#112
मैंने निशा को साथ लिया और हम लोग उस जगह पर आ गए जहाँ पर पिताजी मुझे लेकर आये थे. समाधी अभी भी वैसी ही थी जैसा मैं उसे छोड़ कर गया था .
मैं- अगर वो सुनैना की समाधी थी तो ये किसकी समाधी है
निशा- मैं क्या जानू , पर इतना जानती हूँ की सुनैना की समाधी वहां है जहां मैं तुझे लेकर गयी थी चाहे तो तस्दीक कर ले.
मैं- मानता हु तेरी बात तो फिर राय साहब ने झूठ क्यों कहा. क्या छिपा रहे थे वो.
निशा- अब आये है तो ये भी तलाश लेते है , जंगल बड़ा रहस्यमई है , इसकी ख़ामोशी में चीखे है लोगो की . देखते है यहाँ की क्या कहानी है. उम्मीद है ये रात दिलचस्प होगी.
मैंने मुस्कुरा कर देखा उसे. अपनी जुल्फों को चेहरे से हटाते हुए वो भी मुस्कुराई और टूटी समाधी को देखने लगी.
निशा- यहाँ भी धन पड़ा है
मैं- यही तो समझ नही आ रहा की ऐसा कौन हो गया जो खुले आम अपने धन को फेंक गया. अजीब होगा वो सक्श जिसे दुनिया की सबसे मूल्यवान धातु का मोह नहीं.
पता नहीं निशा ने मेरी बात सुनी या नहीं सुनी वो उन दो कमरों की तरफ बढ़ गयी थी . पत्थर उठा कर बिना किसी फ़िक्र के उसने बड़े आराम से दोनों कमरों के ताले तोड़ दिए. उसके पीछे पीछे मैं भी अन्दर आया. कमरे बस कमरे थे , कुछ खास नहीं था वहां . एक कमरा बिलकुल खाली था , दुसरे में एक पलंग था जिसकी चादर बहुत समय से बदली नहीं गयी थी . मैंने निशा को देखा जो गहरी सोच में डूब गयी थी .
मैं- क्या सोच रही है
निशा- इस जगह को समझने की कोशिश कर रही हूँ. इन कमरों का तो नहीं पता पर जहाँ तक मैं समझी हूँ तेरे कुवे और मेरे खंडहर से लगभग समान दुरी है यहाँ की . इस सोने को देखती हूँ , तालाब में पड़े सोने को देखती हूँ तो सोचती हूँ की कोई तो ऐसा होगा जो इन तीनो जगह को बराबर समझता होगा. पर यहाँ लोग आते है खंडहर पर कोई आता नहीं
निशा कुछ कह रही थी मेरे दिमाग में कुछ और चल रहा था .इस जगह से बड़ी आसानी से कुवे पर और निशा के खंडहर पहुंचा जा सकता था तो इस जगह का इस्तेमाल चुदाई के लिए भी सकता था . खंडहर का कमरे में चुदाई हो सकती थी तो यहाँ भी हो सकती थी, और अगर मामला चुदाई का था तो चाचा वो आदमी हो सकता था जो दोनों जगह के बारे में जानता होगा
मैं- ठाकुर जरनैल सिंह वो आदमी हो सकता है निशा जिसका सम्बन्ध तीनो जगह कुवे, यहाँ और खंडहर से हो सकता है. वसीयत का चौथा पन्ना हो न हो चाचा के बारे में ही है. और अगर चाचा तीनो जगह इस्तेमाल करता था तो पिताजी भी करते होंगे क्योंकि आजकल वो भी चाचा की राह पर ही चल दिए है , दोनों भाइयो के बीच झगडा किसी औरत के लिए ही हुआ होगा.
निशा- क्या लगता है तुझे रमा हो सकती है वो औरत .
मैं- चाचा के जीवन म तीन प्रेयसी थी , कविता, सरला और रमा. सबसे जायदा सम्भावना रमा की है . कविता हो न हो उस रात चाचा से मिलने ही आई होगी , पर बदकिस्मती से उसकी हत्या हो गयी.
