न का ऐसा नशा को चढ़े जो उतरे ना.

खैर, सुबह समय से ही हम लोग गाँव पहुँच गए. घर पर आने के बाद मैंने हाथ मुह धोये और देखा की भाभी रसोई में थी मैं वहीं पर पहुँच गया .

मैं- जरुरी बात करनी है

भाभी- हाँ

मैं- आपने सही कहा था पिताजी और चंपा के बारे में

भाभी- मुझे गलत बता कर मिलता भी क्या

मैं-समय आ गया है की अब आप बिना किसी लाग लपेट के इस घर का काला सच मुझे बताये.

भाभी- बताया तो सही की राय साहब और चंपा का रिश्ता अनितिक है

मैं- सिर्फ ये नहीं और भी बहुत कुछ बताना है आपको

भाभी- और क्या

मैं- मेरे शब्दों के लिए माफ़ी चाहूँगा भाभी , पर ये मुह से निकल कर ही रहेंगे.

भाभी देखने लगी मुझे.

मैं- जंगल में मैंने प्रकाश को एक औरत के साथ चुदाई करते हुए देखा. फिर अंजू मुझे मिली अपने कुवे वाले कमरे पर , अंजू ने कहा की वो ही थी परकाश के साथ , पर सच में उस रात रमा थी प्रकाश के साथ ,

चुदाई सुन कर भाभी के गाल लाल हो गए थे. मैंने उनको तमाम बात बताई की कैसे पिताजी कल रात रमा को चोद रहे थे फिर मंगू ने चोदा उसे.

मेरी बात सुनकर भाभी गहरी सोच में डूब गयी .

मैं - कुछ तो बोलो सरकार,

भाभी- सारी बाते एक तरफ पर अंजू और राय साहब के भी अनैतिक सम्बन्ध होंगे ये नहीं मान सकती मैं .

मैं- क्यों भाभी,

भाभी- क्योंकि................................
Rai sahab tow chupe rustam nikle pakadne gaye mangu or rama ko or saath rai sahab bhi mil gaye rama m lage hiwe sahi jaa rehe h
Ab dekhte bhabi kia bolne jaa rahi bahot khoob shaandaar lajawab update bhai
 

Naik

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#95

भाभी- क्योंकि अंजू इस दुनिया की सबसे खुशनसीब बहन है , उसके सर पर अभिमानु ठाकुर का हाथ है. अभिमानु ठाकुर वो नाम है जिसने इस घर को थाम कर रखा है . अंजू की ढाल है तुम्हारे भैया.

भाभी की बात ने हम दोनों के बीच एक गहरी ख़ामोशी पैदा कर दी. ऐसी ख़ामोशी जो चीख रही थी .

मैं- तो फिर भैया क्यों नहीं बताते मुझे अतीत के बारे में क्यों ढो रहे है अपने मन के बोझ को वो अकेले.

भाभी- क्योकि वो बड़े है , बड़ा भाई छोटो के लिए बाप समान होता है , जो काम बाप नहीं कर पाया वो अभिमानु कर रहे है . तुम्हे चाहे लाख शिकायते होंगी उनसे पर उन्होंने सबकी गलतिया माफ़ की है , तुमने उन्हें बस बड़े भाई के रूप में देखा है मैंने उन्हें एक साथी के रूप में जाना है वो साथी जो तनहा है , वो साथी जो हर रोज टूटता है और अगले दिन फिर इस परिवार के लिए उठ खड़ा होता है . क्या लगता है की उनको अपने बाप की हरकते मालूम नहीं है पर इस घर को घर बनाये रखने के लिए वो घुट गए अपने ही अन्दर. तुमको क्या लगता है की ये विद्रोही तेवर तुम्हारे अन्दर ही उबाल मार रहे है , अभिमानु ने बरसो पहले अपने इस उबाल को ठंडा कर दिया. तुम अक्सर पूछते हो न की तुम्हारे भैया की कोई इच्छा क्यों नहीं , क्यों उन्होंने अपनी तमाम इच्छाओ को छोड़ दिया. इस घर के लिए, रिश्तो की जिस डोर को तुम बेताब हो तोड़ने के लिए. उस डोर को अभिमानु ने अपने खून से सींचा है.



मैंने भाभी से फिर कुछ नहीं कहा रसोई से बाहर निकल गया. भाभी ने मेरे दिल पर ऐसा पत्थर रख दिया था जिसके बोझ से मैं धरती में धंसने लगा था . कम्बल ओढ़े मैं गहरी सोच में डूब गया था आखिर ऐसी क्या वजह थी की अंजू को अपनाया था अभिमानु भैया ने.

