इसमें कोई शक नहीं की निशा एक बड़े ठाकुरों के घर की हो, भले ही नाजायज हो
निशा का मलिकपुर और रूढ़ा से जरूर कोई संबंध होगा,
इस बार भी कबीर कुछ खुल कर नहीं पूछा,
मतलब कबीर को एक बार भी आश्चर्य नहीं हुआ की भाभी और निशा एकदूसरे को पहले से जानती है,
इतना तो पूछता जब एकदूसरे को पहले से जानती थी तो मंदिर में जब मिली थी तो अंजान बनने का नाटक क्यों कर रही थी
खैर जब जब कबीर को देख कर लगता है की इस से ज्यादा मूर्ख और कोई नही हो सकता, कबीर अपनी मूर्खता दिखा कर उस level पार करके मुझे गलत साबित कर देता है
Bc कोई tension ही नहीं है की आदमखोर कौन है, खुद आदमखोर बन गया तो, सोना किसका है, परकाश, वैध, कविता को किसने मारा है ,चाचा कहा गया है
बस चाची मिल गई सरला मिल गई चोदने के लिए जगह मिल गया अब घंटा फर्क पड़ता क्या होगा क्या नहीं होगा
अभी तक पढ़ कर मैं ये मान सकता हु की ये निशा कबीर की प्रेम कहानी है, मैं ये भी मान सकता हूं की निशा इसकी हीरोइन है लेकिन ये बिल्कुल नही मान सकता की कबीर इसका हीरो है
एक भी ऐसा quality नहीं दिखता कबीर जो उसके नायक के छवि को मजबूत करे
कबीर का कैरेक्टर से बहुत ज्यादा disappointment होता है