निशा- पर ठाकुर जरनैल कहाँ है और छिपा है तो क्यों , किसलिए
मैं- कहीं चाचा तो आदमखोर नहीं . जब कविता उस से मिली उस समय शायद उसका रूप बदला हो और उसने कविता को मार दिया हो. सम्भावना बहुत ज्यादा है इस शक की क्योंकि कई बार मैंने भी महसूस किया है की आदमखोर से कोई तो ताल्लुक है मेरा. इसी बीमारी के कारन चाचा को छिप कर रहना पड़ रहा हो .
निशा- ऐसा है तो विचित्र है ये .
मैं- जंगल ने जब इतने राज छिपाए हुए है तो ये राज भी सही . राय साहब ने चौथा पन्ना इसलिए ही रखा होगा की चाचा का राज कभी कोई समझ नहीं पाये. जब जब राय साहब काम का बहाना करके गाँव से गायब होते है तो जरूर वो अपने भाई की देख रेख ही करते होंगे. राय साहब अक्सर चांदनी रातो में ही गायब होते है .
निशा- पुष्टि करने के लिए हमें इस जगह की निगरानी करनी होगी.
मैं- मैं करूँगा ये काम. चाचा से मिलने को सबसे बेताब मैं हूँ . बहुत सवाल है मेरे उनसे. पर एक चीज खटक रही है अभी भी मुझे की गाड़ी कहाँ छिपाई गयी चाचा की .
निशा- ठाकुर साहब इधर है तो गाडी भी यही कहीं होनी चाहिए. देखते है
हम लोग बहुत बारीकी से निरक्षण करने लगे. ऐसा कुछ भी नहीं था जो असामान्य हो .
“मैं उसे वहां छिपाती जहाँ वो सबकी नजरो में तो हो पर उस पर किसी का ध्यान नहीं जाए ” अंजू के शब्द मेरे जेहन में गूंजने लगे.
“क्या है वो जो आम होकर भी खास है . ” मैंने खुद से कहा.
मेरे ध्यान में आया की कैसे खंडहर में मुझे वो कमरे मिले थे . मैंने वैसे ही कुछ तलाशने का सोचा . एक बार फिर मैं उस कमरे में आया जहाँ कुछ भी नहीं था . अगर इस कमरे में कुछ भी नहीं था तो इसे बनाया क्यों गया . कुछ तो बात जरुर थी . सब कुछ देखने के बाद भी निराशा मुझ पर हावी होने लगी थी .
“मैं सोच रही हूँ की जब सुनैना यहाँ नहीं तो फिर उसकी समाधी यहाँ क्यों बनाई ” निशा ने कहा
मैं- समाधी, निशा, समाधी. ये कोई समाधी नहीं है निशा ये एक छलावा है . जिसमे मैं फंस गया . दिखाने वाले ने जो दिखाया मैं उसे ही सच मान बैठा. दिखाने वाले ने मुझे सोना दिखाया मैं उसमे ही रह गया. जो छिपाया उसे सोने की परत ने देखने ही नहीं दिया.
निशा- क्या .
मैं- आ मेरे साथ .
एक बार फिर हम लोग समाधी के टूटे टुकडो पर थे.
मैं- मैंने इसे गलत हिस्से में खोदा. बनाने वाले या यूँ कहूँ की छिपाने वाले ने बहुत शातिर खेल रचा निशा. जो भी देखता पहले हिस्से को ही देखता , पहले हिस्से में उसे सोना मिलता, धन का लालच निशा, फिर उसे और कुछ सूझता ही नहीं . जबकि खेल यहाँ पर हैं .
मैंने समाधी के पिछले हिस्से को देखा तो ऊपर की नकली परत हटते ही कुछ सीढिया मिली.
निशा- सुरंग
मैं- हाँ सुरंग, अब देखना है की ये खुलती कहाँ है .
निशा ने कमरे में रखी चिमनी उठा ली और हम सीढियों से उतरते गए. अन्दर जाते ही निशा ने चिमनी जला की और मैंने परत वपिस लगा दी. मैं नहीं चाहता था की किसी को मालूम हो हम लोग यहाँ है . एक एक करके निशा सुरंग की मशालो को जलाती गयी और चलते हुए हम लोग ऐसी जगह पहुँच गए जहाँ की हमने तो क्या किसी ने भी कल्पना की ही नहीं होगी.