“कबीर चाय ” चंपा की आवाज ने मेरा ध्यान वापिस लाया.

उसने जैसे ही कप पास में रखा मैंने खींच कर एक थप्पड़ जड दिया उसके गाल पर. एक और फिर एक और .

“ऐसी क्या वजह थी जो राय साहब से गांड मरवानी पड़ी तुझे. ऐसा क्या चाहिए था तुझे , मैं था न यहाँ पर मुझसे एक बार कहा तो होता तूने. आज सारे जहाँ में रुसवा खड़ा हूँ मैं पर मुझे परवाह नहीं पर तू , मेरे बचपन की साथी तू , तूने छला मुझे . खुद से ज्यादा तुझ पर नाज था मुझे और तू ..... क्यों किया तूने ऐसा ” मेरे अन्दर का गुस्सा आज चंपा पर फट ही पड़ा.

चंपा- मैं बस इस घर के अहसानों की कीमत चुका रही थी . जो अहसान इस घर ने मुझे पालने के लिए किये उनकी छोटी सी कीमत है ये. जिस राय साहब की वजह से मैं आज मेरा परिवार सुख में है उस सुख की थोड़ी कीमत मैंने चुका दी तो क्या हुआ .



मैंने एक थप्पड़ और मारा उसके गाल पर .

मैं- किस अहसान की बात करती है तू . ये घर तुझ पर अहसान करेगा. तूने कही कैसे ये बात. इस घर की नौकरानी नहीं है तू, न कभी थी . तू इस घर में इसलिए नहीं है की तेरे माँ-बाप हमारे यहाँ काम करते है तू इस घर में है क्योंकि तू मेरी दोस्त है . जितना ये घर मेरा है उतना ही तेरा. और अपने ही घर में कैसा अहसान , इस घर की बेटी रही तू सदा. मेरे बाप ने तुझे कहा और तू मान गयी, मैं मर थोड़ी न गया था , तू क्यों नहीं आई मेरे पास .मुझ पर भरोसा तो किया होता पर तूने इतना हक़ दिया ही नहीं .



चंपा ने एक गहरी साँस ली और बोली- जितना था मैंने तुझे बता दिया .जीवन में कभी कभी कुछ समझौते करने पड़ते है तू आज नहीं समझेगा मेरी बात पर समझ जायेगा.

मैं- ये बहाने कमजोर है तू अगर न चाहती तो राय साहब की क्या मजाल थी जो तुझे हाथ भी लगा देते मैं देखता

चंपा-इसलिए ही तो नहीं कह पाई तुझसे. मेरी वजह से बाप-बेटे में तकरार होती ,मैं जानती हूँ तेरे गुस्से को इसलिए चुप रही .

मैं- फिर भी क्या तू छिपा पाई मुझसे. और मंगू इस बहनचोद ने अपनी ही बहन पर हाथ साफ़ कर दिया. साले दोस्ती के नाम पर तुम कलंक मिले हो मुझ को . दिल तो करता है तुम दोनों का वो हाल करू की याद रखो तुम सारी उम्र.

चंपा- मंगू को देनी पड़ी राय साहब की वजह से , राय साहब ने मुझसे खुद कहा था की मंगू से भी कर ले. और वो नीच , उसने एक पल भी न सोचा की कैसे चढ़ रहा है अपनी बहन पर . जब वो गिर गया तो मैं तो पहले से ही गिरी हुई थी . तू भी कर ले अपने मन की, तेरी नाराजगी भी मंजूर मुझे. कबीर मेरा दिल जानता है उस दिल में तेरे लिए कितनी जगह है.

मैं- दूर हो जा मेरी नजरो से . कबीर मर गया तेरे लिए आज इसी पल से.

शाम को मैं मलिकपुर गया रमा से मिलने के लिए पर एक बार फिर ताला लगा था उसकी दुकान और कमरे पर . हरामजादी न जाने कहाँ गायब थी. मैंने सोच लिया था की रमा की खाल उतार कर ही अपने सवालो के जवाब मांगूंगा अब तो. मलिकपुर से लौटते समय मेरे दिमाग में वो बात आई जो इस टेंशन में भूल सी गयी थी .

रात होते होते मैं सुनैना की समाधी पर था. अंजू ने कहा था की उसने सोने को अंतिम बार यही पर देखा था . मैंने समाधी पर अपना शीश नवा कर माफ़ी मांगी और समाधी को तोड़ दिया. खोदने लगा निचे और करीब ६-7 फीट खुदाई के बाद मेरी आँखों के सामने जो आया. मैं वही पर बैठ गया अपना सर पकड़ कर. इस चक्रव्यू ने निचोड़ ही लिया था मुझे................ मेरे सामने, मेरे सामने...............................
Kabir ka gussa aaj champa per toot pada champa rai sahab k ahsan ka badla apni abru deker chukai
Tow bhai sahab n khod dala sunaina ki qabr
Dekhte h kia samne aaya
Shaandaar lajawab update bhai
 

Naik

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धरती की गहराई में मेरे सामने एक बेहद पुराना गड्ढा था जो ईंटो से बनवाया गया था मेहराबदार जैसे की छोटा कुवा हो. उसकी गहराई तो मैं नहीं जानता था पर इतना जरुर था की वो चाहे जितना गहरा हो . उसमे जो सामान था उसकी कीमत बहुत थी . वो गड्ढा ऊपर तक सिर्फ और सिर्फ सोने से भरा था .मैंने अनुमान लगाया यदि ये गड्ढा पांच-छ फूट गहरा भी हुआ तो भी हद, मतलब हद से जायदा सोना था यहाँ पर .



मेरा दिमाग और घूम गया . जंगल में जगह जगह सोना बिखरा हुआ था और दुनिया बहन की लौड़ी चूत के चक्कर में जंगल नाप रही थी . उस दिन मैंने जाना की सबसे बड़ा लालच इस दुनिया में चूत का ही है . बाकी सब उसके बाद . यहाँ पड़े सोने ने अंजू की बात की तस्दीक कर दी थी . पर मेरे सामने एक ऐसा यक्ष प्रशन खड़ा हो गया था की क्या पाने में पड़ा सोना इसका ही हिस्सा था या फिर दो अलग अलग खजाने थे .



मैंने गड्ढे को बंद किया और सुनैना की समाधी के टुकडो पर अपना सर रख कर इस कार्य के लिए माफ़ी मांगी .

“जब यहाँ तक आ ही पहुंचे तो फिर रुक क्यों गए . सोना सामने है ले क्यों नहीं जाते. ”

मैंने पलट कर देखा , राय सहाब खड़े थे.

मैं- ये सोना दुर्भाग्य है , अगर ये शुभ होता तो मुझसे पहले ही कई दावेदार थे न इसके, सुनैना की समाधी के लिए मैं शर्मिंदा हूँ , बाकि ये सोना न पहले मेरा था न आज है जिसका है वो ले जाये .

मैंने राय साहब की आँखों में आँखे मिला कर कहा.

पिताजी- अगर तुम्हे इसकी चाह नहीं तो फिर क्या चाहते हो तुम

मैं- जो मैं चाहता हूँ जल्दी ही ये सारा जमाना जान जायेगा. पर आज अभी इसकी वक्त मैं राय साहब ने जो मुखोटा ओढा हुआ है उस नकाब के पीछे क्या है वो जरुर जानना चाहूँगा.

पिताजी- लफ्जों पर लगाम लगाओ बरखुरदार

मैं- आपने रिश्तो को तार तार कर दिया , हमारे लफ्जों पर भी काबू ये तो नाइंसाफी है राय साहब.

पिताजी- हमारा बेटा हमारी ही आँखों में आँखे डाल कर खड़ा है , जिसके आगे दुनिया झुकती है तुम उस से आँखे मिला रहे हो.

मैं- दुनिया कहाँ जानती है की गरीबो का मसीहा , गरीबो की इज्जत अपने बिस्तर पर लूट रहा है . चंपा के साथ आपने जो भी किया न , मैं कभी नहीं भूलूंगा. आप जानते थे चंपा क्या है मेरे लिए इस घर में केवल दो बेटे ही नहीं थे ,एक बेटी भी थी जिसका नाम चंपा था और उसी बेटी के साथ आपने जो किया न मुझे शर्म है की मैं इस घटिया आदमी का खून हूँ .



“घर में चंपा, बाहर रमा और न जाने कितनी उसके जैसी औरतो ने आपके बिस्तर की शोभा बढाई होगी. जिस चाचा को आपने ये सब करने से रोका था आप भी उसके ही नक़्शे कदम पर चल निकले क्या फर्क रह गया . अरे मैं भी फर्क कैसे होगा, खून तो शुरू से ही गन्दा रहा है हमारा ” मैंने कहा .

राय साहब खामोश खड़े रहे .

मैं- ये ख़ामोशी कमजोरी की निशानी है राय साहब . मैं नहीं जानता आप किस रिश्ते को थाम रहे है किसको छोड़ रहे है पर मैं इतना जानता हूँ किसी भी रिश्ते को आपने इमानदारी से नहीं निभाया . सुनैना से लेकर रमा तक सबको आपने छला है . जो इन्सान खुद राते काली रहा है वो पंचायत में लाली को फांसी की सजा देता है , धूर्तता का चरम इस से ज्यादा क्या होगा.

पिताजी- उस पंचायत में ही हमने तुम्हारे अन्दर के विद्रोह को देख लिया था .हम जान गए थे की आने वाला वक्त मुश्किलों से भरा होगा. हम जो भी कर रहे है , हमने जो भी क्या उसके पूर्ण जिम्मेदार हम है सिर्फ हम और हमें नहीं लगता की हमें तुम्हे या किसी और को सफाई देने की जरूरत है .

मैं- सफाई नहीं मांग रहा मैं, बता रहा हूँ आपको की यदि आज के बाद मुझे भनक भी लगी न की आपने चंपा की तरफ नजर भी उठाई तो मेरा यकीं मानिए वो नजर, नजर नहीं रहेगी फिर.

पिताजी- अपनी औकात मत भूलो कबीर,

पिताजी जैसे दहाड़ उठे.

मैं- ये खोखला रुतबा मैं नहीं डरता इस से. मेरे शब्द अपने कानो में घोल लीजिये . वो दिन कभी नहीं आना चाहिए की मुझे अपने बाप का प्रतिकार करना पड़े.

“कबीर,,,, ” पिताजी ने अपना हाथ उठा लिया गुस्से से पर मारा नहीं मुझे , हल्का सा धक्का दिया और फिर वापिस मुड गए. मैं जान गया था की चोट गहरी लगी है बाप को . पर मैं कितना टालता इस दिन को ये आना ही था .

वहां से आने के बाद मैं सीधा रमा के पुराने घर गया पर वहां भी कोई नहीं था . मैं अन्दर गया . सब कुछ वैसा ही था . अलमारी में मुझे सोने के वो गहने मिले जो कल रात वो पहने हुई थी, पास में ही नोटों की गड्डी पड़ी थी. ये साला हो क्या रहा था इस गाँव में बहनचोद किसी को भी सोने से लगाव नहीं था . और जब जमीन , पैसे, गहनों का लालच न हो तो कारन सिर्फ एक ही हो सकता था नफरत या फिर मोहब्बत.

घर गया तो देखा की पुजारी आया हुआ था . मैंने उसे नमस्ते की और उसके पास बैठ गया .

भैया-भाभी-चाची सब कोई बैठे थे.मैं सोच रहा था की ये रात को क्यों आया था . मालूम हुआ की पुजारी फेरो में लगने वाला सामान लिखवाने आया था . तमाम चुतियापे के बीच मैं भूल ही गया था की ब्याह सर पर है . थोड़ी देर बाद पुजारी चला गया भैया ने मुझसे कहा की दो पेग लेगा पर मैंने मना किया .

“इतनी गहराई से क्या सोच रहे हो ” भाभी ने मेरे हाथ में खाने को कुछ दिया और मेरे पास ही बैठ गयी.

मैं- सोच रहा हूँ की इतने मेहमान आयेंगे शादी में , एक मेहमान मैं भी बुला लू क्या.

भाभी- वो नहीं आएगी

मैं- आप आज्ञा दे तो मैं ले आऊंगा उसे

भाभी- ठीक है , आती है तो ले आ. पर सिर्फ मेहमान की हसियत से. पर दुनिया से क्या कहोगे किस हक़ से लाओगे उसे यहाँ पर .

मैं- आप पूछ रही है ये. उसका हक़ नहीं तो फिर किसका हक़ . वो नहीं तो फिर और कौन . मैं आप से पूछता हूँ, आप हसियत की बात करती है उसे आने के लिए किसी हक़ की क्या जरुरत. वो जिन्दगी है मेरी .

भाभी ने अपना सर मेरे काँधे पर टिकाया और बोली- ले आना उसे, मेरी तरफ से न्योता देना उसे.

मेरी नजर आसमान में धुंध से आँख-मिचोली खेलते चाँद पर गयी. सीने में न जाने क्यों बेचैनी से बढ़ गयी....................
Yeh gaon lagta h ager khodayi ki jaye tow sone ka ambaar lag jayega jaha dekho sona talab m sona khanher k kamre m sona or ab sunaina ki kabr m bhi sona tow ho sakta h kabir k ghait m jo kunwa h waha bhi kuch aisa hi hoga
Baherhal rai ko apne hi beta se unki karastani sunne ko mili ki woh kia gul khila rehe h
Bhabi n izazat de di h Nisha ko bulaneki Champa ki shadi m
Dekhte h kia hota h aage
Shaandaar lajawab update bhai
 

Naik

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भाभी- कितना चाहते हो उसे.

मैं- जितना तुम भैया को.

भाभी ने मेरे हाथ को अपने हाथ में लिया और बोली- निभा पाओगे उस से. उम्र के जिस दौर से तुम गुजर रहे हो कल को तुम्हारा मन बदल गया तो. मोहब्बत करना अलग बात है कबीर और मोहब्बत को निभाना अलग. तुम जिसे मंजिल समझ रहे हो वो ऐसा रास्ता है जिस पर जिन्दगी भर बस चलते ही रहना होगा. कभी सोचा है की किया होगा जब तुम्हारे भैया को मालूम होगा, जब राय साहब को मालूम होगा.

मैं- भैया को मैं मना लूँगा, और राय साहब को मैं कुछ समझता नहीं

भाभी- अच्छा जी , इतने तेवर बढ़ गए है , डाकन का ऐसा रंग चढ़ा है क्या.

मैं- जो है अब वो ही है .

भाभी- पुजारी से पूछा था मैंने कहता है कोई योग नहीं

मैं- उसके हाथो की लकीरों में मेरा नाम लिखा है , और कितना योग चाहिए पुजारी को .

भाभी- पर मेरा दिल नहीं मानता

मैं- दिल को मना लेंगे भाभी ,

“दिल ही तो नहीं मानता देवर जी ” भाभी ने अपनी गर्म सांसे मेरे गालो पर छोड़ते हुए कहा

मैं- भूख लगी है , कुछ दे दो खाने को .

भाभी- भैया को बुला लाओ मैं परोसती हूँ.

भाभी रसोई की तरफ बढ़ गयी मैं ऊपर चल दिया भैया के कमरे की तरफ. देखा भैया कुर्सी पर बैठे थे.

मैं- खाना नहीं खाना क्या

भैया- आ बैठ मेरे पास जरा

मैं वही कालीन पर बैठ गया .

मैं- क्या आप को मालूम है की सुनैना अंजू के लिए कितना सोना छोड़ कर गयी है .

भैया- क्या तू जानता है की मेरा छोटा भाई, जिसके कदमो में मैं दुनिया को रख दू, वो खेतो पर पसीना क्यों बहाता है .

मैं- क्योंकि मेरे पसीने की रोटी खा कर मुझे सकून मिलता है . मेरी मेहनत मुझे अहसास करवाती है की मैं एक आम आदमी हूँ , ये पसीना मुझे बताता है की मेरे पास वो है जो दुनिया में बहुत लोगो के पास नहीं है .

भैया- अंजू समझती है की वो सोना उसका नहीं है , वो जानती है की वो सोना अंजू को कभी नहीं फलेगा.

मैं-तो उस सोने की क्या नियति है फिर.

भैया- माटी है वो समझदारो के लिए और माटी का मोल मेरे भाई से ज्यादा कौन जाने है

मैं- दो बाते कहते हो भैया

भैया- सुन छोटे, कल से तू ज्यादा समय घर पर ही देना, ब्याह में कोई कसर नहीं रहनी चाहिए .बरसों बाद हम कोई कारण कर रहे है .

मैं- जो आप कहे, पर मैं कुछ कहना चाहता हूँ

भैया- हा,

मैं- ब्याह की रात पूनम की रात है

मैंने जान कर के बात अधूरी छोड़ दी.

भैया - तू उसकी चिंता मत कर , तेरा भाई अभी है . चल खाना खाते है भूख बहुत लगी है .

हम दोनों निचे आ गए. खाना खाते समय मैंने महसूस किया की भैया के मन में द्वंद है , शायद वो मेरी बात की वजह से थोड़े परेशान हो गए थे. मैं भी समझता था इस बात को . उस रात परेशानी होनी ही थी मुझको . पर मैंने सोच लिया था की मैं दिन भर रहूँगा और रात को खेतो पर चला जाऊंगा, यही एकमात्र उपाय था मेरे पास.

खाना खाने के बाद मैं चाची के पास आ गया . मैंने बिस्तर लगाया और रजाई में घुस गया . थोड़ी देर बाद चाची भी आ गयी . और मेरे सीने पर सर रख कर लेट गयी .

चाची - क्या सोच रहा है कबीर

मैं- राय साहब के कमरे में कोई औरत आती है रात को उसी के बारे में की कौन हो सकती है

चाची- शर्म कर , क्या बोल रहा है तू अपने पिता के बारे में

मैं - पिता है तो क्या उसे चूत की जरूरत नहीं

चाची- कुछ भी बोलेगा तू

मैं- मैंने देखा है पिताजी को उस औरत को चोदते हुए

चाची- बता फिर कौन है वो

मैं- चेहरा नहीं देख पाया.

मैंने झूठ बोला.

चाची- घर में इतना कुछ हो रहा है और मुझे मालूम नहीं

मैं- पता नहीं तेरा ध्यान किधर रहता है.

मैंने चाची का हाथ पकड़ा और निचे ले जाकर अपने लंड पर रख दिया.चाची ने मेरे पायजामे में हाथ डाल दिया और अपने खिलोने से खेलने लगी. मैंने चाची के चेहरे को अपनी तरफ किया और उसके होंठ चूसने लगा. आज की रात चाची की ही लेने वाला था मैं पर नसीब देखिये, बाहर से दरवाजा पीटा जाने लगा ये भाभी थी जो रंग में भंग डालने आ पहुंची थी .

हम अलग हुए और चाची ने दरवाजा खोला भाभी अन्दर आई और बोली- चाची , अभिमानु कही बाहर गए है मैं आपके पास ही सोने वाली हूँ. मैंने मन ही मन भाभी को कुछ कुछ कहा .मैं बिस्तर से उठा और बाहर जाने लगा.

भाभी- तुम कहाँ चले

मैं- कुवे पर ही सो जाऊंगा. वैसे भी अब इधर नींद कम ही आती है मुझे.

मैंने कम्बल ओढा और बाहर निकल गया चूत से ज्यादा मैं ये जानना चाहता था की भैया रात में कहा गए. मैंने एक नजर बाप के कमरे पर डाली जिसमे अँधेरा छाया हुआ था , सवाल ये भी था की बाप चुतिया कहा रहता था रातो को .

सोचते सोचते मैं पैदल ही खेतो की तरफ जा रहा था . पैर कुवे की तरफ मुड गए थे पर थोडा आगे जाकर मैंने रास्ता बदल दिया मैंने खंडहर पर जाने का सोचा. हवा की वजह से ठण्ड और तेज लगने लगी थी . मैंने कम्बल कस कर ओढा और आगे बढ़ा. थोडा और आगे जंगल में घुसने पर मुझे कुछ आवाजे आई. आवाज एक औरत और आदमी की थी . इस जंगल में इतना कुछ देख लिया था की अब ये सब हैरान नहीं करता था.

झाड़ियो की ओट लिए मैं उस तरफ और बढ़ा. आवाजे अब मैं आराम से सुन पा रहा था .

“मुझे जो चाहिए मैं लेकर ही मानूंगा, तुम लाख कोशिश कर लो रोक नहीं पाओगी मुझे ”

“मुझे रोकने की जरुरत नहीं तुमको, तुम्हारे कर्म ही तुमको रोकेंगे. ” औरत ने कहा

इस आवाज को मैंने तुरंत पहचान लिया ये अंजू थी पर दूसरा कौन था ये समझ नहीं आया फिर भी मैंने कान लगाये रखे.

“तुम कर्मो की बात करती हो , हमारे खानदान की होकर भी तुमने एक नौकर का बिस्तर गर्म किया , घिन्न आती है तुम पर मुझे ”

“जुबान संभाल कर सूरज , ” अंजू ने कहा.

तो दूसरी तरफ सूरजभान था जो अपनी बहन से लड़ रहा था .

सूरजभान- शुक्र करो काबू रखा है खुद पर वर्ना न जाने क्या कर बैठता

अंजू- क्या करेगा तू मारेगा मुझे, है हिम्मत तुजमे तू मारेगा मुझे. आ न फिर किसने रोका है तुझे .

सूरज- मारना होता तो कब का मार देता पर तुम्हारे गंदे खून से मैं अपने हाथ क्यों ख़राब करू.

अंजू- मेरा सब्र टूट रहा है सूरज. मुझे मजबूर मत कर की मैं भूल जाऊ की तू मेरा भाई है .

सूरज- तुम हमारी बहन नहीं हो. कभी नहीं थी तुम हमारी, तुम बस हमारे बाप की वो गलती हो जिसे हम छिपा नहीं सकते.

तड़क थप्पड़ की आवाज ने बता दिया था की सूरजभान का गाल लाल हो गया होगा.

अंजू- तेरी तमाम गुस्ताखियों को आज तक मैंने माफ़ किया, पर आज इसी पल से तेरा मेरा रिश्ता ख़तम करती हूँ मैं. और मेरा वादा है तुझसे, अगर मेरा शक सही हुआ तो तेरी जिन्दगी के थोड़े ही दिन बाकी रह गए है. दुआ करना की तू शामिल ना हो मेरे दर्द में .


कुछ देर ख़ामोशी छाई रही और फिर मैंने गाड़ी चालू होते देखि . मैं तुरंत झाड़ियो में अन्दर को हो गया की कही रौशनी में मुझे न देख लिया जाए. कुछ देर मैं खामोश खड़ा सोचता रहा की अंजू के सामने जाऊ या नहीं .
Bhabi n kabir chachi k rang m bhang ker dia
Tow anju ko shak h ki usne parkash ko mara h isliye dono m bahes ho rahi thi
Baherhal dekhte h aage kia hota h
Shaandaar lajawab update bhai
 

Naik

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#98

दो सवाल अंजू यहाँ क्या कर रही थी , और भैया रात को कहाँ गए थे. घूमते घूमते मैं मलिकपुर पहुँच गया , रमा की दूकान पर कुछ लोग थे. मैं अन्दर गया तो रमा मुझे मिल गयी .

मैं- कब से ढूंढ रहा हूँ और तुम हो की कहा गायब हो गयी थी , तुमसे जरुरी बात करनी थी .

रमा- अन्दर चलो मैं आती हूँ

कुछ देर बाद वो आई.

रमा- क्या बात थी

मैं- पिताजी और तुम्हारे बीच कब से ये सब चल रहा है

रमा- कुछ नहीं है हमारे बीच, कभी कभी वो बुलाते है मुझे . कभी अपनी मनमानी करते है कभी नहीं पर एक सवाल जरुर पूछते है

मैं- कैसा सवाल

रमा- यही की ठाकुर जरनैल मेरे पास आये क्या .

मैं- और क्या जवाब होता है तुम्हारा

रमा- यही की मैंने बरसो से उनको नहीं देखा.

मैं- मैंने मंगू के साथ भी देखा तुमको

रमा- राय साहब का कुत्ता है वो , हमारे जिस्मो की कुछ बोटिया कुत्तो को भी डाल देते है राय साहब ताकि हमें हमेशा याद रहे हमारी औकात.

मैं- उस रात जंगल में प्रकाश के साथ तुम चुदाई कर रही थी . तुम दोनों मिल कर चुतिया बना रहे थे मुझे

रमा- मेरी ऐसी मंशा नहीं थी न ही कभी प्रकाश ने मुझसे कुछ कहा तुम्हारे बारे में . वो बस आता चोदता और चले जाता.

मैं- बस इतना ही

रमा- हां, इतना ही .

मैं- देख रमा, मैंने तुझे वैध से चुदते देखा, फिर परकाश से फिर पिताजी और मंगू से, चाचा पहले से ही पेलता था तुझे. मैं नहीं जानता इस खेल में कौन गलत है कौन सही, मैं नहीं जानता तेरे मन में क्या चल रहा है तू चाहे दुनिया में आग लगा दे परवाह नहीं पर इतना ध्यान रखना तेरी खुराफात में किसी मजलूम का नुकसान न हो . तेरी चूत तू किसी को भी दे तू जाने.

रमा- क्या जानना चाहते हो मुझसे कुंवर.

मैं- चाचा कहाँ है ये जानना चाहता हूँ मैं

रमा- बस यही नहीं जानती मैं

मैं- रुडा और चाचा की लड़ाई हुई थी क्या रुडा का हाथ हो सकता है इसमें

रमा- मुझे नहीं लगता. रुडा बेशक घटिया है पर इतना नहीं गिरेगा वो .

मैं- परकाश को किसने मारा होगा.

रमा- चर्चा तो ये है की सूरजभान ने मारा है

मैं- किसने कहा ऐसा.

रमा- कहने को कौन आएगा उडती उडती खबर है .

मैं- पर सूरजभान तो साथ रहता था प्रकाश के फिर क्यों मारेगा उसे.

रमा-पिछले कुछ समय से अंजू और सूरजभान की तल्खी बहुत बढ़ गयी है . सूरज को लगता है की प्रकाश अंजू को चोदता है , कोई उसके घर की लड़की पर हाथ डाले ये उसे गवारा नहीं था शायद इसलिए ही .

मैं- पर अंजू तो उनके साथ रहती तो नहीं

रमा- साथ नहीं रहती पर है तो उनके परिवार की ही , है तो उसकी बहन ही.

मैं- चाचा को सबसे प्यारी तू थी , कभी चाचा ने तुझे कुछ ऐसा बताया जो तुझे खटका हो .

रमा- ऐसा तो कुछ खास नहीं था . पर वो कभी कभी कहते थे की राय साहब उनसे स्नेह नहीं करते थे .

मैं- और

रमा- छोटे ठाकुर का दिल उस घर में नहीं लगता था वो जायदातर समय जंगल में ही रहना पसंद करते थे .

मैं- जंगल में कहा था ठिकाना तुम लोगो के मिलने का.

रमा- ज्यादातर तो खेतो पर बने कमरे में ही मिलते थे या फिर छोटे ठाकुर की गाडी में .

चाचा भी गाडी रखते थे , ये तो मुझे मालूम ही था क्योंकि मैंने कभी भी चाचा की गाड़ी नहीं देखि थी .

मैं- चाचा की गाडी

रमा- हाँ,

मैं- तो अब कहा है वो गाडी

रमा- मालूम नहीं , जब से छोटे ठाकुर गए है गाड़ी देखि नहीं मैंने,शायद वो साथ ही ले गए हो.

मैं- इतने लोग से चुदने का क्या कारन है , चूत देकर क्या पाना चाहती है तू .

रमा- नहीं जानती .

मैं- जानता हु अब वापिस लौटना मुश्किल है पर फिर भी कोशिश तो कर ही सकती है न , अगली बार जब राय साहब तेरे पास आये तो तू मना करना कहना की कबीर ने कहा है .

रमा- राय साहब के खिलाफ जाओगे कुंवर.

मैं- वो मेरी समस्या है . क्या इतना मालूम कर सकती है की जिस दिन चाचा यहाँ से गया आखिरी बार वो किसके साथ था , किस से मिला था . कोई लेन देन कुछ तो ऐसा बताया होगा तुझे चाचा ने जो उस समय अजीब नहीं लगा हो पर आज उसका महत्त्व हो.

रमा- ऐसा तो कुछ खास नहीं है , छोटे ठाकुर बात बहुत कम करने लगे थे जब वो मिलने को बुलाते थे तो बस चुदाई की और हमारे लिए जो भी तोहफे लाते थे देकर चले जाते थे . कभी मैं पूछती तो टाल देते थे पर शायद अपने मन में कुछ तो छिपा रहे थे वो.

मैं- ऐसी कौन सी जगह थी जहाँ पर वो सबसे जायदा जाते थे मतलब जब वो चुदाई नहीं कर रहे होते थे तब.

रमा-नहीं मालूम पर वो हमें गहने देते थे तो कहते थे की ये बहुत बढ़िया कारीगर से बनवाये है .

मैं- कौन था वो कारीगर

रमा- यही, अपने सुनार और कौन. मुझे याद है एक बार उन्होंने कहा था की वो छोटी ठकुरानी के लिए कुछ विशेष गहने बनवा रहे थे.

“सुनार , ह्म्म्म ” मैंने कहा और वहां से चल दिया. अचानक से मुझे उन गहनों में उत्सुकता जाग गयी थी जो चाचा ने चाची के लिए बनवाये थे . मुझे वो गहने देखने थे और साथ ही मालूम करना था की चाचा की गाडी कहाँ गयी.

वापसी में मुझे अंजू फिर मिली, तनहा रात में आग जलाये सडक किनारे बैठी थी वो . इतनी रात को ये बहन की लोडी क्या करती है जंगल में मैं सोच कर ही पगला जा रहा था.

मैं- इतनी रात को यु अकेले जंगल में भटकना ठीक नहीं

अंजू- ये बात तुम पर भी लागू होती है

मैं- मैं तो अपने काम से गया था

अंजू- मुझे भी कोई काम हो सकता है न

मै आंच के पास बैठ गया और हाथ सेंकने लगा.

अंजू- क्या चाहते हो तुम इस जंगल से

मैं- अपने कुछ सवालो के जवाब

अंजू- क्या है सवाल तुम्हारे.

मैं- यही की ये जंगल क्या छिपा रहा है मुझसे

अंजू- मौत छिपी है यहाँ पर ,

मैं- कैसी मौत किसकी मौत

अंजू- मेरी मौत तुम्हारी मौत . हम सब की मौत. यहाँ जो ख़ामोशी है वो चीखो से दबी है , जंगल का कोना कोना रक्तरंजित है

मैं- किसका रक्त


अंजू- न तुम्हारा, न मेरा . अरमानो का रक्त, जज्बातों का रक्त, ..................
Bahot behtareen
Shaandaar update bhai
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Wating bhai ji ...

Or ye rupali wali story konsi hai bhai
गुजारिश 1

किसी कारणवश अभी तक अधूरी ही है।
 

LuckyKumar

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Ab to pata hi nahi chalta ki kaun galat hai kaun sahi .
Sayad sabhi galat hai kuch thode jyada aur kuch thode Kam .
Bhaiya ka character aapne behad shaandaar banaya hai bas usme negative shades na aaye isi ki ummid kar sakta hoon .
Baaki to ye kahani har dam shock hi deti rahti hai dekhte hai aage kya hota hai .
Jaldi hi kuch raaj khulenge saayad tab pata chalega kuch iss kahani ka hissa .
Intajar aage ke updates ka
 
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